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________________ अनगार २१७ शंका होने लगती है । जो लक्ष्मी दोषोंमें भी गुणकी कल्पना कराती हुई मनुष्योंको अनुरक्त बनालेती है-यदि कोई ब्रह्महत्या जैसा दोष करनेवाला भी धनी है तो धनके लोभसे बडे बडे वृद्ध ज्ञानी और तपस्वी उसकी प्रशंसा करते और आश्रय लेते हैं। कहा भी है . वयोवृद्धास्तपोवृद्धा ये च वृद्धा बहुश्रुताः । . सर्वे ते धनवृद्धस्य द्वारि तिष्ठन्ति किङ्कराः ॥ जो वयोवृद्ध और अनेक शास्त्रोंके ज्ञानसे वृद्ध हैं वे सब धनवृद्ध पुरुषके दरबाजेपर किङ्कर बनकर खड़े रहते हैं। हे भाई ! इस तरहकी अनेक विशेषणोंसे विशिष्ट लक्ष्मीके द्वारा लक्ष्मीको पाकर तू अच्छी तरह अपनेको उत्कृष्ट समझ, जब तक कि क्षणिक स्वभावके कारण शीघ्र ही यह तुझको अन्ध युक्तायुक्तके विवेक से विकल न बना दे। क्योंकि यदि न इसने अंध-विवेकहीन तुझे करदिया तो " मेरी यह लक्ष्मी दूसरेके पास जा रही है" यह देखकर तुझको अवश्य ही दुःसह दुःख प्राप्त होगा। अत एव वह तुझको पहलेसे ही विवेकशून्य-अंधा बनादेती है। देखा गया है कि प्रायः सभी मनुष्य लक्ष्मीका समागम होते ही देखते हुए भी अंधे होजाते हैं और उसके जाते ही अच्छी तरह आंखें खुल जाती हैं । जैसा कि कहा भी है: संपयपडलहिं लोयणई वंभजेच्छायंजंति । ते दालिदसलाइयई अंजिय णिम्मल हुति ॥ मनुष्योंके नेत्र संपत्तिपटलसे आच्छन्न होजाया करते हैं-उनकी दर्शनशाक्त नष्ट होजाती है। किंतु दारिद्रयकी सलाई आंजते ही वे निर्मल होजाते हैं। उन्हें सब कुछ सूझने लगता है। ब.ध. २८ अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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