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बनगा
धर्म
प्रतिपक्षी धर्मोके साथ साथ अस्तित्व नित्यत्व एकत्वादि अनंत धर्मोके धारण करनेवाले-अनन्तधर्मात्मक जीव पुद्गल धर्म अधर्म काल-आकाश इन छहो द्रव्योंमेंसे किसी भी एक वस्तुके एक 'अंशमें नयकी प्रवृत्ति हुआ करती है। क्योंकि नय उसीको कहते हैं जो कि प्रमाणके द्वारा गृहीत पदाथके एकदेशको विषय करता है। यह नयपरिपाटी जिस अंशमें प्रवृत्त होती है उसके विरुद्ध धर्मका निराकरण नहीं कस्ती; उसकी अपेक्षा रखती है, और अपने विवक्षित धर्मके अविनाभावी दूसरे धर्मोंसे उत्पन्न होती है। क्योंकि द्रव्यार्थिक नय पर्यायार्थिककी और पर्यायार्थिक द्रव्यार्थिककी अपेक्षा रखनेपर ही समीचीन नय माना जाता है; अन्यथा नहीं। यही बात सदसदादिक दूसरे धर्मोंके विषयमें भी है। इसी तरहसे जिस प्रकार अविनाभावी हेतु धर्मरूप धूमके द्वास पर्वतमें अग्निका ज्ञान प्राप्त करके लोग उसका प्रवृत्ति निवृत्तिरूप व्यवहार करते हैं उसी प्रकार उक्त युक्तिसिद्ध आगमके द्वारा जाने हुए पदार्थोमेंसे किसी एकके विवक्षित-अर्पित धर्मके विषयमें व्यवहा नयपरिपाटीके द्वारा प्रवृत्ति निवृत्तिरूप व्यवहार किया करते हैं। जो इस प्रकारसे व्यवहार करनेवाले हैं वे ही अन्तरङ्गमें लगे हुए अन्धकार-मिथ्यात्व या अज्ञानको दूर किया करते हैं । अपने या परके मिथ्यात्वका नाश कर सकते हैं तथा करते हैं।
जीवादिक छह द्रव्योंमेंसे प्रत्येकको युक्तिद्वारा सिद्ध करते हैं:
सर्वेषां युगपद्गतिस्थितिपरीणामावगाहान्यथा,योगाद्धर्मतदन्यकालगगनान्यात्मा त्वहंप्रत्ययात् ।' सिध्येत् स्वस्य परस्य वाक्प्रमुखतो मूर्तत्वतः पुद्गल
स्ते द्रव्याणि षडेव पर्ययगुणात्मानः कथंचिद् ध्रुवाः ॥ २४ ॥ जीव पुद्गल धर्म अधर्म आकाश और काल द्रव्य, इस तरह कुलद्रव्य छह ही हैं । जो गुग-पर्यायात्मक है म. घ. १८
अध्याय