________________
बनगार
वर्ग
२३९
SAREERARMSोटा अERRORS-ISROSHRSHRINESS
भावार्थ-जो कि अबतक संसारमें प्राप्त नहीं हो सका ऐसा जिनवचन-अनेकान्तात्मकताका सिद्धान्त जिसको प्राप्त होगया ऐसा मैं अवश्य ही धन्य ई-सुकृती हूं। क्योंकि यह बात निश्चित है कि इस मतके बाधक प्रमाण कोई भी संभव नहीं हैं। इस प्रकार अपनी श्रद्धाके द्वारा और; अहो, ये निर्वाध जिनवचन ही उत्तम हैं सत्य हैं तथा मुमुक्षुओंके लिये हर तरहसे इस संसारमें अद्वितीय सारभूत उपादेय वस्तु हैं; इस प्रकार प्रत्यय-ज्ञानके द्वारा और मैं इसकी नखच्छोटिका-अंगुष्ठ तथा तर्जनीके नखोंके घटन विघटन शब्दके द्वारा पूजा करता हूं इस तरह रुचिके द्वारा एवं जिसको कि स्वसंवेदन प्रत्यक्ष भान होगया है ऐसा मैं बडी उत्कण्ठाके साथ उत्साहपूर्वक आज इसी जिनवाणीका आराधन करता हूं। इस प्रकार अनुष्ठानके द्वारा प्रवचनको युक्त करनेवाले मुमुक्षुके सम्यग्दर्शनका आराधन है और यही सम्यक्त्वका विनय है । अत एव सम्यग्दर्शनकी विशुद्धिवृद्धिकेलिये उसको इसका पालन करना चाहिये । इन चार कार्योंके द्वारा मनुष्य सम्यक्त्वका आराधक हो सकता है। यह बात आगममें भी कही है । यथा
सदहया पत्तियआ रोचयफासतया पवयणस्य ।
सयलस्स जे णरा ते सम्मत्ताराहया हंति ।। इस समस्त प्रवचन- निर्बाध जिनवचनकी जो श्रद्धा प्रतीति रुचि और स्पर्शन- अनुष्ठान प्रकट करने| वाले हैं वे मनुष्य सम्यग्दर्शनक आराधक समझ जाते हैं।
इस प्रकार सम्यग्दृष्टियोंके विनय गुणग्रहणका वर्णन कर अब दृष्टान्तद्वारा यह बात स्पष्टतया बताते हैं कि आठो अङ्गोंसे पुष्ट और संवेगादि गुणोंसे विशिष्ट सम्यग्दर्शन क्या क्या फल देता है: -
पुष्टं निःशङ्कितत्वाद्यैरङ्गैरष्टाभिरुत्कटम् । संवेगादिगुणैः कामान् सम्यक्त्वं दोग्धि राज्यवत् ॥ ११२ ॥ ।
वध्याय