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बनगार
दायका विषय होनेपर ही हेय व उपादेय तत्व अभीष्ट प्रयोजनको सिद्ध कर सकता है; अन्यथा नहीं। इसी पातको प्रकाशित करते हैं:
श्रद्धनबोधानुष्ठानस्तत्त्वमिष्टार्थसिद्धिकृत् ।
समस्तैरेव न व्यस्तै-रसायनमिवौषधम् ॥ ९४ ॥ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इनमेंसे एक या दोका नहीं किन्तु सबका-तीनों ही का विफ्यभूत तत्व-वस्तुका यथार्थ स्वरूप इष्ट अर्थ अभ्युदय अथवा निःश्रेयसको सिद्ध कर सकता है । जैसे कि श्रद्धा ज्ञान और चारित्र इन तीनोंके होनेपर ही रसायन औषध अभीष्ट फल-दीर्घ आयुष्य आदिको सिद्ध • कर सकता है। अन्यथा नहीं। स्वास्थ्यके बढानेवाले और रोगोंको नष्ट करनेवाले पदार्थको रसायन कहते हैं।
व्यवहारमार्गपर आरूढ होनेवालेको सधाधिरूप निश्चयमार्गके द्वारा कर्मशत्रुओंके निराकरण करनेका उपदेश देते हैं:
१ दीर्घमायुः स्मृतिमा व्यारोग्यं तरुणं वयः । प्रभावर्णस्वरौदार्य देहेन्द्रियबलोदयम् ॥ वाक्सिदि वृषतां कान्तिमवाप्नोति रसायनात् ।
लाभोपायो हि शस्तानां रसादीनां रसायनम् ।। इति ॥ . जिससे प्रशस्त रसरक्तादिककी प्राप्ति हो उसीको रसायन कहते हैं। अतएव उसके सेवन करनेसे दीर्घ आयु स्मरणशक्त बुद्धिकी प्रखरता विशिष्ट आरोग्य और वयमें तरुणता प्राप्त होती है, प्रभा वर्ण और स्वरमें उदारता आती है, शरीर और इन्द्रियोंमें बलका उदय हुआ करता है, बचनमें सिद्धि पुष्टि और कातिका प्राप्ति हुआ करती है।
बध्याय
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