________________
बनगार
तासे प्राप्त करते हैं । जिस प्रकार लगे हुए मलके दूर होजानेपर मणियां अपने और परके स्वरूपको प्रकाशित करनेवाले निज तेजमें निमग्न रहती हैं-उत्पाद व्यय ध्रौव्यस्वरूपमें अवस्थित रहती हैं उसी प्रकार उक्त मुक्त जीव भी द्रव्यभावरूप कर्ममलके निःशेष हो जानेपर निज स्वरूप और समस्त त्रैकालिक पदार्थोंके प्रकाशात्मक-युगपत् ज्ञानदर्शन परिणमनरूपी निज तेजमें निमग्न रहते हैं-उत्पाद व्यय धौव्यस्वरूपमें अवस्थित रहते हैं। ... ... उक्त उपायोंके द्वारा सिद्धि प्राप्त करनेवाले मुक्तात्मा अनादि संसारको सर्वथा नष्ट करके जिस अमृतमोक्षपदको प्राप्त होते हैं वह यद्यपि पर्यायदृष्टिसे सादि है फिर भी स्वरूपतः अनंत है। क्योंकि फिर वहांसे भव धारण नहीं करना पडता । इस प्रकारके मुक्तात्मा जीवन्मुक्ति अवस्थामें मोक्षके निरुपाख्य प्रभृति स्वरूप मानने वालेके आगमका निराकरण या प्रतिक्षेप करदेते हैं। क्योंकि वे उनसे विलक्षण मोक्षकी व्यवस्था करते हैं। और. परममुक्ति अवस्थामें उसी तरहकी मोक्षमें अवस्थित रहते हैं।
कुछ लोगोंने मोक्षका स्वरूप निरुपाख्य माना है ! उनका कहना है कि जिस प्रकार दीपकका बुझजानेपर कुछ स्वरूप नहीं रहता उसी प्रकार आत्माका भी निर्वृति प्राप्त करनेपर कुछ स्वरूप नहीं रहता । अत एव मोक्षका स्वरूप निःस्वभाव है। इसी तरह कुछ लोगोंका कहना है कि मोक्ष मोघचित् है। क्योंकि जीवका जो चैतन्य स्वरूप माना गया है वह ज्ञेयाकार परिच्छेद-प्रतिभाससे रहित है । इसी प्रकार कोई कोई कहते हैं कि मोक्ष अचित है । क्योंकि उस अवस्थामें आत्माके बुद्धि आदिक नव विशेष गुणोंका उच्छेद होजाता है। इसी तरह और भी मोक्षके स्वरूपके विषयमें अनेक कल्पनाएं हैं जो कि समीचीन न होनेसे उपेक्षणीय ही हैं। इस उपेक्षणीयताको जीवन्मुक्ति अवस्थामें भगवान्ने अपने उपदेशसे युक्तिपूर्वक सिद्ध करके बतादिया है । अत एव मुक्तात्मा उक्त मोक्षके विपरीत स्वरूपका निराकरण करनेवाले हैं। इस तरहके मुक्तात्मा सदा-अनंत कालत क आत्मिक सुखमें लीन रहते हैं। .इस प्रकार जीवसे लेकर मोक्षतक सात तच्चोंका स्वरूप ऊपर बताया । इन्ही तत्वार्थोंके श्रद्धानको सम्यग्दर्शन कहते हैं । इस सम्यग्दर्शनके उत्पन्न होनेमें जिस सामग्रीकी अपेक्षा है उसको दो श्लोकोंमें बताते हैं:
B
EIFEIAS
अंध्यांय ।
HSSENCE