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________________ बनगार २३८ .. ये ही नव देवोंकी उपासनाके पांच उपाय हैं जो कि सम्यग्दर्शनके विनयरूप हैं और उसकी विशुद्धि वृद्धिकेलिये मुमुक्षुओंको अन्य गुणोंकी तरह उपास्य हैं। आगममें भी ऐसा ही कहा है:-- . अरहंतसिद्धचेदियसुदे य धम्मे य साहुवग्गे य । आधरियउवज्झायसु पव्वयणे दसणे चावि ॥ .. भत्ती पूया वण्णजणणं च णासणमवण्णवादस्स । आसादणपरिहारो दंसणविणओ समासेण ॥ अर्हत सिद्ध चैत्य श्रुत धर्म साधुवर्ग आचार्य उपाध्याय प्रवचन और सम्यग्दर्शनकी भी भाक्त पूजा वर्णोत्यत्ति अवर्णवादका नाश तथा आसदनाका परिहार करना चाहिये । संक्षेपसे यही सम्यग्दर्शनकी विनय समझनी चाहिये । इनका विस्तृत व्याख्यान देखना हो तो अपराजित आचार्यकृत मूलाराधनाकी टीका अथवा हमारे ( महापण्डित आशाधरकृत ) मूलाराधनादर्पण नामके निबन्धमें देखना चाहिये। प्रकारान्तरसे दर्शनविनयको बताते हैं:धन्योस्मीयमवापि येन जिनवागप्राप्तपूर्वा मया, भो विष्वग्जगदेकसारमियमेवास्यै नखच्छोटिकाम् । यच्छाम्युत्सुकमुत्सहाम्यहमिहेवायेति कृत्स्नं युवन्, श्रद्धाप्रत्ययरोचनैः प्रवचनं स्पृष्टया च दृष्टिं भजेत् ॥ १११॥ बध्याय २३८ मुमुक्षुओंको श्रद्धा प्रत्यय रोचन और स्पर्शन-अनुष्ठान इन चार बातोंसे प्रवचनको युक्त करते हुए सम्यग्दर्शनका आराधन करना चाहिये।
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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