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बनमार
नेवाले हैं, एवं संसारकी वासनाको-गृह गृहिणी आदि पदार्थोंकी अभिलाषाओंके संसारको संसारमें उत्पन्न कर रहे हैं, ऐसे पुरुषोंमें भी यदि लोक आप्त-यथार्थ वक्ता सर्वज्ञकी कल्पना करते हैं तो फिर ठगोंने ही क्या विगाडा है ? भावार्थ--जब कि दोनो ही संसारकी जनताको ठगनेवाले हैं तो ठगोंकी निन्दा क्यों की जाती है-उनको भी आप्त क्यों नहीं मानलिया जाता ? अत एव जो सकषाय और अल्पज्ञ हैं उनको आप्त नहीं माना जा सकता।
जो आप्ताभास हैं उनसे उपेक्षा करनेका उपदेश देते हैं:योऽर्धाङ्गे शूलपाणिः कलयति दयितां मातृहा योत्ति मांस, पुस्ख्यातीक्षाबलायो भजति भवरसं ब्रह्मवित्तत्परो यः। : यश्च स्वर्गादिकामः स्यति पशुमकृपो भ्रातृजायादिभाजः,
कानीनाद्याश्च सिद्धा य इह तदवधिप्रेक्षया ते ह्युपेक्ष्याः ॥ २२ ॥ महादेव अपने शरीरके आधे भागमें दयिता-पार्वतीको और हाथमें शूल-त्रिशूलको धारण करता है, बुद्धने अपनी माताका घात कर-उत्पन्न होते ही माको मारकर मांसका भक्षण किया। सांख्य पुरुष और प्रकृति इन दोनों ही के ज्ञानके बलसे विषयसुखका सेवन करता है । वेदान्ती ज्ञान ही है एक रूप जिसका ऐसे ब्रह्मतत्वका जाननेवाला होकर भी उसी संसारके रसका अनुभव करनेवाला है। याज्ञिक ब्राह्मण भी स्वर्ग पुत्र धन धान्यादिकी इच्छाको पूरा करनेकेलिये निर्दय होकर बकरी आदि पशुओंके वध करनेमें प्रवृत्त होता है। इनके सिवाय और भी जो कानीन-व्यांस वसिष्ठ प्रभृति अनेक पुरुष प्रसिद्धि प्राप्त करगये हैं। जिन्होंने कि भाईकी स्त्री या चाण्डालकन्या आदिका सेवन किया था उन सबका स्वरूप ग्रंथों में लिखा हुआ है। अत एव उन शास्त्रोंपर भले प्रकार विमर्ष-विचार
अध्याय
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-व्यास कन्यासे उत्पन्न हुए थे इसलिये उन्हें कानीन कहते हैं |
AREAM