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बनयार.
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सब विषय व्याप्त हैं । पदार्थमात्रका जिसमें वर्णन पाया जाता है। जिसमें सूक्ष्म पदार्थोंका भी स्वरूप भले प्र. कार दिखाया गया है। और जो निकाचित-अर्थतः अवगाढ-ठोस है। जो सबकेलिये हितकर और परमोत्तम है-संसारमें जिसकी बराबर कोई भी उत्कृष्ट पदार्थ नहीं है । एवं जो समस्त पापोंको दूर करनेवाला है। ऐसे जिनवाक्यकी-अहंत भगवान्के उपदिष्ट प्रथमानुयोगादिक प्रवचनकी पूर्वोक्त रीतिसे जो सदा समीचीनतया उपासना करते हैं उन साधुओंको निम्नलिखित सात गुण प्राप्त होते है:
१-सकलपदार्थबोधन । त्रिकालवर्ती समस्त अनन्त पदार्थों और उनकी पर्यायोंके स्वरूपका ज्ञान ।
२-हिताहितबोधन । हित-मुख और उसके कारणोंकी प्राप्ति तथा अहित-दुःख और उसके कारणोंके परिहारका ज्ञान ।
३-भावसंवर | मिथ्यात्वादिक परिणामोंका, जिनसे कि कर्मोंका आस्रव होता है, निरोध-शुद्ध निजात्म खरूपके अनुभवरूप परिणामोंका होना ।
४-नवसंवेग । प्रतिक्षण नई नई तरहकी संसारसे भीरुता । ५-मोक्षमार्गस्थिति । व्यवहार एवं निश्चयरूप रत्नत्रयमें अविचलतया स्थिर रहना । ६-तपोभावना। रागादि कषायोंके निग्रह करनेके उपायका अभ्यास करना । ७-अन्यदिक् । दूसरोंको उपदेश देना। ज्ञानाराधनकेलिये आठ प्रकारके विनयका अभ्यास करना चाहिये ऐसा उपदेश देते हैं
ग्रन्थार्थतद्वयः पूर्ण सोपधानमनिह्नवम् । विनयं बहुमानं च तन्वन् काले श्रुतं श्रयेत् ॥ १४ ॥
अध्याय
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