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अनगार
प्रश्न-यहांपर मृढदृष्टिके विषय चार बताये गये - कुदेव कुगुरु कुशास्त्र और लोक । सो यह किस तरहसे ? क्योंकि आगममें मूढताके भेद तीन ही सुननेमें आते हैं, जैसा कि स्वामी समंतभद्र आचार्यने भी कहा है:
आपगासागरस्नानमुच्चयः सिकताश्मनाम् । गिरिपातोग्निपातश्च लोकमूढ निगद्यते । चरोपलिप्सयाशावान् रागद्वेषमलीमसाः । देवता यदुपासीत देवतामढमुच्यते । सग्रन्थारम्भहिंसानां संसारावर्तवर्तिनाम् ।
पाषण्डिनां पुरस्कारो ज्ञेयं पाषण्डिमोहनम् । नदी और समुद्रमें स्नान करना, बालु या पत्थरोंका ढेर लगाना, पर्वतसे गिरना या अग्निमें जलना इत्यादि सब लोकमूढता है।
आशा रखकर वरको प्राप्त करनेकी इच्छासे जो राग द्वेषसे मलिन देवताओंकी उपासना करना इसको देवमूढता कहते हैं।
परिग्रह आरम्भ और हिंसामें प्रवृत्त तथा संसारसमुद्रके भमरमें पडे हुए पाखण्डियोंकी उपासनाको पाखण्डिमूढता कहते हैं।
उत्तर-यह प्रश्न ठीक नहीं है। क्योंकि कुदेव या कुगुरु कदागमका अन्तर्भाव हो जाता है। अन्यथा स्वयं समन्तभद्र स्वामी ही ऐसा क्यों कहते कि,
भयाशास्नेहलोभाच्च कुदेवागमलिङ्गिनाम् । . प्रणाम विनयं चैव न कुर्युः शुद्धदृष्टयः ।।
बध्याय
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