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॥ दूसरा अध्याय ॥
बनगार
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किन २ उपायोंसे व्यवहार मोक्षमार्गका आराधन करनेवाला निश्चय मोक्षमार्गको सिद्ध करलेता है ? तो इसके उत्तरमें पहले यह कहा गया है कि "उद्योत उद्यव निर्वाह सिद्धि और निस्तरण इन उपायोंसे उसके आराधन करनेवालेको निश्चय मोक्षमार्गकी सिद्धि होती ही है ।" किंतु यहांपर चार आराधनाओंमेंसे पहली सम्यग्दर्शन आराधनाका प्रकरण है; अत एव उस विषयमें यह समझलेना आवश्यक है कि अपनी कारणसामग्रीके मिलजानेपर मुमुक्षु भव्योंके यद्यपि सम्यग्दर्शन उद्भूत होजाता है। फिर भी वह निकट भव्योंके भी सिद्धि-पूर्णताका संपादन करनेकेलिये उस चारित्रकी अपेक्षा रखता है-विना उस चारित्रकी सहायताके सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता कि जिसकी प्रकर्षता : उत्तरोचर बढती चली जा रही हो। इसी बातको यहांपर कहते हैं:
आसंसारविसारिणोऽन्धतमसान्मिथ्याभिमानान्वयाच्च्युत्त्वा कालबलान्निमीलितभवानन्त्यं पुनस्तबलात् । मीलित्वा पुनरुद्गतेन तदपक्षेपादविद्याच्छिदा,
सिद्ध्यै कस्यचिदुच्छ्रयत् स्वमहसा वृत्तं सुहृन्मृग्यते ॥१॥ यह अनादि मिथ्यादृष्टि जीव, समस्त संसारमें फैले हुए-अपने कार्यसे सम्पूर्ण जगत्को व्याप्त करनेवाले विपरीताभिनिवेशरूप भावमिथ्यात्वसे अथवा दुराग्रहको निमित्तभूत युक्तियोंके द्वारा उत्पन्न हुआ अहंकार जिसका अनुगमन करता है ऐसे अंधतम-द्रव्यमिथ्यात्वसे यद्वा दुर्नयोंके विलाससे अनंत संसारका निमीलन -संवरण करता हुआ-तिरस्कार करता हुआ किसी प्रकार-कालादि लब्धिके निमित्तसे अथवा कार्यसिद्धिकेलिये अनुकूल समयकी सामर्थ्यसे दूर हुआ। किंतु फिर भी वह उसी मिथ्यात्वकी सामर्थ्यसे उसके प्रभावमें तिरोहित
बध्याय
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