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बनगार
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.. ये ही नव देवोंकी उपासनाके पांच उपाय हैं जो कि सम्यग्दर्शनके विनयरूप हैं और उसकी विशुद्धि वृद्धिकेलिये मुमुक्षुओंको अन्य गुणोंकी तरह उपास्य हैं। आगममें भी ऐसा ही कहा है:-- .
अरहंतसिद्धचेदियसुदे य धम्मे य साहुवग्गे य । आधरियउवज्झायसु पव्वयणे दसणे चावि ॥ .. भत्ती पूया वण्णजणणं च णासणमवण्णवादस्स ।
आसादणपरिहारो दंसणविणओ समासेण ॥ अर्हत सिद्ध चैत्य श्रुत धर्म साधुवर्ग आचार्य उपाध्याय प्रवचन और सम्यग्दर्शनकी भी भाक्त पूजा वर्णोत्यत्ति अवर्णवादका नाश तथा आसदनाका परिहार करना चाहिये । संक्षेपसे यही सम्यग्दर्शनकी विनय समझनी चाहिये । इनका विस्तृत व्याख्यान देखना हो तो अपराजित आचार्यकृत मूलाराधनाकी टीका अथवा हमारे ( महापण्डित आशाधरकृत ) मूलाराधनादर्पण नामके निबन्धमें देखना चाहिये।
प्रकारान्तरसे दर्शनविनयको बताते हैं:धन्योस्मीयमवापि येन जिनवागप्राप्तपूर्वा मया, भो विष्वग्जगदेकसारमियमेवास्यै नखच्छोटिकाम् । यच्छाम्युत्सुकमुत्सहाम्यहमिहेवायेति कृत्स्नं युवन्, श्रद्धाप्रत्ययरोचनैः प्रवचनं स्पृष्टया च दृष्टिं भजेत् ॥ १११॥
बध्याय
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मुमुक्षुओंको श्रद्धा प्रत्यय रोचन और स्पर्शन-अनुष्ठान इन चार बातोंसे प्रवचनको युक्त करते हुए सम्यग्दर्शनका आराधन करना चाहिये।