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अनगार
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जिसकी क सर्वत्र-न्याय व्याकरण साहित्य वा सिद्धांत सभी विषयोंमें एकवाक्यता पाई जाती है उसी देशनाको आतोक्त समझना चाहिये । क्योंकि जो धूर्त हैं-जो दूसरोंको प्रतारित करनेमें तत्पर रहा करते हैं वे किसी नियत विषयमें अपने किसी नियत ही वचन क्रिया चेष्टा और वेष आदिके द्वारा प्रवृत्त हुआ करते हैं। अर्थात् पूर्वापर अविरुद्ध वचनोंको आलोक्त और विरुद्ध वचनोंको अनातोक्त समझना चाहिये । क्यों कि धूतोंके वचन चेष्टा वेषादिक प्रायः करके कहीं कुछ और कहीं कुछ रहा करते हैं। आप्पोक्त वचनमें भी हेतुसै बाधा आ सकती है, इस शंकाका परिहार करते हैं
जिनोक्ते वा कुतो हेतुबाधगन्धोपि शङ्कयते । रागादिना विना को हि करोति वितथं वचः ॥२०॥
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राग द्वेष आदि कषायोंपर विजय प्राप्त करनेवाले जिन भगवान्के वचनोंमें युक्तियोंके द्वारा पूर्ण रूपसे बाधा आनेकी तो बात क्या; लेशमात्र भी बाधाकी शंका किस तरह की जा सकती है ? क्योंकि जहांपर कषाय पाया जाता है वहीं पर वचनमें असत्यताकी सम्भावना होसकती है । इसी बातको ग्रंथकार व्यतिरेक रूपसे यहां. पर कहते हैं कि ऐसा कौन पुरुष होगा जो कि रागद्वेषमोहके विना वितथ-मिथ्या वचन बोले । अत एव वीतरागके वचनोंमें अंशमात्र भी बाधाकी संभावना किस तरह हो सकती है? ___ जो रागादि कषायोंसे आक्रान्त हैं उनकी आप्तताका निराकरण करते हैं:
ये रागादिजिताः किंचिज्जानन्ति जनयन्त्यपि ।
___ संसारवासनान्तेपि यद्याप्ताः किं ठकैः कृतम् ॥ २१ ॥ जिनको रागादिने जीतलिया है-जो राग द्वेष मोहसे अभिभूत हैं, और कुछ अल्प ज्ञानके धारण कर
अध्याय
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