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अनगार
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अध्याय
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इन तसें पहला अहिंसा व्रत समस्त जीवोंके विषय में हुआ करता है। और अचौर्य तथा परिग्रहत्याग समस्त द्रव्य के विषय में हुआ करती है । एवं सत्यव्रत और मैथुनत्याग द्रव्यके एकदेश में हुआ करते हैं। जैसा कि आगम में भी कहा है; -
पदम सव्वजीवा विदिये चरिमे य सव्वदव्वाणि । सेसा महव्वदा खलु तदेकदेस िदव्वाणं ||
समस्त जीव पहले व्रत
विषय हैं, तीसरा और अन्तिम व्रत समस्त द्रव्योंके विषयमें हुआ करता है और बाकी व्रत द्रव्योंके एकदेश विषयमें होते हैं ।
इम व्रतोंके विषय में विशेष वर्णन करने के पहले उनके माहात्म्यका वर्णन करते हैं:
अहो व्रतस्य माहात्म्यं यन्मुखं प्रेक्षतेतराम् । उद्यातिशयाधाने फलसंसाधने च दृक् ॥ २० ॥
उद्योत - शंकादिकमलोंका दूर करना, अतिशयाधान-कमका क्षपण करनेवाली शक्ति में उत्कर्षताका संपादन, और फलसंसाधन - इन्द्रादि पदसे लेकर निर्वाणपर्यंत अथवा अनेक प्रकारके अपायनिवारणरूप फलका साक्षात् उत्पन्न करना; अपने इन कार्योंके करनेमें सम्यग्दर्शन को जिसका मुख अच्छी तरह देखना पडता हैजिसकी प्रधान सामर्थ्य की अतिशयरूपसे अपेक्षा रखनी पडती है उस व्रतके माहात्म्यका, अहो, कौन वर्णन कर सकता है ?
अ. घ. २७
मावार्थ – जब कि अचिन्त्य शक्तिके धारक सम्यक्त्वको भी व्रतों की अपेक्षा है तब इनका अचिन्त्य मा
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धर्म०
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