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पनगार
आक्रान्त कर रक्खा है ऐसे रागी द्वेषी उपदेष्टाओंको पाकर दुष्ट-अश्रद्धेय और इसीलिये विपरीत अथका करनेवाला होजाया करता है । किन्तु वही जल पवित्र स्थानपर पडता है तो जिस तरह अत्यंत पूज्य होजाता है उसी प्रकार वीतरागी अत एव पवित्र हृदयवाले पुरुष-समन्तभद्रादि आचार्योंको पाकर अतिशय पूज्य एवं श्रद्धेय और इसीलिये समीचीन अर्थको सिद्ध करनेवाला हो जाता है।
आगममें जो वाक्य जिस विषयमें जिस अपेक्षासे कहा गया है उसको उसी विषयमें उसी तरहसे प्रमाणित करनेका उपदेश देते हैं
दृष्टथैघ्यक्षतो वाक्यमनुमेयेनुमानतः ।
पूर्वापराविरोधेन परोक्षे च प्रमाण्यताम् ॥ १८ ॥ आगममें तीन प्रकारके पदार्थ बताये हैं-दृष्ट, अनुमेय, और परोक्ष। जो प्रत्यक्ष प्रमाणके द्वारा जाने जा सकते हैं ऐसे पौद्गालक विकागेको दृष्ट और जो अनुमानके द्वारा जाने जा सकते हैं ऐसे जीव परमाणु धर्म अधर्म कालाणु आकाश लोक परलोक शुभाशुभ कर्म प्रभृति पदार्थोंको अनुमेय, तथा इन दोनों ही के जो अविषय हैं ऐसे कर्म स्थिति स्वर्ग नरकके पटलोंकी संख्या द्वीप सागर पर्वत हृदादिका प्रमाण अकृत्रिम चैत्यालय जम्बूवृक्षादिकी रचना आदिको परोक्ष कहते हैं । इनमेंसे जिस तरहके पदार्थको बतानेकेलिये आगममें जो वाक्य आया हो उसको उसी तरहसे-यदि दृष्ट विषयमें आया हो तो प्रत्यक्षसे और अनुमेय विषयमें आया हो तो अनुमानसे तथा परोक्ष विषयमें आया हो तो पूर्वापरका अविरोध देखकर प्रमाणित करना चाहिये । आप्तोक्त और अनाप्तोक्त वाक्यकी पहचान बताते हैं -
यैकवाक्यतया विष्वग्वर्तते सार्हती श्रुतिः । .
कचिद्धि केनचिद्भूर्ता वर्तन्ते वाक्कियादिना ॥ १९ ॥
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बध्याय
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