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बनगार
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अध्याय
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यो रागादिरिपून्निरस्य दुरसान्निर्दोषमुद्यन् रथं, संवेगच्छलमास्थितो विकचयन्विस्वक्कृपाम्भोजिनीम् । व्यक्तास्तिक्यपथस्त्रिलोकमहितः पन्थाः शिवश्रीजुषा, - माराद्धृन्पृणतीप्सितैः स जयतात्सम्यक्त्वतिग्मद्युतिः ॥ ६५ ॥
सम्यग्दर्शनको सूर्य के समान समझना चाहिये । जिस प्रकार सूर्यको संदेह प्रभृति साठ कोटि हजार राक्षस तीनो कालमें - प्रातः मध्यान्ह और सायंकाल में घेरे रहते हैं उसी प्रकार सम्यक्त्वको भी रागादिक-मियात्प्रभृति सात प्रकृतिरूपी शत्रु तीनों कालमें भूत भविष्यत् वर्तमान में घेरे रहते हैं । जिस प्रकार सूर्य ब्राह्म
के द्वारा त्रिकाल संध्योपासन के अनन्तर दीगई अर्घाञ्जलिकी जलबिन्दुरूपी वज्रसे उन सन्देहादिक राक्षस - शत्रुओंका निपात करदेता है उसी प्रकार सम्यक्त्व भी काललब्धि आदिके द्वारा उदयसे अथवा स्वरूपसे उन दुर्निवार शत्रुओं को निरस्त - व्युच्छिन्न करदेता है । जिस प्रकार सूर्य उन वैरिओंको निरस्त कर ऊपरको आक्रमण करता हुआ दोषा - रात्रिका अभाव होजानेसे निर्दोष रथमें आरूढ होता है उसी प्रकार सम्यग्दर्शन भी उन कर्मशत्रुओं को व्युच्छिन्न कर उद्यत होता हुआ निर्दोष - शंकादिक मलोंसे रहित संवेगरूपी रथमें आरूढ होता है । . जिस प्रकार सूर्य समस्त जगत्की कमलिनिओंको प्रफुल्लित करदेता है उसी प्रकार सम्यग्दर्शन भी कृपा - अनुकम्पा - दयारूपी कमलिनिओंको विकशित - आल्हादित करदेता है । जिस प्रकार सूर्य मार्गको व्यक्त प्रकट करदे - ता है उसी प्रकार सम्यग्दर्शन भी आस्तिक्यरूपी मार्गको प्रकट करदेता है। जिस प्रकार सूर्य तीनो लोकोंके द्वारा पूजित है उसी प्रकार सम्यग्दर्शन भी पूजित है । जिस प्रकार सूर्य मोक्षस्थानको जानेवालोंका मार्ग है उसी प्रकार सम्यग्दर्शन भी अनन्तज्ञानादिरूप अथवा मोक्षलक्ष्मीका प्रीतिपूर्वक सेवन करनेकी इच्छा रखनेवालोका मार्ग प्राप्तिका उपाय है। इस प्रकार सूर्यके समान यह सम्यग्दर्शन सदा सर्वोत्कर्षको प्राप्त होता रहे; जो कि अपने आराधकोको ईप्सित वस्तुओंके द्वारा तृप्त करदेता है ।
धर्म -
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