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अनगार
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शंका होने लगती है । जो लक्ष्मी दोषोंमें भी गुणकी कल्पना कराती हुई मनुष्योंको अनुरक्त बनालेती है-यदि कोई ब्रह्महत्या जैसा दोष करनेवाला भी धनी है तो धनके लोभसे बडे बडे वृद्ध ज्ञानी और तपस्वी उसकी प्रशंसा करते और आश्रय लेते हैं। कहा भी है
. वयोवृद्धास्तपोवृद्धा ये च वृद्धा बहुश्रुताः ।
. सर्वे ते धनवृद्धस्य द्वारि तिष्ठन्ति किङ्कराः ॥ जो वयोवृद्ध और अनेक शास्त्रोंके ज्ञानसे वृद्ध हैं वे सब धनवृद्ध पुरुषके दरबाजेपर किङ्कर बनकर खड़े रहते हैं।
हे भाई ! इस तरहकी अनेक विशेषणोंसे विशिष्ट लक्ष्मीके द्वारा लक्ष्मीको पाकर तू अच्छी तरह अपनेको उत्कृष्ट समझ, जब तक कि क्षणिक स्वभावके कारण शीघ्र ही यह तुझको अन्ध युक्तायुक्तके विवेक से विकल न बना दे। क्योंकि यदि न इसने अंध-विवेकहीन तुझे करदिया तो " मेरी यह लक्ष्मी दूसरेके पास जा रही है" यह देखकर तुझको अवश्य ही दुःसह दुःख प्राप्त होगा। अत एव वह तुझको पहलेसे ही विवेकशून्य-अंधा बनादेती है।
देखा गया है कि प्रायः सभी मनुष्य लक्ष्मीका समागम होते ही देखते हुए भी अंधे होजाते हैं और उसके जाते ही अच्छी तरह आंखें खुल जाती हैं । जैसा कि कहा भी है:
संपयपडलहिं लोयणई वंभजेच्छायंजंति ।
ते दालिदसलाइयई अंजिय णिम्मल हुति ॥ मनुष्योंके नेत्र संपत्तिपटलसे आच्छन्न होजाया करते हैं-उनकी दर्शनशाक्त नष्ट होजाती है। किंतु दारिद्रयकी सलाई आंजते ही वे निर्मल होजाते हैं। उन्हें सब कुछ सूझने लगता है।
ब.ध. २८
अध्याय