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बनगार
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RAI
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AMARE
स्थाद्वादका ज्ञान, पठितसिद्ध मंत्र और जिसके द्वारा आकाशमें गमन आदि किया जा सकता है ऐसी साधितासिद्धको विद्या कहते हैं । इच्छाके निरोधको तप कहते हैं । नित्यमह आष्टान्हिक मह इत्यादि जिनयज्ञको यजन कहते हैं। और अपने तथा दूसरेके कल्याणकेलिये जो कुछ भी देना उसको दान कहते हैं । इन विद्यादिकोंके सिवाय सिद्धमंत्र दिव्यास्त्र सिद्धौषधियोंके प्रयोग इत्यादि और भी अनेक अद्भुत कर्म हैं कि जिनके निमित्तसे पूर्वज महापुरुषोंने जिनधर्मके तेजसे लोगोंको प्रभावित करदिया था उन कर्मों में प्रसिद्ध हुए पुरुषोंके उदाहरण आगमके अनुसार मालुम होसकते हैं । मुमुक्षुओंको भी उसी तरहसे प्रभावनाके द्वारा सम्यग्दर्शनको उद्दीप्त करना चाहिये।
इस प्रकार प्रभावना दो प्रकारकी है-अन्तरङ्ग और बाह्य । रत्नत्रयके द्वारा आत्माको प्रभावित करनको नाम अन्तरङ्ग प्रभावना है। और अद्भुत कार्योंके द्वारा उस धर्म तथा धर्मवालोंका जो जगत्में माहात्म्य विस्तृत करना इसको बाह्य प्रभावना कहते हैं। - मुमुक्षुओंको प्रकारान्तरसे भी गुणोंके ग्रहण करनेका उपदेश देते हैं :
देवादिष्वनुरागिता भववपुर्नोगेषु नीरागता, दुर्वृत्तेनुशयः स्वदुष्कृतकथा सूरेः क्रुधाद्यस्थितिः । पूजार्हत्प्रभृतेः सधर्मविपदुच्छेदः क्षुधादिते,
प्वङ्गिष्वार्द्रनमस्कृताष्ट चिनुयुः संवेगपूर्वा दृशम् ॥ १०९ ॥ संवेग निर्वेद प्रभृति आठ गुणोंके निमित्तसे मुमुक्षुओंकी शंकादि अाचारोंसे रहित सम्यग्दर्शन वृद्धिको प्राप्त हो-पुष्ट हो । भावार्थ-सम्यग्दर्शनकी पुष्टि केलिये मुमुक्षुओंको इन आठ गुणोंका संग्रह करना चाहिये जिनका कि स्वरूप इस प्रकार है:
१-संवेओ णिव्वेओ जिंदा गरुहा य उवसमो भत्ती। .
वच्छल्लं अणुकंपा गुणा हु सम्मत्तजुत्तस्स ।। संवेग निर्वेद निंदा गर्दा उपशम भक्ति वात्सल्य और अनुकंपा ये सम्यग्दृष्टिके आठ गुण हैं।
अध्याय
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