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अनगार
मिथ्याग्ज्ञानवृत्तानि त्रीण त्रीस्तद्वतस्तथा । षडनायतनान्याहुस्तत्सेवां दृङ्मल त्यजेत् ॥ ८४॥
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मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान मिथ्याचारित्र ये तीन भाव और तीन ही इन भावोंके धारण करनेवाले । अर्थात् मिथ्यादृष्टि मिथ्याज्ञानी और मिथ्याचारित्री इन छहोंको आचार्य अनायतन कहते हैं। क्योंकि ये मिथ्या श्रद्धानके आयतन-स्थान हैं; न कि समीचीन श्रद्धानके । यही कारण है कि इनकी उपासना करनेसे सम्यग्दर्शनमें मल-दोष उत्पन्न होता है । अत एव सम्यग्दृष्टिओंको चाहिये कि वे इस अनायतनसेवाका परित्याग ही करें।
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आराधनाशास्त्रमें सम्यक्त्वके पांच अतीचार बताये हैं-शंका कांक्षा विचिकित्सा अन्यदृष्टिप्रशंसा और अनायतनसेवा । यथा--
"सम्मत्तादीचारा संका कंखा तहेव विदिगिंछा ।
परदिठ्ठीण पसंसा अणायदणसेवणा चेव ॥" इन्ही पांच अतीचारोंका यहांपर भी सम्यग्दर्शनाराधनाके प्रकरणमें संक्षपसे स्वरूप बताया है। अब मिथ्यात्व नामके अनायतनके निषेध करनेका प्रयत्न करते हैं जो अपना कल्याण चाहते हैं उन्हें इस मिम्यात्वरूप अनायतनका त्याग ही करना चाहिये ऐसा उपदेश देते हैं:
सम्यक्त्वगन्धकलभः प्रबलप्रतिपक्षकरटिसंघट्टम् ।
कुर्वन्नेव निवार्यः स्वपक्षकल्याणमभिलषता ॥ ८५॥ जिस प्रकार अपने यूथकी कुशल चाहनेवाला यूथनायक-सेनापति अपने यूथके मदोन्मत्त हाथीके
अध्याय