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बनगार
सिंहः फेरुरिभः स्तभोग्निरुदकं भीष्मः फणी भलता, पाथोधिः स्थलमन्दुको मणितरश्चौरश्च दामोञ्जमा । तस्य स्याद् ग्रहशाकिनीगरिपुप्रायाः पराश्चापद,--
स्तन्नाम्नापि वियन्ति यस्य वदते सदृष्टिदेवी हृदि ॥ ६७ ।। जिस मनुष्यके हृदयमें सम्यग्दर्शनरूपी देवता सिद्ध होकर बोलने लगती है उसके लिये अत्यंत भयंकर -प्राणान्त करनेवाले उपसर्गोके उत्पन्न करने में उद्यत हुए मी सिंह शार्दूल प्रभृति जीव परमार्थसे, भृगालादिकके समान, होजाते हैं-उसके हुंकारमात्रसे दूर भाग जात हैं । इसी तरह अत्यंत क्रूर भी गजराज बरीके समान, बन जाता है। जिस तरह कान पकड कर बकरीको वशमें, किया जा सकता है उसी तरह मयंकर, मी हस्ती वशमें हो.. ज्यता और उसपर आरोहण किया जा सकता है । तथा भयंकर अग्नि जलके, समान होजाती है। भीष्म, सपराज केचुआके सदृश बनजाता है । समुद्र स्थल होजाता है और लोहेकी मजबूत भी श्रृंखला-संकल मषियीं -मोतियोंकी माला बनजाती हैं। चोर दास होजाता है--खरीदे हुए गुलामकी तरह काम करने लगता है। विषियों नष्ट होजाती हैं। अधिक क्या कहा जाक उस देवताका.माम मात्र लेनेसे प्राणियोंके अत्यंत प्रकृष्ट मी ग्रह शाकिनी नरादिक व्याधियां और शत्रुप्रकृति तथा बौर भी आपत्तियां सा दूर होजाती हैं।
समक्षुओंको सम्यग्दर्शनका आराधन करनेमें प्रोत्साहित करते हुए रद्ध करनेकेलिये, यह बताते हैं कि वह सम्यग्दर्शन दुर्गतिओंका प्रतिबंध करनेवाला और परम अभ्युदयके साधनका, अंग तथा साक्षात् मोक्षका कारण है।
परमपुरुषस्याद्या शक्तिः मुहग् वरिवस्वतां,
नरि शिवरमासाचीक्षा या प्रसीदति तन्वती। ब.प. २५
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