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अनगार
MERIES
जो, कुछ कालतक स्थिर रहकर चलायमान होजाता है उसको चल कहते हैं। जो शंकादिक दषणोंसे कलंकित होता है उसको मलिन कहते हैं। इस प्रकार जो क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन चल" मलिन अगाढ और अनवास्थत है वह कथंचित् नित्य भी है-दीर्घकालस्थायी है। क्योंक उसकी स्थिति अन्तर्मुहूर्तसे लेकर छयासठ सागर तककी है। -- पहले आज्ञा मार्ग आदिकी अपेक्षासे सम्यक्त्वके दश भेद गिनाय हैं; अब उन्हीके नाम बताते हैं:
आज्ञामार्गोपदेशार्थबीजसंक्षेपसूत्रजाः ।
विस्तारजावगाढासौ परमा दशधेति दृक् ॥ ६२॥ आज्ञा मार्ग उपदेश अर्थ बीज संक्षेप सूत्र और विस्तार इनसे उत्पन्न होनेवाला तथा अवगाढ और परमावगाढ; इस तरह सम्यक्त्वके दश भेद है।
शाखाध्ययनके विना केवल वीतगग देवकी आज्ञाके अनुसार जो तत्त्वोंमें रुचि उत्पन्न होती है उसको आज्ञासम्यक्त्व कहते हैं। मोहनीय कर्मका उपशम होजानेपर शास्त्राभ्यासके विना, बाह्य और अभ्यंतर परिग्रहसे सर्वथा राहत और कल्याणकारी मोक्षमार्गमें रुचि होनेको मार्गसम्यक्त्व कहते हैं। तीर्थकर प्रभृति उत्तम पुरुषों के चरित्रको सुनकर जो तत्त्वोंमें रुचि उत्पन्न हो उसको अथवा हृदयमें उन चरित्रोंके सुनने का भाव उत्पन्न हो उसको उपदेश सम्यक्त्व कहते हैं। किसी पदार्थको देखकर या उसका अनुभव कर अथवा दृष्टान्तादिका अनुभव कर जो प्रवचनके विषयमें रुचि उत्पन्न होती है उसको अर्थ सम्यक्त्व कहते हैं। गणित ज्ञानकेलिये जो नियम बताये हैं उन पूर्ण या अपूर्ण बीजोंको जानकर और मोहनीय कर्मका अतिशय उपशम होजानेपर करणानुयोगके गहन भी पदार्थोंके जाननेसे जो सम्यक्त्व उद्भूत होता है उसको बीजसम्यग्दर्शन कहते
SAHEBITEAJPAYERATI
अध्याय
V
अ.घ.२४
ESRAES