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अनगार
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अनेक भेद हैं। बाह्य और अंतरङ्गमें स्फुटतया अवग्रहादिरूप जो स्वसंवेदन या इन्द्रियजन्य ज्ञान होता है उसको मति अथवा सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं। इसका दूसरा नाम अनुभव भी है । स्वयं अनुभूत अतीत पदार्थके ग्रहण करनेवाली "वह" इस तरह की प्रतीतिको स्मृति कहते हैं। अनुभव और स्मृति दोनोंके जोडरूप " यह वही है, यह उसके सदृश है, यह उससे विलक्षण हैं" ऐसे ज्ञानोंको संज्ञा कहते हैं । इसका दूसरा नाम प्रत्यभिज्ञान भी है। जहां जहां धूम होता है वहां वहां अग्नि जरूर होती है। विना अग्निके कहीं भी कभी भी धूम नहीं होता। अथवा जहां जहां शरीरमें व्यापार वचनादिक होते हैं वह्म वझं आत्सा जार होता है-विना आत्माके शरीरमें वचनादि व्यापार नहीं होसकता । इस तरहकी वर्कको चिंता या ऊह कहते हैं। धूमादिक साधनको देखकर अग्नि आदि साध्यका ज्ञानरूप जो अनुमान होता है उसको अमिनिबोध कहते हैं। रावमें या दिनमें अकस्मात् -बिना किसी बाध कायके, बो “ कल मेरा भाई आवेगा" इस तरहका हान होता है उसको प्रतिभा कहते हैं। पदार्थक प्रसाद मरतकी मालिका नाम बुद्धि और पाखण करकी पाकका नाम मेश्रा है। इसी तरह कुहामोहरूप मेग्यमाका नाम सका है। इसमकार सहि शोर मनकी अपेक्षाले उत्पन्न होनेवाले एकही मति जानके अनेक मेद हैं।
अवधिज्ञानावरणका क्षयोपशम होजानेपर अधिकतया अधोगत द्रव्यको किंतु नियत रूपी द्रव्यको ही जो विषय करता है उसको अवधि कहते हैं। इसके तीन भेद हूँ-देशावधि परमावधि और सर्वावधि । देशावधिके छह भेद हैं-अवस्थित अनवस्थित अनुगामी अननुगामी वर्धमान हयिमानं । इनमेंसे परमावधिमें अनवस्थित और हीयमानको छोडकर बाकी चार भेद हैं। सावधिमें अवस्थित अनुगामी और अननुगामी ये तीन ही भेद हैं । जैसा कि आगममें भी कहा है, यथाः
देशावधिः सानवस्थाहामिः स परमावधिः ।
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अध्याय
१-नवनवोन्मेषशालिनी बुद्धिः प्रतिभा इति ग्रन्थान्तरम् । २-इन छहोंका स्वरूप गोमट्टसारमें देखना।