Book Title: Dharmdipika Vyakaranam
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ਸਰੀਰ ਜਗਰ ਦੇ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - Recessa नमो नमः श्रीप्रभुधर्मसूरये / धर्मदीपिका (व्याकरणम् ) रचयितान्याय विशारद-न्यायतीर्थोपपद विभूषित उपाध्याय श्रीमङ्गलविजयः। भाषनगरस्थिश्रीयशोविनयजैन ग्रन्थमालायाः कार्यवाहकेन फूलचन्द्र बैद इत्येतेन वटप्रद्रस्थ 'लुहाणामित्र स्टीम' मुद्रणालये मुद्रयित्वा प्रकाशिता / धर्मसं. 4 वीरसं. 2451] प्रथमावृत्तिः ] [वि. सं. 1981 [प्रतिः .500 in मूल्यम् 4-0-0 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वटपद्रे शियापुरास्थाने 'धी लुहाणामित्र स्टीम प्रिं. प्रेस' नामनि मुद्रणालये . ठक्कर अंबालाल विठ्ठलभाई इत्यनेन प्रकाशाकाथै ता. 1-10-25 . दिने मुद्रितम् / Page #4 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ తం తాంంంంంంంంంంంంంఆ000000000000000000 కటe000000000000000000000000000000000000eeeeeeeeec000000000000 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000am Trafanta-ATIari attariuiafi, g. H. S. i. at. 0 0000000000000000000000eeeeee Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुदेव-पुष्पाञ्जलिः। काश्यां पुय्यां श्रममतितरां सर्व विद्याप्रदेशे कृत्वा विद्यालयमनुपमं स्थापयामासिवानं यः / वश्वा हिंसामपकरुणतां काशिराजस्य योगं लब्ध्वा शालां पशुहितकरीमप्युदयप्रतापः / / (2) समुत्पाद्य प्राज्ञान विशदमुपनीय प्रकटतां - पुराणां सदग्रन्थावलिमकृत विद्याप्रसरणम् / निराकृत्याऽऽरेका विविधविषयाः प्राच्यविदुषां तथा पाश्चात्यानां जिनपथविकासं व्यधित यः // गत्वाऽम:बा-मगधादिषु दरदरं .. देशेषु संविहितवानभिभाषणानि ! हिंसानिषेधविषये च सहस्रसंख्यान मांसाशिनोऽनयत यः पदवीं कृपायाः॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [4] प्रामुख्ये काशिरामः प्रवरकृतधियां मण्डलैः सहकुलायां धर्माचार्यैर्महद्भिर्मुनिभिरपि परैर्भूषितायां सभायाम् / नैकट्ये जैनधर्मानुचर-बहुमत-श्रेष्ठिचूडामणीनामाचार्याख्यप्रतिष्ठा-पदवितरणतःसत्कृतोयोबभूषान् // (5) "आबू"-तीर्थ जिनालयेषु बहुशोऽगच्छन्नुपानद्युताः पाश्चात्या निरचीकरत् तदिदकं दुःखाकृदाशातनम् / श्रीमजोधपुरे पुरे व्यररचत् " साहित्य-सम्मेलनं " प्रज्ञालरधिकारिभिश्च बहुभिः सम्पूजितो योऽभवत् / / अनेके भूपालाः प्रथितयशसो भारतभुवो 'न्यपुर्यव्याख्यानामृतरसमनल्पोदरतया / तथा "बोम्बे"-नेता निजनिकटमाहूय महता .. प्रमोदेनाचंद् यच्चरण-कमले उत्सुकमनाः // (7) ईदग्धर्मधुरन्धराय भुवनप्रख्यातनाम्ने पुनः श्रीजैनेश्वर-शासनामरपथासोमप्रभामालिने / सूरीन्द्राय युगप्रधान-यशसे भट्टारक-स्वामिने .. श्रीश्रीश्रीयुतधर्मसूरि-गुरवे भूयानमः कोटिशः / / Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [5] (8) तव प्रसादात् गुरु-देवते ! मया काश्यां त्वदघ्रि-द्रुतले प्रभाविनि / स्थित्वा सुखं ज्ञानलवः समर्जितः शाब्दादिशानेष्वपि मूढबुद्धिना // तवोपकारोऽयमनल्परूपः / क्षणे क्षणे मे स्मरणं समेति / . स्मृति-क्षणेऽश्रूणि पतन्ति दुग्भ्यां त्वहिप्रयोगाति निपीडितस्य // . (10) शल्यं पुनमें हृदयस्थमेत विशेषतो मां भगवन् ! दुनोति / यथोचितं कर्तुमपारयं न सेवां त्वदीय-क्रमयामलस्य.॥ (11) इदं लघु व्याकरणाख्यपुष्प निर्वापधाट्य हि पुरस्तव स्तात् / आश्वासकं मे मनसोऽधमर्णशिरोमणेदीन-विहीनशक्तेः / / Page #9 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मदीपिकामां आर्थिक सहायक सद्गृहस्थोनी शुभ नामावली. नकलो 125 आदरिनिवासी शेठ लीलाधर लक्ष्मीचन्द-मुंबइ. 85 पोरबन्दरनिवासी मास्तर हरखचन्द कपूरचन्द-मुंबई. 50 मांगरोळनिवासी शेठ प्रेमचन्द * नागरदासनां मातुश्री बाइ रळीआत-मुंबई आगरानिवासी सद्गत शेठ चान्दमलनी नाहटानां धर्मपत्नी श्रीमती वसन्तकुंवरी-आगरा. नागपुरनिवासी श्रीमान् शेठ केशरीमलजी मानमलजी जोहरी.. अमलनेरनिवासी शेठ भवरीलालजी हीरालालजी. '25 अमलनेरनिवासी शेठ कस्तूरचंदजी तेनपालनी. आगरानिवासी शेठ अमरचन्दनी वैदनां सौभाग्यवन्ती धर्मपत्नी बाई उदयकुमारी-आगरा. 13 धीणोजनिवासी शेठ रखचंद कपूरचंद्र. 25 mmm Page #11 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना। उपयोगि खलु भाषासौष्ठवाय. सद्व्यवहारसिद्धये च व्याकरणम् / संस्कृत-भारत्याः पुनर्मधुरतया, मनोरञ्जकतया, चित्ताकर्षकतया, सन्तोषानन्दावहतया च गीर्वाणवाणीतयैव प्रसिद्धाया अनुभवसिद्धायाश्च समधिगमो निःश्रेयसायापि तत्प्रतिपादकशास्त्रानुप्रवेशकारितया कल्पते / संस्कृतव्याकरणानि जैन-जनेतराभिरूपप्रणीतानि सन्ति. सम्प्रत्यपि बहूनि / तत्र च जैनव्याकरणानामप्रसिद्धावस्थायां पतितत्वेन पाणिनीयांदिव्याकरणानि पठन-पाठनगोचरतया सुव्यापक-प्रचारमवाप्तवन्ति / सुप्रसिद्धनामधेय-भगवत्यादश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचित " सिद्धहेम" नामशब्दानुशासनस्य विंशतितो वर्षतो यदाध्ययनं चाध्यापनं च समारब्धं समभवत् जगत्पूज्य-गुरुदेव-शास्त्रविशाग्द-जैनाचार्यश्री 1008 श्री विजयधर्मसूरिस्थापित-संस्कृतविद्यालये काश्यां, तदा काशीस्थ वैयाकरणचूडामणिविबुधानामन्तःकरणानि तस्य सरलशैलीमुचितपद्धतिं सुगमामथ च साङ्गोपाङ्गां प्रतिपादनसरणी च प्रति नम्रीभूतानि, रब्धवञ्च तेषां चेतस्सु तत् सुयोग्यप्रतिष्ठास्थानम् , समारब्धवाश्च तस्य महिमयशःसम्भारेण प्रसरता सह पठनपाठनप्रवृत्तेरपि प्रचारः। Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [10] तस्य चातिविस्तृततया समधिक-प्रज्ञा-समयव्ययसाध्यत्वेन, छळ्या वृत्तेरपि बृहद्वत्तिवद् अष्टाध्यायीक्रमसहिततया चन्द्रप्रभाहैमलघुप्रक्रियाभ्यामपि च सरलरीतिप्रकारेण संस्कृत-व्युत्पादन समभिलाषुकेण निर्मितं मयेदमरूपं व्याकरणम् / . अत्र च पूर्वार्धे पञ्च सन्धयः, षड्लिङ्गानि, युष्मदस्मत्प्रक्रिया, अव्ययप्रकरणम्, स्त्रीप्रत्ययः, कारकाणि, समास-तद्धितप्रकरणे च समावेशितानि / उत्तरार्धे पुनः-दश गणाः, यत्र च 1700 धातवः प्रायो निर्दिा वर्तन्ते, दश प्रक्रियाः, कृत्यप्रक्रिया, पूर्वकृदन्तानि, उणादयः, उत्तरकृदन्तानि, अन्येऽपि चोपयोगिनो विषया निवेशिताः सन्ति / धातुपाठ-न्याय-द्रव्य-गुण-जात्यादिलक्षणादयोऽपि विषयाः समुपन्यस्ताः सन्ति / - प्रायः 240 पृष्ठेषु पूर्वार्धम् , 500 पृष्ठेषु चोत्तरार्ध समाप्तिमाप्नुतः / भाषायाः सरलतायामप्यादितोऽवसानपर्यन्तं यावदुपयोगोदयं विहितः प्रयत्नः / प्रकाशमधिगच्छति चायेतिहासतत्त्वमहोदधिजैनाचार्यश्रीविजयेन्द्रमूरि-सुसान्निध्यतः / / ___ कार्ये चास्मिन् न्यायविशारद-न्यायतीर्थपदालङ्कृतेनास्मत्सतीयेन निम्रन्थेनापि विहितानेकगद्यपद्यहृयग्रन्थेन श्रीमन्न्यायविजयेन विदुषा शान्तमूर्तिमुनिराजश्रीजयन्तविजयादिमा च प्रसङ्गोचितां सहायता प्रदायाहं प्रोत्साहितस्तथा च अफसंशोधनादौ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [11] विशेषतः परिश्रमवता भगवान्दासश्रेष्ठितनुजेन पण्डितलालचन्द्रेण विशदीकृत्यैतद् व्याकरणं विभूषां प्रापितम् ; अतोऽत्रैतान् प्रति कृतज्ञताऽऽविष्क्रियतेऽन्तःकरणतो धन्यवादपुरस्सरम् / सर्वाङ्गशुद्धं कार्य विरलं सुदुर्लभं चेति तु सर्वप्रतीतम् / अत एव सम्भवन्त्यनुट्योऽत्र संशोधयिष्यन्ते विद्वद्भिः, उल्लिख्य च ता मयि प्रेषयितुमपि कृपा करिष्यते, इत्यभ्यर्थनां कुर्वाणो विरमति -मङ्गलविजयः। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-सूची। पूर्वाधे पृष्ठसङ्ख्या विषयनाम मालाचरणम् .... संज्ञाप्रकरणम् / स्वरसन्धिः प्रकृतिभावः व्यञ्जनसन्धिः विसर्गसन्धिः षड्लिङ्गप्रकरणम् गुष्मदस्मत्प्रक्रिया अव्ययप्रकरणम् .... स्त्रीप्रत्ययप्रकरणम् .... कारकप्रकरणम् समासप्रकरणम् ..... तद्धितप्रकरणम् ... .... पूर्वार्ध-सूत्रानुक्रमणिका 12-13 14-19 20-24 24-87 8-96 97-99 100-110 111-128 129-161 162-24. 1-43 . . . . . . . . ... . .. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [14] उत्तराः भ्वादिगणः अदादिगणः . ह्वादिगणः दिवादिगणः स्वादिगणः तुदादिगणः रुधादिगणः तनादिगणः क्रयादिगणः चुरादिगणः दशप्रक्रियाः कृत्यप्रक्रिया ... कृत्प्रत्ययप्रक्रिया ... उणादिगणः .. .... उत्तरकृत्प्रत्ययप्रकरणम् प्रन्थकृत्प्रशस्तिः ...... . .... / परिशिष्टे 1-84 84-107 .107-114 114-130 130-137 137-149 150-155 ..... 156-158 159-169 169-183 184-268. 269-274 275-315 315-366 367-403 ....404-411 'परिभाषाप्रकरणम् .. ........... सङ्ग्रहश्लोकाः ........... ... .... .....413-415 ... 416-418 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [15] अनुबन्धफल निरूपणम् वृत्-गणफलनिरूपणम्.... धातुपाठसूची उत्तरार्धसूत्रानुक्रमणिका शुद्धिपत्रकम् .... 418-419 ... 420 421-467 459-512 .... 513-515 SETTE - इ . . Page #19 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [1] श्रीविश्वनाथः शरणम् / म्ह खलु नानाविधभारतीप्रमाभास्वरे भारतेऽद्यावधि परमकरुणाकान्तस्वान्तैः परोक्षापरोक्षज्ञानगौरवाधरीकृतान्यप्रान्तजातविपश्चिजातैर्महामहिमशालिभिर्वाचस्पतिप्रतियोगिकसादृश्यानुयोगिभिर्विद्वद्वरिष्ठैः प्रणीता भूयांसो ज्यायांसो लघीयांसश्च शब्दशास्त्रारण्यविहरणमानसमनीषिकेसरिजनानन्दसन्दोहसम्मादकाः शब्दानुशासनग्रन्था अध्ययनाध्यापनविषयतामुपलभमानाः सर्वत्रैव प्रत्यक्षीक्रियन्ते / तेषु निखिलशास्त्रीयविषयान करकमलामलकवद् वीक्षमाणैः सुप्रतीतनामधेयैराहतमतावतंसभूतैः श्रीमद्धेमचन्द्राचार्यसूरिवय्यः सम्पादितः स्वोपज्ञबृहद्वृत्तिसमेतः सिद्धहेमनामको ग्रन्थः प्रायः सर्वान् नूतनानतिशेते / तस्य च तीक्ष्णबुद्धिवैमवैरपि दुरवगाहतया तत्प्रणीतलघुवृत्तेश्च सूत्रक्रमेण निर्मिततया सस्कृते प्रविविक्षूणां बालानां सुगमतया अशक्यबोधविषयत्वात् परमकारुणिकैः सकलशास्त्रनिष्णातस्वान्तः श्रीमन्मुनिप्रवरमङ्गलविजयः सकुतूहलं सम्पादितः सद्यः शब्दसाधुत्क्सम्पादकोऽल्पीयसा प्रयत्नेन हृदयग्राह्यः सिद्धहेमपयोनिधिदुग्धसारभूतोऽयं धर्मदीपिकामियो ग्रन्थोऽवश्यं संस्कृतसाहित्यसुमेरुशिखरारुरुक्षून् बालान्, स्वास्वादेनातितरां सन्तोषयेदित्याशास्ते . . काशीस्थविरलाविद्यालय-व्याकरणसं. 19.79 / साहित्य-न्यायप्रधानाध्याकः व्याकरणोपाध्यायः सभापतिशर्मोपाध्यायः Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायतीर्थ-न्यायविशारदउपाध्याय श्रीमंगलविजयजी कृत अन्यान्य ग्रन्थो. ? जैन साहित्यमा पदार्थनी व्यवस्था. हिन्दी भाषामां 2 जैन तत्त्वप्रदीप संस्कृत भाषामां जैन दर्शनमा प्रतिपादित पदार्थोने जाणवा माटे न्याय शैलीमा मुख्य साधनरूप छे. आ ग्रंथमां दरेक पदार्थन लक्षण प्रदर्शित करवा पूर्वक स्वरूप समजाववामां आवेल छे, तेमां सात अधिकार राखवामां आव्या छे. . मूल्य रू. 1 3 सप्तभंगीप्रदीप गुजराती भाषामां स्याद्वाद-सप्तभंगीना स्वरूपना बोध सिवाय जैनदर्श. नमा प्रवेश थवो अशक्यप्राय होवाथी तेनो दरेक लोको लाभ ले, ते खातर नवीन शैलीथी गुजराती भाषामां आ ग्रन्थ रचवामां आव्यो छे. ग्रन्थना प्रमाणमा किंमत घणी थोडी राखवामां आवी छे. पृष्ठ 150. मूल्य रू. 0 4 तत्त्वाख्यान (पूर्वार्ध) . गुजरातीमां बौद्ध, नैयायिक, सांख्य अने वैशेषिक आ चार दर्शनोनी भाचार, पदार्थोनी व्यवस्था विगेरे जाणवा माटे आ एक Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [3] अपूर्व साधन छे. दरेक दर्शननी समालोचना पण वणी सरस युक्तिपूर्वक करवामां आवेली होवाथी दरेक विद्वान् नुं मन ते जोवा उत्कंठित थाय छे. तेनी उपर घणा विद्वानोना उच्च अभिप्रायो पण आवी गया छे. नकलो थोडी छे अने मागणी घणी छे. व्हेलो ते पहेलो. पृष्ट 315 ग्रंथ जोतां किमत घणी ज थोडी छे.. भूल्य रू. 1) . 5 द्रव्यप्रदीप गुजरातीमां षड् द्रव्यनुं स्वरूप न्यायशैलीथी युक्तिपूर्वक जाणवा माटे जैनोमां आ एक अपूर्व साधनरूप छे. ग्रंथ नानो होवा छतां पण विषयो गंभीर होवाथी घणी सरल भाषामां निरूपण करवामां आव्युं छे. पृ. 64 मूल्य रू. / 6 धर्मप्रदीप . गुजरातीमां .. भिन्न विषयो पर द्रव्यानुयोगने लक्ष्यमा राखी पद्यमां चोवीश तीर्थकरीनां स्तवनो आपवामां आव्यां छे. तेमां खास परमपूज्य आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजीकृत स्तवनोनो पण समावेश छे. साथ साथ तेओश्रीनी अष्टप्रकारी पजा पण आपवामां आवी छे. पृष्ट 96. मूल्य रू. 0 7 तत्त्वाख्यान (उत्तरार्ध) गुजरातीमा आमां वेदांत, मीमांसा अने जैनदर्शन आ वणर्नु घणा विस्तारपूर्वक विवेचन छे. साडाछसो पृष्ट मू. रू.४ 8 धर्मदीपिका (व्याकरण) संस्कृतमां नवीन पद्धतिथी लखायेल व्याकरण शास्त्रनो आ एक Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपूर्व ग्रंथ छे. प्रलोकप्रमाण लगभग सात हजार जेटलुं छे. मूल्य रू. 4-0-0 छपाववाना ग्रंथो. 9 सम्यक्त्व प्रदीप 10 धर्मजीवनप्रदीप ( विजयधर्मसूरिरास ) 11 प्रदीपप्रकाश. गुजराती आ “जैनतत्व प्रदीप "नुं गुजराती भाषामां तैयार थयेलुं विवेचन छे. लगभग एक हजार पृष्ट जेटलो आ ग्रंथ थशे. 12 व्युत्पत्तिवाव्याख्या , संस्कृतमा एनामनी न्यायना ग्रंथनी टीका नव्यन्यायमां लगभग बे हजार प्रलोक जेटली थशे. 13 शक्तिवादटिप्पन संस्कृतमा नव्य न्याय शैलीमा लगभग पांचसो प्रलोक जेटलु. प्राप्तिस्थानश्री यशोविजय जैनग्रंथमाला. हेरीसरोड, भावनगर.. (काठियावाड) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् // नमो नमः श्रीप्रभुधर्मसूरये * धर्मदीपिका। नत्वा वीरं जगद्वन्धं धर्ममूरि गुरुं तथा / सिद्धहेमप्रवेशाय क्रियते धर्मदीपिका // 1 // अहं / 1 / 1 / 1 / 'अहं' इत्येतदक्षरं परमेश्वरस्य परमेष्ठिनो वाचकं शास्त्रस्यादौ प्रणिधेयम् / सिद्धिः स्याद्वादात् / 1 / 1 / 2 / कथंचित् सर्वदर्शनसंमतसद्भतनित्यानित्यादिवस्त्वंशानां मिथः सापेक्षतया वदनं स्याद्वादः / अथवा नित्यानित्याद्यनेकधर्मशबलैकवस्त्वभ्युपगमः स्याद्वादः / तस्मात् प्रकृतानां शब्दानां सिद्धिनिष्पत्तिर्जातव्या / औदन्ताः स्वराः / 1 / 1 / 4 / अकाराद्या औकारान्ता वर्णाः स्वरसंज्ञकाः स्युः / ते च अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ / Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) लूदन्ताः संपानाः / 1 / 1 / 7 / टुकारान्ता वर्णा अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल इत्येते समानसंज्ञकाः स्युः / अनवर्णा नामी / 1 / 1 / 6 / अवर्णरहिताः स्वरा नामिसंज्ञकाः स्युः / इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ।. ए ऐ ओ औ सन्ध्य क्षरम् / 1 / 1 / 8 / ए ऐ ओ औ इत्येते वर्णाः सन्ध्यक्षरसंज्ञकाः स्युः / ___ अं अः अनुस्वारविसगौं। 1 / 1 / 9 / अकारावुच्चारणार्थो / अं इति नासिक्यः, अः इति च कण्ठ्यः तौ क्रमेणानुस्वारविसर्गसंज्ञको स्याताम् / एकद्वित्रिमात्रा इस्वदीर्घप्लुताः।१।१।५।। मात्रा कालविशेषः / एक-द्वि-त्र्युच्चारणमात्रा औदन्ता वर्णाः क्रमेण हूस्वदीर्घप्लुतसंज्ञकाः स्युः / अ इ उ ऋ ल हस्वाः, आई ऊ ऋ लू ए ऐ ओ औ दीर्घाः, आई.ऊ.इत्यादयःप्लुताः। अर्धमात्रिकं च व्यञ्जनम् प्रतिपादितमन्यत्रापि "एकमात्रो भवेद् इस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते। त्रिमावस्तु प्लुतो ज्ञेयो व्यानं चार्धमात्रकम्" // 1 // "चाषस्त्वेकां वदेन्मात्रां द्विमात्रां वायसी वदेत् / त्रिमात्रां तु शिखी ब्रूयाद् नकुलश्चाधमात्रकम्" // 2 // Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) तथा उच्चस्वरेणोपलभ्यमानो वर्ण उदात्तः, नीचैः स्वरेणोपलभ्यमानो वर्णोऽनुदात्तः, समवृत्या चोपत्रभ्यमानो वर्णः स्वरितः / तदुक्तम् - उच्चैरुदात्तः, नीच्चैरनुदात्तः, समाहारः स्वरितः इति / कादियञ्जनम् / 1 / 1 / 10 / कादयो हपर्यन्ता वर्णा व्यञ्जनसंज्ञका भवन्ति / क ख ग घङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, * त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह इति / पञ्चको वर्गः।१।१ / 12 / - कादिवर्णेषु यो यः पञ्चसंख्यापरिमाणः प्रसिद्धः, स वर्गसंज्ञः . स्यात् / क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण त थ द धन, प फ ब भ म / . अपञ्चमान्तस्थो धुद / 1 / 1 / 11 / वर्गपञ्चमान्तस्थावनः कादिवर्णो धुट्संज्ञः स्यात् / क ख ग घ, च छ ज झ, ट ठ ड ढ, त थ द ध, प फ ब भ, श ष स ह / आद्यद्वितीयशषसा अघोषाः / 1 / 1 / 13 / ..... वर्गाणामाद्यद्वितीयवर्णास्तथा शषसाश्चाघोषसंज्ञाः स्युः / क ख . च छ ट ठ. . त थ प फ श ष स / अन्यो घोषवान् / 1 / 1 / 14 / Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अघोषादन्ये वर्णा घोषवत्संज्ञकाः स्युः / ग घ ङ ज झ ञ ड ढ ण द ध न ब भ म य र ल ब ह इति / अं xकरपशषसाः शिद / 1 / 1 / 16 / अकपा उच्चारणार्थाः, अनुस्वारविसर्गौ वज्रगनकुम्भाकृती शषसाश्च वर्णाः शिट्संज्ञकाः स्युः। य-र-ल-वा अन्तस्थाः / 1 / 1 / 15 / / निरनुनासिक-सानुनासिकभेदभिन्ना य-र-ल-वा अन्तस्थासंज्ञकाः स्युः। तुल्यस्थानास्यप्रयत्नः स्वः / 1 / 1 / 17 / / भाषावर्गणापुद्गलस्कन्धस्य यत्र वर्णभावापत्तिस्तत् स्थानम् / आस्ये मुखे प्रयत्न आस्यप्रयत्नः, आन्तरिकव्यापारविशेषः / तुल्यौ वर्णान्तरेण सदृशौ स्थानास्यप्रयत्नौ यस्य स वर्णस्तं प्रति स्वसंज्ञकः स्यात् / तत्र वर्णानां स्थानानि "अष्टौ स्थानानि वर्णानामुरः कण्ठः शिरस्तथा। जिह्वामूलं च दन्ताश्च नासिकौष्ठौ च तालु च"॥१॥ . अवर्ण-कवर्ग-ह-विसर्गाः कण्ठस्थानाः, इवर्ण-चवर्ण-य-शास्तालव्याः , उवर्ण-पवर्गोपध्मानीया ओष्ठस्थानाः, ऋवर्ण-टवर्ग-र-षा मूर्धन्याः, लवर्ण-तवर्ग-ल-सा दन्त्याः , ए ऐ तालव्यौ, ओ औ ओष्ठ्यौ, वकारो दन्त्यौष्ठयः, जिह्लामूलीयो जिह्वयः, नासिक्योऽनुस्वारः, अणनमाः स्वस्वस्थाना नासिकास्थानाश्च / वर्गाणां पञ्चमैर्युक्तोऽन्तस्यैश्च युक्तो हकार उरःस्थानीयः, तदुक्तम् Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "हकारं पञ्चमैयुक्तमन्तस्यैश्च संयुतम् / उर संस्थं विजानीयात् कण्ठ्यमाहुरसंयुतम्" // 1 // अथास्यप्रयत्नः-स्पृष्टकरणं स्पर्शानाम् , ईषत्स्पृष्टकरणमन्तस्थानाम् , ईषद्विवृतकरणमूष्मणाम् , विवृतकरणं स्वराणाम् / तत्र क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ व भ म एते स्पर्शाः / य र ल वा ईषत्स्पृष्टाः / श ष स हा एत उष्माणः / स्वरा विवृताः, तत्राकारस्तावत् त्रिविधः, उदात्तानुदात्तस्वरितभेदात् ; प्रत्येकं सानुनासिकनिरनुनासिकभेदात् षोढा, एते हस्वस्य भेदाः / एवं दीर्घप्लुतयोरपि तथा चाष्टादश भेदा अवर्णस्य ज्ञातव्याः। एवमिवर्णादीनामपि तावन्तो भेदा विज्ञेयाः / सन्ध्यक्षराणां हस्वा न सन्तीति तेषांद्वादश भेदाः सन्ति / वाः पञ्च पञ्च परस्परं स्वसंज्ञकाः / यवलानां सानुनासिक-निरनुनासिकभेदौ मिथः स्वौ / ___अप्रयोगीत् / 1 / 1 / 37 / __इह शास्त्रे उपदिश्यमानो वर्णस्तत्समुदायो वा कार्यार्थ गृहीतः सन्लौकिकप्रयोगे न दृश्यते स एति-अपगच्छतीति इत्संज्ञक: स्यात् / गुणोऽरेदोत् / 3 / 3 / 2 / . अर् एत् ओत् इत्येते प्रत्येकं गुणसंज्ञकाः स्युः / / - वृद्धिरादौत् / 3 / 3 / 1 / - आ आर ऐ औ इत्येते प्रत्येकं वृद्धिसंज्ञकाः स्युः / एवं स्यादयस्त्यादयश्च विभक्तिसंज्ञकाः, विभक्त्यन्ताः पदसंज्ञकाः, Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरो वर्णानुच्चारणमवसानं विरामः / स्यमौजसः पुंस्त्रियोः, नपुंसके जस्शसादेशः.शिश्च घुटसंज्ञकाः, संबोधनार्थ सिं विना घुटः शेषघुटसंज्ञकाः। अन्त्या वर्णात् पूर्वो वर्ण उपधा। अननुस्वारादिपरो हस्वो लघुसंज्ञकः। दी| गुरुसंज्ञकः, अनुस्वार-विसर्ग-संयोगपरो ह्रस्वोऽपि गुरुः / स्वरानन्तरितव्यञ्जनसमुदायः संयोगः / शत्रुवद् आदेशः / मित्रवद् आगमः / लुक् लुप् लोपश्च अदर्शनम् / अन्त्यस्वरात् परस्य अन्त्यस्वरस्य च टिसंज्ञा, इत्यादयोऽनुक्ता उक्ताश्च. संज्ञा वेदितव्याः / इति संज्ञाप्रकरणम् / अथ स्वरसन्धिः / दधि+अत्र इति स्थिते इवर्णादेरस्वे स्वरे यवरलम् / 1 / 2 / 21 / . इवर्गोवर्णऋवर्णलवर्णानामस्वे स्वरे यथासंख्यं यवरला इत्येते आदेशाः स्युः, संहिताया विषये / यदुक्तम् "संहितैकपदे नित्या नित्या धातूपसर्गयोः / नित्या समासे वाक्ये तु सा विवक्षामपेक्षते // 1 // " ध्य+अत्र इति जाते Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (7) अदीर्घाद् विरामैकव्याने / 1 / 3 / 32 / दीघवर्जितात् स्वरात् परस्य रकार-हकार- स्वरवनितस्य वणस्य द्वे रूपे वा स्यातां विरामे असंयुक्तव्यञ्जने च परे / इति धकारस्य वा द्वित्वे दध्ध्य+अत्र इति नाते तृतीयस्तृतीयचतुर्थे / 1 / 3 / 49 / धुटः स्थाने तृतीये चतुर्थे च परे तृतीयः स्यात्। इति प्रथमधकारस्य दत्वे दद्ध्य्+अत्र इति जाते स्वरहीनं परेण संयोज्यं दद्ध्यत्र इति सिद्धम् / नहि+अत्र इति स्थिते ‘इवर्णादीनामस्वे स्वरे' इत्यादिना यत्वे नय्+अत्र इति जाते -- अदीर्घाद् ' इत्यादौ रकार-हकार-स्वरवर्जनाद् नह इत्यस्य न द्वित्वं किन्तु तत्र हदिईस्वरस्यानु नवा / 1 / 3 / 31 / स्वरात् पराभ्यां रेफ हकाराभ्यां परस्य रेफ-हकार-स्वरवर्जितस्य वर्णस्य द्वे रूपे वा स्याताम् / इति यकारस्य द्वित्वे नय्यत्र इति सिद्धम् / एवं गौरी+अत्र-गौर्यत्र जलालाबुन्यायेन रेफस्योर्ध्वगमनम् , उक्तं च शास्त्रान्तरेऽपि "तुम्बिका-तण-काष्ठं च तैलं जलसमागमे / ऊर्ध्वस्थान समायान्ति रेफाणामीदृशी गतिः" // 1 // पक्षे दध्यत्र नह्यत्र गौर्यत्र / एवं मधु+अत्र- मद्ध्वत्र, मध्वत्र / पितृ+अर्थ:-पित्रयः। ल+अनुबन्धः-लनुबन्धः / लु+आकृतिःलाकृतिः इत्यादीनामपि यथासूत्रप्राप्ति सिद्धिर्ज्ञातव्या। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥रा, ल्यूात. काशद्वयम् / (8) एदेतोऽयाय / 1 / 2 / 23 / / एकारैकारयोः स्याने स्वरे परे यथासंख्यमयाय् इत्येतौ स्याताम्। ने+अनम्-नयनम् , ए+अनम्-अयनम् , नै+अकः-नायकः, रै+अकः-रायकः / ओदौतोऽवाव / 1 / 2 / 24 / . ओकारौकारयोः स्थाने यथासंख्यमवावौ स्यातां स्वरे परे / लो+अनम्-लवनम् , पो+अनम्-पवनम् , लो+अकः-लावकः, पौ+अकः-पावकः / गोशब्दस्य यूतिशब्दे परेऽध्वपरिमाणे चौकारस्यावादेशः, गव्यूतिः क्रोशद्वयम् / स्वरे वा / 1 / 3 / 24 / अवर्णात् परयोः पदान्तस्थयोर्यकारवकारयोः स्वरे परे वा लुक् स्याद् न च सन्धिः / ते आगताः इति स्थिते एदैतोऽयाय / इति अयादेशे तय् आगताः, अनेन वा लुकि त आगताः, तयागताः / पटो इह इति स्थिते / ओदौतो' इत्यादिना अवादेशे पटव्+इह इति जाते वा लुकि पट इह पटविह / एवं तस्मै / इदम्-तस्मा - इदं तस्मायिदम् , तौ इह-ता इह-ताविह / गोर्नाम्न्यवोऽक्षे / 1 / 2 / 28 / पदान्तस्थस्य गोरोकारस्याक्षशब्दे परे संज्ञायामव इत्यकारान्त आदेशः स्यात् / गो+अक्षः अनेनावादेशे कृते 'समानानाम् ' इत्यादिना दीर्धे कृते गवाक्षः वातायनः / / Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9) स्वरे वाऽनक्षे / 1 / 2 / 29 / __. अक्षशब्दवर्जिते स्वरे परे गोरोकारस्यावादेशो वा स्यात् / गो+अजिनम्-गवाजिनम् , गो+अग्रम्-गवाग्रम , 'वाऽत्यसन्धिः ' इत्यनेन वा प्रकृतिभावे च गोअग्रम् , पक्षे 'एदोतः पदान्तेऽस्य लुक' इति लुकि गोऽयम् / गो+इंगितम्-गवेङ्गितम् / - इन्द्रे च / 1 / 2 / 30 / इन्द्रशब्दे परे पदान्तस्थस्य गोरोकारस्य नित्यमवादेशः * स्यात् / गवेन्द्रः / अवर्णस्येवर्णादिनैदोदरल् / 1 / 2 / 6 / ___. अवर्णस्य इवर्ण-उवर्ण-ऋवर्ण-लवर्णैः सह यथासंख्यमेद् ओत् अर् अल् इत्येते आदेशाः स्युः / तव+इदम्-तवेदम् , मम +उदकम्-ममोदकम् ,गङ्गा+उदयः-गंगोदयः,तव+ऋद्धिः-तवर्द्धिः, मम+ऋद्धिः-ममर्द्धिः, तव लकारः-तवल्कारः, मम+लकारःममल्कारः / समानानां तेन दीर्घः / 1 / 2 / 1 / समानानां तेन परेण समानेन सह दीघः स्यात् / दण्ड+ अग्रम्-दण्डाग्रम् , दधि+इदम-दधीदम् , मधु+उदकम्-मधूकम् , पितृ ऋकारः-पितृकारः / ऐदौतौ सन्ध्यक्षरैः / 1 / 2 / 12 / Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) अवर्णस्य एकारकाराभ्यां तथौकारौकाराभ्यां सह यथासंख्यं ऐ औ इत्येतौ स्याताम् / तव+एषा-तवैषा, तव+ऐश्वर्यम्-तवैश्वर्यम् , तव+ओदनः-तबौदनः, रमा+ओदन:-रमौदन , तव+औन्नत्यम्तवौन्नत्यम् , खट्वा+औन्नत्यम्-खट्वौन्नत्यम् / स्वरैस्वैर्यक्षौहिण्याम् / 1 / 2 / 15 / स्वैर स्वैरिन् अक्षौहिणी इत्येतेषु अवर्णस्य परेण स्वरेण सह ऐ औ इत्येतौ स्याताम् / स्व+ईरः-स्वैरः, स्व+ईरिणी-स्वैरिणी अक्ष+उहिणी-अक्षौहिणी सेना। , एदोतः पदान्तेऽस्य लुक् / 1 / 2 / 27 / पदान्ते स्थिताभ्यामेकारौकाराभ्यां परस्याकारस्य लुक्स्यात् / ते अत्र-तेऽत्र, पटो+अत्र-पटोऽत्र। 'शकन्ध्वादिषु टेर्लोपो वाच्यः' शक+अन्धुः शकन्धुः, कर्क+अन्धुः-कर्कन्धुः, कुल+अटा-कुलटा, हल ईषा- हलीषा, मनस्+ईषा-मनीषा, सीमन्+अन्तः-सीमन्तः, आकृतिगणोऽयमिति एतादृशाः प्रयोगा अन्येऽपि मार्तण्ड इत्या. दयः शकन्ध्वादिगणे ज्ञातव्याः / ओमाङि / 1 / 2 / 18 / अवर्णस्य लोपः स्यादोमि आङादेशे च परे / अद्य+ओम्अद्योम् , आ+उढा-ओढा-अद्योढा / ऋत्यारुपसर्गस्य / 1 / 2 / 9 / / Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (11) ऋकारादौ धातौ परे ऋता सहोपसर्गस्थस्यावर्णस्यार् स्यात्। प्र+ऋच्छति-प्रार्च्छति, उप+ऋच्छति-उपार्च्छति / नामावयवे ऋकारादौ धातौ परे वाऽऽर ज्ञेयः / प्र+ऋषभीयति-प्रार्षभीयति, प्रर्षभीयति / ऋते तृतीयासमासे / 1 / 2 / / / अवर्णस्य ऋते परे तृतीयासमासे ऋकारेण सहार स्यात् / शीतेन+ऋतः-शीतार्तः / तृतीयासमासे इति किम् ? परमश्चासौ ऋतश्च परमर्तः / लतः रल ऋलभ्यां वा / 1 / 2 / 3 / लतः ऋलभ्यां सह यथासंख्यं रल इत्येतावादेशौ वा स्याताम् / ल+ऋकारः-रकारः, ल+लकारः-लकारः / ऋतो वा तौ च / 1 / 2 / 4 / ऋतः ऋलभ्यां सह यथासंख्यं रल इत्येतौ विलक्षणावादेशौ वा स्याताम् / पितृ ऋषभः-पित्रषभः। होतृ+लकारः-होत्लुकारः। तौ च ऋतः ऋलभ्यां सह ऋकारलकारावपि होतृ ऋकारःहोतृकारः, होतृ+लकारः-होत्लकारः, पक्षे पूर्ववत् पितृऋषभ इत्यादयः / ऋस्तयोः / 1 / 2 / 5 / / तयोः लकारऋकारयोः ऋकार-लकाराभ्यां सह ऋ इति दीर्घादेशः स्यात् / ल+ऋषभः-ऋषभः।होतृ लकार:-होतृकारः। ऋकारे लकारे च परे समानस्य ह्रस्वोऽपि वा भवति / Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) वौष्ठौत्वोः समासे / 1 / 2 / 17 / . ओष्ठौत्वोः परयोः समासेऽवर्णस्य लुग् वा स्यात् / बिम्ब ओष्ठः-बिम्बोष्ठः, पक्षे बिम्बौष्ठः / स्थूल+ओतुः-स्थूलोतुः, पक्षे स्थूलौतुः। इति सन्धिप्रकरणम् / अथ प्रकृतिभावः। mataxOC अदोमुमी। 1 / 2 / 35 / / अदसशब्दसम्बन्धिनौ मुमी इत्येतावन्धी स्यातां स्वरे परे / अमुमुईचा, अमी अश्वाः। अदस इति किम् ? अमी+अत्र-अम्यत्र, अत्र अमिशब्दो रोगिप्रतिपादकः / ईदेद्विवचनम् / 1 / 2 / 34 / ईत् उत् एत् इत्येवमन्तं द्विवचनान्तं स्वरे परेऽसन्धि स्थात् / मुनी अत्र, भानू एतौ, पचेते इमौ / मणी वेत्यादौ तु इवार्थकस्य वस्य प्रयोगः, न इवशब्दस्य / - चादिः स्वरोऽनाङ् / 1 / 2 / 36 / .. आडवर्जश्चादिरव्ययः स्वरः सरे परेऽसन्धिः स्यात् / अ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (13) अपेहि, इ इन्द्रं पश्य, उ उत्तिष्ठ, आ एवं किल मन्यसे, आ एवं नु-तत् / अनाङिति किम् ? आ ईषद् उष्णम्-ओष्णम् , आ आगच्छ-आगच्छ, आ उदकान्ताद्-ओदकान्तात् / ईषदथे क्रियायोगे मर्यादायामभिविधौ आ इत्यव्ययं डित् कथ्यते, अन्यत्र तु अङित् बोध्यम् / . ओदन्तः / 1.2 / 37 / / ओकारान्तश्चादिः स्वरे परेऽपन्धिः स्यात् / अहो अत्र, उताहो अत्र। ___प्लुतोऽनितौ / 1 / 2 / 32 / यत्र स्वाभाविकोचारणापेक्षयाऽधिकोच्चारणं तद् दूरं आमन्त्रणमभिमुखीकरणम् दूरादामन्त्रणार्थे वर्तमानस्य वाक्यस्य हेः प्लुतसंज्ञा ज्ञेया / इतिवर्ने स्वरे परे प्लुतोऽसन्धिः स्यात् / मो देवदत्त 3 एहि, देवदत्त 3 अत्र न्वसि / अनिताविति किम् / सुश्लोक 3 इति-सुश्लोकेति / / इति प्रकृतिभावः समाप्तः / Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (14) अथ व्यञ्जनसन्धिः। धुटस्तृतीयः / 2 / 1 / 76 / पदान्ते वर्तमानस्य धुटः स्थाने तृतीयः स्यात् / वाक+ईशः वामीशः, षट्+अत्र-षडत्र / ... तृतीयस्य पञ्चमे / 1 / 3 / 1 / पदान्ते वर्तमानस्य तृतीयस्य स्थाने पञ्चमे परे आसन्नो वाऽनुनासिक: स्यात् / षड् मम षण्मम / प्रत्यये पञ्चमे नित्यं षण्णाम् , वाङमयम् / - प्रथमादधुटि शश्छः / 1 / 3 / 4 / पदान्ते वर्तमानात प्रथमात् परस्य शकारस्याधुटि परे छो वा स्यात / वाक्+शूरः-वाक्छरः, तत+श्लोकेन-तच्छ्लोकेन / ततो हश्चतुर्थः / 1 / 3 / 3 / पदान्ते वर्तमानात् तृतीयात् परस्य हकारस्य स्थाने पूर्ववर्णसवग--- श्वतुर्थो वा स्यात् / वाग्धीनः, वाग्हीनः / तद् हितं, तदधितम् / तवर्गस्य श्चवर्गष्टवर्गाभ्यां योगे चटवौँ / 1 / 3 / 60 / ___ तवर्गस्य स्थाने शकारेण चवर्गेण च योगे चवर्गः स्यात्, तथा षकारेण टवर्गेण च योगे टवर्गः स्यात / तत्+शेते-तच्छेते, भवान्+शेते-भवाशेते, तत्+चित्रम्-तच्चित्रम् , पेष्+ता-पेष्टा, तत+टीकते-तट्टीकते। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 15) सस्य शषो। 1 / 3 / 61 / सकारस्य स्थाने शकारेण चवर्गेण च योगे शकारः स्यात् / तथा षकारेण टवर्गेण च योगे शकारः स्यात् / कस्+शेते-कश्शेते, कस्+चरति-कश्चरति, सर्पिष्+सु-सर्पिष्षु, कस्+टीकते-कष्टीकते। न शात् / 1 / 3 / 62 / शकारात् परम्य तवर्गस्य चवर्गो न स्यात् / प्रश्नः, अनानि, विश्नः / षि तवर्गस्य / 1 / 3 / 64 / पदान्ते वर्तमानस्य तवर्गस्य स्थाने टवर्गो न स्यात् षकारे / परे / भवान् षष्ठः / लि लौ।१।३ / 65 / . पदान्ते वर्तमानस्य तवर्गस्य स्थाने आसन्नो लकारः स्यात् / तद लुनाति- तल्लुनाति, भवान्+लिखति-भवाल्लिखति / पदान्तादृवर्गादनामनगरीनवतेः / 1 / 3 / 63 / .. __ पदान्ते वर्तमानात् टवर्गात् परस्य नाम्नगरीनवतिवर्जितस्य तवर्गस्य सकारस्य च स्थाने टवर्ग-षकारौ न स्यालाम् / षडनयनम् , षट् सन्ति / पदान्तादिति किम् ? ईट्टे। अनामनगरीनवतेरिति किम् ? षण्णाम् , षण्णगरी, षण्णवतिः / न शि ञ्च / 1 / 2 / 19 / Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (16) पदान्ते वतमानस्य नकारस्य शकारे परे ञ्च् इत्यादेशो वा स्यात् / भवान्+शूरः-भवाञ्चशूरः इति जाते -- प्रथमादधुटि' इत्यादिना छत्वे भवाञ्च्छरः इति सिद्धम् / ड्नः सः त्सोऽश्च / 1 / 3 / 18 / पदान्ते वतमानाद् डकाराद् नकाराच्च परस्य सकारस्य स्थाने त्स इत्यादेशः स्यात् / श्चावयवश्चत् सकारो न स्यात् / षड्+सीदन्तिषडत्सीदन्ति, भवान्+साधुः-भवान्त्साधुः / अश्चेति किम् ? षट् श्वोतन्ति / नोऽप्रशानोऽनुस्वारानुनामिको च पूर्वस्याधुटपरे / 1 / 3 / 8 / पदान्तस्थस्य प्रशान्वर्जशब्दसम्बन्धिनो नस्य चटतेषु सद्वितीयेषु अधुट्परेषु शपसा यथासंख्यं स्युः, अनुस्वारानुनासिकौ च पूर्वस्य / भवान्+चारु:-भवांश्चारुः, भवाश्चारुः / भवान् छेकः-. भवांश्छेकः, भवाश्छेकः। भवान्+टक:-भवाष्टकः,भवाष्टकः। भवान्+ ठकारः-भवांष्ठकारः, भवाँष्ठकारः / भवान्+तनु:-भवांस्तनुः, भवाँस्तनुः / भवान्+थुडति-भवांस्थुडति, भवाँस्थुडति / प्रशान्वर्जनं किम् / प्रशान्+चरः-प्रशाञ्चरः / अधुडिति किम् ? भवान त्सरुकः। पुमोऽशिव्यघोषेऽख्यागि रः / 1 / 3 / 9 / Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुंशब्दस्य संयोगलुक्यनुकरणं पुम् इति / पुमो मस्य अधुट् परो यस्मात् तादृशो यः शिख़्याग्वनितोऽघोषः तस्मिन् परे रादेशः स्याद / पूर्वस्य चानुम्वारानुनासिको क्रमेण / पुंसः / 2 / 3 / 3. . पुंसो रकारस्य कखे पफे च परे स् स्याद् / पुम्+कोकिल:पुंम्कोलिल: पुस्कोकिलः / - नृनः पेषु वा / 1 / 3 / 10 / __नृनो नकारस्य पे परे रकारः स्याद् / पूर्वस्य चानुस्वारानुनासिको क्रमेण / नृन्+पाहि-नूं)(पाहि नँपाहि नुं पाहि नः पाहि मृत्पाहि / .. इस्वाद् गणनो द्वे / 1 / 3 / 27 / इस्वात् परेषां पदान्ते वर्तमानानां गणनां स्वरे परे द्वे रूपे स्याताम् / क्रु+आस्ते-क्रुङङास्ते, सुगण+इह-सुगण्णिह, पचन्+आस्ते-पचन्नास्ते। .. .. स्वरेभ्यः / 1 / 3 / 25 / स्वरात् परस्य पदान्तेऽपदान्ते च वर्तमानस्य छकारस्य वे सपे स्याताम् / तव+छत्रम्-तवछत्रमिति जाते। अघोघे प्रथमोऽशिटः / 1 / 3 / 50 / Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अघोषे परे शिड्वर्जस्य धुटः प्रथमः स्याद् / अनेन प्रथमछकारस्य चत्वे कृते तवच्छत्रमिति सिद्धम् , एवं इच्छति गच्छती स्यादयो ज्ञेयाः। . अनाङ्माको दीर्घाद् वा च्छः। 1 / 3 / 28 / आङ्माङ्वर्जदीर्घात् परस्य छकारस्य द्वे रूपे वा स्याताम् / कन्या छत्रम्-कन्याच्छत्रम्, पक्षे एवम् / अनाङमाडिति किम् / आच्छाया, माच्छिदत् इत्यादौ नित्यमेव / तौ मुमो व्याने स्त्रौ / 1 / 3 / 14 / मोर्मु इत्यागमस्य मकारस्य पदान्तस्थस्य च मकारस्य व्यब्जने परे परव्यञ्जनस्यैव स्वसंज्ञावनुस्वारानुनासिकौ क्रमेण स्याताम् / चंक्रम्यते, चक्रम्यते; त्वंकरोषि, त्वङ् करोषि, स्वं पचसि, त्वम्पचसि; संयन्ता, सय्यन्ता; संवत्सरः, सव्वत्सरः; त्वं लासि, त्वल्लाँसि / म्नां धुवर्गेऽन्त्योऽपदान्ते / 1 / 3 / 39 / अपदान्ते वर्तमानानां मकारनकाराणां धुसंज्ञके वर्गे परे तस्यैव स्वोऽन्त्यः स्याद् / गम्+ता-गन्ता; शन्+किता-शंकिता। शिड्हेऽनुस्वारः। 1 / 3 / 4 / अपदान्तस्थानां मकारनकाराणां शिटि हे च परेऽनुस्वारः स्याद् कम्+स:-कंसः; यशान्+सि-यशांसि / Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ मनयवलपरे हे / 1 / 3 / 15 / मनयवलपरे हकारे पदान्तस्थस्य मकारस्यानुस्वारानुनासिको स्वौ क्रमेण स्याताम् / किंमलयति, किम्मलयति; किंनुते, किन्नुते; किंवलयति, किव्हॅवलयति; किंहादयति, किहला-- दयति / स्सटि समः / 1 / 3 / 12 / समित्येतस्य सिटि परे सकारोऽन्तादेशः स्याद्, अनुस्वारानुनासिकौ च पूर्वस्य / सम्+स्कर्ता-संस्स्कर्ता, सँस्स्कर्ता / , लुक् / 1 / 3 / 13 / समित्येतस्य मकारस्य लुक् स्याद् , पृथग्योगाद् नानुस्वानुनासिकौ स्तः / सस्कर्ता / णोः कटावन्तौ शिटि नवा / 1 / 3 / 17 / .. कारणकारयोः शिटि परे कटावन्तौ वा स्याताम् / प्राङ्शेते-प्राङ्कशेते, प्राक्छेते; सुगण षष्ठः, सुगण्टषष्ठः / इति व्यञ्जनसन्धिः Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) अथ विसर्गसन्धिः चटते सद्वितीये / 1 / 3 / 7 / . पदान्ते वर्तमानस्य रकारस्य सद्वितीयेषु चटतेषु परेषु यथासंख्यं शषसा इत्येते. आदेशाः स्युः / कर+चरति-कश्चरति, कर+टीकते-कष्टीकते, कर् तरति-कस्तरति / . शिव्यघोषात् / 1 / 3 / 55 / अघोषात् परे शिटि परे पदान्ने वर्तमानस्य रेफस्य विसर्ग एव भवति / कर+त्सरुक:-कत्सरुकः, वास+सौमम्-वासः सौमम् , सपिर+प्साति-मर्पिःप्साति। व्यत्यये लुग् वा / 1 / 3 / 56 / शिटः परोऽघोष इति व्यत्ययस्तस्मिन् परे पदान्ते वर्तमानस्य रेफस्य लुग् वा स्यात् / क+ष्ठीवति-कष्ठीवति, पक्षे कण्ठठीवति, कः ष्ठीवति / शषसे शपसं वा।१।३।६। पदान्ते वर्तमानस्य रेफस्य शषसेषु परेषु यथासंख्यं शषसा वा स्युः / कर+शेते-कश्शेते, कःशेते; कर+वण्ड:-कृष्षण्डः, क: पण्डः; कर+साधु:-कस्साधुः, कः साधुः पक्षे 'र: पदान्ते विसर्गस्तयोः / इत्यनेन विसर्गः / Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (21) रः कंखपफयोः(क-पौ। 1 / 3 / 5 / “पदान्ते रेफस्यरक पौ यथासंख्यं वा स्यातां कल-पफयोः परयोः / कर+करोति-क)(करोति, पक्षे विसर्गः कः करोति; एवं कर+खनति-क(खनति, कः खनति; कर+पचति-कपचति, कः पचति; कर+फलति-क-फलति, कः फलति / कस्+साधुः अत्र 'सोरुः' इत्यनेन रुत्वे क+साधुरिति जाते रः पदान्ते विसर्गस्तयोः / 1 / 3 / 53 / पदान्ते वर्तमानस्य रेफस्य विसर्गः स्याद्, विरामेऽवोषे च परे / कः साधुः / वाचस्पत्यादयः संज्ञाशब्दाः निपातनात् सिद्धा भवन्ति वाचस्पतिः, बृहस्पतिः दिवस्करः, तत् शब्दस्य करे परे चौरार्थे वाच्ये तस्करः इत्यादयः। अह्नः / 2 / 1 / 74 / अहन्शब्दस्य पदान्ते रुरित्ययमादेशः स्याद् / स च परे सर्वत्रासन्-पूर्वत्र च स्यादिविधौ। दीर्धाणि अहानि यस्मिन् म दीर्घाहो निदावः / . रो लुप्यरि।२।१। 75 / अहन् शब्दस्य लुपि सत्यामरेफे परे पदान्ते र् इत्यन्तादेशः स्याद् / अहर्गणः, अहरधीते / अरीति किम् / अहोरूपम, अहोरांत्रम्, अहोरथन्तरमित्यादौ रेफादेशाभावाद् रूले उत्वे च कृते 'अ ' इत्यादिनौत्वे कृते रूपाणि सिध्यन्ति / Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (22) अतोऽति रो रुः / 1 / 3 / 20 / पदान्ते वर्तमानादकारात् परस्य रोरकारे परे उ इत्ययमादेशः स्थाद् / कर+अर्थः इति स्थिते कउ अर्थ इति जाते ' अवर्णस्येत्यादिनौत्वे कृते को अर्थ. इति जाते ' एदोतः पदान्तेऽस्य लुक् / इत्यनेनाकारस्य लुकि कोऽर्थः इति सिद्धमेवं देवोऽर्थ्यः इत्यादयः। . रो रे लुक् दीर्घश्वादिदुतः / 1 / 3 / 41 / / रेफस्य रेफे परेऽनु लुफ् स्याद् / पूर्वस्य चाकारस्येकारस्योकारस्य च दीर्घः स्याद् / पुन+रमते-गुना रमते; अग्नि+मथेनअग्नीरथेन; पटु+राजा पटूराना। ढस्तड्ढे / 1 / 3 / 24 / ढकारस्य तन्निमित्ते ढकारे परेऽनु लुक् स्याद्, पूर्वस्य च दीर्घः। लिद ढम्-लीढम्।. घोषवति / 1 / 3 / 21 / - पदान्ते वर्तमानस्याकारात् परस्य रो घोषवति परे उ इत्यादेशः स्याद् / कर-गतः-को गतः, देवर+याति-देवो याति / अवर्णभोभगोऽयो लुगसन्धिः / 1 / 3 / 22 / अवर्णाद् भो भगोऽघोभ्यश्च परस्य रोलुक् स्याद् घोषवति परे। देवार+यान्ति-देवा यान्ति, भोर्याहि-भोया हि, भगोर याहिभगोयाहि / अघोर+हमसि-अघोहससि / Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (23) रोर्यः / 1 / 3 / 26 / अवर्णाद् भोभगोऽघोभ्यश्च परस्य पदान्ते वर्तमानस्य रोः स्वरे परे य इत्यादेशः स्याद् / तस्य च ' स्वरे वा ' इत्यनेन वा लुक् / देवार+अत्र-देवायत्र, देवा अत्र / कर+इह-कयिह, क इह / भोर् +अत्र-भोयत्र, भो अत्र / ओघोर् +अत्र-अघोयत्र, अघोअत्र। भगोर् +अत्र-भगोयत्र, भगोअत्र. / अत्र लुकि सत्यां सन्धिर्न भवतीति / वाहर्पत्यादयः / 1 / 3 / 58 / अहर्पत्यादयः शब्दा निपातनात् साधवो भवन्ति वा / अहपतिः, अहः पतिः, अह पतिः; गीपतिः, गीः पतिः, गी पतिः; धूपतिः, धूः पतिः, धूपतिः इत्यादयः / एतदश्च व्यञ्जनेऽनग्नसमासे / 1 / 3 / 46 / एतदस्तदश्च परस्य सेटुक् स्याद व्यञ्जने परे। अकि प्रत्यये नन्समासे च न स्याद् / सः+चरति-स चरति, एष:+गच्छति-एष गच्छति / अनगिति किम् / एषको याति / अनसमासे किम् / अनेषो याति / तदः सेः स्वरे पादार्था / 1 / 3 / 45 / तदः परस्य सेक् स्यात् स्वरे परे। सा चेत् पादार्थापादपूरणी स्यादः / सैष दाशरथी रामः सैष राजा युधिष्ठिरः / Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (24) सैष कर्णो महात्यागी सैष भीमो महाबलः / 1 / बाहुलकादपि किञ्चिज्ञातव्यम् , तदुक्तम्- . कचित् प्रवृत्तिः कचिदप्रवृत्तिः कचिद् विभाषा कचिदन्यदेव विधेविधानं बहुधा समीक्ष्य चतुर्विधं बाहुलकं वदन्ति // 1 // अनुक्तं सिद्धहेमव्याकरणादवसंयम् / इति विसर्गसन्धिः अथ विभक्तिनिगद्यते स्त्यादिविभक्तिः / 1 / 1 / 19 / अत्र स् इति त्यक्तानुबन्धस्य सेर्गहणम् , तीति त्यक्तानुबन्धस्य तिव् इत्यस्य ग्रहणम् , स्यादयः सुपर्यन्तास्तिवादयः स्यामहिपर्यन्ताश्च विभक्तिसंज्ञाः स्युः। तदन्तं पदम् / 1 / 1 / 20 / स्याद्यन्तं त्याद्यन्तं च नाम पदसंज्ञं स्याद् / अधातुविभक्तिवाक्यमर्थवन्नाम | नाम्नोऽर्थो द्विविधः-वाच्यो द्योत्यश्च / तत्र वाच्योऽर्थः स्वार्थद्रव्यलिङ्गसंख्याशक्तिभेदात् पञ्चप्रकारः यमाश्रित्य शब्दोऽर्थ. Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सि शस् भिस (16) कयने प्रवर्तते स स्वार्थस्त्वतलायमिन्यङ्ग्यः जात्यादिरूपः / द्रव्य तदाश्रयीभूतं घटादिरूपम् / लिङ्गं पुंस्त्वादि / संख्या एक त्वादिका / शक्तिः कर्तृत्वादिरूपा / द्योत्योऽर्थः समुच्चयादिरूपः / तद्वच्छब्दरूपं धातुविभक्तिवाक्यवर्जितं नामसंज्ञं स्याद् / नाम्नः पराः स्यादयः सप्त विभक्तयो भवन्तिएकवचनम्, द्विवचनम्, बहुवचनम् , जसू प्रथमा अम् औ द्वितीया . भ्याम् तृतीया भ्याम . भ्यस् पञ्चमी - ओस . आम् षष्ठी ... -- ओस् .. सुप् सप्तमी औ / जस् संबोधनम् तत्राकारान्तपुंलिङ्गो जिनशब्दः / जिन सि / इति स्थिते इ इत्यस्य इत्संज्ञायां सत्याम् / सो रुः।२।१।७२ / पदान्ते वर्तमानस्य सकारस्य रुरित्यादेशः स्याद् / उकारः शेयः / इत्यत्र विशेषणार्थः / ततः 'रः पदान्ते विसर्गस्तयोः / चतुर्थी Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (26) इत्यनेन विसर्गे सति जिनः इति सिद्धम् / द्वित्वविवक्षायां जिन औ -जिनौ / बहुत्वविवक्षायां जिन जस् इति स्थिते, जकारो जसीति विशेषणार्थः / जिन अस् लुगस्यादेत्यपदे / 2 / 1 / 113 / ____ अपदादावकारे एकारे च परेऽकारस्य लुक् स्याद् / इति अकारस्य लुचः प्राप्तौ। . ___ अत आः स्यादौ जस्भ्याम्ये / 1 / 4 / 1 / स्यादौ जसि भ्यामि यकारे च परेऽकारस्याकारः स्यात् / इत्यनेन बाधनादकारस्य आकारे कृते दीघविसौं जिनाः / द्वितीयैकवचने जिन अम् इति स्थिते समानादमोऽतः / 1 / 4 / 46 / समानात् परस्यामोऽकारस्य लुक् स्याद् / जितम् , जिनौ / बहुत्वविवक्षायां जिन शस् इति स्थिते शसोऽता सश्च नः पुंसि / 1 / 4 / 49 / / शस्बन्धिनोऽकारेण सह पूर्वसमानस्यासन्नो दीर्वादेशः स्याद्, तत्संनियोगे च पुंलिङ्गविषये शसः सकारस्य नकारादेशः स्याद् / जिनान् / तृतीयैकवचने जिन टा इति स्थिते ___टाङसोरिनस्यौ।।४ / 5 / अकारात् परयोः स्याद्योः टाङसोर्यथासंख्यमिनस्यौ स्याताम् / Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (.27) ' अवर्णस्येवर्णादिनेतिसूत्रेण एत्वे कृते जिनेन / जिन भ्याम् इति स्थिते / अत आः स्यादौ / इत्यादिना दीकृते जिनाम्याम् / बहुत्वविवक्षायां जिन भिस् इति स्थिते / __ भिस ऐस् / 1 / 4 / 2 / अकारात् परस्य भिस ऐसादेशः स्याद् / ' ऐदौत् सन्ध्यक्षरैः / इति निनैः / चतुर्येकवचने जिन डे इति स्थिते उङस्योर्यातौ / 1 / 4 / 6 / अकारात् परयोः स्यादिसंबन्धिनोर्डेडस्योः स्थाने यथासंख्य य आत् इत्यादेशौ स्तः / ' अत आ' इत्यादिसुत्रेण दीधैं जिनाय / जिनाभ्याम् / बहुत्वविवक्षायां जिन भ्यस् इति स्थिते __एद् बहुस्भोसि / 1 / 4 / 4 / बह्वर्थविषये सकारादौ भकारादौ ओसि च परेऽकारस्यैकारः स्याद् / जिनेभ्यः / पञ्चम्येकवचने जिन डसि इति स्थिते 'डेङस्योर्यातौ' इत्यनेन आति कृते दीर्वे च जिनात् / जिनाभ्याम् / जिनेभ्यः / षष्ठये कवचने जिन डस् इति स्थिते 'टाङस्योरिनस्यौ! इत्यनेन स्यादेशे जिनस्य / जिन ओस् इति स्थिते 'एबहुस्भोसि' इत्यनेन एकारे ' एदैतोऽयाय ' इत्ययादेशे जिनयोः / षष्ठीबहुवचने जिन आम् इति स्थिते / हस्वापश्च / 1 / 4 / 32 // Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (28) ह्रस्वान्तादावन्तात् स्त्रीदन्ताच्च परस्यामः स्थाने नामादेशः स्याद् / जिन नाम् इति जाते दी| नाम्यतिसृचतसृपः / 1 / 4 / 47 / .. ___ तिसृचतसृषकारान्तरेफान्तवर्जितस्य शब्दसंबन्धिनः समानस्य दीर्घादेशः स्याद् नामि परे / जिनानाम् / सप्तम्येकवचने जिन ङि इति स्थिते ' अवर्णस्येवर्णादिनेति / सूत्रेण एत्वे जिने / जिनयोः / बहुत्वविवक्षायां जिन सु इति स्थित एटु बहुस्भोसि' इत्यनेनैत्वे कृते / नाम्यन्तस्थाकवर्गात् पदान्तः कृतस्य सः शिड्नान्तरेऽपि / 2 / 3 / 15 / नाम्यन्तादन्तस्थात् कवर्गाच्च परस्य पदमध्ये स्थितस्य विहितस्य कृतसंबन्धिनो वा संकारस्य षकारादेशः स्याद्, शिटा नकारेण च व्यवधानेऽपि / जिनेषु / संबोधनविवक्षायामेकवचने जिन सि इति स्थिते / अदेतः स्यमोलक / 1 / 4 / 44 / आमंत्रणार्थे वर्तमानादकारान्तादेकारान्ताच परयोः स्यमोः लुक् स्याद् / हे निन / हे जिनौ / हे जिनाः / एवम् अजित संभवादीनामपि रूपाणि वेदितव्यानि / अकारान्तसादीना तु विशेषः-पर्वः / सवौं / सर्व जस् इति स्थिते Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) जस इ / 1 / 4 / 9 / - सर्वादेरकारान्तसंबन्धिनो जस इः स्याद् / 'प्रत्ययस्य' इति सर्वादेशे सर्वे / सर्व सौं सर्वान् / सर्व टा इति स्थिते टाप्रत्ययस्येनादेशे कृते अवर्णस्येत्यादिना एत्वे कृते / रवर्णाद् नो णः एकपदेऽनन्त्यस्या लचटतवर्गशसान्तरे / 2 / 3 / 63 / रेफषकारवणेभ्यः परस्य रष्वर्णैः सहकपदे स्थितस्यानन्त्यस्य नकारस्य णकारादेशः स्याद् / न चेद् निमित्तनिमित्तिनोरन्तरे लकारचटतवर्गाः शतौ च सन्ति / सर्वेण / सर्वाभ्याम् / सर्वैः / सर्व डे इति स्थिते सर्वादेः स्मैस्मातौ।१।४। 7 / अकारान्तसर्वादेः, सम्बन्धिनोर्डेडस्योः स्थाने यथासंख्य स्मैस्मातौ / स्तः सर्वस्मै सर्वाभ्यां सर्वेभ्यः / सर्वस्मात् सर्वाभ्यां सर्वेभ्यः / सर्वस्य सर्वयोः / सर्व आंम् इति स्थिते / अवर्णस्यामः साम् / 1 / 4 / 15 / अवर्णान्तस्य सर्वादेरामः स्थाने सामादेशः स्याद् / शेषे पूर्ववत् सर्वेषाम् / सर्व ङि इति स्थिते / / के स्मिन् / 1 / 4 / 8 / / - सर्वादेरकारान्तसम्बन्धिनो डे: स्थाने स्मिन् इत्यादेशः स्यात्। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) सर्वस्मिन् सर्वयोः सर्वेषु / हे सर्व हे सर्वी हे सर्वे / सर्व विश्व उभ उभयट् अन्य अन्यतर इतर डतर डतम त्वद् नेम, समसिमौ सर्वार्थों, पूर्वपरापरदक्षिणोत्तरावराधरा एते सप्त व्यवस्थार्थाः, स्वशब्द आत्मात्मीयार्थः, अन्तरः अपूर्वहियोगार्थः उपसंव्यानार्थश्च, त्यद् तद् यद् एतद् इदम् अदस् एक द्वि युष्मद् अस्मद् भवतु किम् एते सर्वादयोऽसज्ञायां .सर्वादिकार्यभाजो भवन्ति / उभशब्दो नित्यं द्विवचनार्थः उभो उभौ उभाभ्यां उभाभ्यां उभाभ्यां उभयोः उभयोः / नास्य सर्वादिनिमित्तकं विभक्तिकार्य गणपाठस्तु हेत्वर्थप्रयोगे सर्वविभक्त्यर्थः, उभौ हेतू, उभाभ्यां हेतुभ्याम्, उभयोः हेत्वोः / उभयट् इत्यत्र टकारो ङोप्रत्यार्थः उभयीदृष्टिः। उभयटशब्दस्य द्विवचनं नास्ति, केषांचिद् मते द्विवचनमपि तन्मते सर्वशब्दवद् रूपाणि / उभयः उभये / उभयम् उभयान। उभयेन उभयैः। उभयस्मै उभयेभ्य: उभयस्माद् उभयस्यः। उभयेषाम् / उभयस्मिन् उभयेषु / अन्यः अन्यौ अन्ये / अन्यम् अन्यो अन्यान् इत्यादयः / तरोत्तरपदोऽन्यतरशब्दऽव्युत्पन्नः, अन्यतरः अन्यतरौ अन्यतरे इत्यादयः / डतरडतमौ प्रत्ययौ ततस्तद्न्ताः कतरकतमादयः शब्दा ग्राह्याः एतौ च स्वार्थिको प्रत्ययाविति प्रकृतिग्रहणेनैव तद्हणसिद्धेः तयोरस्मिन् प्रकरणे ग्रहणमन्येषां स्वार्थिकप्रत्ययान्तानाम् निषेधार्थ पृथक्त्वेन कृतम् / कतरः क़तरौ कतरे / कतरम् कतरौ कतरान्. कतरेण. कतरस्मै कतरस्माद् कतरेषाम् कतरस्मिन् / एवं कतमः / पूर्वः पूर्वी / Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (31) नवभ्यः पूर्वेभ्य इस्मास्मिन् वा / 1 / 4 / 16 / / __ पूर्वादिभ्यो नवभ्यः परे ये इ स्मात् स्मिन् आदेशा उक्तास्ते वा स्युः / पूर्व पूर्वाः / पूर्वस्मात् पूर्वात् / पूर्वस्मिन् पूर्वे। एवं परादीनाम् / शेषं सर्ववत् . तीयं ङित्कार्ये वा। 1 / 4 / 14 / तीयप्रत्ययान्तं ङित्कार्ये सर्वादि; स्याद् / द्वितीयस्मै द्वितीयाय / द्वितीयस्माद् द्वितीयाद् / द्वितीयस्मिन् द्वितीये / शेषं रामवद् / नेमार्थप्रथमचरमतयायाल्पकतिपयस्य वा / 1 / 4 / 10 / नेमादीनि नामानि तयायौ प्रत्ययौ तेषां जस इर्वा स्यात् / नेमे नेमाः शेषं सर्ववत्। अर्धे अर्धाः। प्रथमे प्रथमाः। चरमेचरमाः। द्वितये द्वितयाः / द्वये द्वयाः / अल्पे अल्पा: / कतिपये कतिपयाः। शेषं जिनवत् / अकारान्तपुंलिङ्गो मासशब्दः / मासः मासौ मासाः / मासं मासौ। 8. मासनिशासनस्य शसादौ लुग् वा / 2 / 1 / 100 / एषां शसादौ स्यादौ परे लुगन्तादेशो वा स्याद् / मासः मासान्। मासा मासेन / माभ्यां मासाभ्याम् / माभिः मासैः। मासे मासाय / माभ्यां मासाभ्याम् / माभ्यः मासेभ्यः। मासः मासात् / माभ्यां मासाभ्याम् / माभ्यः मासेभ्यः / मासः मासस्य / मासोः Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (32) मासयोः / मासां मासानाम् / मासि- मासे / मासोः मासयोः / मास्सु मासेषु / आस्ना आसनेन / आकारान्तपुंलिङ्गः सोमपा- . शब्द:--सोमपा: सोमपौ सोमपाः / सोमपाम् सोमपौ / . लुगातोऽनापः / 2 / 1 / 107 / .. ___ आवर्जितस्याकारस्यङीस्याघवुटस्वरे परे लुकस्याद् / सोमपः। . सोमपा सोमपाभ्याम् सोमपाभिः सोमपे सोमपाभ्यां सोमपाभ्यः / सोमपः सोमपाभ्यां सोमपाभ्यः सोमपः सोमपोः सोमपाम् सोमपि सोमपोः सोमपासु हे सोमपाः हे सोमपौ हे सोमपाः / एवं विश्वपा शंखध्मा हाहा इत्यादयः / इकारान्तपुंलिङ्गो मुनिशब्दः-मुनिः मुनि औ इति स्थिते - इदुतोऽस्त्रेरीदृत् / 1 / 4 / 21 / .. स्त्रीवर्जितस्येदन्तस्योदन्तस्य च औता सह यथासंख्यमीदूतावादेशौ स्याताम् / मुनी / मुनि जम् इति स्थिते / . जस्यदोत् / 1 / 4 / 22 / .. . इदन्तस्योदन्तस्य च जसि परे यथासंख्यमेदोतौ स्याताम् / अयादेशे मुनयः / मुनिम् / मुनी। मुनीन् / मुनि टा इति. स्थिते ... टः पुंसि ना 1 / 4 / 24 / . इदन्तादुदन्ताच्च परस्य टाप्रत्ययस्य स्थाने ना इत्यादेशः स्याद् / मुनिना / मुनिभ्याम मुनिभिः / मुनि डे इति स्थिते / हित्यदिति / 1 / / 23 / / Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (33) अदिति ङिति स्यादौ परे इदन्तस्योदन्तस्य च यथासंख्यमेदोतो स्याताम् / मुनये / मुनिभ्याम् / मुनिभ्यः / एदोद्भयां ङसिङसो रः। 1 / 4 / 35 / . एडोद्यां परयोर्डसिङसोः स्थाने र इत्यादेशः स्यात् / मुनेः। मुनिभ्याम् / मुनिभ्यः / मुनेः / मुन्योः / मुनीनाम् / मुनि+ङि इति स्थिते / डिडौँ / 1 / 4 / 25 / इदुदन्तात् परस्य डिप्रत्ययस्य डौ इत्यादेशः स्यात् / डित्यन्त्यस्वरादेः / 2 / 1 / 114 / - डिति परेऽन्त्यस्वरादे क् स्यात् / मुनौ / मुन्योः। मुनिषु। सम्बोधने मुनि+सि इति स्थिते / इस्वस्य गुणः / 1 / 4 / 41 / . आमन्त्रणे वर्तमानस्य हस्वस्य सिना सह गुणः स्यात् / हे मुने / हे मुनी / हे मुनयः / एवं रवि-नेमि-कवि-प्रभृतयः। एवमुकारान्ताः कुन्थु-साधु-भिक्षु-भानु-विष्णु-वायु-प्रभृतयोs प्येतैरेव सूत्रैः साधनीयाः / कुन्थुः / कुन्थू / कुन्थवः / कुन्थुम् / कुन्थू / कुन्यून् / कुन्थुना। कुन्थुम्याम् / कुन्थुभिः / कुन्थवे / कुन्थुभ्याम् / कुन्थुभ्यः / कुन्योः / कुन्थुभ्याम् / कुन्थुभ्यः / कुन्योः / कुन्थ्वोः / कुन्थूनाम् / कुन्यौ / कुन्थ्योः / कुन्थुषु / Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (34) . हे कुन्थो / हे कुन्थू / हे कुन्थवः / सखिशब्दस्य विशेषःसखि+सि इति स्थिते / ऋदुशनस्पुरुदंशोऽनेहसश्च सेर्डा / 1 / 4 / 84 / . ऋकारान्तादुशनसः पुरुदंशसः इकारान्तसखिशब्दाच्च परस्य शेषस्य से देशः स्यात् / डित्त्वादन्त्यस्वरादेर्लोपे सखा। शेषस्येति विशेषणाद् हे सखे / मखि+औ इति स्थिते / सख्युरितोऽशावत् / 1 / 4 / 83 / इदन्तस्य सखिशब्दस्य तत्सम्बन्धिनि वाऽन्यसम्बन्धिनि शिवर्जिते शेषे घुटि परे एकारान्तादेशः स्यात् / आयादेशे सखायौ / सखायः / सखायम् / सखायौ / सखीन् / सखि+टा इति स्थिते। न नाङिदेत् / 1 / 4 / 27 / केवलसखिपतिभ्यां परस्य टाप्रत्ययस्य नादेशः, ङिति परे एकारश्चोक्तः स न स्यात् / सख्या / सखिभ्याम् / सखिभिः / सख्ये / सखिभ्याम् / सखिभ्यः / सखि+ङसि इति स्थिते ङकारस्येत्सब्ज्ञायां सत्याम् ' इवर्णादेः ' इत्यादिना यत्वे सख्य अस् इति जाते / खितिखीतीय उर् / 1 / 4 / 36 / खितिखीतीसम्बन्धिन इवर्णस्य स्थाने यो यकारस्तस्मात् परथोङसिङसोः स्थाने उरादेशः स्यात् / सख्युः / सखिभ्याम् / खिनि Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (36) सखिभ्यः / सख्युः। सख्योः / सम्वीनाम् / सखि+ङि इति स्थिते / / केवलसखिपतेरौ।१।४।२६।' इदुदन्ताभ्यां केवलसखिपतिभ्यां परस्य डेरौ इत्यादेशः स्यात्। सख्यो / सख्योः / सखिषु / हे सखे / हे सखायौ / हे सखायः। एवं पतिः पती पतयः / पतिम् पती पतीन् / पत्या पतिभ्याम् पतिभिः / पत्ये पतिभ्याम् पतिभ्यः / पत्युः पतिभ्याम् पतिभ्यः / पत्युः पत्योः पतीनाम् / पत्यो पत्योः पतिषु.। केवलेति विशेषणात् समासे तु मुनिवद्-भूपतिः भूपती भूपतयः / भूपतिम् भूपती भूपतीन् / भूपतिना भूपतिभ्याम् भूपतिभिः / भूपतये भूपतिभ्याम् भूतिभ्यः / भूपतेः भूपतिभ्याम् भूपतिभ्यः / भूपतेः भूपत्योः भूपतीनाम् / भूपतौ भूपत्योः भूपतिषु / एवं सुसखा सुसखायौ सुसखायः। सुसखायम् सुसखायौ सुसखीन् / सुसखिना सुसखिभ्याम् सुसखिभिः इत्यादयः / नित्यद्विवचनान्तो द्विशब्दःद्वि+औ इति स्थिते / आ द्वेरः / 2 / 1 / 41 / द्विशब्दमभिव्याप्य त्यदादीनामन्त्यस्य तत्सम्बन्धिाने स्यादौ . परे तसादौ च तद्धिते परेऽकारादेशः स्यात् / द्व+औ द्वौ / द्वौ। द्वाभ्याम् / द्वाभ्याम् / द्वाभ्याम् / द्वयोः। द्वयोः / त्रिशब्दो नित्यं बहुवचनान्तः। त्रयः। त्रीन् / त्रिभिः। त्रिभ्यः। त्रिभ्यः। त्रि+आम् इति स्थिते / Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (36) त्रेस्त्रयः।१।४।३४। आम्सम्बन्धिनः त्रिशब्दस्य त्रयादेशः स्यात् / त्रयाणाम् / त्रिषु / कतिशब्दो नित्यं बहुवचनान्तः त्रिषु लिङ्गेषु सदृशश्च / कति+जस् इति स्थिते / डत्यतु संख्यावत् / 1 / 1 / 39 / डतिप्रत्ययान्तमत्वन्तं च नाम संख्यावत् स्यात् / डतिष्णः संख्याया लुप् / 1 / 4 / 54 / डतिप्रत्ययान्तात् षकारान्ताद् नकारान्ताच्च संख्यावाचिनः परस्य जस्शसोलुप् स्यात् / कति / कति / कतिभिः / कतिभ्यः / कतिभ्यः / कतीनाम् / कतिषु / लुक् इत्यनेन सिद्धे लुबिधानं स्थानिवद्भावबाधनार्थम् / ईकारान्तपुंलिङ्गः सुश्रीशब्दः / सुश्रीः सुश्री+औ इति स्थिते। धातोरिवणोवर्णस्येयुत् स्वरे प्रत्यये / 2 / 1 / 5 / / धातोरिवर्णोवर्णयोः स्वरादौ प्रत्यये परे यथासंख्यमियुवौ स्याताम् / सुश्रियो / सुश्रियः / सुश्रियम् / सुश्रियो / सुश्रियः। सुश्रिया / सुश्रीभ्याम् / सुश्रीभिः 'वेयुवोऽस्त्रियाः / इत्यनेन सुश्रियै सुश्रिये / सुश्रीभ्याम् / सुश्रीभ्यः / सुश्रियाः सुश्रियः / सुश्रीभ्याम् / सुश्रीभ्यः। सुश्रियाः सुश्रियः / सुश्रियोः। सुश्रियाम् सुश्रीणाम् / सुश्रियां सुश्रियि / सुश्रियोः / सुश्रीषु / हे सुश्रीः Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (37) सुश्रियो सुश्रियः / क्रीस्वित्यादीनां नित्यस्त्रीत्वाभावाद् दै दास दास् दाम् इत्यादय आदेशा ङिताम्प्रत्ययस्थाने न भवन्तीति यवक्रिये / यवक्रियः / यवक्रियः। यवक्रियाम् / यवक्रियि / शेष सुश्रीवत् / एवं स्वयम्भूः स्वयंमुवौ स्वयंभुवः / स्वयंमुवम् स्वयंमुवौ स्वयंमुवः। स्वयंमुवा स्वयंभूभ्यां स्वयंभूभिः / स्वयंभुवे स्वयंभूभ्यां स्वयंभूभ्यः / स्वयंभुवः स्वयंभूभ्यां स्वयंभूभ्यः / स्वयंमुवः स्वयंभुवोः स्वयंभुवाम् / स्वयंभुवि स्वयंमुवोः स्वयंभूषु / आमो नाम् वा / 1 / 4 / 31 / इयुत्सम्बन्धिनौ यौ नित्यत्रीदूतौ ताभ्यां परस्य तत्सम्बन्धिनो वाऽन्यसम्बन्विन आमो नाम् वा स्यात् / सुश्रीणां सुश्रियाम् / सेनानीशब्दस्य विशेषः–सेनानीः / क्विवृत्तेरसुधियस्तौ / 2 / 1 / 58 / विप्प्रत्ययान्तेनैव या समासवृत्तिस्तस्याः सुधीशब्दादन्यस्याः सम्बन्धिनोः धातोरिवर्णोवर्णयोः स्वरादौ स्यादौ परे यथासंख्यं य् व् इत्येतो आदेशौ स्याताम् / सेनान्यो सेनान्यः / सेनान्यम् सेनान्यो सेनान्यः / सेनान्या सेनानीभ्याम् सेनानीभिः / सेनान्ये सेनानीभ्याम् सेनानीभ्यः / सेनान्यः सेनानीभ्यां सेनानीभ्यः / सेनान्यः सेनान्योः सेनान्याम् / सेनानी+ङि इति स्थिते। .. ... निय आम् / 1 / 4 / 51 / नियः सम्बन्धिनो डेराम स्यात् / सेनान्याम् सेनान्योः सेना Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (38) नीषु / हे सेनानीः सेनान्यौ सेनान्यः / एवं ग्रामणीः / यवलूः यवल्वौ यवल्वः / यवल्वम् यवल्वौ यवरुवः / यवल्वा यवलूभ्यां यवलूभिः / यवल्वे यवलूभ्यां यवलूभ्यः / यवल्वः यवलूभ्याम् यवलूभ्यः / यवल्वः यवल्वोः यवल्वाम् / यवल्लि यवल्वोः यवछु / हे यवलूः यवल्वौ यवल्वः / इन्पुनर्वर्षाकारैर्भुवः / 2 / 1 / 59 / दृनादिभिः सह या विब्वत्तिः तत्सम्बन्धिन एव मुवोधातोरुवर्णस्य स्वरादौ स्यादौ परे व् आदेशः स्यात् / इन्भूः दृन्भ्वौ दृम्वः / इन्भ्वम् इन्भ्वौ नवः / इन्भ्वा दृन्भूभ्याम् इन्भूभिः / हुम्वे इन्भूभ्याम् इन्भूभ्यः / हन्म्यः इन्भूभ्याम् हन्भूभ्यः / इन्भ्वः हुन्भ्वोः इन्भ्वाम् / दृन्नि हुन्थ्योः इन्भूषु / हे हन्भूः इन्भ्वौ हनम्वः। 'विषवृत्ते:-' इत्यादिना सिद्धे पृथग्योगारम्भः भुव एमिरेवेति नियमार्थस्तेन स्यंमुशावित्यादावुवादेश एव / ईकारान्तो वातप्रमीशब्दः-वातप्रमी: वातप्रम्यौ वातप्रम्यः / वातप्रमीम् वातप्रम्यौ वातप्रमीन् / वातप्रम्या वातप्रमीभ्याम् वातप्रमीभिः / वातप्रम्ये वातप्रमीभ्यां वातप्रमीभ्यः / वातप्रम्यः वातप्रमीभ्यां वातप्रमीभ्यः / वातप्रम्यः वातप्रम्योः वातप्रम्याम् / वातप्रमी वातप्रभ्योः वातप्रमीषु / हे वातप्रमीः वातप्रम्यौ वातप्रम्यः / ऊकारान्तो हूदूशब्दः / हुड्ः हूह्वौ हूहूवः / हूहूम् इह्वौ हूहून् / हूवा हूहूभ्यां हूहूभिः / हूकें हूहू यां हूहूभ्यः / इह्वः Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हूहूभ्यां हूहूभ्यः / झ्वः हूतोः इह्वाम् / हूह्वि हूह्वोः हूहूषु / हे दूहूः हूतौ हूहः / ऋकारान्तः पितृशब्दः / पितृ+सि इति स्थिते 'ऋदुनशस्पुरुवंशो-' इत्यादिना सेर्डा, डित्वादन्त्यस्वरादिलोपे पिता / पितृ+औ इति स्थिते / .. अडौँ च / 1 / 4 / 39 / ऋकारान्तस्य डौ घुटि च परे अर् आदेशः स्यात् / पितरौ पितरः / पितरम् पितरौ पितॄन् / पित्रा पितृभ्यां पितृभिः / पित्रे 'पितृभ्यां पितृभ्यः / पितृ+ङसि इति स्थिते / ऋतो डुर् / 1 / 4 / 37 / / ऋकारात् परयोर्डसिङसोः स्थाने डुरित्यादेशः स्यात् / पितुः पितृभ्यां पितृभ्यः / पितुः पित्रोः पितृणाम् / पितरि पित्रोः पितृषु / आमन्त्रणे / हूस्वस्य गुणः ' इति गुणे हे पितः पितरौ पितरः / एवं जामातृ-भ्रातृ-प्रभृतयः / ना नरौ नरः / नरम् नरौ नृन् / व्रा नृभ्यां नृभिः / त्रे नृभ्यां नृभ्यः / नुः नृभ्यां नृभ्यः / 'नुः ब्रोः / नृ+आम् इति स्थिते नामादेशे। नुर्वा / 1 / 4 / 48 / नृशब्दस्य नामि परे दी? वा स्यात् / नृणां नृणाम् / नरि ब्रोः नृषु / हे नः नरौ नरः / कर्तृ+सि कर्ता / कर्तृ औ. इति थिते / .... Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृ-स्वस-नप्तृ-नेतृ-क्षत्तृ-होतृ-पोतृ-प्रशास्त्रो घुट्यार / 1 / 4 / 38 / तृ इति तच्-तृनोर्ग्रहणम्, तदन्तस्य स्वस्त्रादेश्व ऋतः स्थाने घुटि परे आर् आदेशः स्यात् / कर्तारौ कर्तारः / कर्तारम् कर्तारौ कर्तृन् / का कर्तृभ्यां कर्तभिः / कर्ने कर्तृभ्यां कर्तृभ्यः / कर्तुः कर्तृभ्यां कर्तृभ्यः / कर्तुः कर्बोः कर्तृणाम् / कर्तरि कोः कर्तषु। हे कर्तःकर्तारौ कर्तारः / एवं नप्ता नप्तारौ नप्तारः। नेष्टा नेष्टारौ नेष्टारः। क्षत्ता क्षत्तारौ क्षत्तारः / होता होतारौ होतारः / पोता पोतारौ पोतारः / प्रशास्ता प्रशास्तारौ प्रशास्तारः / इत्यादयः / क्रोष्टु+सि इति स्थिते / ..... - क्रुशस्तुनस्तच पुंसि / 1 / 4 / 91 / ... क्रुशः सम्बन्धिनस्तुनः शेषे घुटि परे तचादेशः स्यात् / कोष्टा क्रोष्टारौ क्रोष्टारः / क्रोष्टारं क्रोष्टारौ क्रोष्टुन् / क्रोष्टु+टा इति स्थिते / टादौ स्वरे वा / 1 / 4 / 92 / टादौ स्वरादौ परे क्रुशस्तुनस्तृच् वा स्यात् / क्रोष्ट्रा क्रोष्टुना / क्रोष्टुभ्यां क्रोष्टुभिः / क्रोष्ट्रे क्रोष्टव / क्रोष्टुभ्यां क्रोष्टुभ्यः / क्रोष्टः क्रोष्टोः / क्रोष्टुभ्यां क्रोष्टुभ्यः / क्रोष्टुः क्रोष्टोः। क्रोष्ट्वोः। क्रोष्टु+ आम् इति स्थिते नित्यानित्ययोनित्यविधेर्बलीयस्त्वात् प्रथममेवामो 'नामि कृते कोष्टूनाम् / क्रोष्टरि क्रोष्टौ क्रोष्ट्वोः क्रोष्टुषु / सम्बोध Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने सौ शेषघुटोऽभावात् तचोऽभावाद् हे क्रोष्टो क्रोष्टारौ क्रोष्टारः। एकारान्तः अतिहेशब्द:-अतिहेः अतिहयौ अतिहयः / अतिहयम् अतिहयो अतिहयः / अतिहया अतिहेभ्याम् अतिहेभिः / अतिइये अतिहेभ्याम् अतिहेभ्यः / अतिहेः अतिहेभ्याम् अतिहेभ्यः / अतिहेः अतिहयोः अतिहयाम् / अतिहयि अतिहयोः अतिहेषु / सम्बोधने अतिहे+सि इति स्थिते / 'अदेतः' इत्यादिना से कि हे अतिहे अतिहयौ अतिहयः / ऐकारान्तः सुरैशब्दः / सुरै+सि इति स्थिते / आ रायो व्यअने / 2 / 1 / 5 / रैशब्दस्य तत्सम्बन्धिनि व्यञ्जनादौ स्यादौ परे आकारः स्यात् / सुराः सुरायो सुरायः / सुरायम् सुरायौ सुरायः / सुराया सुराभ्याम् सुराभिः / सुराये सुराभ्याम् सुराभ्यः / सुरायः सुराम्याम् सुराभ्यः / सुरायः सुरायोः सुरायाम् / सुगयि सुरायोः सुरासु / हे सुरा: सुरायौ सुरायः / एवम् अतिरै-प्रभृतयः। ओकारान्तपुंलिङ्गो गोशब्दः / गो+सि इति स्थिते / ओत औः।१।४।७४। ओकारस्य घुटि परे औकारादेशः स्यात् / गौः गावौ गावः / गो+अम् इति स्थिते / . आ अम्शसोऽता / 1 / 4 / 75 / ...... . ओकारस्य अनः शसधाकारेण सह आ: स्यात्। गाम् गावी Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (42) गाः / गवा गोभ्यां गोभिः / गवे गोभ्यां गोभ्यः / गोः गोभ्यां गोभ्यः / गोः गवोः गवाम् / गवि गवोः गोषु / हे गौः गावौ गावः / एवं सुद्यो-प्रभृतयः। औकारान्तो ग्लौशब्दः / ग्लौः ग्लावौ ग्लावः / ग्लावं ग्लावौ ग्लावः / ग्लावा ग्लौम्यां ग्लौभिः / ग्लावे ग्लौम्यां ग्लौम्यः / ग्लाव: ग्लौभ्यां ग्लौभ्यः / ग्लावः ग्लावोः ग्लावाम् / ग्लावि ग्लावोः ग्लौषु / हे ग्लौः हे ग्लावौ हे ग्लावः। / इति स्वरांन्तपुंलिङ्गप्रक्रिया समाप्ता / अथ स्वरान्ताः स्त्रीलिङ्गाः आवन्तः सुभद्राशब्दः-सुभद्रा+सि इति स्थिते / दीर्घड्याळ्यञ्जनात् सेः / 1 / 4 / 45 / दीर्घाभ्यां ड्या बन्नाभ्यां व्यञ्जनाच्च परस्य सेतु क् स्यात् / सुभद्रा / सुभद्रा+औ इति स्थिते। औता। 1 / 4 / 20 / आबन्तस्य सम्बन्धिना औकारेण सह आपः स्थाने एकारादेशः स्यात् / सुभद्रे / सुभद्राः / सुभद्राम् सुभद्रे सुभद्राः / सुभद्रा+ टा इति स्थिते / . टौस्येत् / 1 / 4 / 19 / Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (43.) आबन्तस्य एकारः स्यात्, टा ओस् इत्येतयोः परयोः / सुभदया सुभद्राभ्यां सुभद्राभिः / सुभद्रा+डे इति स्थिते / आपो ङितां यै यास् यास् याम् / 1 / 4 / 17 / / आबन्तस्य डितां डेङसिङस्डीनां स्थाने यथासंख्यं यै यास्. यास् याम् इत्येते आदेशा भवन्ति ।सुभद्रायै सुभद्राभ्यां सुभद्राभ्यः। सुभद्रायाः सुभद्राभ्यां सुभद्राभ्यः / सुभद्रायाः सुभद्रयोः सुभद्राणाम् / सुभद्रायां सुभद्रयोः सुभद्रासु / सम्बोधने सुभद्रा+सि इति स्थिते / एदापः।१।४ / 42 / . आमच्यार्थे वर्तमानस्याबन्तस्य सिना सहकारादेशः स्यात् / हे सुभद्रे हे सुभद्रे हे सुभद्राः। एवं चन्दना-मा-सुलसा-यक्षाशाला-माला-हेला-दोलाऽऽदीनां रूपाणि ज्ञेयानि / नित्यदिद्विस्वराम्बार्थस्य इस्वः / 1 / 4 / 43 / / : येभ्यः शब्देभ्यः परेषां डितां 'स्थाने दै-दासादय आदेशा नित्यं स्युस्ते नित्यदितः, तेषां द्विस्वराणामम्बार्थानामावन्तानां चामन्त्रणार्थे सिना सह ह्रस्वः स्यात् / हे अम्ब / हे उक्क / हे अल्ल। शेष सुभद्रावत् / अम्बाडा-अम्बाला-अम्बिकादीनां द्विस्त्रराभावाद् हस्वाभवनेत मुभद्रावत् सर्वाणि रूपाणि / आरन्तानां 'सर्वादीनां उित्प्रत्यये विशेषः / सर्वा+डे इति स्थिते / यै इत्यादेशे कृते / Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (41) सर्वादेर्डस्पूर्वाः / 1 / 4 / 18 / .. . सर्वादेराबन्तस्य परेषां डितां स्थाने ये यै-यास-यास-याम् आदेशाः कथितास्ते डस्पूर्वाः स्युः / डित्त्वादन्त्यस्वरादिलोपे सर्वस्यै। सर्वस्याः। सर्वस्याः। सर्वासाम् / सर्वस्याम् / शेषं सुभद्रावत् / एवं विश्वादीनामपि स्त्रियां रूपाणि बोध्यानि / उभयशब्दस्य टित्त्वाद् डीप्रत्यये एकवचने बहुवचने च नदीवद् रूपाणि / तीयप्रत्ययान्तानां द्वितीयादीनां ङित्कायें सर्वादिवद् विकल्पेन भवनाद् द्वितीयस्यै द्वितीयायै / द्वितीयस्याः द्वितीयायाः / द्वितीयस्याः द्वितीयायाः। द्वितीयस्याम् द्वितीयायाम्। शेषं सुभद्रावद् / / .. आकारान्तो जराशब्दः / जरा / जरा+औ इति स्थिते / जराया जरस् वा। 2 / 1 / 3 / स्वरादौ स्यादौ परे जराया जरसादेशो वा स्यात् / जरसो जर / जरस: जराः / जरसं जराम् जरसौ जरे जरसः जराः। जरसा जरया जराभ्यां जराभिः / जरसे जरायै जराम्यां जराभ्यः। जरसः जरायाः जराभ्यां जराभ्यः / जरसः जरायाः जस्सोः जरयोः जरसां. जराणाम् / जरसि जरायां जरसोः जरयोः जरामु / हे जरे हे जरसौ जरे हे जरसः जराः। जरामतिक्रान्तः अतिनरः / अत्रापि 'एकदेशविकृतमनन्यवद्' इति न्यायाद् जर इत्यस्य जरसादेशो भवति / अतिनरः अतिजरसौ अतिमरौ अतिजरसः अतिजराः / अतिजरसम् अतिनरम् अतिजरसौ अतिनरौ अतिजरसः Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (15) अतिजरान् / अतिनरसा अतिनरेण अतिजराभ्याम् अतिनरसैः अतिजः / अतिजस्से अतिजराय अतिजराभ्याम् अतिनरेभ्यः। अतिजस्सः अतिजराद अतिजराभ्याम् अतिजरेभ्यः / अतिजरसः अतिनरस्य अतिजरसोः अतिजरयोः अतिजरसाम् अतिनराणाम् / अतिजरसि अतिजरे अतिनरसोः अतिजरयोः अतिजरेषु / हे अतिजर हे अतिजरसौ अतिजरौ हे अतिजरसः अतिजराः / केचित्तु टाप्रत्ययस्य इनादेशे उसेश्चादादेशे सति पश्चाद् जरसादेशमिच्छन्ति; तन्मते अतिनरसिना / अतिनरसाद् / इति विशेषः / अतिजरशब्दस्य स्त्रियामपि अतिजरा / तस्य न जरसादेश इति सुभद्रावद् रूपाणि / इकारान्तस्त्रीलिङ्गो बुद्धिशब्दः। घुटि परे मुनिवद्-बुद्धिः बुद्धी बुद्धयः / बुद्धिं बुद्धी बुद्धीः / बुद्ध्या बुद्धिम्यां बुद्धिभिः / बुद्धि+3 इति स्थिते। स्त्रिया डितां वा दै दास् दास दाम् / 1 / 4 / 28 / .: स्त्रीलिङ्गे वर्तमानादिदुदन्तात् परेषां डितांस्थाने दै दास् दास् दाम् इत्येते आदेशा वा स्युः। दकारो नित्यदिदिति विशेषणार्थः। बुद्धयै बुद्धये बुद्धिम्यां बुद्धिभ्यः। बुद्धयाः बुद्धेः बुद्धिभ्यों बुद्धिम्यः / बुद्ध्याः बुद्धेः बुद्धयोः बुद्धीनाम् / बुद्ध्यां बुद्धौ बुद्धयोः बुद्धिषु। हे बुद्धे हे बुद्धी हे बुद्धयः।एवं धति-मति-कीर्ति-कान्ति-प्रभृतीनामपि. रूपाणि / धेनु-तनु-रज्जु-प्रभृतीनामपि तैस्तैरेव सूत्रः बुद्धिवद्रपाणि सिद्धयन्ति / धेनुः धेनू धेनवः / धेनुं धेनू धेनूः / धेन्वा Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (46) धेनुभ्यां धेनुभिः / धेन्वै धेनवे धेनुभ्यां धेनुभ्यः / धेन्वाः धेनोः धेनुभ्यां धेनुभ्यः। धेन्वाः धेनोः धेन्वोः धेनूनाम् / धेन्वां धेनौ धेन्वोः धेनुषु / हे धेनो धेनू धेनवः / डीप्रत्ययान्त ईकारान्तो नदीशब्दः / नदी+सि इति स्थिते ' दीर्घड्याब्-' इत्यादिना सेलुचि नदी नद्यौ नद्यः / नदी नद्यौ नदीः। नद्या नदीम्यां नदीभिः / नदी+डे इति स्थिते। स्त्रीदूतः / 1 / 4 / 29 / नित्यस्त्रीलिङगे वर्तमानादीकारान्तादूकारान्ताच्च परेषां डितां स्थाने यथासंख्यं दै दास दास दाम् इत्येत आदेशा नित्यं स्युः / नद्यै नदीभ्यां नदीभ्यः / नद्याः नदीम्यां नदीभ्यः / नद्या: नद्योः नदीनाम् / नद्यां नद्योः नदीषु / हे नदि हे नद्यौ हे नद्यः / एवं ब्राह्मी-कुमारी-सुन्दरी-उभयी-गौर्यादीनामपि / स्त्रियाम् / 1 / 4 / 93 / / क्रुशः परस्य तुनः स्त्रियां तृनादेशः स्यात् / निनिमित्त एव / तत ऋकारान्तत्वाद ङीप्रत्यये क्रोष्ट्री / तस्य नदीवद्रूपाणि / ईकारान्तो लक्ष्मीशब्दः / तस्य ङीप्रत्ययान्तत्वाभावान्न सेलृक् / लक्ष्मीः लक्ष्म्यौ लक्ष्म्यः। हे लक्ष्मीः हे लक्ष्म्यौ हे लक्ष्म्यः / एवम् अवी-तरी-तन्त्री-ही-धी-श्रीणां सेलुग् न भवति / अवीः। तरीः / तन्त्रीः / हीः। धीः / श्रीः / शेषं नदीवन् / ही-धी Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (47) श्रीणां तु विशेषोऽग्रे वक्ष्यते / ईकारान्तो डीप्रत्ययान्तः स्त्रीशब्दः स्त्री / स्त्री+औ इति स्थिते / स्त्रियाः / 2 / 1 / 54 / __ स्त्रीशब्दस्य स्वरादौ स्यादौ परे इयादेशः स्यात् / स्त्रियौ / स्त्रियः। ___ वाऽम्शसि। 2 / 1 / 55 / स्त्रीशब्दस्यामि शसि च परे इयादेशो वा स्यात् / त्रिय स्त्रीम् / स्त्रियौ / स्त्रियः स्त्रीः / स्त्रिया स्त्रीभ्यां स्त्रीभिः / ङितां दै-दासाद्यादेशे सति इयादेशे च स्त्रियै स्त्रीभ्यां स्त्रीभ्यः / स्त्रियाः स्त्रीभ्यां स्त्रीभ्यः। स्त्रियाः स्त्रियोः. स्त्रीणाम्। स्त्रियां स्त्रियोःस्त्रीषु / हे स्त्रि हे स्त्रियौ हे स्त्रियः। ईकारान्तश्रीशब्दः / जनो यां श्रयते सा श्रीः / स्वरादौ परे 'धातोरिवर्णो-' इत्यादिना इयादेशे श्रियों श्रियः / श्रियं श्रियो श्रियः / श्रिया श्रीभ्यां श्रीभिः / श्री+डे इति स्थिते / . . . वेयुवोऽस्त्रियाः। 1 / 4 / 30 / इयुव्स्थानिनौ यो नित्यस्त्रीलिङगे वर्तमानावीकारोकारों तदन्तात् परेषां ङितां स्थाने दै दास दाम् दाम् इत्यादेशा वा स्युः / स्त्रीशब्दं वनयित्वा / श्रिय श्रिये श्रीभ्यां श्रीभ्यः। श्रियाः श्रियः श्रीभ्यां श्रीभ्यः / श्रियाः श्रियः श्रियोः श्रीणां श्रियाम् / Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (48) त्रियां श्रियि श्रियोः श्रीषु / हे श्री: हे श्रियौ हे श्रियः / एवं ही-धीप्रभृतयः / ऊकारान्तो भ्रूशब्दः / भ्रः / भ्रू+औ इति स्थिते भ्रू-श्नोः / 2 / 1 / 53 / / भ्रू-श्नोरुवर्णस्य स्वरादौ स्यादौ परे उवादेशः स्यात् / भ्रुवौ भ्रवः / भ्रवं भ्रुवौ भ्रवः / भ्रुवा भ्रूभ्यां भ्रभिः / झुवै भ्रुवे भ्रभ्यां अभ्यः। भ्रुवाः भ्रवः भूभ्यां भ्रूभ्यः। भ्रुवाःभ्रवः ध्रुवोःभ्रवां भ्रूणाम् ध्रुवां ध्रुवि भ्रुवो: भ्रषु / हे भ्रूः ध्रुवौ ध्रुवः। एवं सुभ्रूः। हे सुभ्र इति तूङन्तस्य / ऊङन्तो वधूशब्दः / वधूः वध्वौ वध्वः / वधू कवौ वधूः / वध्वा वधूभ्यां वधूभिः / वध्वै वधूभ्यां वधूभ्यः / वध्वाः वधूभ्यां वधूभ्यः / वध्वाः वध्वोः वधूनाम् ।वध्वां वध्वोः वधूषु / हे वधु हे वध्वौ हे वध्वः / एवं करभोरू-जम्बूप्रभृतीनां रूपाणि ज्ञेयानि / ऋकारान्तः स्वसशब्दः / स्वसा स्वसारौ स्वसारः / स्वसारं स्वसारौ स्वसः स्त्रीत्वाद् नत्वाभावः / स्वस्रा स्वसृभ्यां स्वसृभिः। स्वस्त्रे स्वसृभ्यां स्वसृभ्यः / स्वसुः स्वसृभ्यां स्वसृभ्यः / स्वसुः स्वस्रोः स्वमृणाम् / स्वसरि स्वस्रोः स्वसृषु। हे स्वसः हे स्वसारौं हे स्वसारः। मातृशब्द:-माता मातरौ मातरः / मातरं मातरौ मातृः / शेष पितृवत् / एवं ननान्ह / रैशब्दम्य सुरैशब्दवद्रूपाणि / नौशब्दस्य ग्लौशब्दवद्-नौः नावौ नावः / नावं नावौ नावः / नावा नौभ्यां नौभिः / इत्यादयः / . इति स्वरान्तस्त्रीलिङ्गप्रकरणम् / Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (49) अथ स्वरान्तनपुंसकलिङ्गाः। अकारान्तो नपुंसकलिङ्गः कुलशब्दः-कुल+सि इति स्थिते / अतः स्यमोऽम् / 1 / 4 / 57 / अकारान्तनपुंसकसम्बन्धिनोः स्यमोरमादेशः स्यात्। कुलम् / कुल+औ इति स्थिते ......औरीः / 1 / 4 / 56 / ... नपुंसकसम्बन्धिन औप्रत्ययस्य स्थाने ईकार: स्यात् / कुले। कुल+जस् इति स्थिते नपुंसकस्य शिः / 1 / 4 / 55 / ' नपुंसकसम्बन्धिनोर्नस्-शसोः शिः स्यात् / शकारः 'शिवुटर इत्यत्र विशेषणार्थः / कुल+इ इति स्थिते / स्वराच्छौ / 1 / 4 / 65 / .. जस्-शसादेशे शौ परे स्वरान्ताद् नपुंसकात् परो नोऽन्तादेशः स्यात् / नि दीर्घः / 1 / 4 / 85 / .. शेषे घुटि परे यो नकारस्तस्मिन् परे पूर्वस्य स्वरस्य दीर्घः स्यात् / कुलानि / कुलं कुले कुलानि / शेषं देववत् / एवं धन-वन' -मूल-फल-सर्व-विश्वादयः // अन्य+सि इति स्थिते ‘पञ्चतोऽन्यादेरनेकतरस्य दः।१।४।५८ / Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (50) नपुंसकानामन्यान्यतरेतर-डतर-डतमानां पञ्चानां सम्बन्धिनोः स्यमोः स्थाने द् स्याद् , एकतरं वर्जयित्वा / अन्यद् अन्ये अन्यानि। अन्यद् अन्य अन्यानि / अन्यतरद् अन्यतरे अन्यतराणि / अन्यतरद् अन्यतरे अन्यतराणि / इतरद् इतरे इतराणि / इतरद् इतरे इतराणि / कतरद् कतरे कतराणि / कतरद् कतरे कतराणि / कतमद् कतमे कतमानि / कतमद् कतमे कतमानि / सम्बोधनेऽपि हे कतमद् इत्यादयः। अत्र सिस्थानीयस्यामो लुम्विधानात् 'अदेतः स्यमोठ्क्' इति द्ग् न भवति / शेषं सर्ववत् // प्रथमं प्रथमे प्रथमानि / द्वितीयं द्वितीये द्वितीयानि / द्वयं द्वये द्वयानि / चरम चरमे चरमाणि / एकतरम् एकतरे एकतराणि इत्यादयः // ___ इकारान्तो नपुंसकलिङ्गोऽस्थिशब्दः- अस्थि+सि इति स्थिते अनतो लुप् / 1 / 4 / 59 / अकारान्तभिन्नस्य नपुंसकस्य सम्बन्धिनोः स्यमोलुप् स्यात् / अस्थि ।अस्थि+औ अत्र औ इत्यस्य 'औरीः' इत्यनेन ईकारादेशे। अनाम्स्वरे नोऽन्तः / 1 / 4 / 64 / . नाम्यन्तस्य नपुंसकस्य आम्वर्जस्वरादौ स्यादौ परे नोऽन्तः स्यात् / अस्थिनी / अस्थि+जस् इति स्थिते 'जस्शसोः शिः 'स्वराच्छौ' नि दीर्घः' इत्येतैः अस्थीनि / पुनरपि अस्थि अस्थिनी अस्थीनि / अस्थि+टा इति स्थिते Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (51) दध्यस्थि-सक्थ्यक्ष्णोऽन्तस्यान् / 1 / 4 / 63 / एषां नपुंसकनाभ्यन्तानां तदतत्सम्बन्धिनि टादौ स्वरादौ परेऽ न्तस्य अन् स्यात् / इत्यन्तस्यानादेशे __ अनोऽस्य / 2 / 1 / 108 / अनोऽकारस्य ङीप्रत्यये स्याद्यधुट्स्वरादौ च परे लुक् स्यात् / अस्थना अस्थिभ्याम् अस्थिभिः / अस्थ्ने अस्थिभ्याम् अस्थिभ्यः। अस्थनः अस्थिभ्याम् अस्थिभ्यः / अस्थनः अस्थ्नोः अस्थ्नाम् / अस्थन्+ङि इति स्थिते ईडौ वा / 2 / 1 / 109 / अनोऽकारस्य औप्रत्ययादेशे ईकारे डौ च परे लुग्वा स्यात्। अस्थिन अस्थनि अस्थ्नोः अस्थिषु / सम्बोधने नामिनो लुग् वा / 1 / 4 / 61 / ___नाम्यन्तस्य नपुंसकस्य स्यमोलुंग् वा स्यात् / लुचः स्थानिवद्भावेन 'हस्वस्य गुणः ' हे अस्थे / लुगभावपक्षे लुब्भवनात् तस्य च स्थानिवद्भावाभवनाद् हे अस्थि अस्थिनी अस्थीनि // एवं दधि दधिनी दधीनि। दधि दधिनी दधीनि / दध्ना दधिभ्यां दधिभिः / दध्ने दधिभ्यां दधिभ्यः / दधनः दधिभ्यां दधिभ्यः।.. दध्नः दध्नोः दध्नाम् / दटिन दधनि दध्नोः दधिषु / हे दधे हे दधि हे दधिनी हे दधीनि / एवं सक्थ्यक्ष्णोरपि // . . ईकारान्तो नपुंसकलिङ्गो ग्रामणीशब्दः Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (52) क्लीबे वा / 2 / 4 / 97 / स्वरान्तस्य नपुंसकस्य हवः स्यात् / ग्रामणि+सि / सेलृपि ग्रामणि ग्रामणिनी ग्रामणीनि / ग्रामणि ग्रामणिनी ग्रामणीनि / ग्रामणी+टा इति स्थिते वाऽन्यतः पुमांष्टादौ स्वरे / 1 / 4 / 62 / यो नाम्यन्तशब्दोऽन्यतो विशेषवशाद नपुंसको जातः स टादौ स्वरे परे पुंवद् वा स्यात् / अन्यतो नपुंसकस्य 'उक्तपुंस्क' इति पारिभाषिकं नाम तत्स्वरूपम्-एक एव हि यः शब्दः, त्रिषु लिङ्गेषु वर्तते / एकमेवार्थमाख्याति, उक्तपुंस्कं तदुच्यते // 1 // ग्रामणीशब्दो यथा पुंलिङ्गे वर्तमानो ग्रामकर्मकनीधात्वर्थ क्रियारूपं स्वार्थमभिधत्ते तमेव स्वार्थरूपमर्थं नपुंसके वर्तमानोऽपीति स उक्तपुंस्कः / न च पीलुशब्दः, पुस्खे वृक्षत्वजातिरूपस्वार्थाभिधानात् क्लीवे फलत्वनातिरूपस्वार्थाभिधानाच्च / पुंवद्भावपक्षे यत्वमन्यत्र नोऽन्तत्वम् / ग्रामण्या ग्रामणिना ग्रामणिभ्यां ग्रामणिभिः / ग्रामण्ये ग्रामणिने ग्रामणिभ्यां ग्रामणिभ्यः। ग्रामण्यः ग्रामणिनः ग्रामणिभ्यां ग्रामणिभ्यः / ग्रामण्यः ग्रामणिनः ग्रामण्योः ग्रामणिनोः ग्रामण्यां ग्रामणीनाम् / 'निय आम्' ग्रामण्यां ग्रामणिनि ग्रामण्योः ग्रामणिनोः ग्रामणिषु / हे ग्रामणि हे ग्रामणे हे ग्रामणिनी हे ग्रामणीनि॥ यवक्रीशब्दः-यवक्रि यवक्रिणी यवक्रीणि / पुनरपि तदेव / यवक्रिया यवक्रिणा पुंवत्पक्षे 'संयोगाद्' इतीयादेशः / यवक्रिभ्यां Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (53) यवक्रिभिः / यवक्रिये यवक्रिणे यवक्रिभ्यां यवक्रिभ्यः / यवक्रियः - यवक्रिणः यवक्रिभ्यां यवक्रिभ्यः / यवक्रियः यवक्रिणः यवनियोः यवक्रिणोः यवक्रियां यवक्रीणाम् / यवक्रियि यवक्रिणि यवनियोः यवक्रिणोः यवक्रिषु। हे यवक्रे यवक्रि यवक्रिणी यवक्रीणि // प्रधिशब्दः-प्रधि प्रधिनी प्रधीनि / पुनरपि तदेव / प्रध्या प्रधिना पुंवभावे ' क्विवृत्तेः' इत्यादिना यत्वं ड्यादिपरे च दै-दासादयः। प्रधिभ्यां प्रधिभिः। प्रध्यै प्रधिने प्रधिभ्यां प्रधिम्यः / प्रध्याः प्रधिनः प्रधिभ्यां प्रधिभ्यः / प्रध्याः प्रधिनः प्रध्योः प्रधिनोः प्रधीनामित्येकमेव / प्रध्यां प्रधिनि प्रध्योः प्रधिनोः प्रधिषु // सुधीशब्दस्य तु 'क्विन्वृत्तेः-' इत्यादौ वजनाद् यत्वाभावेन इयादेशे वेयुवोऽस्त्रियाः' इत्यनेन विकल्पेन दै-दासादिभवनेन प्रधीशब्दाद् विशेषः। सुधियै सुधिये सुधिने / सुधियाः सुधियः सुधिनः / सुधियाः सुधियः सुधिनः / ' आमो नाम् वा ' सुधियां सुधीनाम् / सुधियां सुधियि सुधिनि। शेषं प्रधिशब्दवत् // आकारान्तः सोमपाशब्दः, तस्यापि ' क्लीवे 'इति ह्रस्वे सोमपं सोमपे सोमपानि / सोमपं सोमपे सोमपानि / शेषं कुलवत्। वारिशब्दः-वारि वारिणी वारीणि / वारि वारिणी वारीणि / वारिणा वारिभ्यां वारिभिः / वारिणे वारिभ्यां वारिभ्यः / वारिणः वारिभ्यां वारिभ्यः / कारिणः वारिणोः वारीणाम् / वारिणि वारिणोः वारिषु / हे वारे वारि वा. . रिणी वारीणि॥ उकारान्तः पीलुशब्दः-पील्लु पीलुनी पीलूनि / पुन रपि तदेव / पीलुना पीलुभ्यां पीलुभिः / पीलुने पीलुभ्यां पीलुभ्यः Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (54) पीलुनः पीलुभ्यां पीलुभ्यः। पीलुनः पीलुनोः पीलूनाम् / पीलुनि पीलुनोः पीलुषु / हे पीलो पीलु पीलुनी पीलूनि / उकारान्तः सुलुशब्द:सुलु सुलुनी मुलनि / सुलु सुलुनी सुलुनि / विकल्पेन पुंवद्भवनाद्सुल्वा सुलुना सुलुभ्यां सुलुभिः। सुल्वे सुलुने सुलुभ्यां सुलुभ्यः / सुवः सुलुनः सुलुभ्यां सुलुभ्यः। सुल्वः सुलुनः सुल्वोः सुलुनोः सुल्वां सुलूनाम् / सुल्वि सुलुनि सुल्वोः सुलुनो: सुलुषु / सम्बोधने पीलुवत् / एवं यवपु-वृक्षधु-प्रभृतीनाम् ।मधुशब्दस्य तु पीलुवत् // शोभना रा यस्य तत् सुरि / सुरैशब्दस्य हस्वत्वे सुरि सुरिणी सुरीणि / पुनरपि तदेव / विकल्पेन पुंवद्भावे सुराया सुरिणा / सुराये सुरिणे / सुरायः सुरिणः / सुरायः सुरिणः / , सुरायां सुरीणाम् / मुरायि सुरिणि / सुरायोः सुरिणोः / शेषं वारिवत् // ऋकारान्तो नपुंसकलिङ्गः कर्तृशब्दः-कर्तृ कर्तृणी कर्तृणि / कर्तृ कर्तृणी कर्तृणि / का कर्तृणा कर्तृभ्यां कर्तृभिः / कर्ने कर्तृणे कर्तृभ्यां कर्तभ्यः / कर्तुः कर्तृणः कर्तृभ्यां कर्तृभ्यः / कर्तुः कर्तृणः कोंः कर्तणोः कर्तृणाम् / कर्तरि कर्तृणि कर्बोः कर्तृणोः कर्तृषु / हे कर्तः हे कर्तृ हे कर्तृणी हे कर्तृणि // शोभना द्यौर्यस्मिन् तदिति वलीवे ह्रस्वत्वे सुद्यु मुधुनी सुधूनि / पुनरप्येवम् / पुंवद्भावे सुद्यवा सुद्युना। सुघवे सुधुने / सुद्योः सुधुनः / सुद्योः सुधुनः सुद्यवोः सुधुनोः सुद्यवां सुधूनाम् / सुद्यवि सुधुनि सुद्यवोः सुधुनोः। शेषं पीलुवत् / इति नपुंसकलिङ्गप्रक्रिया समाप्ता। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (55) अथ व्यञ्जनान्ताः पुंलिङ्गाः। हकारान्तोऽनडुङ्शब्दः-अनडुङ्+सि इति स्थिते वाः शेषे। 1 / 4 / 82 / आमव्यविहितात् सेरन्यः शेषः। शेषे घुटि परेऽनडुह उकारस्य चतुर उकारस्य च वाः आदेशः स्यात् / अनड्वाह्+सि इति स्थिते अनंदुहः सौ / 1 / 4 / 72 / धुडन्तस्यानडुहो धुटः प्राक् सौ परे नोऽन्तः स्यात् / अनङ्वान्हसि इति जाते . पदस्य / 2 / 1 / 89 / पदान्ते वर्तमानस्य संयोगस्य लुगन्तादेशः स्यात् / 'दीर्घड्याब-' इत्यादिना सेलुकि च अनड्वान् / अनडवाही अनड्वाहः। अनड्वाहम् अनड्वाही अनडुहः / अनडुहा / अनडुङ्+भ्याम् इति स्थिते संस-ध्वंस-क्वस्सन हो दः / 2 / 1 / 68 / . स्रंस--सोः सन्तस्य क्वस्प्रत्ययान्तस्यानडुहश्च पदान्ते वर्तमानस्य दः स्यात् / अनडुद्भ्याम् अनडुद्भिः। अनडुहे अनडुद्याम् Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनडुद्भयः / अनडुहः अनडुङ्ग्याम् अनडुङ्ग्यः / अनडुहः 'अनडुहोः अनडुहाम् / अनडुहि अनडुहोः अनडुत्सु / सम्बोधने उतोऽनडुच्चतुरो कः।१।४।०१। / ___ आमच्यार्थे वर्तमानयोरनडुच्चतुरोरुतो वः स्यात् / हे अनड्वन्।हे अनड्वाही हे अनड्वाहः॥ हकारान्तो गोदुङ्शब्द:गोदुह+सि इति स्थिते / सेलुकि पदान्तवाद् भ्वादेर्दादेघः / 2 / 1 / 83 / भ्वादेर्धातोर्यो दादिरवयवस्तस्य हकारस्य धुटि प्रत्यये परे पदान्ते च घादेशः स्यात् / गोदुघ्+इति जाते गडदबादेश्चतुर्थान्तस्यैकस्वरस्यादेश्चतुर्थः स्ध्वोश्च प्रत्यये / 2 / 1 / 77 / / गडदबादेश्चतुर्थान्तस्यैकस्वरस्य धातुरूपशब्दावयवस्यादेः स्थाने चतुर्थः स्यात् सादौ ध्वादौ प्रत्यये पदान्ते च / गोधुघ् इति नाते धुटस्तृतीयः / 2 / 1 / 76 / .. पदान्ते धुटस्तृतीयः स्यात् / गोधुम् / अत्र विरामे वा / 1 / 3 / 51 / - विरामस्थस्याशिटो धुटः प्रथमो वा स्यात् / गोधुक् गोधुम् गोदुहौ गोदुहः। गोदुहं गोदुहौ गोदुहः / गोदुहा गोधुग्भ्यां गोधुरिभः / गोदुहे गोधुग्भ्यां गोधुग्भ्यः / गोदुहः गोधुग्भ्यां गोधु Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (57) ग्भ्यः ।गोदुहः गोदुहोः गोदुहाम् ।गोदुहि गोदुहोः गोधु २क्षु, षु। हे गोधुक् गोधुग् गोदुहौ गोदुहः // हकारान्तो मधुलिहाब्दः हो धुट्-पदान्ते / 2 / 1 / 82 / - धुटि प्रत्यये पदान्ते च हकारस्य ढादेशः स्यात् / मधुलिट् मधुलिड् मधुलिहौ मधुलिहः / मधुलिहं मधुलिहौ मधुलिहः / मधुलिहा मधुलिड्भ्यां मधुलिभिः / मधुलिहे मधुलिड्म्यां मधुलिड्म्यः / मधुलिहः मधुलिड्भ्यां मधुलिड्भ्यः / मधुलिहः मधुलिहोः मधुलिहाम् / मधुलिहि मधुलिहोः मधुलिट्सु मधुलिठ्सु / हे मधुलिट् मधुलिड् हे मधुलिहौ हे मधलिहः // तत्त्वमुशब्दःतत्त्वमुड्कसि इति स्थिते मुह-द्रुह-ऽणुह-ष्णिहो वा / 2 / 1 / 04 / एषां हकारस्य धुटि प्रत्यये पदान्ते च घादेशो वा स्यात् / पक्षे ढत्वम् / तत्त्वमुक्, तत्त्वमुग, तत्त्वमुट् , तत्त्वमुड् तत्त्वमुहौ तत्त्वमुहः। तत्त्वमुहं तत्त्वमुहौ तत्त्वमुहः / तत्त्वमुहा तत्त्वमुग्भ्या, तत्त्वमुड्भ्यां तत्त्वमुग्भिः, तत्त्वमुभिः। तत्त्वमुहे तत्त्वमुग्भ्यां तत्त्वमुड्भ्यां तत्त्वमुग्भ्यः तत्त्वमुड्भ्यः। तत्त्वमुहः तत्त्वमुग्भ्यां,तत्त्वमुड्भ्यां तत्त्वमुग्भ्यः तत्त्वमुड़धः / तत्त्वमुहः तत्त्वमुहोः तत्त्वमुहाम् ।तत्त्वमुहि तत्त्वमुहोः तत्त्वमुक्षु, पु,मुट्सु,मुसु / हे तत्त्वमुक्, मुंग्, मुट् , मुड् तत्त्वमुहौ - तत्त्वमुहः // मित्रद्रुह्शब्दस्य तु मित्रध्रुक् मित्रध्रुग् मित्रध्रुट मित्रघ्डू Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (58) मित्रट्ठहौ मित्रद्रुहः / मित्रद्रुहं मित्रद्रुहौ मित्रद्रुहः / मित्रगुहा मित्रध्रुग्भ्यां, मित्रध्रुड्भ्यां मित्रध्रुग्भिः, मित्रध्रुभिः / मित्रद्रुहे मित्रध्रुग्भ्यां, मित्रध्रुड्भ्यां मित्रध्रुग्भ्यः, मित्रध्रुड्भ्यः / मित्रद्रुहः मित्रध्रुग्भ्यां, मित्रध्रुड्भ्यां मित्रध्रुग्भ्यः, मित्रध्रुड्भ्यः / मित्रद्रुहः मित्रद्रुहोः मित्रद्रुहाम् / मित्रद्रुहि मित्रद्रुहोः मित्रध्रुक्षु, ध्रुषु ध्रुट्सु, ध्रुत्सु / हे मित्रध्रुक, धंग, ध्रुट्, ध्रुड् मित्रद्रुहौ मित्रद्रुहः / एवं तत्त्वस्नुहु-चेलस्निहादीनां यथायोगरूपाणि वक्तव्यानि॥रेफान्तश्चतुशब्दो नित्यं बहुवचनान्त:-चतुर्+जस् इति स्थिते 'वाः शेषे ' इति वाऽऽदेशे रुत्वे विसर्गे च चत्वारः / चतुरः। चतुर्भिः। चतुर्म्यः / चतुर्थ्यः / चतुर्णाम् / चतुषु / अत्र रो विसर्गे प्राप्ते अरोः सुपि रः। 1 / 3 / 57 / रोरन्यस्य रकारस्य सुपि परे र एव स्याद् / इति न विसर्गः॥ प्रियाश्चत्वारो यस्येति विग्रहे प्रियचतुर्शब्दस्य सौ परे वादेशे सेलुकि विसर्गे च प्रियचत्वाः प्रियचत्वारौ प्रियचत्वारः / प्रियचत्वारं प्रियचत्वारौ प्रियचतुरः। अत्र शेष टोऽभावाद् न वाऽऽदेशः / प्रियचतुरा प्रियचतुर्यो प्रियचतुर्भिः / प्रियचतुरे प्रियचतुर्यो प्रियचतुर्म्यः / प्रियचतुरः प्रियचतुर्ध्या प्रियचतुर्थ्यः / प्रियचतुरः प्रियचतुरोः प्रियचतुराम् / अत्र चतुरो गौणत्वात् तत्सम्बन्धिन आमोऽभावाद् न नामादेशः। प्रियाणां च तेषां चतुर्णा चेति कर्मधारये तत्पुरुषे वा चतुरः प्राधान्यात् प्रियचतुर्णा Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (59) मिति भवत्येव / प्रियचतुरि प्रियचतुरोः प्रियचतुषु / सम्बोधने सौ परे ' उतोऽनडुच्चतुरो वः / इति वादेशे हे प्रियचत्वः प्रियचवारौ हे प्रियचत्वारः // नकारान्तो राजनशब्दः-राजन्+सि इति स्थिते / 'नि दीर्घः / इति दीर्धे से कि नाम्नो नोऽनह्नः / 2 / 1 / 91 / पदान्ते वर्तमानस्य नाम्नो नकारस्य लुक् स्यात् , स चेदह्नः शब्दस्य न स्यात् / राजा राजानौ राजानः / राजानं राजानौ। राजन +शस् इति स्थिते अनोऽकारस्य लुकि ' तवर्गस्य-'इत्यादिना नो नत्वे झोः संयोगे ज्ञवे राज्ञः / राज्ञा राजभ्यां राजभिः / राज्ञे राजभ्यां राजभ्यः / राज्ञः राजभ्यां राजभ्यः / राज्ञः राज्ञोः राज्ञाम् / ' ईडौ वा ' राज्ञि राजनि राज्ञोः राजसु / नामन्त्र्ये / 2 / 1 / 92 / आमन्व्यार्थे वर्तमानस्य नाम्नो नस्य लुग् न स्यात् / हे राजन् हे राजानौ हे राजानः // नकारान्तो यज्वन्शब्दः- यज्वा यज्वानौ यज्वानः / यज्वानं यज्वानौ / न वमन्तसंयोगात् / 2 / 1 / 111 / - वकारान्ताद् मकारान्ताच्च संयोगात् परस्यानोऽम्य लुग्न स्यात् / रज्जनः / यज्वना यज्वभ्यां यज्वभिः / यज्वने यज्वम्यां Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यज्वभ्यः। यज्वनः यज्वभ्यां यज्वभ्यः। यज्वनः यज्वनोः यज्वनाम्। यज्वनि यज्वनोः यज्वसु / हे यज्वन् हे यज्वानी हे यज्वानः / एवम् आत्मा आत्मानौ आत्मानः / आत्मानम् आत्मानौ आत्मनः / आत्मना आत्मभ्याम् आत्मभिः / आत्मने आत्मभ्याम् आत्मभ्यः। आत्मनः आत्मभ्याम् आत्मभ्यः। आत्मनः आत्मनोः आत्मनाम्। आत्मनि आत्मनोः आत्मसु / हे आत्मन् आत्मानौ आत्मानः // एवं सुधर्मा सुधर्माणौ सुधर्माणः / सुधर्माण सुधर्माणौ सुधर्मणः / इत्यादयः॥ श्वन्-युग्न्-मघवन्–शब्दानां घुटि राजन्वत् / श्वा श्वानौ श्वानः / श्वानं श्वानौ / एवं युवा युवानौ इत्यादयः / श्वन्+शस् श्वन्-युवन्-मघोनो डीस्यायघुट्स्वरे व उः / 2 / 1 / 106 / ___एषां सस्वरस्य वकारस्य ङीप्रत्ययेऽघुट्स्वरादौ च स्यादौ परे उः स्यात् / शुनः / शुना श्वभ्यां श्वभिः / शुने श्वभ्यां श्वभ्यः / शुनः श्वभ्यां श्वभ्यः / शुनः शुनोः शुनाम् / शुनि शुनोः श्वसु / हे श्वन् श्वानौ हे श्वानः / एवं यूनः / यूना युवभ्यां युवभिः / मघोनः / मघोना मघवभ्यां मघवभिरित्यादयः / मघवच्छब्दस्य तु भवच्छब्दवद्रूपाणि मघवान् मघवन्तौ मघवन्तः / मघवन्तं मघवन्तौ मघवतः / मघवता मघवद्भयां मघवद्भिः / मघवते मववद्भयां मय-. वद्भयः / मघवतः मघवद्भयां मघवद्भयः / मघवतः मववतोः मघवताम् / मघवति मघवतोः मघवत्सु / हे मघवन् हे मघवन्तौ हे मघवन्तः / वैदिकस्य अर्वन्शब्दस्य तु नरहितस्य तृ इत्यन्तादेशः - Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (61) स्यात् , सिभिन्नविभक्तौ परायाम् / अर्वा अर्वन्तौ अर्वन्तः / अर्वन्तम् अर्वन्तौ अर्वतः / अर्वता अर्वद्भ्याम् अर्वद्भिः / अवते अर्वद्याम् अर्वद्भयः / अर्वतः अर्वद्भयाम् अर्वद्भ्यः / अवतः अर्वतोः अर्वताम् / अवति अर्वतोः अर्वत्सु / अनभिति किम् / अनी अनर्वाणौ अनर्वाणः इत्यादयः॥ नकारान्तः पथिन् ब्दः-पथिन् *सि इति स्थिवे / पथिन्मथिन्नुभुक्षः सौ। 1 / 4 / 76 / पथ्यादीनां नान्तानां सौ परेऽन्तस्य आकारः स्यात / पथि +आ+सि / एः।१।४।७७। . पथ्यादीनां नान्तानामिकारस्य सौ परे आकार: स्यात् / पथा +आ+सिअत्र 'समानानाम् ' इत्यादिना दीर्धे / . थो न्श् / 1 / 4 / 78 / पयिन्-मथिनः थकारस्य घुटि परे न्यू इत्यादेशः स्यात् / सेविसर्गे पन्थाः / पन्थानौ पन्थानः / पन्थानं पन्थानौ / पथिन्+शस् इति स्थिते इन् ङी-स्वरे लुक् / 1 / 4 / 79 / ... नान्तानां पथ्यादीनामिनो डीप्रत्ययेऽघुट्स्वरादौ स्यादौ च परे लुक् स्यात् / पथः / पथा पथिभ्यां पथिभिः / पथे पथिभ्यां Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (62) पथिभ्यः / पथः पथिभ्यां पथिभ्यः / पथः पथोः पथाम् / पथि पथोः पषु / हे पन्थाः हे पन्थानौ हे पन्थानः॥ एवं मन्था मन्थानौ मन्थानः / न्यानं मन्थानौ मथः / ऋमुक्षाः ऋभुक्षाणौ ऋभुक्षाणः / *मुक्षा" म् ऋमुक्षाणो ऋमुक्षः / ऋमुक्षा ऋभुक्षिभ्याम् ऋमुािः ऋभुक्षे ऋभुक्षिभ्याम् ऋमुक्षिभ्यः इत्यादयः // इन्नन्ता द "डनशब्दः- दण्डिन्+सि इन्हन्पूषार्यम्णः शि-स्योः / 1 / 4 / 87 / - इन्नन्तस्य हनादीनां च स्वरस्य शौ शेषे सौ च परे दीर्घः स्यात् / 'नि दीर्घः' इति सिद्धे नियमार्थोऽयं योगः, तेनैषामन्यस्मिन् स्यादौ परे दीर्घो न भवति / दण्डी दण्डिनौ दण्डिनः / दण्डिनं दण्डिनौ दण्डिनः। दण्डिना दण्डिभ्यां दण्डिभिः / दण्डिने दण्डिभ्यां दण्डिभ्यः / दण्डिनः दण्डिभ्यां दण्डिभ्यः। दण्डिनः दण्डिनोः दण्डिनाम् / दण्डिनि दण्डिनोः दण्डि / हे दण्डिन् हे दण्डिनौ हे दण्डिनः / एवं ब्रह्महा ब्रह्महणौ ब्रह्महणः / ब्रह्महणं ब्रह्महणौ। हनो हो नः / 2 / 1 / 112 / हन्तेन इति रूपस्य नादेशः स्यात् / ब्रह्मघ्नः / ब्रह्मना ब्रह्महभ्यां ब्रह्महभिः / ब्रह्मघ्ने ब्रह्महभ्यां ब्रह्महभ्यः / ब्रह्मघ्नः ब्रह्महभ्यां ब्रह्महभ्यः / ब्रह्मघ्नः ब्रह्मघ्नोः ब्रह्मनाम् / सप्तम्येकवचने Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (63) 'ईडौ वा' इति अकारस्य वा लोपभवनाद् ब्रह्मन्नि ब्रह्महणि ब्रह्मनोः ब्रह्महसु / हे ब्रह्महन् हे ब्रह्महणौ हे ब्रह्महणः / एवं वृत्रहन्कर्महनादीनामपि // पूषा पूषणौ पूषणः / पूषणं पूषणों 'अनोऽस्य' इत्यकारलोपे पूष्णः / पूष्णा पूषभ्यां पूषभिः / पूष्णे पूषभ्यां पूषभ्यः। पूष्णः पूषभ्यां पूषभ्यः / पूष्णः पूष्णोः पूष्णाम् / पूषणि पृष्णि पूष्णोः पूषसु / हे पूषन् हे पूषणौ हे पूषणः // एवम् अर्यमा अयमणौ अर्यमणः / अर्यमणंम् अर्यमणौ अर्यम्णः इत्यादयः।। संख्यावाची नकारान्तः पञ्चन्शब्दो नित्यं बहुवचनान्त:-'डतिष्णः' इत्यादिना जस्शसोलुंकि पञ्च / पञ्च / पञ्चभिः / पञ्चभ्यः / ‘पञ्चभ्यः / पञ्चन्+आम् संख्यानां र्णाम् / 1 / 4 / 33 / रकार-पकार-नकारान्तानां संख्यावाचिनां सम्बन्धिन आमः स्थाने नामादेशः स्यात् / 'दी? नाम्य- इत्यादिना दीघे 'नाम्नो' इत्यादिना नो लुकि पञ्चानाम् / पञ्चसु / एवं सप्तन्-नवन्-दशन् इत्यादयः / अष्टन्शब्दस्य भेदः- अष्टम्+जस् वाऽष्टन आः स्यादौ / 1 / 4 / 52 / अष्टन्शब्दस्य तदतत्सम्बन्धिनि स्यादौ परे आकारोऽन्तादेशो 'वा स्यात् / ... अष्ट और्जस्-शसोः। 1 / 4 / 53 / Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्ट इत्यष्टन्शब्दस्य कृतात्वस्य रूपम् / अष्टाशब्दस्य जसू-शसोः स्थाने औकारादेशः स्यात् / अष्टौ / आत्त्वाभावपक्षे जस्शसोलुंकि अष्ट / अष्टौ, अष्ट / अष्टाभिः, अष्टभिः / अष्टाभ्यः, अष्टभ्यः / अष्टाभ्यः, अष्टभ्यः / अष्टानाम् / अष्टासु, अष्टसु / प्रिया अष्ट यस्येति विग्रहे तु प्रियाष्टाः, पियाष्टा प्रियाष्टौ, प्रियाष्टानों प्रियाष्टः, प्रियाष्टणः / अष्टन आत्वेऽपि अष्टाशब्दसम्बन्धिनोजस्शसोरभावेन न औकारादेशः, इति जसि दीर्घविसर्गौ / शसि 'लुगातोऽनापः' इत्याकारलोपः / आत्ताभावपक्षे राजनवत्कार्यम् / प्रियाष्टा प्रियाष्ट्रणा, प्रियाष्टाभ्यां प्रियाष्टभ्याम् , प्रियाष्टाभिः प्रियाष्टभिः / प्रियाष्टे प्रियाष्टणे, प्रियाष्टाभ्यां प्रियाष्टभ्याम् , प्रियाष्टाभ्यः प्रियाष्टभ्यः / प्रियाष्टः प्रियाष्टणः, प्रियाष्टाभ्यां प्रियाष्टभ्याम्, प्रियाष्टाभ्यः प्रियाष्टभ्यः / प्रियाष्टः प्रियाष्टणः, प्रियाष्टोः प्रियाष्णोः प्रियाष्टां प्रियाष्ट्णाम् , अत्राष्ट्रनो गौणत्वात् संख्यावाचिनः सम्बन्धिन आमोऽभावाद् न नामादेशः / प्रियाष्टि प्रियाणि, प्रियाष्टोः प्रियाष्ट्णोः प्रियाष्टासु प्रियाष्टसु / हे प्रियाष्टन् हे प्रियाष्टाः, हे प्रियाष्टौ हे प्रियाष्टानौ, हे प्रियाष्टाः हे प्रियाष्टानः / / मकारान्तः सर्वादिः इदम्शब्दः-इदम्+सि इति स्थिते अयमियं पुस्त्रियोः सौ।२।१।३८ / त्यदादिसम्बन्धिनि सौ परे इदमः स्थाने पुंसि स्त्रियां च क्रमेणायमियमौ स्याताम् / अयं पुमान् / इदम् औ इति स्थिते Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (65) 'आ द्वेरः' इत्यन्त्यस्यात्त्वे ' लुगस्या-' इत्यादिना पूर्वस्याकारस्य लुकि दो मः स्यादौ / 2 / 1 / 39 / त्यदादिसम्बन्धिनि स्यादौ परे इदमो दकारस्य मकार: स्यात् / 'ऐदौत् सन्ध्यक्षः / इमौ / जस इ: / इमे / इमं इमौ इमान् / इदम्+टा इति स्थिते . .. टौस्यनः / 2 / 1 / 37 / त्यदादिसम्बन्धिनि टायामोसि च परेऽक्वर्जितस्येदमः स्थाने अनादेशः स्यात् / अनेन / अनक् / 2 / 1 / 36 / ____ त्यदादिसम्बन्धिनि व्यञ्जनादौ स्यादौ परेऽक्वर्जितस्येदमो अः स्यात् / अभेदनिर्देशः सर्वादेशार्थः / ' आद्यन्तवदेकस्मिन् / इति न्यायेन ' अत आ:-' इत्यादिना आकारे आभ्याम् / एभिः इत्यत्र ..... इदमदसोऽक्येव / 1 / 4 / 3 / / एतयोरक्येव सति भिस ऐः स्याद् नान्यथा इति नियमाद् नसादेशः / इदम् +ड़े इति स्थिते अन्त्यस्यात्त्वे सर्वादित्वात् स्म आदेशे इदमोऽकारादेशे च अस्मै आभ्याम् एभ्यः / अस्माद् भाभ्याम् एभ्यः / अस्य अनयोः एषाम् / अस्मिन् अनयोः Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (66) एषु / त्यदादीनां सम्बोधनं नेच्छन्ति / अन्वादेशे तु द्वितीयायां टायामोसि चेदम एनादेशो वक्तव्यः / एनम् एनौ एनान् / एनेन / एनयोः / मकारान्तः किम्शब्दः __किमः कस्तसादौ च / 2 / 1 / 40 / / त्यदादिसम्बन्धिनि स्यादौ तसादौ च परे किमः स्थाने क इत्यादेशः स्यात् / कः कौ के। कं को कान् / केन काभ्यां कैः / कस्मै काभ्यां केभ्यः / कस्मात काभ्यां केभ्यः / कस्य कयोः केषाम् / कस्मिन् कयोः केषु / मकारान्तः प्रशाम्शब्द: मो नो म्बोश्च / 2 / 1 / 67 / धातोर्मकारस्य नकारादेशः स्यात् पदान्ते म्वोश्च परयोः / प्रशान् प्रशामौ प्रशामः। प्रशामं प्रशामौ प्रशामः / प्रशामा प्रशान्भ्याम् प्रशान्भिः असत्त्वान्न नलोपः / प्रशामे प्रशान्भ्यां प्रशान्भ्यः / प्रशामः प्रशान्भ्यां प्रशान्भ्यः / प्रशामः प्रशामोः प्रशामाम् / प्रशामि प्रशामोः प्रशान्सु ।धकारान्त: तत्त्वबुधशब्द:'गडदबादेश्चतुर्थान्तस्यैकस्वरस्यादेश्चतुर्थः स्वोश्च प्रत्यये ' 'धुटस्तृतीयः / 'विरामे वा ' तत्त्वमुद् तत्त्वमुत् तत्त्वबुधौ तत्त्वबुधः / तत्त्वबुधं तत्त्वबुधौ तत्त्वबुधः / तत्त्वबुधा तत्त्वभुभ्यां तत्त्वभुद्भिः / तत्त्वबुधे तत्त्वभभ्यां तत्त्वभुद्भ्यः / तत्त्वबुधः तत्त्वभुद्भ्यां तत्त्वभुद्भ्यः / तत्त्वबुधः तत्त्वबुधोः तत्त्वबुधाम् / तत्त्वबुधि तत्त्वबुधोः तत्त्वमुत्सु / हे तत्त्वमुद् हे तत्त्वभुत् हे तत्त्वबुधौ हे तत्त्वबुधः / Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (65) जकारान्तः सम्राजशब्दः-क्विबन्ते राजतौ परे समो मकारस्य मकार एव नानुस्वारो भवति / सम्राज्+सि इति स्थिते सेलुकि यजसृजमृजराजभ्राजभ्रस्जवश्वपरिव्राजः शःषः।२।११८७। यजादीनां धातूनां चनोः शकारस्य च धुटि प्रत्यये परे पदान्ते च षः स्यात् / ‘धुटस्तृतीयः' 'विरामे वा' सम्राड् सम्राट् सम्राजौ सम्राजः / सम्रा सम्राजौ सम्राजः / सम्राजा सम्राड्भ्यां सम्राभिः / सम्राजे सम्राड्भ्यां सम्राड्भ्यः / सम्राजः सम्राड्भ्यां सम्राड्भ्यः / सम्राजः सम्राजोः सम्राजाम् / सम्राजः सम्राजोः सम्राट्सु सम्राड्त्सु / एवं मूलवृश्चशब्दस्य मूलवृट् मूलवृड् मूलवृश्चौ मूलवृश्चः / मूलवृड्भ्यामित्यादयः / जकारान्तो युशब्द:- युज्+सि इति स्थिते . युज्रोऽसमासे / 1 / 4 / 71 / 'युजम्पी योगे' इत्यस्यासमासे धुडन्तस्य धुटः प्राग् घुटि परे नोन्तः स्यात् / युन्ज्+सि इति स्थिते से कि जश्च लुकि . युजञ्च-क्रुञ्चो नो ङः / 2 / 1 / 71 / युजञ्च-क्रुञ्चां नकारस्य पदान्ते डकारः स्यात् ।युङ् युनौ युजः / युनं युजौ युजः / युजा / .. . चजः कगम् / 2 / 1 / 86 / . . चकारजकारयोधुटि प्रत्यये पदान्ते च कगौ स्याताम् / गुग्भ्यां युग्भिः / युजे युग्म्यां युग्भ्यः / युजः युग्भ्यां युग्भ्यः / Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युजः युनोः युजाम् / युजि युजोः युक्षु / समासे तु युज्शब्दस्य धर्मयुक् धर्मयुजौ धर्मयुनः इत्यादयः / दकारान्तो द्विपादशब्दःद्विपाद द्विपात् द्विपादौ द्विपादः / द्विपादं द्विपादौ / - यखरे पादः पदणिक्यघुटि / 2 / 1 / 102 / ____णि-क्य-घुट्-वर्ने यकारादौ स्वरादौ च परे पादः पदादेशः स्यात् / द्विपदः। द्विपदा द्विपाभ्यां द्विपाद्भिः / द्विपदे द्विपाभ्यां द्विपाभ्यः / द्विपदः द्विपाद्भ्यां द्विपाद्भ्यः। द्विपदः द्विपदो: द्विपदाम् / द्विपदि द्विपदोः द्विपात्सु / एवं सुपाद-त्रिपाद् / दकारान्तः सर्वादिस्तद्शब्दः / सौ परेऽन्त्यस्य 'आ द्वेः' इत्यकारे तः सौ सः। 2 / 1 / 42 / / आ द्वेस्त्यदादीनां शब्दानां तत्सम्बन्धिनि सौ परे तकारस्य सकारः स्यात् / सः तौ ते / तं तौ तान् / तेन ताभ्यां तैः / तस्मै ताभ्यां तेभ्यः / तस्मात् ताभ्यां तेभ्यः। तस्य तयोः तेषाम् / तस्मिन् तयोः तेषु / एवं त्यद्शब्दस्य स्यः त्यौ त्ये / त्यम् त्यो त्यान् / त्येन त्याभ्यां त्यैः। त्यस्म त्याभ्यां त्येभ्यः / त्यस्माद् त्याभ्यां त्येभ्यः / त्यस्य त्ययोः त्येषाम् / त्यस्मिन् त्ययोः त्येषु / यद्शब्दस्य- य: यौ ये / यं यौ यान् / येन याभ्यां यः / यस्मै याभ्यां येभ्यः / यस्माद् याभ्यां येभ्यः / यस्य ययोः येषाम् / यस्मिन् ययोः येषु / दकारान्तस्य एतद्शब्दस्याप्येवम् एषः एतौ एते / एतम् एतौ एतान् / एतेन एताभ्यां Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (69) एतैः / एतस्मै एताभ्याम् एतेभ्यः / एतस्माद् एताभ्याम् एतेभ्यः / एतस्य एतयोः एतेषाम् / एतस्मिन् एतयोः एतेषु / अन्वादेशे तु त्यदामेनदेतदो द्वितीया-टौस्यत्यन्ते / 2 / 1 / 33 / किञ्चित् कार्य कर्तुमुपात्तस्य कार्यान्तरं कर्तुं पुनरुपादानमन्वादेशः / स्यदादिसम्बन्धिन एतदोन्वादेशे वाच्ये द्वितीयायां टायामोसि च परे एनदित्यादेशः स्यात् / एनम् एनौ एनान् / एनेन / एनयोः / एनयोः। उद्दिष्टमेतध्ययनमयो एनदनुनानीत / सुशीलावेतौ एनौ गुरवो मानयन्ति / छकारान्तस्तत्त्वप्राच्छशब्दः-'अनुनासिके च्छ्वोः शूटू' इति च्छः शकारे 'यजसन' इत्यादिना शस्य षत्वे 'धुटस्तृतीयः ' इति तृतीये 'विरामे वा' इति वा प्रथमे तत्त्वप्राट् तत्त्वप्राड् तत्त्वप्राच्छौ तत्त्वप्राच्छः / तत्त्वप्राच्छं तत्त्वप्राच्छौ तत्त्वप्राच्छः / तत्त्वप्राच्छा तत्त्वप्राड्या तत्त्वप्राभिः। तत्त्वप्राच्छे तत्त्वप्राड्भ्यां तत्त्वप्राड्भ्यः / तत्त्वप्राच्छ: तत्त्वप्राड्भ्यां तत्त्वप्राड्भ्यः। तत्त्वप्राच्छः तत्त्वप्राच्छोः तत्त्वप्राच्छाम्। तत्त्वप्राच्छि तत्त्वप्राच्छोः तत्त्वप्रात्सु तत्त्वप्राट्सु / हे तत्त्वप्रा तत्त्वप्राच्छौ हे तत्त्वप्राच्छः। थकारान्तोऽग्निमथ्शब्दः-'धुटस्तृतीयः विरामे वा ' अग्निमद् अग्निमत् अग्निमथौ अग्निमथः / अग्निमथम् अग्निमथौ अग्निमथः / अग्निमथा अग्निमभ्याम् अग्निमभिः / अग्निमथे अग्निमद्भ्याम् अग्निमद्भ्यः / अग्निमय: अग्निमद्भ्याम् अग्निमदभ्यः। अग्निमथः अग्निमयोः अग्निमथाम्। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (70) अग्निमथि अग्निमथोः अग्निमत्सु / हे अग्निमद् अग्निमथौ अग्निमथः / एवं वारिमथादयः / चकारान्तः प्रत्यञ्चशब्द: अश्चोऽनर्चायाम् / 4 / 2 / 46 / - अनर्चायामञ्चते! लुक् स्यात् / प्रत्यच्+सि इति स्थिते अचः / 1 / 4 / 69 / .अन्चतेर्धातो(डन्तस्य तदतत्सम्बन्धिनि घुटि परे धुटः प्राग नोऽन्तः स्यात् / शेषं क्रुन्च्वत् / प्रत्यंङ् प्रत्यञ्चौ प्रत्यञ्चः / प्रत्यञ्चं प्रत्यञ्चौ / अच्च् प्राग् दीर्घश्च / 2 / 1 / 104 / लुप्तनकारस्यान्चतेः णिक्यघट्वर्जिते यकारादौ स्वरादौ प्रत्यये परेऽचः च स्यात् / पूर्वस्य च स्वरस्य दीर्घः / प्रतीचः / प्रतीचा प्रत्यग्भ्यां प्रत्यग्भिः / प्रतीचे प्रत्यग्भ्यां प्रत्यग्भ्यः। प्रतीचः प्रत्यग्भ्यां प्रत्यग्भ्यः। प्रतीचः प्रतीचोः प्रतीचाम् / प्रतीचि प्रतीचोः प्रत्यक्षु / हे प्रत्यङ् प्रत्यन्चौ प्रत्यञ्चः / पूनार्थे तु प्रत्यङ् प्रत्यचौ प्रत्यञ्चः / प्रत्यञ्चं प्रत्यञ्चौ प्रत्यञ्चः / प्रत्यच्चा प्रत्यङ्भ्यां प्रत्यभिः / प्रत्यञ्चे प्रत्यङ्भ्यां प्रत्यङ्भ्यः / प्रत्यञ्चः प्रत्यङ्भ्यां प्रत्यङ्म्यः / प्रत्यञ्चः प्रत्यञ्चोः प्रत्यञ्चाम् / प्रत्यञ्चि प्रत्यञ्चोः प्रत्यक्षु प्रत्यक्षु णोः कटावन्तौ शिटि नवा ' इति विकपेन कन्ते कृते रूपद्वयम् / हे प्रत्यङ प्रत्यञ्चौ प्रत्यञ्चः। तिरस्पूर्वपदस्याञ्चतेस्तु Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (71) तिरसस्तियति / 3 / 2 / 124 / * अकारादौ क्लीबन्तेऽञ्चतौ परे तिरस्शब्दस्य तिरि इत्यादेश: स्यात / तिर्यङ तिर्यचौ तिर्यन्चः / तिर्यचं तिर्यचौ। शसादौ खरे तु अचश्चत्वे अकारादेरञ्चतेरभावेन तिर्यादेशाभावाद् तिरश्वः। तिरश्चा तिर्यग्भ्यां तिर्यग्भिः / तिरश्चे तिर्यग्भ्यां तिर्यग्भ्यः / / तिरश्चः तिर्यग्भ्यां तिर्यग्भ्यः / तिरश्चः तिरश्वोः तिरश्चाम् / तिरश्चि तिरश्चोः तिर्यक्षु / सम्बोधनं प्रथमावत् / अस्यापि अर्चायां तु सर्वत्र तिर्या देशेन प्रत्यवद्गाणि / अमुम् अञ्चतीति विग्रहे अदस्+अच् इति स्थिते सर्वादिविष्वग्देवाड् डद्रिः कव्यञ्चौ / 3 / 2 / 122 / सर्वादिविष्वग्देवशब्देभ्यः परो डद्रिः स्यात क्विबन्तेऽञ्चतावुत्तरपदे परे / डित्त्वादन्त्यस्वरादेर्लोपे अदद्रि+अच् इति स्थिते यत्त्वे अदद्रयच्+सि इति स्थिते. ... वा द्रौ / 2 / 1 / 46 / अदसोऽद्रावन्ते सति दकारस्य मकारो वा स्यात् / अत्र द्वौ दकाराविति रूपचतुष्टयम् / मादुवर्णोऽनु / 2 / 1 / 47 / . . अदसः सम्बन्धिनो मकारात परस्य वर्णमात्रस्यासन्न उवर्णः स्यात् / अनु कार्यान्तरात् पश्चाद् / शेषं प्रत्यच्वत् साधनीयम् / Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (72) अमुमुयङ् अदमुयङ् अमुद्यङ् अयङ् / अत्र-' परतः केचिदिच्छन्ति केचिदिच्छन्ति पूर्वतः / उभयोः केचिदिच्छन्ति केचिदिच्छन्ति नोभयोः / // 1 // अमुमुयञ्चौ अमुमुयन्चः / अमुमुयञ्चम् अमुमुयञ्चौ 'अच्च् प्राग् दीर्घश्च' इति अमुमुईचा अमुमूयग्भ्याम् अमुमुयग्भिः / अमुमुईचे अमुमुयग्भ्याम् अमुमुयग्भ्यः / अमुमुईचः अमुमुयग्भ्याम् अमुमुयग्भ्यः / अमुमुईचः अमुमुईचोः अमुमुईचाम् / अमुमुईचि अमुमुईचोः अमुमुयक्षु / अदमुयञ्चौ अदमुयञ्चः / अदमुयञ्चम् अदमुयन्चौ. अदमुईचः / अदमुईचा अदमुयग्भ्याम् अदमुयग्भिः / अमुद्यन्चौ अमुद्यञ्चः / अमुद्यञ्चम् अमुद्यचौ अमुद्रीचः / अमुद्रीचा अमुद्यग्भ्याम् अमुद्यग्भिः / अदयन्चौ अदयञ्चः / अयञ्चम् अदयञ्चौ अद्रीचः / अदद्रीचा अद्याभ्याम् अदयग्भिः / अदया इत्यादीनि / उदच्शब्दस्य तु उदङ् उदञ्चौ उदश्चः / उदश्चम् उदञ्चौ / - उदचः उदीच् / 2 / 1 / 103 / उत्पूर्वादश्चतेः णिक्यबुट्वर्जिते यकारादौ .स्वरादौ च प्रत्यये परे उदीच् इत्यादेशः स्यात् / उदीचः उदीचा उदग्भ्याम् उदग्भिः / उदक्षु इत्यादीनि / सह-समः सध्रि-समि / 3 / 2 / 123 / क्विबन्तेऽश्चतौ परे सहस्य सध्रि समः समि इत्यादेशौ स्याताम् / सध्यङ् सध्यञ्चौ सध्यञ्चः / सध्यञ्चं सत्र्यञ्चौ सध्रीचः। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (73) सधीचा सध्यग्भ्यां सध्यग्भिः / सधीचे सध्यग्भ्यां सध्यग्भ्यः / सधीचः सध्रीचोः सध्रीचाम् / सधीचि सध्रीचोः सध्यक्षु / एवं सम्यङ् सम्यन्चौ सम्यञ्चः। सम्यञ्चं सम्यञ्चौ समीचः / समीचा सम्यग्भ्यां सम्यगभिरित्यादयः / तकारान्तो मरुच्छब्दः- मस्त मरुद् मरुतो मरुतः / मरुतं मरुतो मरुतः / मरुता मरुद्भ्यां मरुद्भिः / मरते मरूदयां मरुद्भयः / मरुतः मरुद्भयां मरुद्भयः / मरुतः मरुतोः मरुताम् / मरुति मरुतोः मरुत्सु / हे मरुत् मरुतो मरुतः / एवं काष्ठचित् / तकारान्तो महच्छब्दः- . ऋदुदितः / 1 / 4 / 70 / " ऋदित उदितश्च .धुडन्तस्य धुटः प्राग् घुटि परे नोऽन्तः स्यात् / / स्महतोः / 1 / 4 / 86 / .. इत्यन्तस्य महच्छब्दस्य च सम्बन्धिनः स्वरस्य शेषे घुटि शौ च परे दीर्घः स्यात् / पदस्येति लुकि महान् महान्तौ महान्तः। महान्तं महान्तौ महतः / हे महन् महान्तौ महान्तः। शेषं मरुवत्। सकारान्तः कंस्शब्द:- कन् कंसौ कंसः / कंसं कंसौ कंसः / कंसा कन्भ्यां कन्भिः / कंसे कन्भ्यां कन्भ्यः / कंसः कन्भ्यां कन्भ्यः / कंसः कंसोः कंसाम् / कंसि कंसोः कन्त्सु कन्सु / हे कन् कसौ कंसः / उदित् भवच्छब्दः अभ्वादेरखसः सौ।१।४।९०। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (74) अत्वन्तस्यासन्तस्य च भ्वादिवर्जितस्य स्वरस्य शेषे सौ परे दीघः स्यात् / भवान् भवन्तौ भवन्तः / भवन्तं भवन्तौ भवतः। भवता भवद्भयां भवद्भिः / भवते भवद्भयां भवद्भयः। भवतः भवद्भयां भवद्भयः / भवतः भवतोः भवताम् / भवति भवतोः भवत्सु / हे भवन् भवन्तौ भवन्तः। अभ्वादेरिति किम् / पिण्डं असतीति पिण्डग्रः इत्यत्र न दीर्घः। पिण्डग्रस पिण्डग्रसौ पिण्डग्रसः / पिण्डअसा पिण्डग्रोभ्यां पिण्डग्रोभिरित्यादीनि / शतृप्रत्ययान्तस्य भवच्छब्दस्य तु अत्वन्तत्वाभावाद् न दीर्घः / 'ऋदुदितः ' इति नोऽन्ते 'पदस्य ' इति संयोगान्तलोपे भवन् भवन्तौ भवन्तः / भवन्तं भवन्तौ भवतः इत्यादीनि रूपाणि / एवं पठन् पठन्तौ पठन्तः / पठन्तं पठन्तौ पठतः / पठता पठद्यां पठद्भिः / पठते पठद्भयां पठभूयः / पठतः पठद्भयां पठद्भयः / पठतः पठतोः पठताम् / पठति पठतोः पठत्सु / हे पठन् पठन्तौ पठन्तः। एवं कुर्वत्-पचत्गदत्-हरदादयः। दददित्यादौ तु द्विरुक्तानां जक्षादीनां पञ्चानां च नित्यं नोऽन्तस्य प्रतिषेधान पुंलिङ्गे नोऽन्तो न भवति / ददद् ददतौ ददतः। जक्षद् जक्षतौ जक्षतः / जाग्रत् जाग्रतो जाग्रतः / दरिद्रत दरिद्रतौ दरिद्रतः। नपुंसके तु शौ वा भवतीति ददति,ददन्ति इत्यादीनि भवन्ति / शकारान्तो विश्शब्दः-' यजसृज-' इत्यादिना पत्वे 'धुटस्तृतीयः' इति तृतीये विट् विड् विशौ विशः / विड्भ्यां विड्त्सु विट्सु / षकारान्तो नित्यबहुवचनान्तः संख्यावाची षष्शब्दः-षट् / षड् / षड़भिः / षड्म्यः / षड्भ्यः / Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (75) षण्णाम् / षड्त्सु / षट्सु / षकारान्तो दोषशब्दः... * णषमसत् परे स्यादिविधौ च / 2 / 1 / 60 / - इतः परकार्ये कर्तव्ये पूर्वस्मिश्च स्यादिविधौ च विधातव्ये णकारषकारावसदिव स्याताम् / अत्र षत्वस्य रुत्वरूपे परकायें:सत्त्वात् ' सो रुः / इति रुत्वे विसर्गे च दोः दोषौ दोषः / दोष दोषौ दोषः / दोष्+टा इति स्थिते दन्तपादनासिकाहृदयामृग्यूषोदकदोर्यकृच्छकृतोदत्पन्नसहृदसन्यूषन्नुदन्दोषन्यकन्शकन वा।२।१।१०१॥ दन्तादीनां शसादौ स्यादौ परे दत् इत्यादय आदेशा वा स्युः। दोषन्+टा अनोऽकारस्य लुकि णत्वे च दोष्णा पक्षे दोषा, दोषभ्यां दोाम्, दोषभिः दोभिः / दोष्णे दोषे, दोषभ्यां दोाम्, दोषभ्यः दोर्यः / दोष्णः दोषः, दोषभ्यां दोाम, दोषभ्यः दोभ्यः / दोष्णः दोषः, दोष्णोः दोषोः, दोष्णां दोषाम् / दोष्णि दोषणि दोषि, दोष्णोः दोषोः, दोषसु दोःषु दोष्षु / अत्र नाम्यन्तस्येत्यादिना सुपः षत्वम्, 'शषसे शषसं वा ' इति रो विकल्पेन षत्वे पक्षे विसर्गे रूपद्वयम् / आदेशाभावे एकमिति रूपत्रयम् / सजुष्शब्दः सजुषः।२।१। 73 / ... सजुषः पदान्ते रुः स्यात् / षत्वस्य कृत्त्वाभावेन 'रो इत्यप्राप्तौ योगारम्मः। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (76) पदान्ते / 2 / 1 / 64 / पदान्ते वर्तमानयोर्खादे रकारवकारयोः परयोस्तस्यैव म्वादेर्नामिनो दीर्घः स्यात् / सजूः सजुषौ सजुषः / सजुषं सजुषौ सजुषः। सजुषा सजू• सजूभिः / सजुषे सजूा सजूयः / -सजुषः सजुषोः सजुषाम् / सजुषि सजुषोः सजुःषु सजुष्षु / सकारान्तः पुंस्शब्द: पुंसोः पुमन्स् / 1 / 4 / 73 / .. पुंस् इत्युदितस्तदतत्सम्बन्धिनि घुटि परे पुमन्स् इत्यादेशः स्यात् / 'स्महतोः' इति दीघे पुमान् पुमांसौ पुंमांसः / पुमांस पुमांसौ पुंसः। पुंसा पुम्भ्यां पुम्भिः पुंसे पुम्भ्यां पुम्भ्यः।पुंसः पुम्भ्यां पुम्भ्यः / पुंसः पुंसोः पुंसाम् / पुंसि पुंसोः पुंसु / हे पुमन् पुमांसो पुमांसः। सकारान्तो विद्वस्शब्दः-उदित्त्वाद् नोन्ते विद्वान् विद्वांसो विद्वांसः / विद्वांसं विद्वांसौ / विद्वस्+शस् इति स्थिते क्वसुष् मतौ च / 2 / 1 / 105 / णिक्यघुट्वर्जिते यकारादौ स्वरादौ मतौ च प्रत्यये परे क्वसोः उष् स्यात् / विदुषः। विदुषा 'ख्रस्-ध्वंस्-' इत्यादिना दत्त्वे विद्वद्भ्यां विद्वद्भिः / विदुषे विद्वद्भ्यां विद्वद्भ्यः / विदुषः विद्वद्भ्यां विद्वद्भ्यः / विदुषः विदुषोः विदुषाम् / विदुषि विदुषोः विद्वत्सु / हे विद्वन् विद्वांसौ विद्वांसः / एवं तस्थिवान् तस्थिवांसौ तस्थिवांसः / तस्थिवांसं तस्थिवांसौ तस्थुषः अत्र निमि Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (77.) त्ताभावे नैमित्तिकस्याप्यभावः' इति न्यायाद् क्वनिवृत्तौ तन्निमित्तस्थेटोऽपि निवृत्तिः / तस्थुषा तस्थिवद्भ्यां तस्थिवद्भिरित्यादीनि ।शुश्रुवसूशब्दस्य शसादौ स्वरे उषादेशे सति 'धातोरिवर्णो-' इत्यादिना उवादेश इति विशेषः / शुश्रुवान् शुश्रुवांसौ शुश्रुवांसः। शुश्रुवांसं शुश्रुवांसौ शुश्रुवुषः / शुश्रुवुषा शुश्रुवद्भ्यां शुश्रुवद्भिः शुश्रुवुषे शुश्रुवद्भ्यां शुश्रुवद्भ्यः / शुश्रुवुषः शुश्रुवद्भ्यां शुश्रवद्भ्यः / शुश्रुवुषः शुश्रुषुषोः शुश्रुवुषाम् / शुश्रुवुषि शुश्रुषुषोः शुश्रुवत्सु / एवं पेचिवान् पेचिवांसौ पेचिबांसः / पेचिवांस पेचिवांसौ पेचुपः / पेचुषा पेचिवद्भ्यां पेचिवद्भिः / पेचुषे पेचिवद्भ्यां पेचिवद्भ्यः / पेचुषः पेचिवद्भ्यां पेचिवद्भ्यः / पेचुषः पेचुषोः पेचुषाम् / पेचुषि पेषुषोः पेचिवत्सु / जग्मिवान् जग्मिवांसौ जग्मिवांसः / जग्मिवांस जग्मिवांसौ जग्मुषः / जग्मुषा जग्मिवद्भ्यां जग्मिवद्भिः / जग्मुषे जग्मिवद्भ्यां जग्मिवद्भ्यः / नग्मुषः जग्मिवद्भ्यां जग्मिवद्भ्यः / जग्मुषः जग्मुषोः जग्मुपाम् / जग्मुषि जग्मुषोः जग्मिवत्सु / हे जग्मिवन् जग्मिवांसों जग्मिवांसः / सकारान्तश्चन्द्रमस्शब्दः-अभ्वादेरिति दीर्घ चन्द्रमाः चन्द्रमसौ चन्द्रमसः। चन्द्रमसं चन्द्रमसौ चन्द्रमसः / चन्द्रमसा चन्द्रमोभ्यां चन्द्रमोभिः / चन्द्रमसे चन्द्रमोम्यां' चन्द्रमोभ्यः / चन्द्रमसः चन्द्रमोभ्यां चन्द्रमोभ्यः / चन्द्रमसः चन्द्रमसोः चन्द्रमसाम् / चन्द्रमसि चन्द्रमसोः चन्द्रमस्सु चन्द्रमःसु / हे चन्द्रमः चन्द्रमसौ चन्द्रमसः / एवं सुवचस्-दुर्वचस्-सुवयसादयः। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उशनसः सौ विशेषः 'ऋदुशन:-' इत्यादिना से डित्त्वादन्त्यस्वरादेर्लोपे उशना उशनसौ उशनसः / सम्बोधने - वोशनसो नश्चामन्त्र्ये सौ / 1 / 4 / 80 / - आमन्त्र्यार्थे वर्तमानस्योशनसः सौ परे नकारो वा स्यात्, छुक् च वा स्यात् / हे उशनन् लुकि हे उशन उभयाभावे हे उशनः उशनसौ उशनसः / शेषं चन्द्रमस्वद् / पुरुदंशस्-अनेहस्शब्दयोः उशनस्शब्दवत् / सम्बोधनैकवचने चन्द्रमस्शब्दवत् / पुरुदंशा पुरुदंशसौ पुरुदंशसः / हे पुरुदंशः हे पुरुदंशसौ हे पुरुदंशसः / अनेहा अनेहसौ अनेहसः। हे अनेहः हे अनेहसौ हे अनेहसः इत्यादीनि / सन्तोऽदस्शब्दः-अदस्+सि इति स्थिते ___ अदसो दः सेस्तु डौ / 2 / 1 / 43 / त्यदादिसम्बन्धिनि सौ परेऽदसो दकारस्य सकारः स्यात् , सेस्तु डौ स्यात् / असौ / सर्वत्र स्यादावत्त्वे कृते अद+औ इति स्थिते ___ मोऽवर्णस्य / 2 / 1 / 45 / . , अवर्णान्तस्य त्यदादेरदसो दकारस्य मकारः स्यात् / 'मादुवर्णोऽनु' इति एकमात्रिकस्य स्थाने आसन्न एकमात्रिको द्विमात्रिकस्य स्थाने च द्विमात्रिक उकारः। अमू / अद+जस् इति स्थिते जस इत्वे एकारादेशे च बहुवेरीः / 2 / 1 / 49 / / Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (79) बहुष्वर्थेषु वर्तमानाददसो मकारात परस्यैकारस्य ईकारः स्यात्। अमी / अमुम् अमू अमून् / अद+टा इति स्थिते इनादेशे प्राप्ते प्रागिनात् / 2 / 1 / 48 / अदसो मकारात् परस्य वर्णमात्रस्य स्थाने इनादेशात् प्राग् उ इत्यादेशः स्यात् / पश्चाद् 'टः पुंसि ना ' इति नादेशे अमुना अमूभ्याम् अमीभिः / अमुष्मै अमूभ्याम् अमीभ्यः। अमुश्मात् अमूभ्याम् अमीभ्यः / अमुष्य अमुयोः अमीषाम् / अमुष्मिन् अमुयोः अमीषु / अक्प्रत्ययान्तस्य तु सौ. असुको वाऽकि / 2 / 1 / 44 / त्यदादीनामदसः ‘सौ परे असुक इति वा निपात्यते असुकः असको अमुको अमुके। अमुकम् अमुकौ अमुकान् / अमुकेन अमुकाभ्याम् अमुकैरित्यादीनि सर्ववद्रूपाणि / - इति व्यञ्जनान्तपुंलिङ्गप्रकरणं समाप्तम् / Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (80) अथ व्यञ्जनान्तस्त्रीलिङ्गप्रकरणम् / हकारान्तः स्त्रीलिङ्ग उपानच्छब्दः . नहाहोर्धतौ / 2 / 1 / 85 / ___ नहेर्ब्रस्थानीयस्याहरूपादेशस्य च. धातोः सम्बन्धिनो हकारस्य घुटि प्रत्यये पदान्ते च यथासंख्यं धकार-तकारादेशौ स्याताम् / उपानद् उपानत् उपानही उपानहः / उपानहम् उपानही उपानहः / मानहा उपानद्भयाम् उपानद्भिः / उपानहे उपानद्याम् उपानद्यः / उपानहः उपानद्याम् उपानद्भयः। उपानहः उपानहोः उपानहाम् / उपानहि उपानहोः उपानत्सु / सम्बोधनं प्रथमावत् / बकारान्तो दिवशब्दः 'दिव औः सौ / 2 / 1 / 117 / दिवोऽन्तस्य स्थाने सौ परे औरित्यादेशः स्यात् / यत्वे घोः दिवौ दिवः / दिवं दिवौ दिवः / दिवा / उः पदान्तेऽनूत् / 2 / 1 / 118 / पदान्ते वर्तमानस्य दिवोऽन्त्यस्य उ इत्यादेशः स्यात्, स चोकारो दीर्घो न स्यात / युभ्यां द्युभिः / दिवे द्युभ्यां युभ्यः / दिवः धुभ्यां धुभ्यः / दिवः दिवोः दिवाम् / दिवि दिवोः धुषु / है द्यौः दिवौ दिवः / एवं सुदिव्-प्रियदिव-प्रभृतयः / रेफान्तो नित्यं बहुवचनान्तः स्त्रीलिङ्गश्चतुर्शब्दः Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 981). त्रि-चतुरस्तिस-चतम स्यादौ / 2 / 1 / 1 / / स्त्रियां वर्तमानयोः त्रि-चतुरोः स्थाने तिसृ चतसृ इत्यादेशो स्याताम्। तत्रस्थः ऋकारः ऋवद् भवतीति न अरादेशः। चतस्रः। चतस्रः / चतसृभिः / चतसृभ्यः / चतसृभ्यः / चतसृणाम् / चतसृषु / एवं त्रिशब्दस्यापि तिस्त्रः / तिस्रः / तिसृभिः / तिसृभ्यः। तिसृणाम् / तिसृषु / स्त्रियामिति त्रिचतुरो:विशेषणत्वेन प्रियास्त्रयोः यस्या इत्यत्र समुदायस्य स्त्रीत्वेऽपि त्रिशब्दस्य पुंस्त्वाद् नादेशः, तत्र प्रियत्रिः प्रियत्री प्रियत्रयः / प्रियत्रिं प्रियत्री प्रियत्रीः / प्रियच्या प्रियत्रिभ्यां . प्रियत्रिभिः / प्रियव्यै प्रियत्रये प्रियत्रिभ्यां प्रियत्रिभ्यः / प्रियत्र्याः प्रियः प्रियत्रिभ्यां प्रियत्रिभ्यः / प्रियन्याः प्रियोः प्रियव्योः प्रियत्रीणाम् / प्रियव्यां प्रियत्रौ प्रियव्योः प्रियत्रिषु इति मतिवद्रूपाणि / यदा च प्रियास्तिस्रो यस्येति विग्रहावस्थायां समुदायस्य पुंस्त्वेऽपि त्रिशब्दस्य स्त्रीत्वाद्भवत्येवादेशः / प्रियतिसा प्रियतिस्रौ प्रियतिस्रः। प्रियतित्रं प्रियतिस्रौ प्रियतिस्रः / प्रियतिस्रा प्रियतिसृभ्यां प्रियतिसृभिः / प्रियतिने प्रियतिसभ्यां प्रियतिसृभ्यः / प्रियतिस्रः प्रियतिसृभ्यां प्रियतिसृभ्यः। प्रियतिस्रः प्रियतिस्रोः प्रियतिसृणाम्। प्रियतिस्त्रि प्रियतिस्रोः प्रियतिसृषु / प्रियास्तिस्रो यस्य त दिति क्लीवे तु-प्रियतिस प्रियत्रि, प्रियतिसृणी प्रियतिसृणि। द्वितीयायामप्येवम् / सम्बोधने प्रियतिसः प्रियत्रि, प्रियतिसृणी प्रियतिसृणिः Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टादौ स्वरे विकल्पेन पुंवद्भावभवनाद् प्रियतिसृणां उभयत्रापि सदृशम् / प्रियतिसृभ्यां प्रियतिसृभिः / प्रियतिस्त्रे प्रियतिसृणे प्रियतिसभ्यां प्रियतिसभ्यः / प्रियतिस्त्रः प्रियतिसृणः प्रियतिसृभ्यां प्रियतिसृभ्यः। प्रियतिस्रः प्रियतिसृणः प्रियतिस्रोः प्रियतिसृणोः प्रियतिसृणाम् / प्रियतिनि प्रियतिसृणि प्रियतिस्रोः प्रियतिसणोः प्रियतिसृषु / एवं प्रियचतुर्शब्दस्यापि / गृ कृपू इत्यादीनां धातूनां क्विपि इर् - उरादेशे गिर किरं पुर् इत्यादिशब्दानां स्वादिधातुत्वात् पदान्ते ' इति दीघे गी गिरौ गिरः / गिरं गिरौ गिरः / गिरा गीयों गीर्भिः / गिरे गीर्यो गीर्यः / गिरः गीया गीर्यः / गिरः गिरोः गिराम् / गिरि गिरोः गीर्ष / एवं कीः किरौ किरः। 'पू: पुरौ पुरः / धूः धुरौ धुरः इत्यादीनि / धकारान्तः समिध शब्दः- तृतीये वा प्रथमे च समित् 'समिद् , समिधौ समिधः / समिधं समिधौ समिधः / समिधा समिद्भयां समिद्भिः। समिधे समिद्भयां समिद्भयः / समिधः समिद्भयां समिद्भयः। समिधः समिधोः समिधाम् / समिधि समिधोः समित्सु / हे समित् समिधौ समिधः। भकारान्तः ककुभशब्दः- ककुप् ककुब् ककुभौ ककुभः / ककुभं ककुभौ ककुभः / ककुभा ककुब्भ्यां ककुभिः / ककुभे ककृब्भ्यां ककुब्भ्यः / ककुभः ककुब्भ्यां ककुब्भ्यः। ककुभः ककुभोः ककुभाम् ! ककुभि ककुभोः ककुप्सु / हे ककुप् ककुब ककुभौ ककुभः / दकारान्ताः त्यद्-तद्-यद्-एतदशब्दाः, तेषाम् 'आ देटः , इत्यत्त्वे 'लास्येत्यादिना अकारलोपे / 'आत् ' इति स्त्रियामापि Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'दीर्घख्या'इति से कि स्या त्ये स्याः / त्यां त्ये त्याः। त्यया स्याभ्यां त्याभिः / त्यस्यै त्याभ्यां स्याभ्यः / त्यस्याः स्याभ्यां त्याभ्यः / त्यस्याः त्ययोः त्यासाम् / त्यस्यां त्ययोः त्यासु / एवं सा ते ताः / या ये याः / एषा एते एताः / 'एताम् एते एताः / अन्वादेशे एनाम् एने एनाः / एनया / एनयोः / एतया एताभ्यां एताभिः / शेष स्यद्वत् / किमशब्दस्य तु कादेशे का के काः / कां के काः / शेषं सर्वावत् / मकारान्त इदम्शब्द:- 'अयभियं पुस्त्रियोः सौ ' इति इयमादेशे इयं इमे इमाः / इमाम् इमे इमाः / अन्वादेशे एनाम् एने एनाः / अनया एनया आभ्याम् आभिः / अस्यै आभ्याम् आभ्यः / अस्याः आभ्याम् आभ्यः / अस्याः अनयोः एनयोः आसाम् / अस्याम् अनयोः एनयोः आसु / चकारान्तस्त्वचशब्दः- 'चजः कगम् / इति कत्वे त्वक् त्वम् त्वचौ त्वचः / त्वचं त्वचौ त्वचः / त्वचा त्वग्भ्यां त्वग्भिः / त्वचे त्वग्भ्यां त्वग्भ्यः / इत्यादीनि / एवं ऋच् / सृजशब्दस्य सृट् सृड् सुजौ सृजः / सृजं सृजौ सृजः / सृजा सृड्भ्यां सृड्भिरित्यादीनि / पकारान्तो नित्यं बहुवचनान्तः अपशब्द: अपः।१।४।८८।। अपशब्दस्थस्य स्वरस्य दीर्घः स्यात् शेषे घुटि परे / आपः। अपः / अद्भिः / अद्भ्यः / अदभ्यः / अपाम् / अप्सु / शोभना Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (84) आपो यस्यासौ स्वाप स्वापो स्वापः / स्वापं स्वापौ स्वपः / स्वपा स्वद्भयाम् / अत्र ___ अपोऽद् भे।२।१।४। . अप्शब्दस्य तदतत्सम्बन्धिनि भादौ स्यादौ परे अद् इत्यादेशः स्यात् / स्वद्भिः / स्वपे स्वद्भयां स्वद्भ्यः / स्वपः स्वद्भ्यां स्वद्भयः / स्वपः स्वपोः स्वपाम् / स्वपि स्वपोः स्वप्सु / हे स्वप् स्वापौ स्वापः / शकारान्तो दिशशब्दः- दिश+सि इति स्थिते ऋत्विदिश्श्स्पृ शस्रज्दधृषुष्णिहो गः / 2 / 1 / 19 / ' एषामन्तस्य पदान्ते गः स्यात् / सेलकि दिक् दिग् दिशौ दिशः / दिशं दिशौ दिशः / दिशा दिग्म्यां दिग्भिः / दिशे दिग्भ्यां दिग्भ्यः / दिशः दिग्भ्यां दिग्भ्यः / दिश: दिशोः दिशाम् / दिशि दिशोः दिक्षु / हे दिक् दिग् दिशौ दिशः / एवं हक् दृग् दृशौ दृशः। ऋस्विक् ग् ऋत्विनौ ऋत्विजः। स्मृक् स्मृग् स्पृशौ स्पृशः / स्त्रक् स्नग् स्त्रजौ स्रजः / दधृग् दधृक् दधृषौ दधृषः। उष्णिक ,ग् उष्णिहौ उष्णिहः इत्यादीनि। षकारान्तः त्विष्शब्दःतृतीये वा प्रथमे च त्विट् विड् विषौ त्विषः / त्विषं त्विषौ स्विषः / त्विषा विड्म्यां विभिः / त्विषे विड्भ्यां विड्म्यः / विषः विड्भ्यां स्विड्भ्यः / त्विषः त्विषोः त्विषाम् / विषि त्विषोः त्विट्सु त्वित्स / हे विट् स्विड् विौं त्विषः / पका Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रान्त आशिष्शब्दः- षत्वस्यासिद्धत्वात् रुत्वे ' पदान्ते' इति दीर्घ च आशीः आशिषौ आशिषः / आशिषम् आशिषौ आशिषः / आशिषा आशीर्ष्याम् आशीभिः / आशिषे आशीाम् आशीर्यः / आशिषः आशीर्थ्याम् आशीर्थ्यः / आशिषः आशिषोः आशिषाम् / आशिषि आशिषोः आशी:षु आशिष्षु / सकारान्तः स्त्रीलिङ्गः अदस्शब्दः- सौ तु पुंलिङ्गवद् असौ द्विवचनादौ -- आ दूरः, 'लुगस्यादेत्यपदे ' ' आत् ' 'समानानां तेन दीर्घः' पश्चाद् विभक्तिकार्यम् अमू अमूः / अमुम् अमू अमूः / अमुया अमूभ्याम् अमूभिः / अमुष्य अमूम्याम् अमूभ्यः / अमुष्याः अमूभ्याम् अमूभ्यः। अमुष्याः अमुयोः अमूषाम् / अमुण्याम् अमुयोः अमूषु / / .... इति व्यञ्जनान्तस्त्रीलिङ्गप्रकरणं समाप्तम् / Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) अथ व्यञ्जनान्ता नपुंसकलिङ्गाः। रकारान्तो वाशब्दः- वाः वारी वारि 'जस्-शसोः शिः / पुनरप्येवम् / वारा वार्यों वाभिः / वारे वार्यों वार्यः / वारः वाया वार्यः / वारः वारोः वाराम् / वारि वारोः वार्षु अत्र रुसम्बन्धिनो रेफस्याभावाद् विसर्गाभावः / हे वाः वारी वारि। नित्यबहुवचनान्तः चतुशब्द:- चत्वारि / चत्वारि / चतुर्भिः। चतुर्यः / चतुर्म्यः / चतुर्णाम् / चतुर्ष नकारान्तोऽहनशब्दः- स्यमोलुपि ‘रो लुप्यरि' इति अन्तस्य 'रकारादेशे तस्य च विसगें अहः / / ईडौ वा ' अहनी अहनी, अहानि / पुनरप्येवम् / ' अनोऽस्य ' इत्यकारलोपे अह्ना अहोम्याम् अहोभिः। अहने अहोभ्याम् अहोभ्यः। अह्नः अहोभ्याम् अहोभ्यः / अह्नः अह्नोःअनाम्। अहनि अनि अनोः अहःसु अहस्सु / हे अहः हे अह्नी अहनी हे अहानि / नकारान्तो नामन्शब्द:- नाम नामनी, नाम्नी नामानि / नाम नाम्नी, नामनी नामानि / नाम्ना नामभ्यां नामभिः। नाम्ने नामभ्यां नामभ्यः / नाम्नः नामभ्यां नामभ्यः / नाम्नः नाम्नोः नाम्नाम् / नाम्नि, नामनि नाम्नोः नामसु / नाम्नो नकारस्य क्लीबे सम्बोधने वा लुग् इति हे नामन् हे नाम, हे नाम्नी हे नामनी, हे नामानि / ब्रह्मन्-चर्मन्-कर्मन्-प्रभृतीनां 'न वमन्तसंयोगात्' इति निषेधाद् नानोऽकारस्य लुगिति ब्रह्म ब्रह्मणी ब्रह्माणि। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (17) ब्रह्म ब्रह्मणी ब्रह्माणि / कर्म कर्मणी कर्माणि / इत्यादीनि / / व्योमनशब्दस्य तु नामन्वत् / त्यदादीनां तु स्यमोलपि सेरमावाद् ‘आ द्वेरः / इत्यत्त्वं न 'विरामे वा ' त्यद् त्यत्, द्विवचनादौ अत्त्वे स्ये त्यानि पुनरप्येवम् / एवं तत् ते तानि / यद् ये यानि / एतद् एते एतानि / किं के कानि / इदम् इमे इमानि / इदम् इमे इमानि / शेषं पुंलिङ्गवत् / चकारान्तः प्रत्यशब्द:प्रत्यक् प्रत्यग्, ' अच्च् प्राग' इत्यादिनाऽचश्चत्त्वे पूर्वस्य च दीधे प्रतीची / शौ तु 'धुटां प्राग् / इति नोऽन्तादेशे ' तवर्गस्य' इत्यादिना नकारस्य प्रकारे प्रत्यश्चि / प्रत्यग् प्रतीची प्रत्यश्चि / पूजायां तु प्रत्यङ् प्रत्यश्ची प्रत्यश्चि / शेषं पुंवत् / जगद् जगत् अगती जगन्ति / पुनरप्येवम् / महत महद् महती महान्ति / पयः पयसी पयांसि 'शिड्हे ' इत्यादिनाऽनुस्वारः / वचः वचसी वचांसि / यशः यशसी यशांसि / तेनः तेजसी तेजांसि / तेजोभ्यां तेनोभिरित्यादीनि। सकारान्तोऽदसशब्दः- अदः। द्विवचनादौ 'आ ढेरः ' इत्यत्त्वे 'मोऽवर्णस्य ! इंति दो मत्त्वे 'मादुवर्णोऽनु' इत्युवर्णे अमू / 'जस्-शसोः शिः / इति शौ कृते ' स्वराच्छौ, इति नान्तादेशे 'नि दीर्घः / इति दीर्थे ' मादुवर्णोऽनु / इत्युवर्णे अमनि / पुनरप्येवम् / शेषं पुंलिङ्गवत् / इति व्यञ्जनान्तनपुंसकलिङ्गप्रकरणं समाप्तम् / Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9) अथ युष्मदस्मदोः प्रक्रिया। . युष्मदस्मदोस्त्रिषु लिङ्गेषु समानानि रूपाणि, अलिङगत्वात्। युष्मद्+सि इति स्थिते त्वमहं सिना प्राक् चाकः / 2 / 1 / 12 / . युष्मदस्मदोस्तदतत्सम्बन्धिना सिना सह क्रमेण त्वम् अहम् 'इत्यादेशौ स्याताम् / तौ चाकः प्रसङ्गेऽकः प्रागेव स्याताम् / त्वम् अहम् / औप्रत्यये ____ मन्तस्य युवावौ द्वयोः / 2 / 1 / 10 / द्वित्वविशिष्टेऽर्थे वर्तमानयोयुष्मदस्मदोर्मकारावसानस्यावयवस्य तदतत्सम्बन्धिनि स्वरादौ स्यादौ परे युव् आव् इत्येतावादेशौ क्रमेण स्याताम् / युव+अद्+औ, आव+अद्+औ 'लुगस्य / इत्यादिना पूर्वस्याकारस्य लुकि युवद्+औ, आवंद्+औ इति स्थिते ___ अमौ मः।२।१।१६। : - युष्मदस्मद्भयां परयोः तदतत्सम्बन्धिनोः अम् औ इत्येतयोः स्थाने म् इति व्यन्जनमात्रादेशः स्यात् / युष्मदस्मदोः / 2 / 1 / 6 / युष्मदस्मदोस्तदतत्सम्बन्धिनि व्यञ्जनादौ परे आकारोऽन्तादेशः स्यात् / दीर्चे युवाम् / आवाम् / Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यूयं वयं जसा / 2 / 1 / 13 / * युष्मदस्मदोस्तदतत्सम्बन्धिना जसा सह यूयं वयम इत्यादेशों क्रमेण स्याताम् / यूयम् / वयम् / अम्प्रत्यये परे. त्व-मौ प्रत्ययोत्तरपदे चैकस्मिन् / 2 / 1 / 11 / एकत्वविशिष्टार्थे वर्तमानयोयुष्मदस्मदोर्मान्तावयवस्य तदतसम्बन्धिनि स्यादौ परे प्रत्ययोत्तरपदयोश्च परयोः क्रमात् त्व म इत्येतौ सस्वरावादेशौ स्याताम् / व+अद्+अम् / म+अद्+अम् इति स्थितेऽकारस्य लुकि अमो मादेशेऽन्तस्य चाऽऽत्त्वे त्वाम् माम् / युवाम् / आवाम् / शसो नः / 2 / 1 / 17 / / - युष्मदस्मद्भयां परस्य तदतत्सम्बन्धिनः शसः स्थाने न इत्यादेशः स्यात् / युष्मदस्मदोः / इत्यात्त्वे युष्मान् / अस्मान् / टाङ्योसि यः / 2 / 1 / 7 / .. युष्मदस्मदोस्तदतत्सम्बन्धिषु टा ङि ओस् इत्येतेषु परेषु यका- ' रोऽन्तादेशः स्यात् / दकारस्य यकारे शेषं पूर्ववत् त्वया मया / म्यामि युवावादेशेऽन्तस्य आत्त्वे युवाभ्याम् / आवाभ्याम् / युष्माभिः / अस्माभिः / तुभ्यं मह्यं ड्या।२।१।१४।। .. युष्मदस्मदोः स्वान्यसम्बन्धिना चतुर्येकवचनेन प्रत्ययेन Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9.) सह तुभ्यं मह्यम् इत्यादेशौ क्रमेण स्याताम् / तुभ्यम् / मह्यम् / युवाम्याम् / आवाभ्याम् / अभ्यम् भ्यसः / 2 / 1 / 18 / .. युष्मदस्मदोः परस्य स्वान्यसम्बन्धिनः चतुर्थीबहुवचनस्य म्यसोऽभ्यम् आदेशः स्यात् / शेषे लुक् / 2 / 1 / 8 // - यस्मिन् प्रत्यये परे युष्मदस्मदोरात्त्वयत्त्वादिकार्यमुक्तं ततोsन्यः शेषः / तस्मिन् शेषे परे तयोरन्तस्य लुक् स्यात् / युष्मभ्यम् / अस्मभ्यम् / उसेश्चात् / 2 / 1 / 19 / युष्मदस्मद्भयां परस्य स्वान्यसम्बन्धिनो सेस्तत्सहचरितपरुचमीबहुवचनस्य भ्यसश्च स्थाने अद् इत्यादेशः स्यात / अकारो व्यन्जनादित्वनिवृत्यर्थः / त्व-मादेशे अकारलुकि शेषे च लुकि पुनः अकारलकि त्वत् / मत्। युवाभ्याम् / आवाभ्याम् / युष्मत् / अस्मत / तव मम डसा / 2 / 1 / 15 / युष्मदस्मदोस्तदतत्सम्बन्धिना ङसा सह क्रमेण तव ममादेशौ स्याताम् / अकः प्राग् / तव / मम / ओसि. युवावादेशेऽन्त्यस्य 'च यस्वे युवयोः / आवयोः। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (19) आम आकम् / 2 / 1 / 20 / युष्मदस्मद्भयां परस्य स्वान्यसम्बन्धिन आमः स्थाने आकम् आदेशः स्यात् / 'शेषे लुक्' इति दलोपे युष्माकम् / अस्माकम् / त्वयि / मयि / युवयोः। आवयोः। युष्मासु / अस्मासु / अथानयोर्गौणत्वे रूपाणि निरूप्यन्ते- त्वां मां वाऽतिक्रान्तः इति विग्रहे युष्मदस्मदोरेकत्वेऽथे वर्तमानत्वेन सर्वत्र स्यादौ त्व-मादेशभवनात् समासे अतिस्वद् अतिमद् इत्येवंरूपौ' शब्दौ ज्ञातव्यौ, ततोऽग्रे स्यादयः / अतित्वच्छब्दस्य रूपाणि- अतित्वम् अतित्वाम् अतियूयम् / अतित्वाम् 2 अतित्वान् / अतित्वया अतित्वाभ्याम् अतित्वाभिः / अतितुभ्यम् अतित्वाभ्याम् अतित्वभ्यम् / अतिस्वद् अतित्वाभ्याम् अतित्वत् / अतितव अतित्वयोः अतित्वाकम् अतित्वयि अतित्वयोः अतित्वासु / अतिमच्छब्दस्य-अत्यहम् अतिमाम् अतिवयम् / अतिमाम् अतिमाम् अतिमान् / अतिमया अतिमाभ्याम् अतिमाभिः / अतिमह्यम् अंतिमाभ्याम् अतिमभ्यम् / अतिमद् अतिमाभ्याम् अतिमत् / अतिमम अतिमयोः अतिमाकम् / अतिमयि अतिमयोः अतिमासु / युवामावां वाऽतिक्रान्त इति विग्रहे सर्वत्र युवावादेशभवनाद् अतियुवद्-अत्यावद्-शब्दौ बोधव्यौ / अतियुक्दशब्दस्य रूपाणि- अतित्वम् अतियुवाम अतियूयम् / अतियुवाम् अतियुवाम् अतियुवान् / अतियुवया अतियुवाभ्याम् अतियुवाभिः / अतितुभ्यम् अतियुवाभ्याम् अतियुवम्यम्। अतियुवद् अतियुवाभ्याम अतियुवद्। अतितव अतियुवयोः Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (92) अतियुवाकम् / अतियुवयि अतियुवयोः अतियुवासु / अत्यावच्छब्दरूपाणि- अत्यहम् अत्यावाम् अतिवयम् / अत्यावाम् अत्यावाम् अत्यावान् / अत्यावया अत्यावाभ्याम् अत्यावाभिः / अतिमह्यम् अत्यावाभ्याम् अत्यावभ्यम् / अत्यावद् अत्यावाभ्याम् अत्यावत् / अतिमम अत्यावयोः अत्यावाकम् / अत्यावयि अत्यावयोः अत्यावासु / युष्मानस्मान् वाऽतिक्रान्त इति विग्रहे युष्मदस्मदोर्बहुत्वे वर्तमानत्वात् समासे त्व-म युवावादेशा न भवन्तीति. अतियुष्मद्-अत्यस्मद्-शब्दो, ततोऽग्रे विभक्तयः / अतियुष्मच्छब्दरूपाणि- अतित्वम् अतियुष्माम् अतियूयम् / अतियुष्माम् अतियुष्माम् अतियुष्मान् / अतियुष्मया अतियुष्माभ्याम् अतियुष्माभिः / अतितुभ्यम् अतियुष्माभ्याम् अतियष्मभ्यम् / अतियुष्मद् अतियुष्माभ्याम् अतियुष्मत् / अतितव अतियुष्मयोः अतियुष्माकम् / अतियुष्मयि अतियुष्मयोः अतियुष्मासु। अत्यस्मच्छब्दस्य-अत्यहम् अत्यस्माम् अतिवयम् / अत्यस्माम् अत्यस्माम् अत्यस्मान् / अत्यस्मया अत्यस्माभ्याम् अत्यस्माभिः / अतिमह्यम् अत्यस्माभ्याम् अत्यस्मभ्यम्। अत्यस्मद् अत्यस्माभ्याम् अत्यस्मत् / अतिमम अत्यस्मयोः अत्यस्माकम् / अत्यस्मयि अत्यस्मयोः अत्यस्मासुः / तथा चोक्तं पाणिनीये समस्यमाने द्वयेकत्व-वाचिनी युष्मदस्मदी। समासार्थोऽन्यसङ्ख्यश्चेद् युवावौ त्वन्मदावपि // 1 // Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (93) सु-जस्-डे-ङस्सु परत आदेशाः स्युः सदैवते / त्वाही यूय-वयौ तुभ्यं मह्यं तव-ममावपि // 2 // एते परत्वाद् बाधन्ते युवावौ विषये स्वके। वन्मदावपि बाधन्ते पूर्वविप्रतिषेधतः // 3 // द्वयेकसंख्यः समासार्थो बह्वर्थे युष्मदस्मदी। तयोरद्वयेकतार्थत्वाद् न युवावौ त्वमावपि // 4 // अथ तयोरादेशा निरूप्यन्तेपदाधुग्विभक्त्यैकवाक्ये वस्-नसौ बहुत्वे / 2 / 1 / 21 // ___द्वितीया चतुर्थी षष्ठी च युग्विभक्तिः, तया साकं पदात् परयोर्युष्मदस्मदोः स्थाने क्रमाद् वस्-नसावादेशौ स्याताम् / तच्चेत् पदं युष्मदस्मदो चकस्मिन् वाक्ये स्याताम् / धर्मो वः पापाद् रक्षतु; धर्मो युष्मान् पापाद् रक्षतु / धर्मो नः सदा सुगति नयतु / धर्मोऽस्मान् सदा सुगतिं नयतु / धर्मो वो धनं ददातु / धर्मों युष्मभ्यं धनं ददातु / एवं धर्मो नो ज्ञानं ददातु, अस्मभ्यं वा / स्वामी वो बलवान् धर्मः, युष्माकं वा / स्वामी नो वीतरागो देवः, अस्माकं वा / पदादिति किम् / युष्मान् रक्षतु / एकवाक्ये इति किम् / ओदनं पच युष्माकं भविष्यति / द्वित्वे वास्-नौ / 2 / 1 / 22 / युग्विभक्तिद्विवचनैः सह पदात् परयोर्युष्मदस्मदोः स्थाने बाम् Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नौ इत्येतावादेशौ वा स्याताम् / जिनोऽयं वां नौ पातु, युवाम् आवां वा / अक्षयसौख्यं वां नौ दद्याद्, युवाभ्याम् आवाभ्याम् वा। जिनोदिते धर्मे प्रसन्नं मनो वां नौ सदा भूयाद्, युवयोरावयो। डे-उसा वे-मे।२।१।१३। पदात् परयोयुष्मदस्मदो..-इमा सह ते मे इत्यादेशौ वा स्याताम् / धर्मस्ते कल्याणं ददातुं, तुभ्यं वा।धर्मो मे चारित्रं ददातु, मह्यं वा / जिनसेवा ते धनमस्ति, तव वा। शीलं मे धनमस्ति, मम वा। अमा त्वा-मा / 2 / 1 / 24 / पदात् परयोयुष्मदस्मदोद्वितीयैकवचनेनामा सह त्वा-मा इत्यादेशौ स्याताम् / जिनस्त्वा नरकाद् रक्षतात्, त्वां वा, मा पालेयद्, मां वा। नित्यमन्वादेशे / 2 / 1 / 31 / उक्तस्यानुवचनमन्वादेशः,तद्विषये पदात् परयोयुष्मदस्मदोर्यत् काय कथितं तन्नित्यं स्यात् / यूयं सुशीलास्तस्माद् गुरवो वो मानयन्ति / वयं विनीता अत उपाध्याया नो मानयन्ति / असदिवामन्त्र्यं पूर्वम् / 2 / 1 / 25 / युष्मदस्मद्भ्यां पूर्वमामव्यं पदमसदिव स्याद्, अतो वस्नसादयो न स्युः / भो आचार्या, सुष्मान रक्षतु धर्मः / Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (95), जस विशेष्यं वाऽऽमन्त्र्ये / 2 / 1 / 26 / * युष्मदस्मद्भया पूर्व विशेष्यं जस्प्रत्ययान्तं सम्बोधनवाचि पदं बद्विशेषणभूते सम्बोधनवाचिनि पदे परेऽसदिव वा स्यात् / विक सार्थो योगारम्भः / जिनाः शरण्या युष्मान् शरणं प्रतिपद्यामहे / * पक्षे जिनाः शरण्या वः शरणं प्रतिपद्यामहे / नाऽन्यत् / 2 / 1 / 27 / युष्मदस्मद्भयां पूर्व जस्प्रत्ययान्तादन्यद् विशेष्यं सम्बोधनवाचि पदं तद्विशेषणभूते सम्बोधनवाचिनि पदे परेऽसदिव न स्यात्। आचाय भगवन् त्वा शरणं प्रतिपद्ये / आचार्य भगवन् वां शरणं स्वीकुवें। दृश्यर्थैश्चिन्तायाम् / 2 / 1 / 30 / चिन्तायां वर्तमानैदृश्यर्थकधातुभिर्योगे वस्नसादि न स्यात् / मनसा त्वां समीक्षते ध्यायति स्मरति वा / परम्परासम्बन्धेऽपि न स्यात / भक्तस्तव रूपं ध्यायति,' अत्र ध्यानेन सह सम्बद्धं रूपं तेन सह सम्बद्धस्य तवेत्यस्य परम्परासम्बद्धत्वाद् न भवति / - सपूर्वात् प्रथमान्ताद् वा / 2 / 1 / 32 / पूर्वपदसहितात् प्रथमान्तात् पदात् परयोर्युष्मदस्मदोरन्वादेशे वस्नसादय आदेशा वा स्युः / यूयं विवेकिनस्तद गुरवो वः सम्मानयन्ति, तद् गुरवो युष्मान सम्मानयन्ति वा / Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाह-ह-वैव-योगे / 2 / 1 / 29 / च अह ह वा एव इत्येतैोंगे सम्बन्धे सति पदात् परयोर्युष्मदस्मदोर्यदुक्तं तन्न स्यात् / आचार्यस्त्वां मां च रक्षतु / अत्र योगग्रहणेन साक्षात् सम्बन्धे सति निषेधः सूचितः, परम्परासम्बन्धे तु स्यादेव। इति षड्लिङ्गप्रकरणं समाप्तम् / Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (97) अथ अव्ययप्रकरणम्। अन्ययान्यलिङगकानि, यदुक्तम्सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु / वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम् // 1 // चादयोऽसत्त्वे / 1 / 1 / 31 / . सत्त्वं लिङ्गसङ्ख्यावद् , लिङ्ग-सङ्ख्ये न विद्यते यस्मिन् तदसद् अद्रव्यम् / तस्मिन्नद्रव्ये वर्तमानाश्चादयोऽव्ययसंज्ञकाःस्युः। च वा ह अह एव एवं नूनं पृथग् विना नाना स्वस्ति अस्ति दोषा मृषा मिथ्या मिथस् अथ अथो यस् श्वस् उच्चैस् नीचैस् इति पादिः, आकृतिगणोऽयम्। स्वरादयोऽव्ययम् / 1 / 1 / 30 / स्वरादयः शब्दा अव्ययसंज्ञकाः स्युः / स्वर् अन्तर् प्रातर पुनर् भूयस् आहोस्वित् सह नमस्.ऋते अन्तरेण अन्तरा अलम् आराद् दूराद् भृशमित्यादिः / आकृतिगणोऽयम् / स्वरादीनां वाच्यरूपोऽर्थश्चादीनां च द्योत्यरूपोऽर्थः / अधण्-तस्वाद्याशसः। 1 / 1 / 32 / धण्वनितास्तसुप्रभृतयः शस्पर्यन्ता ये प्रत्ययास्तदन्तं नामान्ययं स्यात् / देवा अजुनतोऽभवन् , अर्जुनपक्षेऽभवन्नित्यर्थः / ततः Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (98) तत्र इह व कदा एतर्हि अधुना इदानीम् सद्यः परेद्यवि पूर्वेयुः उभयेयुः परुत् परारि ऐषमः कर्हि यथा कथम् पञ्चधा एकधा ऐकध्यम् द्वेधम् द्विः पञ्चकृत्वः सकृत् बहुधा प्राक् दक्षिणतः पश्चात् पुरः पुरस्तात् उपरि उपरिष्टात् बहुशः। अधणिति किम् / पथिद्वेधानि संशयत्रैधानि / आ शस इति किम् / पचतिरूपम् / ये चाद्यन्तर्गणभूताः प्रादयस्तेधातोः प्रागुपसर्गसञ्जका भवन्ति।प्रपरा अप् सम् अनु अव निम् निर् हुस् दुर् वि. आनि अघि अपि अति सु उत् अमि प्रति परि उप श्रद् अन्तर माविस् एते प्रादयो धातोः प्राक् प्रयोक्तव्याः। . वत्तस्याम् / 1 / 1 / 34 / वत्-तसि-आमित्येतत्प्रत्ययान्तं नामाव्ययं स्यात् / मुनिना तुल्यं मुनिवद् वृत्तम्। उरसैका दिग् उरस्तः / आम् तद्धितस्यैव ग्राह्यः उच्चस्तराम्। . क्त्वा-तुमम् / 1 / 1 / 35 / क्वा-तुम्-अम्-प्रत्ययान्तं नामाव्ययं स्यात् / कृत्वा, कर्तुम्, यावज्जीवम् / ___गतिः / 1 / 1 / 36 / गतिसज्ञकं नामाव्ययं स्यात् / अदः कृत्वा, अत्राव्ययत्वाद् 'अतः कृकमि-'इत्यादिना सकारो न जातोऽतो विसर्ग एव। अध्ययस्य / 3 / 2 / 7 / / Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (99) अव्ययसम्पन्धिनः स्यादेर्लुक् स्यात् / तथा अवोपसर्गस्य तनिक्रीणात्योः परयोविकरुपेन वादेशः, अप्युपसर्गस्य च. घाग्नहोः परयोविकल्पेन पि इत्यादेशश्च अवतंसः वतंसः, अब क्रया वक्रयः; अपिधानं पिधानम्, अपिनद्धः पिनद्धः। केचित्तु सर्वत्रैवेच्छन्ति, तथा चोक्तम् वष्टि भागुरिस्लोपमवाप्योरुपसर्गयोः / आपं चैव हसन्तानां यथा वाचा निशा दिशा // 1 // इति अव्ययप्रकरणं समाप्तम् / JANAGA4 SANA AINMENT ARK Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (100) अथ स्त्रीप्रत्ययप्रकरणम् / Poooooo आत् / 2 / 4 / 18 / स्त्रियां वर्तमानादकारान्ताद् नाम्नः पर आप् प्रत्ययः स्यात् / सुभद्रा / सीता / चन्दना / यक्षा। शाला / माला / माया। दोला। : अजादेः / 2 / 4 / 16 / अनादिसम्बन्धिन्यां स्त्रियां वर्तमानेभ्योऽजादिभ्यः पर आप प्रत्ययः स्यात् / जातिलक्षण-वयोलक्षणादिङ्यादिबाधनार्थं व्यन्जनान्तानां चाप्राप्तौ विधानार्थं वचनम् / अजा खट्वा एडका अश्वा चटका मुषिका कोकिला इत्यादौ जातिलक्षणो ङीन भवति / बाला वत्सा होडा मन्दा विलाता एषु वयोलक्षणो. डीन भवति / ऋचा उष्णिहा देवविशा एषु व्यञ्जनान्तानामपि आब् भवति / ज्येष्ठा कनिष्ठा मध्यमा एषु पुंयोगेऽप्याप् / नम्पूर्वाद् मूलादपि आप अमूला। अस्यायत्तत्क्षिपकादीनाम् / 2 / 4 / 111 / यत्-तत्-क्षिपकादिवर्जितस्य नाम्नोऽकारस्य स्थाने निद्भिनप्रत्ययावयवे आप्परे ककारे परे इः स्यात् / आप्पर इति आबेव परो यस्माद् न विभक्तिः स आप्परः, तस्मिन्नाप्परे इत्यर्थः / Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स. . (101) सर्विका पाठिका कारिका हारिका मद्रिका / अस्येति किम् / गोका / निद्भिन्नककारे परे इत्येव जीवका नन्दका, अत्राशिषि कन् प्रत्ययः / आप्पर इस्येव / कारकः / इच्चापुंसोऽनिक्याप्परे / 2 / 4 / 107 / अपुंलिङ्गाच्छब्दाद् विहितस्यापः स्थाने इकारो इस्वश्च वा स्यात्, नकारानुबन्धवर्जितप्रत्ययावयवभूते आप्परे ककारे परतः। अल्पा खट्वा खट्विका खट्वका खट्वाका / गङ्गिका गङ्गका गङ्गाका / कप्प्रत्यये तरादौ च परे पूर्वस्य इस्वो वा भवति / तर-तम-रूप-कल्पादयः तरादयः। तरादौ च पुंवद् वा वेण्येव वेणिका वेणीका / नदी एव नदिका नदीका / अतिशयेन प्रशस्या श्रेयसी अतिशयेन श्रेयसी श्रेयसितरा श्रेयसीतरा पुंवद्भावे च श्रेयस्तरा / बहुव्रीही चाबन्तानाबन्तानां वा हस्वः बहुमालाकः बहुमालकः / स्त्रियां नृतोऽस्वस्रादेमः / 2 / 4 / 1 / . स्त्रियां वर्तमानाद् नकारान्ताहकारान्ताच्च स्वस्रादिवर्जिताद् नाम्नः परो ङीप्रत्ययः स्यात् / राज्ञी / दण्डिनी / करिणी। मालिनी / शूनी / की / ही / अस्वस्रादेरिति किम् स्वसा तिस्र श्चतस्रश्च ननान्दा दुहिता तथा / याता मातेति सप्तैव स्वस्रादय उदाहृताः // 1 // . अधातूदृदितः / 2 / 4 / 2 / Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (102) धातुवर्नो य उदित् ऋदिच्च प्रत्ययोऽप्रत्ययो वा तदन्ताद नाम्नः स्त्रियां ङीप्रत्ययो भवति / भवन्ती / पचन्ती / पठन्ती / वा पादः। 2 / 4 / 6 / पादिति कृतसमासान्तः, तदन्तात् स्त्रियां डीर्वा स्यात् / द्विपदी द्विपात् / सुपदी सुपाद् / ऋचि पादः पात्पदेति निपातौ त्रिपाद् ऋक्, त्रिपदा गायत्री / द्विपदा / एकपदा / .. णस्वराघोषाद् वनो रश्च / 2 / 4 / 4 / णकारान्तात् स्वरान्तादघोषान्ताच्च विहितो यो वन्प्रत्ययस्तदन्ताद् नाम्नः स्त्रियां डीः स्यात् / तत्संनियोगे च वनोऽन्तस्य रः स्यात् / वनिति वन्-क्वन-क्वनिपां सामान्येन ग्रहणम् / उणवन् इति स्थिते 'वन्याङ् पञ्चमस्य' इति णकारस्यात्त्वे उकारस्य च गुणेऽवादेशे अवावा नरः, स्त्री चेद् अवावरी ब्राह्मणी / एवं धाधातोः धीवरी / पाधातोः पीवरी / दृश्वातोः मेरुदृश्वरी इत्यादिः / वा बहुव्रीहेः / 2 / 4 / 5 / बहुव्रीहौ तु वा स्यात् / प्रियावावरी प्रियावावा / ताभ्यां वाप् डित् / 2 / 4 / 15 / - मनन्तादनन्ताच्च बहुत्रीहेः स्त्रियामाब् वा स्यात्, स च डित् / सीमा सीमे सीमाः, पक्षे सीमा सीमानौ सीमानः / बहुराजा बहुराजे बहुरानाः, पक्षे बहुराजा बहुराजानौ बहुराजानः। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (103) वा पादः।२।४।६। * पादिति बहुव्रीहिनिमित्तकः कृतसमासान्तः पाच्छब्दः, तदन्तात् स्त्रियां ङीर्वा स्यात् / द्विपदी द्विपाद् / त्रिपदी त्रिपाद् / मनः / 2 / 4 / 14 / मनन्तात् स्त्रियां ङीन स्यात् / सीमा सीमानौ सीमानः / ___ अनो वा / 2 / 4 / 11 / अनन्ताद् बहुव्रीहेः स्त्रियां कीर्वा स्यात् / बहुराज्ञी बहुराड्यो बहुराइयः / पक्षे डाप् बहुराजा बहुराजे बहुराजाः, तस्याप्यभावे बहुराजानौ बहुराजानः। नोपान्त्यवतः / 2 / 4 / 13 / यस्योपान्त्यलोपो नास्ति स उपान्त्यवान् , तस्मादनन्ताद् बहुवीहेः स्त्रियां डीन स्यात् / सुपर्वा सुपर्वाणौ सुपर्वाणः / - ‘दाम्नः / 2 / 4 / 10 / संख्यादेमन्शब्दान्ताद्.बहुव्रीहेः स्त्रियां ङीः स्यात्। द्विदाम्नी। त्रिदाम्नी। पूर्व सङ्ख्यावाचिनोऽभावे तु उद्दामानं पश्य / ... अणबेयेकण्ननश्टिताम् / 2 / 4 / 20 / .. .. अण् अन् एय इकण नञ् स्नञ् टित् एषां प्रत्ययान्तानां योऽ कारस्तदन्ताद् नाम्नस्तेषामेवाणादिसम्बधिन्यां स्त्रियां वाच्यायां डीः . स्यात् / औपगवी / वैदी / सौपर्णेयी / आक्षिकी। स्त्रैणी। पौंस्नी जानुनी / पञ्चतयी / उभयी। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (101) गौरादिभ्यो मुख्याद् डीः / 2 / 4 / 19 / - गौरादिगणपठिताद् मुख्यान नाम्नः स्त्रियां कीप्रत्ययः स्यात्। गौरी। शवली। नदी। कल्माषी। सारङ्गी। नर्तकी। अनड्वाही। अनडुही / पीपली / आकृतिगणोऽयम् / संख्यादेयिनाद् वयसि / 2 / 4 / 9 / ___संख्यादेर्हायनान्ताद् नाम्नः स्त्रियां ङीप्रत्ययः स्याद्, चयसि गम्यमाने / द्विहायनी। 'चतुर्हायनाद् वयसि इति नस्य णत्वे चतुर्हायणी / त्रिहायणी। . पुरुषाद् वा / 2 / 4 / 25 / प्रमाणवाचिपुरुषान्ताद् द्विगोः स्त्रियां डीर्वा स्यात् तद्धितमुकि / द्विपुरुषी द्विपुरुषा परिखा / वरुणेन्द्ररुद्रभवशमृडादान् चान्तः / 2 / 4 / 62 / एभ्यो धववाचिनामभ्यस्तद्योगे स्त्रियां ङीः स्यात्, तत्संनियोगे आन् चान्तः / वरुणानी / इन्द्राणी। रुद्राणी। भवानी / शर्वाणी। मृडानी / मातुलाचार्योपाध्यायेम्योङीस्तद्योगेवाऽऽन् चान्तः / मातुलानी मातुली / आचार्यानी आचार्टी / उपाध्यायानी उपाध्यायी। आर्यक्षत्रियाद् वा / 2 / 4 / 66 / .. आभ्यां ङीर्वा स्यात्, तत्सन्नियोगे आन्चान्तः स्वार्थे / Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (105) आर्याणी आर्या। क्षत्रियाणी क्षत्रिया। पुंयोगे तु आर्यस्य स्त्री आर्से, क्षत्रियी। हिमारण्ययोमहत्त्वेऽथे वाच्ये डीस्तत्संनियोगे चान् / महद् हिमं हिमानी, महदरण्यमरण्यानी / यवनाच लिप्यां यवनस्य लिपिः यवनानी / यवाद् दोषे दुष्टा यवा यवनी / द्विगोः समाहारात् / 2 / 4 / 22 / अकारान्तसमाहारद्विगोः स्त्रियां डीः स्यात् / त्रयाणां लोकानां समाहारः त्रिलोकी / पञ्चराजी / पात्राद्यन्तानां डीन पञ्चपात्रं त्रिभुवनं चतुष्पथम् / अकारान्तादिति पञ्चाग्नयः समाहृताः पन्चाग्नि, समाहारस्य नपुंसकत्वं इस्वत्वं च / त्रिफला इति स्वजादिपाठात् / धवाद् योगादपालकान्तात् / 2 / 4 / 59 / धवो भर्ता, तद्वाचिनोऽकारान्ताद् योगात् सम्बन्धात् स्त्रियां वर्तमानाद् नाम्नः परो ङीः स्यात्। गणकस्य स्त्री गणकी। प्रष्ठस्य स्त्री प्रष्ठी / शूद्रस्य स्त्री शूद्री / अपालकान्तादिति किम् / गोपालकस्य स्त्री गोपालिका / एवम् अश्वपालिका। सूर्याद् देवतायां वा / 2 / 4 / 64 / धववाचिनः सूर्यशब्दाद् योगात् स्त्रियां वर्तमानाद् कीर्वा स्यात्, तद्योगे आन् चान्तः / सूर्यस्य स्त्री देवता सूर्याणी सूर्या वा / अन्यत्र मानुष्यां सूरी। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (106) जातेरयान्तनित्यस्त्रीशूद्रात् / 2 / 4 / 54 / .. जातिवाचिनोऽकारान्ताद् नाम्नः स्त्रियां ङीः स्याद्, न चेत्तद् यान्तं नित्यत्रीजातिवाचि शूद्रशब्दश्च स्यात् / तत्र जातिरनुगतसंस्थानन्यया एका यथा गोत्वादिः, सकृदुपदेशव्यङ्यत्वे सत्यत्रिलिङ्गान्या यथा ब्राह्मणी, गोत्रचरणलक्षणाऽपरा यथा कठी%B तथाचोक्तम् आकृतिग्रहणा जातिर्लिङ्गानां न च सर्वभाक् / सकृदुपदेशनिर्लाह्या गोत्रं च चरणैः संह // 1 // कुक्कुटी / तटी। पात्री / वृषली / नाडायनी / बढची। जातेरिति किम् मुण्डा, शुक्ला / अयान्तेति किम् इम्या / गवय-हय-मुकय-मनुष्य-मत्स्यानां तु गौरादिमाठाद् गवयी हयी मुकयी मनुषी मत्सी / नित्यस्त्रीति किम् यूका खट्वा / शुद्रेति किम् शूद्रा / महाशूद्री इति त्वांभीरजातिविशेषः, पुंयोगे तु महाशूद्रस्य स्त्री महाशूद्री। वयस्यनन्त्ये / 2 / 4 / 21 / अन्त्यवयोवर्जिताद् वयोवाचिनोऽदन्ताद् नाम्नः स्त्रियां डीः स्यात् / कुमारी / वधूटी / चरटी / तरुणी / अनन्त्य इति किम् स्थविरा। असह-नब्-विद्यमान-पूर्वपदात् स्वागादक्रोडादिभ्यः / 2 / 4 / 38 / सह-नञ्-विद्यमान-वर्जितपूर्वपदं यत् कोडादिवजै स्वातदन्ताद Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (107) कारान्तात् स्त्रियां कीर्वा स्यात् / सुमुखी अतिकेशी पक्षे सुमुखा अतिकेंशा / असहननित्यादि किम् सहकेशा, अकेशा, विद्यमानकेशा, कल्याणीक्रोडा इत्यादौ न भवति / अत्र स्वाङ्गं पारिभाषिकं ग्राह्यं यदुक्तम् अविकारोऽद्रवं मूर्त प्राणिस्थं स्वाङ्गमुच्यते / च्युतं च प्राणिनस्तत् तनिमं च प्रतिमादिषु // 1 // तेन सुशोफा इति विकारत्वात् , सुस्वेदा इति द्रषत्वात्, सुज्ञाना इत्यमूर्तत्वाद् डीभाजो न भवन्ति / सुकेशी रथ्या, सुमुखी प्रतिमा इत्यादौ स्वस्याङ्गत्वाभावेऽपि पारिभाषिकस्वाङ्गत्वाद् डीः। नासिकोदरौष्ठजङ्घादन्तकर्णशृङ्गाङ्गगात्रकण्ठात् / 2 / 4 / 39 / ___असहादिपूर्वपदेभ्य एभ्यो ङीर्वा स्यात् / सुनासिकी सुनासिका। कृशोदरी कृशोदरा। लम्बोष्ठी लम्बोष्ठा / लक्ष्णजङ्घी लक्षणजङ्घा / श्वेतदन्ती श्वेतदन्ता / सुन्दरकर्णी सुन्दरकर्णा / वक्रशृङ्गी वक्रशृगा / बलवन्दात्री बलवद्गात्रा। शङ्खकण्ठी शङ्खकण्ठा / पूर्वेणैव सिद्धे बहुस्वरस्य संयोगोपान्त्यस्य च स्वाङ्गस्य यदि डीस्तदा एषामेव तेनान्येषां न भवतीति नियमार्थ सूत्रम् / नखमुखादनाम्नि / 2 / 4 / 4 / आभ्यां स्वाङ्गाभ्यामसञ्ज्ञायामेव ङीर्वा स्यात् / सूर्पनखी सूर्पनखा / चन्द्रमुखी चन्द्रमुखा। अयमपि नियमार्थस्तेनैतदन्तयोरसज्ञायामेवेति / सूर्पणखा सज्ञायाम् / Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (108) इतोऽक्त्यात् / 2 / 4 / 22 / / ___ क्यर्थप्रत्ययान्तवनितादिकारान्ताद् नाम्नः स्त्रियां बीर्वा स्यात् / रात्री रात्रिः / धूली धूलिः / शकटी शकटिः / भूमी मूमिरित्यादिः / अक्त्यादिति किम् कृतिः, अजननिः। मनोरौ च वा / 2 / 4 / 61 / मनुशब्दाद् धवयोगात् स्त्रियां वर्तमानाद् डीर्वा स्यात्, तत्संनियोगे च औकार एकारश्चान्तादेशः स्यात् / मनोः स्त्री मनावी मनायी मनुः / पूतक्रतुषाकप्यग्निकुसितकुसिदादौ च / 2 / 4 / 60 / ___ धवयोगात् स्त्रियां वर्तमानेभ्य एभ्यो कीर्वा स्यात् , तत्सन्नियोगे चैकारोऽन्तादेशः स्यात् / पूतक्रतोः स्त्री पूतक्रतायी। वृषाकपायी / अग्नायी / कुसितायी / कुसिदायी। सपत्न्यादौ / 2 / 4 / 50 / / पस्यन्ताद् स्त्रियां नित्यं डीनकारश्चान्तादेशः / समानः पतिर्यस्याः सपत्नी / एकपत्नी / वीरपत्नी इत्यादिः / पतिवत्न्यन्तर्वल्यौ भार्या-गर्मिण्योः।२।४।५३। ___ भार्या जीवद्भर्तृका, तस्यां वाच्यायां पतिशब्दाद् डीः, प्रकृतेश्च पतिवत्नादेशः पतिवत्नी / गर्भिण्यांवाच्यायामन्तर्वच्छब्दाद् डीः, अन्तर्वत्नादेशश्च अन्तर्वत्नी / वीवाहितायां स्त्रियां केवलपति Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (109) शब्दादपि कीर्नान्तादेशश्च वक्तव्यः / पत्नी / पाणिगृहीति इत्यादिशब्दा निपातनात् साधवो ज्ञेयाः। अशिशुशब्दाद् बहुव्रीही . अशिधी। नारी-सखी-पशू-श्वश्रूणामपि निपातनात् सिद्धिर्वेदितन्या। अञ्चः / 2 / 4 / 3 / अञ्चन्तात् स्त्रियां डीः स्यात् / सविता प्राग् गच्छति यस्यां सा प्राची दिग् / पश्चाद् गच्छति सा प्रतीची / एवम् उदीची / समीची / प्रान्ची इत्यादयः। स्वरादुतो गुणादखरोः / 2 / 4 / 35 / स्वरात् परोऽर्थादेकवर्णमात्रव्यवहितो य उकारस्तदन्तात् खरुवर्जिताद् गुणवचनाद् नाम्नः स्त्रियां डीर्वा स्यात् / पट्वी पटुः / मृद्वी मृदुः / तन्वी तनुः / साध्वी साधुः / स्वरादिति किम् पाण्डुर्भूमिः। उदिति किम् शुचिः। गुणादिति किम आखुः। अखरोरिति किम् खरुः / उतोऽपाणिनश्चायु-रज्ज्वादिभ्य ऊङ् / 2 / 4 / 73 / उकारान्तादप्राणिवाचिनो मनुष्यजातिवाचिनश्च नाम्नः स्त्रि-. यामूङ् प्रत्ययः स्याद्, युशब्दान्तं रज्ज्वादिशब्दं च वर्जयित्वा / कुरुः / इक्ष्वाकुः / अलावूः / कर्कन्धूः / उदिति किम विट् / गुरज्ज्वादिवर्जनाद् अध्वर्युः रज्जुरित्यादौ उङ् न / युवन्शब्दात् Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 110) 'तिर्वाच्यः युवतिः / इयां सर्वत्राकारलोपो वक्तव्यः / भानादीनां पक्वादो भाजी पक्वा, कबरी केशपाशः। उपमानसहितादिपूर्वादूरोरुङ् करभोरूः / सहितोरूः / वामोलः / डी-आददीतां के परे हस्वः कचि परे ह्रस्वाभावश्च / अनुक्तं सर्व सिद्धहेमशब्दाशासनाद् वेदितव्यम् / इति श्रीमत्ययप्रकरणं समाप्तम् / Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (111) अथ कारकप्रकरणम् / क्रियाहेतुः कारकम् / 2 / 2 / 1 / क्रियाया हेतुः कारणं कर्तृ-कर्म-करणादि तत् कारकसझं स्यात् / तच्च शक्तिविशेषरूपम्, शक्ति-शक्तिमतोरभेदाद मैत्रादीनां कारकत्वम् / करोतीति कारकमित्यन्वर्थसज्ञासमाश्रयणेनानाविष्टव्यापाराणां हेत्वादीनां निमित्तमात्रत्वात् कारकसज्ञा न भवति / स्वतन्त्रः कर्ता / 2 / 2 / 2 / ___क्रियायां हेतुभूतः क्रियासिद्धावपराधीनतया प्रधानीमत प्रकृ तधात्वर्थव्यापाराश्रयत्वेन विवक्षितः कारकविशेषः कर्तृपक्षकः स्यात् / जिनेन्द्रेणोपदिष्टं प्रवचनम्। श्राद्धेन क्रियते जिनमन्दिरम् / .. नाम्नः प्रथमैक-द्वि-बहौ / 2 / 2 / 31 / ___एकत्वद्वित्वबहुत्वविशिष्टेऽर्थे वर्तमानाद नाम्नः परात् क्रमेण सि-औ-जसरूपा प्रथमा विभक्तिः स्यात् / कर्मादिकारकेषु अनुक्तेषु द्वितीयादीनां विधास्यमानत्वेन प्रकृते च विशेषानभिधानेनाविशिष्टार्थमात्रे प्रथमा विज्ञया / तत्र अर्थो द्विविधः अभिधेयरूपो घोत्यरूपश्च / तत्राद्यः स्वार्थद्रव्यलिङ्गसङ्ख्याशक्तिलक्षणः पञ्चकः समग्रोऽसमग्रो वा नामार्थः / शब्दस्यार्थे प्रवृत्तौ निमित्तमतः स्वरूप-जाति-गुण-क्रिया-सम्बन्धादिरूपः स्वार्थः / यत्तदादि Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 112) शब्दाभिधेयं सत्त्वभूतं विशेष्यं द्रव्यम् / स्त्रीस्व-पुंस्त्व-नपुंसकत्वरूपं डी-आफ्-उडादिप्रत्ययहेतुभूतं लिङ्गम्, तच्च शब्दधर्मोऽर्थधर्मो वा। संख्या एकत्वद्वित्वादिरूपा / शक्तिः क्रियोत्पत्तौ हेतुभूता कारकस्वरूपा / पञ्चको नामार्थः डित्थः, डवित्थः, गौः, शुक्लः, कारकः, दण्डी इत्यादौ। त्वम् , अहम्, पञ्च, कति इत्यादौ चतुष्कः; अलिङ्गत्वात / धवश्व खदिरश्चेत्यादौ चाव्ययस्य द्योत्यरूपोऽर्थः / ___आमन्त्र्ये / 2 / 2 / 32 / प्रसिद्धतत्सम्बन्धस्य किमप्यारव्यातुं संमुरवीकरणमामन्त्रणम्, तद्विषय आमन्व्यः / तस्मिन्नर्थे वतमानाद् नाम्न एकद्विबहुत्वविशिष्टार्थे सि-औ-जस्लक्षणा प्रथमा स्यात् / हे देव ! / हे देवी! / हे देवाः!। कतुाप्यं कर्म / 2 / 2 / 3 / का स्वक्रियया यद् व्याप्तुमिष्यते तद व्याप्यं सत् कारक कर्मसम्झं स्यात् / तच्च निवर्त्य-विकाय-प्राप्यभेदात् त्रिधा भिद्यते / तद्रूपव्यक्त्याऽसत् यत् सञ्जायते सद्वा जन्मना प्रकाश्यते तद् निर्वयम् कटं करोति, पुत्रं प्रसूते / प्रकृत्युच्छेदेन गुणान्तराधानेन वा यद् विकृतिमापद्यते तद् विकार्यम् काष्ठं भस्म करोति, सुवर्ण कुण्डलं करोति / यत्र तु दर्शनादनुमानाद् वा क्रियाकृतो विशेषो नाप्यते तत् प्राप्यम् आदित्यं पश्यति, ग्रामं गच्छति / कर्तुः किम् माषेष्वश्वं बध्नाति, अत्र कर्मणोऽश्वरूपस्य व्याप्या माषा Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (113) नकर्तुः। वीति किम् पयसा ओदनं मुङ्क्ते, अत्र करणस्य मा भूत्। पुनस्वत् कर्म त्रिविधम् इष्टमनिष्टमनुभयं च / यदिच्छाविषयीभूतं सदाप्तुं क्रियामारभते तदिष्टं घटादि / यद् द्विष्टं स्त् प्राप्यते तदनिष्टं विषादि विषं भक्षयति, अहिं लङ्घयति / यत्र नेच्छा न च द्वेषस्तदनुभयं यथा ग्रामं गच्छन् तृणं स्पृशति / पुनस्तद् द्विविध प्रधानेतरभेदात् , तच्च द्विकर्मकधातूनां ज्ञेयम् / दुहि-भिक्षि-रुधिप्रच्छि-चिग्-अंग्-शास्वर्थेषु याचि-जयति-प्रभृतिषु च सत्सु यथा गां दोग्धि पयः, पुरोहितं गां भिक्षयते, व्रज * गामवरुणद्धि, छात्रं पन्थानं पृच्छति, वृक्षं फलान्यवचिनोति, शिष्यं धर्म ब्रूते शास्ति च, क्रुद्धं शान्ति याचते,. याचिरिहानुनयार्थस्तेन भिक्ष्यर्थाद् भेदः, गर्गान् शतं जयति, अमृतमम्भोधि मथ्नाति, देवदत्तं शतं मुष्णाति। तथा नी-ह-वहि-कृषीणां च ग्राममनां नयति हरति वहति कर्षति का, तन्दुलान् ओदनं पचति / 'स्मृत्यर्थदयेशां व्याप्यं वा कर्म , मातरं स्मरति, मातुः स्मरति पक्षे षष्ठी। . कालाध्वभावदेशं वाऽकर्म चाकर्मणाम् / 2 / 2 / 23 / - कालः मुहूर्तादिरूपः, अध्वा गन्तव्यं क्षेत्रं क्रोशादिः, मावः क्रिया, देशो जनपदः, अकर्मकधातूनां योगे यः कालादिराधारःस कर्मसञो वा स्याद् , अकर्म च कर्माकर्मसज्ञो युगपद् भवतीत्यर्थः / मासमास्ते, मास आस्यते। क्रोशं स्वपिति, क्रोशः सुप्यते / गोदो. हमास्ते, गोदोह आस्यते। कुरून् आस्ते, कुरव आस्यन्ते / युगपद् 8 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (114) विधानाद् मासमास्यते / पक्षेऽधिकरणत्वाद् मासे आस्ते इत्यादि / 'अविवक्षितकर्माणः सकर्मका अप्यकर्मकाः स्युः' मास पचति, मास पच्यते, मासे पचतीत्यादि। गतिबोधाहारार्थ-शब्दकर्म-नित्याकर्मणामनीखाद्यदि हा-शब्दाय-क्रन्दाम् / 2 / 2 / 5 / / गत्याद्यर्थानां, शब्दः क्रिया येषां ते अथवा शब्दरूपं कर्म येषां ते शब्दकर्माणस्तेषामकर्मकाणां चाणिगवस्थायां यः कर्ता स णौ सति कर्मसज्ञः स्याद्, न्यादि धातुं वर्जयित्वा / गच्छति मैत्रो ग्राम, गमयति मैत्रं ग्रामं चैत्रः / जानाति शिष्यो धर्म, ज्ञापयति शिष्यं धर्म गुरुः / भुङ्क्ते पुत्र ओदनं, भोजयति पुत्रमोदनं माता / जल्पति जिनदासो द्रव्यं, जल्पयति जिनदासं द्रव्यं जिनदत्तः / शृणोति जिनपालः शब्द, श्रावयति जिनपालं शब्द धर्मपालः। नित्याकर्मक:- आस्ते कुमारपालः, आसयति कुमारपालं हेमचन्द्रः। कालाध्वभावदेशैः सर्वेऽपि धातवः सकर्मका एवेत्यन्यापेक्षया नित्याकर्मकत्वं ज्ञेयम् / न्यादिधातूनां वर्जनाद् नयति ग्राममनां मैत्रः, नाययति ग्राममजां मैत्रेण चैत्र इत्यादौ कर्तृत्वात् तृतीयैव / प्रयोजकन्यापारेण प्रयोज्यकर्तुळप्यमानत्वात् कर्मसज्ञा सिद्धैवेति प्रयोजकव्यापारेण व्याप्यमानत्वेन कर्तुर्यदि कर्मसञ्ज्ञा - तदेषामेवेति नियमार्थ आरम्भस्तेन पचत्योदनं शिवदत्तः, . पाचयत्योदनं शिवदत्तेन यज्ञदत्त इत्यादौ पूर्वेणापि कर्मसज्ञाभावात् Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 115) कर्तरि तृतीयैव / हकोरणिकर्तुौँ वा कर्मत्वम् / वहेरपि क्वचिद् वहति भारं तुरङ्गमः, वाहयति भारं तुरङ्गमेण ब्राह्मणः / ___ कर्मणि / 2 / 2 / 40 / गौणाद् नाम्नः कर्मणि कारके द्वितीया स्यात् / आख्यातपदेनासामानाधिकरण्यं गौणत्वम् / घटं करोति / जिनेन्द्रं पश्यति / गुरुं प्रणमति। त्यादि-कृत्-तद्धित-समासादिभिरुक्ते तु कर्मणि प्रथमैव 'उक्तार्थानां नानुप्रयोगः' इति न्यायात् / घटः क्रियते / जिनेन्द्रो दृष्टः / स्नानीयं चूर्णम् / दानीयो मुनिः / गोमान् चैत्रः / शतेन क्रीतः शत्यः। नता देवेन्द्रा यं स नतदेवेन्द्र इत्यादि / नी-हरत्यादीनामुभयकर्मणां धातूनां कर्मणोः प्रधानेतरता, यस्मै क्रियाऽऽरभ्यते तद् दुग्धादि प्रधानं कर्म, यत्तु तत्सिद्धयै क्रियया व्याप्यते गवादि तद् गौणम्, गोपालो गां पयो दोग्धि / यदा पयःप्रभृत्यर्था कादेः प्रवृत्तिरविवक्षिता तदा गवादेरेव मुख्यता / तत्र दुह्यादीनां गौणे कर्मणि कर्मजप्रत्ययो भवति / गोपालकेन गौः पयो दुह्यते / गुरुणा शिष्योऽर्थमुच्यते / 'न्यादीनां धातूनां तु मुख्ये कर्मणि नीयते गौर्द्विनामम् / उह्यते भारो ग्रामं चैत्रेणेत्यादयः / . सर्वोभयाभिपरिणा तसा / 2 / 2 / 35 / तस्प्रत्ययान्तैस्सर्वादिभिर्युक्ताद् गौणाद् नाम्नो द्वितीया स्यात् / सर्वतो ग्रामं नदी वहति / अभितो ग्रामं नदी वहति / उभयतो ग्रामं पर्वताः / परितो जिनेन्द्रमिन्द्राः। Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (116) द्वित्वेऽधोऽध्युपरिभिः / 2 / 2 / 34 / एषां द्वित्वे सति एभिर्युक्ताद् गौणाद् नाम्नो द्वितीया स्यात्।। अधोऽधो ग्रामं वनानि सन्ति / अध्यधि ग्रामं क्षेत्राणि / उपर्युपरि श्राद्धं याचकाः पतन्ति / गौणात् समया-निकषा-हा-धिगन्तराऽन्तरेणाति-येन तेनैर्द्वितीया'। 2 / 2 / 33 / - एभियुक्ताद् गौणाद् नाम्नो द्वितीया स्यात् / समया ग्राम क्षेत्राणि वर्तन्ते / निकषा ग्रामं जिनेन्द्रसमवसरणम् / हा जिनाभक्तं तस्य शोचत इत्यर्थः / धिग् मिथ्यादृष्टिम् / अन्तरा निषधं नीलं च मेरुः / जिनदर्शनमन्तरेण न सम्यगवाप्तिः / अति कुरून् महद् बलं कुर्वतिक्रमेण वृद्धमित्यर्थः / येन पश्चिमां गतः / तेन पश्चिमां नीतः। लक्षण-वीप्स्येत्यम्भूतेष्वभिना।२।२।३६ / लक्षणं चिह्नम्, समुदायस्यावयवशः क्रियाभिः कृत्स्नेन प्राप्तुमिच्छा वीप्सा तत्कर्म वीप्स्यम्, केनचिद् विवक्षितविशेषेण भाव इत्थम्भूतम्, एषु वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नोऽभिना युक्ताद् द्वितीया स्यात् / वृक्षमभि विद्योतते विद्युत् / वृक्षं वृक्षमभि सिञ्चति / साधु जिनदत्तो मातरमभि / लक्षणेत्यादि किम् यदा ममाभिष्यात् तद् दीयताम् / भागिनि च प्रतिपर्यनुभिः / 2 / 2 / 37 / Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (117 ) ___ स्वीकारविषयीभूतोऽशो भागस्तत्पतिर्भागी, तस्मिन् लक्षणादिष्वर्थेषु च वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नः प्रतिपर्यनुभिर्युक्ताद् द्वितीया स्यात् / यदत्र मां प्रति परि अनु स्यात् योऽत्र मम भागस्तद् दीयतामित्यर्थः / वृक्षं प्रति परि अनु विद्योतते विद्युत् / वृक्षं वृक्ष प्रति परि अनु वा सेचनम् / साधु जिनरक्षो मातरमनु प्रति परिवा। कालाध्वनोाप्तौ / 2 / 2 / 42 / .. स्वकीयसम्बन्धिना द्रव्य-गुण-क्रियारूपेण सह सम्बन्धो व्याप्तिरत्यन्तसंयोग इत्यर्थः / तस्यां द्योत्यायां कालेऽध्वनि च वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नो द्वितीया स्यात्। मासं गुडधानाः / मासं कल्याणी। मसमधीते / कोशं पर्वतः / कोशं कुटिला नदी / क्रोशमधीते / हेतु-कर्तृ-करणेत्यम्भूतलक्षणे / 2 / 2 / 44 / - फलसाधनयोग्यः पदार्थो हेतुः, द्रव्यादिसाधारणत्वे सति 'निर्व्यापारसव्यापारसाधारणत्वं हेतुत्वम्, क्रियासिद्धौ प्रकृष्टोपकारकं नियतव्यापारोपबद्धं करणं क्रियामात्रविषयं व्यापारनियतं चेत्यर्थः, कञ्चित् प्रकारमापन्नं इत्थम्भूतः स लक्ष्यते येनेति इस्थम्भूतलक्षणम् , हेत्वादिषु वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नस्तृतीया स्यात् / धनेन कुलम् , व्रतेन वा / दण्डेन घटः / पुण्येन दृष्टो जिनः / वस्तुपालेन कृतं जिनमन्दिरम् / कुमारपालेन कृता अहिंसामयी मेदिनी। दात्रेण लुनाति धान्यम् / रजोहरणेन जैनमुनिः रजोहरणज्ञाप्यजैनमुनित्वविशिष्ट इत्यर्थः / Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (118) यद्भेदैस्तद्वदाख्या / 2 / 2 / 46 / यस्य भेदिनः प्रकारवतोऽर्थस्य भेदैः प्रकारैर्विशेषैस्तद्वतः पदार्थस्य निर्देशः स्यात् तद्वाचिनो गौणाद् नाम्नस्तृतीया स्यात्। अक्ष्णा काणः। पादेन खजः / शिरसा खल्वाटः / प्रकृत्या चारुः / गोत्रेण गार्यः / प्रायेणालसः / प्रायेण नैयायिकः / कर्माभिप्रेयः सम्प्रदानम् / 2 / 2 / 25 / कर्मकारकेन क्रियया वा करणभूतेन यमभिप्रेयते श्रद्धानुग्रहादिकाम्यया यमभिसम्बध्नाति स कर्माभिप्रेयः कारकं सम्प्रदानसम्झं स्यात् / तच्च त्रिविधम् त्यज्यमानरूपेण कर्मणा प्राप्तं सत् प्रेरकम्- देहीति यत् प्रेरयति याचकाय गां ददाति / अनुमन्तृदायकेन अहमिदं ददामीत्युक्ते 'ओम्' इत्यनुमन्यते तत् श्राद्धो गुरवे भिक्षां ददाति / यच नानुमन्यते न च निराकरोति तदनिराकर्तृ- जिनायाय॑ ददाति / गुरवे कार्य निवेदयति / पत्ये शेते / युद्धाय संनह्यते / यत्र श्रद्धादिना नानुसम्बन्धस्तत्र षष्ठयेव / राज्ञो दण्डं, रजकस्य वस्त्रं ददाति / चतुर्थी / 2 / 2 / 53 / सम्प्रदानसज्ञकाद् गौणःद् नाम्नश्चतुर्थी स्यात् / धर्माय यतते / धनाय गच्छति / जिनमुवनाय सहस्रं ददाति / अपायेऽवधिरपादानम् / 2 / 2 / 29 / Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (119) / अपायो विश्लेषो विभागो वा तत्र योऽवधिश्चलत्वेनाचलत्वेन वा विवक्षितः स अपादानसन्जकः स्याद , अथवा सावधिक गमनं तत्र यदवधिभूतम् अपायेनानधिष्ठितं तत्कारकमपादानं स्यात् / / प्रामादायाति / धावतोऽश्वात् पतति इति कायिकोऽपायः / बुद्धिजन्मापायः- अधर्माद् जुगुप्सते विरमति वा, धर्मात् प्रमाद्यति, चौरेभ्यो बिभेति, यवेभ्यो गां रक्षति निवारयति वा, उपाध्यायादन्तर्धत्ते / पञ्चम्यपादाने / 2 / 2 / 69 / / / अपादाने वर्तमानात् कारकात् पञ्चमी स्यात् / अरण्यादागच्छति / चौरेभ्यो रक्षति / कुण्डाद् निष्काशयति / शेषे / 2 / 2 / 81 / .... कर्मादिभ्योऽन्यः स्वस्वामिभावादिसम्बन्धः शेषः, तस्मिन् वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नः षष्ठी स्यात् / राज्ञः पुरुषः / पित्रोरेतत् पूजनम् / गुरूणां वचनं पथ्यम् / कर्मादिकारकाणामपि सम्बन्धमात्रविवक्षया षष्ठी भवत्येवः माषाणामश्नीयात् , सुभाषितस्य शिक्षते, सतां गतमित्यादौ सतामपि कर्मादीनामविवक्षा / क्रियाश्रयस्याधारोऽधिकरणम् / 2 / 2 / 30 / क्रियाश्रयस्य कर्तुः कर्मणो वा य आधारः स अधिकरणसन्जकः स्यात् / सप्तम्यधिकरणे / 2 / 2 / 95 / Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (120) अधिकरणकारकेऽर्थे वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नः सप्तमी स्यात् / तच्च षड्विधम्-औपश्लेषिकं वैषयिकमभिव्यापकं सामीप्यकं नैमित्तिकमौपचारिकं च / तत्रैकदेशमात्रसंयोग उपश्लेषस्तत्र भवमौपश्लेषिकम्- खट्वायां शेते, कटे आस्ते। अनन्यत्रभावो विषयस्तस्मै प्रभवति वैषयिकम्- भुवि मनुष्याः, दिवि वैमानिकाः सन्ति / ययोराधाराधेययोः सर्वावयवसंयोगस्तदभिव्यापकम्- तिलेषु तैलम्, दनि घृतम् / आधेयसन्निधिमात्रं सामीप्यकम्- गङ्गायां घोषः, वटे गावः / निमित्तमेव नैमित्तिकम्- शरदि पुप्प्यन्ति वनानि / उपचारः प्रयोजनं यस्य तदौपचारिकम्- मम मुष्टिमध्ये राजाऽस्ति, अगुल्या अग्रे करिणां शतम् / . यद्भावो भावलक्षणम् / 2 / 2 / 106 / यस्य क्रिययाऽन्या क्रिया लक्ष्यते ज्ञायते वा ततः सप्तमी स्यात् / गोषु दुह्यमानासु जिनदत्तो गतः / देवे वर्षति श्राद्धः समागतः। सप्तमी चाविभागे निर्धारणे / 2 / 2 / 109 / जाति-गुण-क्रियादिभिः समुदायादेकदेशस्य बुद्धया पृथक्करणं निर्धारणम्, तस्मिन् वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नः सप्तमी वा स्याद्, अविभागे अवयवावयविनोः कथञ्चिदैक्ये शब्दाद् गम्यमाने सति। नृणां नृषु वा क्षत्रियाः शूराः / गवां गोषु वा कृष्णा बहुक्षीराः / गच्छतां गच्छत्सु वा धावनक्रियाकर्ता शीघ्रतरः। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (121) सापीश्वराधिपतिदायादसाक्षिपतिभूप्रसूतैः / 2 / 2 / 98 / एभिर्योगे गौणाद् नाम्नः षष्ठी सप्तमी च स्यात् / गवां गोषु वा स्वामी, ईश्वरः, अधिपतिः, दायादः, साक्षी, प्रतिभूः, प्रसूतः। पृथग्-नाना पञ्चमी च / 2 / 2 / 113 / आभ्यां योगे गौणाद् नाम्नः पञ्चमी तृतीया च स्यात् / पृषम् जिनदत्ताद् जिनदत्तेन वा। नाना जिनपालाद् जिनपालेन वा। विना ते तृतीया च / 2 / 2 / 115 / विनायोगे ते द्वितीया-पन्चम्यौ तृतीया च स्यात् / विना धर्म धर्माद् धर्मेण वा कुतः सुखम् / ...... ऋते द्वितीया च / 2 / 2 / 114 / . ऋते वर्जनार्थकमव्ययम्, तद्योगे गौणाद् नाम्नो द्वितीया फचमी च स्याताम् / ऋते पुण्यं निर्धनत्वम् / ऋते सम्यग्दर्शनज्ञानं-चारित्रेभ्यो न मुक्तिः। उपान्वध्याङ्-वसः / 2 / 2 / 21 / उप अनु अधि आङ् एभियुक्तस्य वसतेराधारः कर्मसञ्जः स्यात् / उपवसति धर्मपालो ग्रामम् / एवमनुवसति, अधिवसति, आवसति.। अधेः शीङ्-स्थाऽऽस आधारः।२।२।२०। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (122) अधिपूर्वाणां शीङ्-स्थाऽऽसधातूनामाधारः कर्म वा स्यात् / अधिशेते अधितिष्ठति अध्यास्ते वा स्वर्ग स्वर्गे वा देवः / वाऽभिनिविशः। 2 / 2 / 22 / ___अभिनीत्येतत्समुदायपूर्वस्य विश्वातोराधारः कर्म वा स्यात / ग्राममभिनिविशते / 'व्यवस्थितविभाषाश्रयणात् क्वचिन्न' निःश्रेयसि अभिनिविशते / .. सहार्थे / 2 / 2 / 45 / सहार्थः- तुल्ययोगो विद्यमानता च, तत्र गम्यमाने गौणाद् नाम्नस्तृतीया स्यात् / पुत्रेण सहागतः पिता। शिष्येण सार्धमागतो गुरुः / नयनाभ्यां साकं श्लक्ष्णा दन्ताः / शिष्यैः सहावश्यक करोति गुरुः / दामः सम्पदानेऽधम्य आत्मने च / 2 / 2 / 12 / सम्पूर्वाद दाम्धातोरधर्म्यरूपे सम्प्रदाने वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नस्तृतीया स्यात्, तत्संनियोगे च दाम आत्मनेपदं स्यात / दास्या सम्प्रयच्छते कामुकः / धर्ये तु भार्यायै सम्प्रयच्छति / ___ कृतायैः / 2 / 2 / 47 / निषेधार्थककृतादिभिर्योगे गौणाद् नाम्नस्तृतीया स्यात् / कृतं तेन / अलं प्रसङ्गेन / किं गतेन / शक्तार्थवषड्नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाभिः / 2 / 2 / 68 / Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (123) एभिर्योगे गौणाद् नाम्नश्चतुर्थी स्यात् / शक्तो जिनदत्तः शिवदत्ताय / वषड् इन्द्राय / नमो जिनेन्द्राय / स्वस्तिशब्दः क्षेमार्थः स्वस्ति श्रीविजयधर्मसूरये, आशिष्यपि स्वस्ति सङ्घाय भूयाद् / अग्नये स्वाहा / पितृभ्यः स्वधा / रुचिक्लृप्यर्थधारिभिः प्रेयविकारोत्तमणेषु / 2 / 2 / 55 / रुच्यर्थकैः क्लृप्यर्थकैर्धारिणा च योगे यथासङ्ख्यं प्रेये विकारे उत्तमणे चार्थे वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नश्चतुर्थी स्यात् / देवदत्ताय रोचते जैनधर्मः तस्याभिलाषमुत्पादयतीत्यर्थः / मूत्राय कल्पते यवागूः / सहस्रं धारयति चैत्रो मैत्राय, उत्तमो धनस्वामी पूर्व परस्य ऋणदाता, ऋणग्राहकस्त्वधमणः / प्रभृत्यन्यार्थदिकशब्दबहिरारादितरैः / 2 / 2 / 75 / . प्रभृत्यर्थैरन्यादिक्शब्दैर्बहिर् आराद् इतर इत्येतैर्युक्ताद् गौणाद् नाम्नः पञ्चमी स्यात् / कार्तिक्या: प्रभृति / वसन्तादारभ्य / अन्यो विष्णुदत्ताद् जिनदत्तः / भिन्नः शिवदत्ताद् विष्णुदत्तः / ग्रामात् पश्चिमायां दिशि वसति / पूर्वोऽवन्त्या गोनर्दः / बहिर्दामाद् वटः / आराद् ग्रामात् क्षेत्रम् / इतरश्चैत्रात् / गुणादस्त्रियां नवा / 2 / 2 / 77 / हेतुभूताद् गुणवाचिनः स्त्रीलिङ्गे वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नः पञ्चमी वा स्यात् / जाड्याद् जाडयेन वा बद्धः / प्रज्ञायाः प्रज्ञया वा मुक्तः / Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 124) कृत्यस्य वा / 2 / 2 / 88 / / कृत्यप्रत्ययान्तस्य कर्तरि षष्ठी वा स्यात् / मया मम वा पूज्या विजयधर्मसूरयः। कर्तरि / 2 / 2 / 86 / कृत्प्रत्ययान्तस्य कर्तरि षष्ठी नित्यं स्यात् / भवतः शायिका / चैत्रस्य स्वापः / देवदत्तस्य .भोजनम् / जिनदत्तस्य पठनम् / - कर्मणि कृतः / 2 / 2 / 83 / कृदन्तस्य सम्बन्धिनि कर्मणि गौगाद् नाम्नः षष्ठी स्यात् / तीर्थस्य कर्ता / ग्रामस्य गमनम् / ओदनस्य पाकः / तृ दवाव्यय-क्वस्वानातृश्-सतृ-डि-णकच-खल्वर्थस्य / 2 / 2 / 90 / तृनन्तस्योदन्तस्याव्ययस्य क्वसोरानस्यातृशः शतुर्णकचः खल्वर्थस्य च प्रत्ययस्य कर्मकोंः षष्ठी न स्यात् / वदिता जनापवादान् / शत्रून् जिष्णुः / देवार्चनं कृत्वा / ओदनं भोक्तुम् / पायं पायं पयो गच्छति / तपः तेपिवान् / प्रवचन विद्वान् / आनेति कानशानाऽऽनशां ग्रह्याम्, पटं चक्राणः / ग्राम पवमानः / ओदनं पचमानः / सूत्रमधीयन् / पटं कुर्वन् / परीषहं सासहिमुनिः। घटस्य पूरकः / सुकरो घटस्त्वया / द्विषो वाऽनृशः / 2 / 2 / 04 / / Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 125) अतृशन्तस्य द्विषः कर्मणि षष्ठी वा स्यात् / चौरस्य चौरं वा द्विषन् / वैकत्र द्वयोः / 2 / 2 / 85 / द्विकर्मकधातोर्द्वयोः कर्मणोरेकस्मिन् षष्ठी वा स्यात् / अजाया ग्रामं नेता / अजां ग्रामं नेता। ग्रामस्याजां नेता / ग्राममजां नेता। __ क्तयोरसदाधारे / 2 / 2 / 91 / सतो वर्तमानादाधाराच्चान्यत्रार्थे विहितौ यो क्त-क्तवतू तयोः कर्मकोंः षष्ठी न स्यात् / कुलालेन घटः कृतः / कुलालो घटं कृतवान् / असदाधार इति किम् राज्ञां ज्ञातः, इदमेषां शयितमित्यादौ षष्ठयेव / 'तृप्तार्थधातूनां करणे वा षष्ठी' फलानां फलैर्वा तृप्तः। हेत्वस्तृतीयाद्याः / 2 / 2 / 118 / . हेतुर्निमित्तं तदर्थैः शब्दैर्युक्तात् तैरेव समानाधिकरणाद् गौणाद् नाम्नस्तृतीयाद्या विभक्तयः स्युः / विद्यया हेतुना, विद्यायै हेतवे, विद्याया हेतोः, विद्याया हेतोः, विद्यायां हेतौ वा. वसति / एवं निमित्त-कारण-प्रयोजनादयः प्रयोक्तव्याः / सर्वादेः सर्वाः।२।२ / 119 / हेत्वथैर्युक्तात् तैरेव समानाधिकरणाद् गौणात् सर्वादेर्नाम्नः सर्वा विभक्तयः स्युः / को हेतुः, कं हेतुम् , केन हेतुना, कस्मै Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / कातिः / .. (126) हेतवे, कस्माद् हेतोः, कस्य हेतोः, कस्मिन् हेतौ वा वसति / एवं निमित्तादीनां योगेऽपि / -आङाऽवधौ / 2 / 2 / 70 / आङा युक्तादवधिवाचिनो गौणाद् नाम्नः पञ्चमी स्यात् / आ पाटलिपुत्राद् वृष्टो मेघः पाटलिपुत्रं मर्यादीकृत्य तदभिव्याप्य वा मेघो वृष्ट इत्यर्थः / आ बालेभ्यो जिनभक्तिः / आ आङ्ग्लभूमेर्विजयधर्मसूरीणां कीर्तिः / पर्यपाभ्यां वज्ये / 2 / 2 / 71 / ____ आभ्यां युक्ताद् वर्जनीयेऽर्थे गौणाद् नाम्नः पञ्चमी स्यात् / परि त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो मेघः, अप त्रिगर्तेभ्यो वृष्टो मेघः त्रिगत मुक्त्वा वृष्ट इत्यर्थः / आख्यातर्युपयोगे / 2 / 2 / 73 / आख्याता वक्ता, नियमपूर्वकविद्याध्ययनमुपयोगः, आख्यातृवाचिनो गौणाद नाम्नो नियमपूर्वकविद्याग्रहणविषये पञ्चमी स्यात् / उपाध्यायादिन्द्रविजयादधीते निधानविनयः / उपयोग इति किम् नटस्य गाथां शृणोति / ... तादर्थ्ये / 2 / 2 / 54 / कञ्चित् पदार्थ निष्पादयितुं यत् प्रवृत्तं तत् तदर्थम्, तस्य भावस्तादर्थ्य सम्बन्धविशेष इत्यर्थः, तस्मिन् द्योत्ये गौणाद् नाम्न Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (127) श्चतुर्थी स्यात् / संयमाय श्रुतं धत्ते / धर्माय संयमम् / धर्म मोक्षाय / धनं दानाय मुक्तये वा। क्रुद्-दुहेाऽसूयार्थैर्य प्रति कोपः / 2 / 2 / 27 / क्रधाद्यर्थानां धातूनां योगे यं प्रति कोपः स सम्प्रदानसञः स्यात् / चैत्राय क्रुध्यति / जिनदत्ताय द्रुह्यति / धर्मपालायेय॑ति / पार्श्वदत्तायासूययति / अत्र सिंहावलोकनन्यायो द्रष्टव्यः / नोपसर्गात् क्रुद्-द्रुहा / 2 / 2 / 28 / ____ उपसर्गात् पराम्यां क्रुद्-द्रुहिभ्यां योगे यं प्रति कोपस्तत् सम्प्रदानसझं न स्यात् / चैत्रमभिक्रुध्यति। ऋषभदत्तमभिPाति / गम्ययपः कर्माधारे / 2 / 2 / 74 / प्रयोगेऽपठितस्य यबन्तस्य कर्मवाचिन आधारवाचिनश्च गौणाद् नाम्नः पञ्चमी स्यात् / प्रासादात् प्रेक्षते प्रासादमारुह्य प्रेक्षत इत्यर्थः / श्वशुराद निरुनि श्वशुरं वीक्ष्य जिहेतीत्यर्थः / सनात् प्रेक्षते आसने उपविश्य प्रेक्षत इत्यर्थः / / 'तद्भद्रायुष्यक्षेमार्थार्थेनाशिषि / 2 / 2 / 66 / हितार्थेश्च सुखार्थेभद्राद्यर्थैर्युक्ताद् गौणाद् नाम्न आशिषि चतुर्थी वास्यात्। हितं जीवानां जीवेभ्यो वा भूयात्। सुखं प्रजानां प्रजाम्यो वा भूयात् / भद्रं शासनस्य शासनाय वा / आयुर्देवदत्तस्य देवदत्ताय वा भूयात् / क्षेमं कल्याणं श्राद्धानां श्राद्धेभ्योवा भूयात् / अर्थश्चैत्रस्य चैत्राय वा भूयाद् / Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (128) तद्युक्ते हेतौ / 2 / 2 / 100 / तेन व्याप्येन युक्ते तद्युक्ते हेतौ वर्तमानाद् गौणाद् नाम्नः सप्तमी स्यात् / चर्मणि द्वीपिनं हन्ति, दन्तयोर्हन्ति कुञ्जरम् / केशेषु चमरी हन्ति, सीम्नि पुष्कलको हतः // 1 // .. षष्ठी वाऽनादरे / 1 / 2 / 108 / अनादरे गम्यमाने यद्भाको यस्य मावस्य लक्षणं तद्वाचिनो गौणाद् नाम्नः षष्ठी वा स्यात् / राना बहुष्वसाधुषु वदत्सु प्रात्राजीत् / बहुषु साधुषु वदत्सु स्वयमार्यो भगवान् साधुमार्गेण गतवान् / एवं बहुषु साधुषु वदत्सु अनार्योऽनार्यमार्गेण गतवान् / पक्षे बहूनां साधूनां वदतामिति षष्ठी। ' कर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च / अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणि षट् // 1 // द्वितीया कर्मणि ज्ञेया कर्तरि प्रथमा यदा / उक्तकर्तृप्रयोगे तु प्रथमैव प्रयुज्यते // 2 // यदा कर्तरि तृतीया कर्मणि प्रथमा तदा / उक्तकर्मप्रयोगे तु क्यो न स्याञ्च परस्मैपदम् // 3 // इति कारकमकरणं समासम् / 1 गुद-मेदान्तरालाङ्गं सीमेति प्रोच्यते बुधैः / पुष्कलको मृगभेदः स्याद् वन्योऽसौगन्धहेतुंकः // Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (129) अथ समासप्रकरणम् / समर्थः पदविधिः / 7 / 4 / 122 / यः कश्चिदिह शास्त्रे पदविधिः श्रूयते स समर्थो ज्ञातव्यः, विधीयत इति विधिः पदानां पदयोः पदस्य वा विधिः पदविधिः; स पुनः समासादिः समर्थः शक्तः। विग्रहवाक्यार्थाभिधाने यः शक्तः सं समर्थो नाम शक्को बोद्धव्यः / तच्च सामर्थ्यमेका भावलक्षणम्, एकार्थीभावश्च परस्परान्वयित्वेन मिलितानां पदानामेकक्रियाऽन्वयित्वरूपम् / अथवा समर्थानां सम्बद्धार्थानां परस्परं संसृष्टार्थानां पदानां विधिः समर्थपदविधिर्बोद्धव्यः / नाम नाम्नैकायें समासो बहुलम् / 3 / 1 / 18 / नाम नाम्ना सह परस्परान्वयरूपे ऐकार्थ्यरूपसामध्ये सति समाससंज्ञं बहुलं स्यात् / लक्षणमधिकारश्चेदं सूत्रं तेन यत्र विशेषसज्ञाऽभावः तत्रानेनैव समासविधिः / विस्पष्टं पटुः विस्पष्टपटुः इत्यादिः / नामेति किम् ,चरन्ति गावो धनमस्य / नाम्नेति किम् , चैत्रः पचति / क्वचिदनामापि, भाति अर्को यत्र तद् भात्यक नभः / क्वचिदनाम्नाऽपि अनुव्यचलत् / ऐकायें / 3 / 2 / 8 / - ऐकार्थ्यमैकपद्यमेकविभक्तिकत्वं च तन्निमित्तस्य स्यादेविभक्ते Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (130) टुक् स्यात् / पूर्व भूतः- भूतपूर्वः / राज्ञः पुरुषः- राजपुरुषः / बहुलाधिकारात् क्वचिदिवेन समासो विभक्तेरलोपश्च जीमूतस्येव इत्यादि। समासश्चतुर्धा-अव्ययीभाव-तत्पुरुष-द्वन्द्व-बहुव्रीहिभेदात् / अयं च प्रायोवादः-भूतपूर्वः, इन्भूः, कारभूः, आयतस्तु, विस्पष्टपटुरित्यादीनां समस्यमानत्वेऽप्यसंग्रहात् / तथाऽपरोऽपि प्रायोवाद:पूर्वपदप्रधानोऽव्ययीभावः, उत्तरपदप्रधानस्तत्पुरुषः, उभयपदप्रधानो द्वन्द्वः, अन्यपदप्रधानो बहुव्रीहिश्चेति; उन्मत्तगङ्गमित्यादावव्ययीभावेऽपि पूर्वपदप्राधान्याभावादव्ययीभावलक्षणस्याव्याप्तेरन्यपदप्रधानरूपबहुव्रीहिलक्षणस्यातिव्याप्तेश्व, एवं सूपप्रति इत्यत्रोत्तरपदार्थप्राधान्यात् तत्पुरुषलक्षणस्यातिव्याप्तिरव्ययीभावलक्षणस्याव्याप्तिश्च, अर्धपिप्पलीत्यत्र तत्पुरुषे पूर्वपदप्राधान्यादव्ययीभावलक्षणातिव्याप्तिस्तत्पुरुषलक्षणाव्याप्तिश्च, द्वित्रा इत्यादौ बहुव्रीहौ द्वयपदार्थप्राधान्याद् द्वन्द्वलक्षणस्यातिव्याप्तिबहुव्रीहिलक्षणस्याव्याप्तिश्च, शशकुशपलाशम् इत्यत्र समाहारद्वन्द्वे समाहाररूपान्यपदार्थप्राधान्याद् बहुव्रीहिलक्षणातिव्याप्तिर्द्वन्द्वलक्षणाव्याप्तिश्च / तस्मान्नैतानि अव्ययीभावादीनां लक्षणानि, किन्तु-अव्ययीभावाधिकारपठितत्वमव्ययीभावत्वं, तत्पुरुषाधिकारपठितत्वं तत्पुरुषत्वं, द्वन्द्वाधिकारपठितत्वं द्वन्द्वत्वं, बहुव्रीह्यधिकारपठितत्वं बहुव्रीहित्वम् / विभक्ति-समीप-समृद्धि-व्यद्धयर्थाभावात्ययासम्पति-पश्चातक्रम-ख्याति-युगपत्-सदृक्-सम्पत्-साकल्यान्तेऽव्य यम् / 3 / 1 / 39 / Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (131) विभक्त्याद्यर्थेषु यदव्ययं तद् नाम्ना सहैकार्थे सति पूर्वपदार्थांभिधेये नित्यं समस्यते, स समासोऽव्ययीभावसङ्घकः स्यात् / अत्र विभक्तिपदेन विभक्त्यर्थो ग्राह्यः / स्त्रीष्वधिकृत्य कथा प्रवर्तत इति वाक्येऽधिकरणरूपस्य सप्तम्या अर्थस्य द्योतकमधि अव्ययं स्त्रीनाम्ना सह समस्तम् इति 'ऐकाय' इत्यनेन विभक्तेलुपि स्त्री+अधि इति स्थिते .. प्रथमोक्तं प्राक् / 3 / 1 / 148 / -- इह समासप्रकरणे प्रथमान्तपदेन यदुक्तं तत्प्राक् प्रयोक्तव्यम् / 'द्वन्द्वैकत्वाव्ययीभावौ' इति लिङ्गानुशासनात् क्लीबत्वम्, ततश्च 'क्लीबे' इति हस्खे अधिस्त्रि / एवं कुमार्यामिति अधिकुमारि / नित्यसमासाधिकारेऽस्वपदेनैव विग्रहः, न तु समस्यमानाभ्यां पदाभ्याम् / समीपे- कुम्भस्य समीपम् अत्रापि सर्व पूर्ववत् समुदितस्य तु विभक्तेः- . . .... अमव्ययीभावस्यातोऽपञ्चम्याः / 3 / 2 / 2 / . अदन्तादव्ययीभावात् परस्य स्यादेरम् स्यात्, पञ्चर्मी त्यक्त्वा / उपकुम्भम् अस्ति पश्यति वा सर्वत्राम् / 'तृतीयायां सप्तम्यां च विकल्पेन अम् कर्तव्यः / उपकुम्भेन उपकुम्भं कृतम्, उपकुम्भे उपकुम्भं निधेहि / ऋद्धराधिक्यं समृद्धिः- कुमारपालस्य समृद्धिः सुकुमारपालम् / ऋद्धेरभावो व्यृद्धि- ब्राह्मणानां व्यृद्धि दुर्बाह्मणम् / अर्थाभावो नाम वस्तूनामभाव:- लुम्पकानामभावो Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (132) निलम्पकम् / अत्ययो नामातीतत्वं विद्यमानस्यातिक्रमः- अतीतानि शीतानि निःशीतं वर्तते / असम्प्रति- वर्तमानकाले उपभोगाभावःकम्बलस्य सम्प्रति उपभोगाभाव इति अतिकम्बलम्-कम्बलमूर्णावस्त्रं तस्यायमुपभोगकालो न भवतीत्यर्थः / पश्चात्- रथस्य पश्चादनुरथं पदातिर्याति / क्रमः-आनुपूर्वी ज्येष्ठस्य क्रमेणेति अनुज्येष्ठं गच्छ- . न्तु भवन्तः-ज्येष्ठानुपूर्व्या . गच्छन्तु इत्यर्थः / ख्यातिः-प्रथाइतिहेमचन्द्रम् इतिधर्मसूरि हेमचन्द्रस्य धर्मसूरेश्च ख्यातिरित्यर्थः / योगपद्यमेककालता चक्रेण सहककालं गदां धेहीति सचक्रम्, अत्र 'अकालेऽव्ययीभावे' इति सहशब्दस्य सादेशः / सदृग्व्रतेन सदृशमिति सव्रतम् / सम्पत्-अनुरूप आत्मभाव:- साधूनां ब्रह्मणः सम्पदिति सब्रह्म-साधूनां सम्पन्नं ब्रह्मेत्यर्थः / साकल्यमशेषता-सतृणमभ्यवहरति न किञ्चित् त्यजतीत्यर्थः / अन्तःसमाप्तिः सपिण्डैषणमधीते पिण्डैषणापर्यन्तमधीत इत्यर्थः / योग्यता-चीप्सा-र्थानतिवृत्ति-सादृश्ये। 3 / 1 / 40 / एष्वर्थेषु वर्तमानमव्ययं नाम नाम्ना सह समस्यते, सच समासोऽव्ययीभावसञ्जकः स्यात् / योग्यता-रूपस्य योग्यमनुरूपं चेष्टते / वीप्सा अर्थमर्थं प्रति प्रत्यर्थम् / शक्तिमनतिक्रम्य पठतीति यथाशक्ति / शीलस्य सादृश्यम्-सशीलमनयोः समान- . शीलतेत्यर्थः / यथाऽथा।३।१। 41 / / Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (133) .. थाप्रत्ययरहितं यथेत्यव्युत्पन्नं नाम नाम्ना सह समस्यते पूर्व'पदार्याभिधेये / यथावृद्धं श्राद्धान् आमन्त्रयस्व-ये ये वृद्धास्तान् इत्यर्थः। अथेति किम् , यथा चैत्रस्तथा मैत्रः / पूर्वेणैव सिद्धे सादृश्यप्रतिषेधार्थ सूत्रम् / यावदियत्त्वे / 3 / 1 / 31 / यावदित्यव्ययमवधारणे वर्तमानं नाम्ना सह समस्यते, सच समासोऽव्ययीभावसञ्जकः स्यात् / यावदमत्रं श्राद्धान् मोजययावन्त्यमत्राणि सम्भवन्ति तावतो भोजयेत्यर्थः / नित्यं प्रतिताऽल्पे / 3 / 1 / 37 / अल्पार्थे वर्तमानेन प्रतिना सह नाम समस्यते, स चाव्ययीभावः / शाकस्याल्पत्वं शाकप्रति। सूपप्रति। इत्यव्ययीभावसमासप्रकरणम् / . अथ तत्पुरुषः। श्रितादिभिः / 3 / 1 / 62 / - द्वितीयान्तं नाम श्रितादिभिर्नामभिः सह समस्यते, सच समासस्तत्पुरुषसंज्ञः स्यात् / जिनं श्रितः जिनश्रितः। संसारमतीतः संसारातीतः / नरकं पतितः नरकपतितः / पादलिप्तं गमी पादलिप्तगमी / तुहिनमत्यस्तः तुहिनात्यस्तः / - प्राप्तापन्नौ तयाऽच्च / 3 / 1 / 63 / Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 134 ) तया द्वितीयान्तेन नाम्ना प्राप्ताऽऽपन्नौ समस्येते, स च समासस्तत्पुरुषसज्ञः स्यात् / तत्सन्नियोगे चानयोरन्तस्याऽकारादेशः स्यात् / जीविकां प्राप्तः प्राप्तजीविकः / जीविकामापन्न:आपन्नजीविकः / अद्वचनं स्त्रीलिङ्गार्थम् / प्राप्ताजीविका / आपबाजीविका / श्रितादित्वाच्च जीविकां प्राप्तः जीविकाप्राप्तः, जीविकामापन्नः जीविकापन्नः।। द्वितीया खट्वा क्षेपे / 3 / 1 / 59 / खट्वेति द्वितीयान्तं नाम नाम्ना सह समस्यते क्षेपे गम्ये / क्षेपो निन्दा स च समासार्थः, तेन विभाषाधिकारेऽपि नित्यसमास एवायम् / खट्वारोहणं च विमार्गप्रस्थानस्योपलक्षणं तेन सर्वाविनीतशिरोमणिः खट्वारूढशब्देनोच्यते। खट्वामारूढः खट्वारूढो जाल्मः-अपथप्रस्थित इत्यर्थः। कारकं कृता / 3 / 1 / 68 / कर्तृकरणरूपं कारकं तृतीयान्तं कृदन्तेन नाम्ना सह समस्यते, स च समासस्तत्पुरुषः स्यात् / आत्मना कृतमात्मकृतम् / कृद्ग्रहणे गतिकारकपूर्वस्यापि ग्रहणमिति न्यायेन नखैर्निभिन्नःनखनिर्भिन्नः / परशुना च्छिन्नः-परशुच्छिन्नः / तृतीया तत्कृतैः। 3 / 1 / 65 / तृतीयान्तं नाम तत्कृतैर्गुणवचनैर्नामभिः सह समस्यते / तत्कृतैरिति तदर्थकृतस्तेन तृतीयान्तार्थकृतैर्गुणवचनैरिति ग्राह्यम् / Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 135) शस्कुलया खंण्ड:- शङ्कुलाखण्डः- शङ्कुलया कृतः खण्ड इत्यर्थः / किरिणा काणः-किरिकाणः। धान्येनार्थ:-धान्यार्थः / तस्कृतैरिति किम् , अक्ष्णा काणः / चतुर्थी प्रकृत्या।३।१।७०। चतुर्थ्यन्तं विकृतिवाचि नाम प्रकृतिवाचिना नाम्ना सह समस्यते, स च समासस्तत्पुरुषः स्यात् / घटाय मृत्तिका-घटमत्तिका / कुण्डलाय हिरण्यम्-कुण्डलहिरण्यम् / यूपाय दारुयूपदारु / हितादिभिः।३।१।७१। चतुर्थ्यन्तं नाम हितादिभिर्नामभिः सह समस्यते / साधुभ्यो हितम्-साधुहितम् / श्राद्धाय सुखम्-श्राद्धसुखम् / श्राविकायै रक्षितम्-श्राविकारक्षितम् / भूताय बलि:- भूतबलिरित्यादिः / तदर्थार्थेन / 3 / 1 / 72 / / चतुर्थ्यन्तं नाम तदर्थेन चतुर्थ्यर्थेनार्थशब्देन सह नित्यं समस्यते, स च समासस्तत्पुरुषः / वाच्यलिङ्गता / कुमारपालायेदम्-कुमारपालार्थमिदं राज्यम् / श्राद्धायेयं यवागू:-श्राद्धा यवागूः / उदकायायम्-उदकार्थो घटः / पञ्चमी भयाद्यैः / 3 / 1 / 73 / . . पञ्चम्यन्तं नाम भयाद्यैर्नामभिः सह समस्यते स च समासः तत्पुरुषः स्यात् / नरकेभ्यो भयम्-नरकमयम् / धर्मादपेतः Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 136) धर्मापेतः / सुखापेतः / कल्पनाप्रौढः / अधर्माद् जुगुप्सुः-अधमजुगुप्सुः / सुखपतित इत्यादिः। क्तेनासचे / 3 / 1 / 74 / असत्त्वे वर्तमाना या पञ्चमी तदन्तं नाम क्तप्रत्ययान्तेन नाम्ना सह समस्यते, स च तत्पुरुषः / स्तोकान्मुक्तः / अन्तिकादागतः। अभ्याशादागतः / दूरादागतः। विप्रकृष्टादागतः / कृच्छ्रान्मुक्तः / 'असत्त्वे उसेः / इत्यलुक्समासः / ' परःशताद्या निपातनाद् ज्ञेयाः ' शतात् परे, सहस्रात् परे, लक्षात् परे; परः शताः, परस्सहस्राः, परोलक्षा इत्यादयः / . षष्ठ्ययत्नाच्छेषे / 3 / 1 / 76 / . शेषे या षष्ठी तदन्तं नाम नाम्ना सह समस्यते, न चेत् स.शेषो यत्नाद् विहितः स्यात् / कर्मसज्ञायां सिद्धायां पक्षे च कर्माविवक्षायां सम्बन्धमात्रविवक्षया षष्ठ्यां सिद्धायां सत्यां या सूत्राप्यस्य कर्मसञ्ज्ञा विकल्पिता पक्षे च षष्ठी कृता सा सर्वा षष्ठी यत्नषष्ठी, यत्नात् शेषे षष्ठी जातेति यत्नशेषषष्ठी कथ्यते / ' नाथः , ' स्मृत्यर्थदयेश: ' इत्यादिना यत्नाद् विहितः शेषः-यत्नशेष इत्यर्थः, तं यत्नशेषं वर्जयित्वा या षष्ठी तदन्तं नाम समस्यत इत्यर्थः / राज्ञः पुरुषः-राजपुरुषः / गृहस्थानां गृहम्-गृहस्थगृहम् / गवां क्षीरम्-गोक्षीरम् / अयत्नादिति किम्, मातुः स्मारकः, सर्पिषो नाथकः अत्र सम्बन्धषष्ठी, न कृदन्तकर्मनिमित्ता। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (137) __कृति / 3 / 1 / 77 / 'कर्मणि कृतः , ' कर्तरि ' एतत्सूत्रद्वयेन कृत्प्रत्ययनिमित्ता या षष्ठी उक्ता तदन्तं नाम नाम्ना सह समस्यते / सिद्धसेनस्य कृतिः-सिद्धसेनकृतिः / गणधराणामुक्तिः-गणधरोक्तिः / इध्मवृश्वनः / पलाशशातनः / सप्तमी शौण्डायैः / 3 / 1 / 88 / सप्तम्यन्तं नाम शौण्डादिभिर्नामभिः सह समस्यते, सच तत्पुरुषसज्ञः स्यात् / अक्षेषु शौण्ड:-अक्षशौण्डः, इह शौण्डशब्दो व्यसने वर्तते / अक्षधूर्तः / अक्षकितवः / वृत्तौ प्रसक्तिक्रियाया अन्तर्भावाद् अक्षादिष्वधिकरणे सप्तमी। बहुवचनमाकृतिगणार्थम् / 'काकाद्यानां क्षेपे गम्यमाने समासो वाच्यः' तीर्थे काक इव-तीर्थकाकः इत्यादि / 'पात्रेसमितादयो निपातनात् साधवः' पात्रे एव समिता न तु कायें इति पात्रेसमिताः, पानेबहुलाः, गेहेशूर इत्यादयः / अग्नावाहितः-आहिताग्निरित्यादौ पूर्वप्रयोगः क्वचिद् द्रष्टव्यः / / नञ् / 3 / 1 / 51 / ननिति नाम नाम्ना सह समस्यते, स च समासस्तत्पुरुषः स्यात् / नञ् द्विविधः, यदुक्तम्... * उभौ नौ समाख्यातौ पर्युदासप्रसज्यको / पर्युदासः सदृग्याही प्रसज्यस्तु निषेधकृत् // 1 // Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (138) प्राधान्यं तु विधेर्यत्र प्रतिषेधेऽप्रधानता / पर्युदासः स विज्ञेय उत्तरपदगतो नञ् // 2 // अप्राधान्यं विधेर्यत्र प्रतिषेधे प्रधानता / प्रसज्यप्रतिषेधोऽयं क्रियया सह यत्र नञ् // 3 // न मनुष्यः- अमनुष्यः, न सूर्य पश्यन्तीति-असूर्यम्पश्या राजदाराः / पुनरपि तत्सदृशन्तद्विरुद्ध-तदन्य-तदभावभेदात् स नम् चतुर्धा / न ब्राह्मणः अब्राह्मणः ब्राह्मणसदृश इत्यर्थः। न धर्मोऽधर्मः तद्विरुद्ध इत्यर्थः / न वायुः अवायुः वायुभिन्नः पदार्थ इत्यर्थः / न वचनमवचनं वचनाभाव इत्यर्थः / प्रथमत्रयाणां पर्युदासे चतुर्थस्य प्रसज्ये चान्तर्भावः। __ नबत् / 3 / 2 / 125 / नशब्दस्य स्थाने अकारादेशः स्यादुत्तरपदे परे / अब्राह्मणः / अहिंसा / असत्यम् / अस्तेयम् / नखादयः / 3 / 2 / 128 / नखादयः शब्दा अकृतनञकारादेशा निपात्यन्ते / नास्य खं विद्यते इति नखः / न भ्राजत इति नभ्राट् / न पातीति नपात् / न विदन्तीति नवेदाः / सत्सु साधुः सत्यः, न सत्यः असत्यः, न असत्यः नासत्यः। न मुञ्चतीति नमुचिः / नास्य कुलमस्तीति नकुलः / न पुमान् न स्त्रीति नपुंसकः / न क्षरति क्षीयते वेति नक्षत्रम् / न कामतीति नक्रः / नास्मिन् अर्क दुःखमस्तीति Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (139). नाकः / न विद्यन्तै नाः श्रियः छन्दांसि वा यस्येति नग्नः / न गच्छतीति नगः / न अगः नागः / एवं नमेरुः, ननान्दा, न. मागः, नान्तरीयः / नवाद इत्यादयः / / अन् स्वरे / 3 / 2 / 129 / स्वरादावुत्तरपदे परे नजित्यस्य अनित्यादेशः स्यात् / न विद्यते अन्तो यस्येति अनन्तः / न अश्वः-अनश्वः / न अज:अनजः। इति नञ्समासपकरणम् / विशेषणं विशेष्येणैकार्थ कर्मधारयश्च / 3 / 1 / 96 / भेदकं विशेषणं, भेद्यं विशेष्यम् / भिन्नप्रवृत्तिनिमित्तयोः शब्दयोरेकस्मिन्नर्थे वृत्तिरैकार्थ्यं सामानाधिकरण्यम् / विशेषणवाचि नाम विशेष्यवार्चिना समानाधिकरणेन नाम्ना सह समस्यते, स च समासस्तत्पुरुषसब्ज्ञः सन् कर्मधारयसञः स्यात् / नीलं च तदुत्पलं चेति नीलोत्पलम् / रक्तं च तत् कमलं च रक्तकमलम् / कृष्णा चासौ शाटी च कृष्णशाटी। पुमांश्चासौ गौश्च पुङ्गवः / विशेषणमिति किम् ,तक्षकः सर्पः / विशेष्येणेति किम् , लोहितः तक्षकः / विशेषण-विशेष्ययोः सम्बन्धिशब्दत्वेनैकतरो. पादानेनैव सिद्धे उभयोरुपादानं परस्परव्यवच्छेद्यव्यवच्छेदकत्वे समासो यथा स्यात् / Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (140) उपमानं सामान्यैः।३।१।१०१।.. उपमीयतेऽनेनेत्युपमानम् / उपमानवाचि नामैकार्थ सामान्यवाचिभिरेव नामभिः समस्यते, स च तत्पुरुषः सन् कर्मधारयः स्यात् / उपमानोपमेयोभयगतसाधारणधर्मः सामान्यम् / शस्त्रीव शस्त्री, शस्त्री चासौ श्यामा च शस्त्रीश्यामा / घनश्यामः / उपमानमिति किम् , देवदत्तः श्यामा / सामान्यैरिति किम्, पर्वता इव बलाहकाः। उपमेयं व्याघ्रायः साम्यानुक्तौ / 3 / 1 / 102 / उपमेयवाचि नाम सामर्थ्यादुपमानवाचिभिर्व्याघ्रादिभिः सह समस्यते, स च तत्पुरुषकर्मधारयसम्ञः स्यात् / न चोपमानोपमेययोः साधारणधर्मवाची शब्दः प्रयुज्यते / व्याघ्र इव व्याघ्रः, पुरुषश्चासौ व्याघ्रश्च पुरुषव्याघ्रः / पुरुषसिंहः / साम्यानुक्ताविति किम् , पुरुषो व्याघ्र इव शूरः / __पुंवत् कर्मधारये / 3 / 2 / 57 / उङन्तवर्जा परतः स्त्री कर्मधारय समासे ख्येकार्थे उत्तरपदे परे पुंवद् भवति / प्रतिषेधनिवृत्त्यर्थमिदम् / कल्याणी चासौ प्रिया च कल्याणप्रिया / मद्रिका चासौ भार्या च मद्रकभार्या / माथुरवृन्दारिका / चन्द्रमुखमार्या। ङस्युक्तं कृता / 3 / 1 / 49 / Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृत्प्रत्ययविधायके सूत्रे ङसिना पञ्चम्यन्तेन नाम्ना यदुक्तं तद् ङस्युक्तम् / ङस्युक्तं नाम कृत्प्रत्ययान्तेन नाम्ना सह नित्यं समस्यते, स च समासस्तत्पुरुषसञो भवति / कुम्भं करोतिकुम्भकारः / शरलावः / 'तृतीयोक्तं तु वा समस्यते' मूलकोपदंश भुङ्क्ते, मूलकेनोपदशं भुङ्क्ते वा / प्रादयो गत्याद्यर्थे प्रथमान्तेन, अत्यादयः क्रान्ताद्यर्था द्वितीयान्तेन, अवादयः क्रुष्टाद्यर्थे तृतीयान्तेन, पर्यादयो ग्लानाद्यर्थे चतुर्थ्यन्तेन, निरादयः क्रान्ताद्यर्थे पञ्चम्यन्तेन समस्यते, स च समासस्तत्पुरुषः। प्रगत आचार्यः-प्राचार्यः। खट्वामतिक्रान्तः-अतिखट्वः / कोकिलया अवक्रुष्टः-अवकोकिलः। अध्ययनाय परिग्लानः-पर्यध्ययनः / कौशाम्ब्या निष्क्रान्तःनिष्कौशाम्बिः / तिः / सङ्ख्या समाहारे च द्विगुश्चानाम्न्ययम् / 3 / 1 / 99 / अनेकस्य कथन्चिदेकत्वं समाहारः / सङ्ख्यावाचि नाम परेण नाम्ना सह समस्यते, सञ्जाविषये तद्धितविषये उत्तरपदे च परे समाहारेऽभिधेये च, स च तत्पुरुषः कर्मधारयश्च स्याद् अयमेव समासोऽसञ्ज्ञायां द्विगुश्च स्यात् / सञ्जाविषये- पञ्च च . ते ग्रामाश्च-पञ्चग्रामाः, सप्तर्षयः / तद्धितविषये-द्वयोर्मात्रोरपत्यं पुमान् द्वैमातुरः, पन्चनापितिः / उत्तरपदे- पञ्च गावो धनमस्य पञ्चगवधनः, दशग्रामधनः। समाहारे-पञ्चानां पूलानां समाहारः-.. पञ्चपूली, पन्चफली। समाहारे चेति किम् , अष्टौ प्रवचनमातरः। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (142) कोः कत् तत्पुरुषे / 3 / 2 / 130 / स्वरादावुत्तरपदे परे तत्पुरुषसमासे कुशब्दस्य कदादेशः स्यात् / कुत्सितमन्नम्-कदन्नम् / कदश्वः / रथ-चदे / 3 / 2 / 131 / कुशब्दस्य रथे वदे चोत्तरपदे कदादेशः स्यात् / कद्रथः / कद्वदः / काक्ष-पथोः / 3 / 2 / 134 / कुशब्दस्य कादेशः स्यादनयोः परयोः / काक्ष: / कापथः / 'पुरुषे वा' कापुरुषः, कुपुरुषः / 'अल्पार्थस्यापि कोः काऽऽदेशः' कामधुरम् अल्पमधुरमित्यर्थः / ___ का-कवौ वोष्णे / 3 / 2 / 137 / उष्णे उत्तरपदे का-कवौ वाऽऽदेशौ स्याताम्। ईषदुष्णम्कोष्णम्, कवोष्णम् / पक्षे यथाप्राप्तमिति तत्पुरुषे कदुष्णम्। बहुव्रीहौ कूष्णः / परतः स्त्री पुंवत् रूयेकार्थेऽनङ् / 3 / 2 / 49 / अन्यतो विशेष्यवशात् स्त्रीलिङ्गः स्त्रियां वर्तमाने तुल्याधिकरणे उत्तरपदे परे पुंवत् स्यात् / न तूङन्तः / दर्शनीया भार्या यस्य स दर्शनीयमार्यः / पट्वी भार्या यस्य स पटुभार्यः / . परतः स्त्रीत्यादि किम् , गङ्गाभार्यः, गृहिणीनेत्रः / अनूङिति किम् , ब्रह्मबन्धूमार्यः। Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (143) क्यङ्-मानि-पित्तद्धिते / 3 / 2 / 50 / क्यङ्प्रत्यये मानिनि चोत्तरपदे परे पित्तद्धिते च परत: स्त्री पुंवत् स्याद् , अनूङ् / श्येनी इवाचरति-श्येतायते, एनीवाचरतिएतायते / दर्शनीयां मन्यते-दर्शनीयमानी अयमस्याः / दर्शनीयकल्पा / अजथ्यं यूथम् / . नापियादौ / 3 / 2 / 53 / ..पूरण्यप्प्रत्ययान्ते स्त्रयेकार्थे उत्तरपदे प्रियादौ च पुंवद्भावो न भवति / कल्याणी पञ्चमी यासु ताः कल्याणीपञ्चमा रात्रयः। कल्याणीप्रिया यस्य स कल्याणीप्रियः / एवं प्रियासुभगः, भव्याप्रियः / प्रिया, भक्ति, मनोज्ञा, सुभगा, दुर्भगा, क्षान्ता, कल्याणी, चपला, सचिवा, समा, वामा, कान्ता, बाला, तनया, दुहित, स्वस इत्यादिप्रियादयः। तद्धिताककोपान्त्यपूरण्याख्याः / 3 / 2 / 54 // तद्धितप्रत्ययस्याकंप्रत्ययस्य च यः कः स उपान्त्यो यासां ताः पूरणप्रत्ययान्ताः सञ्ज्ञाश्च परतः स्त्री पुंवद् न भवति / मद्रिका भार्या यस्य स मद्रिकाभार्यः / लाक्षिकाभार्यः। अककारिका भार्या यस्य स कारिकामायः, हारिकामायः। पूरणीद्वितीया भार्या यस्य स. द्वितीयमार्यः, पञ्चमीभार्यः। आख्यादत्ता भार्या यस्य स दत्ताभार्यः / तद्धिताकविशेषणं किम्, पाका मार्या. यस्य स पाकमार्यः। स्वाजाद् डीर्जातिश्चामानिनि / 3 / 2 / 56 / Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (144) स्वाडाद विहितो यो ङोस्तदन्तो जातिवाची च परतः स्त्री पुंवद् न भवति, मानिनि परे न / दीर्घकेशी भार्या यस्य स दीर्घकेधीभार्यः / एवं चन्द्रमुखीभार्यः। जातिः- ब्राह्मणी भार्या यस्य स ब्राह्मणीभार्यः / अमानिनीति किम् , दीर्घकेशमानिनी / कठ• मानिनी इत्यादि। तद्धितः स्वरवृद्धिहेतुररक्तविकारे / 3 / 2 / 55 / स्वरस्थानाया वृद्धहेतुभूतो रक्तविकाराच्चान्यत्रार्थे विहितो यस्तद्धितस्तदन्तः परतः स्त्री पुंवद् न भवति / मैथिली भार्या यस्य स मैथिलीभार्यः / एवं माथुरीभार्यः / वैदर्भीभार्यः / तद्धित इति किम् , कुम्भकारी भार्या यस्य स कुम्भकारभार्यः / वृद्धिहेतुरिति किम्, शोभनतरा भार्या यस्य स शोभनतरभार्यः / अन्ये तु वृद्धिहेत्वोस्तद्धितप्रत्यययोः ब्णितोरेव प्रतिषेधमिच्छन्ति, तन्मते वैयाकरणीभार्यः इत्यादिर्भवति / अरक्तेति किम् , कषायेण रक्ता काषायी, काषायी वृहतिका यस्य स काषायवृहतिकः, लोहस्य विकारो लौही, सा ईषा यस्य स लौहेषः / इति तत्पुरुषसमासप्रकरणम् / Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 146) अथ बहुव्रीहिसमासप्रकरणम् / एकार्थ चानेकं च / 3 / 1 / 22 / एकः समानोऽर्थोऽधिकरणं यस्य तदेकार्थसमानाधिकरणमिति यावद् / एकमनेकं चैकार्थ नामाव्ययं च नाम्ना सह समस्तं भवति द्वितीयाद्यन्तस्यान्यपदस्यार्थे वाच्ये सति; स च समासो बहुव्रीहिसञ्जको भवति / प्राप्तमुदकं यमसौ प्राप्तोदको ग्रामः, उदो. रथो येन स ऊढरथोऽनड्वान् , उपहृतो बलिय॑स्मै स उपहृतवलि. यक्षः, उद्धृत ओदनो यस्याः सा उद्धृतौदना स्थालिः, वीराः पुरुषा यस्मिन् स वीरपुरुषों रणः, चित्रा गावो यस्य स चित्रगु देवदत्तः। अनेक- शोभना सूक्ष्मा जटा केशा यस्यासौ सुसूक्ष्मजटकेशः, सुलभमजिनं वासो यस्मिन् तत् सुलभानिनवासः क्षेत्रम् / अव्ययम्- उच्चैर्मुखं यस्य स उच्चैर्मुखः, एवं नीचैर्मुखः, कर्तुकामः, अन्तरङ्गम् / व्यधिकरणत्वेनाव्ययस्य प्राप्त्यभावाद् चपदेन तदनुकर्षणम्। बहुव्रीहिर्द्विविधः-तद् गुणसंविज्ञानोऽतद्गुणसंविज्ञानश्च / प्रधानस्यैकदेशो विशेषणतया यत्र ज्ञायते स तद्गुणसंविज्ञानो यथा लम्बकर्णश्चैत्रः; यत्र न ज्ञायते सोऽतद्गुणसंविज्ञानो यथा पीतसमुद्रः / 'उध्रमुखादयो बहुव्रीहिसमासान्ता निपातनाद केदितव्याः' उष्ट्रस्य मुखमिव मुखं यस्य स उष्ट्रमुखः, अत्र व्यधिकरणसमासो मुखशब्दस्येवशब्दस्य च लोपश्च निपातनात् विधेयः / एवं 10 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (146) हरिणाक्षी, हंसगमनाऽऽदयोऽस्मिन् गणे द्रष्टव्याः / प्रादिपूर्व धातुजं पदं समस्यते, विकल्पेन उत्तरपदलोपश्च / प्रपतितानि पर्णानि यस्य स प्रपर्णः, न विद्यमानः पुत्रो यस्य स अपुत्रः, पक्षे अपतितपर्णः, अविद्यमानपुत्र इति / __सहस्तेन / 3 / 1 / 24 / ... तुल्ययोगे विद्यमानायें च वर्तमानं सहेति नाम तृतीयान्तेन नाम्ना समस्यते, अन्यपदार्थे स च बहुव्रीहिः / तुल्ययोगो द्रव्यगुणक्रियया। पुत्रेण सह गोमान सपुत्रोगोमान्, पुत्रेण सह स्थूल: सपुत्रः स्थूलः, पुत्रेण सहागतः सपुत्र आगतः / विद्यमानता- सह कर्मणा वर्तत इति सकर्मा जीवः, सलोमकः पुरुषः। सहेति किम्साकं पुत्रेण / सहस्य सोऽन्यार्थे / 3 / 2 / 143 / - उत्तरपदे परे बहुव्रीहौ सहस्य स आदेशो वा स्यात् / सपुत्रः, सच्छात्रः / विशेषण-सर्वादि-संख्यं बहुव्रीहौ / 3 / 1 / 150 / .. विशेषणं सर्वादि संख्यावाचि च बहुव्रीहौ प्राग् निपतति / चित्रगुः, कालकण्ठः, मोक्षबुद्धिः, सर्वशुक्लः, त्रिकृष्णः / प्रियशब्दो वा प्राग् निपतति' गुडप्रियः, प्रियगुडः / गवादिभ्यः / 3 / 1 / 156 / Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्रहरणार्थास प्रासे योगोषणासात् (147) एम्यः सप्तम्यन्त बहुव्रीहौ वा प्राक् निपतति। विशेषणत्वात् सप्तम्यन्तस्य पूर्वेण पूर्व निपाते नित्यं प्राप्ते योगो विकल्पार्थः / कण्ठेगहुः गडुकण्ठः / 'प्रहरणार्थादिन्द्वादिगणाच्च सप्तम्यन्तं प्राक् न निपतति' असिपाणिः, इन्दुमौलिः। ताः / 3 / 1 / 151 / तान्तं बहुव्रीही सर्वत्र प्राक् प्रयोक्तव्यम् / कृतकटः / 'आहिताग्न्यादिषु तु कान्तं वा प्राक् प्रयोजनीयम् आहितामिः, अग्न्याहितः / एवं 'प्रहरणार्थादपि क्तान्तं विकल्पेन पूर्व पातनीयमर उद्यतासिः, अस्युद्यतः / उद्यतमुशलः, मुशलोद्यत इत्यादि / . 'नातिवाचि-कालवाचि-सुखादिभ्योऽपि क्तान्तं वा पूर्व पातनीयमर खजूरजग्धी, मासनाता, सुखनाता। पक्षे नग्धखजूरा, जातमासा, जातसुखा। . द्विपदाद् धर्मादन् / 7 / 3 / 141 / / ___धर्मशब्दान्ताद् द्विपदाद् बहुव्रीहेरन् भवति / शोभनो धर्मों यस्य स सुधर्मा जैनः ।द्विपदादिति किम्- परमः स्वो धर्मो यस्य स परमस्वधर्मः / जायाशब्दस्य बहुव्रीहौ जानिरादेशो वक्तव्यः / युवतिनानिः / सुपूत्युत्सुरभेर्गन्धादिद् गुणे / 7 / 3 / 144 / एभ्यः पराद् गुणार्थे वर्तमानाद् गन्धशब्दाद् बहुव्रीही इद् मवति / सुगन्धि, पूतिगन्धि, उद्गन्धि, सुरभिमन्धि वस्तु / गुण Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . इति किम्- द्रव्येऽर्थे वर्तमानाद् न भवति शोभना गन्धा द्रव्याणि यस्य स सुगन्ध आपणिकः / 'आहार्ये गुणे का इद् वक्तव्यः' शोभनो मधो यस्य तत् सुगन्धि सुमन्धं शरीरम्। 'अल्पार्थाद् गन्धशब्दाद् विकल्पेनेद् वाच्यः' सूपगन्धि, घृतगन्धि भोजनम् / 'उपमानार्थात पराद् गन्धशब्दादपि उत्पलगन्धि मुखम् / 'सम्पूर्वात् प्रपूर्वाच्च जानुशब्दस्य बहुव्रीहौ जुज्ञावादेशौ वाच्यौ' संज्ञः, संज्ञः, प्रजुः, प्रज्ञः। 'मन्दाल्पाभ्यां पराद् मेधाशब्दस्यापि बहुव्रीहौ अस् समासान्तो वाच्यः' मन्दा मेधा यस्यासौ. मन्दमेधा एवमल्पमेधाः / ___स्त्रियाम्धसो न् / 7 / 3 / 169 / . स्त्रियां वर्तमानस्योधसो बहुव्रीहौ न् स्यात् / कुण्डमिवोधों यस्याः सा कुण्डोध्नी गौः। स्त्रियामिति किम्- कुण्डोधागोगणः। 'खर-खुरशब्दात् परस्य नासिकाशब्दस्य सज्ञायां नसादेशः स्यात् खरणाः, खुरणाः / 'उपसर्गात् परस्य नासिकाया नसादेशो वाच्यो बहुव्रीहौ' प्रणसं मुखम् / 'वेरुपसर्गात्तु नासिकाया खु-ख-या आदेशा बोध्याः' विगता नासिका यस्यासौ विखुः, विखः, विनः / 'धनु:शब्दस्य बहुव्रीहौ धन्वन् वक्तव्यः' पुष्पधन्वा / सक्थ्यक्ष्णः स्वाङ्गे / 7 / 3 / 126 / स्वाबारे यो सक्थ्यक्षी तदन्ताद् बहुव्रीहेष्टो भवति / दीर्घसक्थी, विशालाक्षी / स्वाङ्ग इति किम्- दीर्घसक्थि शकटम् / .. प्रमाणीसंख्याद् डा / 7 / 3 / 128 / Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (146) प्रमाण्यश्वात् संख्या च बहुव्रीहे? भवति / स्त्रीप्रमाणा गृहस्थाः, द्वित्राः / जातेरी सामान्यवति / 7 / 3 / 139 / जात्यन्ताद् बहुव्रीहेरीयो भवति सामान्याश्रयेऽन्यपदार्थे / वैश्यजातीयः, क्षत्रियजातीयः / सामान्यवतीति किम्- बहुजातिनामः / 'हस्त्यादिव दुपमानात् परस्व सोः संख्यायाश्च परस्य बहुव्रीहौ पादस्य पाद् वक्तव्या' व्याघ्रपाद् / सुपाद् / द्विपाद् / इति बहुव्रीहिसमासपकरणम् / Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (190) अथ द्वन्द्वसमासप्रकरणम् / चाथै द्वन्दः सहोक्तौ / 3 / 1 / 117 / . चार्थे वर्तमानं नाम नाम्ना सह सहोक्तिविषये समस्यते, स च समासो द्वन्द्वसम्झो भवति / समुच्चयान्वाचयेतरेतरसमाहारमे. दात् चतुर्विधश्चार्थः / अनेकस्य क्रियाकारकादेरेकस्मिन्नथें तुल्यबलतया ढौकनं समुच्चयः / यथा विप्रः पठति पचति च, चैत्रो मैत्रश्च पठति / गुणप्रधानभावमात्रविशेषः समुच्चय एवान्वाचयो यथा हे बटो भिक्षामट, गां चानय / समुच्चयान्वाचयरूपे चार्थेऽन्योन्यापेक्षाभावाद् न भवति समासः / द्वयोस्तु इतरेतरसमाहारयोर्भवति / अन्योन्यसापेक्षाणामेव द्रव्याणामुद्भूतावयवभेदसमूह इतरेतरयोगः / अजयपालश्च विजयपालश्च जीवादिपदार्थ जानीत इति अजयपालविनयपालौ जीवादिपदार्थ जानीतः। धवश्च प्लक्षश्च घवप्लक्षौ, धवश्च खदिरश्च पलाशश्च धवखदिरपलाशाः; अत्रावयवानामुद्भूतत्वात् तन्निबन्धनं द्वित्वं बहुत्वं च भवति ।न्यग्भूतावयवभेदः समूहः समाहारः / धवश्च खदिरश्चानयोः समाहारः धवखदिरम् , धवश्च पलाशश्च न्यग्रोधश्चैषां समाहारः धवखदिरन्यग्रोधम् / अत्रावयवानां न्यग्भूतत्वात् समुदायस्य च प्राधान्यात् तस्यैकत्वाच्चैकवचनम्। पदैः प्रत्येकं पदार्थानां युगपदभिधानं सहोक्तिः। चैत्रमैत्री Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटं कुर्वातेऽत्र चैत्रशब्दो द्वयर्थो मैत्रशब्दोऽपि द्वयर्थः, चकारेणे, तु. लक्ष्यतेऽयमर्थः / समानानामर्थेनैक शेषः / 3 / 1 / 118 / समानार्थानां शब्दानां सहोक्तौ गम्यमानायामेकः शिष्यतेऽ..... दिन्ये लुप्यन्ते / वक्रश्च कुटिलश्च वक्रौ कुटिलौ वा / अथेन समानानामिति किम्- प्लक्षन्यग्रोधौ। सहोक्ताविति किम्-वध कुटिलश्च दृश्यः। / स्यादावसंख्येयः / 3 / 1 / 119 / सर्वस्यां स्यादौ विभक्तौ तुल्यरूपाणां सहोक्तौ गम्यमानायामेकः शिष्यते, संख्येयवाचि शब्दरूपं वर्जयित्वा / अक्षश्च शकटः, अक्षश्च देवनः, अक्षश्च बिभीतक इति अक्षाः। एवं घटाः पटा देवा इत्यादयः / 'त्यदादिभिरन्येन सहोक्तौ त्यदादिरेवैकः शिष्यते। सच चैत्रश्च तौ / 'भ्रात्रर्थस्य स्वस्रर्थेन सहोक्तौ भ्रात्रर्थ एकः शिष्यते' 'पुत्राथस्य दुहित्रर्थेन सहोक्तौ पुत्रार्थश्चैकः शिष्यते' भ्राता च स्वसा च भ्रातरौ, पुत्रश्च दुहिता च पुत्रौ / 'मातृशब्देन सहोक्तौ पितृशब्द एको वा शिष्यते' माता च पिता च पितरौ मातापितरौ वा। वृद्धो यूना तन्मात्रभेदे / 3 / 1 / 124 / / .. * वृद्धप्रत्ययान्तस्य युवप्रत्ययान्तेन सहोक्तौ वृद्धप्रत्ययान्त एकः शिष्यते, तन्मात्रभेदे एव न तु प्रकृतिभेदेऽर्थभेदे वाऽन्यस्मिन् भेदे Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 192) सति / गार्यश्च गाायणश्च गाग्यौं / तन्मात्रभेद इति किम्गार्यवात्स्यायनौ। पुरुषः स्त्रिया / 3 / 1 / 126 / पुरुषशब्दः प्राणिनि पुंसि वर्तते / रूढस्त्रीवाचिना सहोक्तौ पुरुष एकः शिष्यते, तन्मात्रभेदे / ब्राह्मणश्च ब्राह्मणी च ब्राह्मणौ / 'क्लीबं नामाक्लीबेन सहोतावेकं शिष्यते तन्मात्रभेदे, तच्च शिष्टमेकार्थं वा भवति' शुक्लं च शुक्लश्च शुक्ले वा। विरोधिनामद्रव्याणां नवा द्वन्द्वः स्वैः / 3 / 1 / 130 / द्रव्यं गुणक्रियावत् / विरोधिवाचिनामद्रव्याणां स्वजातीयैरेवारब्धो द्वन्द्व एकार्थो वा भवति / सुखं च दुःखं च सुखदुःखे सुखदुःखं वा / प्राणितूर्याङ्गाणाम् / 3 / 1 / 137 / प्राणितूर्ययोरङ्गार्थानां स्वजातीयारब्धो द्वन्द्व एकार्थो नित्यं भवति / कर्णनासिकम् / मार्दङ्गिकपाणविकम् / सेनाङ्गवाचिनां क्षुद्रजन्तुवाचिनां च स्वैर्द्वन्द्व एकार्थो नित्यं भवति / स्थाश्चाश्वाश्च रथाश्वम् , यूकालिक्षम् / 'येषामध्येतृणां निकटः पाठस्तेषां स्वैर्द्वन्द्व एकार्थः स्यात् , पदकक्रमकम् / 'जातिवैराणामपि' अहिनकुलम् / यतिब्राह्मणम् / पात्र्यशूद्रस्य / 3 / 1 / 143 / थैर्युक्ते पात्रं संस्कारेण शुध्यति ते शूद्राः, पात्रमहन्तीति Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (193) पाव्याः / पात्राहशूद्रवाचिनां स्पैर्द्वन्द्व एकार्यों भवति / तक्षायस्कारम् / रजकतन्तुवायम् / एकवद्भावे नपुंसकत्वं यदुक्तम्" द्वन्द्वैकत्वाऽव्ययीभावौ क्रियाव्ययविशेषणे। .. कृत्याः क्तानाः खलनिनः भावे आ त्वात् समूहनः " // 1 // द्वन्द्वैकत्वम् - सुखदुःखम् / अव्ययीभावः- दण्डादण्डि / क्रियाया अन्ययस्य च यद् विशेषणं तद्वाचि नाम-साधु पचति प्राग्रमणीयम्। भावे विहिताः कृत्याः, कप्रत्ययः, आनेति कान- आमशौ, अनडपि इत्येते प्रत्ययाः तदन्तं च-चैत्रेण कार्य कर्तव्यं कृतं पेचानं फ्व्य. मानं लवनं स्थानं इत्यादयः / खलप्रत्ययान्तम्- दुराढ्यंभवं मैत्रेण। जिन् सांराविणम् / 'भावे त्वतल् ' इत्यारभ्य 'ब्राह्मणस्त्वः / इति त्वमभिव्याप्य ये प्रत्ययास्तदन्तं च नाम नपुंसकं भवतीत्यर्थः। लध्वक्षरासखीदुत्स्वराद्यदल्पस्वराय॑मेकम् / 3 / 1 // 16 // लघ्वक्षरं सखिर्जितमिकारोकारान्तं स्वराद्यकारान्तमल्पस्वर पूज्यवाचि चैकं द्वन्द्वे प्राक् प्रयोक्तध्यम् / लघ्वक्षरम्- शरशीर्षम् / असखीदुत- अग्नीषोमो, पटुगुप्तौ / स्वराद्यत्- अस्त्रशस्त्रम् , उष्ट्रखरम् , उष्ट्रशशकम् / अश्वरथेन्द्राः, इन्द्ररथाश्वाः अत्रैकस्यैव नियमः 'स्पर्धे परम् ' इति न्यायात् / अल्पस्वरम्-प्लक्षन्यग्रोधौ,धवखदिरपलांशाः / अय॑म्- श्रद्धामेधे / एकमिति किम्- शङ्खदुन्दुभिवीणाः, वीणादुन्दुभिशङ्खा नात्र वीणाशङ्खयोयुगपत् पूर्वनिपातः / आ द्वन्द्वे / 3 / 2 / 39 / Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M . विद्यायोनिसम्बन्धनिमित्तानामृकारान्तानां यो द्वन्द्वस्तस्मिन् सत्युत्तरपदे परे पूर्वपदस्याऽऽद् भवति / होता च पोता च होतापोतारौ / माता च पिता च मातापितरौ / याताननान्दरो। पुत्रशब्दे परेऽपि द्वन्द्वे ऋकारस्याकारो भवति पितापुत्रौ / वेदसहश्रुतावायुदेवतानाम् / 3 / 2 / 41 / - एषां द्वन्द्वे पूर्वपदस्य आ भवति उत्तरपदे परे / येषां साहचर्य लोके प्रसिद्धं वेदे च सहभावेन निर्देशः कृतस्ते वेदसहश्रुताः। इन्द्रासोमौ / इन्द्रावृहस्पती / वायुवर्जनाद् वाय्वनी / - ईषोमवरुणेऽनेः। 3 / 2 / 42 / अग्निशब्दस्येकारादेशो भवति षोसे वरुणे च परे, वेदसहश्रुतावायुदेवतानां द्वन्द्वे / अग्नीषोमौ / अग्नीवरुणौ / दिवो द्यावा / 3 / 2 / 44 / देवताद्वन्दे उत्तरपदे परे दिवो द्यावादेशो भवति / द्यौश्च भूमिश्च द्यावाभूमी। 'पृथिवीशब्दे उत्तरपदे दिवस-दिवः इत्येतावादेशी वा भवतः दिवस्पृथिव्यौ, दिवापृथिव्यौ, द्यावापृथिव्यौ / 'मातृपित्रोर्द्वन्द्वे ऋकारस्यार वोभयोः पदयोर्निपात्यः' मातरपितस्योः, मातापित्रोः। परस्परान्योन्येतरेतरस्याम् स्यादेर्वाऽपुंसि / 3 / 2 / 1 / अपुंसि प्रयुज्यमानानां परस्परादीनां सम्बन्धिनः स्यादेः स्थाने Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (155) बाऽऽमादेशो भवति / एते च परस्परादयः स्वमावादेकत्वपुंस्ववृत्तयः कर्मव्यतिहारविषयाः / अन्योऽन्यमेकक्रियाकरणं कर्मव्यतिहारः / इमे सख्यौ कुले वा परस्परां परस्परं वा भोजयतः / इमे सख्यौ कुले वाऽन्योऽन्यमन्योऽन्यां वा भोजयतः ।आमिः सखीमिः इतरेतरां वा इतरेतरेण भोज्यते इत्यादि। अथालुपसमासःअसत्त्वे डसेः / 3 / 2 / 10 / असत्त्वे विहितो यो ङसिस्तस्योत्तरपदे परे लुब न भवति / स्तोकान्मुक्तः / कृच्छ्रान्मुक्तः / ओजोऽःसहोऽम्भस्तमस्तपसष्टः / 3 / 2 / 12 / - एभ्यः परस्य तृतीयैकवचनस्य टाप्रत्ययस्य लुब् न भवति / ओजसाकृतम् / अञ्जसाकृतम् / सहसाकृतम् / अम्भसाकृतम्। तमसाकृतम् / तपसाकृतम् / 'पुंसोऽनुजे, जनुषोऽन्धे, आत्मनश्च पूरणप्रत्ययान्ते उत्तरपदे टाप्रत्ययस्य लुग् न वाच्यः' / पुंसाऽनुजः / ननुषाऽन्धः / आत्मनाद्वितीयः / परात्मभ्यां ङः / 3 / 2 / 17 / आभ्यां परस्य चतुर्येकवचनस्योत्तरपदे परे सज्ञायां लुब् न भवति / परस्मैपदम् / आत्मनेपदम् / तत्पुरुषे कृति / 3 / 2 / 20 / Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अकारान्ताद् व्यञ्जनान्ताच्च परस्य सप्तम्याः कृदन्त उत्तरप्रदे परे तत्पुरुष समासे लुब् न भवति / स्तम्बेरमः / कर्णेजपः / मस्मनिहुतम् / अपो य-योनि-मति-चरे / 3 / 2 / 28 / __ अस्मात् परस्य सप्तम्या यप्रत्यये योनि-मति-चरेषु चोत्तरपदेषु लुब् न भवति। अप्सु भवः असध्यः / अप्सुयोनिः / अप्सु. मतिः / अप्सुचरः / 'मध्यादन्ताच्च सप्तम्या गुरौ परे लुग्न वाच्यः' मध्येगुरुः / अन्तेगुरुः / / अमूर्धमस्तकात स्वाङ्गादकामे / 3 / 2 / 22 / मूर्ध-मस्तकवर्जितात् स्वाङ्गवाचिनोऽद्व्यन्जनात् परस्याः सप्तम्याः कामवर्जित उत्तरपदे परे लुब् न स्यात् / उरसिलोम / शिरसिशिखः / उदरेमणिः / कण्ठेकालः। पश्यद्-वाग्-दिशो हर-युक्ति-दण्डे / 3 / 2 / 32 / - हर-युक्ति-दण्डे उत्तरपदे एभ्यः परस्या षष्ठया लुब् न भवति / पश्यतोहरः / वाचोयुक्तिः / दिशोदण्डः / 'देवानांप्रिय इत्यलुब् निपात्यः / ऋदुदित्तरतमरूपकल्पब्रुवचेलगोत्रमतहते वा इस्त्रश्च / 3 / 2 / 63 / परतः स्त्रीलिङ्ग ऋद्भुदित् शब्दस्तरादिप्रत्यये ब्रुवादावुत्तरपदे च परे ह्रस्वान्तः पुंवच्च वा भवति / पचन्तितरा, पचत्तरा, पचन्ती Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8. 157) तरा / श्रेयसितमा, श्रेयस्तमा, श्रेयसीतमा। विदुषिरूपा, विद्वद्रूपा, विदुषीरूपा / पचन्तिकल्पा, पचत्कल्पा, पचन्तीकल्पा / पचन्तिब्रुवा, पचत्ब्रुवा, पचन्तीबुवा / पचन्तिचेली, पचच्चेली, पचन्तीचेली। पचन्तिगोत्रा, पचद्गोत्रा, पचन्तीगोत्रा / पचन्तिमता, पचन्मता, पचन्तीमता। पचन्तिहता, पचद्धता, परन्तीहता। 'गौणस्याक्विपो गोशब्दस्य याद्यन्तस्य चान्ते वर्तमानस्यापि हवो वेदितव्यः? पञ्च गावो यस्य स पञ्चगुः, अतिकुमारिः, अतिखट्वः / 'डयन्तस्यैकस्वराणां विकल्पेनान्येषां नित्यं हस्वस्तरादिषु परेषु वेदितव्यः, स्त्रितरा, स्त्रीतरा / गौरितमा / 'महच्छब्दस्योत्तरपदे क्वचिद् डा वाच्यः' महावीरः, महाकरः / गोस्तत्पुरुषात् / 7 / 3 / 105 / . गोशब्दान्तात् तत्पुरुषादड् भवति / राज्ञो गौः रानगवी / राजन्सखेः / 7 / 3 / 106 / / एतदन्तात् तत्पुरुषादड् भवति / पञ्चानां राज्ञां समाहारः, पञ्चराजी / राज्ञः सखा राजसखः / ऋक्पःपथ्यपोऽत् / 7 / 3 / 76 / ऋगाद्यन्तात् समासादद् भवति / अर्धर्चः / त्रिपुरम् / जलपथः / द्वीपम् / 'धुरन्तादद् वाच्यश्चेद् धूर्नाक्षस्य राजधुरा / / 'उपसर्गात् परस्याध्वनः समवान्धेभ्यश्च तमसोऽद् वकन्या प्राध्वः, सन्तमसम्, अवतमसम्, अन्धतमसम् / Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (158) प्रति-परोऽनोरव्ययीभावात् / 7 / 3 / 87 / प्रत्यादिपूर्वादक्ष्यन्तादव्ययीभावादद् भवति / प्रत्यक्षम् / परोक्षम् / अन्वक्षम् / 'अन्नन्ताव्ययीभावाद वाच्यः' उपतक्षम् / - गिरि-नदी-पौर्णमास्याग्रहायग्यपञ्चमवाद् वा। 7 / 3 / 90 / / .. एतदन्तात् पञ्चमवर्जवर्गान्ताच्चाव्ययीभावादद् वा भवति / मन्तर्गिरम्, अन्तगिरि / उपनदम्, उपनदि / उपपौर्णमासम्, उपपौर्णमासि / उपाग्रहायणम्, उपायहायणि / उपउचम्, उपचुक् / 'संख्यार्थात् पराभ्यां नदी-गोदावरीभ्यां तु नित्यं बकव्यः / पञ्चनदम् , द्विगोदावरम् / जात-महद्-वृद्धादुक्ष्णः कर्मधारयात् / 7 / 3 / 95 / एभ्यः परो य उक्षशब्दस्तदन्तात् कर्मधारयादद् भवति / नातोलः / महोक्षः / वृद्धोक्षः। / स्त्रियाः पुंसो द्वन्द्वाच / 7 / 3 / 96 / स्त्रीशब्दात् परो यः पुमान् तदन्ताद् द्वन्द्वात् कर्मधारयाचाद् भवति / स्त्रीपुंसौ / स्त्रीपुंसः / 'ऋक्सामे, ऋग्यजुषम्, धेन्वनमुंहौ, वाङ्मनसे, अहोरात्रः, रात्रिंदिवम् , नक्तंदिवम्, अहर्दिवम् , ऊर्वष्ठीवम् , पदष्ठीवम्, अभिभुवम्, दारगवम् / एते अदन्ता दन्द्धे निपात्याः / / .... ..... .. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (159) चवर्गदषहः समाहारे / 7 / 3 / 98 / समाहारार्थादेतदन्ताद् द्वन्द्वादद् भवति / वाक्त्वचम् / संपद्विपदम् / वाक्तिवषम् / छत्रोपानहम् / द्विगोरनहोऽट् / 7 / 3 / 99 / ' अन्नन्तादहन्नन्ताच्च द्विगुसमाहारादड् भवति / पञ्चानां नाणां समाहारः पन्चतक्षी / द्वयहः / 'खार्यन्ताद् वा वाच्यः द्विखारम्, द्विखारि। नावः / 7 / 3 / 104 / अर्धात् परो यो नौशब्दस्तदन्तात् समासाद् द्विगोश्वार मवति / अर्धनावी / पञ्चनावम् / .. प्राणिन उपमानात् / 7 / 3 / 111 / ... प्राण्यर्थादुपमानात् परो यः श्वा तदन्तात् तत्पुरुषादड् भवति / ज्याघ्रश्वः व्याघ्र इव श्वा इत्यर्थः / 'अहनतात् तत्पुरुषादड् बाच्यः परमाहः / सर्वाशसंख्याऽव्ययात् / 7 / 3 / 118 / सर्वशब्दादशार्थात् संख्यार्थादव्ययाच परो योऽहनशब्दस्तदन्तात् तत्पुरुषादड् भवति, अहोऽनादेशश्च / सर्वाह्नः / पूर्वाह्नः / बहनः / अत्यही। अतोऽहस्य / 2 / 3 / 73 / Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (160) रेफादिमतोऽकारान्तात् पूर्वपदात् परस्याह्नस्य नो ण भवति / पराह्नः / अक्ष्णोऽप्राण्यङ्गे / 7 / 3 / 85 / अप्राण्यङ्गार्थादक्ष्यन्ताददन्तो भवति / लवणाक्षम् / शकटाक्षम्। संख्यातकपुण्यवर्षादीर्घाच रात्ररत् / 7 / 3 / 119 / - एभ्यः सर्वांशादेश्च .परों यो रात्रिशब्दस्तदन्तात् तत्पुरुषाद् भवति / संख्यातरात्रः / एकरात्रः / पुण्यरात्रः / वर्षारात्रः / दीर्वरात्रः / सर्वरात्रः / पूर्वरात्रः / द्विरात्रः / अतिरात्रः / नबव्ययात् संख्याया डः / 7 / 3 / 123 / _आभ्यां परो यः संख्यावाची शब्दस्तदन्तात् तत्पुरुषाद् डो भवति / अदशाः / निस्त्रिंशः / 'संख्याऽव्ययाभ्यां परो योऽङ्गुलिस्तदन्तात् तत्पुरुषाद् डो वाच्यः' / द्वयङ्गुलम्, निरगुलम् / नब्-सु-व्युप-त्रेश्चतुरः / 7 / 3 / 131 / एभ्यः परो यश्चतुःशब्दस्तदन्ताद् बहुव्रीहेरब् भवति / अचतुः / सुचतुरः / विचतुरः / उपचतुराः / त्रिचतुराः / वयसि दन्तस्य दतः / 7 / 3 / 151 / सुसंख्यापूर्वस्य दन्तस्य बहुव्रीहौ दतृ आदेशो भवति, वयसि गम्ये / शोभना दन्ता यस्य स सुदन कुमारः / द्विदना Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालः / 'सुपूर्वस्य हृदयस्य बहुव्रीहौ मित्रेऽर्थे दुःपूर्वस्य चामित्रे हृद् निपात्यः / सुहृद् मित्रम् / दुहृदमित्रः / इनः कच् / 7 / 3 / 170 / इन्नन्ताद् बहुव्रीहेः स्वयर्थात् कच् भवति / बहवो दण्डिनो यस्यां सा बहुदण्डिका सेना / 'ऋकारान्ताद् नित्यदिदन्ताच्च बहुवीहेः कच् वक्तव्यः' / बहुकर्तृकः / बहुनदीकः / शेषाद् वा / 7 / 3 / 175 / / उक्तातिरिक्ताद बहुव्रीहेः कच वा भवति / बहुखट्वकः. बहुखट्वः / ईयसोः। 7 / 3 / 177 / ईयस्वन्ताद् बहुव्रीहेः कच न भवति / बहुश्रेयसी साध्वी। 'षोडश, षोढा, षड्ढा, षोडत् इत्यादयस्तु निपातनाद्। यत्र नित्यसमासस्तत्रास्वपदविग्रहों विधेयो यथा स्त्रियामिति अधिस्त्रि / इति समासप्रकरणं समाप्तम् / '.. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (162) अथ तद्धितार्थों निरूप्यते। तद्धितोऽणादिः / 6 / 1 / 1 / इतो वक्ष्यमाणा अणादिप्रत्ययास्तद्धितसञ्जका भवन्ति / पौत्रादि वृद्धम् / 6 / 1 / 2 / पौत्रप्रभृति अपत्यं वृद्धम् / अपत्यवतः परमप्रकृतेर्यत् पौत्राद्यपत्यं तद् वृद्धसञ्जकं भवति / गर्गस्यापत्यं पौत्रादिः गार्ग्यः / नडस्यापत्यं पौत्रादिः नाडायनः / पौत्रादीति किम्-गर्गस्यानन्तरापत्यं गार्गिः / / पंश्यज्यायोभ्रात्रोर्जीवति प्रपौत्राद्यस्त्री युवा / 6 / 1 / 3 / वंश्यः पित्रादिः, ज्यायान् भ्राता वयोधिक इत्यर्थः, स चैकपितृकः एकमातृको वा, प्रपौत्रो मूलप्रकृतेश्चतुर्थः / वंश्ये ज्येष्ठभ्रातरि च जीवति सति स्त्रीवर्जितं प्रपौत्राद्यपत्यं युवसंज्ञकं भवति। गाय॑स्य युवाऽपत्यं गार्या यणः / वंश्यन्यायोभात्रोरितिकिम्गायः / जीवतीति किम्-मृते गार्ग्यः / अस्त्रीतिकिम्-स्त्री गार्गी। सपिण्डे वयास्थानाधिके जीवद् वा / 6 / 1 / 4 / __ ययोः सप्तम एकः पुरुषस्तौ मिथः सपिण्डौ स्तः। वयो यौवनादि / स्थानं पिता पुत्रादि च / द्वाभ्यां वयःस्थानाभ्यामधिके सपिण्डे जीवति सति मूलप्रकृतेः स्त्रीवयं प्रपौत्राद्यपत्यं Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवदेव युवसझं वा भवति / गार्ग्यस्यापत्यं जीवद् गार्ग्यः गार्यायणो वा / वात्स्यः वात्स्यायनः / सञ्ज्ञा दुर्वा / 6 / 1 / 6 / हठाद् या सञ्ज्ञा सा दुसज्ञा वा भवति / चैत्रीयाः चैत्राः। त्यदादिः / 6 / 1 / 7 / / असौ दुसज्ञो भवति / ' दोरीयः / इति ईये त्वदीयः / तदीयः। प्राग् जितादण् / 6 / 1 / 13 / 'तेन जितजयद्दीव्यत्खनत्सु ' इत्येतस्मात् सूत्रात् प्राय बेपत्यादयोऽर्थास्तेष्वण वा भवत्यपवादविषयं मुक्त्वा / उपगोरपत्यम्-औपगवः / मञ्जिष्ठेन रक्तम्-माञ्जिष्ठम् / ___ उसोऽपत्ये / 6 / 1 / 28 / षष्ठयन्ताद् नाम्नोऽपत्येऽर्थे यथाविहितमणादयो भवन्ति / उपगु+अण् इति स्थिते ण इत्सन्ज्ञायां सत्यां. वृद्धिः स्वरेष्वादेणिति तद्धिते / 7 / 4 / 1 / / मिति णिति तद्धिते परे प्रकृतेः प्रथमस्वरस्य वृद्धिर्भवति / इत्यादिस्वरस्य वृद्धौ औपगु+अ इति स्थिते अस्वयंभुवोऽन् / 7 / 4 / 70 / स्वयंभूवर्जस्योवर्णान्तस्यापदस्य तद्धिते परेऽव् भवति / अवादेशे औपगवः / . ...: Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (164) धनादेः पत्युः। 6 / 1 / 14 / .. धनादिगणपठिताच्छब्दात् परो यः पतिशब्दस्तदन्तात प्राजितीयेऽर्थेऽण् भवति / धनपतेरपत्यं तत्र भवो वा धानपतः / अश्वपतेः आश्वपतः / अनिदम्यणपवादे च दित्यदित्यादित्ययम पत्युत्तरपदा ज्यः / 6 / 1 / 15 / / दित्यादिशब्दात् पत्युत्तरपदाच्चेदमर्थवनिते प्राजितीयेऽर्थेऽपसद्यर्थमुपे गोऽगोऽपवादस्तद्विषये च यः भवति ! द्वितेपयं दैत्यः / अदितेरपत्यमादित्यः / आदित्यो देवता यस्य तद् आदित्ययम् / यमस्थापत्यं याम्यः। वृहस्पतिर्देवताऽस्य वार्हस्पत्यम् / इदमर्थवर्जनाद् आदित्यस्येदम्-आदितीयं मण्डलम् / ... कल्यग्नेरेयण् / 6 / 1 / 17 / आभ्यां प्राजितीये एयण् भवति / कलिदेवताऽस्य तत् कालेयम् / आग्नेयम् / उत्सादेरञ् / 6 / 1 / 19 / अस्मात् प्राजितीयेऽनिदम्यणपवादे चाञ् भवति / उत्सस्वापत्यम्-औत्सः / तरुण्या अपत्यम्-तारुणः / अ स्थाम्नः / 6 / 1 / 22 / स्थाम्नः प्राजितीये अः भवति / अश्वत्थामः। .. Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (165) लोम्नोऽपत्येषु / 6 / 1 / 23 / अस्मात् प्राजितीये बह्वपत्यार्थे अः भवति / एकत्वे द्वित्वे च बाहवादित्वादिञ् / उडुलोम्नोऽपत्यानि-उडुलोमाः / एकत्वे द्वित्वे च औडुलोमिः औडुलोमी। द्विगोरनपत्ये यस्वरादे बद्विः / 6 / 1 / 24 / ... अपस्यार्थादन्यत्र प्रागजितीयेऽर्थे विहितस्य द्विगोः परस्य यकारादेः स्वरादेश्च प्रत्ययस्य लुब् भवति, न तु द्विः। द्वयो रथयोर्वोढा द्विरथः ' रथाद् सादेश्च वोङ्गे' इति यः / पञ्चसु कपालेषु संस्कृतः पञ्चकपालः / द्विगोरितिकिम् - पूर्वस्यां शालायां भवःपौर्वशालः / यस्वरादेरिति किम् - पञ्चभ्यो गोभ्य आगतं पञ्चगुमयम् / .. न प्राजितीये स्वरे / 6 / 1 / 135 / गोत्रे उत्पन्नस्य प्रत्ययस्य बहुवचनेषु या लुन् वक्ष्यते सा प्राजितीयेऽर्थे यः स्वरादितद्धितो विधीय तस्मिन् विषये न भवति / गर्गाणां छात्रा गार्गीयाः / वात्सीयाः / तद्धितयस्वरेऽनाति / 2 / 4 / 92 / . व्यन्जनात् परस्यापत्यप्रत्ययसम्बन्धिनो यकारस्य तद्धिते यकारादावाकारव स्वरादौ च प्रत्यये परे लुग् भवति / गाग्ये साधुयिः / गर्गाणां समूहो गार्गकम् / यस्वर इति किम् - गार्यादागतं गायेमयम् / अनातीति किम् - गाायणः / Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 166) अत इन् / 6 / 1 / 31 / ... षष्ठ्यन्ताददन्तादपत्येऽथें इम् भवति / दाक्षिः / गर्गादेर्यञ् / 6 / 1 // 42 // एभ्योऽपत्ये वृद्धे यञ् भवति / गर्गस्य वृद्धापत्यं गाग्यः / वात्स्यः / जामदग्न्यः। धौम्यः / धानंजय्यः / 'विदादीनामन वाच्यो वृद्धेऽपत्ये विदस्य वृद्धापत्यं वैदः / नडादिभ्य आयनण् / 6 / 1 / 53 / / नड इत्यादिभ्यो वृद्धापत्ये आयनण् भवति / नाडायनः। चारायणः / वृद्धग्रहणादनन्तरापत्ये तु नाडिः, चारिः इत्यादिः। यबित्रः / 6 / 1154 / वृद्धेऽर्थे यौ यजिनौ तदन्ताद् युवापत्ये आयनण् भवति / .. वृद्धाद् यूनि / 6 / 1 / 30 / - युवापत्ये यः प्रत्ययः स वृद्धप्रत्ययान्ताद् भवति / गर्मस्य युवापत्यं गार्यायणः / वत्सस्य वात्स्यायनः / दक्षस्य दाक्षायणः। शिवादेरण् / 6 / 1 / 60 / शिवादिगणपठितादपत्येऽण् भवति / शैवः, प्रौष्ठः, चाण्ड : इत्यादिः / .. .. ऋषिवृष्ण्यन्धककुरुभ्यः / 6 / 1 / 61 / ऋषयः प्रसिद्धाः, वृष्णयः अन्धककुरवः इति च वंशाख्याः।। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (167) ऋष्यादिवाचिभ्यो' नामभ्योऽपत्येऽम् - भवति / वशिष्ठस्यापत्यं वाशिष्ठः / वैश्वामित्रः / वसुदेवस्यापत्यं वासुदेवः। आनिरुद्धः / श्वफलकस्यापत्यं श्वाफलकः / सहदेवस्यापत्यं साहदेवः / नाकुलः। सङ्ख्यासंभद्राद् मातुर्मातुर्च / 6 / 1 / 66 / / संख्यावाचिनः शब्दात् संभद्राभ्यां च परो यो मातृशब्दस्तदन्तादपत्येऽर्थेऽण् भवति / मातुश्च मातुरादेशः / द्वयोर्मात्रोरपत्यं द्वैमातुरः / पाण्मातुरः / सांमातुरः / भाद्रमातुरः। कन्यात्रिवेण्याः कनीनत्रिवणं च / 6 / 1 / 62 / / आभ्यामपत्येऽण् यथासंख्यं च कनीनत्रिवणावादेशौ भवतः। कन्याया अपत्यं कानीनः / त्रिवेण्या अपत्यं त्रैवणः / . दितेश्चैयण् वा / 6 / 1 / 69 / दितिशब्दाद् मण्डूकशब्दाच्चापत्ये एयण वा भवति / दितेरपत्यं दैतेयः, दैत्यो वा / मण्डूकस्यापत्थं माण्डूकेयः, माण्डूकिर्वा। मण्डूकस्याणपि माण्डूकः / याप्त्यूङः / 6 / 1 / 70 / / .. ड्यन्तादाबन्तात् त्यन्तादूङन्ताच्चापत्ये एयण भवति / सुपा अपत्यं सौपर्णेयः / विनताया अपत्यं वैनतेयः / युवत्या अपत्यं यौवतेयः / कमण्डत्वा अपत्यं कामण्डलेयः / 'पीलासारखाम्यामणपि' पैलेयः, पैलः / साल्वेयः, साल्वः / .. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (168) द्विस्वरादनद्याः / 6 / 1 / 71 / / नद्यर्थवनिताद् द्विस्वराद् ड्याप्त्यूङन्तादपत्य एयण भवति / पत्ताया अपत्यं दात्तेयः / नद्यर्थवर्जनात् सैप्रः, विधानबलात् पूर्वणापि न / 'शुभ्रादीनामेयण वाच्यः' शौभ्रेयः। कल्याणादेरिन् चान्तस्य / 6 / 1 / 77 / __ कल्याण इत्येवमादीनामपत्येऽर्थे एयणं अन्तस्य चेनादेशो भवति / केचित् कल्याणी इति शब्दं पठन्ति / कल्याणस्यापत्यं काल्याणिनेयः / सौभागिनेयः / दौर्भागिनेयः / बान्धकिनेयः / 'कुलटाशब्दस्य विकल्पेन वाच्यः' कोलटेयः / क्षुद्राभ्य एरण वा / 6 / 1 / 80 / _अङ्गहीना वाऽनियतपुरुषाः स्त्रियः क्षुद्रा इति कथ्यन्ते / क्षुद्रार्थेभ्यः स्त्रीभ्योऽपत्ये एरण् वा भवति / काणाया अपत्य काणेरः पक्षे काणेयः। दास्या अपत्यं दासेरः, दासेयो वा / 'भ्रातृशब्दाद् व्य ईयश्च स्वसृशब्दाच्चेयो वक्तव्यः' भ्रातृव्यः, भ्रात्रीयः। स्वतीयः / श्वशुराद् यः' श्वशुर्यः। मातृपित्रादे.यणीयणौ / 6 / 1 / 90 / * “मातृ-पितृशब्दाभ्यां परो यः स्वसशब्दस्तदन्तादपत्येऽर्थे डेयणीयणौ भवतः / मातृस्वसुरपत्यं मातृष्वज्ञेयः, मातृष्वतीयः / पैतृष्वस्त्रेयः, पैतृष्वतीयः। मातृपितुः स्वसुः / 2 / 3 / 18 / Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 169) आभ्यां परस्य स्वसृशब्दस्य सस्य समासे षकारो भवति / . . . . जातौ राज्ञः। 6 / 1 / 92 / जातौ गम्यमानायां राज्ञोऽपत्येऽथे यो भवति / राज्ञोऽपत्यं राजन्यः क्षत्रिया जातिश्चेद् / राजनोऽन्यः / मनोर्याणौ पश्चान्तः / 6 / 1 / 94 / . मनुशब्दादपत्येऽर्थे याणौ प्रत्ययौ भवतः, जातौ गम्यायाम् / तत्प्रत्यययोगे पश्चान्तादेशः / मनोरपत्यं मानुष्यो मानुषो वा। कुत्सायां तु मनोरपत्यं मूढं माणवः / सम्राजः क्षत्रिय / 6 / 1 / 101 / अतः क्षत्रियेऽपत्ये न्यो भवति / साम्राज्यः क्षत्रियः। . सेनान्तकारुलक्ष्मणादिश्च / 6 / 1 / 102 / सेनान्तशब्दात् कार्वर्थशब्दाद् लक्ष्मणशब्दाचापत्येऽर्थे इन न्यश्च भवतः / हारिणिः, हारिषेण्यः / तान्तुवायिः, तान्तुवायः। लाक्ष्मणिः, लाक्ष्मण्यः / यबबोऽश्यापर्णान्तगोपवनादेः। 6 / 1 / 126 / यअन्तस्यानन्तस्य च बहुगोत्रार्थस्य यः प्रत्ययः तस्यात्रियां लुब् भवति / गर्गाणामपत्यानि गर्गाः / विदस्यापत्यानि विदाः / एकत्वे द्वित्वे तु लुपोऽभवनाद् गायः गाग्यौँ / वैदः वैदौ। Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (170) भृग्वङ्गिरस्कुत्सवशिष्ठगोतमात्रेः। 6 / 1 / 128 / एभ्यो बहुगोत्रार्थस्य प्रत्ययस्य टुब् भवति, न तु स्त्रियाम् / भृगूणामपत्यानि भृगवः / अङ्गिरसः / कुत्साः। वशिष्ठाः / गोतमाः / अत्रयः / यूनि लुप् / 6 / 1 / 137 / यून्युत्पन्नप्रत्ययस्य प्राग् जितीयेऽर्थे स्वरादौ प्रत्यये विषयभूते लुब् भवति, लुपि सत्यां यः प्राप्नोति स भवेद् / पाण्टाहृतस्यापत्यं पाण्टाहृतिः, तस्य युवापत्यं पाण्टाहृतः, तस्य च्छात्रा इति प्राग जितीयेऽर्थे स्वरादौ प्रत्यये चिकीर्षिते णप्रत्ययस्य लुव जातस्ततः ' वृद्धेऽनः' इत्यनेनाञ् पाण्टाहृताः। पाण्टाहृति-मिमताभ्यामपत्यमाने ण आयनिञ् च वक्तव्यः / राष्ट्रक्षत्रियात् सरूपाद्राजापत्ये दिरञ् / 6 / 1 / 114 / ___ सरूपाभ्यां राष्ट्रक्षत्रियाभ्यां यथासंख्यं राजापत्येऽन् भवति स च द्रिः / विदेहानां राना अपत्यं वा वैदेहो बहुत्वे तु विदेहा राजानोऽपत्यानि वा / पुरुमगधकलिङ्गसूरमसाद्विस्वरादण् / 6 / 1 / 116 / राष्ट्रक्षत्रियार्थेभ्यः सरूपेभ्य एभ्यो द्विस्वरेभ्यश्चाण भवति / पुरोरपत्यं राजा वा पौरवः / मागधः / कालिङ्गः / सौरमसः / आङ्गः। इत्यपत्याधिकारः। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . रांगाट्टो रक्ते / 6 / 2 / 1 / - रज्यतेऽनेनेति रागः कुसुम्भादिः, तस्माद् रागविशेषवाचिनस्तृतीयान्ताद्रक्तमित्यर्थे यथाविहितं प्रत्यया भवन्ति / कषायेण रक्तं वस्त्रं काषायम् / मञ्जिष्ठेन रक्तं माञ्जिष्ठम् / कुसुम्भेन रकं कौसुम्भम् / लाक्षारोचनादिकण् / 6 / 2 / 2 / तृतीयान्ताभ्यामाभ्यां रक्तमित्यर्थे इकण भवति / लाक्षया रक्तं लाक्षिकं वस्त्रम् / रोचनेन रक्तं रौचनिकम् / नीलपीतादकम् / 6 / 2 / 4 / तृतीयान्ताभ्यामाभ्यां रक्तमित्यर्थे यथासंख्यमको भवतः / नीलेन रक्तं नीलम् / पीतेन रक्तं पीतकम् / . उदितगुरोर्भाद् युक्तेऽब्दे / 6 / 2 / 5 / . __ उदितो गुरुर्वृहस्पतिर्यस्मिन् नक्षत्रे तदर्थाद् टान्ताद् युक्तेऽब्दरूपेऽर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / उदितगुरुणा पुष्येण युक्तं वर्ष पौषं वर्षम् / चन्द्रयुक्तात् काले लुप् त्वप्रयुक्ते / 6 / 2 / 6 / : ___ चन्द्रयुक्तं यन्नक्षत्रं तदर्थाद् टाप्रत्ययान्ताद् युक्ते कालेऽथे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / चन्द्रयुक्तेन पुष्येण नक्षत्रेण युक्त महः पौषमहः / पौषी रात्री। माघ दिनम् / माघी रात्रिः। Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (171) 'कालवाचिनः शब्दस्याप्रयोगे तु टुब् भवति' अद्य पुष्यः / . अद्य कृतिका / श्रवणाश्वत्थानाम्न्यः।६।२।८। : चन्द्रयुक्तात् श्रवणादश्वत्थात् टाप्रययान्ताद् युक्ते कालेऽर्थे संज्ञायामः भवति / श्रवणेन चन्द्रयुक्तेन युक्ता रात्रिः श्रवणा रात्रिः / अश्वत्थेन चन्द्रयुक्तेन युक्तमहः आश्वत्थमहः / दृष्टे साम्नि नाम्नि / 6 / 2 / 133 / टाप्रत्ययान्ताद् दृष्टं सामेत्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / ऋञ्चेन दृष्टं साम क्रौञ्चं साम, अत्राण / कलिना दृष्टं साम कालेयम्, अत्रैयण् / तेन च्छन्ने रथे / 6 / 2 / 131 / तृतीयान्ताच्छन्ने रथेऽर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / वस्त्रेणच्छन्नः - वास्त्रो रथः / 'पाण्डुकम्बलात् तु इन् वाच्यः' पाण्डुकम्बलेन च्छन्नो रथ: पाण्डुकम्बली / - साऽस्य पौर्णमासी।६।२। 98 / / सेति प्रथमान्तादस्येति षष्ठ्यर्थे यथाविहितं नाम्नि प्रत्ययो भवति, प्रथमान्तं चेत् पौर्णमासी। पौषी पौर्णमासी अस्य स पौषो मासोऽर्धमासो वा / आग्रहायण्यश्वत्थात् त्वत्रार्थे नित्यं, चैत्रीकार्तिकी-फाल्गुनी-श्रवणाभ्यस्तु विकल्पेनेका वक्तव्यः / आग्रहायणी पौर्णमास्यस्य स आग्राहायणिको मासः / अश्वत्था पौर्ण, Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (173) मास्यस्य स आश्वत्थिकः। चैत्री पौर्णमास्यस्य स चैत्रः, चैत्रिको मासोऽर्धमासो वा / एवं कार्तिकः, कार्तिकिकः / फाल्गुना, फाल्गुनिकः / श्रावणः, श्रावणिकः / देवता / 6 / 2 / 101 / - देवतार्थात् प्रथमान्तात् षष्ठयथें यथाविहितं प्रत्ययो भवति / जिनो देवताऽस्यासौ जैनः / शिवो देवताऽस्यासौ शैवः / एवं बौद्धः / श्रीदेवताऽस्य श्रायम् / 'शुक्रात् तु इयो वाच्यः' शुक्रो देवताऽस्य शुक्रियं हविः / 'शतरुद्रात्तु इय ईयश्च नित्यं, महेन्द्रातु वा वाच्यौ तरुद्रो देवताऽस्य शतरुद्रिय, शतरुद्रीयं हविः, महेन्द्रो देवताऽस्य महेन्द्रीयं माहेन्द्रम् / षष्ठ्याः समूहे / 6 / 2 / 9 / ... षष्ठयन्तात् समूहेऽर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / चषानां समूहः चाषम् / बकानां समूहो बाकम् / स्त्रीणां समूहः स्त्रैणम् / गवां समूहो गव्यम् / भिक्षाणां समूहो भैक्षम् / गर्भिणीनां समूहो गार्मिणम् / गोत्रोक्षवत्सोष्ट्रटद्धाजोरभ्रमनुष्यराजराजन्यराजपुत्रादकञ् / 6 / 2 / 12 / ___ गोत्रप्रत्ययान्तादुक्षादेश्च षष्ठ्यन्तात् समूहेऽकञ् भवति / गर्गाणां समूहो गार्गकम् / औपगवानां समूह औपगवकम् / औक्षकम् / वात्सकम् / औष्ट्रकम् / वार्द्धकम् / आजकम् / औरभ्रकम् / Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (174) मानुष्यकम् / राजकम् / राजन्यकम् / राजपुत्रकम् / 'केदारात् ण्योऽकनिकणौ च वाच्यौर कैदार्य,कैदारकम् , कैदारिकम् / 'कवकि हस्तिभ्यामचित्तवाचिनश्चकण वाच्यः / कावचिकम् / हास्तिकम् / अपूपानां समूह आपूपिकम् / शाष्कुलिकम् / 'अनपूर्वाद धेनो रिकण वक्तव्यः धेनूनां समूहः- धेनु+इकण इति स्थिते / ऋवर्णोवर्णदोसिसुसशश्वदकस्मात्त इकस्येतो लुक्।७।४।७१ ऋवर्णोवर्णान्ताभ्यां दोस इसुसन्ताभ्यां शश्वदकस्माद्वात् तान्ताभ्यां च परस्येकस्थस्येतो लुग् भवति / धैनुकम् / ब्राह्मणमाणववाडवाद् यः / 6 / 2 / 16 / एभ्यः समूहे यो भवति / ब्राह्मणानां समूहो ब्राह्मण्यम् / एवं माणव्यं, वाडव्यम्। 'गणिकायाण्यो वाच्यः' गणिकानां समूहो गाणिक्यम् / 'पाशादिशब्दाद् गवादेश्व ल्यो वक्तव्यः पाशानां समूहः पाश्या, तृणानां समूहस्तण्या, गवानां समूहो गव्या रथानां समूहो रथ्या, लकारः स्त्रीलिङ्गार्थः / ग्रामजनबन्धुगजसहायात् तत् / 6 / 2 / 28 / एभ्यः समूहे तल् भवति / ग्रामता / जनता / बन्धुता / गजता / सहायता / 'गोरथवाताद् यथासंख्यं त्रस्कटयलूलं वाच्यम्' गवां समूहः गोत्रा, रथकट्या, वातूलः / . 'श्वादीनामञ वाच्यः शूनां समूहः शौवम्, अह्नां समूहः आह्वम् / “पशुशब्दात् तु ड्वण वक्तव्यः पशूनां समूहः पार्श्वम्। Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (179) योद्धृप्रयोजनाद् युद्धे / 6 / 2 / 113 / योद्धर्थात् प्रयोजनार्थाच्च प्रथमान्ताद् षष्ठयर्थे युद्धे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / विद्याधरा योद्धारो यस्य युद्धस्य तद् युद्धं वैद्याधरम्, एवं सौभद्रम् / ... भावघनोऽस्यां णः / 6 / 2 / 114 / भावे घनन्तात् प्रथमान्तादस्यामित्यर्थे णो भवति / प्रकृष्टः पातो यस्यां सा प्रपाता तिथिः। श्येनंपातातैलंपातेति तु निपात्यौ' श्येनानां पातो यस्यां तिथौ क्रियायां भूमौ क्रीडायां वा सा श्येनंपाता तिथिः भूमिः क्रिया क्रीडा वा, एवं तैलम्पाता। प्रहरणात क्रीडायां णः / 6 / 2 / 116 / . प्रथमान्तात् प्रहरणार्थादस्यामिति क्रीडायां णो भवति / दण्डः प्रहरणं यस्यां क्रीडायां सा दाण्डा क्रिया / विकारे / 6 / 2 / 30 / षष्ठयन्ताद् विकारे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / सुवर्णस्य विकारः सौवर्णमङ्गुलीयम् / अश्मनां विकार आश्मनः, आश्मः / प्राण्यौपधिक्षेभ्योऽवयवे च / 6 / 2 / 31 / षष्ठयन्तेभ्यः प्राणिवाचिभ्य औषधिवाचिभ्यो वृक्षवाचिभ्यश्च विकारेऽवयवे चार्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / कपोतस्य विकारोऽवयवो वा कापोतं सक्थि मांसंवा / दूर्वाया विकारोऽवयवो वा. दौर्व भस्म काण्डं वा / एवं बैरवम् / Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 176 ) त्रपुंजतोः षोन्तश्च / 6 / 2 / 33 / आभ्यां विकारेऽण् भवति, षश्चान्तः / त्रापुषम् / जातुषम् / उष्टादकञ् / 6 / 2 / 36 / ___अस्माद् विकारेऽवयवे चाकञ् भवति / उष्ट्रस्य विकारोऽवयवो वा औष्ट्रकम् / 'शमीशब्दाद् लो वाच्यः' शामीलं भस्म काण्डं वा / ' पयोद्रोर्यः / पयस्यम् , द्रव्यम् / 'एण्या एयञ् / एण्या विकारोऽवयवो वा ऐणेयं मांसमङ्गम् / शुरुषात् कृतहितवधविहारे यञ्६ / 2 1 20.6 पुरुषशब्दादेष्वर्थेषु समूहे चैयञ् भवति / पुरुषाणां कृतो हितं वधो विकारः समूहो वा पौरुषेयो ग्रन्थः, पौरुषेयं पथ्यम्, पौरुषेयो वधो विकारों वा, पौरुषेयः समूहः / अवेर्दुग्धे सोढदूसमरीसम् / 6 / 2 / 64 / अविशब्दाद् दुग्धेऽर्थे एते प्रत्यया भवन्ति / अवेर्दुग्धम्अविसोढं, अविदूसम्, अविमरीसम् / / पितृमातुयडुलं भ्रातरि / 6 / 2 / 62 / - पितृमातृभ्यां भ्रातर्यर्थे व्यडुलौ भवतः / पितुर्भ्राता पितृव्यः / मातुर्धाता मातुलः / पितृमातृभ्यां पितृमात्रोस्तु डामहद् वाच्यः पितुः पिता माता वा पितामहः पितामही, मातुः पिता माता वा मातामहः मातामही। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (177) - राष्ट्रेऽनङ्गादिभ्यः / 6 / 2 / 65 / अङ्गादिवर्जात् षष्ठयन्ताद्राष्ट्रेऽर्थेऽण् भवति / शिवस्य राष्ट्र शैवम् / वीरस्य राष्ट्रं वैरम् / कुमारपालस्य राष्ट्रं कौमारपालम् / भारतम् / 'राजन्यादीनामकञ् वाच्यः' राजन्यानां राष्ट्र राजन्यकम् / निवासादूरभवे इति देशे नाम्नि / 6 / 2 / 69 / षष्ठयन्ताद नाम्नो निवासादरभवयोर्यथाविहितं प्रत्ययो भवति तदन्तं नाम चेदं देशनाम स्यात् / शिबीनां निवासः शैवं पुरम् / विदिशाया अदूरभवं वैदिक्षं नगरम् / ... तदत्रास्ति / 6 / 2 / 70 / तदिति प्रथमान्तादत्रेति सप्तम्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / प्रथमान्तं चेदस्तीति प्रत्ययान्तं चेद् देशनाम / उदुम्बराः सन्ति यस्मिन्-औदुम्बरो देशः / .. तेन निर्वृत्ते च / 6 / 2 / 71 / / - तृतीयान्ताद् निर्वृत्तेऽये यथाविहितं प्रत्ययो भवति, देशनाम्नि / कुशाम्बेन निर्वृत्ता नगरी कौशाम्बी। .. __मध्यादेः / 62 / 73 / एभ्यो निवासाद्यथचतुष्के यथायोगं मतुः भवति, देशनाम्नि / मधुमान् / शिखायाः। 62 / 76 / . 12 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (178) अतश्चातुरर्थिको वलः भवति, देशनाम्नि / शिखावलं पुरम् / रोऽश्मादेः। 6 / 2 / 79 / ... अस्माचातुरर्थिको रो भवति, देशनाम्नि। अश्मनां निवासःअश्मरः। प्रेक्षादेरिन् / 6 / 2 / 8 / अतश्चातुरर्थिक इन् भवति, देशे नाम्नि / प्रेक्षी / फलकी / तृणादेः सल् / 6 / 2 / 81 / अस्माचातुरर्थिकः सल् भवति, देशनाम्नि / तृणसा / नदसा / काशादेरिलः।६।२। 82 / अस्माचातुरर्थिक इलप्रत्ययो भवति, देशे नाम्नि / काशिलम् / वाशिलम् / अरीहणादेरकण् / 6 / 2 / 83 / चातुरर्थिकोऽस्मादकण भवति, देशे नाम्नि / आरीहणकम् / खाण्डवकम् / सुपन्ध्यादेयः। 6 / 2 / 04 / अतश्चातुरथिको देशनाम्नि न्यो भवति / सौपन्थ्यम् / सौवन्ध्यम् / सुतङ्गमादेरिन् / 6 / 2 / 05 / __ अस्माचातुरर्थिको देशे नाम्नि इञ् भवति / सौतङ्गमिः / मौनचित्तिः / Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (179) बलादेयः / 6 / 2 / 86 / अतश्चातुरर्थिको देशनाम्नि यो भवति / बलस्य निवासोऽदू-रभवं वा नगरं बल्यम् / - अहरादिभ्योऽञ् / 6 / 2 / 87 / / अतो देशनाम्नि चातुरर्थिकोऽञ् भवति / आह्नम् / लौम् / सख्यादेरेयण् / 6 / 2 / 88 / देशे नाम्नि चातुरर्थिक एयण भाति / साखेयः / साखिदत्तेयः / - पन्थ्यादेरायनण् / 6 / 2 / 89 / अतश्चातुरर्थिको देशनाम्नि आयनण् भवति / पान्यायनः / पाक्षायणः / कर्णादेरायनिञ् / 6 / 2 / 90 / चातुरर्थिको देशे नाम्नि आयनिञ् भवति / कार्णायनिः / * वासिष्ठायनिः। ____ उत्करादेरीयः / 6 / 2 / 91 / __चातुरर्थिको देशनाम्नि ईयो भाति / उत्करस्य निवासोऽदूरभवं उत्करीयम् / उत्कराः सन्त्यस्मिन् उत्करीयो देशः। उत्करण निर्वृत्तमुत्करीयं नगरम् / 'नडादीनां कीयो वाच्यः' नडकीयः, प्सकीयः / - कृशावादेरीयण / 6 / 2193 / .. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (180) अतश्चातुरर्थिको देशे नाम्नि इयण भवति / काश्विीयः / आरिष्ठीयः। .... ऋश्यादेः कः। 6 / 2 / 94 / चातुरर्थिको देशे नाम्नि को भवति / ऋश्यकः / न्यग्रोधकः / वराहादेः कण् / 6 / 2 / 95 / चातुरथिको देशे नाम्नि कंण् भवति / वाराहकम् / पालाशकम् / __कुमुदादेरिकः / 6 / 2 / 96 / / * अतश्चातुरथिको देशे नाम्नि इको भवति / कुमुदिकम् / इक्कटिकम् / .. अश्वत्थादेरिकण् / 6 / 2 / 97 / अस्माद् देशे नाम्नि चातुरर्थिक इकण भवति / -आश्वस्थिकम् / कौमुदिकम् / / तत्रोद्धृते पात्रेभ्यः / 6 / 2 / 138 / पात्रार्थात् सप्तम्यन्तादुद्धृतेऽर्थे यथाविहितं प्रत्यया भवन्ति / शराने उद्धृतः शाराव ओदनः / सप्तम्यन्तात् स्थण्डिलशब्दात् शेते व्रतीत्यर्थे यथायोगं प्रत्ययो वाच्यः स्पण्डिले शेते स्थाण्डिल्लो भिक्षुः / निर्जीवस्थान स्थण्डिलमुच्यते / ......... तद् वेत्यधीते / 6 / 2 / 117 / . तदिति द्वितीयान्मद् वेत्ति अधीते केत्यर्थयोर्यथाविहितं Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 181) .. 'प्रत्ययो भवति / व्याकरणं वेत्ति वाऽधीते 'ऐकायें। इति विभक्तेलपि व्याकरण+अण् इति स्थिते.. स्वः पदान्तात् प्रागैदौत् / 7 / 4 / 5 / / मिति णिति तद्धिते परे इवोवर्णयोईद्धिप्राप्तौ सत्यां तयोरेक स्थाने यौ यकारवकारौ पदान्तौ जातौ ताभ्यां यकारवकाराम्या प्राग् यथासंख्यभद्रौतौ भवतः / वैयाकरणः / एवं न्यायमंधीते वेत्ति वा नैयायिकः / न्यायादेरिकण् / 6 / 2 / 118 अतो वेत्त्यधीते वेत्यर्थे इकण भवति / नैयायिकः / नैयासिकः / सैद्धान्तिकः / पदक्रमशिक्षामीमांसासाम्नोऽकः / 6 / / 126 / एभ्यो वेत्त्यधीते वेत्यर्थेऽकः भवति / पदं भवेत्यधीते वेति पदकः, एवं क्रमकः, शिक्षकः, मीमांसकः, सामकः / संख्याकात् सूत्रे / 6 // 2 // 128 / संख्यावाचकात् परो यः कः तदन्तात् सूत्रार्थाद् वेत्यधीते वेत्यर्थे प्रत्ययस्य लुब् भवति / अष्टकाः पाणिनीयाः / प्रोक्तात् / 6 / 2 / 120 / .. ' प्रोक्तार्थप्रत्ययान्ताद् वेत्त्यधीते वेत्यर्थे प्रत्ययस्य लुब् भवति / गोतमेन प्रोक्तं गौतमम्, गौतम वेत्त्यधीते वेति गौतमः / Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (182) संस्कृते भक्ष्ये / 6 / 2 / 140 / सप्तम्यन्तात् संस्कृते भक्ष्येऽर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / भ्राष्ट्र संस्कृता अपूपा भ्राष्ट्राः / 'क्षीरशब्दादेयण, दधिशब्दाचेकण वक्तव्यः' क्षीरे संस्कृता क्षरेयी यवागूः, दन्नि संस्कृतं दाधिकम् / 'अन्यत्रार्थेऽपि क्वचित् यथाविहितं प्रत्यया भवन्ति' चक्षुषा गृह्यते चाक्षुषं रूपम् , अश्वेनोह्यते आश्वो रथः, दृषदि. पिष्टा दार्षदाः, उदुखले क्षुण्णः औदुखलः, चतुर्भिरुह्यते , चातुरं शकटम, चतुश्यां दृश्यते चातुर्दशम् इत्यादयः / .. Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 183) अथ शेषाधिकारः। शेषे / 6 / 3 / 1 / 'सोऽपत्ये' इत्यतोऽपत्यार्थमारभ्य संस्कृते भक्ष्ये। इति संस्कृतभक्ष्यार्थ यावद् येऽर्थास्तेभ्योऽन्योऽर्थः शेषः / प्रागः नितीये शेषेऽथें इतोऽनुक्रम्यमाणं ज्ञातव्यम् / ____ नद्यादेरेयण् / 6 / 3 / 2 / अस्मात् प्राजितीये शेषेऽर्थे एयण * भवति / नद्यां भवो नातो वा नादेयः / वने भवो वानेयः / शेष इति किम्-समूहे तु नदीनां समूहो नादिकम् / 'दूरादेत्यः / दूरे भवः दुरेत्यः / पारा वारादीनः / पारावारे भवः पारावारीणः / __ [मागपागुदक्पतीचो यः / 6 / 3 / 8 / / . दिवशब्दात् प्राच् अपाच उदच् प्रत्यच् इत्येतेभ्यश्चाव्ययानव्ययेभ्यः शेषेऽये यो भवति / दिवि भवं दिव्यं सुखम् , पाच्यम्, अपाच्यम्, उदीच्यम्, प्रतीच्यम् / 'ग्रामशब्दात्तु एयकञ्, ईन, यश्च' ग्रामे भवो ग्रामेयकः, ग्रामीणः, ग्राम्यः / कुलकुक्षिग्रीवाच्छ्वाऽस्यलङ्कारे। 6 / 3 / 12 / एभ्यो यथासंख्यं शेषेऽर्थे एयकञ् भवति / कुले जातः Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 184) कौलेयकः श्वा / कुक्षौ भवः कौक्षेयकोऽसिः / ग्रीवायाँ भवो अवेयकोऽलङ्कारः / दक्षिणापश्चात्पुरसस्त्यण् / 6 / 3 / 13 / .. एभ्यः शेषेऽर्थे त्यण् भवति / दक्षिणस्यां दिशि भवो दाक्षिणात्यः / पश्चाद् भवः पाश्चात्यः / पुरो भवः पौरस्त्यः / निशब्दाद् वेऽथे, निस्शब्दाच गतेऽर्थे त्यच् वाच्यः / नित्य ध्रुवमित्यर्थः / वर्णेभ्यो निर्गतो निष्टयश्चण्डालः / ____ क्वेहामात्रतसस्त्यं च / 6 / 3 / 16 / एभ्यस्त्रतस्प्रत्ययान्तेभ्यश्च त्यच् भवति / क्व भवो जातो वा क्वत्यः / इह भवो जातो वा इहत्यः / अमा भवोऽमात्यः / तत्र भवस्तत्रत्यः / कुत आगतः कुतस्त्यः / ऐषमो-य:-श्वसो वा / 6 / 3 / 19 / एभ्यः प्राजितीये शेषे त्यच् वा भवति / ऐषमस्त्यम्, ऐषमस्तनम् / ह्यस्त्यम् , ह्यस्तनम् / श्वस्त्यम्, श्वस्तनम् / .शकलादेर्यजः / 6 / 3 / 27 / अस्माद् यान्तात् शेषेऽञ् भवति / शाकल्ये जातः शांकलः। वृद्धेऽः / 6 / 3 / 28 / वृद्धेनन्सात् शेषेऽम् भवति / दाक्षौ भवः दाक्षः / मवतोरिकणीयसौ / 6 / 3 / 30 / Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (186) - अतः शेषेऽर्थे इकणीयसौ भवतः / भवतोऽयं भारका 'ऋवर्णोवर्ण' इत्यादिनेकण इकारस्य लुक / भवन झं भवदीयम् / 'परननराजभ्यस्तु अकीयो वाच्यः परस्यायं परकीयः, जनस्येदं जनकीयम् , राज्ञोऽयं राजकीयः / दोरीयः / 6 / 3 / 32 / . दुसञ्जकात् शेषेऽये ईयो भवति / देवदत्तस्यायं देवदत्तीयः, तस्यायं तदीयः / ... राष्ट्रेभ्यः / 6 / 3 / 44 / / राष्ट्रेभ्यो दुसज्ञकेभ्यः शेषेऽकञ् भवति / अभिसाराणामयमा-- भिप्तारकः / पृथिवीमध्याद् मध्यमश्चास्य / 6 / 3 / 64 / / अतो देशार्थात् शेषे ईयो भवति प्रकृतेर्मध्यमादेशश्च / मध्यमीयः / वा युष्मदष्मदोऽजीनत्रौ युष्माकास्माकं चास्यैकत्वे तु तवकममकम् / 6 / 3 / 67 / युष्मदस्मद्भयां शेषेऽर्थे वाऽजीनौ तत्सन्नियोगे च यथासंख्य युष्मदस्मदोयुष्माकास्माकावादेशौ,एकत्वे तु तवकममकावादेशौ भवाः। युवयोयुष्माकं वेदं यौष्माकं, यौष्माकीणं पक्षे युष्मदीयम् / तवेद तावकं, तावकीनं पक्षे त्वदीयम् / आवयोरस्माकं वेदमास्माकम्, आस्माकीनं पक्षे दुसज्ञत्वादीयः अस्मदीयम्, ममायं माम मामकीनः, पक्षे मदीयः / . .... ... Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (186) अमोऽन्तावोऽधसः / 6 / 3 / 74 / .. एभ्यः शेषेऽमो भवति / अन्तमः, अवमः, अधमः / ... पश्चादायन्ताग्रादिमः / 6 / 3 / 75 // पश्चाद् आदि अन्त अग्र इत्येतेभ्यः शेषेऽर्थे इमो भवति / पश्चाद् भवः पश्चिमः, आदौ भवः आदिमः, अन्ते भवोऽन्तिमः, अंग्रे भवोऽग्रिमः। मध्याद् मः / 6 / 3 / 76 / मध्यशब्दाच्छेषेऽर्थे मो भवति / मध्यमः / / अध्यात्मादिभ्य इकण् / 6 / 3 / 78 / एभ्यः शेषेऽर्थे इकण भवति / आत्मनीत्यध्यात्म तत्र भवमाध्यात्मिकम्, एवमाधिदैविकम, आधिभौतिकम् , और्वदेहिकम् इत्यादि। वर्षाकालेभ्यः / 6 / 3 / 80 / वर्षाशब्दात् कालविशेषवाचिनश्च शेषेऽथें इकण भवति / वर्षायां भवं वार्षिकम् ; मासे भवं मासिकम्, संवत्सरे भवं सांवसरिक प्रतिक्रमणम् / 'निशाप्रदोषात् / आभ्यां तु वा; निशायां मां शं नैशिकं वा, एवं प्रादोष प्रादोषिकम् / श्वसस्तादिः / 6 / 3 / 04 / अस्मात् कालार्थाच्छेषे इकम्, वा स्यात्, सच तादिः। थो भवः शौवस्तिकः। Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (187) चिरपरुत्परारेः नः।६।३। 85 / ' एभ्यः कालार्थाच्छेषेऽर्थे नो वा भवति / चिरत्नम्, परलम्, परारित्नम् / पूर्वाणापराह्णात् तनट् / 6 / 3 / 87 / आभ्यां वा तनड् भवति / पूर्वाह्ने भवः पूर्वाह्नतन: अत्र 'कालात्तनतर- इत्यादिना सप्तम्या वा लुक् पूर्वाह्नतनः / एवं अपराहणेतनः, अपराह्नतनः / सायंचिरंमाणेप्रगेऽव्ययात् / 6 / 3 / 88 / एभ्योऽव्ययाच कालार्थाच्छेषे तनड् नित्यं स्यात् / सायंतनम्, चिरंतनम्, प्राणैतनम् , प्रगेतनम्, दोषातनम्, दिवातनम्, ह्यस्तनम्, श्वस्तनम्, सनातनम्, पुरातनम्, 'पुराशब्दाद नोऽपि पुराणम्। भर्तुसन्ध्यादेरण / 6 / 3 / 89 / ... नक्षत्रार्थाढत्वर्थात् सन्ध्यादेश्च कालार्थाच्छेषेऽर्थेऽण् भवति / पुष्ये भवः पौषः, ग्री में भवः ग्रष्मः, सन्ध्यायां भवः सान्ध्यः, अमावास्यायां भवोऽमावास्यः / 'हेमन्तस्य तु वाऽण् , तद्योगे च तलुक् ! हेमन्ते भवो हैमनो,, हैमन्तः पक्षे हैमन्तिकः / 'प्रावृष एएयः.' प्रावृषेण्यः / तत्र कृतलब्धक्रीतसंभूते / 6 / 3 / 94 // तल्यायां भवोऽभावा भव: ग्रामः, मच्छेषेऽऽण् र Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 188) ... सप्तम्यन्तादेष्वर्थेषु यथायोगमणादय एयणादयश्च भवन्ति / उत्से कृतो लब्धः क्रीतः संभूतो वा औत्सः / बहिः कृतः लब्धः क्रीतः संभूतो वा बाह्यः / नद्यां कृतो लब्धः क्रीतः संभूतो वा नादेयः / एवं राष्ट्रीयः, पारीणः, दाक्षिणात्यः, ग्रैष्मः, प्रावृषेण्यः, नैशः, नैशिकः / कुशले.। 6 / 3 / 95 / / * सप्तम्यन्तात् कुशलेऽर्थे यथाविहितमणेयणादयश्च भवन्ति / माथुरः, नादेयः / जाते / 6 / 3 / 98 / सप्तम्यन्ताज्जातेऽर्थे यथाविहितमणेयणादयश्च भवन्ति / माथुरः, औत्सः / 'प्रावृषस्तु जातेऽये इको वाच्यः 1 प्रावृषि जातो प्रावृषिकः। कालाद् देये ऋणे / 6 / 3 / 113 / / सप्तम्यन्तात् कालार्थाद् देये ऋणे यथाविहितमणादयो भवन्ति / मासे देयं ऋणं मासिकम्, एवं वार्षिकम् / . साधुपुष्यत्पच्यमाने / 6 / 3 / 117 / ... 'कालविशेषवाचिनः सप्तम्यन्तात् साधौ पुष्यति पच्यमाने चार्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / हेमन्ते साधु हैमन्तिकम् / वसन्ते पुष्यति वासन्ती कुन्दलता / शरदि पच्यन्ते शारदाः शालयः उसे / 6 / 3 / 118 / Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (189) . कालार्थात् सप्तम्यन्तावुप्तेऽर्थे यथाविहितं. प्रत्ययो भवति / शरदि उप्ताः शारदाः शालयः / हेमन्ते उप्ता हैमनाः, हैमन्ताः, हैमन्तिका यवा: 'ग्रीष्मवसन्ताभ्यां तृप्तेऽर्थे अकञ् वा वाच्यः' ग्रीष्मे उप्तं गृष्मकं, ग्रैमं वा / वसन्ते उप्तं वासन्तकं वासन्तं वा धान्यम् / व्याहरति मृगे।६।३। 121 / सप्तम्यन्तात् कालार्थात् व्याहरति मृगेऽर्थे यथाभिहितं प्रत्ययो भवति / निशायां व्याहरति नैशो, नैशिको वा शृगालः। एवं प्रादोषिकः, प्रादोषः / / जयिनि च / 6 / 3 / 122 / "जयः प्रसहनमभ्यासः स. विद्यते यस्यासौ जयी / सप्तम्यन्तात् कालवाचिनो जयिन्यर्थे धथाविहितं प्रत्ययो भवति / निशासहचरितमध्ययनमपि निशा, तस्यां नयी नैशो नैशिको वा / ___ भने / 6 / 3 / 123 / .. सप्तम्यन्ताः भवेऽर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / सुन्ने भवः स्रौनः, नद्यां भवो नादेयः, हेमन्त भवो हैमनो हैमन्तो हैमन्तिको वा। दिगादिदेहाशाद् यः / 6 / 3 / 124 / दिगादिभ्यो देहावयववाचिभ्यश्च सप्तम्यन्तेभ्यो भवे यो भवति / दिशि भवों दिश्यः / मूर्ध्नि भवों मूर्धन्यः / 'वर्गान्तातु ईयो वाच्यः' कवर्गे भवः कवर्गीयः / 'जिह्वामूलागुलिभ्यां मध्य Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 190) शब्दाचापि' जिह्वामूले भवः जिह्वामूलीयः, अङ्गुलौ भवः अङ्गुलीयः, मध्ये भवो मध्यीयः / 'गम्भीरपञ्चजनबहिर्दैवात् न्यो “बोध्यः / गम्भीरे भवो गाम्भीर्यः, एवं पाञ्चजन्यः, बाह्यः, दैन्यः / - तत आगते / 6 / 3 / 149 / . पञ्चम्यन्तादागतेऽर्थे यथापूर्वोक्तं प्रययो भवति / कुमारपालादागतः कौमारपालः सचित्रः, जिनादागतं जैनं शासनम्, नद्या आगतो नादेयः, ग्रामादागतो ग्राम्यः / नृहेतुभ्यो रूप्यमयटौ वा / 6 / 3 / 156 / __नृवाचिभ्यो हेत्वर्थाच्च तत आगतेऽर्थे रूप्यमयटौ वा भवतः। जिनदत्तादागतं जिनदत्तरूप्यम् , जिनदत्तमयम्, जिनदत्तीयं वा / एवं समरूप्यं, सममय, समीयम् / ' प्रभवति / 6 / 3 / 157 / पञ्चम्यन्तात् प्रभवत्यर्थे यथोक्तं प्रत्ययो भवति / हिमवतः प्रभवति हैमवती गङ्गा, एवं काश्मीरी वितस्ता / 'त्यदादिभ्यस्तु प्रभवत्यर्थे मयड् वाच्यः' तस्माद प्रभवति तन्मयम् / भवन्मयी। तस्येदम् / 6 / 3 / 160 / षष्ठयन्तादिदमित्यर्थे यथोक्तं प्रत्ययो भवति / तवेदं त्वदीयम्, पूर्णचन्द्रस्येदम् पूर्णचन्द्रीय सारस्वतम्, उपगोरिदमौपगवम् , - नद्या इदं नादेयम् / . . तेन मोक्ते / 6 / 3 / 181 / Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 191) तृतीयान्तात् प्रोक्ते इत्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / भद्रबाहुना प्रोक्तानि वस्तूनि भाद्रबाहवानि वस्तूनि। तीर्थङ्करेण प्रोक्ता तैर्थङ्करी त्रिपदी / गणधरेण प्रोक्तं गाणधरं द्वादशाङ्गम् / पाणिनिना प्रोक्तं पाणिनीयम् , हेमचन्द्रेण प्रोक्तं हेमचन्द्रीयम् , वृहस्पतिना प्रोक्तं वार्हस्पत्यं शास्त्रम् / . उपज्ञाते / 6 / 3 / 191 / प्रथमतः प्रागुपदेशेन विना ज्ञातमुपज्ञातम् / उपज्ञाते टान्ताद् यथाविहितं प्रत्ययो भवति / पाणिनिना उपज्ञातं पाणिनीयम्। श्रेयांसेनोपज्ञातं श्रेयांसीयं दानम् , जिनेन्द्रेणोपज्ञातं जैनेन्द्र व्याकरणम् / कृते / 6 / 3 / 192 / / तृतीयान्तात् कृतेऽर्थे यथोक्तं प्रत्ययो भवति / सिद्धसेनेन कृतः सिद्धसेनीयः स्तवः / इष्टकाभिः कृत ऐष्टकः प्रासादः / एवं माक्षिकम् / - अमोऽधिकृत्य ग्रन्थे / 6 / 3 / 198 / द्वितीयान्तादधिकृत्य कृते ग्रन्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / सुभद्रामधिकृत्य कृतो ग्रन्थः सुभद्रीयः / गच्छति पथिदूते / 6 / 3 / 203 / / अमन्ताद् यथोक्तं प्रत्ययो भवति / गमनकर्ता चेत् 'पन्या दूतो वा / मथुरां गच्छति यः पन्था दूतो वा माथुरः, एवं सौनः। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 192) ...... भजति / 6 / 3 / 204 / द्वितीयान्ताद् भनत्यर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति / स्रुघ्नं मनति, जिनं भनति, बुद्धं भजति, विष्णु भजति, शिवं भनति, कपिलं भजति वास्त्रोन्नः, जैनः, बौद्धः, वैष्णवः, शैवः, कापिलो वा। इति शेषाधिकारः / प्राग्जितीयार्थोऽपि समाप्तः / - इकण् / 6 / 4 / 1 / इतः 'तमर्हतिर यावद, इकणधिकृतो वेदितव्यः / अधिकारार्थमिदम् / तेन जितजयद्दीव्यत्खनत्सु / 6 / 4 / 2 / .... तृतीयान्तादेप्वर्थेषु इकण भवति / अनितं, जयात, दीव्यति चाऽऽक्षिकम् , कुदालेन खनति कौदालिकः / . संस्कृते / 6 / 4 / 3 / ..... ... तृतीयान्तात् संस्कृते इकण् भवति / दध्ना संस्कृतं दाधिकम् , विद्यया संस्कृतो वैधिकः / उपाध्यायेन संस्कृत औपाध्यायिको विशालविजयः / जयन्तविजयेन् संस्कृतो नावन्तविजयिकश्चमरेन्द्रविजयः / संसृष्टे / 6 / 4 / 5 / तृतीयान्तात् संसृष्टेऽर्थे इकण भवति / मिश्रणमात्रं संसृष्टार्थः / दना संसृष्टं दाधिकम् / 'लवणशब्दात्तु अः वाच्य ' लवणेन संसृष्टो लावणः सूाः / " चूर्णमुङ्गाभ्यामिनणौ / चूर्णेन संसृष्टाः चूर्णिनः / मुद्रेन संसृष्टा मौढ़ी। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 193) .. व्यञ्जनेभ्य उपसिक्ते / 6 / 4 / 8 / - तृतीयान्ताद् व्यञ्जनवाचिन उपसिक्तेऽर्थे इकण भवति / न्यञ्जनं सूपादि / सूपेनोपसिक्तः सौपिकः, तिलेनोपसिक्तं तैलिक शाकम् / __तरति / 6 / 4 / 9 / तृतीयान्तात् तरत्यर्थे इकण भवति / उडुपेन तरति औडुपिकः। तुम्बेन तरति तौम्बिकः, एवं घाटिकः, दार्तिकः / नौद्विस्वरादिकः ' नावा तरति नाविकः / बाहुभ्यां तरति बाहुकः / चरति / 6 / 4 / 11 / टान्ताच्चरत्यर्थे इकण भवति / हस्तिना चरति हास्तिकः / दध्ना चरति भक्षयति दाधिकः / ' पदिको निपात्यः , पादाभ्यां चरति पदिकः / वेतनादेर्जीवति / 6 / 4 / 15 / वेतनादिभ्यस्तृतीयान्तेभ्यो जीवत्यर्थे इकण भवति / वेतनेन जीवति वैतनिकः पण्डितः, वादेन जीवति वादिकः, कलहेन जीवति कालहिकः / 'क्रयविक्रयादिको वाच्यः क्रयविक्रयेण जीवति क्रयविक्रयिक आङ्ग्लदेशः, क्रयेण जीवति क्रयिका इदानींतनी भारतभूः, विक्रयेण जीवति विक्रयिक: जर्मनदेशः। 'आयुधादीग' आयुधेन जीवति आयुधीयः, आयुधिकः / ...' . निर्वृत्तेऽक्षयूतादेः। 6 / 4 / 20 / 13 नित Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (194) अक्षयूत इत्यादिभ्यस्तृतीयान्तेभ्यो निर्वृत्तेऽर्थे इकणू. भवति / अक्षयूतेन निर्वृत्तमाक्षचूतिकं वैरम्, जङ्घाप्रहतेन निवृत्तं जावाप्रहतिकम् / ' भावार्थादिमो वाच्यः / पाकेन निवृत्तं पाकिमम् / हरत्युत्सङ्गादेः / 6 / 4 / 23 / .. उत्सङ्गादिभ्यस्तृतीयान्तेभ्यो हरत्यर्थे भावे इकण भवति / उत्सङ्गेन हरति औत्सङ्गिकम्, एवमौडुपिकम् / ओजःसहोऽम्भसो वर्तते / 6 / 4 / 27 / ... तृतीयान्तेभ्य ओन इत्यादिभ्यो वर्ततेऽर्थे इकण भवति / ओजसा बलेन वर्तते औजसिका, साहसिकः, आम्भसिकः / रक्षदुञ्छतोः। 6 / 4 / 30 / द्वितीयान्ताद् रक्षतुल्छतोरिकण भवति / नगरं रक्षति नागरिकः / बदरमुञ्छति बादरिकः / / पक्षिमत्स्यमृगार्थाद् घ्नति / 6 / 4 / 31 / पक्ष्यर्थमत्स्यार्थमृगार्थवाचिभ्यो द्वितीयान्तेभ्यो नत्यर्थे इकण् भवति / पक्षिणो हन्ति पाक्षिकः / मत्स्यान् ध्नन्ति मात्स्यिकाः / मृगान् हन्ति मार्गिकः / हरिणं हन्ति हारिणिकः। .: परिपन्थात् तिष्ठति च / 6 / 4 / 32 / / द्वितीयान्तात् परिपथात् तिष्ठति नति चार्थे इकण् भवति / परिपन्थान् हन्ति पारिपान्धिकः, परिपन्य तिष्ठति पारिपान्थिकश्चौरः। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 195) अवृद्धेर्गृह्णति गर्थे / 6 / 4 / 34 / द्वितीयान्ताद् वृद्धिवर्नाद् गृह्णत्यर्थे इकण् भवति / योऽसौ गृह्णाति स चेद् निन्द्यो भवेत् / द्विगुणं गृह्णाति द्वैगुणिकः, गुणिकः / अवृद्धेरिति किम्-वृद्धिं गृह्णातीति वाक्यमेव / परदारादिभ्यो गच्छति / 6 / 4 / 38 / परदारादिभ्यो द्वितीयान्तेभ्योः गच्छत्यर्थे इकण भवति / परदारान् गच्छति पारदारिकः, गुरुतल्पं गच्छति गौरुतल्पिकः, भ्रातजायां गच्छति भ्रातृजायिकः / 'पश्चात्यनुपदात् / अनुपदं धावति आनुपदिकः / . . मुस्नातादिभ्यः पृच्छति / 6 / 4 / 42 / . ... सुस्नातादिभ्यो द्वितीयान्तेभ्यः पृच्छत्यर्थे इकण भवति / सुस्नातं पृच्छति सौस्नातिकः, सुखरात्रिं पृच्छति सौखरात्रिकः / ..प्रभूतादिभ्यो ब्रुवति / 6 / 4 / 43 / .. प्रभूतादिभ्यो द्वितीयान्तेभ्यो ब्रुवत्यर्थे इकण भवति / प्रभूतं ब्रूते प्राभूतिकः, पर्याप्तं ब्रवीति पार्याप्तिकः / वैपुलिकः / .... समूहार्थात् समवेते / 6 / 4 / 46 / / समूहवाचिभ्यो द्वितीयान्तेभ्यः समवेतेऽर्थे इकण भवति / समूहं समवैति सामूहिकः / समाज समवैति सामाजिकः / ' पर्षदोण्यः' पर्षदि समवैतिं पार्षद्यः / Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 196) धर्माधर्माचरति / 6 / 4 / 49 / ... आम्यां द्वितीयान्ताभ्यां चरत्यर्थे इकण भवति / धर्म चरति धार्मिकः, अधर्म चरति आधर्मिकः / ____षष्ठया धये / 6 / 4 / 50 / षष्ठयन्ताद् धम्र्येऽथें इकण भवति / 'न्यायानुवृत्त आचारो धर्मः, तस्मादनपेतं धर्म्यम् / शुल्कशालाया धयं शौल्कशालिकम् / अवक्रये / 6 / 4 / 53 / षष्ठयन्तादवक्रयेऽर्थे इकण भवति / अवक्रयो भाटकम् , आपणस्यावक्रय आपणिकः / शकटस्यावक्रयः शाकटिकः / तदस्य पण्यम् / 6 / 4 / 54 / तदिति प्रथमान्तादस्येति षष्ठ्यर्थे इकण् भवति / तच्चेत् प्रयमान्वं पण्यं भवेत् / अपूपाः पण्यं विक्रेयमस्य आपूपिकः / शिल्पम् / 6 / 4 / 57 / प्रथमान्तात् षष्ठ्यर्थे इकण भवति / तच्चेत् प्रथमान्तं शिल्लं भवेत् / नृत्तं शिल्पमस्य स नार्तिकः / अध्यापनं शिल्पमस्य स आध्यापनिकः / - शीलम् / 6 / 4 / 59 / प्रथमान्ताच्छीलार्थात् षष्ठ्यर्थे इकण् भवति / पठनं : शीलमस्य पाठनिकः / ईर्ष्या शीलमस्य स ऐयिको ब्राह्मणः / क्षण शीलमस्य स क्षामिको जैनमुनिः / Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 197) प्रहरणम् / 6 / 4 / 62 / प्रथमान्तात् षष्ठ्यर्थे इकण भवति / तच्चेत् प्रहरणं प्रथमान्तं भवेत् / असिः प्रहरणमस्यासौ आसिक, चाक्रिकः; मौष्टिकः, पानुष्कः / 'शक्तियष्टिभ्यां तु टीकण वाच्यः शक्तिः प्रहरणमस्यासौ शाकीकी एवं याष्टीकी / ' नास्तिकास्तिकदैष्टिकानि तदस्येत्यर्थे निपात्यानि' नास्ति स्वर्गपुण्यादि इत्येवं मतिर्यस्यासौ नास्तिको जगन्मिथ्यावादी / आस्तिको जैनमुनिः, दैटिकः / भक्ष्यं हितमस्मै / 6 / 4 / 69 / प्रथमान्तादस्मै इति चतुर्थ्यर्थे इकण भवति / तच्चेत् प्रथमान्तं मध्यं हितं भवेत् / अपूपा भक्ष्यं हितमस्मै आपूपिकः, शाष्कुलिकः, ताक्रिकः / नियुक्तं दीयते / 6 / 4 / 70 / प्रथमान्तादस्मै इति चतुर्थ्यर्थे इकण भवति / तच्चत् प्रथमान्तं नियुक्तं दीयते / अग्रभोजनं नित्यं दीयतेऽस्मै स आग्रभोजनिकः / / तत्र नियुक्ते / 6 / 4 / 74 / . सप्तम्यन्ताद् नियुक्ते इकण् भवति / शुल्कशालायां नियुक्तः शौल्कशालिकः / साधारणद्रव्यरक्षायां नियुक्तः साधारणद्रव्यरतिक: देवद्रव्यरक्षायां नियुक्तो देवद्रव्यरतिका, रक्षा नाम योग्यस्थाने A .. निकटादिषु वसति 1 6 / 4 / 77 / सप्तम्यन्तेभ्य एभ्यो वसत्यर्थे इकण् भवति / अरण्ये वसति Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (198) आरण्यिकः / उपाश्रये.. वसति औपाश्रयिक: / वृक्षमूले. वसति वाक्षमूलिकः / 'सतीर्थ इति तु निपातनात् / समाने तीर्थे-गुरौ वसति सतीर्थः। ". चन्द्रायणं च चरति / 6 / 4 / 82 / - अतो गोदानादिभ्यश्च द्वितीयान्तेभ्यश्वरत्यर्थे इकण भवति / चन्द्रायणं चरति चान्द्रायणिकः / गोदानं चरति गौदानिकः / आदित्यवतिकः / क्रोशयोजनपूर्वाच्छताद् योजनाचा भिगमाहे / 6 / 4 / 86 / , क्रोशशत-योजनशताभ्यां योननाच्च पञ्चम्यन्तादभिगमाहें ये इकण् भवति / क्रोशशतादभिगमनमर्हति क्रौशशतिकः, योजना शतादभिगमनमर्हति यौजनशतिको जनभिक्षुः, योजनादभिगमनमहति यौजनिकः / / संशयं प्राप्त ज्ञेये / 6 / 4 / 93 / संशयमिति द्वितीयान्तात् प्राप्तेऽर्थे इकण भवति, प्राप्तं चेद् ज्ञा भवेत् / संशयं प्राप्तः सांशयिको दिगम्बरशिवभूतेरर्थः / .. ... तस्मै योगादेः शक्ते / 6 / 4 / 94 / योगादिभ्यश्चतुर्थ्यन्तेभ्यः शक्तेऽर्थे इकण भवति / योगाय; शक्तो यौगिको जयन्तविनयो मुनिः, सन्तापाय शक्तः सान्तामिको ज्वरः / .. ...... Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 199), यज्ञानां दक्षिणायाम्।। 6 / 4 196 / / यज्ञवाचिभ्यः षष्ठ्यन्तेभ्यो दक्षिणायाम इकण भवति, अग्निष्टोमस्य दक्षिणा आग्निष्टोमिकी / वाजपेयिकी। काले कार्ये च भववत् / 6 / 4 / 98 / कालवाचिनः सप्तम्यन्ताद् देये कार्ये चार्थे भववत्, प्रत्यया भवन्ति / वर्षासु भवमित्यत्रं यथा 'वर्षाकालेभ्यः' इतीकण , एवं वर्षासु देयं वा कार्य तत्रार्थेऽपि वार्षिक देयं कार्यं वा / . तेन हस्ताद् यः / 6 / 4 / 101 / : का / तृतीयान्ताद् हस्तशब्दाद् देये कार्ये चार्थे यो भवति हस्तेन देयं कार्य वा हास्त्यम् / .... . " शोभमाने / 6 / 4 / 102 / / तृतीयान्ताच्छोभमाने इकण् भवति। शीलेन शोभते शैलिकी राजीमती / कर्णवेष्टकाभ्यां शोभते कार्णवेष्टकिकम् / वास्त्रयुगिक शरीरम् / - कालात् परिजय्यलभ्यकार्यसुकरे / 6 / 4 / 104 / , तृतीयान्तात् कालविशेषवाचिनः परिज़य्ये लभ्ये कार्य सुकरे चार्थे इकण भवति / मासेन परिज़य्यो, रोगो,मासिकः / मासेना सत्य वेतनं मासिकं वेतनम् / मासेन कार्य प्रासादों मासिका मासेन सुकरं मासिकं तम् / संवत्सरेण कार्यो प्रत्य सांवत्सरिको ग्रन्थः / Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (200) निवृत्ते / 6 / 4 / 105 / - तृतीयान्ताद् निर्वृत्तेऽर्थे इकण भवति / अहा निवृत्तमाह्निकम् / मासिकम् / तं भाविभूते / 6 / 4 / 106 / द्वितीयान्तात् कालार्थाद् भाविनि भूते चार्थे इकण भवति / मासं भावी मासिक उत्सवः, मासं भूतो मासिको व्याधिः / ___ तस्मै भृताधीष्टे च / 6 / 4 / 107 / चतुर्थ्यन्तात् कालवाचिनो भृतेऽधीष्टे चार्थे इकण भवति / मासाय भृतो मासिकः, मासायाधीष्टो मासिकोऽध्यापकः / वेतनेन क्रीतो भृत उच्यते, सत्कारपूर्व व्यापारितस्त्वधीष्टः कथ्यते / सोऽस्य ब्रह्मचर्यतद्वतोः / 6.14 / 116 / प्रथमान्तात् कालविशेषवाचिनोऽस्येति षष्ठयर्थे इ.ण भवति ब्रह्मचर्थे ब्रह्मचारिणि चार्थे / मासोऽस्य ब्रह्मचर्यस्य तद् मासिक ब्रह्मचर्यम् , एवं वार्षिकम् , मासोऽस्य ब्रह्मचारिणो मासिको ब्रह्मचारी / वार्षिको ब्रह्मचारी। __ प्रयोजनम् / 6 / 4 / 117 / प्रथमान्तादस्येति षष्ठयर्थे इकण भवति / प्रथमान्तं प्रयोमनं चेत् / जिनमहः प्रयोजनमस्य तद् जैनमहिकं देवागमनम् , निमशासनोद्धारः प्रयोजनमत्याः सा जैनशासनोद्धारिकी इदानीसनी देवद्रव्यचळ विजयधर्मसूरीणाम् / समयात् प्राप्तः / 6 / 4 / 124 / Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2.1) - प्रथमान्तात् समयादस्येति षष्ठ्यर्षे इवण भवति / प्रथमान्ने चेत् प्राप्तं भवति / समयः प्राप्तोऽस्यासौ सामयिको विवादः / त्रिशद्विशतेर्डकोऽसंज्ञायामाईदर्थे / 6 / 4 / 129 / . त्रिंशविंशतिशब्दाभ्यामाअहंदाद् योऽर्थो वक्ष्यते तत्र डकप्रत्ययो भवति, असज्ञाविषये / त्रिंशता क्रीतं त्रिंशकम् / विंशत्या क्रीतं विंशति+डक इति स्थिते विशतेस्तेंडिति / 7 / 4 / 67 / अपदस्यास्य तेर्डिति परे तद्धिते लुग् भवति / विंशकम् / सङ्ख्याडतेश्वाशत्तिष्टेः कः / 6 / 4 / 130 / शदन्त-त्यन्त-ष्टयन्तवर्जितायाः सङ्ख्याया डत्यन्तात् त्रिंशद्विशतिभ्यां चाहदर्थे को भवति / द्वाभ्यां क्रीतं द्विकम्, बहुभ्यां क्रीत बहुकम्, एवं यावत्कम्, कतिकम्, त्रिंशत्कम्, विंशतिकम् / अशत्तिष्टेरिति किम-चात्वारिंशत्कम् , साप्ततिकम्, पाष्टिकम् / 'वातोरिकः ' यावतिकमपि / 'शतशब्दाद् येको वाच्योर शतेन क्रीतः शत्यः, शतिकः / 'सूर्गत् तु वाऽञ् वक्तव्यः' सूर्पण कृतं. सौर्प सौपिकम् / अनाम्न्यद्विः प्लुप् / 6 / 4 / 141 / - द्विगोराईदर्थे जातस्य प्रत्ययस्य लुब् भवति स च पित्, अनाम्नि न तु द्विः / द्वाभ्यां कंसाभ्यां क्रीतं द्विकसम् / अमाम्नीति किम्-पञ्चभिः लोहितैः क्रीतं पाञ्चलोहितिक / अद्वि Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (202) रिति किम्-द्वाभ्यां सूर्पाभ्यां क्रीतं द्विसूर्पमत्रान इकणो वा लुब् जातः, पुनश्च द्विसूण क्रीतं द्विसौर्षिकमत्र न. लुब् / ... मूल्यैः क्रीते / 6 / 4 / 150 / . मूल्यार्थात् तृतीयान्तात् क्रीतेऽर्थे यथाविहितमिकणादयो भवन्ति / प्रस्थेन क्रीतं प्रास्थिकम्, त्रिंशता क्रीतं त्रिंशकम् / तस्य वापे / 6 / 4 / 151 / . षष्ठयन्ताद् वांपेऽर्थे यथाविहितं प्रत्ययो भवति, वापः क्षेत्रम्। प्रस्थस्य वापः प्रास्थिकं क्षेत्रम् , द्रोणस्य वापः द्रोणिकम् / .. हेतौ संयोगोत्पाते / 6 / 4 / 153 / / . षष्ठ्यन्ताद् हेत्वर्थे यथोक्तमिकणादयो भवन्ति / यो हेतु: स चेत् संयोग उत्पातो वा। संयोगः-सम्बन्धः, उत्पातः शुभाशुभसूचको भूविकारः / शतस्य हेतुः शत्यः शतिको वा राजसंयोगः / सोमग्रहणस्य हेतुरुत्पातः सौमग्रहणिको भूमिकम्पः / 'पुत्राद, येयौ / पुत्रस्य हेतुः संयोग उत्पातो वा पुत्र्यः, पुत्रीयः। वातपित्तश्लेष्मसनिपाताच्छमनकोपने / 6 / 4 / 152 / एभ्यः षष्ठ्यन्तेभ्यः शमने कोपने चार्थे यथोक्तमिकण भवति / वातस्य शमनं कोपनं वा वातिकम्, एवं पैत्तिकम्, श्लेष्मिकम्, सान्निपातिकम् / : : लोकसर्वलोकात् ज्ञाते / 6 / 4 / 157 / Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (203.) ... आभ्यां षष्ठयन्ताभ्यां ज्ञातेऽर्थे यथोक्तं प्रत्ययो भवति / लोकस्य ज्ञातो लौकिकः, सर्वलोकस्य ज्ञातः सार्वलौकिकः / तं पचति द्रोणाद् वाऽब् / 6 / 4 / 161 / द्वितीयान्ताद् द्रोणशब्दात् पचत्यर्थेऽञ् वा भवति / द्रोणं पचति द्रौणी, द्रौणिकी। . सम्भवदवहरतोश्च। 6 / 4 / 162 / . द्वितीयान्ताद् नाम्नः सम्भवति अवहरति पचत्यर्थे चेकणादयो भवन्ति / आधेयस्य प्रमाणानतिरेकेण धारणं सम्भवः, अतिरेकेण धारणमवहरः / प्रस्थं सम्भवति अवहरति पचति वा प्रास्थिकः कटारः / खारीकः / कौडविकः। वंशादेर्भाराद् हरद्वहदावहत्सु / 6 / 4 / 166 / वंशादिपराद्ः भारशब्दाद् हरति वहति आवहति चाथै यथाविहितं प्रत्यया भवन्ति / वंशभारं हरति- वहति आवहति वांशभारिकः, एवं कौटभारिकः / / मानम् / 6 / 4 / 169 / .... प्रथमान्तात् षष्ठ्यर्थे यथाविहितं प्रत्यया भवन्ति / प्रथमान्तं चेद् मानं भवेत्। प्रस्थः मानमस्य प्रास्थिको राशिः, एवं द्रौणिकः, खारीकः / तमर्हति / 6 / 4 / 177 / / Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (204) द्वितीयान्ताहत्यर्थे पूर्वोक्ताः प्रत्यया भवन्ति / श्वेतपटमर्हति चैतपटिकः / सहस्रमर्हति साहस्रः / शिक्षामर्हति शैक्षिकः / इकणधिकारः समाः। यः।७।१।१। इत ऊर्ध्वं यदनुक्रमिष्यामस्तत्र ईयप्रत्ययादाग योऽधिकृतो वेदितव्यः / - वहति रथयुगमासङ्गात् / 7 / 1 / / - एभ्यो द्वितीयान्तेभ्यो वहत्यर्थे यो भवति / रथं वहति स्थ्यः / युगं वहति युग्यः / प्रासङ्गं वहति प्रासङ्ग्यः / 'धुरो येयण् / धुरं वहति धुर्यः, धौरेयः / - हलसीरादिकण् / 7 / 1 / 6 / ' आभ्यां वहत्यर्थे इकण भवति / हलं वहति हालिकः, एवं सैरिकः / 'शकटशब्दादण वाच्यः शकटं वहति शाकटो गौः। विध्यत्वनन्येन / 7 / 1 / 8 / - द्वितीयान्ताद् विध्यत्यर्थे यो भवति, न चेदात्मनोऽन्येन करणेन विध्येत् / पादौ विध्यति पद्यः कण्टकः / अनन्येनेति किम्-चौरं विध्यति चैत्रः1 . धनगणालब्धरि / 7 / 1 / 9 / / Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) द्वितीयान्ताभ्यामाभ्यां लधर्मर्थे यो भवति / धनं लब्धा. धन्यः, एवं गण्यः / न्यायार्थादनपेते / 7 / 1 / 13 / पन्चम्यन्ताभ्यामाभ्यामनपेतेऽर्थे यो भवति / न्यायादनपेत न्याय्यम्, एवमर्थ्यम् / 'मतमदाभ्यां षष्ठयन्ताभ्यां करणे यो वाच्य। मतस्य. मदस्य वा करणं मत्यं मद्यम् / तत्र साधौ / 7 / 1 / 15 / सप्तम्यन्तात् साधावणे यो भवति / सभायां साधुः सभ्यः / ईयः / 7 / 1 / 28 / आ तदो वक्ष्यमाणेष्वर्थेषु ईयोऽधिकृतो वेदितव्यः / . उवर्णयुगादेयः। 7 / 1 / 30 / उवर्णान्ताद् युगाबेश्चातदोऽर्थेषु यो भवति / शङ्कवे हितं काव्यम् / युगाय हितं युग्यम्, हविषे हितं हविष्यम् / तस्मै हिते / 7 / 1 / 35 / / चतुर्थ्यन्ताद् हितेऽर्थे यथाधिकृतं प्रत्ययो भवति / वत्साय हितं वत्सीयम् , युगाय हितं युग्यम् / 'पाद्याध्यौँ तु तदर्थे यान्तौ निपात्यौ / पादार्थ पाद्यमुदकम् , अर्घार्थमयं रत्नम् / .: अव्यजात् थ्य 7 / 1 / 38 / आभ्यां तस्मै हितेऽर्थे थ्यब् भवति / अवये हितमविथ्यम् / मजायै हितमनथ्यम् / Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चसर्वविश्वाजनात् कर्मधारये / 7 / 1 / 41 / . पन्चादिपराज्जनात् कर्मधारयवृत्तेस्तस्मै हितेऽर्थे ईनो भवति / सर्वे च ते जनाश्च सर्वजनाः, तेभ्यो हितं सर्वननीनम् / एवं 'पन्चजनीनम् / विश्वजनीनम् / 'महत्सर्वादिकण / महांश्चासौ जनश्च महाजनः, तस्मै हितं माहाजनिकम्, एवं सार्वजनिकम् / 'सर्वशब्दात् तस्मै हितेऽर्थे जो वा. वाच्यः' सर्वस्मै हितः सार्वः, सर्वीयो वा। परिणामिनि तदर्थे / 7 / 1 / 44 / चतुथ्यन्ताच्चतुर्थ्यर्थे परिणामिनि यथाधिकृतं प्रत्ययो भवति / -अङ्गाराय परिणमति आङ्गारीयं काष्ठम् / शङ्कव्यं दारु / परिखाऽस्य स्यात् / 7 / 1 / 48 / स्यन्तादतः षष्ठयर्थे परिणामिनि एयण भवति / परिखा आसां स्यात् पारिखेय्य इष्टकाः / ..." -- अत्र च / 7 / 1 / 49 / परिखायाः स्यादिति सम्भाव्यायाः प्रथमान्ताया अत्रेति -सप्तम्यर्थे एयण भवति / परिखा अस्यां स्यात् पारिखेयी भूः। तद् / 7 / 1 / 50 / .. स्यादिति सम्भाव्यात प्रथमान्तात् षष्ठयर्थे परिणामिनि सप्तम्यर्थं च यथाधिकृतं प्रत्यया भवन्ति / प्राकार आसाः स्यात् Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (207) प्राकारीया इष्टकाः, परशुरस्य स्यात् परशव्यमयः, प्रासादोस्मिन् स्यात् प्रासादीयो देशः / ईयाधिकारः समाप्तः। तस्याहे क्रियायां वत् / 7 / 1 / 51 / / तस्येति षष्ठयन्तादहेऽर्थे वत् भवति, अहं चेत् क्रिया भवेत् / रांज्ञोऽहं राजवद् वृत्तम् , साधोरर्ह साधुवत् / स्यादेरिवे / 7 / 1 / 52 / स्याद्यन्तादिवार्थे सादृश्ये वत् भवति / तच्चेत् सादृश्य क्रियाविषयं भवति / श्वान इव युध्यन्ते श्ववद् युध्यन्ते, देवमिव देववत् पश्यति मुनिम् / तत्र / 7 / 1 / 53 / सप्तम्यन्तादिवाथै वद् भवति / वाराणस्यामिव वाराणसीवत् प्रयागे प्रासादः / तस्य / 7 / 154 / तस्येति षष्ठ्यन्तादिवाथै वद् भवति / रत्नलालस्येव रत्नलालवत् भृगुलालस्य स्वभावः / . भावे त्वतल / 7 / 1 / 55 / षष्ठयन्ताद् भावेऽर्थे त्वतलौ भवतः / शब्दस्याथे प्रवृत्तिहेतुगुणो भावः / स च जातिगुणक्रियाद्रव्यस्वरूपादिरूपः / गोत्वम्, शुक्लत्वम्, कारकत्वम्, दण्डित्वम्, खत्वम् / गोता, शुक्लता, कारकता, दण्डिता, खता।.. .. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (208) पृथ्वादेरिमन् वा। 7 / 1 / 58 / पृथु इत्येवमादिभ्यः षष्ठयन्तेभ्यो भावेऽर्थे इमन् वा भवति / पृथोर्भावः पृथु+इमन् इति स्थिते. पृथुमृदुभृशकृशदृढपरिदृढस्य ऋतो रः। 7 / 4 / 39 / .... एषामृकारस्येम्नि ण्यादौ च परे रो भवति / प्रथु+इमन् इति स्थिते.. व्यन्तस्वरादेः / 7 / 4 / 43 / ... तृप्रत्ययस्यान्त्यस्वरादेश्वांशस्येम्नि णौ इष्ठे ईयसौ च परे लग भवति / उकारलोपे प्रथिमा, पृथुत्वम्, पृथुता, पार्थवम् / एवं म्रदिमा, मृदुत्वम् , मृदुता, मार्दवम् / बहुलस्य भावः बहुल+इमन् इति स्थितेप्रियस्थिरस्फिरोरुगुरुबहुलतृप्रदीर्घवृद्धवृन्दारकस्येमनि च प्रास्थास्फावरगरवंत्रपद्राघवर्षवृन्दम् / 7 / 4 / 38 // प्रियादीनां यथासम्भवमिमनि ण्यादौ च यथासंख्यं प्राइत्याद्यादेशा भवन्ति / वंहिमा / एवं प्रियस्य भावः प्रेमा, स्थिरस्य भावः स्थेमा, वरिमा, गरिमा, त्रपिमा, द्राघिमा, वर्षि, वृन्दिमा / बहोभवः ,बहु+इमन् इति स्थिते भूलक्चेवर्णस्य / 7 / 4 / 41 / / होरीयसौ इमनि च परे भूगदेशो भवति / अनयोरिवर्णा Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (209) लुक् च / भूमा / पक्षे सर्वत्र त्वतलौ / 'वर्णदृढादिभ्यष्टयण वा' शुक्लस्य भावः शौक्ल्यम् , शुक्लिमा, शुक्लत्वम् , शुक्लता। शितेर्भावः शैत्यम् , शितिमा, शितित्वम् , शितिता, शैतम् / दृढस्य भावः दायम्, द्रढिमा, दृढत्वम् , दृढता / पतिराजान्तगुणाङ्गराजादिभ्यः कर्मणि च / 7 / 1 / 60 / पत्यन्ताद् राजान्ताद् गुणोऽङ्ग प्रवृत्तौ हेतुर्येषां तेभ्यो राजादेश्च भावे क्रियायां च ट्यण भवति / अधिपतेर्भावः कर्म वा आधिपत्यम् , अधिपतित्वम् , अधिपतिता / एवमाधिराज्यम्, अधिराजत्वम् , अधिराजता / मौढ्यम् , मूढत्वम्, मूढता / राज्यम् , राजत्वम् , राजता / काव्यम्, कवित्वम् , कविता। अर्हतस्तो न्त् च। 7 / 1 / 61 / अतस्तस्य भावे कर्मणि च ट्यण भवति / तद्योगे तस्य न्तादेशः / अर्हतो भाव आर्हन्त्यम्, अर्हत्त्वम्, अर्हत्ता / ' सहायशब्दात्तु वा ट्यण् बोध्यः ' साहाय्यम्, साहायकम् , सहायत्वम्, सहायता। युवादेरण् / 7 / 1 / 67 / एभ्यो भावे कर्मणि चाण् भवति / यूनो भावः यौवनम्, युवत्वम् , युवता। ववर्णाल्लघ्वादेः।७।१।६९ / समीपे येषाम् इउऋवर्णानां तदन्तेभ्यस्तस्य मावे कर्मणि 14 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (210) चाण भवति / शुचेर्भावः कर्म वा शौचम्, शुचित्वम् , शुचिता / पटो(वः कर्म वा पाटवम्, पटुत्वम्, पटुतां / बन्धोर्भावो वा कर्म बान्धः म् , बन्धुत्वम् , बन्धुता / पितुर्भावः कर्म वा पैत्रम्, पितृस्वम् , पिता। योपान्त्याद् गुरूपोत्तमादसुप्रख्यादकम् / 7 / 1 / 72 / ___ यादीनामन्त्यमुत्तमम् , तत्समीपमुपोत्तमम् , तद् गुरु यस्य तस्माद् युपान्त्यात् सुप्रख्यवर्नात् तस्य भावे कर्मणि चाकञ् भवति / रमणीयस्य भावः कर्म वा रामणीयकम् , रमणीयत्वम्, रमणीयता / एवम् आचार्यकम् , आचार्यत्वम् , आचार्यता। . शाकटशाकिनौ क्षेत्रे / 7 / 1 / 78 / षष्ठयन्तात् क्षेत्रेऽर्थे एतौ भवतः / इक्षूणां क्षेत्रम् इक्षुशाकटम्, इक्षुशाकिनम् , शाकस्य क्षेत्रं शाकशाकटम् , शाकशाकिनम् / 'धान्यवाचिभ्यः षष्ठयन्तेभ्यस्तु क्षेत्रे ईनञ् वाच्यः' मुद्गानां क्षेत्रं मौद्गीनम् , एवं कौलत्थीनम् , कौद्रवीणम् / 'व्रीहिशालिभ्यामेयण ' व्रीहीणां क्षेत्रं त्रैहेयम्, शालीनां क्षेत्रं शालेयम् / यवयवकषष्टिकाद् यः।७।१।८१। एभ्यस्तस्य क्षेत्रेऽर्थे यो भवति / यवानां क्षेत्रं यव्यम्, एवं यवक्यम् , षष्टिक्यम् / वाऽणुमाषात् / अणूनां क्षेत्रमाणवीनम्, अणव्यम्, माषाणां क्षेत्रं माष्यम्, माषीणम्, यो वा भवनात् पक्षे ईनन् / Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (211) अलाब्बाश्च कटो रजसि / 7 / 1 / 84 / अलावूशब्दात् चकारादुमाभङ्गातिलेभ्यश्च तस्य. रजस्यर्थे कटो भवति / अलावूनां रजः अलाबूकटम् , एवमुमाकटम् , भङ्माकटम् , तिलकटम् / .. पील्यादेः कुणः पाके / 7 / 1 / 87 / षष्ठयन्तेभ्यः पीत्वादिभ्यः पाकेऽर्थे कुणो भवति / पीलूनां पाकः पीलुकुणः, एवं शमीकुणः, कर्कन्धूकुणः / कर्णादेर्मूले जाहः / 7 / 1 / 88 / . षष्ठयन्तेभ्यः कर्णादिभ्यस्तस्य मूलेऽर्थे आहःप्रत्ययो भवति / कणयोर्मूलं कर्णनाहम् , एवमक्षिनाहम् / 'कुलशब्दाज्जरपेऽर्थे ईनन् वाच्यः' कुलस्य जल्पः कोलीनः / 'पक्षशब्दात् मूलेऽर्थे तिर्वाच्यः' पक्षस्य मूलं पक्षतिः / / हिमादेलुः सहे / 7 / 1 / 90 / .....अतस्तस्य सहेऽर्थे एलुर्भवति / हिमं सहमानो हिमेलुः / शीतोष्णतृषादालुरसहे / 7 / 1 / 92 / / : एभ्यस्तस्यासहमानेऽर्थे आलुभवति / शीतस्यासहः शीतालुः, एवमुष्णालुः, तृषालुः / . वेविस्तृते शालशङ्कटौ / 7 / 1 / 123 / अतो. विस्तृतेऽर्थे शालशङ्कटौ भवतः / विस्तृतः विशाला, विशा.टः / कटोऽपि विकटः / Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 212) संप्रोनेः संकीर्णप्रकाशाधिकसमीपे / 7 / 1 / 125 / ___ समः संकीर्णेऽर्थे, प्रात् प्रकाशेऽर्थे, उतोऽधिके, ने: समीपे च कटो भवति / संकटः संकीर्णः, प्रकटः प्रकाशः, उत्कटोऽधिकः, निकटः समीप इत्यर्थः / ___ अवात् कुटारश्चावनते / 7 / 1 / 126 / अवशब्दादवनतेऽर्थे कुटारकटौ भवतः। अवनत इति अवकुटारः, अवकटः। नासानतितद्वतोष्टीटनाटभ्रटम् / 7 / 1 / 127 / अवाद् नासानतौ तद्वति चार्थे टीटनाटभ्रटा भवन्ति / नासाया नमनम्-अवटीटम् , अवनाटम् , अवभ्रटम् ; तद्योगाद नासिका, पुरुषोऽपि तथोच्यते-अवटीटा, अवनाटा, अवभ्रटा नासिका / अबटीटः, अवनाटः, अवभ्रटः पुरुषः / ' नेरिनपिटकाश्चिकचिचिकश्चास्य / 7 / 1 / 128 / निशब्दाद् नासानतौ तद्वति चार्थे इन पिट क इत्येते प्रत्यया भवन्ति / तयोगे च नेर्यथासंख्यं चिक चि चिक इत्येते आदेशा भवन्ति / चिकिनम् , चिपिटम् , चिकं नासानमनम् / चिकिना चिपिटा, चिक्का नासिका / चिकिनः, चिपिटः, चिक्कः पुरुषः / 'निशब्दाद् नीरन्धेऽर्थे। नासानतितद्वतोश्वार्थे विडविरीसौ प्रत्ययो वाच्यौ' निविडाः, निविरीसा: केशाः / निविडम् , निविरीसम् नासिकानमनम् , निविडा निविरीसा नासिका, निविडः निविरीसो नरः अवनतनासिकावानित्यर्थः / Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (213) क्लिन्नालश्चक्षुषि चिपिल्चुल चास्य / 7 / 1 / 1301 क्लिन्नशब्दाच्चक्षुष्यर्थे लो भवति / तत्सन्नियोगे च क्लिन्नशब्दस्य चिल् पिल चुल् इत्येते आदेशा भवन्ति / चिल्लम् , पिल्लम्, चुल्लं चक्षुः। . अवेः संघातविस्तारे कटपटम् / 7 / 1 / 132 / ___अतः षष्ठयन्तात् संघाते विस्तारे चार्थे यथासंख्यं कटपटौ मातः / अवीनां संघातोऽविकटः / अवीनां विस्तारोऽविपटः / 'उपत्यकाधित्यके निपात्यौ' उपत्यका पर्वतासन्ना भूः, अधित्यका पर्वताधिरूढा भूः / ___पशुभ्यः स्थाने गोष्ठः / 7 / 1 / 133 / पशुवाचिभ्यः षष्ठ्यन्तेभ्यः स्थानेऽर्थे गोष्ठो भवति / अश्वानां स्थानमश्वगोष्ठम् / महिषीगोष्ठम् / . तिलादिभ्यः स्नहे तैलः / 7 / 1 / 136 / : षष्ठ्यन्तेभ्यस्तिलादिभ्यः स्नेहेऽर्थे तैलो भवति / तिलानां स्नेहः तिलतैलम्, सर्षपतैलम्, एरण्डतैलम् / 'कणि घटते इत्यय कर्मठः / / - तदस्य संजातं तारकादिभ्य इतः / 7 / 1 / 138 / प्रथमान्तेभ्यस्तारकादिभ्यः षष्ठ्यर्थे इतः प्रत्ययो भवति / तारका- संजाता अस्येति तारकितं नमः / पुष्पाणि संजातान्यस्य पुष्पितस्तरुः / Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (214) प्रमाणान् मात्रट् / 7 / 1 / 140 / प्रथमान्तात् प्रमाणवाचिनः पष्ठ्यर्थे मात्रड् भवति / जानुनी प्रमाणमायामोऽस्य जानुमात्रमुदकम् / एवं रज्जुमात्री, तन्मात्री भूमिः / 'हस्तिपुरुषाभ्यामणपि वाच्यः' हस्ती प्रमाणमस्य हस्तिमात्रम्, हास्तिनम् , हस्तिदनम्, हस्तिद्वयाम् / पुरुषमात्रम, पौरुषम्, पुरुषदघ्नम्, पुरुषद्वंयसम् / वोज़ दनवयसट् / 7 / 1 / 142 / ऊर्ध्वं यत् प्रमाणं तदर्थात् प्रथमान्ताद् षष्ठ्यर्थे दनवयसटौ वा भवतः, पक्षे मात्रट / उरुः प्रमाणमस्य उरुदनम्, उरुद्वयसम्, उरुपात्रं जलम् / उर्ध्वमिति 'किम्-रज्जुः प्रमाणमस्या रन्जुमात्री भूमिः / मानादसंशये लुप् / 7 / 1 / 143 / यःप्रसिद्धो मानवाची शब्दो हस्तवितस्त्यादिन तु रन्ज्वादिः, स लक्षणया प्रमाणे वर्तते; तस्मात् परस्य मात्रडादेः प्रत्ययस्यासंशये गम्ये लुब् भवति / हस्तः प्रमाणमस्य हस्तः, एवं वितस्तिः / मानादिति किम्-ऊरुमात्रम् / असंशय इति किम्-हस्तमात्र स्यात् / 'मानार्थान्ताद् द्विगोस्तु संशयेऽसंशये च लुब् वाच्यः / विप्रस्थः, द्विप्रस्थः स्यात् / मात्रट् / 7 / 1 / 146 / Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 215) प्रथमान्ताद मानवाचिनः षष्ठ्यर्थे मात्रट भवति संशयेऽर्थे / प्रस्थमात्रं स्यात् / इदंकिमोऽतुरियकिय चास्य / 7 / 1 / 148 / मानार्थे वर्तमानाभ्यामाभ्यां षष्ठ्यर्थे मेयेऽतुर्भवति / तद्योगे चानयोर्यथासंख्यमियकियौ / इदं मानमस्य इयान्, किं मानमस्य कियान् पटः / यत्तदेतदो डावादिः / 7 / 1 / 149 / मानवृत्तिभ्यः प्रथमान्तेभ्य एभ्यः षष्ठयर्थेऽतुप्रत्ययो भवति, स च डावादिः / यत् तद् एतत् प्रमाणमस्य स यावान् , तावान् , एतावान् / यत्तत्किमः संख्याया डतिर्वा / 7 / 1 / 150 / संख्यारूपमानार्थवृत्तिभ्यः प्रथमान्तेभ्यो यत् तत् किम् इत्येतेभ्यः षष्ठ्यर्थे उतिर्वा भवति / या सा का संख्या मानमेषां यति तति का , पक्षे यावन्तः तावन्तः कियन्तः / . अवयवात् तयट् / 7 / 1 / 151 / अवयववाचिनः संख्यार्थात् स्यन्तात् षष्ठयर्थे त ड भाति / चत्वारोऽवयवा अस्याः सा चतुष्टयी, एवं पञ्चतयी / ' द्वित्रिम्यामयड् वा ' द्वाववयवावस्य तद् द्वयं, द्वितयम् / त्रयोऽवयवाः अस्य त्रयं, त्रितयम् / . संख्यापूरणे डट् / 7 / 1 / 155 / Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 216) _____संख्यावाचिनः संख्या पूर्यते येनेत्यर्थे डट् प्रत्ययो भवति / एकादशानां पूरणः एकादशः, एवं द्वादशः / द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी / विंशत्यादेर्वा तमट् / 7 / 1 / 156 / - संख्यावाचिनो विंशत्यादेः संख्यापूरणे तमड् भवति वा / विशतेः पूरणः विंशः, विंशतितमः / त्रिंशत्तमः, त्रिंशः। एकविंशतितमः, एकविंशः / षष्टयादेरसङ्ख्यादेः / 7 / 1 / 158 / नास्ति संख्यावाची आदिरवयवो यस्य तस्मात् षष्टयादेः संख्यापूरणे तमड् भवति / षष्टेः पूरणः षष्टितमः / सप्ततेः पूरणः सप्ततितमः / असंख्यादेरिति किम्-एकषष्टः / नो मट् / 7 / 1 / 159 / असंख्यादेर्नान्तसंख्यायाः संख्यापूरणे मड् भवति / पञ्चानां पूरकः पञ्चमः / एवं सप्तमः, अष्टमः, नवमः, दशमः / असंख्यादेरित्येव-द्वादशः। : पित् तिथद् बहुगणपूगसङ्घात् / 7 / 1 / 160 / - बहुगणपूगसंघेभ्यः पूरणेऽर्थे तिथट् प्रत्ययो भवति स च पित् / बढूनां पूरकः बहुतिथः, एवं गणतिथः, प्रगतिथः, सङ्घतिथः। अतोरिथट् / 7 / 1 / 161 / Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (217) अत्वन्तात् संख्यापूरणे इथट् प्रत्ययो भवति, स च पित्। इयतां पूरणः इयतियः, तावतिथी, यावतिथः / षट्कतिकतिपयात् थट् / 7 / 1 / 162 / एभ्यः संख्यापूरणे थड भवति / षण्णां करणी षष्ठी, एवं कतिथः, कतिपयथः / - चतुरः / 7 / 1 / 163 / __अतः संख्यापूरणे थड् भवति / चतुर्णा पूरकः चतुर्थः / चतुर्थी तिथिः / येयौ चलुक् च / 7 / 1 / 164 / चतुरः संख्यापूरणे येयो भवतः, तद्योगे चस्य लुक् / चतुर्णा 'पूरणः तुर्यः, तुरीयः। वस्तीयः / 7 / 1 / 165 / द्विशब्दात् संख्यापूरणे तीयो भवति / द्वयोः पूरकः द्वितीयः। स्तु च / 7 / 1 / 166 / त्रिशब्दात् पूरणेऽर्थे तीयो भवति, तद्योगे च त्रेस्तृरादेशः / त्रयाणां पूरकः तृतीयः / पूर्वमनेन सादेश्चन् / 7 / 1 / 167 / पूर्वमित्यमन्तात् केवलात् सपूर्वाचानेनेति टार्थे कर्तरीन् भवति / कृतः पूर्वमनेनेति कृतपूर्वी कटम् , भुक्तं पूर्वमननति मुक्तपूर्षी धनम् / पीत पूर्वी पयः / Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (218) . . इन्द्रियम् / 7 / 1 / 174 / इन्द्रशब्दादियो निपात्यते / इन्द्रस्य लिङ्गमिन्द्रियम् / तेन वित्ते चञ्चुचणौ / 7 / 1 / 175 / तृतीयान्ताद् वित्तेऽर्थे चञ्चुचणौ भवतः / विद्यया वित्तः विद्याचन्चुः, विद्याचणः। . पूरणाद् ग्रन्थस्य ग्राहक को लुक् चास्य / 7 / 1 / 176 / पूरणप्रत्ययान्तात् तृतीयान्ताद् ग्रन्यस्य ग्राहकेऽर्थे को भवति। तद्योगे च पूरणप्रत्ययस्य लुक् / द्वितीयेन रूपेण ग्रन्थस्य ग्राहकः द्विकः शिष्यः। सोऽस्य मुख्यः / 7 / 1 / 190 / प्रथमान्तात् षष्ठ्यर्थे को भवति / प्रथमान्तं चेद् मुख्यं. भवेत् / रत्नलालो मुख्योऽस्य स रस्नलालकः तीर्थप्रवासः / उन्मनस्यर्थे उत्कः, उत्सुकः / साक्षाद् द्रष्टा साक्षी। . तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुः / 7 / 2 / 1 / तदिति प्रथमान्तादस्येति षष्ठयथऽस्मिन्निति सप्तम्यर्थे वा मतुः प्रत्ययो भवति / यत् प्रथमान्तं तच्चेदस्तीति / गावोऽस्य सन्तीति गोमान् जिनदत्तः, वृक्षा अस्मिन् सन्तीति वृक्षवान्, पर्वतः, एवं धनवान् , प्लक्षवान् / अस्तीति वतमानकालोपादानेन Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (219) भूतभविष्यतोर्न भवति / गावोऽस्याऽऽरन् भविष्यन्ति वेति वाक्या मेव / इतिकरणाद् विषयनियमः भूमनिन्दाप्रशंसासु नित्ययोगेऽतिशायिनि / संसर्गेऽस्तिविवक्षायां भवन्ति मतुबादयः // 1 // भूम्नि गोमान् , निन्दायां कुष्ठी, प्रशंसायां रूपवती कन्या, नित्ययोगे क्षीरिणो वृक्षाः, अतिशायिनि उदरिणी स्त्री, संसर्गे दण्डी / भूमादिविषयनियमोऽपि प्रायिकः तेन व्याघ्रवान् पर्वत इत्यादौ सत्तामात्रेऽपि / मत्वर्थान्ताद् मत्वर्थीयप्रत्ययो न भवति तथा चाहुः.. शैषिकाच्छैषिको नेष्टः स्वरूपः प्रत्ययः क्वचित् / / समानवृत्तौ मत्वर्थाद मत्वर्थीयोऽपि नेप्यते // 1 // विरूपप्रत्ययस्तु भवत्येव दण्डिमती शाला / विरूपप्रत्ययोऽपि समानवृत्तौ न भवति-दण्डोऽस्त्यस्य दण्डिकः स सोऽस्ति अस्येति इन्मतू न स्याताम् / असन्जाभूतात् कर्मधारयात् मत्वर्थीयो न भवति / वीराश्च ते पुरुषाश्च वीरपुरुषास्ते सन्ति यस्मिन् ग्रामे / 'गुणे गुणिनि चार्थे ये शब्दा वर्तन्ते तेभ्योऽपि मत्वर्थीयो न भवति ' शुक्लो वर्णोऽस्यास्तीति प्रत्ययमन्तरेण तेषाममिघाने सामर्थ्यदर्शनाद् , गुणमात्रवृत्तिभ्यस्तु भवत्येव रूपवती सीता। मावर्णान्तोपान्तापञ्चमवर्गान् मतोर्मो वः / 2 / 1 / 94 / मश्चावर्णश्चेति मावो तो प्रत्येकमन्तोपान्तौ यस्य तस्मात् पञ्चमवर्जवर्गान्ताच्च नाम्नः परस्य मतोर्मों वो भवति / किमस्या Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (220) स्तीति किंवान् / मकारोपान्त्याद्-शमीवान् / अवर्णान्ताल-वृक्षवान् / अवर्णोषान्त्यातु-अहर्वान् / अपञ्चमवर्गात-मरुत्वान् / __ न स्तं मत्वर्थे / 1 / 1 / 23 / / .. सान्तं तान्तं च मत्वर्थे परे पदं न भवति / मरुत्वान्, यशस्वी। नाम्नि / 2 / 1 / 95 / / / .. सन्ज्ञायां मतोर्मकारस्य वो भवति / अहीवती, ऋषीवती नाम नद्यौ / 'चर्मण्वत्यादयः सञ्ज्ञायं निपात्यन्ते' चर्मण्वती, अष्ठीवान् , चक्रीवान्, कक्षीवान् , रुमण्वान् / 'उदकशब्दस्य मत्वन्तस्याब्धौ वाच्ये सज्ञायां च उदन्वान् निपात्यः' उदन्वान् घटः, समुद्रः, मेघश्च / उदन्वान् ऋषिः, आश्रमश्च / 'राजन्वान् सुराज्ञि' राजन्वत्यः प्रजाः। - नावादेरिकः / 7 / 2 / 3 / नौरित्यादिभ्यो मत्वर्थे इको भवति / नाविकः पक्षे आ यविधेः मतोरप्यधिकाराद् नौमान् / ___ शिखादिभ्य इन् / 7 / 2 / 4 / शिखादिभ्यो मत्वर्थे इन् भवति / शिखी, शिखावान्। माली, मालावान्। . ब्रीह्यादिभ्यस्तौ / 7 / 2 / 5 / . ... ब्रीह्यादिभ्यो मस्वर्षे इन्कौ भवतः / ब्रीहिकः, ब्रीही, नीहिमान् / Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (221) अतोऽनेकस्वरात् / 7 / 2 / 6 / अकारान्तादनेकस्वराद् मत्वर्थे इनिको भवतः / दण्डिकः, दण्डी, दण्डवान्। एवं छत्री, छत्रिकः, छत्रवान् / व्रीह्यर्थतुन्दादेरिलश्च / 7 / 2 / 9 / व्रीहिवाचिभ्यस्तुन्दादिभ्यश्च मत्वर्थे इल इकेनौ च भवतः / शालिलः, शालिकः, शाली, शालिमान् / तुन्दिलः, तुन्दिकः, तुन्दी, तुन्दवान् / 'विवृद्धोपाधिकात् स्वाङ्गात् मत्वर्थे पूर्वोक्ताः प्रत्यया वाच्याः' महान्तौ कणा स्तोऽस्य कर्णिलः, कर्णिकः, कर्णी, कर्णवान् / एवमोष्ठिलः, ओष्ठिकः, ओष्ठी, ओष्ठवान् / 'वृन्दशब्दादारको वाच्यः' वृन्दारकः, वृन्दवान् / फलबर्हाच्चेनः / 7 / 2 / 13 / . . . आभ्यां शृङ्गाच्च मत्वर्थे इनो भवति / फलानि सन्त्यस्य फलिनः, फलवान् / बहिणः, ब्रर्हवान् / शृङ्गिणः, शृङ्गवान्, शृङ्गात्तु आरकोऽपि शृङ्गारकः / मरुत्पर्वणस्तः / 7 / 2 / 15 / मरुत्पर्वभ्यां मत्वर्थे तः प्रत्ययो भवति / मरुत्तः, मरुत्वान् / पर्वतः, पर्ववान् / वलिवटितुण्डेर्भः / 7 / 2 / 16 / - मत्वर्थे एभ्यो भो भवति / वलिमः, वटिमः, तुण्डिभः / वलिमान, वटिमान् , तुण्डिमान् / Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 222) ऊर्णाऽहंशुभमो युस् / 7 / 2 / 17 / एभ्यो मत्वर्थे युस् भवति / ऊर्णाऽस्यास्तीति ऊर्णायुः, एवमहंयुः, शुभंयुः। कंशंभ्यां युस्तियस्तुतवभम् / 7 / 2 / 18 / . आभ्यां मत्वर्थे युस्.ति यस् तु त व भ इत्येते प्रत्यया भवन्ति / कंयुः, कंतिः, केयः, कंतुः, कंव:, कंभः / शंयुः, शंतिः, शंयः, शन्तुः, शन्तः, शंवः, शंभः / / प्राण्यङ्गादातो लः / 7 / 2 / 20 / आकारान्तात् प्राण्यङ्गवाचिनो मत्वर्थे लो भवति / चूडाऽस्त्यस्येति चूंडालः, चूडावान् / शिखालः, शिखावान् / बलवातदन्तललाटादूलः / 7 / 3 / 19 / एभ्यो मत्वर्थे उलो भवति / बलमस्यास्तीति बलूलः, बलवान् , वातूलः, वातवान् / दन्तूलः, दन्तवान् / ललाटूलः, ललाटवान् / सिध्मादिक्षुद्रजन्तुरुग्भ्यः / 7 / 2 / 21 / सिध्मादिगणात् क्षुद्रनन्तुवाचिभ्यो रुगच्च मत्वर्थे लो भवति / सिध्मानि सन्त्यस्य सिध्मलः, सिध्ममान् / क्षुद्रजन्तुःयकालः, यूकावान् / रुक्-मूर्छाल, मूर्छावान् / प्रज्ञापोदकफेनाल् लेलौ / 7 / 2 / 22 / Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 223) एभ्यो मत्वर्थे लइलौ भवतः / प्रज्ञालः, प्रज्ञिलः, प्रज्ञावान् / पर्णलः: पर्णिलः, पर्णवान्। उदकलः, उदकिलः, उदकवान्। फैनलः, फेनिलः, फेनवान् / वाच आलाटौ / 7 / 2 / 24 / क्षेपे गम्ये मत्वर्थे वाक्शब्दादेतौ भवतः / वाचालः, 'वाचाटः। ग्मिन् / 7 / 2 / 25 / वाक्छब्दाद् मत्वर्थे ग्मिन् भवति / वाग्मी, वाग्वान् / मध्वादिभ्यो र / 7 / 2 / 26 / एभ्यो मत्वर्थे रः प्रत्ययो भवति / मधुरः स्वरः / महत् खं कण्ठोऽस्त्यस्य खरः / मुखरः। कृष्यादिभ्यो बलन् / 7 / 2 / 27 / एभ्यो मत्वर्थे बलच् भवति / कृषीबलः कुटुम्बी / आसुती.. बलः / कल्पपालः। लोमपिच्छादेः शेलम् / 7 / 2 / 28 / लोमादिभ्यः पिच्छादिभ्यश्च यथासंख्यं मत्वर्थे श इलश्व भवति / लोमानि सन्त्यस्येति लोमशः, लोमवान् / एवं गिरिशः, गिरिमान् / पिच्छिलः, पिच्छवान् / उरसिलः, उरस्वान् / / मोऽङ्गादेः / 7 / 2 / 29 / Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (224 ) -- अङ्ग इत्यादिभ्यो मत्वर्थे नो भवति / अङ्गना / पामनः / वामनः / प्रज्ञाश्रद्धा_वत्तेर्णः / 7 / 2 / 33 / एभ्यो मत्वर्थे णो भवति / प्रज्ञाऽस्त्यस्य प्राज्ञः, प्रज्ञावान् / श्राद्धः, श्रद्धावान् / आर्चः, अर्चावान् / वार्तः, वृत्तिमान् / 'उन्नतोपाधिकाद् दन्ताद् डुरो,वाच्यः' उन्नता दन्ताः सन्त्यस्य दन्तुरः। मेधारथाद् नवरः / 7 / 2 / 41 / आभ्यां मत्वर्थे इरो वा भवति / मेधिरः, मेधावान् , मेधावी / रथिरः, रथिकः, रथी, रथवान्। 'कृपाहृदयाभ्यामालुर्वाच्यः कृपालुः, कृपावान् / हृदयालुः, हृदयवान् , हृदयिकः, हृदयी / ' केशाद् मत्वथ वो वा वाच्यः / केशाः सन्त्यस्य केशवः, केशी, केशवान् , केशिकः / अस्तपोमायामेधास्रजो विन् / 7 / 2 : 47 / असन्तेभ्यः तपसादेश्च मत्वर्थे विन् भवति / तेजस्वी, यशस्वी, तपस्वी, मायावी, मेधावी, स्रग्वी, तेजस्वान् इत्यादिः / आमयाद् दीर्घश्च / 7 / 2 / 48 / अतो मत्वर्थे विन् भवति, तद्योगे दीर्घश्च / आमयावी, आमयवान् / स्वाद् मित्रीशे / 7 / 2 / 49 / Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (225) शेऽर्थे मत्वर्थेऽतो.मिन् भवति, प्रकृतेश्च दीर्घः। स्वमस्त्यस्येति स्वामी, अन्यस्तु स्ववान् / 'गोः' गोमी, गोमान् / गुणादिभ्यो यः / 7 / 2 / 53 / गुणादिशब्देभ्यो मत्वर्थे यो भवति / गुणाः सन्त्यस्य गुण्यः, गुणवान् / हिम्यः, हिमवान् पर्वतः / इनः पक्षे मतुर्न भवति / 'पूर्णमासोऽण् पूर्णमासोऽस्यामस्तीति पौर्णपासी / नात्र पक्षे मतुः / 'मालाशब्दात् क्षेपे इन् वाच्यः' माली, क्षेपाभावे मालावान् / __वर्णाद् ब्रह्मचारिणि / 7 / 2 / 69 / / वर्गशब्दाद् मत्वर्थे इन् भवति, ब्रह्मचारिणि अभिधेये / वर्णो ब्रह्मचर्यमस्यास्तीति वर्णी ब्रह्मचारी। इति मत्वर्थाधिकारः। प्रकारे जातीयर। 7 / 2 / 75 / प्रथमान्तात् षष्ठ्यर्थे जातीयर् भवति, यत् प्रथमान्तं तच्चेत् प्रकारो भवेत् / पटुः प्रकारोऽस्य पटुजातीयः। एवं मृदुजातीयः / नानाजातीयः / कोऽण्वादेः / 7 / 2 / 76 / एम्यः प्रथमान्तेभ्यः षष्ठ्यर्थे को भवति, प्रथमान्तं चेत् प्रकारः / अणुः प्रकारोऽस्य अणुकः, स्थूलकः / भूतपूर्व चरट् / 7 / 3 / 78 / भूतपूर्वार्थे वर्तमानात् स्वार्थे चाट् भवति, स च पित् / पूर्व 15 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (226) भूतो भूतपूर्वः, भूतपूर्व आढ्य आढ्यचरः / पकारः पुंवद्भावार्थः भूतपूर्वा आढ्या आढ्यचरी / षष्ठया रूप्यचरट् / 7 / 2 / 80 / षष्ठयन्ताद् भूतपूर्वेऽर्थे एतौ भवतः। जिनदत्तस्य भूतपूर्वः जिनदत्तरूप्यः, जिनदत्तचरः। व्याश्रये तसुः / 7 / 2 / 81 / षष्ठ्यन्ताद् व्याश्रये गम्ये तसुर्भवति / नानापक्षाश्रयो व्याश्रयः। विद्वांसो धर्मसूरितोऽभवन् देवद्रव्यचर्चायां-धर्मसरिपक्षावलम्बिनो विद्वांस इत्यर्थः / रोगात् प्रतीकारे / 7 / 2 / 82 / षष्ठयन्ताद्रोगार्थात् प्रतीकारेऽर्थे तसुः प्रत्ययो भवति / प्रवाहिकाया अपनयनं प्रवाहिकातः कुरु / एवं प्रच्छर्दिकातः कुरु- रोगस्य चिकित्सां कुर्वित्यर्थः / पयभेः सर्वोभये / 7 / 2 / 83 / सर्वोभयार्थे यथासंख्यमाभ्यां तसुर्भवति / परितः सर्वत इत्यर्थः / अभितः उभयत इत्यर्थः / * आधादिभ्यः / 7 / 2 / 84 / संभवद्विभक्त्यन्तेभ्य आधादिभ्यस्तसुर्भवति / आदौ आदेः आदये आदिना वेति आदितः / एवं मध्यतः, अन्ततः, अग्रतः, पार्धतः, पृष्ठतः, मुखतः। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 227) किमद्वयादिसर्वाद्यषैपुल्यबहोः पित् तस् / 7 / 2 / 89 / ... किंशब्दाद द्वयादिवर्जितेभ्यः सर्वादिभ्योऽवैपुल्यार्थाद् बहोश्च पन्चम्यन्तात् तस् , स च पिद् भवति / कस्मादिति कुतः / सर्वस्मात् सर्वतः / विश्वतः / बहुभ्यो बहुतः / इतोऽत:कुतः / 7 / 2 / 90 / ____एते तस्प्रत्ययान्ता निपातनीयाः / अस्मादिति इदंशब्दस्य * आदेशे इतः / एतस्मादिति एतच्छब्दस्य अकारादेशे अतः / कस्मादिति किंशब्दस्य 'कु' आदेशे कुतः / . भवत्वायुष्मद्दीर्घायुर्देवानांप्रियैकार्थाद् / 7 / 2191 / भवतु आयुष्मद् दीर्घायुस् देवानांप्रिय इत्येतैः सह समानाधिकरणेम्यः किमद्वयादिसर्वाद्यवैपुल्यबहुभ्यः सर्वस्याद्यन्तेभ्यः पित् तस् वा भवति / स भवान् , ततो भवान्। वे भवन्तः, ततो भवतः / स आयुप्मान्, तत आयुष्मान् / तमायुष्मन्तम्, तत आयुष्मन्तम् / तेनायुष्मता, तत आयुष्मता / तस्मै आयुष्मते, तत आयुष्मते / तस्मादायुष्मतः, तत आयुष्मतः / तस्यायुष्मतः, तत आयुष्मतः / तस्मिन्नायुप्मति, तत आयुष्मति / स दीर्घायुः, ततो दीर्घायुः / स देवानांप्रियः, ततो देवानां प्रिय इत्यादिः / एवमेभ्यस्त्रप्प्रत्ययोऽपि वा बोध्यः' स भवान् , तत्र मवान् / तं भवन्तम् , तत्र भवन्तम् / स आयुष्मान , तत्रायुष्मान् / स दीर्घायुः, तत्र दीर्घायुः / स देवानांप्रियः, तत्र देवानांप्रिय इत्यादिः / Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 228) क्वकुत्रात्रेह / 7 / 2 / 93 / क कुत्र अत्र इह इत्येते शब्दाः त्रचन्ता निपात्यन्ते / कस्मिनिति क, कुत्र / एतस्मिन्निति अत्र / अस्मिन्निति इह / सप्तम्याः / 7 / 2 / 94 / / ___सप्तम्यन्तेभ्यः कि द्वयादिसर्वाद्यवैपुल्यवहुभ्यः त्रब् भवति / कस्मिन्निति कुत्र / सर्वस्मिन्निति सर्वत्र / तस्मिन्निति तत्र / बहुषु इति बहुत्र / किंयत्तत्सर्वैकान्यात् काले दा / 7 / 2 / 95 / एभ्यः सप्तम्यन्तेभ्यः कालेऽभिधेये दाप्रययो भाति / करिमन् काले कदा, एवं यदा, तदा, सर्वदा, एकदा, अन्यदा। सदाऽधुनेदानींतदानीमेतहि / 7 / 2 / 96 / काले वाच्ये एते नित्यन्ते / सर्वस्मिन् काले सदा। अस्मिन् कालेऽधुना, इदानीम् / तस्मिन् काले तदानीम् / एतस्मिन् काले एतहि / सद्योऽद्यपरद्यव्यह्नि / 7 / 2 / 97 / एते काले निपात्यन्ते / समानेऽह्नि सद्यः / अस्मिन्नह्निः अद्य / परस्मिन्नहि परेद्यति / पूर्वापराघरोत्तरान्यान्यतरेतरादेबुस् / 7 / 2 98 / एभ्यः सप्तम्भन्तेभ्योऽहि कालेऽर्थे एद्युम् भवति / पूर्वस्मि-. Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (229) ननि पूर्वेयुः, एवमपरेयुः, अधरेद्युः, उत्तरेयुः, अन्येयुः, अन्यतरेघुः, इतरेयुः / ' उभयशव्दाद् धुसेद्युतौ वाच्यौ / उभयद्युः, उभ.. येयुः / 'वर्षेऽर्थे एषमः परुत् परारि एते त्रयो निपात्याः' / अनद्यतने हिः / 7 / 2 / 101 / / सप्तम्यन्तादनद्यतनकालार्थात् कि द्वादिसर्व द्योत्यवहोः हिः प्रत्ययो भवति, अनद्य.ने / व स्मिन् काले इति कर्हि, एवं , यर्हि, एतर्हि, तर्हि, अमुर्हि, बहुर्हि / . . .. प्रकारे था / 7 / 2 / 102 / / प्रकारार्थे वर्तमानात् संभवत्स्यायन्तात् किपद्वयादिसर्वाय- . वैपुल्यबहोर्था भवति / सर्वप्रकारेणेति सर्वथा, एवं यथा, तया, उभयथा, अन्यथा, अपरथा / 'कथमित्थम् ' केन प्रकारेण कथम, अनेन प्रकारेण इत्थम् / संख्याया धा / 7 / 2 / 104 / प्रकारे वर्तमानात संख्यावाचिनो धाप्रत्ययो भवति / एकेन प्रकारेण एकधा / कतिभिः प्रकारैः कतिधा / द्वधा, त्रेधा / 'एक-. शब्दाद् ध्यमञपि' ऐकध्यम् -एकेन प्रकारेणेत्यर्थः। .. विचाले च / 7 / 2 / 105 / एकस्यानेकीमावोऽनेकस्य चैकीमाको विचालः, तस्मिन् गम्यमाने संख्यावाचिनो धा वा भवति / एको राशिः द्वौ द्विधा Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (230) वा क्रियते अनेकमेकमेकधा वा करोति / 'एकादः ध्यममपि अनेकमेकमैकध्यं करोति / द्विषेर्धमत्रेधौ वा / 7 / 2 / 107 / प्रकारे वर्तमानाभ्यां द्वित्रिभ्यां विचाले च गम्ये एतौ वा भवतः। द्वैधम्, द्वेधा, द्विधा; त्रैधम् , त्रेधा, त्रिधा भुङ्क्ते / एक राशिं द्वौ करोति द्वैध, द्वेधा, द्विधा वा करोति / एवं त्रैध, त्रेधा,, त्रिधा। ... तद्वति धण् / 7 / 2 / 108 / प्रकारवति विचालवति चार्थे द्वित्रिभ्यां धण् भवति / द्वैधानि, त्रैधानि / वारे कृत्वस् / 7 / 2 / 109 / वारे वर्तमानात् संख्यार्थाद वारवति धात्वर्थे कृत्वस भवति / पौनःपुन्यं वारः / पञ्चवारं भुङ्क्ते पञ्चकृत्वो भुङ्क्ते / एवं षट्कृत्वः इत्यादि / द्वित्रिचतुरः सुच / 7 / 2 / 120 / वारेऽर्थे वर्तमानेभ्य एभ्यः सुच् भवति / द्विः, त्रिः, चतुमुंङ्क्ते। एकात् सकृच्चास्य / 7 / 2 / 111 / .... वारार्थादेकशब्दात् सुच् भवति, प्रकृतेश्च सव.दादेशः / एकत्रारमिति सकृद् भुङ्क्ते, करोति, गच्छति / Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. .. ... (231) ऊर्ध्वादिरिष्टातावुपश्चास्य / 7 / 2 / 114 / दिग्देशकालेषु वर्तमानादू शब्दात् प्रथमा-पञ्चमी-सप्तम्यन्ताद् रिरिष्टातौ प्रत्ययौ भवतः, ऊर्ध्वस्य चोपादेशः। ऊर्वा दिग्, ऊो देशः कालो वा रमणीयः, उपरि उपरिष्टाद रमणीयः। ऊर्ध्वाया दिशः, उर्ध्वाद् देशात् कालाद् वाऽऽगतः उपरि आगतः उपरिष्टाद् वा। ऊ यां दिशि, ऊर्श्वे देशे काले वा वसति उपरि परिष्टाद् वसति / पूर्वावराधरेभ्योऽसस्तातौ पुरवधश्वैषाम् / 7 / 2 / 115 / .. दिगदेशकालवृत्तिभ्यः प्रथमापञ्चमीसप्तम्यन्तेभ्य एभ्यः अस् अस्ताच्च भवति, यथासंख्यं चैषां पुर् अव् अध् चादेशाः / पूर्वा दिग् देशः कालो वेत्यादि पुरः, अवः, अधः, पुरस्ताद., अवस्ताद्, अधस्ताद रम्यमागतो वासो वा / परावरात् स्तात् / 7 / 2 / 116 / -: आभ्यां दिगादिवृत्तिभ्यां प्रथमाद्यन्ताभ्यां स्तात् प्राययो भवति / परस्ताद् रमणीयम् , परस्तादागतः, परस्ताद् बरूति / एवम् अवरस्तात् / - दक्षिणोत्तराचातस् / 7 / 2 / 127 / आभ्यां पूर्वोक्तार्थाभ्यां स्वार्थेऽतस् भवति / दक्षिणतः, उत्तरतः। .. अधरापराच्चात् / 7 / 2 / 118 / Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (232) आभ्यां पूर्वोक्ताभ्यां स्वार्थे आत् भवति, चकाराद् दक्षिणोत्तराभ्यां च / अपरस्य पश्चादेशः / अधरात्, पश्चात् , दक्षिणात्, उत्तरात् / आही दूरे / 7 / 2 / 120 / दूरदिग्देशार्थात् प्रथमासप्तम्यन्ताद् दक्षिणादा आहिश्च भवति / दक्षिणा, दक्षिणाहि रम्यं वासो वा / ' उत्तराद् वा वाच्यौ' उत्तरा, उत्तराहि पक्षे उत्तरतः उत्तराद् रम्यं वासो वा / - अदूरे एनः / 7 / 2 / 122 / . अवधेरदूरे वर्तमानाद् दिगाद्यर्थे वर्तमानाच्च प्रथमासप्तम्यन्ताद् दिक्शब्दाद् एनो भवति / पूर्वेणास्य रमणीयम् / कृभ्वस्तिभ्यां कर्मकर्तृभ्यां प्रागतत्तत्त्वे चिः।७।२।१२६। -- कर्मार्थात् करोतिना योगे कर्थाच्च वस्तिभ्यां योगेऽभूततद्भावे गम्यमाने च्विः प्रत्ययो भवति / अशुक्लं शुक्लं करोति शुक्लीकरोति पटम् / अशुक्लः शुक्लो भवति शुक्लीभवति पटः / शुक्ली• स्याद् वस्त्रम् / ईश्वाववर्णस्यानव्ययस्य / 4 / 3 / 111 / अव्ययवर्जितस्यावर्णान्तस्य च्वौ परे ईर्भवति / मालीस्यात् / अर्मनश्चक्षुश्चेतोरहोरजसा लुक् चौ / 7 / 2 / 127 / एषां चौ परेऽन्तस्य लुगू भवति / अनरुः अरुः करोति Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (233) 'अरूकरोति -- दीर्घश्वियङ्यक्येषु च ' इति दीर्घः / अरूस्यात् , अरूभवति / एवमुन्मनीभवति, स्यात , करोति / चक्षस्यात. चेतीभवति, रहीस्यात् , रजीस्यात् / 'इसुसन्तस्य च्वौ बहुल लुग् वाच्यः' सीकरोति, सीभवति, सीस्यात् / धनूकरोति, धनूभवति, धनूस्यात् / क्वचिच्च न भवति-सर्पिर्भवति इत्यादिः / व्यअनस्यान्त ईः / 7 / 2 / 129 / व्यञ्जनान्तस्य च्वौ परे बहुलमीकारोऽन्तो भवति / दृषदीमवति / व्याप्तौ स्सात् / 7 / 2 / 130 / चिविषये सादिः सात् प्रत्ययो भवति ।अभूततद्भावस्य चेत् सर्वात्मना द्रव्येण सह सम्बन्धो गम्येत / सर्व काष्ठमनग्निमग्निं करोति अग्निसात् करोति काष्ठम् / एवग्निसाद् भवति, अग्निसात स्यात् सर्व काष्ठमनग्निरग्निर्भवति, स्याद् वेत्यर्थः / तत्राधीने / 7 / 2 / 132 / सप्तम्यन्तादधीनेऽर्थे कृभ्वस्तिसंपद्योगे स्सात् प्रत्ययो भवति / राज्ञि आयतं राजसात् करोति, राजसाद् भवति, राजसात् स्यात् , राजसात् संपद्यते / 'देये त्रा च ' राज्ञि अधीनं देयं करोति रानत्रा करोति, देवत्रा करोति / / तीयशम्बबीजात् कृगा कृषौ डाच् / 7 / 2 / 135 / Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 234) तीयान्ताच्छम्बबीजाभ्यां च कृगा योगे कृषौ विषये डाच् भवति / द्वितीयाकरोति द्वितीयवारं कर्षतीत्यर्थः / शम्बाकरोति क्षेत्रम्-अनुलोमकृष्टं पुनस्तिर्यक् कर्षतीत्यर्थः / बीनाकरोतिउप्ते सति पश्चाद् बीमैः कर्षतीत्यर्थः / / प्रियमुखादानुकूल्ये / 7 / 2 / 140 / आभ्यां कृगा योगे आनुकूल्ये गम्ये डाच् भवति / प्रिया. करोति, सुखाकरोति गुरुम् / 'दुःखात् प्रातिकूल्ये डाच् वाच्यः' दुःखाकरोति शत्रुम् / बहल्पार्थात् कारकादिष्टानिष्टे प्रशस् / 7 / 2 150 / कारकवाचिभ्यां बह्वल्पाभ्यां यथासंख्यमिष्टेऽनिष्टे च विषये पित् शस् वा भवति / बहु अतिथिभ्यो ददाति बहुशो ददाति धनम् / अल्पं ददाति अल्पशो ददाति धनं चण्डालाय / ग्रामे बहु बहुशो ददाति / श्राद्धे अल्पमल्पशो ददाति / संख्यैकार्थाद्वीप्सायां शस्। 7 / 2 / 151 / / संख्यावाचिन एकत्वविशिष्टार्थवाचिनश्च कारकार्थाद् द्वीप्सायां शस् वा भवति / एकैकं ददाति एकशो ददाति / द्वौ द्वौ ददाति द्विशो ददाति / त्रिशो ददाति।माषं माषं ददाति माषशो ददाति / संख्यैकार्थादिति किम्-माषौ माषौ दत्ते / . वर्णाव्ययात् स्वरूपे कारः / 7 / 2 / 156 / Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 235) स्वरूपार्थवृत्तिभ्यो वर्णवाचिभ्योऽव्ययेभ्यश्च कारो भवति / * अकारः, इकारः, ओंकारः, चकारः, नमस्कारः / 'रशब्दादेफो वा. वाच्यः' रेफः, रकारः। नामरूपभागाद् धेयः / 7 / 2 / 158 / स्वार्थे धेयः प्रत्ययो भवति / नामधेयम् , रूपधेयम् , भागधेयम् / 'नवशब्दात् स्वार्थे ईन तन न य इत्येते प्रत्यया नवशब्दस्य च नू आदेशो वाच्यः' नवीनम्, नूतनम्, नूत्नम्, नव्यम् / 'देवशब्दात् स्वार्थे तल' देवता / / प्रज्ञादिभ्योऽण् / 7 / 2 / 165 / एभ्यः स्वार्थेऽण् भवति / प्रज्ञ एव प्राज्ञः, वणिगेव वाणिनः / विनयादिभ्यः / 7 / 2 / 169 / . एभ्य इव.ण स्वार्थे भवति / विनय एव वै यिकः / सामायिकम् / प्रकृते मयट् / 7 / 3 / 1 / प्राचुर्येण प्राधान्येन वा कृतं प्रवृतम् / तदर्थे वर्तमानात् स्वार्थे मयड् भवति / प्रचुरमन्नमन्नमयम्। प्रचुर प्रानं वा दधि दधिमयम् / पूनामयम् / अस्मिन् / 7 / .3 // 2 // Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (236) प्रकृतेऽर्थे वर्तमानादस्मिन्नित्यर्थे मयड् भवति / प्रकृतमन्नमसिमन् अन्नमयं भोजनम् / प्रधाना अपूपा यस्मिन् तद् अपूपमयं पर्व / निन्द्ये पाशप् / 7 / 3 / 4 / . निन्द्येऽर्थे वर्तमानात् स्वार्थे पाशब् भवति / निन्द्यो वैयाकरणो वैयाकरणपाशः / नैयायिकपाशः / / ___ प्रकृष्टे तमप् / 7 / 2 / 5 / प्रकृष्टेऽर्थे वर्तमानाद् नाम्नः तमप् प्रत्ययो भवति / अयमेषां प्रकृष्टः शुक्ल: शुक्लतमः / एवं साधकतमः, कारकतमः, उपकारकतमः / द्वयोविभज्ये च तरप् / 7 / 3 / 6 / द्वयोर्गुणयोरर्थयोर्मध्ये. यः प्रकृष्टस्तस्मिन् द्वयोर्विभज्ये च वर्तमानातू तरप् प्रत्ययो भवति / अनयोरयं प्रकृष्टः पटुः पटुतरः, सुकुमारतरः, साङ्काश्येभ्यः पाटलिपुत्रका आत्यतराः / वचित स्वार्थेऽपि अभिन्नमेवाभिन्नतरकम् , उच्चैस्तराम् / गुणागाद् वेष्ठेयम् / 7 / 3 / 9 / गुण एवाङ्गं प्रवृत्तौ हेतुर्यस्य तस्मात् तमप्तरपोर्विषये यथासंख्यमिष्ठ ईयसुश्च भवतः / अयमेषामतिशयेन पटुरिति पटिष्ठः, पटुतमः / अयमनयोरतिशयेन पटुरिति पटीयान् , पटुतरः / अयमेषामनयोर्वाऽतिशयेन प्रशस्य इति इंष्ठेयसौ परे प्रशस्यस्य श्रः / / 4 / 34 / Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (237) अस्य णीष्ठेयसुषु परेषु श्रादेशो भवति / श्रेष्ठः, श्रेयान् / ___ वृद्धस्य च ज्यः / 7 / 4 / 35 / अस्य प्रशस्यस्य च णीष्ठेयसुषु ज्यादेशो भवति / ज्येष्ठः / अयमेषामतिशयेन वृद्धः ज्येष्ठः / 'ईयसौ तु अनयोः ज्यायान् इति निपात्यः' अयमनयोरेषां वाऽतिशयेनान्तिक इति इष्ठेयसौ परे बाढान्तिकयोः साधनेदौ / 7 / 4 / 37 / अनयोग्रॅदौ परे यथासंख्यं साधनेदावादेशौ भवतः / नेदी-- . यान्, नेदिष्ठः / अयमेषामनयोर्वाऽतिशयेन युवा इति इष्ठेयसौ परे अल्पयूनोः कन् वा / 7 / 4 / 33 / / अनयोर्णीष्ठेयसुषु परेषु कन् वा भवति / कनिष्ठः, कनीयान्। पक्षे युदन्+इष्ठ इति स्थितेस्थूलदूरयुवहस्वक्षिपक्षुद्रस्यान्तस्थादेर्गुणश्च नामिनः।७।४।४। __एषामिमनि णीष्ठेयसुषु च परेषु अन्तस्थादेवयवस्य लुग नामिनश्च गुणो भवति / यविष्ठः, यवीयान् / एवं स्थविष्ठः, स्थवी. यान / दविष्ठः, दवीयान् / हसिष्ठः इसीयान् / क्षेपिष्ठः क्षेपीयान्। सोदिष्ठः, क्षोदीयान् / 'णीष्ठेयसुषु विन्मतोटुंब वाच्य.' अयमेषामनयोऽतिशयेन स्रग्वी स्रजिष्ठः, सजीयान् / एवं त्वचिष्ठः, स्वचीयान् / अतिशयेन गुरुः गरिष्ठः, शरीयान् / Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (238) - त्यादेश्व प्रशस्ते रूपप् / 7 / 3 / 10 / . त्याद्यन्ताद् नाम्नश्च प्रशस्तेऽर्थे रूपप् भवति / प्रशस्तो वैयाकरणो वैयाकरणरूपः / नैयायिकरूपः / पचतिरूपम् / पश्यतिरूपम् / . अतमवादेरीषदसमाप्ते कल्पपदेश्यप्देशीयर् / 7 / 3 / 11 // ईषदपरिसमाप्तावर्थे वर्तमानात् तमबाद्यन्तवर्जितात् त्याद्यन्ताद् नाम्नश्च कल्पप् देश्यप् देशीयर् प्रत्यया भवन्ति / ईषदपरिसमाप्त पचति-पचतिकल्पम् , पचतिदेश्यम् , पचतिदेशीयम् / ईपदपरिसमाप्ता पट्वी-पटुकल्पा, पटुदेश्या, पटुदेशीया 'क्यङ्मानिपित्तद्धिते' इति पुंवद्भावः / 'ईषदपरिसमाप्तेऽर्थे नाम्नः प्राक् बहुप्रत्ययो वाच्यः ईषदसमाप्तः पटुः बहुपटुः / त्यादिसर्वादेः स्वरेष्वन्त्यात् पूर्वोऽक् / 7 / 3 / 29 / , त्याद्यन्तस्य सर्वादीनां च स्वराणां मध्ये योऽन्त्यः स्वरः तस्मात् पूर्वोऽक् भवति / कुत्सितमज्ञातमल्पं वा पचति पचतकि / सर्वकः / . युष्मदस्मदोऽसोभादिस्यादेः / 7 / 3 / 30 / 2. अनयोः शब्दयोः सकारौकारभकार। दिवर्जितस्याद्यन्तयोः स्वराणां मध्येऽन्त्यात् स्वरात् प्रागक् भवति / त्वयका, मयका / युष्माककम्, अस्माककम् / असोभादिस्यादेरिति किम्-युष्मकासु, युवकयोः, युकाभ्याम् / अव्ययस्य को द् च / 7 / 3 / 31 / . . Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 239) अव्ययस्य स्वराणां मध्येऽन्स्यात् स्वरात् प्राक् कप्रत्ययो भवति, तद्योगे को द् च भवति / उच्चकैः, नीचकैः, धकिद् / कुत्सिताल्पाज्ञाते / 7 / 3 / 33 / एप्वर्थेषु वर्तमानाद् नाम्नो यथायोगं कबादयो भवन्ति / कुत्सितोऽल्पोऽज्ञातो वा अश्वः अश्वकः, गर्दभकः / अनुकम्पायां तद्युक्तनीतौ च गम्यमानायां नाम्नो यथायोगं कबादयो भवन्ति / अनुकम्पितः पुत्रः पुत्रकः / स्वपिषकि पुत्रक / एहकि कर्दमकेन दिग्धकोऽसि पुत्रक। अजातेन॒नाम्नो बहुस्वरादियेकेलं वा / 7 / 3 / 35 / अजातिमनुष्यनाम्नो बहुस्वरादनुकम्पायां एते प्रत्यया वा भवन्ति / देवदत्तियः, देवदत्तिकः, देवदत्तिलः, देवदत्तकः / पूर्वपदस्य वा / 7 / 3 / 45 / अनुकम्पायां स्वरादौ प्रत्यये परे पूर्वपदस्य लुग्वा भवति / दत्तियः, देवियः, एवं देविकः, देविलः 'द्वितीयात्स्वरादूर्ध्वम् / इति लुकि सत्याम् / 'हस्वेऽर्थे यथायोगं कबादयो वाच्याः हूस्वः पटः पटकः / एवं पुस्तककम् / .. वैकाद् द्वयोनिर्धार्ये डतरः / 7 / 3 / 52 / / समुदायादेकदेशो जातिगुणक्रियाद्रव्यैर्बुद्धया पृथक् क्रियमाणो निर्धार्यः / द्वयोरेकस्मिन् निर्धार्येऽथे एकशब्दाद् डतरो वा Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (240) भवति / भवतोः एकतरः कठः पटुर्गन्ता मैत्रो दण्डी वा, पक्षे एककः / यत्तत्किमन्यात् / 7 / 3 / 53 / . एभ्यो द्वयोरेकसिन् निर्धार्येऽर्थे वर्तमानेभ्यो डतरः प्रत्ययो भवति / यतरो भवतोः कठः ततरो भवतोः पटुः / कतरो भक्तो गन्ता / अन्यतरो भवतो देवदत्तो दण्डी वा / बहूनां प्रश्ने डतमश्च वा / 7 / 3 / 54 / बहूनां मध्ये निर्धार्येऽर्थे वर्तमानेभ्य एभ्यो डतमो वा भवति, डतरश्च / यतमो यतरो वा भातां कठस्ततमस्ततरो वाऽऽगच्छतु / कतरः, कतमः, अन्यतमः, अन्यतरः / पक्षे यकः, सकः, ककः, अन्यकः / / इति तद्धितप्रकरणं समाप्तम् / इति पूर्वार्धः - SUMMAR VAR.CODAI 1 THA Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहम् धमदीपिकाव्याकरणस्य सूत्रानुक्रमणिका (पूर्वार्धस्य ) अ. पा. सू. पृ. अं अः अनुस्वारविसौं / 1 / 1 / 9 / / 2 अंः क)( पशषसाः शिट् / 1 / 1 / 16 / 4, अः स्थाम्नः / 6 / 1 / 22 / 164 अक्ष्णोऽप्राण्यने / 7 / 3 / 85 / 160 अघोषे प्रथमोऽशिटः . . / 1 / 3 / 50 / 17 .. . / 1. 4 / 69 / 70 अच च् प्राग् दीर्घश्व . . / 2 / 1 / 104 / 70 अमातेर्ननाम्नो-येकेलं वा, / 7 / 3 / 35 / 239 अज़ादेः , . . . . . / 2 / 4 / 16 / 100. भश्चः . . . . . / 2 / 4 / 3 / 109 मञ्चोऽनर्घायाम् , , , . / 4 / 2 / 46 / 70 अपनेयेकणनास्नक्टिताम् / 2 / 4 / 20 / 103 Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) ___ अ. पा. सू. .... अत आः स्यादौ जस्भ्याम्ये / 1 / 4 / 1 / 26 अत इन् / / 6 / 1 / 31 / 166 अतः स्यमोऽम् / 1 / 4 / 17 / 49 अतोऽति रोरुः / 1 / 3 / 20 / 22 अतोऽनेकस्वरात् / 7 / 2 / 6 / 221 अतोऽहस्य / 2 / 3 / 73 / 159 अत्र च ___ / 7 / 1 / 49 / 206 अदसो दः सेस्तु डौ / 2 / 1 / 43 / 78 अदीर्घाद् विरामैकव्यञ्जने / 1 / 3 / 32 / 7 अदूरे एनः / 7 / 2 / 122 / 232 अदेतः स्यमोलुक् / 1 / 4 / 44 / 28 अदोमुमी / 1 / 2 / 35 / 12 अधरापराच्चात् / 7 / 2 / 118 / 231 अधणूतस्वाद्याशसः / 1 / 1 / 32 / 97 अधातुविभक्तिवाक्यमर्थवन्नाम / 1 / 1 / 27 / 24 अधातूदितः / 2 / 4 / 2 / 101 अधेः शीङ्स्थास आधारः / 2 / 2 / 20 / 121 अध्यात्मादिभ्य इकण् / 6 / 3 / 78 / 186 अनक् अनडुहः सौ / 1 / 4 / 72 / 56 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) . अ. पा. सू. पृ. अनतो लुप् / 1 / 4 / 59 / 50 अनद्यतने हिः. / 7 / 2 / 101 / 229 अनवर्णा नामी . अनाङ्माङो दीर्घाद् वा च्छः / 1 / 3 / 28 1 18 अनामस्वरे नोऽन्तः / 1 / 4 / 64 / 50 अनाम्न्यद्विः प्लुप् / 6 / 4 / 141 / 201 अनिदम्यणपवादे-ज्यः / 6 / 1 / 15 / 164 अनो वा / 2 / 4 / 11 / 103 अनोऽस्य / 2 / 1 / 108 1 51 अन् स्वरें / 3 / 2 / 129 / 139 अन्यो घोषवान् / 1 / 1 / 14 / 3 अपः . / / 1 / 4 / 88 / 83 अपञ्चमान्तस्थो धुट् / 1 / 1 / 11 / 3 अपायेऽबधिरपादानम् / 2 / 2 / 29 / 118 अपोऽद् भे / 2 / 1 / 4 / 84. अपो ययोनिमतिचरे / 3 / 2 / 28 / 156 अप्रयोगीत् / 1 / 1 / 37 / 5 अभ्यम् भ्यसः / / 2 / 1 / 18 1 90 अभ्वादेरत्वसः सौ ... / 1 / 4 / 90 / 73 अमव्ययीभावस्यातोऽपञ्चम्याः। 3 / 2 / / 2 / 131 Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4) ____ अ. पा. सू. . पृ. अमा त्वामा / 2 / 1 / 24 / 94 अमूर्धमस्तकात्-कामे / 3 / 2 / 22 / 156 अमोऽधिकृत्य ग्रन्थे / 6 / 3 / 198 / 191 अमोऽन्तावोऽधसः / 6 / 3 / 74 / 186 . अमौ मः / 2 / 1 / 16 / 88 अयमियं पुंस्त्रियोः सौ. / 2 / 1 / 38 / 64 अरीहणादेरकण् / 6 / 2 / 83 / 78 अर्मनश्चक्षु-चौ / 7 / 2 / 127 / 232 अरोः सुपि रः / 1 / 3 / 17 / 18 भौं च / 1 / 4 / 39 / 39 अर्हतस्तो न्त् च / 7 / 1 / 61 / 209 अहम् अलाब्वाश्च कटो रजसि / 7 / 1 / 84 / 211 अल्पयूनोः कन् वा / 7 / 4 / 33 / 237 अवक्रये / 6 / 4 / 13 / 196 अवयवात् तयट् / 7 / 1 / 151 / 215 अवर्णभोभगोऽघोलुंगसन्धिः / 1 / 3 / 22 / 22 अवर्णस्यामः साम् / 1 / 4 / 15. / 29 अवर्णस्येवर्णादिनैदोदरल् / 1 / 2 / / 9 अवात् कुटारश्वावनते / / 1 / 126 / 212 Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) अ. पा. सू. पृ. अवृद्धेर्गुणति गये / 6 / 4 / 34 / 196 अवेः संघातविस्तारे कटपटम् / 7 / 1 / 132 / 213 अवेदुग्धे सोढदूसमरीसम् / 6 / 2 / 64 / 176 अव्यनात् थ्यप् / 7 / 1 / 34 / 206 अव्ययस्य. / 3 / 2 / 7 / 95 अव्ययस्य को द् च / 7 / 3 / 31 / 238 अश्वत्थादेरिकण / 6 / 2 / 97 / 180 अष्ट औजसोः / 1 / 4 / 53 / 63 असत्त्वे उसेः / / 3 / 2 / 10 / 155 असदिवामन्त्र्यं पूर्वम् / 2 / 1 / 25 / 94 असुको वाऽकि / 2 / 1 / 44 / 78 अस्तपोमायामेधास्त्रनो विन् / 7 / 2 / 47 / 224 अस्मिन् / 7 / 3 / 2 / 235 अस्यायत्तत्क्षिपकादीनाम् 2 / 4 / 111 / 100 अस्वयम्भुवोऽव् / 7 / 4 / 70 / 163 . अहरादिभ्योऽञ् 6 / 2 / 87 / 179 / 2 / 1 / 74 / 21 आ . आख्यातर्युपयोगे / 2 / 2 / 73 / 126 आङाऽवधौ / / 2 / 2 / 70 / 126 अहः Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ अ. पा. सू. पृ. आत्, / 2 / 4 / 18 / 100 आद्यद्वितीयशषसा अघोपाः / 1 / 1 / 13 / 3. आद्यादिभ्यः / 7 / 2. / 84 / 226 आ द्वन्द्वे / 3 / 2 / 39 / 153 आ द्वेरः / 2 / 1 / 41 / 35 आपो ङितां ये यास् यास याम्। 1 / 4 / 17 / 43 आम आकम् / 2 / 1 / 20 / 91 आमन्त्र्ये / 2 / 2 / 32 / 112 आमयाद् दीर्घश्व / 7 / 2 / 48 / 224 आमो नाम् वा / 1 / 4 / 31 / 37 आ रायो व्यञ्जने / 2 / 1 / 5 / 41 आर्यक्षत्रियाद् वा / 2 / 4 / 66 / 104 आही दूरे : / 7 / 2 / 120 / 232 इच्चापुंसोऽनित्क्याप्परे / 2 / 4 / 107 / 101 इतोऽतः कुतः, :, / 7 / 2 / 90 / 227 इंदंकिमोऽतुरिय किय चास्य / 7 / 1 / 148 / 215 इदमदतोऽक्येव / 1 / 4 / 3 / 85 इतोऽस्वेरीदूतू. / 1 / 4 / 21 / 32 इनः कन् / 7 / 3 / 170 / 161 Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन् ङीस्वरे लुक्. इन्द्रियम्.. (7) . अ. पा. सू. पृ.। / 1 / 4 / 79 / 61 / 7 / 1 / 174 / 218 / 1 / 2 / 30 / 9 / 1 / 4 / 87 / / 62 इन्हन्पूषार्यम्णः शिस्योः ईडो वा ईश्च्वाववर्णस्यानव्ययस्य ईदूदेद् द्विवचनम् . . / 2 / 1 / 109 / 51 / 4 / 3 / 111 / 23.2 / / 1 / 2 / 34 / 12 / 7 / / 1 / 28 / 205 / 7 / 3 / 177 / 161 / 3 / 2 / 42 / 154 ईयः ईयसोः ई: पोमवरुणेऽग्नेः उः पदान्तेऽनूत् / 2 / 1 / 118 / 80 उतोऽनडुश्चतुरो वः - - / 1. / 4 / 81 / 56 उतोऽप्राणिनः-उङ् / 2 / 4 / 73 / 109 उत्करादेरीयः / 6 / 2 / 91 / 179 उत्सादेरञ् ... .. / 6 / 1 / 19 / 164 उदच उदीच् .... / 2 / 1 / 103 / / 72 उदितगुरो द्युक्तेऽब्दे / 6 / 2 / 5 / 171 उपज्ञाते , . . . . / / 3 / 191 / 191 उपमान सामान्यैः , . . / 3 / 1 / 101 / 140 Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ. पा. सू. . . उपमेयं व्याघ्रायैः साम्यानुक्तौ / 3 / 1 / 102 / 140 उपान्वध्याङ्वसः / 2 / 2 / 21 / 121 / 6 / 3 / 118 / 188 उवर्णयुगादेर्यः / 7 / 1 / 30 / 205 . उष्ट्रादका / 6 / 2 / 36 / 176 उप्ते उहशुभमो युस् / 7 / 2 / 17 / 222 ऊर्ध्वाद् रिरिष्टातावुपश्चास्य / 7 / 2 / 114 / 231. ऋकपूःपथ्यपोऽत् / 7 / 3 / 76 / 157 ऋते तृतीयासमासे / 1 / 2 / / 11 ऋते द्वितीया च . / 2 / 2 / 114 / 121 . ऋतो डुर् / 1 / 4 / 37 / 39 ऋतो वा तौ च ऋत्यारुपसर्गस्य / 1 / 2 / 9 / 10 ऋत्विजदिश-ष्णिहो गः / 2 / 1 / 69 / 84 ऋदुदितः / 1 / 4 / 70 / 73 ऋदुदित्तरतम-हस्वश्च / 3 / 2 / 63 / 156 ऋदुशनस् पुरुवंशोऽनेहसश्च सेर्डाः। 1 / 4 / 84 / 34 ऋवर्णोवर्ण-लुक / 7 / 4 / 71 174 Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (9). ऋश्यादेः कः ऋषिवृष्ण्यन्धककुरुभ्यः अ. पा. सू. पृ. / 6 / 4 / 94 / 180 / 6 / 1 / 61 / 166 ऋस्त्रयोः / 1 / 2 / 5 / 11 लतः रल ऋलभ्यां वा / 1 / 2 / 3 / 11 लृदन्ताः समानाः / / 1 / 7 / 2 . / 1 / 4 / 77 / 61 ए ऐ ओ औ सन्ध्य क्षरम् / 1 / 1 / / / / 2 एकद्वित्रिमात्रा ह्रस्वदीर्घप्लुताः / 1 / 1 / 5 / 2 एकात् सकृञ्चास्य / 7 / 2 / 111 / 230 एकाथ चानेकं च / / 3 / 1 / 22 / 145 'एतदश्च व्यञ्जनेऽनग्नसमासे / 1 / 3 / 46 / 23 एदापः / 1 4 / 42 / 43 एदेतोऽयाय / 1 / 2 / 23 / 8 एदोतः पदान्तेऽस्य लुक् / 1 / 2 / 27 / 10 एदोद्भ्यां ङसिङसो रः / 1 / 4 / 35 / 33 एद बहुस्भोसि / / 1 / 4 / 4 / 27 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐकायें ऐदौत् सन्ध्यक्षरैः ऐषमोह्यःश्वसो वा .. ओ. ओजोऽञ्जःसहोऽष्टः ओत औः . ओदन्तः ओदौतोऽवाव्. . ओमाङि / 3 / 2 / / 129 / 1 / 2 / 12 / 9 / 6 / 3 / 19 / 184 . / 3 / 2 / 12 / 165 / 1 / 4 / 74 / 41 / 1 / 2 / 37 / 13 . / 1 / 2 / 24 / / औता औदन्ताः स्वराः / औरीः ... / 1 / 4 / / 1 / 1 / / 1 / 4 / 20 / 42 4 / 1 56 / 49 - क कंशंभ्यां युस्तियस्तुतवभम् / 7 / 2 / 18 / 222 कन्यात्रिवेण्याः कनीनत्रिवणं च / / / 1 / 62 / 167 कर्णादेरायनिन् / / 6 / 2 / 90 / 179 कर्णादेर्मूले जाहः / 7 / 1 / 88 / 211 कर्तुाप्यं कर्म .. / 2 / 2 / 3 / 112H Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ. पा. सू. पृ. कर्मणि / 2 / 2 / 40 / 115 कर्मणि कृतः / 2 / 2 / (3 / 124 कमोभिप्रेयः सम्प्रदानम् / 2 / 2 / 25 / 119 कल्यग्नेरेयण / 6 / 1 / 17 / 164 काकवौ वोष्णे / 3 / 2 / 137 / 142. काऽक्षपयोः / 3 / 2 / 134 / 142 कादिव्यञ्जनम् कारकं कृता / 3 / 1 / 68 / 134 कालात् परिजय्यलभ्यकार्यसुकरे। 6 / 4 / 104 / 199 कालाद् देये ऋणे / 6 / 3 / 113 / 188 कालाध्वनोाप्तौ / 2 / 2 / 42 / 117 कालाध्वभावदेशंवाऽकर्म चाकर्मणाम्।२ / 2 / 23 / 1.13, काले कार्ये च भववत् / 6 / 4 / 98 / 199 काशादेरिलः / .6 / 2 / 82 / 178 किंयत्तत्सर्वैकान्यात् काले दा / 7 / 2 / 95 / 228 किमः कस्तसादौ च / 2 / 1 / 40 / 66 किमद्वयादि-पित् तस् / 7 / 2 / 89 / 227 कुमुदादेरिकः / 6 / 2 / 96 / 180 कुलकुक्षिग्रीवाच्छ्वास्यलङ्कारे / 6 / 3 / 12 / 183... कुशले ... / 6 / 3 / 95 / 188 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) कृताचैः ___ अ. पा. सू. . . / 2 / 2 / 47 / 122 कृति / 3 / 1 / 77 / 137 / 6 / 3 / 192 / 191 कृत्यस्य वा / 2 / 2 / 8 / 124 कृभ्वस्तिभ्यां-च्चि: / 7 / 2 / 126 / 232 कृशाश्वादेरीयण / 6 / 2 / 93 / 189 कृष्यादिभ्यो वलच्. / 7 / 2 / 17 / 223 केवलसखिपतेरौ / 1 / 4 / 26 / 35 कोः कत् तत्पुरुषे / 3 / 2 / 130 / 142 / 7 / 2 / 76 / 225 क्तयोरसदाधारे / 2 / 2 / 91 / 125 क्ताः / 3 / 1 / 151 / 147 क्त्वातुमम् / 1 / 1 / 35 / 98 क्त्वेनासत्त्वे / 3 / 1 / 74 / 136 क्रियाश्रयस्याधारोऽधिकरणम् / 2 / 2 / 30 / 119 . क्रियाहेतुः कारकम् / 2 / 2 / 1 / 111 क्रुद्रुहेासूयाऽथैर्य प्रति कोपः। 2 / 2 / 27 / 127 क्रुशस्तुनस्तृच् पुंसि / 1 / 4 / 91 / . 40 क्रोशयोजन-गमाहें / 6 / 4 / 86 / 198 क्लिन्नालश्चक्षुषि-चात्य / 7 / 1 / 130 / 213 कोण्वादेः Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (13) क्लीवे क्वकुत्रात्रेह . क्वसुष् मतौ च क्विवृत्तेरसुधियस्तो क्वेहामात्रतसस्त्यच् क्षुद्राभ्य एरण वा अ. पा. सू. पृ. / 2 / 4 / 27 / 52 / 7 / 2 / 93 / 228 / 2 / 1 / 105 / 76 / 2 / 1 / 18 / 37 / 6 / 3 / 16 / 184 / 6 / 1 / 80 / 168 खितिरवीतीय उर् / 1 / 4 / 36 / 34 गच्छति पथि दूते गडदबादेश्च-भ्यः गड़वादिभ्यः गतिः . गतिरोधाहारार्थ-क्रन्दाम् गम्ययपः कर्माधारे गर्गादेर्यञ् गिरिनदी-वाद् वा गुणाङ्गाद् वेष्ठेयसू गुणादस्त्रियां नवा गुणादिभ्यो यः . / 6 / 3 / 203 / 181 / 2 / 1 / 77 / 56 / 3 / 1 / 156 / 146 / 1 / 1 / 36 / 98. / 2 / 2 / 5 / 114 / 2 / 2 / 74 / 127 / 6 / 1. / 42 / 166 / 7 / 3 / 90 / 158 / 7 / 3 / 9 / 236 / 2 / 2 / 77 / 123 / 7 / 2 / 53 / 225 Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ. पा. सू. पृ.. गुणोऽरेदोत् / 3 / 3 / 2 / 5 गोत्रोक्षवत्सो-दकञ् / 6 / 2 / 12 / 173 मोस्तत्पुरुषात् / 7 / 3 / 105 / 157 गौणात् समया-द्वितीया / 2 / 2 / 33 / 116 गौरादिभ्यो मुख्याद् ङीः / / 2 / 4 / 19 / 104 मिन् / 7 / 2 / 25 / 223 ग्रामजनबन्धुगजसहायात् तल् / 6 / 2 / 28 / 174 घोषवति / 1. / 3 / 21 / 22 डिडौं सेश्चात् / 2 / 1 / 19 / 90 ङसोऽपत्ये / 6 / / 28 / 163. इस्युक्तं कृता / 3 / 1 / 49 / 140 . ङित्यदिति . / 1 / 4 / 23. / 32 / 1 / 4 / 25 / 33 . स्मिन् / 1 / 4 / / 29 डेङसा तेमे .. . / 2 / 1 / 23 / 94. उडस्योर्यातौ / 1 / 4 / 6 / .27 ङ्गोः कटावन्तौ शिटि नवा / 1 / 3 / 17 / 19 झ्याप्त्यूङः / 6 / 1 / 70 / 167 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (16) चतुर्थी ____ अ. पा. सू. पृ. 'चजः कगम्, / 2 / 1 / 86 / 67 चटते सद्वितीये / 1 / 3 / / 7 / 20 चतुरः / 7 / 1 / 163 / 217 / 2 / 2 / 53 / 119 चतुर्थी प्रकृत्या / 3 / 1 / 70 / 135 चन्द्रयुक्तात् काले लुप् त्वप्रयुक्ते। 6 / 2 / 6 / 171 चरति : .. . / 6 / 4. / 11 / 193 चवर्गदषहः समाहारे . / 7 / 3 / 98 / 159 चादयोऽसत्त्वे / 1 / 1 / 31 / 97 चादिः स्वरोऽनाङ / 1 / 2 / 36 / 12 चार्थे द्वन्द्वः सहोक्तौ / 3 / 1 / 117 / 150 चाहहवैवयोगे / 2 / 1 / 29 / 96 चिरपरुत्परारेस्त्नः .. / 6 / 3 / 85 / 187 नयिनि च जराया जरस् वा जस इः जस्येदोत् जस्विशेष्यं वाऽऽमन्त्र्ये / / 3 / 122 / 189 / 2 / 1 / 3 / 44 / 1 / 4 / 9 / 29 / 1 / 4 / 22 / 32 . / 2 / 1 / 26 / 95 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . .. अ. पा. सू. . . पृ. जातमहवृद्धादुक्ष्णः कर्मधारयात्। 7 / 3 / 95 / 158 जातेरयान्तनित्यत्रीशूद्रात् / 2 / 4 / 54 / 106 जातेरीयः सामान्यवति / 7 / 3 / 139 / 149 जातौ राज्ञः / 6 / 1 / 92 / 169 टः पुंसि ना दाम्सोरिनस्यौ टाइयोसि यः टादौ स्वरे वा टोस्यनः टौस्येत् / 1 / 4 / 24 / 32 / 1 / 4 / 5 / 21 / / 2 / 1 / 7 / 89 / 1 / 4 ) 92 / 40 / 1 / 4 / 19 / 42 डतिष्णः संख्याया लुप् डत्यतु संख्यावत् डित्यन्त्यस्वरादेः ड्नः सः त्सोऽश्व / 1 / 4 1 54 / 36 / 1 / 1 / 39 / 36 / 2 / 1 / 114 / 33 / 1 / 3 / 18 / 16 दस्तड्ढे / 1 / 3 / 42 / 22 णषमसत् परे स्यादिविधौ च / 2 / 1 / 60 / 76 Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत आगते तत्र (17.) त .. . अ. पा. सू. पृ. / 6 / 3 / 149 / 190 ततो हश्चतुर्थः तत्पुरुषे कृति / 3 / 2 / 20 / 155 / 7 / 1 / 53 / 207 तत्र कृतलब्धक्रीतसंभुते / 6 / 3 / 94 / 187 तत्र नियुक्त / 6 / 4 / 74 / 197 तत्र साधौ / 7 / 1 / 15 / 205 तत्राधीने . / 7 / 2 / 132 / 233 तत्रोद्धो पात्रेभ्यः / 6 / 2 / 138 / 18. तदत्रास्ति / 6 / 2 / 70 / 177 तदन्तं पदम् तदर्थार्थेन / 3 / 1 / 72 / 135 तदस्य पण्यम् / / 6 / 4 / 54 / 196 तदस्य संजातं तारकादिभ्य इतः। 7 / 1 / 138 / 213 तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुः / 7 / 2 / 1 / 218 तदः सेः स्वरे पादार्था . / 1 / 3 / 45 / 23 द् तद्धितयस्वरेऽनाति / 2 / 4 / 92 / 115, तद्धितः स्वरवृद्धि-विकारे / 3 / 2 / 15 / 144 तद्धिताककोपान्त्य-ख्याः / 3 / 2 / 54 / 143 तद्धितोऽणादिः / 6 / 1 / 1 / 162 तद्भद्रायुष्यक्षेमार्थार्थेनाशिषि / 2 / 2 / 66 / 127 Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (18) तद् वेत्त्यधीते - अ. पा. सू. , . पृ. तयुक्त हेतौ / 2 / 2 / 100 / 128 तद्वति धण् / 7 / 2 / 108 / 230 / 6 / 2 / 117 / 180 तमर्हति / 6 / 4 / 177 / 203 तं पचति द्रोणाद् वाञ् / 6 / 4 / 161 / 203 तं भाविभूते / 6 / 4 / 106 / 200 तरति 6i,4 / 9 / 193 लव मम ङसा / 2 / 1. / 15 / 90 तवर्गस्य श्चवर्ग-चटवर्गों / 1 / 3 / 60 / 14 तस्मै भृताधीष्टे च / / 4 / 107 / 200 तस्मै योगादेः शक्ते . / / 4 / 94 / 198 तस्मै हिते / 7 / 1 / 35 / 205 तस्य / 7 / 1 ! 14 / 207 तस्य वापे / 6 / 4 / 151 / 202 तस्याहे क्रियायां वत् / 7 / 1 / 5.1 / 207 / 6 / 3 / 160 / 190 / 2 / 2 / 14 / 126 ताभ्यां वा डित् / 2 / 4 / 15 / 102 तिरसस्तियति / 3 / 2 / 124 / 71 तिलादिभ्यः स्नेहे तैलः / 7 / 1 / 136 / 213 तीयशवबीजात् कृगा कृषौ डान्। 7 / 2 / 135 / 233 तस्येदम् तादर्थ्य Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (19) ___ अ. पा. सू. पृ. -तीयं ङित्कायें वा / 1 / 4 / 14 / 31 "तुभ्यं मह्यं ड्या / 2 / 1 / 14 / 89 तुल्यस्थानास्यप्रयत्नः स्वः / 1 / 1 / 17 / 4 तृणादेः सल् / 6 / 2 / 81 / 178 तृतीयस्तृतीयचतुर्थे / 1 / 3 / 49 / 7 तृतीयस्य पञ्चमे - तृतीया तत्कृतैः / 3 / 1. / 65 / 134 तृन्नुदन्ताव्यय-खलर्थस्य / 2 / 2 / 90 / 124 तृस्वसृनप्तृ-घुट्यार / 1 / 4 / 38 / 40 'तेन च्छन्ने रथे / 6 / 2 / 131 / 172 - तेन जितजयद्दीव्यत्खनत्सु / / 4 / 2 / 192 - तेन निवृत्ते च / 6 / 2 / 71 / 177. तेन प्रोक्ते / / 3 / 181 / 190 तेन वित्ते चन्चुचणौ * / 7 / 1 / 175 / 218 तेन हस्ताद् यः / 6 / 4 / 101 / 199 तो मुमो व्यञ्जने स्वौ / 1 / 3 / 14 / 18 तः सौ सः / 2 / 1 / 42 / 68 त्यदादिः त्यदामेनदेतदो-ऽवृत्त्यन्ते / 2 / 1 / 33 / 69 त्यादिसर्वा देः स्वरेष्वन्त्यात् पूर्वोऽक्। 7 / 3 / 29 / 238 त्यादेश्च प्रशस्ते रूपम् / 7 / 3 / 10 / 238 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. . अ. पा. सूः पृ. पुनतोः पोऽन्तश्च / / 2 / 33 / 176 त्रिचतुरस्तिसृचतसृ स्यादौ / 2 / 1 / 1 / 81 त्रिशद्विशतेडकोऽसंज्ञायाम् / 6 / 4 / 129 / 201 त्रेस्तु च / 7 / 1 / 166 / 217. वेस्त्रयः / 1 / 4 / 34 / 36 व्यन्त्यस्वरादेः / 7 / 4 / 43 / 208 त्वमहं सिना प्राक् चाकः / 2 / 1 / 12 / 8 त्वमौ प्रत्ययोत्तरपदे चैकस्मिन् / 2 / 1 / 11 / 89 थो न्थ् / 1 / 4 / 78 / 61 दक्षिणापश्चात्पुरसस्त्यण . / / 3 / 13 / 184 दक्षिणोत्तराच्चातस् / 7 / 2 / 117 / 231 . दध्यस्थिसक्थ्यक्ष्णोऽन्तस्यान् / 1 / 4 / 63 / 51 दन्तपादनासिका-शक्न वा / 2 / 1 / 101 / 75 दामः सम्प्रदानेऽधर्म्य आत्मने च। 2 / 2 / 12 / 122 दाम्नः / 2 / 4 / 10 / 103 दिगादिदेहांशाद् यः / 6 / 3 / 32 / 185 दितेश्चैयण वा.. / 6 / 1 / 69 / 167 . दिव औ सौ :: / 2 / 1 / 117 / 80 Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (21) .. अ. पा. सू. पृ. दिवो द्यावा. / 3 / 2 / 44 / 164. . दीर्घा याव्यञ्जनात् सेः / 1 / 4 / 45 / 42 दीर्घा नाम्न्यतिसचतसृषूः !? / / 7 / 28 / 2 / 1 / 19 / 38 दृश्यर्थैश्चिन्तायाम् / 2 / 1 / 30 / 95 दृष्ट साम्नि नाम्नि / 6 / 2 / 133 / 172 देवता . ... / 6 / 2 / 101 / 173 दो मः स्यादौ / 2 / 1 / 39 / 65 दोरीयः / 6 / 3 / 32 / 185 घुप्रागपागुदक्प्रतीचो यः / / 3 / 8 / 183 द्वयोविभन्ये तरफ् . / 7 / 3 / 6 / 236 द्विगोः समाहारात् / 2 / 1 / 22 / 105 द्विगोरनपत्ये वृद्धिः / / / 1 / 24 / 165 द्विगोरनहनोऽट् / 7 / 3 / 44 / 154 द्वितीया खट्ना क्षेपे / 3 / 1 / 59 / 134 द्वित्रिचतुरः सुच् / 7 / 2 / 110 / 23.0 द्विषेर्धमधौ वा . . / 7 / 2 / 107 / 230 द्वितोऽधोऽध्युपरिभिः . . . . / 2 / 2 / 34 / 116 द्वित्वे वाम्-नौ ... / / 1 / 30 / 95 द्विपदाद् धर्मादन ... / 7 / 1 / 141 / 147 Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (22) - द्विषो वाऽतृशः द्विस्वरादनद्याः द्वैस्तीयः अ. पा. सू. .... / 2 / 2 / 84 / 124 / / 1 / 71 / 168 / 6 / 3 / 32 / 185 धनगणालब्धरि / 7 / 1 / 9 / 204: धनादेः पत्युः / 6 / / 14 / 164 धर्माधर्माच्चरति .. / / 4 / 49 / 196 . धवाद् योगादपालकान्तात् / 2 / 4 / 59 / 56 धातोरिवर्णो-स्वरे प्रत्यये / 2 / 1 / 50 / 36. धुटस्तृतीयः . / 2 / 1 / 76 / 14 नजत् नखमुख दनाम्नि / 2 / 4 / / 61 / 108 नखादयः / 3 / 2 / 128 / 138 / 3 / 2 / 125 / 138 नजन्ययात् सङ्ख्याया डः / 7 / 3 / 123 / 160 / 3 / 1 / 51 / 137 नसुव्युपत्रेश्चतुरः / 7 / 3 / 131 / 160 नडादिभ्य आयनण् / 6 / 1 / 63 / 166 नद्यादेरेयण् .. / / 3 / / 2 / 183 नञ् Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (23) ____ अ. पा. सू. पृ. न नाडिदेत् / 1 / 4 / 27 / 34 नपुंसकस्य शिः / 1 / 4 / 85 / 49 न प्राग्जितीये स्वरे / 6 / 1 / 135 / 166 नवभ्यः पूर्वेभ्य इ-वा / 1 / 4 / 16 / 31 न वमन्तसंयोगात् / 1 / 4 / 86 / 49 न शात् न स्तं मत्वर्थे / 1 / 1 / 23 / 220 नहाहोतो / 2 / 1 / 85 / 80 नान्यत् / 2 / 1 / 27 / 95 नाप्रियादौ / 3 / 2 / 13 / 143 नाम नाम्नैकायें समासो बहुटम्। 3 / 1 / 18 / 129 नामध्ये / 2 / 1 / 92 / 69 नामरूपभागाद् धेयः / 7 / .2 / 158 / 235 नामिनो लुग् वा नाम्नः प्रथमैकद्विवहौ / 2 / 2 / 31 / 111 नाम्नि / 2 / 1 / 95 / 220 नाम्नो नोऽनहः / 2 / 1 / 91 / 59 नाम्यन्तस्थाकवर्गात्-न्तरेऽपि / 2 / 3 / 15 / 28 नावादेरिकः / 7 / 2 / 3 / 220 / 7 / 3 / 123 / 160 नाव: Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (24) . अ, पा. .सू. . पृ. नासानति तद्वतो-अटम् / 7 / 1 / 127 / 212 नासिकोदरौष्ठ-कण्ठात् / 2 / 4 / 39 / 107 निकटादिषु वसति / 6 / 4 / 77 / 197 नित्यदिद्विस्वराम्बार्थस्य हूस्वः / 1 / 4 / 43 / 43 नित्यमन्वादेशे .. / 2 / 1 / 25 / 94 नित्यं प्रतिनाऽरपे / 3 / 1 / 31 / 133 नि दीर्वः / 1 / 4 / 85 / 49 निन्द्ये पाशप 7 / 3 / 4 / 236 निय आम् / 1 / 4 / 61 / 37 नियुक्तं दीयते / 6 / 4 / 70 / 197 / 6 / 4 / 105 / 205 निवृत्तऽसातादेः . / / 4 / 20 / 193 निवासादूरभवे इति देशे नाम्नि। 6 / 2 / / 69 / 177 नीलपीतादकम् / 6 / 2 / 4 / 171 / 1 / 4 / 48 / 39 -हेतुभ्यो रूप्यमयटौ वा / / 3 / 156 / 190 नूनः पेषु वा / 1 / 3 / 10 / 16 नेमार्धप्रथम-कतिपयस्य वा / 1 / 4 / 10 / 31 नेरिनपिटकाश्चिचिचिकश्चास्य / 7 / 1 / 128 / 212 नोऽङ्गादेः / 7 / 3 / 29 / 223 निवृत्त नुर्वा Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोपसर्गात् क्रुद्रुहा नोपान्त्यवतः . नोऽप्रशानोऽनुस्वारा-परे नः शि ञ्च न्यायादेरिकण् न्यायार्थादनपेते न्स्महतोः ((25) - अ. पा. सू. पृ. / 2 / 2 / 28 / 127 / 2 / 4 / 13 / 103 / 1 / 3 / 8 / 16 / 1 / 3 / 19 / 15 / 6 / 2 / 118 / 181 / 7 / 1 / 13 / 205 / 1 / 4 / 86 / 73 पक्षिमत्स्यमृगार्थाद् नति / 6 / 4 / 31 / 194 पञ्चको वर्गः / 1 / 1 / 12 / 3 पञ्चतोऽन्याहेर-दः / / 1 / 4 / 58 / 49 पञ्चमी भयाद्यैः .. / 3 / 1 / 73 / 135 पञ्चम्यपादाने / 2 / 2 / 69 / 119 पञ्चसर्वविश्वाज्जनात् कर्मधारये / 7 / 1 / 41 / 206 पतिरानान्तगुणा-कर्मणि च / 7 / 1 / 60 / 209 पतिवन्यन्तर्वत्न्यौ –ण्योः / 2 / 4 / 53 / 108 पयिन्मथिनृभुक्षः सौ. / 1 / 4 / 76 / 61 पदक्रमशिक्षामीमांसासाम्नोऽकः। 6 / 2 / 126 / 181 पदस्य . / 2 / 1 / 89 / 66 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदान्ते (26) ___ अ. पा. सू. . पृ. पदाधुगविमक्त्यै-बहुत्वे / 2 / 1 / 21 / 93 पदान्तादृवर्गादनामनगरीनवतेः / 1 / 3 / 63 / 15 / 2 / 1 / 64 / 76 पन्थ्यादेरायनण् / 6 / 2 / 89 / 179 परतः स्त्री पुंवत् स्येकार्थेऽनङ् / 3 / 2 / 49 / 142 परदारादिभ्यो गच्छति / / / 4 / 28 / 195 परस्परान्योन्ये-पुंसि / 3 / 1 / 1 / 154 परात्मभ्यां . / 3 / 2 / 17 / 155 परावरात् स्तात . / 7 / 2 / 116 / 231 परिखाऽस्य स्यात् / 7 / 1 / 18 / 206 परिणामिनि तदर्थे / 7 / 1 / 44 / 2066 परिपन्थात् तिष्ठति च / / 4 / 32 / 194 पर्यभेः सर्वोभये / 7 / 2 / 83 / 226 पशुभ्यः स्थाने गोष्ठः / 7 / 1 / 133 / 213 पश्यद्वादिशो हरयुक्तिदण्डे / 3 / 2 / 32 / 156 पाव्यशूद्रस्य / 2 / 1 / 143 / 152 पितृमातुर्व्यडुलं भ्रातरि / / 2 / 62 / 176 पीत्वादेः कुणः पाके / 7 / 1 / 87 / 211 पुमोऽशिट्यघोषेऽख्यागि रः / 1 / 3 / 9 / 16 पुंवत् कर्मधारये ... / 3 / 2 / 57 / 140 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (27) अ. पा. सू. . पृ. / 3 / 3 / / 3 / ...17 .पुंसोः पुमन्स् -पुरुषात् कृतहितवधविकारे चैयञ्। 6 / 2 / 29 / 176 पुरुषाद् वा / 2 / 4 / 60 / 108 पुरुषः स्त्रिया. / 3 / 1 / 126 / 152 पूतक्रतुवृषाकप्यग्नि-दादौ च / 2 / 4 / 60 / 108 पूर्वापराधरोत्तरा-धुस् / 7 / 2 / 98 / 228 पूर्वावराधरेभ्योऽस-चैषाम् / 7 / 2 / 115 / 231 पूर्वाणापराह्णात् तनट / / 3 / 83 / 183 पृथग् नाना पञ्चमी च / 2 / 2 / 98 / 121 पृथुमृदुभृश-ऋतो रः / 7 / 4 / 39 / 208 पृथ्वादेरिमन् वा / 7 / 1 / 18 / 208 पृथ्वीमध्याद् मध्यमश्चास्य / 6 / 3 / 64 / 186 पौत्रादि वृद्धम् / 6 / 1 / 2 / 162 प्रकारे जातीयर / 7 / 2 / 75 / 226 प्रकारे था * / 7 / 2 / 102 / 229 प्रकृते मयट् / 7 / 3 / / 1 / 235 प्रकृष्टे तमप् / 7 / 2 / 5 / 236 प्रज्ञादिभ्योऽण् / 7 / 2 / 165 / 236 प्रज्ञापर्णोदकफेनात लेलौ / 7 / 2 / 22 / 222 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अ. पा. सू... पृ. प्रज्ञाश्रद्धा वृत्तेः / / 2 / 33 / 224 प्रतिपरोऽनोरव्ययीभावात् / 7 / 3 / 83 / 158 प्रथमादधुटि शश्छः / / 1 / 3 / 4 / 14 प्रथमोक्तं प्राक् / / 3 / 1 / 148 / 131 प्रभवति / 6 / 3 / 157 / 190 प्रभूतादिभ्यो ब्रुवति ... / / 4 / 43 / 195 प्रभृत्यन्यार्थदिक्शब्द-दितरैः / 2 / 2 / 75 / 123 प्रमाणाद् मात्रट् / 7 / 1 / 140 / 213 प्रमाणीसङ्ख्याद् डः / 7 / 3 / 128 / 148 प्रयोजनम् / / 4 / 117 / 200 प्रशस्यस्य श्रः / 7 / 4 / 34 / 236 प्रहरणम् / 6 / 4 / 62 / 197 प्रागिनाद् / 2 / 1 / 48 / 79 प्राग् जितादण् प्राणितूर्याङ्गाणाम् / 3 / 1 / 138 / 152 प्राणिन उपमानात / 7 / 3 / 111 / 159 प्राण्यङ्गादातो लः / 7 / 2 / 20 / 221 प्राण्योषधिवृक्षेभ्योऽवयवे च / / 2 / 31 / 179 प्राप्तापन्नौ तयाच्च / / 3 / 1 / 63 / १३३प्रियसुखादानुकूल्ये / / 7 / 2 / - 140 / 234 Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्रियस्थिरस्फिर-वृन्दम् प्रेक्षादेरिन् .. अ. पा. सू. पृ. / 7 / 4 / 38 / 208 / 6 / 2 / 80 / 178 / 6 / 2 / 129 / 191 / 1 / 2 / 32 / 13 प्रोक्तात् प्लुतोऽनितौ फलबाँच्चेनः / 7 / 2. / 13 / 221 बलादेयः / 6 / 2 / 86 / 174 बहुप्वेरीः / 2 / 1 / 49 / 78 बहूनां प्रश्ने-वा . / 7 / 3 / 14 / 240 बह्वल्पार्थात्-प्शस् , / 7 / 2 / 150 / 234 बाढान्तिकयोः साधनेदौ / 7 / . 4 / 37 / 237 ब्राह्मणमाणववाडवादयः / 6 / 2 / 16 / 174 भ भक्ष्यं हितमस्मै / 6 / 4 / 69 / 197 .... / 6 / 3 / 104 / 192 भर्तुसन्ध्यादेरकण् / / 3 / 89 / 187. मवतोरिकणीयसौ . . . / / 5 / 30 / 184 भनति Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) ____ अ. पा. . सू. . . पृ. भक्त्वायुष्मदीर्घायु:र्थाद् / 7 / 2 / 91 / 227 मवे / 6 / 3 / 123 / 189 भागिनि च प्रतिपर्यनुभिः / 2 / 2 / 37 / 116 मावघनोऽस्यां णः / / 2 / 114 / 175 मावे त्वतलो / / 7 / 1 / 55 / 207 मिस ऐस् / 1 / 4 / 2 / 27 भूतपूर्व प्चरट् / 7 / 2 / 78 1 225 भूलक चेवर्णस्य / 7 / 4 / 41 / 208 भृग्वङ्गिरस्-गोतमात्रेः / / 1 / 128 / 170 भ्रश्नोः . / 2 / 1 / 53 / 58 भ्वादेर्दादेघः / 2 / 1 / 83 / 56 / 6 / 3 / 7.6 / 186 / 7 / 2 / 26 / 223 / 6 / 3 / 76 / 186 -मध्याद् मः मध्वादिभ्यो H मध्वादेः मनयवलपरे हे मनोरौ च वा मनोर्याणौ पश्चान्तः / 2 / 4 / 61 / 108 / / 1 / 94 / 169 / 2 / 4 / 14 / 103 मनः Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्तस्य युवावौ द्वयोः मरुपर्वणस्तः मातृपितुः स्वसुः मातृपित्रादेāयणीयणौ मात्रट् मानम् मानात् संशये लुप् मावर्णान्तोपान्ता-वः मासनिशासनस्य-वा . मुहगुहष्णुहप्णिहो वा मूल्यैः क्रीते मेघारथाद् नवेरः मो नो म्वोश्च मोऽवर्णस्य म्नां धुड्वर्गेऽन्स्योऽप्रदान्ते अ. पा. सू. पृ. / 2 / 1 / 10 / .8 / 7 / 3 / 15 / 221 / 2 / 3 / 18 / 168 / 6 / 1 / 90 / 168 / 7 / 1 / 145 / 214 / 6 / 4 / 169 / 203 / 7 / 1. / 143 / 214 / 2 / 1 / 94 / 219 / 2 / 1 / 100 / 19 / 2 / 1 / 84 / 57 / 6 / 4 / 150 / 202 / 7 / 2 / 41 / 224 / 2 / 1 / 67 / 66 / 2. / 1 / 45 / 7. / 1 / 3 / 39 / 15 यनसृजमृजराजभ्रान-शः षः / 2 / 1 / 87 / 67 यज्ञानां दक्षिणायाम् / / 4 / 96 / 284 यमोऽश्यापर्णान्तगोपवनादेः। 1 / 1 / 126 / 169 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (32) यभित्रः / / / 1 / 64 / 166 यत्तत्किमन्यात् / / / 3 / 53 / 240 यत्तत्किमः सङ्ख्याया डतिर्वा / 7 / 1 / 150 / 2.15 यत्तदेतदो डावादिः / / 1 / 149 / 215 यथाऽथा / 3 / 1 / 41 / 132 यद्भावो भाक्लक्षणम् / / 2 / 2 / 106 / 120 यद्भेदैस्तद्वदाख्या / 2 / 2 / 46 / 118 ययौ चलुक् च / 7 / 1 / 164 / 217 यरलवा अन्तस्थाः यवयवकषष्टिकादयः / 7 / 1 / 81 / 290 यस्वरे पादः पदणिक्यंघुटि / 2 / 1 / 102 / 68 यावदियत्त्वे / 3 / 1 / 31 / 133 युज चुक्रुञ्चो नो ङः / 2 / 1 / 71 / 67 युञोऽसमासे / 1 / 4 / 71 / 67 युवादेरण / 7 / 1 / 67 / 209 युष्मदस्मदोः / 2 / 1 / 6 / 8 युष्मदस्मदोऽसोभादिस्यादेः / 7 / 3 / 30 / 238 यूनि लुम् / / 1 / 137 / 170 यूयं वयं जसा / 2 / 1 / 13 / 89 योग्यतावीप्सा नतिवृत्तिसादृश्ये। 3. / 1 // 40 // 11 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (33) __अ. पा. सु. पृ. योद्धृप्रयोजनाद् युद्धे / / 2 / 113 / 175 योपान्त्याद् गुरूपोत्तमा-दकञ् / 7 / 1 / 72 / 210 स्वर्णालध्वादेः / 7 / 1 / 69 / 209 खः पदान्तात् प्रागैदौत् / / 4 / 5 / 181 रथक्दे रसदुल्छतोः . / 6 / 4 / 30 / 194 / 3 / 2 / 131 / 142 रणवर्णानो ण एक-शसान्तरे / 2 / 3 ) ) 19 रागाहो रक्ते / 6 / 2 / 1 / 171 राजन्सखेः / 7 / 3 / 1.6 / 157 राष्ट्रक्षत्रियात्-निरन् / / 1 / 114 / 17. राष्ऽनकादिभ्यः / / 2 / 65 / 177 राष्ट्रभ्यः / / 3 / 44 / 185 रुचिक्लप्यर्थधारिभिः-मर्गेषु / 2 / 2 / 15 / 123 रोगात् प्रतीकारे / 7 / 2 / 82 / 226 रो रे लग् दीर्घश्वादिदुतः / / 3 / 41 / 29 रोयः / / 3 / 26 / 23 बसणवीपथस्थंभूतेष्वभिना / 2 / 2 / 3 / 116 Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लध्वक्षरासखी-मेकम् लाक्षारोचनादिकण लि लौ . . अ. पा.. . . सू. पृ. / 3 / 1 / 160 / 153 / 6 / 2 / / 2. / 171 / 1 / 3 / 65 / 15 लुगस्यादेत्यपदे लुगातोऽनापः लोमपिच्छादेः शेलम् लोम्नोऽपत्येषु / 2 / 1 / 113 / 26 / 2 / 1 / 107 / 22 / 7 / ,2 / 28 / 223 / 6 / 1 / 23 / 165 वत्तस्याम् वयसि दन्तस्य दतः वयस्यनन्त्ये वराहादेः कण् वरुणेन्द्र-चान्तः वर्णादब्रह्मचारिणि वर्णाव्ययात् सरूपे कारः वर्षाकालेभ्यः / वहति रथयुगप्रासङ्गात् वाच आलाटो . / 1 / 1 / 34 / 98 / 7 / 3 / 151 / 160 / 2 / 4 / 21 / 106 / / 2 / 95 / 140 / 2 / 4 / 62 / 104 / 7 / 2 / 69 / 225 / 7 / 2 / 156 / 234 / 6 / 3 / 80 / 183 / 7 / 1 / 21 204 / 7 / 2 / 24 / 223 Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (35) ___ अ. पा. सु. पृ. चाली / 1 / 4 / 62 / 59 चान्यतः पुमांष्टादौ स्वरे ची पादः वा बहुव्रीहे: वोऽभिनिविशः चाऽशसि वा युष्मदस्मदो-ममकम् बारे कृत्वस् वाः शेषे वाऽष्टन आः स्यादौ वाहपत्यादयः विकारे विचाले च विष्यस्यनन्येन विनयादिभ्यः विना ते तृतीया च विभक्तिसमीप-व्ययम् विरामे वा विरोधिनामद्रव्याणां-स्वैः विश्वस्तेडिति .. / 2 / 4 / 5 / 102 / 2 / 2 / 22 / 122 / 2 / 1 / 65 / 47 / / 3 / 67 / 185 / 7 / 2 / 109 / 230 / 1 / 4 / 82 / 15 / 1 / 4 / 52 / 63 / 1 / 3 / 18 / 33 / 6 / 2 / 30 / 179 / 7 / 2 / 105 / 229 / 7 / 1 / / 204 / 7 / 2 / 169 / 335 / 2 / 2 / 115 / 121 / 3 / 1 / 39 / 130 / 3 / 1 / 130 / 159 / / 4 / .67 / 201 Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धनः अ. पा. . सू. . . . विंशत्यादेर्वा तमट् / 7 / 1 / 156 / 216 विशेषणं विशेष्येणै-श्च / 3 / 1 / 96 / 139 विशेषणसर्वादिसंख्यं बहुव्रीहौ / 3 / 1 / 150 / 146 वृद्धस्य च ज्यः / 7 / / 35 / 237. वृद्धाद् यूनि .. . / / 1 / 30 / 266 वृद्धिरारदौत् / 3 / 3 / 1 / 5 वृद्धिः स्वरेष्वादेजिति तद्धिते / * / 4 / 1 / 163 / / 3 / 28 / 184 वृद्धो यूना तन्मात्रभेदे / 3 / 1 / 124 / 151 वेतनादेनीवति / / 4 / 15 / 193 वेदसहश्रुतावायुदेवतानाम् / 3 / 2 / 41 / 154 वेयुवोऽस्त्रियाः . / / 4 / 30 / 17 वेविस्तृते शालशाङ्कटौ / / / 123 / 211 वैकत्र द्वयोः / 2 / 2 / .85 / 115 वैकाद् द्वयोनिर्धायें डतरः / 7 / 3 / 52 / 239 वोषं दध्नट् द्वयसट् / 7 / 1 / 142 / 214 वोशनसो नश्चामध्ये सौ / 1 / 4 / 80 / 78 वंशादेर्भागद् हरदहदावहत्पु / 6 / 4 / 166. / 203 वंश्यन्यायोभ्रात्रो-युवा / / 1 / 3 / 111 व्यमनस्यान्त ईः / / 2 / 129 / 111 Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __अ. पा. स. पृ. व्यन्जनेभ्य उपसिक्ते / 6 / 4 / 8 / 193 न्यत्यये लुग् वा / 1 / 3 / 16 / 21 ज्याप्तौ स्सात् / 7 / 2 / 130 / 233 न्याश्रये तमः / 7 / 2 / 81 / 226 ज्याहरति मृगे / / 3 / 121. / 189 बीयर्थतन्दादेरिलश्च / 7 / 2 / 9 / 221 श्रीह्यादिभ्यस्तो / 7 / 2 / 5 / 220 श शकलादेयत्रः / .6 / 3 / 27 / 184 शक्तार्थवषड्नम:-स्वधाभिः / / 2 / 68 / 122 शषसे शषसं वा / 1 / 3 / 6 / 26 शमोऽता सश्च नः पुंसि / 1 / 4 / 49 / 26 शसोनः / 2 / 1 / 17 / 89 शाकटशाकिनो क्षेत्रे / 7 / 1 / 78 / 210 शिखादिभ्य इन् / 7 / 2 / 4 / 220 शिखायाः / 6 / 2 / 76 / 177 शिट्यघोषात् / 1 / 3 / 15 / 20 शिड्हेऽनुस्वारः . . / 1 / 3 / 40 / 18 शिसम् - / / 4 / 17 / 196 Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 38) शिवादेरण शीतोष्णतृषादालुरसहे शीलम् शेषाद् वा शेषे . शेषे __ अ. पा. सू. पृ. / 6 / 1 / 60 / 166 / 7 / 1 / 92 / 211 / 6 / 4 / 19 / 196 / 7 / 3 / 175 / 161 / 2 / 2 / 81 / 119 / 6 / 3 / 1 / 183 / 2 / 1 / / 90 / 6 / 4 / 102 / 199 / 6 / 2 / / 172 / 3 / 1 / 62 / 133 / 2 / 1 / 106 / 60 / 6 / 3 / 84 / 186 शेषे लुक् शोभपाने श्रवणाश्वत्थान्नाम्न्यः श्रितादिभिः श्वन्युवन्मघोनो-व उः श्वसस्तादिः षट्कतिकतिपयात् थट् षष्ठी वाऽनादरे षष्ठ्ययत्नाच्छेषे षष्ट्यादेरसङ्ख्यादेः षष्ठ्या धम्ये षष्ठ्या रूप्यप्-चरटौ / 7 / 1 / 162 / 217 / 2 / 2 / 108 / 128 / 3 / 1 / 76 / 136 / 7 / 1 / 158 / 216 / / 4 / 50 / 196 / 7 / 2 / 80 / 226 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (39) ___ अ. पा. सू. पृ. / 6 / 2 / 9 / 173 / 1 / 3 / 64 / 15 षष्ठ्याः समूहे षि तवर्गस्य स सक्थ्यक्ष्णः स्वाङ्गे / 7 / 3 / 126 / 148 सख्यादरेयण / 6 / 2 / / 88 / 179 सख्युरितोऽशावत् / 1 / 4 / 83 / 34 सङ्ख्याकात् सूत्रे / 6 / 2 / 128 / 181 सङ्ख्याडतेश्वाशत्तिष्टेः कः / 6 / 4 / 130 / 201 सङ्ख्यातैकपुण्य-रात्रेत् / 7 / 3 / 119 / 160 सङ्ख्यादेर्हायनाद् वयसि / 2 / 4 / 9 / 104 सङ्ख्यानां र्णाम् . / 1 / 4 / 33 / 13 सङ्ख्यापूरणे डट् . . / 7 / 1 / 155 / 215 सङ्ख्याया धा / 7 / 2 / 104 / 229 सङ्ख्या समाहारे च-यम् / 3 / 1 / 99 / 151 सङ्ख्यासम्भद्राद् मातुर्मातुर् च / 6 / 1 / / 66 / 167 सङ्ख्यकार्थाद् वीप्सायां शस् / 7 / 2 / 151 / 234 सज्ञा दुर्वा / / 1 / / 6 / 161 सदाऽधुनेदानींतदानीमेतर्हि / 7 / 2 / 96 / 228 सद्योऽद्यपरेचव्यहि / 7 / 2 / 97 / 228 सपत्न्यादौ . . . . . / 2 / 4 / 50 / 108 Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (40) अ. पा. सु. पृ. सपिण्डे वयःस्थानाधिके जीवद्वा। 6 / / 4 / 112 सपूर्वात प्रथमान्ताद् वा / 2 / 1 / 32 / 95 सप्तमी चा विमागे निर्धारणे / 2 / 2 / 109 / 120 सप्तमी शौण्डायै / 3 / 1 / 8 / 137 सप्तम्यधिकरणे / / 2 / 2 / 95 / 119 सप्तम्याः / 7 / 2 / 94 / 228 समयात् प्राप्तः / 6 ! 4 / 124 / 200 समर्थः पदविधिः / 7 / 1 / 122 / 129 समानादमोऽसः / 1 / 4 / 46 / 26 समानानां तेन दीर्घः . / 1 / / / 9 समानानामधेनैकः शेषः / 3 / 1 / 118 / 151 समूहार्थात् समवेते / / 4 / 46 / 195 सम्प्रोन्नेः संकीर्ण-समीपे / 7 / 1 / 125 / 212 सम्राजः क्षत्रिये / 6 / 1 / 101 / 169 सर्वादिविष्वग्देवाद-न्यौ / 3 / 2 / 122 / 71 सर्वादेः सर्वाः / 2 / 2 / 119 / 125 सर्वादेः स्मैस्मातो / 1 / 4 / 7 / 29 सर्वोशसङ्ख्याव्ययात् / 7 / 3 / 118 / 159 सर्वोमयाभिएरिणा तसा / 2 / 2 / .35 / 115 सस्य शषौ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहाय भ, पा. सू. पृ. सहसमः सधिसमि / 3 / 2 / 123 / 72 सहस्तेन / 3 / 1 / 24 / 141 सहस्य सोऽन्याथें / 3 / 2 / 113 / 141 / 2 / 2 / 15 / 122 साधुपुष्यत्पच्यमाने / 6 / 3 / 117 / 188 सायंचिरंप्राणेनगेऽव्ययात् / / 3 / 8 / 187 साऽस्य पौर्णमासी / 6 / 2 / 98 / 172 सिद्धिः स्याद्वादात् सिध्मादिक्षुद्रनन्तुरुग्भ्यः / 7 / 2 / 21 / 222 सुतजमादेरिञ् . / 6 / 2 / 85 / 108 सुपन्ध्यादेयः / 6 / 2 / 84 / 178 सुपूत्युत्सुरभेर्गन्धादिद् गुणे / 7 / 3 / 144 / 147 सुस्नातादिभ्यः पृच्छति !6 / 4 / 42 / 195 सूर्याद देवतायां वा / 2 / 4 / 64 / 105 सेनान्तकारुलक्ष्मणादिञ् च / 6 / 1 / 102 / 169 सो रुः / 2 / 1 / 72 / 25 सोऽस्य ब्रह्मचर्यतद्वतोः / 6 / 4 / 116 / 200 सोऽस्य मुख्यः / 7 / 1 / 190 / 218 संशयं प्राप्ते झये / 6 / 4 / 93 / 198 संस्कृते संस्कृते भक्ष्ये / 6 / 2 / 140 / 182 Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (42) अ. पा.. सु. पृ. संसृष्टे !6 / 4 / 5 / 192 स्त्यादिविभक्तिः / / 1 / 19 / 24 स्त्रिया ङितां वा दैदास्दास्दाम् / 1 / 4 / 28 / 45 स्त्रियां नृतोऽस्वस्रादेमः / 2 / 4 / 1 / 101 स्त्रियाः पुंसो द्वन्द्वाच्च . / 7 / 3 / 96 / 158 स्त्रियामूधसो न / 7 / 3 / 169 / 148 स्त्रियाम् / 1 / 4 / 93 / 46. स्त्रीदूनः स्थूलदूरयुक्हस्व-नामिनः / 7 / ,4 / 42 / 337 स्यादावसत्येयः / 3 / 1 / 119 / 151 स्यादेरिवे / 7 / 1 / 52 / 207 स्रंसध्वंस्क्वस्सनडुहो दः / 2 / 1 / 68 / 55 स्वतन्त्रः कर्ता / 2 / 2 / 2 / 111 स्वराच्छौ / 1 / 4 / 65 / 49 स्वरादयोऽव्ययम् / 1 / 1 / 30 / 97 स्वरादुतो गुणादखरोः / 2 / 4 / 35 / 115 स्वरेभ्यः / 1 / 3 / 25 / 17 स्वरे वा / 1 / 3 / 24 / र स्वरे वाऽनक्षे / 1 / 2 / / 29 / 9 स्वाङ्गाद् डी तिश्चामानिनि / 3 / 2 / 56 / 143 Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (43) स्वाद मिन्नीशे स्वामीश्वराधिपति-प्रसूतैः स्वैरस्वैयक्षौहिण्याम् स्सटि समः अ. पा. सु. पृ. / 7 / 2 / 49 / 224 / 2 / 2 / 98 / 121 / 1 / 2 / 15 / 10 / 1 / 3 / 12 / 19 हनो नो नः . / 2 / 1 / 112 / 62 हरत्युत्सङ्गादेः . / 6 / 4 / 23 / 194 हलसीरादिक / 7 / 1 / 6 / 204 हितादिभिः / 3 / 1 / 71 / 135. हिमादेलुः सहे / 7 / 1 / 90 / 211 हेतुकर्तृकरणेत्यम्भूतलक्षणे / 2 / 2 / 14 / 117 हेतौ संयोगोत्पाते . . / 6 / 4 / 153 / 202 हेत्वथै स्तृतीयाद्याः / 2 / 2 / 118 / 125 हो धुट्पदान्ते . / / 1 / 82 / 57 इस्वस्य गुणः / 1 / 4 / 41 / 33 इस्वाद् ङणनो द्वे / 1 / 3 / 27 / 17 / 1 / 4 / 32 / 27 000000000000000000CDA 8 धर्मदीपिकायाः पूर्वाधस्य सूत्रानुक्रमणिका समाप्ता। 6.000000000000000.. इस्वापश्च Page #307 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वार्धस्य शुद्धिपत्रकम्। अशुदम् सद्भ و चवर्ण و शुद्धम् सद्भू चवर्ग दीर्घः . स्वर-वर्णस्य दीवः 9 17 م स्वर-वर्णस्थ س وه वाक् वाक वाड م वाङ् वर्तमानात् ccccc - वर्तमानात مه तत् سر स्वात वतमानस्य स्यात् वर्तमानस्य به سر به शकारः سر سر पकारः . . .15 मवानशूरः, मवाञ्चारः 1. पुंस्कोकिलः .. 17 . गणनां . 17 कोलिल: गणना Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ अशुद्धम् शुद्धम् ___22 - 7 अघोर अत्र = अघोर अत्र 1 / 1 / 27 / पर्वः ___ 23 ___24 28 40 25 19 20 क्रोष्ट्वोः तचोऽमावाद् धति क्रोष्ट्रोः क्रोष्ट्वोः तृचोऽभावाद् धृति = x श्रिय श्रियं 4 श्रिय भ्रः श्रियै 2 4 / 8 भ्रवः भ्रभ्यः भ्रवः भ्रूभ्यः 8 प्रियाष्टाः प्रियाष्टानः 8 6 2 4 यत्र नसादेशः क्लीबन्ते दीघः ऋद्वद् काय 74 2 नसादेशः क्विबन्ते दीर्घः ऋद्वद् कार्य : यवानी 4 94 / 16 यवनी Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (47) 2 128 तृण्या 174 अशुद्धम् शुद्धम् तुरंगमेण ब्राह्मणः तुरङ्गमं ब्राह्मणः 115 बहुषु साधुषु बहुष्वसाधुषु द्वितीयभार्यः द्वितीयामार्यः 143 ऋग्वेन दृष्ट क्रुश्चेन दृष्टं 172 तण्या यथ० . द्यर्थ. पाच्यं प्राच्यं 183 ध्रवेऽयें ममीपे यषां लध्वादिः समीपे येषां 209 परणी पूरणी षष्ठयथ मत्वय मत्वथें 224 पयभेः- पर्यः कि द्वयादि सर्वाद्यो०- ‘किमद्वयादिसर्वाद्यवे. 229 13 ध्रुवेऽर्थे षष्ठ्य र्थे 226 Page #311 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // अहम् // नमो नमः श्रीप्रभुधर्मसूरये / * धर्मदीपिका * उत्तरार्द्धम्। अथाख्यातप्रक्रिया निरूप्यते क्रियार्थों धातुः / 3 / 3 / 3 / क्रिया प्रवृत्तिापार इत्यर्थः, सोऽर्थो येषां तेषां धातुसन्जा भवति / ते च त्रिविधाः परस्मैपदिन आत्मनेपदिन उभयपदिन नधेति / - . . . . . . ...... - न प्रादिरपत्ययः / 3 / 3 / 4 / चाद्यन्तर्गणो यः प्रादिः स धातोरवयवो न भवति / इङितः कर्तरि / 3 / 3 / 22 / / . इकारतो डकारेतश्च धातोः फलवति कर्तरि सति आत्मनेपदं भवति / ईगितः / 3 / 3 / 95 / Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईकारेतो गकारेतश्च धातोः कर्तर्यात्मनेपदं वा भवति / शेषात् परस्मै / 3 / 3 / 100 / पूर्वोक्तनिमित्तरहिताद् धातोः कर्तरि परस्मैपदं भवति / नवाऽऽद्यानि शतृक्वसू च परस्मैपदम् / 3 / 3 / 19 / सर्वासां विभक्तीनां मध्ये आद्यानि नव नव वचनानि शतृक्वसू च प्रत्ययौ परस्मैपदं भवति / पराणि कानानशौ चात्मनेपदम् / 3 / 3 / 20 / सर्वासां विभक्तीनां मध्ये पराणि नव नव वचनानि कानानशौ च प्रत्ययौ आत्मनेपदं भवति / वर्तमानातिय, तस्, अन्ति; सिक् , थस् , थ; मिन् , वस् , मस् / ते, आते, अन्ते से, आथे, ध्वे; ए, वहे, महे / 3 / 3 / 6 / तिवादीनां वर्तमानासञ्ज्ञा भवति, केषांचिद् मते एवां सज्ञा लट् / प्रारब्धापरिसमाप्तो वर्तमानस्तदर्थाद् धातोर्वर्तमाना विधेया / त्रीणि त्रीण्यन्ययुष्मदस्मदि / 3 / 3 / 17 / / सर्वासां विभक्तीनां त्रीणि त्रीणि वचनानि अन्यस्मिन्नयें युष्मदर्थेऽस्मदर्थे च वाच्ये यथाक्रमं भवन्ति / प्रथमपुरुष-मध्यमपुरुषोत्तमपुरुष इति अन्य-युष्मदस्मदां यथाक्रमं नामान्तराणि / अन्यस्मिन् वाच्ये-स पचति, तौ पचतः, ते पचंन्ति / युष्मदि Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वं पचसि, युवों पचयः, यूयं पचथ / अस्मदर्थे-अहं पचामि, आवां पचावः, वयं पचामः / एवं सर्वत्र / द्वयोः त्रयाणां चा युगपद योगे सूत्रापेक्षया पराश्रितमेव वचनम् स च त्वं च पचयः, अत्र,पचत इति न भवति, सूत्रे युष्मदः परपठितत्वेन तदाश्रितस्यैव द्विवचनस्य भवनात् / स च त्वं चाहं च पचामः / - एकद्विबहुषु / 3 / 3 / 18 / अन्यादिषु यानि त्रीणि त्रीण्युक्तानि तानि एकद्विबहुष्वर्थेषु यथासंख्यं भवन्ति / अर्थादेकस्मिन्नर्थे एकवचनं द्वयोर्द्विवचनं बहुषु च बहुवचनम् / 'मू सत्तायाम् ' भू इति परस्मैपदिनो धातोः कर्तरि तिवादयो भवन्ति / तत्रैकत्वविवक्षायां भू+तिव् इति स्थिते कारो वित्कार्यार्थः / कर्तर्यनद्यः शत् / 3 / 4 / 71 / अदादिवर्जाद् धातोः कर्तरि शव् प्रत्ययो भवति शिति परे / शकारवकारौ शिद्वित्कार्यायौँ / भू+अ+ति इति स्थिते गुणोऽरेदोत् / 3 / 3 / 2 / / अर् एत् ओत् एते प्रत्येकं गुणसञ्जका भवन्ति / नामिनो गुणोऽक्ङिति / 4 / 3 / 1 / किद्विर्जिते प्रत्यये परे नाम्यन्तस्य धातोर्गुणो भवति, स चासन्नः। भो+अ+ति अवादेशे भवति / द्वित्वविवक्षायां भवतः। बहुत्वे भव+अन्ति “लुगस्यादेत्यपदे ' भवन्ति / मध्यमपुरुषैकव Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चने भवसि, द्विवचने भवथः, बहुवचने भवथ / उत्तमपुरुषैकवचने भव, मि इति स्थिते . मव्यस्याः / 4 / 2 / 113 / ... धातोविहिते वादौ मादौ प्रत्यये परेऽकारस्याकारो भवति / भवामि, भवावः, भवामः / अन्यपुरुषेऽन्यत्वं युष्मदस्मच्छब्दापेक्ष तथा. च भवच्छब्देनोच्यमानो न युष्मदर्थः / भवान् भवति, भवन्तौ भवतः, भवन्तो भवन्ति / विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थने / 5 / 4 / 28 विधिः क्रियायां प्रेरणा, यस्याः प्रेरणायाः प्रत्याख्याने प्रत्यवायस्तन्निमन्त्रणम् , यस्यां प्रेरणायां प्रत्याख्याने कामचारस्तदामन्त्रणम् , सत्कारपृर्विका प्रेरणा अधीष्टम् , संप्रधारणा संप्रमा, याचा प्रार्थनम् / विध्यादिविशिष्टेषु कर्तृकर्मभावेषु प्रत्ययार्थेषु सप्तमीपञ्चम्यौ भवेताम् / सप्तमी यात् याता युस् , यास् यातं यात, यां याव याम / ईत ईयाताम् इरन, ईथास् ईयाथाम् ईध्वम् , ईय ईवहि ईमहि / 3 / 3 / 7 / यातादीनां सप्तमीसम्ज्ञा भवति, अन्येषां मते विधिलिसम्ज्ञा / भव+यात् इति स्थिते... या सप्तम्याः / 412 // 122 / / . अकारात् परस्य सप्तम्या याशब्दस्य इकारादेशो भवति / Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) 5 अवर्णस्येवर्णादिना ' इति भवेत् , भवेताम् / भवायुम् इति स्थिते याम्युसोरियमियुसौ / 4 / 2 / 123 / ' अकारात् परयोर्यामियुसोर्यथासंख्यमियमियुसौ भक्तः / मवेयुः / भवेः, भवेतम् , भवेत / भवेयम् , भवेव, भवेम / पञ्चमी तुव् , ताम् , अन्तु; हि, तम् , त; आनिव, आवद, आमव् / ताम् , आताम् , अन्ताम् ; स्व, आथाम, ध्वम्। ऐव, आवहैव्, आमहैव् / 3 / 3 / 8 / - तुवादीनां पन्चमीसज्ञा भवति / वकारा विकार्यार्थाः / भवतु / ' आशिषि तुड्योस्तातङ् / 4 / 2 / 119 / ...' आशीरर्थयोस्तुह्योस्तातङ् वा भवति / भवतात् , भाताम्, भवन्तु / / अतः प्रत्ययाल्लुक् / 4 / 2 / 85 / - धातोः परो योऽदन्तप्रत्ययस्तस्मात् परस्य हेलु भवति / भव, भवतात्, भवतम्, भवत / भवानि, भवाव, भवाम / प्र मवानि, अन्तर्+भवानि इति स्थिते- ... अदुरुपसर्गान्तरो णहिनुमीनाने / 2 / 3 / 77 // Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) दुर्वर्जितोपसर्गस्थादन्तःशब्दस्थाच्च रणवर्णात् परस्य णोपदेशस्य धातोः हिनुमीनानीनां च नकारस्य णो भवतिः / प्रमवाणि, अन्तर्भवाणि / दुर्वर्जनात् दुर्भवानि / प्र+नि+भवति इति स्थिते अकखाद्यपान्ते पाठे वा / 2 / 3 / 80 / पाठे धातूपदेशे ककारादिः खकारादिः षकारान्तश्च यो धातुस्तदन्यस्मिन् धातौ परे अदुरुपसर्गान्तःस्थाद्रादेः. परस्य ने कारस्य णो वा भवति / प्रणिभवति पक्षे प्रनिमवति / . प्रैषाऽनुज्ञाऽवसरे कृत्यपञ्चम्यौ / 5 / 4 / 29 / न्यत्कारपूर्विका प्रेरणा प्रैषः, कामचारोऽनुज्ञा, अवसरः प्रातकालता / एष्वर्थेषु धातोः कृत्यप्रत्ययाः पञ्चमी च भवति / अनद्यतने ह्यस्तनी / 5 / 2 / 7 / आन्याय्यादुत्थानादान्याच्याच संवेशनादहरुभयतः सार्धरात्रं वाऽद्यतनकालः तस्मिन्नसति भूतेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः शस्तनी विभक्तिर्भवति / हस्तनी दिव् , ताम्, अन् ; सिन्, तम्, त; अम्ब् , व, म / त, आताम् , अन्त; थास् , माथाम्, ध्वम् ; इ, वहि, महि / 3 / 3 / 9 / इमानि वचनानि शस्तनी भवन्ति, पाणिनीये त्वेषां सन्ना लङ् / एकत्वविवक्षायां भू+अ+दि इति स्थिते. Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (7) अड् धातोरादिास्तन्यां चामाङा / 4 / 4 / 29 / ... ह्यस्तन्यामद्यतन्यां क्रियातिपत्तौ च परे धातोरादिरड् भवति / न तु माङो योगे / अ+भू+अ+दि इति स्थिते गुणे अमवद्, अभवताम् , अभवन् / अभवः, अभवतम् , अभवत / अभवम् , मभवाव, अभवाम / एताः शितः / 3 / 3 / 10 / वर्तमाना सप्तमी पञ्चमी शस्तनी एताः शितो भवन्ति सकारानुबधा वेदितव्या इत्यर्थः / तेन जुहोतीत्यादयः सिद्धाः / .. परोक्षे / 5 / 2 / 12 / / भूतानद्यानपरोक्षार्थाद् धातोः परा परोक्षा भवति / परोक्षा णव, अतुस् , उस् ; थक्, अथुस, अ णव, व, म / ए, आते, इरे से, आथे, वे ए, वहे, . . महे / 3 / 3 / 12 / एते णवादयः प्रत्ययाः परोक्षासज्ञा भवन्ति, पाणिनीये तु लिटमञ्ज्ञा / भू+गव् इति स्थिते णकारवकारौ णिद्वित्कार्याथा। द्विर्धातुः परोक्षाङे प्राक्तु स्वरे स्वरवियः / 4 / 1 / 1 / __परोक्षायां डे च प्रत्यये धातुर्भिवति / स्वर.दौ द्वित्वनिमित्ते प्रत्यये परे तु स्वरस्य कार्यात् प्रागेव / भू++अति स्थिते द्वितीयतुर्ययोः पूर्वी / 4 / 1 / 42 / . . धातोदित्वे सति पूर्वस्य हिती स्य याने आदः, तुर्यस्य च Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थाने तृतीयश्च आसन्नो भवति / इति भकारस्य बकारे बू+भू+अ इति स्थिते भूस्वपोरदुतौ / 4 / 1 / 70 / .: - भूस्खपोः परोक्षायां द्वित्वे सति.पूर्वस्य यथासंख्यमदुतौ भवतः / ब+भू+अ इति स्थिते 'धातोरिवणोवर्ण- इत्यादिना उवादेशे सति भुवो वः परोक्षाऽद्यतन्योः / 4 / 2 / 43 / वकारान्तस्य भुव उपान्त्यस्य परोक्षायामद्यतन्यां च उद् भवति / बभूव / .. इन्ध्यसंयोगात् परोक्षा किद्वत् / 4 / 3 / 11 / ... . इन्धेरसंयोगान्ताच्च धातोः परा याऽवित् परोक्षा सा किद्वद् भवति / बभूवतुः, बभूवुः / ब+भू+थव् इति स्थिते- . स्क्रसृभृस्तुद्रश्रुस्रोळअनादेः परोक्षायाः / 4 / 4 / 81 / ., 5 .स्कृगः स्रादिवर्जेभ्यः सर्वधातुभ्यश्च व्यञ्जनादेः परोक्षाया इड् भवति / शेषं पूर्ववत् बभूविथ, बभूवथुः बभूव / बभूव, बभूविव, बभूविम / आशिष्याशीः-पञ्चम्यौ / 5 / 4 / 38 / - आशीविशिष्टार्थाद् धातोराशीः पञ्चमी च भवति / आशीः क्यात् , क्यास्ताम् , क्यासुस्; क्यास, क्यास्तम् , . क्यास्त ; क्यासम्, क्यास्वं, क्यास्म / सीष्ट, सीयास्ताम्, सीरन; सीष्ठाम, सीयास्थाम्, सीध्वम् सीय,सीवहि, सीमहि / 3 / 3 / 13 / Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ इमानि वचनानि आशीः भवन्ति, पाणिनीये शास्त्रे आशीलिङ्सज्ञा / कित्त्वाद् गुणाभावः / भूयात् , भूयास्ताम, भूपासु भूयाः; भूयास्तम्, भूयास्त; भूयासम्, भूयास्व, भूयास्म / __ अनद्यतने श्वस्तनी / 5 / 3 / 6 / नास्त्यद्यतनो यस्मिन् तस्मिन् वय॑त्यर्थे वर्तमानाद्धातो: परा श्वस्तनी भवति / श्वस्तनी ता, नारौ, तारम् ; तासि, तास्थस्, तास्था तास्मि, तास्त्रस, तास्मस् / ता, तारो, तारस् ; तासे, तासाये, ..तावे; ताहे, तास्वह, तास्महे / 3 / 3 / 14 / इमानि वचनानि श्वस्तनी भवन्ति, पाणिनीये मते मां लुट् सज्ञा / भू+ता इति स्थिते. स्तायशितोऽत्रोणादेरिट् / 4 / 4 / 32 / .... धातोः परस्य सादेः तादेश्वाशित आदिरिड् भवति / गुमेऽवादेशे च भविता, भवितारौ, भवितारः / भवितासि, भवितास्था, भवितास्थ; भवितास्मि, भवितास्वः, भवितास्मः / . भविष्यन्ती / 5 / 3 / 4 / ___वपदर्थाद् धातोः परा भविष्यन्ती भवति / क्रियायां क्रियार्थायां तुम् णक भविष्यन्ती / 6 / 313 // यस्माद् धातोस्तुमादिविधानं तद्धातुवाच्या क्रिया अपः Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) प्रयोजनं यस्याः तस्यां क्रियायामुपपदे वय॑दर्थाद्धातोः तुम्-णकच्-भविष्यन्त्यो भवन्ति / भविष्यन्ती स्यति, स्यतस्, स्यन्ति; स्यसि, स्यस्थस, स्यथ; स्यामि, स्यावस् , स्यामस / स्यते, स्येते, स्यन्ते स्यसे, स्येथे, स्यध्वे; स्ये, स्यावहे, स्यामहे / 3 / 3 / 15 // भविष्यति, भविष्यतः, भविष्यन्ति / भविष्यसि, भविष्यथः, भविष्यथ / भविष्यामि, भविष्यावः, भविष्यामः / सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तौ क्रियातिपत्तिः। 5 / 4 / 9 / सप्तम्या अर्थो निमित्तं हेतुफल-कथनादिसामग्री / कुतश्चिद् वैगुण्यात् क्रियाया अनभिनिवृत्तिः क्रियातिपत्तिः, तस्यां सत्यां भविष्यदर्थाद् धातोः सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तिर्भवति / क्रियातिपत्तिः स्यत्, स्यताम् , स्यन् ; स्यम्, स्यतम्, स्यत स्यम्, स्याव, स्याम। स्यत, स्येताम्, स्यन्त; स्यथास, स्येथाम, स्यध्वम् ; स्ये, स्यावहि, स्यामहि / 3 / 3 / 16 / इमानि वचनानि क्रियातिपत्तिः भवन्ति, पाणिनीये लङ् इति सज्ञा। 'अड् धातोरादि' इति अडागमे इटि गुणेऽवादेशे च अभविष्यत्, अभविष्यताम् , अभविष्यन् / अभविष्यः, अभविप्यतम्, अभविष्यत / अभविष्यम्, अभविष्याव, अभविष्याम / अभविष्यद् युद्धशान्तिरिदानी समयं वस्तु समागमिष्यत् / / Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * अद्यतनी।५।२।४। . भूतेऽर्थे वर्तमानाद् धातोरद्यतनी भवति / अद्यतनी दि, ताम, अन्; सि, तम्, त; अम्, व, म / त, आताम्, अन्त; थास्, आथाम्, ध्वम् ; इ, वहि, महि / इमे प्रत्यया अद्यतनी भवन्ति, पाणिनीये तन्त्रे एषां लुडिति सज्ञा / भू+दि इति स्थिते-- सिजद्यतन्याम् / 3 / 4 / 53 / . धातोः परः सिच् भवति, अद्यतन्यां परस्याम् / भू+स+दि इति स्थिो-' अड् धातोरादिः ' इत्यादिनाऽडागमे अभू+स्+दि इति स्थितेपिवैतिदाभूस्थः सिचो लुप् परस्मै न चेड्। 4 / 3 / 66 / देति दासब्जा धातवो ग्राह्याः / पिब् इण् दा भू स्था इत्येतेभ्यः परस्य परस्मैपदस्य सिचो लुब् भवति / लुबयोगे न चेट / सिचो लुपि गुणे प्राप्ते. भवतेः सिज्लुपि। 4 / 3 / 12 / . भुवः सिचो लुपि गुणो न भवति / अभूत् , अभूताम्,अभू+: अन् इति स्थिते उवादेशे उपान्त्यस्योत्त्वे अभूवन् / अभूः, अभूतम्, अभूत / अभूवम् , अभूव, अभूम / 'भूङ् प्राप्तौ' इति त्वात्मनेपदीति भवते, भव+आते इति स्थिते Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . (12) आतामाते आथामाथे आदिः / 4 / 2 / 121 / . अकारात् परेषामेषामात इः भवति / ' अवस्येवर्णादिना " इत्येकारे भवेते, भवन्ते / भसे, भोथे भवध्वे / भवे, भवावहे, भवामहे / सप्तम्यां भवेत भवेयाताम् भवेरन् / भवेथाः भवेयाथाम् , भवेध्वम् / भवेय, भवेवहि, भवेमहि / पञ्चन्यां भवताम्, भवेताम्, भवन्ताम् / भवस्व, भवेथाम् , भवध्वम् / भवै, भवावहै, भवामहै / ह्यस्तन्याम्-अडागमे अभवत, अभवेताम्, अभवन्त / अभवथाः, अमवेथाम् , अभवध्वम् / अभवे, अभवावहि, अभवामहि / परोक्षायाम्-बभूवे, बभूवाते, बभूविरे / बभूविषे 'स्क्रसृवृ-' इतीड, बभूवाथे, बभूविध्वे पक्षे ... हान्तस्थानीड्भ्यां वा / 2 / 1 / 81 / .. हकारादन्तस्थायाश्च परो यो निरिड् च ताभ्यां , परासां परोक्षाऽद्यतन्याशिषां धो ढ् वा भवति / बभूविढ्वे / बभूवे, बभू विवहे, बभूविमहे / आशिषि भविषीष्ट, भविषीयास्ताम्, भविषीरन् / भविषीष्ठाः, भविषीयास्थाम् , भविषीढ्वम् , भविषीध्वम् / भविषीय, भविषीवहि, भविषीमहि / श्वस्तन्या -भविता,भवितारौ,भवितारः / भवितासे, भवितासाथे, भविताये / भविताहे, भवितास्वहे, भवितास्महे / भविष्यन्त्याम्-भविष्यते, 'भविष्येते, भविष्यन्ते / भविष्यसे, भविष्येथे, भविष्यध्वे / भविष्ये, भविष्यावहे, भविष्यामहे / क्रियातिपत्तौ-अभविष्यत, अभविष्ये Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (13) ताम्, अभविष्यन्त। अभविष्यथाः, अभविष्येथाम् ,अभविष्यध्वम्। अभविष्ये, अभविष्यावहि, अभविष्यामहि / अद्यतन्याम्-अडा-. गमे सिचि इटि गुणे च अभविष्ट, अभविषाताम्, अभविष+अन्त इति स्थिते अनतोऽन्तोऽदात्मने / 4 / 2 / 114 / अनतः परस्यात्मनेपदस्यान्तोऽद् भवति / अभविषत / अभः विष्ठाः, अभविषाथाम, अभविध्वम् अभविवम् / अभविषि, अभ। विष्वहि,अभविष्महि / 'पा पाने? परस्मैपदी, वर्तमानकालविवक्षायां वर्तमानायां शवि पा+अ+ति इति स्थितेश्रौतिकवुधिषुपाघ्राध्मास्थाम्नादाम्दृश्यर्तिशदसदः शृकृधिपिबजिघ्रधमतिष्ठमनयच्छपश्यर्छशीयसीदम् / 4 / 2 / 108 / ... अत्यादौ शिति परे श्रौत्यादिनां श इत्यादयों यथाक्रममादेशा भवन्ति / पिबादेशे पिबति, पिबतः, पिबन्तिः / पिबसि पिषथः, पिबथ / पिबामि, पिबावः, पिबामः / सप्तम्यां पिबेत, पिबेताम् , पिवेयुः। पिबेः, पिबेतम्, पिनेत / पिबेयम्, पिवेव / पिबेम / पञ्चम्यां पिबतु पिबतात्, पिबताम्, पिजन्तु / पिबतात् पित्र, पिबतम् , पिबत / पिबानि, पिबाव, पिबाम / ह्यस्तन्याम्अपिबत् , अपिबताम्, अपिबन् / अपिबः, अपिबतम्, अपिबत। अपिबम्, अपिबाव, अपिबाम / परोक्षायां पा+णव् इति स्थिते. द्वित्वे पा+मा+गव् इति स्थिते Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (14) इस्वः / 4 / 1 / 39 / . . धातोद्वित्वे सति पूर्वस्य हूस्वो भवति / ५+पा+णव् इति स्थिते आतो गव औः / 4 / 2 / 120 / आकारान्तधातोः परस्य णव औ इत्यादेशो भवति / पपौ। 'पपा+अतुस् इति स्थिते इडेत्पुसि चातो लुक् / 4 / 3 / 94 / कित्यशिति स्वरे इटि एति पृसि च परे आदन्तस्य धातोराकारस्य लुग् भवति / पपतुः, पपुः / पपा+थ इति स्थितेसृजिशिस्कृस्वरात्वतस्तृनित्यानिटस्थंवः / 4 / 4 / 78 / - सृजिशिभ्यां स्कृगः स्वरान्तादत्वतश्च तृचि नित्यानिटो विहितस्य थव आदिरिड् वा भवति / आकारलुकि पपिथ पक्षे पपाथ, पपथुः, पप / पपौ, पपिर, पपिम / आशिषि-पा+गात् इति स्थिते गापास्थासादामाहाकः / 4 / 3 / 96 / एषामन्तस्य विडत्याशिषि परे ए: भवति / पेयात् , पेयास्वाम् , पेयासुः / पेयाः, पेयास्तम्, पेयास्त / पेयासम्, पेयास्त्र, पेयास्म / श्वस्तन्यां पा+ता इति स्थिते, इटि प्राप्ते एकस्वरादनुस्वारेतः / 4 / 4 / 66 / Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकस्वरादनुस्वारेतो धातोविहितस्य स्ताशित आदिरिड् नं भवति / पाता, पातारौ, पातारः / पातासि,पातास्थः,पातास्थ / पातास्मि, पातास्वः, पातास्मः / भविष्यन्त्याम-पास्यति, पास्यतः, पास्यन्ति / पास्यसि, पास्यथः, पास्यथ / पास्यामि, पास्यावः, पास्यामः / क्रियातिपत्तौ-अपास्यत् , अपास्यताम्, अपास्यन्। अपास्यः, अपास्यतम् , अपास्यत / अपास्यम्, अपास्याव, अपास्थाम / अद्यतन्यां दिपरे सिचि अडागमे सिचो लुपि इडोभावे च भपात्, अपाताम् , अपा+अन् इति स्थिते सिज्विदोऽभुवः / 4 / 2 / 92 / ... सिचः प्रत्ययाद् विदश्च धातोः परस्यानः पुस् भवति / न तु मुंवः / अपुः / अपाः, अपातम्, भपात / अपाम्, अषाव, अपाम। अथ शिष्यबुद्धिवैशद्यार्थमनिटप्रकरणमुच्यतेश्विश्रिडीशीयुरुक्षुक्ष्णुणुस्नुभ्यश्च वृगो वृङः / उदृदन्तयुजादिभ्यः स्वरान्ता धातवोऽपरे // 1 // पाठ एकस्वराः स्युर्येऽनुस्वारेत इमे स्मृताः / द्विविधोऽपि शकिश्चैवं वचिर्विचिरिची पचिः // 2 // सिञ्चतिर्मुचिरतोऽपि पृच्छति भ्रस्निमस्जिमुनयो युजियनिः। ध्वञ्जिरञ्जिरुजयो निनिर्विज्रः पञ्जिभञ्जिमजयः सृजत्यनी // 3 // स्कन्दिविद्यविद्लवित्तयो नुदिः स्विद्यतिः शदिसदी मिदिछिदी। तुद्यदी पदिहदी खिदिक्षुदी राधिसाधिसुधयो युधिन्यधी॥ 4 // Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन्धिबुध्यरुधयः धिक्षुधी सिध्यतिस्तदनु हन्तिमन्यती / आपिना तपिशपिंक्षिपिछुपों लुम्पतिः मृपिलिपी वपिस्वपीं // 5 // यभिरभिलभियमिरमिनमिगमयः क्रशिलिशिरुशिरिशिदिशतिदशयः। पशिमृशतिविशतिदृशिशिष्लशुषयस्त्विषिपिषिविप्लकृषितुषिदुषि . पुषयः // 6 // श्लिष्यतिविषिरतो घसिवसती रोहति हिरिही अनिड् गदितौ / देग्धिदोग्धिलिहयो मिहिवहती नातिर्दहिरिति स्फुटमनिटः // 7 // __अनिट्कारिकायाः संक्षेपतोऽर्थः प्रदर्श्यते-दर्शितात् परे ये स्वरान्ता धातवस्ते सर्वेऽनिटः स्युः, ये च दर्शिताः श्चि आदयस्ते सेटः, दीर्घोकारान्ते दीर्घारान्ते च युनादौ च सर्वे सेटः / पाठेधातुपाठेऽर्थादुपदेशावस्थायां ये एकस्वरा अनुस्वारेतश्च धातवस्ते सर्वेऽनिटो भवन्ति / व्यजनान्ते तु ये दर्शितास्ते सर्वेऽनिटः स्फुरन्ये सेटः स्युरिति / __घां गन्धोपादाने-वर्तमानकालविवक्षायां तिवि शवि श्रौतिकृवु ' इत्यादिना निघ्रादेशे जिघ्रति, निम्रतः, जिघ्रन्ति / जिघ्रसि, निघ्रयः, जिघ्रथ / जिघ्रामि, जिघ्रावः, जिघ्रामः। सप्तमी जिप्रेत्। पञ्चमी निघ्रतु / ह्यस्तनी अडागमे अजिघ्रत्, अजिघ्रताम्, अजिनन् / अजिघ्रः,अजिघ्रतम्, अजिघ्रत / अजिघ्रम्, अजिघ्राव, अजिघ्राम / परोक्षा-घ्रा+णव् द्वित्वे पूर्वस्य हूस्वे 'द्वितीयतुर्ययोः पूर्वी ' इति घकारस्य गकारे Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (17) गहोजः।४।१।४० / द्वित्वे सति पूर्वस्य गकारहकारयो देशो भवति / जघ्रा+णवू इति स्थिते ' आतो णव औः ' इति णवः स्थाने औकारादेशे जघ्रौ / ' इडेत्पुसि चातो लुक्' इत्याकारस्य लुकि जघ्रतुः, जः। जघ्रिथ जघ्राथ, जघ्रथुः, जघ्र / जघ्रौ, जघ्रिव, जघ्रिम / आशिषिघा+यात् इति स्थिते संयोगादेर्वाऽऽशिष्यः / 4 / 3 / 95 / / संयोगादेरादन्तस्य धातोः ङिति आशिषि एकारो वा भवति / प्रेयात् , घेयास्ताम् , घेयासुः। घेयाः प्रेयास्तम् , प्रेयास्त / प्रेयासम् , प्रेयास्व, घेयास्म / पक्षे घायात, घ्रायास्ताम्, घ्रायासुः / श्वस्तनी-घ्राता, घातारौ, घ्रातारः / घ्रातासि घातास्थः घातास्थ / घ्रातास्मि घातास्वः घातास्मः / भविष्यन्तीघ्रास्यति, घास्यतः, घ्रास्यन्ति / घ्रास्यसि, घ्रास्यथः, घास्यथ / भ्रास्यामि, घ्रास्यावः, घ्रास्यामः / क्रियातिपत्तिः--अघ्रास्यत्, अघ्रास्यताम्, अघ्रास्यन् / अघ्रास्यः, अघ्रास्यतम्, अघ्रास्यत / अघ्रास्यम्, अघ्रास्याव, अघ्रास्याम / अद्यतन्याम् धेघाशाच्छासो वा / 4 / 3 / 67 / " एभ्यः परस्य सिचो लुब् वा भवति परस्पैपदे। लुब्योगे बेड न भवति / अघ्रात् , अघ्राताम्, 'सिजविदोऽभुवः / अघ्रः। अघ्राः अघातम्, अघ्रात / अघ्राम्, अघ्राव, अघ्राम / पक्षे 2 Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (18) यमिरमिनम्यातः सोऽन्तश्च / 4 / 4 / 86 / एभ्य आकारान्तेभ्यश्च परस्य परस्मैपदे सिच आदिरिड् भवति / एषां च सोऽन्तः / अडागमे अघ्रा+स+३+स+द् इति स्थिते सः सिजस्तेर्दिस्योः / 4 / 3 / 65 / सिजन्तादस्तेश्च सकारांन्ताद् धातोः परयोः दिस्योरादिरीकारो भवति / इट ईति / 4 / 3 / 71 / इटः परस्य सिज ईति परे लुग् भवति / दीर्घ च कृते अघ्रासीद्, अघ्रासिष्टाम् , अन्नासिषुः / अघ्रासीः, अघ्रासिष्टम्, अघ्रासिष्ट / अघ्रासिषम्, अघ्रासिष्व, अघ्रासिष्म / 'मां शब्दाग्निसंयोगयोः '-धमादेशे धमति / धमेत् / धमतु / अधमत् / अध्मासीत्, अध्मासिष्टाम्, अध्मासिषुः / परोक्षायां द्वित्वे अनादिव्यअनस्य लुकि हूस्वे चतुर्थस्य तृतीये णवश्वौकारे दध्मौ, आकारलोपे दध्मतुः, दध्मुः / दधिमथ, दध्माथ, दध्मथुः, दध्म / दध्मो, दध्मिव, दध्मिम / ध्मेयात्, ध्मायात् / ध्माता / धमास्यति / अध्मास्यत् / 'ष्ठां गतिनिवृत्तौ-'श्रौतिकृयु-1 इत्यादिना तिष्ठादेशे तिष्ठति / तिष्ठेत् / तिष्ठतु। अतिष्ठत् / परोक्षायां 'पः सोऽष्टयैष्ठिवष्वष्कः' इति सत्वे स्था+स्था+णव् इति स्थिते अघोषे शिटः / 4 / 1 / 45 / Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 19) द्वित्वे सति पूर्वस्य शिटस्तत्सम्बन्धिन्येवाघोषे परे लुग् भवति। यकारस्य तकारे तस्थौ, तस्थतुः, तस्थुः / तस्थिथ तस्थाथ, तस्ययुः, तस्थ / तस्थौ, तस्थिव, तस्थिम / स्थयात् / स्थाता / स्थास्यति / अस्थास्यत् / अद्यतन्याम् -अस्थात्, अस्थाताम्, अस्थुः / अस्थाः, अस्थातम् , अस्थात / अस्थाम, अस्थाव, अस्थाम / 'म्नां अभ्यासे' मनादेशे मनति / मनेत् / मनतु / अमनत् / अम्नासीत्, अम्नासिष्टाम् , अम्नासिषुः। अन्नासी:, अन्नासिष्टम् , अम्नासिष्ट / अम्नासिषम् , अम्नासिष्व, अम्नासिष्म। मनौ, मन्नतुः, मम्नुः / मम्निय मनाथ / म्नायात्, म्नेयात् / माता / म्नास्यति / अम्नास्यत् / 'दां दाने' यच्छादेशे यच्छति / यच्छेत् / यच्छतु / अयच्छत् / अद्यतन्यां सिन्छुकि अदात्, अदाताम् , अदुः / अदाः, अदातम् , अदात / अदाम्, अदाव, अदाम / ददौ, ददतुः, ददुः / ददिथ ददाथ, ददथुः, दद। ददौ, ददिव, ददिम / देयात्, देयास्ताम्, देयासुः / दाता। दास्यति / अदास्यत् / 'निं चिं अभिभवे -जयति / जयेत् / नयतु / अनयत् / अद्यतन्याम् सिचि अडागमे ईति च कृते सिचि परस्मै समानस्याङिति। 4 / 3 / 44 / .. समानान्तस्य धातोः वृद्धिर्भवति, उिद्भिन्ने परस्मैपदविषये च सिचि परे / षत्वे अजैषीत, अष्टाम्, अनेषुः / अनैषीः, अष्टम् , अजैष्ट / अनैषम् , अजैष्व, अनैष्म / परोक्षायां द्वित्वे Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) जेर्गिः सन्परोक्षयोः / 4 / 1 / 35 / द्वित्वे सति पूर्वस्मात् परस्य जेगिर्भवति सन्परोक्षयोः परयोः / जि+गि+अ इति स्थिते नामिनोऽकलिहलेः / 4 / 3 / 51 / कलिहलिवर्जितस्य नाम्यन्तस्य निति णिति प्रत्यये परे वृद्धिर्भवति / जिगाय, जिग्यतुः, जिग्युः / जिगयिथ निगेय जिग्यथुः, जिग्य / निगाय, निगय जिग्यिव निग्यिम / दीर्घश्चियङ्यक्क्ये षु च / 4 / 3 / 108 // धातोरन्त्यस्वरस्य दीर्घा भवति, च्यौ यङि यकि क्येषु यकारादावाशिषि च परेषु / जीयात् , जीयास्ताम्, जीयासुः / जेसा, जेतारौ, जेतारः / जेष्यति, जेष्यतः, जेष्यन्ति / अजेष्यत्, अजेष्यताम् , अजेण्यन् / जयति / ज्रयेत् / जयतु / अज्रयत् / अद्वेषीत् / जिज्राय निज्रियतुः जिनियुः / जीयात् / जेता। जेष्यति / अनेष्यत् / 'क्षिं क्षय' क्षयति / क्षयेत् / क्षयतु / अक्षयत् / अझैषीत् , अक्षैष्टाम्, अझैषुः / चिक्षाय चिक्षियतुः चिक्षियुः / क्षीयात् / क्षेता / क्षेष्यति। अक्षेण्यत् / 'इं गतौ अयति / अयेत् / अयतु / स्वरादेस्तासु / 4 / 4 / 31 / स्वरादेर्धातोर्वृद्धिर्भवति / अद्यतनी-शस्तनी-क्रियातिपत्तिषु Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (21) परासु / आयत् आयताम् आयन् / ऐषीत्, ऐष्टाम्, ऐषुः / 'परोक्षायां द्वित्वे पूर्वस्याचे स्वरे खोरियुत् / 4 / 1 / 37 / / . द्वित्वे सति यः पूर्वस्तत्सम्बन्धिनोरिवणोवर्णयोरस्वे स्वरे परे इयुवौ भवतः / इयाय ' योऽनेकस्वरस्य ' इयतुः, इयुः / इययिथ, इयेथ, इयथुः, इय / इयाय, इयय इयिव, इयिम / एता / एष्यति / ऐष्यत् / 'दु ढुं शुं खं गतौ / दवति / दवेत् / दवतु / अदवत् / दुदाव, दुदुवतः, दुदुवुः / दुदविथ दुदोथ / दूयात् / दोता। दोष्यति / अदोष्यत् / अदौषीत् / एवं द्रवति / द्रवेत् / द्रवतु / अद्रवेत् / दुद्राव ।द्यात् / द्रोता / द्रोप्यति / अद्रोष्यत् / अद्यतन्याम् णिश्रिद्रुझुकमः कर्तरि ङः / 3 / 4 / 58 // भयन्तात् श्रिद्रुखकमुभ्यश्च धातोः कर्तर्यद्यतन्यां डों भवति / अदुद्रुवत् अदुद्रुवताम् , अदुद्रुवन् / अदुद्रुवः, अदुद्वतम् , अदुद्रुवत / अदुद्रुवम्, अदुद्रुवाव, अदुद्रुवाम / शवति / शवेत् / शवतु / अशवत् / शुशाव / शूयात् / शोता / शोष्यति / अशोष्यत् / अशोषीत् / स्रवति / स्रवेत् / स्रवतु / अस्रवत् / सुस्राव / सूयात् / स्रोता / स्रोण्यति / अस्रोष्यत् / असुनुवत, असंखुवतीम्, असुनुवन् / 'धं स्थैर्ये / ध्रवति / ध्रवेत् / ध्रवतु / अध्रवत् / दुधाव / प्रयात् ।ध्रोता घोष्यति / अध्रोष्यत् / अधौषीत् / 'मुंप्रतवैश्वर्ययोः / Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (22) सवति। सवेत् / सवतु / असवत् / सुसाव / सूयात् / सोता। सोष्यति / असोष्यत् / अद्यतन्याम् धूमुस्तोः परस्मै / 4 / 4 / 85 / - एभ्यः परस्य परस्मैपदविषये सिच आदिरिड् भवति / असावीत् , असाविष्टाम्, असाविषुः। असावीः, असाविष्टम्, असाविष्ट / असाविषम्, असाविष्व, असाविष्म / 'स्मं चिन्तायाम्-स्मरति / स्मरेत् / स्मरतु / अस्मरत् / परोक्षायां द्वित्वे ऋतोऽत् / 4 / 1 / 38 / . द्वित्वे सति पूर्वस्य ऋकारस्यादित्यादेशो भवति / सस्मार / संयोगादृदत्तः / 4 / 3 / 9 / / संयोगात् परो य ऋत् तदन्तस्यार्तेश्च धातोः परोक्षायां. गुणो भवति / न तु कोपलक्षितायाम् / सस्मरतुः / सस्मरुः / ऋतः / 4 / 4 / 79 / ऋदन्तात् तृनित्यानिटो विहितस्य थव आदिरिड् न भवति / सस्मर्थ, सस्मरथुः, सस्मर / सस्मार सस्मर, सस्मरिव, सस्मरिम / / क्ययङाशीयें। 4 / 3 / 10 / . . संयोगात् परो य ऋकारस्तदन्तस्यात्तेश्च धातोः क्ये यकि Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (23) आशीये च परे गुणो भवति / स्मर्यात्, स्मर्यास्ताम् , स्मर्यासुः / स्मर्ता। हनृतः स्यस्य / 4 / 4 / 49 / हन्तेः ऋदन्ताच्च धातोः परस्य स्यप्रत्ययस्यादिरिड् भवति / स्मरिष्यति / अस्मरिष्यत् / अद्यतन्यां सिचि 'सिचि परस्मै समानस्याङिति ' इति वृद्धौ अस्मार्षीत्, अस्मार्टाम्, अस्मार्षः / अस्मार्षीः, अस्माष्टम्, अस्मार्ट / अस्मार्षम् , अस्माल, अस्माम। 'धू सेचने' / गरति / गरेत् / गरतु / अगरत् / जगार, जग्रतुः, जग्रुः / जगर्थ, जग्रथुः, जय / जगार जगर, जग्रिव जग्रिम / रिः शक्याशीयें / 4 / 3 / 110 / ऋदन्तस्य धातोः ऋतः शे क्ये आशीर्ये च परे रिः भवति। नियात् / गर्ता / गरिष्यति / अगरिष्यत् / अगार्षीत् / घरति / घरेत् / घरतु / अघरत् / जघार / घ्रियात् / घर्ता / घरिष्यति / अपरिष्यत् / अघार्षीत् / 'औस्व शब्दोपतापयोः' / स्वरति / स्वरेत् / स्वरतु / अस्वरत् / सस्वार, सस्वरंतुः, सस्वरिथ, सस्वरिव सस्वरिम / स्वर्यात् , स्वर्यास्ताम् , स्वर्यासुः / धूगौदितः / 4 / 4 / 38 / धूग्धातोरौदितश्च परस्य स्ताद्यशित आदिरिड् वा भवति / स्वरिता स्वर्ता / स्यप्रत्यये तु परत्वाद् नित्यमिड् / स्वरिष्यति / अस्वरिष्यत् / अद्यतन्यामिडागमे अस्वारीत्, अस्वारिष्टाम् , Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (24) अस्वारिषुः / इडभावे अस्वार्षीत् , अस्वार्टीम्, अस्वायुः इत्यादयः। हूँ वरणे' / द्वरति / द्वरेत् / द्वरतु / अद्वरत् / दद्वार, दद्वरतुः, दद्वरुः / दद्वर्थ / दद्वरिख / दद्वरिम / द्वर्यात् / द्वर्ता / द्वरिष्यति / अद्वरिष्यत् / द्वार्षीत् / 'सं गतौ / सरति / सरेत् / सरतु / असरत् / ससार / स्त्रियात् / सर्ता / सरिष्यति / असरिष्यत् / सर्त्यतैर्वा / 3 / 4 / 61 / आभ्यामङ् वा भवति कर्तयद्यतन्यां परायाम् / असरत् , असरताम् , असरन् / असरः, असरतम्, असरत / असरम्, असराव, असराम / पक्षे असाीत्, असासम्, असाएः / असार्षीः, असाटम्, असाष्टं / असार्षम् , असावं, असार्म / ' प्रापणे च. अरति / अत् / अस्तु / आरत् / परोक्षायां द्वित्वे 'ऋतोऽद्' इत्यत्त्वे. _अस्यादेराः परोक्षायाम् / 4 / 1 / 68 / परोक्षायां द्वित्वे पूर्वस्यादेरकारस्याऽऽकारो भवति / उत्तरस्य वृद्धौ ' समानानाम् ' इति दीर्घ आर। आरतुः, आरुरित्यादौ तु गुणः। ऋत्रव्येऽद इट् / 4 / 4 / 80 / एभ्यः परस्य थव आदिरिड् भवति / आरिथ, आरथुः, आर / अर्यात / अर्ता / अरिष्यति / आरिण्यत् / अद्यतन्यां Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (25) 'सर्त्यत्तेर्वा ' आरत्, आरताम्, आरन् / पक्षे आत्,िआष्टीम्, आर्युः / 'तृ प्लवनतरणयोः' / तरति / तरेत् / तरतु / अतरत् / ततार। स्कच्छृतोऽकि परोक्षायाम् / 4 / 3 / 8 / स्कृ-ऋच्छ-ऋदन्तानां धातूनां सम्बन्धिनो नामिनो गुणो भवति परोक्षायां, न तु कोपलक्षितायाम् / तर+अतुस् तत्रपफलभजाम् / 4 / 1 / 25 / एषां स्वरस्यैद् भवति अवित्परोक्षायां सेट्यवि च परे, न तु द्विः / तेरतुः / तेरुः / तेरिथ, तेरथुः, तेर / ततार, ततर तेरिख तेरिम / ऋतां क्ङितीर् / 4 / 4 / 116 / ऋदन्तस्य धातोः किति ङिति च परे ईरादेशो भवति / तीर्यात् , तीर्यास्ताम् / . वृतो नवाऽऽनाशी:सिपरस्मै च / 4 / 4 / 35 / वृभ्यामृदन्तेभ्यश्च परस्येटो दीर्घो वा भवति, परोक्षायामाशिषि परस्मैपदे सिचि च परे न स्यात् / तरीता, तरिता / तरीष्यति, तरिष्यति / अतरिष्यत् , अतरीष्यत् / अतारीत्, आतारिष्टाम् , अतारिषुः / 'ट्धे पाने / धयति / धयेत / धयतु / अधयत / Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (26) आत् सन्ध्यक्षरस्य / 4 / 2 / 1 / सन्ध्यक्षरस्य धातोराद् भवति / न शिति / 4 / 2 / / मन्ध्यक्षरस्य धातोः शिद्विषये आ न भवति / दधौ / 'इडेत्पुसि चातो लुक् ' दधतुः, दधुः / दधिथ दधाथ / दधिव / दधिम / 'गापास्थासादामाहाकः / धेयात् / धाता / धास्यति / अधास्यत् / अद्यतन्यां 'टूधेघ्राशाच्छासो वा ' अधात्, अधाताम, अधुः / अधाः, अधातम्, अधात / अधाम्, अधाव, अधाम / सिज्लुगभावे अधासीत् , अधासिष्टाम् , अधासिषुः / अधासीः, अधासिष्टम्, अधासिष्ट / अधासिषम्, अधासिप्प, अधासिष्म / धेश्वेर्वा / 3 / 4 / 59 // आभ्यां कर्तर्यद्यतन्यां ङो वा भवति / अदधत् , अदधताम् , अदधन्। अदधः, अदधतम् , अदधत / अधम् , अदधाव, अदधाम / पक्षे पूर्ववत् / 'दैव् शोधने' / दायति। दायेत् / दायतु / अदायत्। ददो, ददतुः, ददुः / ददिथ ददाथ / दासज्ञाऽभावादेत्त्वाभावः / दायात् / दाता / दास्यति / अदास्यत् / अदासीत् / 'ध्ये चिन्तायाम्' ध्यायति / ध्यायेत् / ध्यायतु / अध्यायत् / दध्यौ / ध्यायात्, ध्येयात्।ध्याता / ध्यास्यति / अध्यास्यत् / अध्यासीत् / गलैं हर्षक्षये' / ग्लायति / ग्लायेत् / ग्लायतु / अग्लायत्। जग्लो, . Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (27) जग्लतुः, जग्लुः / ग्लायात्, ग्लेयात् / ग्लाता / ग्लास्यति / अम्लास्यत् / अग्लासीत् / 'म्लैं गात्रविनामे / म्लायति / म्लायेत् / म्लायतु ।अम्लायत् / मम्लौ। म्लायात् , म्लेयात् / म्लाता। म्लास्यति। अम्लास्यत् / अम्लासीत्। 'यें न्यङ्करणे' / द्यायति / द्यायेत् / द्यायतु / अद्यायत् / दद्यौ / द्यायाद् , येयात् / द्याता / द्यास्यति / अद्यास्यत् / अद्यासीत् / एवं 'दें स्वप्ने' / 'धैतृप्तौ / / 'के गैंरैं शब्दे'। कायति। कायेत् / कायतु / अकायत् / चकौ / कायात् / काता / कास्यति / अकास्यत् / अकासीत् / गायति / गायेत्। रायति / रायेत् / ष्टय स्त्य संघाते च' प्रथमः षोपदेशः, द्वितीयस्त्वसोपदेशः। स्त्यायति / स्त्यायेत् / स्त्यायतु / अस्त्यायत् / तस्त्यौ / प्रष्टयायात, प्रष्टयेयात् / प्रस्त्यायात, प्रस्त्येयात् / 'बै मैं मैं क्षये ' / क्षायति / क्षायेत् / क्षायतु / अक्षायत्। चक्षौ / क्षायात्, क्षेयात् / क्षाता / क्षास्यति / अक्षास्यत् / अक्षासीत् / एवं ' मैं पाके'। श्रायति / श्रायेत् / श्रायतु। अश्रायत् / शश्रौ / श्रायात, श्रेयात् / श्राता / श्रास्यति / अश्रास्यत् / अश्रासीत् / 'पैं ओवें शोषणे' पायति / पायेत् / पायतुं / अपायत् / पपौ। ऐयात् / पाता। पास्यति / अपास्यत्। अपासीत् / वायति / वायेत्। वायतु / अवायत् / ववौ / वायात् / वाता। वास्यति / अवास्यत् / अवासीत् / 'णे वेष्टने / स्नायति / सस्नौ / अस्नासीत् / 'फक्क नीचैर्गतो' / फक्कति / फक्केत् / फक्तु / अफकत् / पफक्क, पफकतुः, पफक्कुः / फक्कयात / फक्किता / फक्किष्यति / अफक्किण्यत / Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (28) अफक्कीत् / 'तक हसने' / तकति / तकेत् / तकतु / अतकत् / तताक / अनादेशादेरेकव्यञ्जनमध्येऽतः / 4 / 1 / 24 // __ . अनादेशादियों धातुस्तत्सम्बन्धिनः स्वरस्यातोऽसहायव्यञ्जनमध्यगतस्य अवित्परोक्षायां सेटि थवि च परे एकारो भवति / तेकतुः / तेकुः / तेकिथ तेकथुः तेक / तताक, ततक तेकिन तेंकिम / तक्यात् / तकिता / तकिष्यति। अतकिष्यत्। अद्यतन्याम् 'व्यञ्जनादेोपान्त्यस्यातः / 4 / 3 / 47 / - व्यञ्जनादेर्धातोरुपान्त्यस्यातः परस्मैपदे सेटि सिचि परे वृद्धिर्वा भवति / अताकीत् , अतकीत्, अतकिषुः / ' तक कृच्छ्रजीवने - - उदितः स्वरानोऽन्तः / 4 / 4 / 98 / उदितो धातोः स्वरात् परो नोऽन्तो भवति / तङ्कति / तङ्केत् / तङ्कतु / अतङ्कत् / ततङ्क, ततङ्कतुः, तंतङ्कुः / तङ्क्याद् उदित्त्वाद् 'नो व्यञ्जनस्यानुदितः / इति लुग्न भवति / तङ्किता / तङ्किष्यति / अतङ्किण्यत् / अतङ्कीत् / 'शुक गंतौ' / शुकति / शुशोक शुशुकतुः शुशुकुः / अशोकीत् / 'बुक्क भषणे' बुक्कति / अबुक्कीत् / 'उखु राख लाख द्राखु घाखू शोषणालमर्थयोः . . . Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) लघोरुपान्त्यस्य / 4 / 3 / 4 / धातोरुपान्त्यस्य लघोर्नामिनो गुणो भवति, अकिति अङिति च प्रत्यये परे। ओखति / ओखेत् / ओखतु / औखत् / उवोख उखतुः ऊखुः / उवोखिए / ऊखथुः / उख्यात् / ओखिता ओखिप्यति / औखिष्यत् / औखीत् , औखिष्ट म् , औखिषुः / ऋदित्करणं मा भवानोखिखत् इत्यादौ ह्रस्व भावार्थम् / लाखति / लाखेत् / लाखतु / अलाखत् / ललाख / लाख्यात् / लाखिता। लाखिष्यति / अलाखिष्यत् / अलाखीत / 'शाख श्लाख व्याप्तौ। शाखति / शाखेत् / शाखतु / अशाखत् / शशाख / शाख्यात् / शाखिता / शाखिष्यति / अशाखिष्यत / अशाखीत् / 'उख नख णख वख मख रख लख मखु रखु लखु रिखु इस ईखु गतौ / नखधातुर्नोपदेशस्तेन प्रनखति / णखधातुस्तु गोपदेशस्तस्य 'पाठे धात्वादेो नः' इति नखति / नखेत् / नखतु / प्रणखति / प्रणखेत् / प्रणखतु / 'अदुरुपसर्गान्तरो महिनुमीनानेः / इति णत्वम् / प्राणखत् / णिति / 4 / 3 / 50 / - धातोरुपान्त्यस्यातोऽकारस्य वृद्धिर्भवति, निति णिति च प्रत्यये / ननाख / प्रणनाख / नेखतुः / नेखुः / प्रणेखतुः / प्रणेख्नुः। प्रणख्यात् / प्रणखिता। प्रणखिष्यति / प्राणखिष्यत.। प्राणखीत् / अनखीत , अनाखीत् / प्राणाखीत् / मङ्खति। मझेत्। Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) महतु / अमङ्खत् / ममङ्ख / मङ्ख्यात् / मङ्खिता / मलिथ्यति / अमङ्खिष्यत् / अमङ्खीन् / ईडति / ईवेत् / ईडतु। ऐसत् / परोक्षायाम्-ईट+णव् इति स्थिते गुरुनाम्यादेरनृच्छ्रोः / 3 / 4 / 48 / गुरुर्नामी आदियस्य तस्मादृच्छूर्णवर्नाद् धातोः परस्याः परोक्षाया आम् भवति / आमन्ताच्च परे परोक्षान्ताः कृभ्वस्तयः प्रयुच्यन्ते / आमः कृगः / 3 / 3 / 75 / ___ आमः परादनुप्रयुक्तात् कृग आम एव प्राग् यो धातुस्तस्मादिन कर्तर्यात्मनेपदं भवति / भवति च न भवतीत्यर्थः / आमः प्राक् धातुर्यदि परस्मैपदी तदाऽनुप्रयुज्यमानात् कृगः परस्मैपदं, यदि चात्मनेपदी तदाऽऽत्मनेपदं, यधुभयपदी तदोमयं भवतीत्यर्थः / ईव+आम्+++णव् इति स्थिते 'ऋतोऽत् / इत्यत्त्वे 'कङश्वञ् ' इति चत्वे वृद्धौ ईटाञ्चकार, ईडाचक्रतुः, ईटाञ्चक्रुः / ईलाञ्चकर्थ, ईटाञ्चक्रथुः, ईटाञ्चक्र / ईलाञ्चकार, ईलाञ्चकर, ईलान्चकृव ईलाञ्चकम / भुव्यनुप्रयुज्यमाने ईलाम्बभूव, ईङखाम्बभूवतुः, ईलाम्बभूवुः / ईलाम्बभूविथ,ईङ्खाम्बभूवथुः, ईलाम्बभूव / ईलाम्बभूव, ईलाम्बभूविव, ईलाम्बभूविम / "अस्यनुप्रयुज्यमाने-ईलामास, ईलामासतुः ईलामासुः। ईला'मासिथ, ईलामासथुः, ईलामास / ईङ्खामास, ईलामासिव, Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (31) ईलामाप्तिम / ईङ्ख्यात् / ईखिता। ईविष्यति / ऐखिष्यत्। ऐलीद् / 'वल्ग रगु लमु तगु गु श्लगु अगु वगु मगु स्वगु इगु उगु रिगु लिगु गतौ' / वल्गति / वरगेत् / वल्गतु / अवल्गत् / ववल्ग / वल्ग्यात् / वलिगता / वलिंगष्यति / अवल्गिण्यत् / अवल्गीत् / रङ्गति / रङ्गेन् / रङ्गतु / अरङ्गत् / ररङ्ग / रङ्ग्यात् / रङ्गिता / रङ्गिष्यति / अरङ्गिप्यत्। अरङ्गीत / इङ्गति / इङ्गेत / इङ्गतु / ऐङ्गत्। परोक्षायां गुरुनाम्यादित्वाद् इङ्गाञ्चकार, इङ्गाञ्चक्रतुः, इङ्गाञ्चक्रुः / इङ्गाम्बभूव / इङ्गामास / इङ्ग्यात् / इङ्गिता। इङ्गिप्यति / ऐङ्गिप्यत् / ऐगीत् / उङ्गति / उङ्गेत् / उङ्गतु। औङ्गत् / उङ्गाञ्चकार / उङ्गाम्बभूव / उङ्गामास / उग्यात् / उगिता / उङ्गिष्यति औगिष्यत् / औङ्गीत / अत्र सर्वत्र उदितत्वान्नोन्ते कृते नकारेस्य 'म्नां धुड्वर्गे' इति निमित्तस्यैवाऽन्त्यो भवति, केषांचिन्मतेऽनुस्वारोऽपि / तङ्गति / तङगेत् / तगतु / अतङ्गत् / ततङ्ग / तङ्ग्यात / तङ्गिता / तङ्गिध्यति / अङ्गिप्यत् / अतङगीत् / 'त्वगु कम्पने चः / त्वङ्गति / अस्वङ्गत / तत्वङ्ग / अत्वङ्गीत / 'युगु जुगु वुगु वर्नने। युङ्गति। युञ्जेत् / युङ्गतु / अयुङ्गत / युयुङग / युङ्ग्यात / युङ्गिता युङ्गिष्यति / अयुनिष्यत् / अयुङ्गीत् / 'गग्घ हसने' ।गग्धति / गगग्य / अगग्घीत्। 'दघु पालने' / दङ्घति / दद्येत् / दङ्घतु / अदङ्घत् / ददव / दध्यात् / दङ्घिता / दङ्घिष्यति / अदङ्घिप्यत् / अदङ्घीत् / 'शिघु आघ्राणे' / 'मधु मण्डने। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (32) लघ लघु शोषणे। शिवति / शियेत् / शिवतु / अशिङ्घत् / मङ्घति / लङ्घति / लघति / लघेत / लघतु / अलघत् / ललाघ, लेघतुः, लेघुः / लेघिय, लेघथुः, लेघ / ललाघ ललब, लेधिव, लेघिम / लध्यात् / लघिता। लविष्यति / अलविष्यत् / अलाघीत्, अलघीतं / शुच शोके / शोचति / शोचेत् / शोचतु / अशोचत / शुशोच / शुच्यात / शोचिता / शोचिष्यति / अशोचिष्यत् / अशोचीत् / 'कुत्र शब्दतारे / 'क्रुञ्च गतौ' / क्रुञ्चति / चक्रञ्च / अक्रुञ्चीत् / क्रुच्यात / 'कुञ्च कौटिल्याल्पीभावयोः' / 'टुन्च अपनयने अपनयनम्-के शादीनां दूरीकरणम् ! जु-चति / लुम्चेत् / लुम्चतु / अलुञ्चत् / लुलुब्च / इन्ध्यसंयोगात् परोक्षा किद्वत् / 4 / 3 / 21 / ... इन्धिधातोरसंयोगान्ताच परा विद्भिन्ना परोक्षा किद्वद् भवति / लुलुञ्चतुः, लुलुञ्चुः / लुलुम्चिय / लुच्यात् / लुञ्चिता / लुञ्चिध्यति / अलुञ्चिष्यत / अलुञ्चीत् / अर्च पूनायाम् ' / अर्चति / अर्चेत् / अर्चतु / आर्चत् / परोक्षायाम् अनातो नश्चान्त ऋदायशौसंयोगस्य / 4 / 1 / 69 / ___ ऋदादेरश्नातेः संयोगान्तस्य च परोक्षायां द्वित्वे सति पूर्वस्यात्स्थानादन्यस्यास्य आ भवति, कृताकाराद् नोऽन्तश्च आनर्च, आनर्चतुः, आनचुः / आनर्चिथ, आनचथुः / आनर्च / आनर्चिव, Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (33) .. भानर्चिम / अर्ध्यात् / अर्चिता / अर्चिष्यति / आर्थिष्यत् / बार्षीत् / अञ्चू गतौ / ऊदित्करणात् क्त्याप्रत्यये इड्विकल्पः / अञ्चति / अञ्चेत् / अञ्चतु / आश्चत् / आनञ्च, आनञ्चतुः, आनन्चुः / अच्यात् / अञ्चिता। अश्चिष्यति / आञ्चिष्यत् / आश्चीत् / वञ्चू चञ्चू तञ्चू त्वञ्चू मञ्चू मुञ्चू मुञ्चू मुचू म्छुचू ग्लुचू ग्लुञ्चू षश्च गतौ / वञ्चति / वञ्चेत् / वञ्चतु / अव वत् / ववञ्च, ववश्चतुः, ववन्चुः / वच्यात् / वञ्चिता / वञ्चिष्यति / - अवश्चिष्य त् / अवञ्चीन् / चञ्चति / तञ्चति / त्वञ्चति / मञ्चति / मुञ्चति / मुञ्चति / म्रोचति / स्रोचेत् / म्रोचतु / अम्रोचत् / मुम्रोच / च्यात् / म्रोचिता / म्रोचिष्यति / अम्रोचिष्यत् / अद्यतन्याम्---- ऋदिच्छिरस्तम्भू चूम्लुचूग्रुचूग्लुचूग्लुञ्चूजो वा / 3 / 4 / 65 // ऋदितो धातोः श्व्यादेश्च कर्तर्यद्यतन्यां परस्मैपदेऽङ् वा भवति / अZचत् / अम्रीचीत् / म्लोचति / म्लीचेत् / म्लोचतु / भालोचत् / मुम्लोच / म्लुच्यात् / म्लोचिता / म्लोचिष्यति / भन्छोचिष्यत् / अम्लुचत् , अम्लोचीत् / ग्लोचति / ग्लोचेत् / ग्लोचतु / अग्लोचत् / जुग्लोच / ग्लुच्यात् / ग्लोचिता / ग्लोचिव्यति / अग्लोचिष्यत् / अग्लुचत्, अग्लोषीत् / ग्लुञ्चति / ग्लुबेत् / ग्युश्चतु / अग्लुचत् / मुग्लुश्च / ग्लुच्यात् / ग्लुचिता / Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (34) ग्लुञ्चिष्यति / अग्लुञ्चिष्यत् / अङि अग्लुचत् अग्लुञ्ची / अचू ग्लुचू स्तेये / ग्रोचति / ग्रोचेत् / योचतु / अग्रोचत् / जुनोच / ग्रुच्यात् / प्रोचिता। प्रोचिष्यति / अग्रोचिष्यत् / अग्रुचत् , अग्रोचीत् / म्लेच्छ अव्यक्तायां वाचि / म्लेच्छति / म्लेच्छेत् / म्लेच्छतु / अम्लेच्छत् / मम्लेच्छ / म्लेच्छयात् / म्लेच्छिता / म्लेच्छि व्यति। अम्लेच्छिष्यत् / अम्लेच्छीत् / लच्छ लाच्छु लक्षणे / लच्छति / लच्छेत् / लच्छतु / अलच्छत् / ललच्छ / लच्छ्यात् / लाञ्च्छति / लाञ्च्छेत् / लाञ्च्छतु / अलाञ्च्छत् / ललामच्छ / अलाच्छीत् / वाच्छु वाञ्च्छायाम् / वाञ्च्छति / वाञ्च्छेत् / वाञ्च्छतु / अवाञ्च्छत् / ववाञ्च्छ / वाञ्च्छ्यात् / वाञ्च्छिता / वाच्छिष्यति / अवाञ्च्छि व्यत् / अवाञ्च्छीत् / आछु आयामे। आच्छति। आच्छेत् / आच्छतु / आच्छत् / आञ्च्छ, आच्छतुः, आच्छुः / आञ्छ्यात् / आच्छीत् / हीच्छ लजायाम् / हीच्छति / हीच्छेत् / हीच्छतु / अहीच्छत् / निहीच्छ / अहीच्छीत् / मूर्छा मोहसमुच्छ्राययोः / मूर्च्छति / मूर्छत् / मूर्च्छतु / अमूर्च्छत् / मुमूर्छ / मूर्ध्यात् / मूच्छिता / मूछिष्यति / अमूच्छिष्यत् / अमूछीत् / स्फूर्छा. स्मूर्छा विस्मृतौ / युछ प्रमादे / युच्छति / युच्छेत् / युच्छतु / अयुच्छत् / युयुच्छ / युच्छ्यात् / युच्छिता / युच्छिष्यति / अयुच्छिष्यत् / अयुच्छीत् / इति छान्ता धातवः / धृज धृज. ध्वज ध्वजु ध्रज ध्रनु वन व्रज पस्न गतौ / धर्नति / धर्मेत् / धर्नतु / Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्जत् / दधन / धन्यात् / धर्जिता / धर्जिण्यति। अधनिष्यत् / भधीत् / धृञ्जति / धृजेत् / धृञ्जतु / अधूञ्जत् / दधृञ्ज / 'कृळ्यात् / धृजिता / धृञ्जिष्यति / अधुञ्जिव्यत् / अञ्जीत् / 'ध्वनति / दध्वन / अध्वानीत् अध्वनीत् / ध्वञ्जति / अध्वजीत् / ध्रजति / अध्रनीत् अध्राजीत् / Uञ्जति / अध्रञ्जीत् / वति / बजतु / ववाज, ववजतुः, ववजुः / अवाजीत् अवनीत् / व्रजति अमेत् / बजतु / अवनत् / वबाज, ववनतुः, वव्रजुः / व्रज्यात् / अजिता / व्रजिष्यति / अवनिष्यत् / अद्यतन्यां 'व्यञ्जनादेर्वोपा-मत्ययातः' इति वा वृद्धौ प्राप्तायाम् __ वदवनलः / 4 / 3 / 48 // वदवनोकाररकारान्तयोश्च धातोरुपान्त्यस्याकारस्य परस्मैपदे -सेटि सिचि परे वृद्धिर्भवति / अव्राजीत् , अब्राजिष्टाम् , अब्राजिषुः / भवानीः, अत्राजिष्टम् , * अब्राजिष्ट / अब्राजिषम्, अत्राजिष्व, अवाजिष्म / सज्जति / सज्जेत् / सज्जतु / असज्जत् / ससज्ज / सज्यात् / सजिता / सजिष्यति / असजिष्यत् / असज्जीत् / भज क्षेपणे च / अनति / अजेत् / अनतु / आजत् / अपक्यबलच्यजेवीं / 4 / 4 / 2 / : घञ्-क्यबलच्वर्जितेऽशिति विषये अजेवी इत्यादेशो भवति / अनुस्वारः इनिषेधार्थः / विवाय, विव्यतुः, विव्युः / विवयिय Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवेय, विव्यथुः, विव्य / विवाय विवयः / विव्यिव / विव्यिमः। वीयात् / वेता / वेष्यति / अवेष्यत् / अवैषीत् / तृप्रत्यये अनप्रत्यये च परे 'त्रने वा ' इति विकल्पः-प्रवेता प्राजिता / अन्ये तु अनप्रत्यये यकाररहिते व्यन्जनादौ च सर्वत्र विकल्पमिच्छन्ति। तन्मते थवि आजिथ विवयिथ विवेथ / आजिव, विव्यिव / आनिम, विव्यिम / अनिता, वेता / अजिष्यति, वेष्यति इत्यादौ रूपद्वयम् / कुजू खुजू स्तेये / कोजति / कोजेत् / कोजतु / अकोनत् / चुकोज / अकोनीत् / खोमति / चुखोज / अखोजीत। अर्ज सर्न अर्जने / अर्नति / आनर्म / आत् / सर्नतिः / ससर्ज / असीत् / कर्ज व्यथने / खर्ज मार्जने च / खति / चखन / अखर्जीत्। खज मन्थे। खजु गतिवैकल्ये ।खञ्जति ।खञ्जतु / अखञ्जत् / चखल्ज / खळ्यात् / खञ्जिता / खञ्जिष्यति / अखञ्जिष्यत्। अखंञीत् / एन कम्पने एजति / एजेत् / एनतु / ऐनत् / एजाचकार / एजाम्बभूव / एजामास / एज्यात् / एनिता / एजिष्यति / ऐनिष्यत् / ऐनीत् / ट्वोस्फूर्जा वज्रनि?षे / टिवल्करणमथुप्रत्ययार्थम् / ओदित्करणं क्तप्रत्ययस्य नत्वार्थम् / स्फूर्जति / स्फूनेत् / स्फूर्जतु / अस्फूर्जत् / अस्फूर्जीत् / क्षीन कून गुज गुजु अव्यक्तशब्दे / गुञ्जति / गुञ्जेत् / गुञ्जतु / अगुञ्जत् / जुगुञ्ज / गुळ्यात् / गुञ्जिता / गुञ्जिष्यति / अगुञ्जिष्यत् / अगुञ्जीत् / लन लजु तर्न भर्सने / तति / तर्नेत् / तन्तु अतर्जत् / ततर्न / भत/त् / लाज लाजु भजने च / लाजति लकानः। अलामीत्। Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मजातिः / लाओत् / लाजतु / अलाञ्जत् / ललाज / लाळ्यात् / लालिता / लाजिष्यति / अलाजिष्यत् / अलाञ्जीत् / जन जनु युड़े। जनति / जनाज / अजाजीत् ,अजनीत् / जजति / जजेत् / जनल / अनञ्जीत् / तुल हिंसायाम् / तुजु वलने च। तुञ्जति / सन्तुल / अतुञ्जीत् / गर्न गनु गृज गृजु मुन मुनु मृज मृजु मन शब्दे / राज मदने च / वनं हानौ / त्यजति / त्यजेत् / त्यजतु / भत्यनत् / तत्याज / तत्यजिष, तत्यक्थ। त्यङ्ग्यात् / त्यका त्यक्तारौ, त्यक्तारः। त्यक्तासि, त्यक्तास्थः, त्यक्तास्थ ।त्यक्ष्यति / अत्यक्ष्यत् अत्यक्ष्यताम् अत्यक्ष्यन् / व्यञ्जनानामनिटि / 4 / 3 / 45 / व्यञ्जनान्तस्य धातोः परस्मैपदविषये अनिटि सिचि परे समानस्य वृद्धिर्भवति जस्य चत्वे कत्वे सस्य च षत्वे क्ष्योगे सत्ये अत्याक्षीत् / धुड्ड्स्वाल्लुगनिटस्तथोः / 4 / 3 / 70 / धुडन्ताद् ह्रस्वान्ताच्च धातोः परस्यानिटः सिचौ लुम् भवति तादौ थादौ च प्रत्यये / अत्याक्ताम् / अत्याक्षुः / अत्याक्षीः, अत्याक्तम् , अत्याक्त / अत्याक्षम्, अत्याव, अत्याक्ष्म / षनं सङ्गे। दंशसञ्जः शवि / 4 / 2 / 49 / अनयोरुपान्त्यम्य नस्य शवि परे लुग भवति / सनति / Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (38) सजेत् / सजतु / असजत् / ससञ्ज / सन्यात्। सता / सक्ष्यति / असङ्ख्यत् / असाहीत् , असाताम् / असाक्षुः असामीः / असातम् / असाल / असालम् / असाझ्व / असाक्ष्म / उपसर्गपूर्वात्तु ' स्थासेनिसेधसिचसनां द्वित्वेऽपि ' अभिषजति अभिषषञ्ज / अभ्यपासीत् / इति जान्ता धातवः / कटे वर्षावरणयोः / कटति / कटेत् / कटतु / अकटत् / चकाट / कटयात् / / कटिता / कटिष्यति / अकटिष्यत् / न विजागृशसक्षणहम्येदितः / 4 / 3 / 49 / श्विनागृशसक्षणां हकारमकारयकारान्तानामेदितश्च धातूनां परस्मैपदे सेटि सिचि वृद्धिर्न भवति / अकटीत् , अकटिष्टाम् , अकटिषुः / अकटीः, अकटिष्टम् , अकटिष्ट / अकटिषम् , अकटिष्व, अकटिष्म / शर रुनाविशरणगत्यवसादनेषु / शटति / शटेत् / शटतु / अशरत् / शशाट / शेटतुः / शेटुः / शेटिथ / शट्याद् / शटिता / शटिष्यति / अशटिष्यत् / अशाटीत् , अशटीत् / वट वेष्टने / क्टति / वटेत् / वटतु / अवटत् / ववाट / . न शमददिवादिगुणिनः / 4 / 1 / 30 / शसिदद्योर्वादीनां गुणिनां च धातूनामेकारो न भवति / 'अनादेशादेरेकव्यञ्जनमध्येऽतः' इत्यस्यापवादः / ववटतुः, ववटुः / वट्यात् / वटिता / वटिष्यति / अवटिष्यत् / अवाटीत् , अवटीत् / किट खिट उत्तासे / शिट पिट अनादरे / नट झूट सङ्घाते / पिट Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (39) शब्दे च / केटति / चिकेट / अकेटीत् / खटति। अखाटीत', अखटीत् / शेटति। जटति। झटति / जझाट / अझाटीत् , अझटीत् / पेटति / पिपेट / अपेटीत / भट भृतौ / भटति / बभाट। अभाटीत्, अभटीत् / तट उच्छ्राये / तटति / तटेत् / अताटीत् , अतटीत् / खट काझे / णट नृत्तौ / नटति। ननाट। अनटीत् ,अनाटीत्। हट दीप्तौ / पट अवयवे / लुट विलोटने / लोटति / लोटेत् / लोटतु / अलोटत् / लुलोट / लुलोटिथ / अलोटीत् / चिट प्रैष्ये / विट शब्दे / हेट विबाधायाम् / हेटति / जिहेंट / अहेटी / अद पट इट किट कट कटु कटै गतौ ऐदित्करणं क्त्वाक्तवत्वोरि निषेधार्थम् / अटति / अटेत् / अटतु / आटत् / आट, आटतुः, आटुः। आटिथ, आटथुः, आट / आट, आटिव, आटिम / अट्यात् / अटिता / अटिप्यति / आटिष्यत् / आटीत् / एटति ऐटीत / कुटु वैकल्ये / कुण्टति / चुकुण्ट / अकुण्टीत् / मुट प्रमर्दने / चुट चुटु अल्पीभावे / वटु विभाजने / रुटु लुटु स्तेये / स्फट स्फुट्ट विशरणे / स्फोटति / स्फोटेत् / पुस्फोट / अम्फुटत् , अस्फोटीत् / रट परिभाषणे / इति टान्ता धातवः / रठ परिभाषणे / रठति / रठेत् / अरठत् / रराठ रेठतुः / रेठिथ / अराठीत् / पठ व्यक्तायां वाचि / पठति / पपाठ, पेठतुः, पेठुः / पेठिथ / अपाठीत् अपठीत् / वठ स्थौल्ये वठति / ववाठ / ववठतुः, ववठुः / ववठिय / अवाठीत् , अवठीत् / मठ मद-निवासयोश्च / कठ कृच्छ्जीवने / कठति / अकठत् / चकाठ, चकठतुः, Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वकछुः / अकाठीत, अकठीत् / हठ बलात्कारें / उठ रुठं कुछ उपवाते। पिठ हिंसासंश्लेशयोः / पेठतिः। पेठेत् / पेंठतु / अपेठत् / पिपेठ / अपेठीत् / शठ कैतवे / शठति / शशाठ शेठतुः शेठुः / शेठिय / अशाठीत् , अशठीत् / शुठ गतिप्रतिघातें / कुछ सुठु भालस्ये च / कुण्ठति / चुकुण्ठ / अकुण्ठीत् / शुठु शोषणे / अठ रुठु गतौ / अठति / अठेत् / अठतु | आठ / अध्यात् / अठिता / अठिम्यति / आठीत् / इति ठान्ता धातवः / पुडु प्रमदने / पुण्डति / पुपुण्ड। अपुण्डीत् / मुडु खण्डने च / मडु भूषायाम् / गडु वदनैकदेशे / शौड गर्ने / यौड सम्बन्धे / मेड ब्रेड म्लेड लोड़ उन्मादे। रोड़रौड़ तौड़ अनादरे / क्रीडु विहारे / क्रीडति। क्रीडेत् / क्रीडतु / अक्रीडत् / चिक्रीड / क्रीडिष्यति। अक्रीडिव्यत् / तुड़ तोडने / हुड हट्ट हट्ट हौड गतौ / खोड प्रतिघाते / विड आक्रोशे / अड उद्यमे / लड विलासे / लडति, ललति।लडेत् / लडतु / अलडत् / ललाड, लेडतुः, लेडुः / लेडिथ / अलाडीत्, अलडी / कडु मदे / कड्ड कार्कश्ये / अड अभियोगे / चुड्डु हावकरणे / इति डान्ता धातवः / अण रण वण व्रण बण भण भ्रण मण धण ध्वण ध्रण कण क्वण चण शब्दे / अणति / अणेत् / अणतु / आगत् / आण। आगीत् / रणति / रराण, रेणतुः, रेगुः / अराणीत्, अरणीत् / वणति / क्वाण, ववणतुः, ववणुः / अवाणीत् , अवनीत् / चणति। चचाण, चेणतुः, चेणुः / चेणिय / अचाणीत, अचणीत् / ओण अफ्नयनें 1 ओणति / Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (41) ओणेत् / ओणतु / औणत् / ओणाञ्चकार / ओणाम्बभूव / ओणामास / ओण्यात् / ओणिता / ओणिष्यति / औणिष्यत् / औणीत् / शोण वर्णगत्योः / श्रोण श्लोण संघाते / पैण गतिप्रेरणश्लेषणेषु / इति णान्ता धातवः / चितै सञ्ज्ञाने / चेतति / चेतेत् / चेततु / अचेतत् / चिचेत / चित्यात् / चेतिता / चेतिष्यति / अचेतिव्यत् / अचेतीत् / अत सातत्यगमने। अतति / अतेत् / अततु / आतत् / आत, आततुः, आतुः / अत्यात् / अतिता। अतिष्यति / आतिव्यत् / आतीत् / च्युत आसेचने / च्योतति / च्योतेत् / च्योततु / अच्योतत् / चुच्योत, चुच्युततुः, चुच्युतुः / अच्युतत् , अच्युतताम् , अच्युतन् / अच्योतीत् अच्योतिष्टाम् , अच्योतिषुः / चुत चुतृ अच्युत क्षरणे / चोतति / चुचोत / अचुतत् , अचोतीत् / अश्चोतीत् , अश्चुतत् / अच्युतत् ,अश्च्योतीत् / जुतृ भासने / जोतति / जोतेत् / जोततु / अजोतत् / जुजोत / अजुतत् , अजोतीत् / अतु बन्धने / अन्तति / अन्तेत् / अन्ततु / आन्तत् / आनन्त / अन्त्यात् / अन्तिता / अन्तियति / आन्तिव्यत् / आन्तीत् / कित निवासे / केतति / केतेत् / केततु / अकेतत् / चिकेत / अकेतीत् / ऋत घृणागतिस्पर्धेषु / अर्तति / अर्तेत् / अर्ततु / आर्तत् / आनर्त, आनर्ततुः, आनर्तुः / ऋत्यात / अर्तिता / अतिष्यति / आतिष्यत् / आर्तीत् / इति तान्ता धातवः / कुथु पृथु लुथु मथु मन्थ मान्थ हिंसासक्लेशयोः / कुन्थति / कुन्थेत् / Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (42) कुन्यतु / अकुन्यत् / चुकुन्थ / कुन्थ्यात् / कुन्थिता / कुन्थिष्यति / अकुन्थियत् / अकुन्थीत् / पुन्यति / लुन्थति / मथुमन्थ्याद् / मथ्याद् / इति थान्ता धातवः / खादृ भक्षणे। खादति। खादेत् / खादतु / अखादत / चखाद / अखादीत् , अखदीत् / बद स्थैर्ये / बदति / बदेत् / बबाद, बेदतुः, बेदुः / बेदिथ / अबादीत्, अबदीत् / खद हिंसायाम् / गंद व्यक्तायां वाचि / गदति / गदेत् / गदतु / अगदत् / जगाद / गद्यात् / गदिता / गदिष्यति / अगादीत् / अगदीत् / नेमादापतपदनदगदवपीवहीशमचिग्यातिवाति ... द्रातिप्सातिस्यतिहन्तिदेग्धौ / 2 / 3 / 79 / . ङ्मेति माङ्मेङोर्ग्रहणम् / अदुरुपसर्गान्तःशब्दस्थाद् रघुव त् परस्योपसर्गस्थस्य नेर्नकारस्य माङादौ परे णो भवति / प्रणिगदति / प्रण्यगदत् / प्रणिजगाद। प्रण्यगदीत् / रद विलेखने / रदति / रदेत् / रदतु / अरदत् / रराद, रेदतुः, रेदुः / रेदिथ / अरादीत् , अरदीत् / णद क्ष्विदा अव्यक्ते शब्दे / नदति / प्रणिनदति / नदेत् / ननाद नेदतुः नेदुः / अनादीत् अनदीत् / मित्करणं वर्तमाने क्तप्रत्ययार्थम् / श्वेदति / चिक्ष्वेद / क्ष्वेद्यात् / अश्वेदीत् / अर्द गतियाचनयोः / अर्दति / अर्देत् / आनद / आर्दीत् / नर्द गर्द गर्द शब्दे / नर्दति अणोपदेशत्वात् प्रनर्दति / णोपदेशस्य तु नर्दति प्रणर्दति / गर्दति / जगर्द / अगर्दीत् / तर्द . Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (43) हिंसायाम् / कर्द कुत्सिते शब्दे / खर्द दशने / अदु बन्धन अन्दति / अन्देत् / अन्दतु / आन्दत् आनन्द। अन्यात् / अन्दिता / अन्दिष्यति। आन्दिष्यत् / आन्दीद / इदु परमैश्वर्ये / इन्दति / इन्देत् / इन्दतु / ऐन्दत् / इन्दाञ्चकार / इन्दाम्बभूव / इन्दामाल / इन्द्यात् / ऐन्दीत् / बिदु अवयवे / बिन्दति / बिन्देत् / बिबिन्द / अबिन्दीत् / णिदु कुत्सायाम् / निन्दति / प्रणिन्दति / निनिन्द / अनिन्दीत् / टुनदु समृद्धौ / नन्दति / नन्देत् / नन्दतु / अनन्दत् / ननन्द / अनन्दीद् / चदु दीप्त्याह्लादनयोः / चन्दति / चचन्द। चन्द्यात् अचन्दीत् / त्रदु चेटायाम् / कदुः ऋदु क्लदु रोदनाह्वानयोः। कन्दति। चकन्द / कन्द्यात् / अकन्दीत् / क्रन्दति / चक्रन्द / अक्रन्दीत् / क्लन्दति / चक्लन्द / अक्लन्दीत् / क्लिदु परिदेवने / क्लिन्दति / क्लिन्देत् / क्लिन्दतु / अक्लिन्दत् / चिक्लिन्द / अक्लिन्दीत् / स्कन्दं गतिशोषणयोः / स्कन्दति। स्कन्देत् / स्कन्दतु / अस्कन्दत् / चस्कन्द। स्कद्यात् / स्कन्ता। स्कन्त्स्यति / अस्कन्त्स्यत् / अस्मान्त्सीत्, अस्कान्ताम् , अस्कान्त्सुः / अस्कान्त्सीः, अस्कान्तम् , अस्कान्त / अस्कान्त्सम्, अस्कान्त्स्व, अस्कान्तस्म / अङि पक्षे अस्कन्दत्, अस्कन्दताम्, अस्कन्दन् / अस्कन्दः, अस्कन्दतम् , अस्कन्दत / अस्कन्दम् , अस्कन्दाष, अस्कन्दाम / इति दान्ता धातवः / षिधू गत्याम् / सेधति / सेधेत् / सेधतु। असेधत् / सिषेध / सिध्यात् / सेधिता / सेधिष्यति / असिध्यात् HEFTHE Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असेधीत् / षिधौ शास्त्रमाङ्गल्ययोः / सेधति / सेंधेत् / सेधतु / असेधन् / सिषेध / सिध्यात् / सेधिता। सेधिष्यति / असेधिष्यत् / असेधीत् / पक्षे सेद्धा / सेत्स्यति / असेत्स्यत् / असैत्सीत् , औदिल्करणाद विकल्पेनेड् / शुन्ध शुद्धौ / शुन्धति / शुशुन्ध / शुभयात् / शुन्धिता / शुन्धिष्यति / अशुन्धिष्यत् / अशुन्धीत् / इति-धान्ता धातवः / स्तन धन ध्वनं चन स्वन वन शब्दे / स्तमति / स्तनेत् / स्तनतु / अस्तनत् / तस्तान / अस्तानीत्, अस्तनीत् / धनति / दधान / अधानीत्, अधनीत् / ध्वनति / दध्वान / अध्वानीत् अध्वनीत् / चनति / चचाम, चेनतुः, चेनुः / अचानीत् अचनीत् / स्वनति / सस्वान / वनति / ववान, ववनतुः, वक्नुः / वन्यात् / अवानीत् , अवनीत् / वन पन सम्भक्तो / सनति / ससान, सेनतुः, सेनुः / असानीत्, असनीत् / कनै दीप्तिकान्तिगतिषु / कनति / कान। अकानीत् , अकनीत् / इति नान्ताः / गुपौ रक्षणे : गुपौधूपविच्छिपणिपनेरायः / 3 / 4 / 1 / . एभ्यो धातुभ्यः स्वार्थे आयः प्रत्ययो भवति / गोपायति / गोपायेत् / मोपायतु / अगोपायत् / ___ अशवि ते वा / 3 / 4 / 4 / * गुपादिभ्यस्ते आयादयः प्रत्यया अशवि वा भवन्ति / Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोपायाश्चकार / गोपायाम्बभूव / गोपायामास / जुगोप। जुगुपतुः, जुगुपुः / अतः / 4 / 3 / 82 / अदन्ताद् धातोर्विहितेऽशिति प्रत्यये परे धातोरकारस्य लुब् भवति / गोपाय्यात् , मुप्यात् / गोषायिना / औदित्त्वादिड्विकल्पः गोपिता, गोप्ता / गोपायिष्यति, गोपिष्यति, गोप्स्यति / अगो-. पायिष्यत् , अगोपिष्यत् , अगोप्स्यत् / अगोपायीत् अगोपायिष्टाम् , अगोपायिषुः / अगोपीत्, अगोपिष्टाम् , अगोपिषुः / अगौप्सीत्, अगौप्ताम् , अगौप्सुः / अगौप्सीः, अगौप्तम् , अगौप्त। अगौप्सम् , अगौरव, अगौप्स्म / तपं धूप संतापे / तपति / तपेत् / तपतु / अतपत् / तताप, तेपतुः, तेपुः / तेपिथ / तप्यात् / तप्ता / तप्स्यति / अतप्स्यत् / अताप्सीत् , अताप्ताम् , असाप्सुः / अवाम्लीः / धूपायति / धूपायेत् / धूपान्यतु / अधूपायत् / धूपायाञ्चकार / धूपायाम्बभूव / धूपायामास / धूप्यात् / धूपायिता, धूपिता / धूपायिष्यति, धूपिष्यति / अधूपायिष्यत् , अधूपिष्यत् / अधूपायीत्, अधूपीत् / रप लप जल्प व्यक्तवचने / रपति / रपेत् / रराप, रेपतुः, रेपुः / रेपिथ। अरापीत्, अरपीत् / लपति / ललाप, हेपतुः, लेषुः / लेषिय / अलापीत् ,. अलपीत् / / जल्पति / जल्पेत् / जल्पतु / अमलात् / मजला, अमल्पतुः, जनलपुः / अजाणीत् / अप मानसे च / अपति / समाप, औपतुः, Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (46) नेपुः / जेपिथ / अनापीत् , अनपीत् / चप सान्त्वने / चपति / चचाप, चेपतुः, चेयुः / चेपिथ। अचपीत्, अचापी / पप समवाये / सपी / सताप, सेपतुः, सेपुः / असापीत् , अतीत् / सप्लं गतौ सति / सपेत् / सर्पतु / असर्पत् / ससर्प, समुपतुः, ससूपुः / सतथि, समृपथुः / सृप्यात् / सप्तर्ता 'स्मृशादिसृपो वा' सप्ता। सर्व्यति, स्रप्स्यति / असय॑त् , अस्रप्स्यत् / अद्यतन्याम् लूदिद्युतादिपुष्यादेः परस्मै / 3 / 4 / 64 / लदितां द्युतादेः पुष्यादेश्च धातोः कर्तर्यद्यतन्यां परस्मैपदेऽड् भवति / असृपत् / अस्पताम् , असृपंन् / असृपः, अस्पतम् , अस्पत / असृपम्, असृपाव, असृपाम / चुप मन्दायाम् / चोपति / चुचोप, चुचुपतुः, चुचुपुः / अचोपीत् / तुपं तुम्प त्रुम घुम्प तुफ तुम्फ त्रुफ त्रुम्फ हिंसायाम् / तोपति / तुतोप / अतोपीत् / तुम्पति / तुम्पेत् / तुम्पतु / अतुम्पत् / तुतुम्प, संयोगान्तत्वात तुतुम्पतुः, तुतुम्पुः / सकारजः शकारश्चेत् पासवर्गस्तवर्गजः / नकारनाउनुस्वारपश्चमौ धुटि धातुषु // 1 // इति नलोपे तुप्यात् / अतुम्पीत् / त्रोपति / तुत्रोप / अत्रोपीत / त्रुम्पति / तुत्रुम्प / इति पान्ता धातवः / तोफति / तुतोफ / अतोफीत् / तुम्फति / तुतुम्फ / अतुम्फीत् / त्रोफति / तुत्रोफ। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (47) अत्रोफीत् / त्रुम्फति। तुत्रुम्फ / अत्रम्फीत्। वर्फ रफ रफु गतौ ।वर्फति वर्फत् / वर्फतु / अवर्फत् / ववर्फ / अवीत् / रफति / रराफ, रेफतुः, रेफुः / अराफीत् , अरफीत् / रम्फति / ररम्फ / अरम्फीत्। इति फान्ता धातवः / अर्ब कर्ब खर्ब गर्ब चर्ब त नर्ब पर्व बर्व शर्ब पर्व सर्व रिबु रबु गतौ / अर्बति / आनर्ब / आर्वीत् / कर्बति। चकर्व / अकर्षीत् / चखर्ब / अखर्वीत् / गर्वति / जगई / अगबीत् / चति / चचर्ब / अचीत् / तर्बति / ततर्ब / नर्बति / ननर्ब / अनीत् / पर्बति / पपर्व / अपीत् / शर्वति / शश अश/त् / सर्वति / ससर्व / असीत् / रिम्बति / रिरिम्ब / रम्बति। ररम्ब / अरम्बीत् / कुबु आच्छादने / लुबु तुबु अर्दने / चुबु वक्त्रसंयोगे / चुम्बति मुखम् / चुचुम्ब / अचुम्बीत् / इति बान्ती धातवः / सृभू सृम्भू स्त्रिभू षिम्भू भर्भ हिंसायाम् / सर्भति / ससर्भ ससृभतुः / सभ्यात् / सर्भिता / सर्भिष्यति / असर्मिष्यत् / असीत् / सम्भति / ससृम्भ / असृम्भीत् / स्रभति / सिनेभ / अत्रेभीत् / सिम्भति / सिषिम्भ / सिभ्यात् / असिम्भीत् / शुम्भ भाषणे / शुन्भति / यमं जम मैथुने / यभति / ययाम, येभतुः / यब्धा, यब्धारौ, यब्धारः / यप्स्यति, यप्स्यतः, यप्स्यन्ति / अयप्स्यत् / अयाप्सीत् , अयाब्धाम् , अयाप्सुः / अयाप्सीः, अयाब्धम् , अयाब्ध / अयाप्सम, अयाप्स्व, अयाप्स्म / जभति / जभेत् / जनाभ, जेभतुः, जेमुः / जेभिय / जभ्यात् / जमिता / अजामीत्, अजभीत् / इति भान्ता Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (48) धातवः / चमू छमू जमू झमू जिमू अदने / चमति ।चमेत् / चमतु / अचमत् / चचाम, चेमतुः, चेमुः। अचामीत् / अचमीत् , आङ्पत्तुि * ष्ठिवुक्लम्बाचमः ' आचामति / आचामेत् / आचामतु / छमति / चछाम कच्छमतुः / अछामीत् , अच्छमीत् / जमति / जजाम / झमति / जझाम / अझाम त् , अझमीत् / जेमति / जेमेत् / जेमतु / अजेमत् / निजेम जिजिमः / जेमीत् / जेमिता / क्रमू पादविक्षेपे / . भ्रापभ्लासभ्रमकालपत्रसित्रुटिलपियसि तंग सर्वा / / 4 / 73 / एभ्यः कर्तरि शिति श्यो वा भवति / क्रमो दीर्घः परस्मै / 4 / 2 / 109 / क्रमेः परस्मैपदनिमित्ते शिति परे दीर्घो भवति / क्राम्यति / क्राम्येत् / क्राम्यतु / अक्राम्यत् / श्याभावे कामति / कामेत् / क्रामतु / अक्रामत् / चक्राम / क्रम्यात् / क्रमिता। क्रमिष्यति / अक्रमिष्यत् / 'न विजागृ-' इत्यादिना वृद्धिनिषेधे अक्रमीत् / यमूं उपरमे गमिषद्यमश्छः / 4 / 2 / 106 / एषामत्यादौ शिति परे छो भवति / 'षष्ठ्याऽन्त्यस्य' यच्छति / यच्छेत् / यच्छतु / अयच्छत् / ययाम, येमतुः, येमुः / Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (49) येमिथः / यम्यात् / यन्ता / यस्यति / अयंस्यत् / अयंसीत् अयं-- .सिष्टाम् अयंसिषुः / अयंसीः अयंसिष्टम् अयंसिष्ट / अयंसिपम् अयंसिष्व अयंसिष्म / स्यमू शब्दे / स्यमति / णमं प्रवत्वे / नमति / नमेत् / नमतु / अनमत् / ननाम नेमतुः नेमुः / नेमियः / नम्यात् / नस्यति / अनस्यत् / अनंसीत् अनंसिष्टाम् अनंसिषुः / अनंसीः अनंसिष्टम् अनंसिष्ट / अनंसिषम् अनंसिष्व अनंसिष्म / पम ष्टम वैक्लव्ये / समति / ससाम सेमतुः सेमुः / असामीत् / स्तमति / स्तमेत् / स्तमतु / अस्तमत् / / तस्ताम तस्तमतुः तस्तमुः / अस्तामीत् / अम शब्दभक्त्योः / अमति / अमेत् / अमतु / आमत् / आम आमतुः आमुः / आमीत् / अम द्रम हम्म मीमृ गम्लं गतौ / द्रमति / दद्राम / अद्रमीत् / हम्मति / जहम्म / अहम्मीत् / मीमति / मिमीम / अमीमीत् / -- गमिषद्यमः छः ' गच्छति / गच्छेत् / गच्छतुक अमच्छत् / जमाम जग्मतुः जग्मुः / जग्मिय, जगन्थ / गन्ता है गमोऽनात्मने / 4 / 4 / 51 / ... गमः परस्य स्तायशितः सादेरिड् भवति, न त्वात्मनेपदे / गमिष्यति / अगमिष्यत् / अद्यतन्याम्-अंगमत् अगमतामा अगमन् / भगमः अगमतम्: अगमत / अगमम् अगमाक अगमाम / इति मान्ता धानकः / हय हर्यः क्लान्तौ च / हयति / जहाय। अहयीत् / हर्यति / जहए। अहीत्। मन्य Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (50) बन्धने / मध्यति / ममव्य / अमव्यीत् / सूर्यु ईर्ष्या ईर्ष्या ईष्या र्थाः / सूय॑ति / सुसूद्यं / असूéत् असूयिष्टाम् असूदियषुः / ईय॑ति / ईर्ष्याञ्चकार / ईर्ष्याम्बभूव / ईर्ष्यामास / ईर्ष्यात् / ईक्ष्यिता / ईक्ष्यिष्यति / ऐयिष्यत् / ऐशत् / ईर्ण्यति ईर्ष्याञ्चकार / ईर्ष्याम्बभूव / ईर्ष्यामास / ऐयात् / शुच्यै चुच्यै अभिषवे / शुच्यति / शुशुच्य / शुच्य्यात् / अशुच्यीत् / चुच्यति / चुचुच्य / चुच्च्यात् / अचुच्यीत् / इति यान्ता धातवः / त्सर छद्मगतौ / त्सरति / त्सरेत् / त्सरतु / अत्सरत् / तत्सार / अत्सारीत् / क्मर हृर्छने / क्मरति / चक्मार / अक्मरीत् / अध्र वभ्र मभ्र गतौ / चर भक्षणे च / धोर गतिचातुर्ये / खोर प्रतिघाते / धोरति / दुधोर / अधोरीत् / खोरति / चुरखोर / अखोरीत् / इति रान्ता धातवः / दल जिफला विशरणे / दलति / ददाल देलतुः देलुः / देलिथ / अदालीत् , अदलीत् / फलति / फलेत् / पफाल फेलतुः फेलुः / अफालीत् , अफलीत् / मील श्मील मील क्ष्मील निमेषणे / मीलति / मिमील / अमीलीत् / एवं श्मीलादीनाम् / पील प्रतिष्टम्भे / पीलति / पिपील / अपीलीत् / णील वरणे / नीलति / निनील / अनीलीत् / शील समाधौ / शीलति / शिशील / अशीलीत् / कील बन्धे / कीलति / अकीलीत् / कूल आवरणे। कूलति / चुकूल / अकूलीत् : शूल रुनायाम् / शूलति / शुशूल / अशूलीत् / तूल निष्कर्षे / तूलति / तुतूल। अतुलीत् / पूल संघाते / मूल प्रतिष्ठायाम् / फल Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निष्पत्तौ / फुल्ल विकसने / फुल्लति वनं विकसतीत्यर्थः / चुल्ल हावकरणे / चिल्ल शैथिल्ये च / पेल फेल शेल पेल सेल वेहल सल तिल तिल्ल पल्ल वेल्ल गतौ / केल क्वेल खेल वेल केल स्खल चलने / स्वलति / चस्खाल / अस्खालीत् / एवं खल संचये च / श्वल श्वल्ल आशुगतौ / गल अदने इति लान्ता भातवः / पूर्व पर्व मर्व पूरणे / पूर्वति / पुपूर्व / अपूर्वीत् / पर्वति / पपर्व / अपर्वीत् / मर्वति। ममर्व / अमीत् / गर्व अभिनिवेशे। गर्वति / जगर्व / अगीत् / ष्ठिवू सिवू निरसने ष्टिवलम्बाचमः / 4 / 2 / 110 / एषां त्यादिभिन्न शिति परे दी| भवति / ष्ठीवति / ठीवेत् / ठीवतु / अष्ठीवत् / तिर्वा ठिकः / 4 / 1 / 43 / ष्ठिवो द्वित्वे सति पूर्वम्य ति इत्यादेशो वा भवति / तिष्ठेन तिष्ठिवतुः तिष्ठिवुः / तिष्ठेविथ / पक्षे टिष्ठेव टिष्ठिवतुः टिष्ठिवुः / टिष्ठेविथ / भ्वादेर्नामिनो दी? वोळञ्जने' ष्ठीव्यात् / ठेविता / छेविष्यति। अष्ठेविष्यत् / अष्ठेवीत् / क्षेवति / चिक्षेव। अक्षेवीत्। नीव प्राणधारणे / जीवति / जिनीव। अजीवीत् / पीव मीव तीव नीव स्थौल्ये / पीवति / पीवेत् / अपीवीत् / मीवति / तीवति / नीवति / पिवु मिवु निवु सेचने। पिन्वति / पिपिन्व। अपिन्वीत्। हिवु दिवु जिबु प्रीणने / हिन्वति / निहिन्व। अहिन्वीत / Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (52) दिन्वति / दिदिन्व / अदिन्वीत् / जिन्वति / निजिन्व / . अजिन्वीत् / इयु व्याप्तौ / इन्वति / ऐन्वत् / इन्वाञ्चकार / इन्वाम्बभूव / इन्वामास। ऐन्वीत् / अव रक्षणगतिकान्तिप्रीतितृप्त्यवगमनप्रवेशश्रवणस्वाम्यर्थयाचनक्रियेच्छादीप्त्यालिङ्गनहिंसादहनभाववृद्धिषु / अवति / आव / अव्यात् / अविता / आगीत् / इति वान्ता धातवः / कश शब्दे / कशति / चकाश / कश्यात् / अकाशीत् , अकशीत् / मिश मश रोषे च / मेशति / मिमेश / अमेशीत् / शश प्लुतिगतौ / शशति / शशाश। अशाशीत् , अशशीत् / णिश समाधौ / नेशति / निनेश / अनेशीत् / दृशृं प्रक्षणे / 'श्रौतिकृयु'-इत्यादिना पश्यति / पश्येत् / पश्यतु / अपश्यत् / ददर्श ददृशतुः ददृशुः / ददर्शिथ पक्षे---- ____ अः सृजिदृशोऽकिति / 4 / 4 / 111 / / अनयोः स्वरात् परोऽदन्तो भवति धुडादौ प्रत्यये परे, न तु किति / दद्रष्ठ / दृश्यात् / द्रष्टा / द्रक्ष्यति / अद्रक्ष्यत् / अद्यतन्यां तु अपक्षे-- ऋवर्णदृशोऽङि / 4 / 3 / 7 / __ऋवर्णान्तानां दृशेश्च गुणो भवति अङि परे / अदर्शत् अदर्शताम् अदर्शन् / पक्षे अद्राक्षीत् / ‘धुहस्वाल्लुगनिटस्तथोः' इति सिन्लुकि अद्राष्टाम् / अद्राक्षुः / अद्राक्षीः अद्राष्टम् अद्राष्ट / अद्राक्षम् अद्राक्ष्व अद्राक्ष्म / दंशं दशने / दशति / Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (53) दशेत् / दशंतु / अदशत् / ददंश / दश्यात् / दंष्टा / दक्ष्यति / अदक्ष्यत् / अदाङ्क्षीत् अदांष्टाम् अदाक्षुः / इति शान्ता धातवः / घुष शब्दे / घोषति / जुघोष / अधुषत् , अघोषीत् / खूष प्रसवे / ऊष रुजायाम् / ऊषति / उवाञ्चकार / ऊषाम्बभूव / ऊषामास / ऊष्यात् / ऊषिता। ऊषिष्यति / औषिष्यत् / औषीत् / ईष उञ्छे / ईषति / ईषेत् / ईषतु / ऐषत्। ईषाञ्चकार / ईषाम्बभूव / ईधामास / ऐषीत् / कृषं विलेखने / कर्षति / चकर्ष / चकर्षिथ / कृष्यात् / . . . स्पृशादिसृपो वा / 4 / 4 / 112 / स्पृशमृशकृषपदृपां सृपश्च स्वरात् परो धुडादौ प्रत्यये परे अदन्तो वा भवति, न तु किति / क्रष्टा पक्षे का / ऋक्ष्यति पक्षे कर्श्यति / अक्रक्ष्यत् , अकय॑त् / ___ स्पृशमशकृपतृपडपो वा / 3 / 4 / 54 / एभ्यो धातुभ्योऽद्यतन्यां सिञ् वा भवति / अकार्षीत् अकाष्र्टाम् अकाभ्रुः / अकार्षीः अकाटम् अकार्ट / अकार्शम् अकाल अकाद्म / अकारागमे अक्राक्षीत् / सिजोऽभावे हशिटो नाम्युपान्त्याददृशोऽनिटः सक् / 3 / 4 / 55 / . हकारान्ताद् दृशिभिन्नात् शिडन्ताद् नाम्युपान्त्यादनिटोऽध तन्यां सक् भवति / अकृक्षत् अकृक्षताम् अकृक्षन् / अकृक्षः .अकृक्षतम् अकृक्षत / अक्षम् अकृक्षाव अकृक्षाम 1 कक्ष Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (54) शिष जब झष वष मष मुष रुष रिष यूष जूष शष चषं हिंसायाम् / वृबू संघाते च / भव भसने / जिषू विषू मिषू निषू पृषू वृषू सेचने / मृषू सहने च / उधू श्रिषू श्लिषू प्रषू प्लुष दाहे। ओषति / उवोष / औषीत् / घृषू संघर्षे / हृषू अलीके / घर्षति / जघर्ष / अघर्षीत् / हर्षति / जहर्ष / अहर्षीत् / पुष पुष्टौ / पोपति / पुपोष / अपोषीत् / भूव तमु अलङ्कारे / भूवति / बुझ्ष / अभूषीत् / इति षान्ता धातवः / तंसति / ततंस / अतंसीत् / लप्स श्लेषणक्रीडनयोः / लसति / ललास लेसतुः लेसुः / लेसिथ / अलासीत् / घस्लं अदने / घसति / घसेत् / जघास / गमहनजनखनघसः स्वरेऽनङि विङति लुक . / / 2 / 44 / / एषामुपान्त्यस्याङजर्ने स्वरादौ विङति परे लुग् भवति / घस्वसः / 2 / 3 / 36 / नाम्यादेः परम्य घस्वप्तोः सः षो भवति / जक्षतुः जक्षुः / जबसिथ, जवस्थ / घयात् / यस्ता वस्तारौ घस्तारः / सस्तः सि / 4 / 3 / 92 / - धातोः सन्तस्याशिति सादौ प्रत्यये विषयभूते तो भवति / घस्यति। अघत्स्यत् / अवसत् अघसताम् अघसन् / अघसः अक्सतम् अघसत / अघसम् अघसाव अघसाम / हसे हसने / हसति / महास / अहसीत् / पिस पेस वेस गतौ / पेसति / पिपेस पिपे Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (55) सतुः पिपेसुः अपेसीत् / शसू हिंसायाम् / शसति / शशास / अशासीत् , अशसीत् / शंसू स्तुतौ च इति सान्ता धातवः / मिहं सेचने। मेहति / मिमेह / मिह्यात् / मेढा। मेक्ष्यति / अमेक्ष्यत् / अमेक्षत् अत्र सक् अमेक्षताम् अमेक्षन् / अमेक्षः अमेक्षतम् अमेक्षत। अमेक्षम् अमेक्षाव अमेक्षाम। दहं भस्मीकरणे / दहति / दहेत् / दहतु। अदहत् / ददाह देहतुः देहुः / देहिथ, ददग्ध / दह्यात् / दग्धा / धक्ष्यति / अधक्ष्यत् / अधाक्षीत् अदाग्धाम् अधाक्षुः / अधाक्षीः अदाग्धम् अदाग्ध / अधाक्षम् अधाक्ष्व अधाक्ष्म / रह त्यागे। रहु गतौ / रंहति / ररंह / अरंहीत् / दृह दृहु बृह वृद्धौ / बृह बृहु शब्दे च / बर्हति / बबह / अद्यतन्यामङि अबृहत् अबृहताम् अबृहन् / अङभावे अबहीत् अबर्हिष्टाम् अबर्हिषुः / बृंहति / बबृंह / अबृहीत् / उह तुहू दुहु अर्दने / ओहति / औहत् , औहीत् / तोहति / तुतोह / अतुहत् , अतोहीत् / दोहति / दुदोह / अदुहत् , अदोहीत् / अर्ह मह पूजायाम् / अर्हति / आनर्ह / आीत् / महति / ममाह मेहतुः मेहुः / अमहीत् / इति हान्ता धातवः / उक्ष सेचने / उक्षति / उक्षाञ्चकार / उक्षाम्बभूव / उक्षामास / औक्षीत् / रक्ष पालने रक्षति / ररक्ष / अरक्षीत् / मक्ष मुक्ष संघाते / मुक्षति / मुमुक्ष / अमुक्षीत् / अक्षौ व्याप्तौ च / ... ... वाऽक्षः / 3 / 4 / 76 / ... अक्षधातोः कर्तरि विहित शिति प्रत्यये नुर्वा भवति / ... FELFIEEEEEEEEE Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनोः / 4 / 3 / 2 / ' धातोः परयारुनोः प्रत्यययोः स्थाने गुणो भवति, अक्ङिति प्रत्यये परे / अक्ष्णोति अक्ष्णुतः अक्ष्णुवन्ति / अक्ष्णोषि अक्ष्णुथः अक्ष्णुथ / अक्ष्णोमि अक्ष्णुवः अक्ष्णुमः / अक्ष्णुयात् / अक्ष्णोतु, अक्ष्णुतात् अणुताम् अक्ष्णुवन्तु / अक्ष्णुहि, अक्ष्णुतात् / आक्ष्णोत् / पश्ये अक्षति / अक्षेत् / अक्षतु / आक्षत् / आनक्ष / आनक्षिय, आनष्ठ। अक्ष्यात् / अक्षिता, अष्टा / अक्षिष्यति, अक्ष्यति / आक्षिष्यत् , आक्ष्यत् / आक्षीत् आक्षिष्टाम् आक्षिषुः / इडभावे आष्टाम् आक्षुः / आष्टम् आष्ट / आक्षम् आश्व आक्ष्म / तक्षौ त्वक्षौ तनूकरणे / तक्षति / ततक्ष ततक्षतुः / ततक्षिथ, ततष्ठ / तस्यात् / तक्षिता, तष्टा / तक्षिष्यति, तक्ष्यति / अतक्षिष्यत् , अतक्ष्यत् / अतक्षीत् अतक्षिष्टाम् अतक्षिषुः / इडभावपक्षे अताक्षीत् अताष्टाम् अताक्षुः / त्वक्षति / तत्वक्ष / अत्वक्षीत् , अत्वाक्षीत् / णिक्ष चुम्बने / वक्ष रोषे / त्वक्ष त्वचने / सूर्त अनादरे / कानु वाक्षु माक्षु काङ्क्षायाम् / सुं गतौ सरति / सरेत् / सरतु / असरत् / वेगे सर्तेर्धात् / 4 / 2 / 107 / वेगे गम्यमाने सृधातोरत्यादौ शिति परे धावादेशो भवति / धावति / धावेत् / धावतु / अधावत् / ससार सस्रतुः सस्नुः / सर्ता / सरिष्यति / असरिष्यत् / Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (57) सर्त्यर्तेर्वा / 3 / 4 / 61 / आभ्यां कर्तर्यद्यतन्यामङ् वा भवति / असरत् असरताम् असरन् / पक्षे असार्षीत् असाटम् असाघुः इत्यादीनि रूपाणि / इति भ्वादिगणे परस्मैपदं समाप्तम् / अथात्मनेपदम् / गाङ् गतौ -- इङितः कर्तरि ' इत्यात्मनेपदम् / शवि दीये च गाते, गाते / / अनतोऽन्तोऽदात्मनेपदे / 4 / 2 / 114 / . .. अनतः परस्यात्मनेपदस्यस्यान्तोऽद् भवति / गाते / गासे गाथे गाध्वे / 'इडेत्युसि चातो लुकू ' इति गे गावहे गामहे / गेत गेयाताम् गेरन् / गेथाः गेथाथाम् गेध्वम् / गेय गेवहि गेमहि / गाताम् गाताम् गाताम् / गास्व गाथाम् गाध्वम् / गै गावहै गामहै / अगात अगाताम् अगात / अगाथाः अगाथाम् अगाध्वम् / अगे अगावहि अगामहि / जगे जगाते जगिरे / जगिषे जगाथे जगिध्वे / जगे जगिकहे जगिमहे / गासीष्ट गातीयास्ताम् गासीरन् / गासिष्ठाः गासीयास्थाम् गासीध्वम् / गासीय गातीवहि गासीमहि / गाता गातारौ गातारः / गातासे गातासाये Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (58) गाताध्वे / गाताहे गातास्वहे गातास्महे / गास्यंत गास्येते. गास्यन्ते / गास्यसे गास्येथे गास्यध्वे / गास्ये गास्यावहे गास्यामहे / अगास्यत अगास्येताम् अगास्यन्त / अगास्यथाः अगास्येथाम् अगास्यध्वम् / अगास्ये अगास्यावहे अगास्यामहे / अद्यतन्याम्-अगास्त अगासाताम् अगासत / अगास्थाः अगासाथाम् अगावम् / अगासि अंगास्वहि अगास्महि / मिङ् ईषद्धसने / शवि गुणे च स्मयते स्मयेते स्मयन्ते / स्मयसे स्मयेथे स्मयध्वे / स्मये स्मयावहे स्मयामहे / स्मयेत स्मयेयाताम् स्मयेरन् / स्मयेथाः स्मयेयाथाम् स्मयेध्वम् / स्मयेय स्मयेवहि स्मयेमहि / स्मयताम् स्मयेताम् स्मयन्ताम् / स्मयस्व स्मयेथाम् स्मयध्वम् / स्मयै स्मयावहै स्मयामहै / अस्मयत अस्मयेताम् अस्मयन्त / अस्मयथाः अस्मयेथाम् अस्मयध्वम् / अस्मये अस्मयावहि अस्मयामहि / परोक्षायाम्-सिध्मिये सिष्मियाते सिष्मियिरे / सिध्मियिषे सिष्मियाथे सिष्मियिढ्वे, सिष्मियिध्वे / सिष्मिये सिष्मियिवहे सिष्मियिमहे / स्मेषीष्ट स्मेषीयास्ताम् स्मेषीरन् / स्मेता स्मेतारौ स्मेतारः / स्मेतासे। स्मेष्यते स्मेष्येते स्मेष्यन्ते। अस्मेष्यत अस्मेष्येताम् अस्मेष्यन्त / अद्यतन्याम्-अस्मेष्ट अस्मेवाताम् अस्मेषत / अस्मेष्ठाः अस्मेषाथाम् अस्मेड्ढ्वम् / अस्मेषि अस्मेष्वहि अस्मेष्महि // डीङ् विहायसां गतौ डयते / डयेत / डयताम् / अडयत / डिड्ये डिड्याते डिडियरे / डयिषीष्ट / डयिता / डयिष्यते / अडयिष्यत / अड Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यिष्ट अडर्यिषाताम् अडयिषत / उङ कुङ् गुंङ् थुङ डुङ् शब्दे / अवते / अवेत / अवताम् / आवत / ऊवे ऊवाते ऊविरे / ओषीष्ट। ओता।ओष्यते। औष्यत ।औष्ट औषाताम् औषत। कवते / चुकुवे। गवते / जुगुवे / अगोष्ट / घवते / जुघुवे / अघोष्ट / ङवते / झुडुवे / अङोष्ट / च्युङ ज्युङ जुंङ श्रृंङ प्लुङ् गतौ। च्यवते / च्यवेतः / च्यवताम् / अच्यवत / चुच्युवे / च्योषीष्ट / च्योता। च्योष्यते / अच्योध्यत / अच्योष्ट / रुंड रोषणे / रदते / ले अरोष्ट / पूङ पवने / पवते / पवेत / पवताम् / अपवत / पुपुले में पविषीष्ट / पविता / पविष्यते / अपविष्यत / अपविष्ट अपविषाताम् अपविषत / मूङ बन्धने / मवते / मवेत / मवताम् / अमवत / मुमुवे / मविषीष्ट / मविता / मविष्यते / अमविष्यत / अमविष्ट / धृङ् अवध्वंसने / धरते / दधे। अधरिष्ट। में प्रतिदाने / मयते। मयेत / मयताम् / अमयत / ममे / अमास्त अमासातलम् अमासत / अमास्थाः अमासाथाम् अमाद्ध्वम् / अमासि अमास्वहि अमास्महि / दे —ङ् पालने / दयते / दयेत / दयताम् / अदयत / परोक्षायाम् . देर्दिगिः परोक्षायाम् / 4 / 1 / 32 / देधातोः परोक्षायां दिगिरादेशो भवति, न च द्विः / दिग्ये दिग्याते दिग्यिरे / दासीष्ट / दाता। दास्यते / अदास्यत। अद्यतन्याम् Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) इश्च स्थादः / 4 / 3 / 41 / / ..स्थाधातोर्दासंज्ञकाचात्मनेपदविषयः सिच् किवद् भवति / तद्योगे चानयोरिः / 'धुहम्वाद' इत्यादिना सिच्लुकि अदित अदिषाताम् अदिषत / अदिथाः अदिषाथाम् अदिद्ध्वम् / अदिषि अदिष्वहि अदिष्महि / वकुङ् कौटिल्ये। वङ्कते / ववके / अवङ्किष्ट / अकुछ लक्षणे / अङ्कते। अङ्केत / अङ्कताम् / आङ्कत / आनथे / अङ्किषीष्ट / अङ्किता। अङ्किष्यते / आतिध्यत / आकिष्ट / शीकृङ् सेचने / शीकते / शीकेत / शिशीके। अशीकिष्ट / लोकृङ् दर्शने / लोकते / लुलोके। अलोकिष्ट / श्लोकृङ् संवाते / द्रेकङ् धेकृङ्, शब्दोत्साहे / रेकङ् शकुङ शङ्कायाम् / ककि लौल्ये। ककते / ककेत / ककताम् / अककत / चकके चककाते चककिरे / ककिषीष्ट / ककिता। ककिष्यते। "अककिष्यत / अककिष्ट / कुकि वृकि आदाने / चकि तृप्तिप्रति'घातयोः / ककुङ् श्वकुङ् त्रकुङ् श्रकुङ् श्लकुङ ढोकृङ् नौका ध्वष्कि वस्कि मस्कि तिकि टिकि टीकृङ् सेकृङ् स्रेकृङ् रघुङ् लघुङ गतौ / कङ्कते / चकङ्के / अकङ्किष्ट / ढौकते / डुढौके / अढौकिष्ट / लङ्घते / ललचे / अलविष्ट / अघुङ् वधुङ् गत्याक्षेपे / आविष्ट / अवविष्ट / मधुङ् कैतवे च / मङ्घते / अमविष्ट / श्लाघृङ् कत्थने / श्लाघते / लोचूङ् दर्शने / लोचते / लुलोचे / अलोचिष्ट / पचि सेचने / सचते। कचि बन्धने / कचते / चकचे। अकचिष्ट / वर्चि दीप्तौ / मचि मुचुङ् कल्कने / मुञ्चते / मुमुझे। Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भमुञ्चिष्ट / पचुङ व्यक्तीकरणे पञ्चते / पपञ्चे / अपश्चिष्ट / एजुक् भ्रेजुङ भ्राजि दीप्तौ / एजते / एजाञ्चक्रे / एजाम्बभूवे / / अस्तेः सि हस्त्वेति / 4 / 3 / 73 / अस्तेः सः सादौ प्रत्यये परे लुब् भवति, एति परे तु सो हः स्यात् / एजामाहे / एनिषीष्ट / एजिता / एजिष्यते / ऐनिष्यत / ऐनिष्ट / इजुङ् गतौ / इञ्जते / इञ्जाञ्चक्रे / इञ्जाम्बभूवे / इञ्जामाहे / इञ्जिषीष्ट / इञ्जिता / इञ्जिष्यते। ऐञ्जिष्यत / ऐञ्जिष्ट / ऋजि गतिस्थानार्जनोपार्जनेषु / अर्जते / आनृजे / आर्जिष्ट / ऋजुङ् भृजैङ् भन्ने / ऋञ्जते / आनृङ्गे / आख्रिष्ट / तिनि क्षमानिशानयोः क्षमायां ‘गुप्-तिजः '-इति तितिक्षते चेष्टि चेष्टायाम् / चेष्टते / अचेष्टिष्ट / एठि हेठि विबाधायाम् / एठते / एठाञ्चके / एठाम्बभूवे / एठामाहे / ऐठिष्ट / हेठते / निहेठे। अहेठिष्ट / मठुङ् कठुङ् शोके / मुठुङ पलायने / मुण्ठते / मुमुण्ठे। अमुण्ठिष्ट / अठुङ् पठुङ् गतौ / अण्ठते. आनण्ठे। आण्ठिष्ट / पण्ठते / पपण्ठे / अपण्ठिष्ट / हुडुङ पिडुङ संघाते / हिडुङ गतो च / हिण्डते / निहिण्डे / अहिण्डिष्ट / शडुङ् रुजायां च / शण्डते / शशण्डे / अशण्डिष्ट / तडुङ् ताडने / तण्डते / ततण्डे। अतण्डिष्ट / घिणुङ् घुणुङ् घृणुङ् ग्रहणे / घिण्णते / निघिण्णे / अघिण्णिष्ट / पणि व्यवहारस्तुत्योः / 'गुपौधूप-' इत्यादिनाऽऽयप्रत्ययः / अनुबन्धस्याशवि परे आयप्रत्ययान्ताभावपक्षे चरितार्थत्वाद् आयप्रत्यये सति आत्मनेपदं न भवति / पणायति / पणा-. Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ येत् / पणायतुं / अपणायत् / पणायाञ्चकार, पणायाम्बभूव, पणायामास / पेणे पेणाते पेणिरे / पणाय्यात् , पणिषीष्ट / पणायिता, पणिता। पणायिष्यति, पणिष्यते / अपणायिष्यत् , अपशिष्यत / अपणायीत् , अपणिष्ट / यतैङ् प्रयत्ने / यतते / यतेत। यतताम् / अयतत / येते येताते येतिरे। येतिषे येताथे येतिध्वे / येते येतिवहे येतिमहे / यतिषीष्ट / यतिता / यतिष्यते / अयतिव्यत / अयतिष्ट / युतृङ् जुलुङ भासने / योतते / युयुते / अयोतिष्ट / जोतते / जुजुते। अजोतिष्ट / नाथूङ उपतापैश्वर्याशीःषु च / -नाथते / नाथेत / नाथताम् / अनाथत / श्रथुङ् शैथिल्ये / श्रन्थते / ग्रथुङ् कौटिल्ये / ग्रन्थते / जग्रन्थे / अग्रन्थिष्ट / कत्थि श्लाघायाम् / कत्यते / चकत्थे / अकत्थिष्ट / श्विदुङ् श्वेत्ये / श्चिन्दते / शिश्विन्दे / अश्विन्दिष्ट / वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः / वन्दते / ववन्दे / अवन्दिष्ट / भदुङ् सुखकल्याणयोः / भन्दते / बभन्दे / अभन्दिष्ट / स्पदुङ् किश्चिञ्चलने / स्पन्दते / पस्पन्दे / अस्पन्दिष्ट / क्लिदुङ् परिदेवने / मुदि हर्षे / मोदते / मुमुदे / अमोदिष्ट / ददि दाने। ददते। ददेत / ददताम् / अददत / दददे / ददिषीष्ट / ददिता / ददिष्यते / अददिष्यत / अददिष्ट / हदि पुरीषोत्सर्गे। हदते। हदेत / हदताम् / अहदत / जहदे / हत्सीष्ट / हत्ता / हत्स्यते / अहत्स्यत / अहत्त अहत्साताम् अहत्सत / ष्वदि स्वदिस्वादि आस्वादने / स्वदते / सस्वदे / अस्वदिष्ट। उर्दि मानक्रीडनयोश्च / उर्दते / उदेत / उर्दताम् / और्दत / उर्दाश्चक्रे / Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (63) उर्दाम्बभूवे / उर्दामाहे / उर्दिषीष्ट / उदिता / उर्दिष्यते / और्दिष्यत / और्दिष्ट / घूदि क्षरणे।पर्दि कुत्सिते शब्दे / स्कुदुङ् आप्रवणे। स्कुन्दत / चुम्बुन्दे / अस्कुन्दिष्ट / एघि वृद्धौ। एधते / एधेत / एधताम् / ऐधत / एधाञ्चक्रे / एधाम्बभूवे / एधामाहे / एधिषीष्ट / एधिता / एविष्यते / ऐधिष्यत / ऐधिष्ट / स्पर्धि संघर्षे / स्पर्धते। पस्पध / अस्पर्धिष्ट / गाधूङ् प्रतिष्ठालिप्साग्रन्थेषु / बाधड़ रोटने / बाधते। दधि धारणे / दधते / अदधिष्ट। नाधृङ् उपतापैश्वर्याशीःषु च / पनि स्तुतौ / पनायति / पनायेत् / पनायतु / अपनायत् / पनायाञ्चकार / पनायाम्बभूव / पनायामास / पेने / पनाय्यात् , पनिषीष्ट / पनायिता, पनिता / पनायिष्यति, पनिष्यते। अपनायिष्यत् , अपनिष्यत / अपनायीत, अपनिष्ट / मानि पूजायाम् / विचारे 'शान्दान्मान्-' इति मीमांसते / / तेपृङ् कम्पने च / त्रपौषि लज्जायाम् / त्रपते / त्रपेत / त्रपताम् / अत्रपत / 'तृत्रफ फलभजाम् ' त्रेपे पाते त्रेपिरे / त्रेपिषे त्रेपाथे त्रेपिध्वे / पे पिवहे पिमहे / त्रेपिषीष्ट, त्रप्सीष्ट 'धूगौदितः ' इति विकल्पेट् / त्रपिता, त्रप्ता / त्रपिष्यते, त्रप्स्यते / अत्रपिष्यत , अत्रफ्यत / अत्रपिष्ट, अत्रप्त / गुपि गोपन-कुत्सनयोः / गर्हायां / 'गुप्-तिजः' इति जुगुप्सते ।अबुङ्बुङ शब्दे। अम्बते / आनम्बे - आम्बिष्ट / रम्बते / ररम्बे। अरम्बिष्ट / कबृङ् वर्णे। क्लीबृङ अधाष्ये / क्षीबृङ् मदे। वल्भि भोजने / गल्भि धाये / रभिं राभस्ये। रभते / रभेत / रभताम् / अरभत / रेभे Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रैभाते रेभिरे / रप्लीष्ट / रब्धा / रप्स्यते / अरप्स्यत / . अरब्ध अस्प्साताम्, अरप्सत / अरब्धाः / डुलभिष् प्राप्तौ / लभते / लभेत / लभताम् / अलभत / लेभे / लब्धा / लप्स्यते / अलप्स्यत / अलब्ध / भामि क्रोधे / क्षमौषि सहने / क्षमते / क्षमेत / क्षमताम् / अक्षमत। चक्षमे / क्षमिषीष्ट, क्षमीष्ट / क्षमिता, क्षन्ता / समिष्यते, क्षस्यते / अक्षमिष्यत, अक्षस्यत / अक्षमिष्ट / अक्षस्त अक्षंसाताम् अक्षंसत / अक्षस्थाः अक्षंसायाम् अक्षद्ध्वम् / अक्षसि अक्षस्वहि अक्षस्महि / काङ् कान्तौ। कमेणिङ् / 3 / 4 / 2 / ___ कमेः स्वार्थे णिङ् भवति / कामयले / कामयेत / कामयताम् / अकामयत / कामयाञ्चक्रे, कामयाम्बभूवे, कामयामाहे / जको चकमाते. चकमिरे / चकमिषे / ' अशवि ते वा' / कामयिषीष्ट, कमिषीष्ट / कामयिता, कमिता / कामयिष्यते, कमिष्यते / अकामयिष्यत , अकमिष्यत / 'णिश्रिद्रुनुकमः कर्तरि अ.' अचकमत / णिपक्षे तु ' असमानलोपे सन्वल्लघुनि डे' ‘लघोदीर्घोऽस्वरादेः ' इति अचीकमत / अयि वयि पयि मयि नयि चयि रयि गतौ / अयते / प्र+अयते- उपसर्गस्यायौ। 2 / 3 / 10 / . उपसर्गस्थस्य रकारस्यायधातौ परे लकारो भवति / प्लायते / पलायते / अयेत / अयताम् / आयत / Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दयायास्कासः / 3 / 4 / 47 / एभ्यो धातुभ्यः परस्याः परोक्षाया आम् भवति / आमन्ताच् परे कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनुप्रयुज्यन्ते / अयाञ्चक्रे अथाम्बभूवे / अयामाहे / अयिषीष्ट / अयितासे / अयिष्यते / आयिष्यत / आयिष्ट / वयते / पयते / नयते / रयते / तयि णयि रक्षणे च / तयते / तेये / अतयिष्ट / नयते / नेये / अनयिष्ट / दयि दानगतिहिंसादहनेषु च / दयते / दयेत / दयताम् / अदयत / दयाञ्चके / दयाम्बभूवे / दयामाहे / दयिषीष्ट / दयिताम दयिष्यते / अदायथ्यत / अदविष्ट / क्ष्मायैङ् विनायते / क्ष्मायेत / क्ष्मायताम् / अक्ष्मायत / चक्ष्माये / क्ष्मायिषीष्ट / क्ष्मायिता / क्ष्मायिष्यते / अक्ष्मायिष्यत्त / अक्ष्मायिष्ट / स्फायैङ् ओप्यायैङ् वृद्धौ / स्फायते / स्फायेत / स्फायताम् / अस्फायत / पस्फाये / अस्फायिष्ट / प्यायते / प्यायेत / प्यायताम्न अप्यायत / परोक्षायाम् ... ... ... ... ... प्यायः पीः / 4 / 1 / 91 / प्यायः परोक्षायोः पीभवति / पिप्ये आपिप्ये / अद्यतन्याम्- .. .. .... दीपजनवुधिपूरितायियायो का।३। 4 / 67 / .. एभ्यः कर्तर्यद्यतन्यास्ते परे भिन्वा भवति, तलुक् च। अप्यायि, अप्यायिष्ट / तावृद्ध संतानपालनयोः / तायते / तताये। अतायि, अतायिष्ट / वलि वल्लि सवरणे / वलते / ववले / अव Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (66) लिष्ट / शलि चलने च / शलते / शेले / अशलिष्ट / कलि शब्दसंख्यानयोः / कलते / चकले / अकलिष्ट / काशृङ् दीप्तौ / काशते / चकाशे / अकाशिष्ट / क्लेशि विवाधने / क्लेशते / चक्लेशे / अक्लेशिष्ट / भाषि व्यक्तायां वाचि / भाषते / बभाषे / अभाषिष्ट / ईषि गतिहिंसादर्शनेषु / ईषते / ईषाञ्चक्रे / ईषाम्बभूव। ईषामाहे / ऐषिष्ट / कासृङ शब्दकुत्सायाम् / कासते। कासाञ्चक्र / कासाम्बभूवे / कासामाहे / अकासिष्ट / भासि टुभ्रासि टुम्लासृङ दीप्तौ / भ्रासते ' भ्रासम्लास-' इत्यादिना वा श्ये कृते भ्रास्यते / भ्लासते, भ्लास्यते / रासृङ् णासृङ् शब्दे / रामते / ररासे / अरासिष्ट / नासते / ननासे / अनासिष्ट / णमि कौटिल्य। नसते / नेसे / अनसिष्ट / भ्यसि भये / भ्यसते / बभ्यसे / अभ्यसिष्ट / आङ् शंसुङ् इच्छायाम् / आशंसते / आशशंसे / आशंसिष्ट / ईहि चेष्टायाम् / ईहते / ईहाञ्चके / ईहाम्बभूवे / ईहामाहे / ऐहिष्ट / उहि वितर्के / उहते / उहाञ्चक्रे / औहिष्ट / गाहौङ् विलोडने / गाहते / जगाहे। गाहिषीष्ट, बाक्षीष्ट / गाहिता, गाढा। गाहियते, घाक्ष्यते / अगाहिष्यत, अवाक्ष्यत / अगाहिष्ट, अगाढ / अगाहिषाताम् , अवाक्षाताम् / अगाहिपत, अवाक्षत / अगाहिष्ठाः, अगाढाः / अगाहिषाथाम् , अघाक्षाथाम् / अगाहिड्ढ़वम् , अगाहिड्ढ्वम् , अगाहिध्वम् , अघागड्ढ्वम् , अवाढ्वम्। अघाक्षि, अगाहिषि / अगाहिष्वहि, अघावहि / अगाहिष्महि, अघाक्ष्महि / ग्लाहौड़ ग्रहणे / ग्लाहते। दक्षि शैव्ये च।दक्षते / दक्षे / अदक्षिष्ट Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (67) शिक्षि विद्योपादाने / शिक्षते / शिक्षेत / शिक्षताम् / अशिक्षत क शिशिक्षे / शिक्षिषीष्ट / शिक्षिता / शिक्षिष्यते / अशिक्षिष्यत / अशिक्षिष्ट / भिक्षि याञ्चायाम् / भिक्षते / बिभिक्षे / अभिक्षिष्ट / दीक्षि मौण्डयेज्योपनयननियमत्रतादेशेषु / दीक्षते / दिदीक्षे / अदीक्षिष्ट / ईक्षि दर्शने / ईक्षते / ईक्षाञ्चक्रे ? ईक्षाम्बभूवे / ईक्षामाहे / ऐलिष्ट / इत्यात्मनेपदं समाप्तम् / अथोभयदिनः / श्रिग सेवायाम् 'ईगितः' इति फलवति कर्तर्यात्मनेपदमन्यथा परस्मैपदम् / श्रयते / श्रयेत / श्रयताम् / अनयत / शिश्रिये / श्रयिषीष्ट / श्रयिता / श्रयिष्यते / अयिष्यत / अद्यतन्याम्"णिश्रि-' इत्यादिना प्रत्यये द्वित्वे अशिश्रियत / श्रयति / श्रयेत् / श्रयतु / अश्रयत् / शिश्राय / श्रीयात् / श्रयिता / श्रयिष्यति / अश्रयिष्यत् / अशिश्यित् / णींग प्रापणे / नयति / नयते / नयेत् / नयेत / नयतु / नयताम् / अनयत् / अनयत / निनाय / निन्ये / नीयात् / नेपीष्ट / नेतासि / नेतासे / नेष्यति / नेष्यते / अनेप्यत् / अनेष्यत / अनैषीत् ! अनेष्ट / हंग हरणे / हरति / हरते / जहार / जहे। ऋवर्णात् / 4 / 3 / 36 / - ऋवर्णान्ताद् धातोरनिटावात्मनेपदक्षियौ सिजाशिषौ द्विद् Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (68) भक्तः / हषीष्ट -- रिः शक्याशीर्ये ' हियात् / हर्ता / हरिष्यति / हरिष्यते / अहरिष्यत् / अहरिष्यत / अहार्षीत् / सिचः कित्त्वे गुणाभावे सिज्लुकि अहृत अहषाताम् अहृषत / भुंग भरणे / भरति / भरते / वभार बभ्रतुः बत्रुः / बभर्य वभ्रथुः बभ्र / बभार, वभर बभूव बभ्रम / बभ्रे बभ्राते बधिरे / बभृषे वभ्राथे बभृट्वे / बभ्रे बभूवहे / बभृमहे / भ्रियात् / भृषीष्ट / अभाषीत् अभागम् अभार्षः / अभृत अभृषाताम् अभृषत / डुकंग करणे कृगस्तनादेरुः / 3 / 4 / 83 / कृगस्तनादैश्च कर्तरि विहिते शिति परे उर्भवति / कृ+उ+ति ___ उश्नोः / 4 / 3 / 2 / धातोरुनोः प्रत्यययोरक्ङिति गुणो भवति / कृ+ओ+ति 'नामिनः-' इत्यादिना गुणे करोति / तसि अतः शित्युत् / 4 / 2 / 8 / अविति शिति परे य उप्रत्ययः तन्निमित्तस्य कृगोऽकारस्य उकारो भवति / कुरुतः / कुर्वन्ति / करोषि कुरुथः कुरुथ / करोमि कृगो यि च / 4 / 2 / 88 / / कृगः परस्योतो यादौ वमि चाविति लुग् भवति / कुर्वः कुर्मः / कुरुते कुर्वाते कुर्वते / कुरुषे कुर्वाथे कुरुध्वे / कुर्वे कुर्वहे कुर्महे / कुर्यात् कुर्याताम् कुर्युः / कुर्याः कुर्यातम् कुर्यात / Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुर्याम् कुर्याव कुर्याम / कुर्वीत कुर्वीयाताम् कुरिन् / कुर्वीथाः कुर्वीयाथाम् कुर्मध्वम् / कुर्वीय कुर्वीवहि कुर्वीमहि / करोतु, कुरुतात्. कुरुताम् कुर्वन्तु / ... असंयोगादोः। 4 / 2 / 86 // ... असंयोगात् परो य उस्तदन्तात् प्रत्ययात् परस्य हेढुंग भवति / कुरु, कुरुतात् कुस्तम् कुरुत / करवाणि करवाव करवाम / कुरुताम् कुर्वाताम् , कुर्वताम् / कुरुष्व कुर्वाथाम् कुरुध्वम् / करकै करवावहै करवामहै। अकरोत् अकुरुताम् अकुर्वन् / अकरोः अकुरुतम् अकुरुत / अकरवम् अकुर्व अकुर्म / अकुरुत अकुर्वाताम् अकुर्वत / अकुरुथाः अकुर्वाथाम् अकुरुध्वम् / अकुर्वि अकुर्वहि अकुर्महि / चकार चक्रतुः चक्रुः / चकम् / चक्रे चक्राते चक्रिरे। चकृष। क्रियात् / कृषीष्ट / कर्तासि / करिष्यति / करिष्यते / अकरिष्यत् / अकरिष्यत / अकार्षीत् अकार्टाम् अकार्षुः / अकृत अकृषाताम् अकृषत / धम् धारणे / धरति / धरते / धरेत् / धरेत / धरतु / धरताम् / अवरत् / अधरत / दधार / ध्रे / ध्रियात् / धृषीष्ट / धर्तासि / धर्तासे / धरिष्यति / धरिष्यते / अधरिष्यत् / अधरिष्यत / अधार्षीत् / अधृत / डुयाग् याञ्चायाम् / याचते।याचति / ययाच / ययाचे। अयाचीत् / अयाचिष्ट / डुपचीए पाके / पचति / पचते / पचेत् / पचेत / पचतु / पचताम् / अपचत् / अपचत / पपान पेचतुः Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (70) पेचुः / पेचिथ, धपक्थ / पेचे पेचाते पचिरे / पेचिषे / पच्यात् / पक्षीष्ट / पक्तासि / पक्तासे / पक्ष्यति / पक्ष्यते / अपक्ष्यत् / अपक्ष्यत / अपाक्षीत् अपाक्ताम् अपाक्षुः / अपक्त अपक्षाताम् अपक्षत / राजग टुभ्राजी दीप्तौ। राजते / राजति / रराज रेजतुः रेजुः / रेजे रेजाते रेजिरे / अराजीत् / अराजिष्ट / भनी सेवायाम् / भनति / भजते / भजेत् / भजेत। भनतु / भनताम् / अभजत् / अभजतं / बभाज ' तृत्रपफलभजाम् ' भेजतुः भेजुः / भेजे भेजाते भेजिरे / भन्यात् / भक्षीष्ट / भक्तासि / भक्तासे / भक्ष्यति / भक्ष्यते / अभक्ष्यत् / अभक्ष्यत / अभाक्षीत् अभाक्ताम् अभाशुः / अभक्त अभक्षाताम् अभक्षत / रञ्जीं रागे - अविनोश्च रोः / 4 / 2 / 50 / रञ्जरकटि घिनणि शवि च परे उपान्त्यस्य नो लुग् भवति / रजति / रजते ! रजेत् / रजेत / रजतु / रजताम् / अरजत् / अरजत / ररञ्ज रञ्जतुः रजुः / ररले ररञ्जाते ररञ्जिरे / यात् / रङ्सीष्ट / रङ्क्ता / रक्ष्यति। रक्ष्यते / अराङ्क्षीत् असङ्क्ताम् अराक्षुः / अग्ङक्त अरसाताम् / रेट्टग परिभाषणयाचनयोः / रेटति / रेटते / रिरेट / रिरेटे / अरेटीत् / अरेटिष्ट / वणग् गतिज्ञानचिन्तानिशामनवादित्रग्रहणेषु / वेणति / वेणते / विवेण / विवेणे / अवेणीत् / अवेणिष्ट / चतेग याचने / चतति / तते / धचात / चैत / अचतीत् / अचतिष्ट / प्रोथग् पर्याप्तौ / Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (71) मिथूग् मेधाहिंसयोः / मेथग् संगमे च / चदेग् याचने / ओबुन्दग निशामने / बुन्दते। बुन्दति / बुन्देत / बुबुन्द।बुबुन्दे / बुद्यात् / बुन्दिपीष्ट / अबुदत्, अबुन्दीत् / अबुन्दिष्ट / णिदग् णेदृग कुत्सासां कर्षयोः / मिदग मेदग मेधाहिंसयो. / मेधग संगमे च / बुधग् बाधन / बोधति / बोधते / बुबोध / बुबुधे / अबुधत् / अावीत् / अबोधिष्ट / खनूग् अवदारणे / खनति। खनते। चखान 'गमहन-' चख्नतुः चख्नुः चख्ने चख्नाते चख्निरे / ये नवा / 4 / 2 / 62 / / खनि निजनां ये क्ङिति परे आः भवति / खायात् , खन्यात् / खानता / खनिष्यते / अखनिष्यत / अखानीत्, अखनीत् / अखनिष्ट / शपीं आक्रोशे। शपति / शपते / शपेत् / शपेत / शपतु / शपताम् / अशपत् / अशपत / शशाप शेपतुः शेपुः / शेपे शेपाते शेपिरे। शप्यात् / शप्सीष्ट / शप्तासि / शप्तासे / शप्स्यति / शप्स्यते / अशप्स्यत्, अशप्स्यत / अशाप्सीत् / अशप्त / चायग् पूजानिशामनयोः / चायति / चायते / चचाय / चचाये / अचायीत् / अचायिष्ट / व्ययी गतौ। व्ययते / वव्याय / वव्यये / अव्ययीत् / अव्ययिष्ट / धावूरा गतिशुद्धयोः / धावति / धावते / दधाव / धावे / अधावीत् / अधाविष्ट / दाशंग दाने / दाशति / दाशते / ददाश / ददाशे / अदाशीत् / अदाशिष्ट / लषी कान्तौ / लषति / लषते / ललाष / Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (72) लेषे / अलाषीत् , अलषीद्, अलषिष्ट / चषी लक्षणे / छषी हिंसायाम् / त्विषी दीप्तौ / त्वेषति / त्वेषते / तित्वेष / तित्विषे / त्विष्यात्। .. सिजाशिषावात्मने / 4 / 3 / 35 / .. नाम्युपान्त्याद् धातोरात्मनेपदविषयावनिटौ सिजाशिषौ किद्रुद् भवतः / त्विक्षिष्ट / त्वेष्टासि / त्वेष्टासे / त्वेक्ष्यति। त्वेक्ष्यते / अत्वेक्ष्यत् / अत्वेक्ष्यत / अत्वेक्षीत् / अत्विष्ट, अत्विषाताम् / अषी असी गत्यादानयोश्च / दासृग् दाने / दासति / दासते / ददास / ददासे / अदासीत् / अदासिष्ट / माहा माने / माहति / माहते / ममाह / ममाहे / अमाहीत्। अमाहिष्ट। गुहौग् संवरणे / ____ गोहः स्वरे / 4 / 2 , 4. .. कृतगुणस्य गुहेः स्वरादौ प्रत्यये परे उपान्त्यस्य उद् भवति / निगृहति / निगूहते / निगृहेत् / निगृहेत / निगृह / निगूहताम् / न्यगृहत् / न्यगृहत / निजुगूह निजुगुहतुः निजुगुहुः / निजुगूहिथ / निजुगुहे। गुह्यात् / गूहिषीष्ट औदित्त्वाद्विकल्पः कित्त्वे च घुक्षीष्ट / गुहिता, गोढा / गृहितासे, गोढास / निगूहिष्यति, निघोक्ष्यति / निगूहिष्यते, निघोक्ष्यते / अगूहियत , अघोक्ष्यत्। अगूहिष्यत, अघोक्ष्यत / अगृहीत् अगूहिवाम् अगूहिषुः / इडभावपक्षे ' हशिटो नाम्युपान्त्याद्' इत्यादिना मक् अघुक्षत् अघुक्षताम् अघुक्षन् / अघुक्षः अवृक्षता, अघुक्षत / अघुक्षम् अघुक्षाव अघुलाम / अहिष्ट अगृहिषाताम् Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (73) अगूहिषत / अगूहिष्ठाः अगूहिषायाम् अगूहिड्ढ्वम् / अणूहिषि अगूहिष्वहि अगूहिष्महि / इडभावे सकि दुहदिहलिहगुहो दन्त्यात्मने वा सकः / 4 / 3 / 74 / ___ एभ्यः परस्य सको दन्त्यादावात्मनेपदे लुवा भवति / अगूढ, अधुक्षत / अधुक्षाताम् अघुक्षन्त / अगूढाः, अघुक्षथाः अघुक्षाथाम् अघुक्षध्वम् , अधुढ्वम् / अघुक्षि अघुक्षावहि, अगुह्यहि अघुक्षामहि, अगुमहि / अथ वृत यजादिः। .. ... यनी देवपूजासंगतिकरणदानेषु / यजति / यजते / यजेत् / यजेत / यजतु / यजताम् / अयजत् / अयनत / परोक्षायाम्-- .. यजादिवरावचः सस्वरान्तस्था यत्। 4 / 1 / 12 / .. यनादेवश्वचोश्च परोक्षायां द्वित्वे पूर्वस्य सस्वरान्तस्था इउऋरूपा य्वृद् भवति / इयाज। यजादिवचेः किति / 4 / 1 / 79 / यजादीनां वचेश्च सम्वरान्तस्था किति परे य्वृत् भवति / ईजतु: ईजुः / इयनिथ, इयष्ठ ईजथुः ईज / इयाज, इयन इयजिव इयजिम / ईजे ईजाते ईजिरे / इज्यात् / यक्षीष्ट / यष्टासि / यष्टासे / यक्ष्यति / यक्ष्यते / अयक्ष्यत् , अयक्ष्यत / अयाक्षीत् अयाष्टाम् अयाक्षुः / अयाक्षी: अयाष्टम् अयाष्ट / अयाक्षम् अयाक्ष्व अयाम / अयष्ट अयक्षाताम् Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अयक्षत / व्यग् संवरणे / व्ययति / व्ययते / ज्ययेत् / व्ययेत / व्ययतु। व्ययताम् / अव्ययत् / अव्ययत / परोक्षायाम् ज्याव्याधिव्यचिव्यथेरिः। 4 / 1 / 71 / एषां धातूनां परोक्षायां द्वित्वे सति पूर्वस्य इभवति / ___ व्यस्थव्णवि / 4 / 2 / 3 / व्येधातोः थवि णवि च विषये आद् न भवति / ( आत् सन्ध्यक्षरस्य ' इत्यस्यापवादोऽयम् / विव्याय विव्यतुः विव्युः / ऋवृव्येऽद इट् ' विव्ययिय विव्यथुः विव्य / विव्याय, विव्यय विव्यिव विव्यिम / विव्ये विव्याते विव्यिरे / विव्यिषे विव्याथे विव्यिध्वे, विव्यिढ्वे / वीयात् / व्यालीष्ट / व्याता / व्यास्यति, व्यास्यते / अव्यास्यत् , अव्यास्यत् / अव्यासीत् अव्यासिष्टाम् अव्यासिषुः / अव्यास्त / वेंग तन्तुसन्ताने / वयति, वयते / वयेत् , वयेत / वयतु, वयताम् / अवयत् , अवयत / वेवय / 4 / 4 / 19 / ... वेगः परोक्षायां वय् वा भवति / उवाय :: न वयो र / 4 / 1 / 73 / .. वेगो वयो य् परोक्षायां य्वृट् न भवति / उयतुः ऊयुः / उखयिथ उयथुः ऊय / उवाय, उवय ऊयिव ऊयिम / पः वेरयः / 4 / 1 / 74 / Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (75) अनन्तस्य वेगः परोक्षायां पूर्वस्य परस्य च वृन्न भवति / ववौ / अविति वा / 4 / 1 / 75 [. वेगोऽन्तस्याविति परोक्षायां वृद् वा भवति / ववतुः, ऊवतुः वयुः, ऊचुः ।वविथ, ववाथ / ववथुः उवथुः / वव, उव / ववौवविव, अविव वविम, ऊविम / ऊके ऊवाते ऊविरे / उये उयाते ऊयिरे। ववे ववाते वविर / उयात् / वासीष्ट / वाता / वाता। वास्यति / वास्यते / अवास्यत् / अवास्यत / अवासीत् अवासिष्टाम् / अवास्त / हेंग स्पर्धाशब्दयोः / हयति / हुयते / हुयेत् / हुयेत / इयतु / हुयताम् / अहयत् / अहुत / द्वित्वे हः / 4 / / 87 / हुगो द्वित्वविषये सस्वरान्तस्था य्वृत् भवति / जुहाव जुहु, वतुः जुहुवुः / जुहविथ, जुहोथ जुहुवथुः जुहुव / जुहाव, जुहव जुहुविव जुहुविम / जुहुवे जुहुवाते जुहुविरे। जुहुविषे जुहुवाथे जुहुविवे, जुहुविध्वे / जुहुवे. जुहुविवहे जुहुविमहे / हूयात् / हासीष्ट / हाता / हाता / हास्यति / हास्यते / अह्रास्यत् / अहास्यत / .... . हालिप्सिचः। 3 / 4 / 62 / एभ्यः कर्तर्यद्यतन्यामङ भवति / अहृत् अहुताम् अहुन् / अह्वः अवतम् अह्वत / अह्वम् अहवाव अह्वाम / Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (76) वाऽऽत्मने / 3 / 4 / 63 / हालिप्सिचा कर्तर्यद्यतन्यामात्मनेपदे वाऽङ् भवति / अहुत अहुताम् अहुन्त / पक्षे अहासाताम् अहासत / टुवपी बीजसन्ताने / वपति / वपेत / वपेत् / वपतु / वपताम् / अवपत् / अवपत / उवाप ऊपतुः उपुः / उपे उपाते ऊपिरे / उप्यात् / वासीष्ट / वप्ता / वप्ताः / वस्यति / वन-यते / अवप्स्यत् / अवप्स्यत / अवाप्सीत् / अक्प्स / वहीं प्रापणे। वहति / कहते / वहेत् / वहेत / वहतु / वहताम् / अवहत् / अवहत / उवाह उहतुः ऊहुः / उवहिथ, उवोढ उहथुः उह / उवाह, उवह उहिव / ऊहिम / उहे उहाते उहिरे / अहिले उहाथे उहिढ्वे, ऊहिध्वे / उहे ऊहिवहे उहिमहे / उह्यात् / वक्षीष्ट / वोढा / वोढा / वक्ष्यति / वक्ष्यते / अवक्ष्यत् / अवक्ष्यत / अवाक्षीत अवोंढाम् अवाक्षुः / अवोढ अवक्षाताम् अवक्षत / / .. इत्युभयपदिनो धातवः। टोश्चि गतिवृद्ध्योः / श्वयति / श्वयेत् / श्वयतु / अश्वयत् / परोक्षायाम् ___वा परोक्षायङि / 4 / 1 / 90 / श्वेः परोक्षायडोः सस्वरान्तस्था य्वृद् वा भवति / शुशाव शुशुवतुः शुशुवुः / शुशविथ शुशुवथुः शुशुव / शुशाव, शुशव शुशुविव शुशुविम / शिवाय शिश्चियतुः शिश्चियुः / शिश्चयिष Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (77) शिश्वियिथु शिश्विय / शिवाय, शिश्चय शिश्वियिव शिश्वियिम / शूयात् -- दीर्घमवोऽन्त्यम् ' इति स्वृतो दीर्घत्वम् / श्वयिता / श्वयिष्यति / अश्वयिष्यत् / 'ट्धेश्वेर्वा' इति विकल्पेन डे अशिश्चियत् अशिश्चियताम् अशिश्चियन् / पक्षे 'ऋदिच्छ्रिवस्तम्भू-' इति वाऽङि अश्वत् अश्वताम् अश्वन् / पक्षे अश्वयीत अश्वयिष्टाम् अश्वयिषुः / वद व्यक्तायां वाचि / वदति / वदेत् / वदतु / अवदत् / उवाद उदतु ऊदुः / उदिथ उदथु उद / उवाद, उवद ऊदिव ऊदिम / उद्यात् / वदिता / वदिष्यति / अवदिष्यत् / अवादीत् आवादिष्टाम् अवादिषुः / वसं निवास्ने / वसति / वसेत् / वसतु / अक्सत् / उवास ऊषतुः 'घस्वसोः' इति षत्वम् ऊषुः / उवस्थ, उवसिथ ऊषथुः ऊष / उष्यात् / वस्ता। वत्स्यति / अवत्स्यत्। अवात्सीत् अवात्ताम् अवात्सुः / इति यजादिगणः समाप्तः / -- अथ भ्वाद्यन्तर्गणो द्युतादिः / - अत्र सर्वे आत्मनेपदिनः / द्युति दीप्तौ / द्योतते / द्योतेत / द्योतताम् / अद्योतत / परोक्षायां दुद्युते इति जाते-- . धुतेरिः।४।१। 41 / द्युतेर्द्वित्वे सति पूर्वस्येकारो भवति / दिद्युते दिद्युताते दिद्युतिरे / द्योतिषीष्ट / योतिता / द्योतिष्यते। अद्योतिष्यत / अद्यतन्याम्-.............. .. Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (78) युद्भ्योऽध-न्याम् / 3 / 3 / 44 / द्युतादिभ्योऽद्यतनीविषये कर्तर्यात्मनेपदं वा भवति / अद्योतिष्ट अद्योतिषाताम् अद्योतिषत / पक्षे - लदिद्युतादि-' इत्यादिना परस्मैपदेऽङि अद्युतत् अद्युतताम् अद्युतन् / रुचि अभिप्रीत्यां च / रोचते / रुरुचे / अरोचिष्ट, अरुचत् / घुटि परिवर्तने / घोटते / जुघुटे / अघोटिष्ट, अघुटत् / रुटि लुटि लुठि प्रतिघाते / रोटते / रुटे / अरोटिष्ट, अरुटत् / लोटते / लुलुटे। अलोटिष्ट, अलुटत् / लोठते / लुलुठे / अलोठिष्ट, अलुठत् / श्चिताङ् वरणे / श्वतते / शिश्विते / अश्वेतिष्ट, अश्वितत् / जिमिदाङ् स्नेहने / मेदते / मिमिदे / अमेदिष्ट, अमेदत् / जिश्विदाङ् निविदाङ् मोचने च / चिश्विदे / अश्वेदिष्ट, अश्विदत् / सिविदे / अस्वेदिष्ट, अस्विदत् / शुभि दीप्तौ / शोभते / शुशुभे / अशोभिष्ट, अशुभत् / क्षुभि सञ्चलने / क्षोभते / चुक्षुभे / अक्षोभिष्ट, अक्षुभत्। णभि तुभि हिंसायाम् / नभते / नेभे नेभाते नेभिरे / अनभिष्ट, अनभत् / तोभते / तुतुभे / अतोभिष्ट, अतुभत् / स्रभूङ् विश्वासे। सम्भते / सत्रम्भे / अस्त्रम्भिष्ट, अनभत् / भ्रंशू ख्रसूङ अवस्रंसने / भ्रंशते / बभ्रंशे / अभ्रंशिष्ट, अभ्रशत् / स्रंसते / सांसे / अस्रंसिष्ट, अनसत् / ध्वंसूङ् गतौ च / ध्वंसते / दध्वंसे / अध्वंसिष्ट , अध्वसत् / अथ द्युतायन्तर्गणो वृतादिः। . वृतूङ वर्तने / वर्तते / वर्तेत / वर्तताम् / अवर्तत / ववृते / Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (79) वृद्भयः स्यसनो / / 3 / 3 / 45 / वृतादिभ्य. पञ्चभ्यः स्यादौ प्रत्यये सनि च विषये कर्तर्यात्म-- नेपदं वा भवति / वर्तिव्यते / न वृद्भयः / 4 / 4 / 55 / वृतादिपञ्चकात् स्ताद्यशित आदिरिड् न भवति, न चेदसौ आत्मनेपदनिमित्तं भवति / वर्त्यति। अवतिष्यत / अवय॑त् / अवर्तिष्ट / अवृतत् / स्यन्दौङ स्त्रवणे / स्यन्दते / स्यन्देत् / स्यन्दताम् / अस्यन्दत / सस्यन्दे / स्यन्दिपीष्ट, स्यन्त्सीष्ट / स्यन्दिता / स्यन्ता / स्यन्दिव्यते, स्वन्त्स्यते / स्यन्त्स्यति / अस्यन्दिव्यत , अस्यन्स्यत / अस्यन्त्स्यत् / अस्यन्दिष्ट, अस्यन्त / अस्यदत् / वृथा वृद्धौ / वर्धते / वर्धेत / वर्धताम् / अवर्धत / ववृधे / वर्धिपीष्ट / वर्षिता। वर्धिष्यते / वर्त्यति / अवर्धिष्यत, अवतात् / अवर्धिष्ट / अवृधत् / धूङ् शब्दकुत्सायाम् / शर्धते / शर्धेत / शर्यताम् / अशर्वत / शशूध / शर्धिषीष्ट / शर्धिता / शर्षियते / शयति / अशर्धिष्यत / अशय॑त् / अशर्धित् / अशधत् / कृपोङ् सामर्थ्य ऋर लुलं कृपोऽकृपीटादिषु / 2 / 3 99 / कृपे ऋतो लुत् रस्य च ल भवति, न तु कृपीटादिविषयस्य / कल्पते / कल्पेत / कल्पताम् / अकल्पत / चक्लपे / कल्पिषीष्ट, क्लप्सीष्ट। Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (80) कृपः श्वस्तन्याम् / 3 / 3 / 46 / .. * . कृपः श्वस्तनीविषये कर्तर्यात्मनेपदं वो भवति / कल्प्तासि / कल्पितासे, कल्प्तासे / कल्पिष्यते, कल्प्स्यते / कल्प्स्यति / अकल्पिष्यत, अकल्प्स्यत / अकल्प्स्यत् / अकल्पिष्ट, अक्लप्त / अक्लूपत् / इति वृद्-ग्रुनादिगणः समाप्तः / . अथ भ्वाद्यन्तर्गणो ज्वलादिः। ज्वल दीप्तौ। ज्वलति / ज्लेत् / ज्वलतु / अज्वलत् / जज्वाल / ज्वल्यात् / ज्वलिता / न्वलिप्यति / असलियत् / अज्वालीत् / कुच सम्पर्चनकौटिल्यप्रतिष्टम्भविलेखनेषु / कोचति / चुकोच / अकोचीत् / पत्ल पतने / प्रतति / पपात पेततुः पेतुः। अद्यतन्याम्—' लंदियुतादि-' इत्यादिनाऽङि अयत्यमबचपतः श्वास्थवोचपप्तम् / 4 / 3 / 103 / एषामङि यथासङ्ख्यं श्वादयो भवन्ति / अपप्तत् / अपप्ताम् अपप्तन् / क्वथे निष्पाके / क्वथते / चक्वाथ / अक्वथीत् / मथे विलोडने / मथति / ममाथ मेथतुः मेथुः / अमथीत् / षद्ल विशरणगत्यवसादनेषु / 'श्रौतिकृवु-'इत्यादिना सीदादेशे। सीदति / सीदेत् / सीदत | असीदत् / ससाद सेदतु: सेदुः / सेदिथ / सत्ता / सत्स्यति / असत्स्यत् / असदत् असदताम् असदन् / ' सदोऽप्रते: परोक्षायां त्वादेः' निषीदति / निषसाद / प्रतिषीदति / शद्लं शातने। Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (81) शदेः शिति / 3 / 3 / 41 / शिद्विषयाच्छदेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / ' श्रौतिकृवु-' शी. यते / शीयेत / शीयताम् / अशीयत / शशाद शेदतुः शेदुः / शेदिय / शद्यात् / शत्ता / शत्स्यति / अशत्स्यत् / अशदत् / बुध अवगमने / बोधति / बुबोध / अबोधीत् / टुवमू उद्दिरणे / क्मति / जभ्रमवमत्रसफणस्यमस्वनराजभ्राजधासभ्लासो वा / 4 / 1 / 26 / एषां स्वरस्यावित्परोक्षासेट्यवोरा भवति, न च द्विः / बवाम ववमतुः, वेमतुः ववमुः, वेमुः / वेमिथ, ववमिथ वेमथुः, ववमथुः वेम, ववम / ववाम, ववम वेमिव, ववमिव वेमिम, ववमिम / अवमीत् / भ्रमू चलने / ' भ्रासम्लासभ्रमक्रम-' इत्यादिना भ्राम्यति, भ्रमति / बभ्राम बभ्रमतुः, भ्रमतुः बभ्रमुः, भ्रमुः / बभ्रमिथ, भ्रमिथ / अभ्रमीत् / क्षर सञ्चलने / क्षरति। अक्षारीत्। चल कम्पने / चचाल चेलतुः / अचालीत् / जल घात्ये / जनाल जेलतुः / अजालीत्, / टल ट्वल वैक्लव्ये / छल स्थाने / तस्थाल / अस्थालीत् / हल विलेखने / जहाल / अहालीत् / / णल गन्धे / ननाल नेलतुः नेलुः / अनालीत् / बल प्राणनधान्यावरोधयोः / अबालीत् / पुल महत्त्वे / पुपोल / अपोलीत् / कुल बन्धुसंस्त्यानयोः कोलति / चुकोल / पल फल शल Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गतौ / पपाल पेलतुः पेलुः / अपालीत् / शशाल शेलतुः शेलुः / अशलीत् / हुल हिंसासंवरणयोश्च / होलति / जुहोल / अहोलीत् / क्रुशं आहानरोदनयोः / क्रोशति / चुक्रोश / क्रोक्ष्यति / अक्रोक्ष्यत् / सकि अक्रुक्षत् अक्रुक्षताम् अक्रुक्षन् / कस गतौ / कसति / चकास / अकासीत् , अकसीत् / रुहं जन्मनि / रोहति / रुरोह / रोढा / रोक्ष्यति / अरोक्ष्यत् / सकि अरुक्षत् / रमि क्रीडायाम् / रमते / रेमे रेमाते रेमिरे / रंसीष्ट / रन्ता। रंस्यते / अरस्यत / पहिं मर्षणे / सहते / सेहे / सहिषीष्ट / सहलुभेच्छरुपरिषस्तादेः / 4 / 4 / 46 / एभ्यः परस्य स्त्याद्यशितस्तादेरिड् वा भवति / सहिता, सोढा / सहिष्यते / असहिष्यत / असहिष्ट / इति ज्वलादिगणः समाप्तः / अथ भ्वायन्तर्गणो घटादिः।। घटिए चेष्टायाम् / घटते / जघटे / अघटिष्ट / क्षजुङ् गतिदानयोः / व्यथिष् भयचलनयोः / व्यथते / विव्यथे विव्यथाते विव्यथिरे / व्यथिषीष्ट / व्यथिता / व्यथिष्यते / अव्यथिष्यत / अन्यथिष्ट / प्रथिः प्ररव्याने / प्रथते / पप्रथे। अप्रथिष्ट / म्रदिष् मर्दने / म्रदते / मम्रदे / अम्रदिष्ट / स्खदिष् खदने / स्खदते / चस्खदे / अस्खदिष्ट / कदुङ् क्रदुङ् क्लदुङ् वैलव्ये / क्रपि कृपायाम् / क्रपते / चक्रपे / अक्रपिष्ट / मित्वरिष् सम्भ्रमे / Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (83) त्वरते / तत्वरे। अत्वरिष्ट / प्रसिष् विस्तारे। प्रसते / पप्रसे / अप्रसिष्ट / दक्षि हिंसागत्योः / दक्षते / ददक्षे / अदक्षिष्ट / 'श्रां पाके' अदादौ द्रष्टव्यः / स्मं आध्याने / स्मरति / स्मरेत् / स्मरतु / अस्मरत्। सस्मार सस्मरतुः सस्मरुः / स्मर्यात् / स्मर्ता / स्मरिष्यति। अस्मरिष्यत् / अस्मार्षीत् / दृ भये / न नये ।ष्टक स्तक प्रतिघाते / चक तृप्तौ च / अक कुटिलायां गतौ / कखे हसने / अग कुटिलायां गतौ / रगे शङ्कायाम् / रगति / रराग रेगतुः रेगुः / अरागीत् / लगे सङ्गे / लगति / ललाग लेगतुः लेगुः / लेगिय / अलगीत् / हगे लगे पगे सगे ष्टगे स्थगे संवरणे / वट भट परिभाषणे / वटति / ववाट ववटतुः ववटुः / अवाटीत् , अवटीत् / णट नृत्तौ / नटति / ननाट नेटतुः नेटुः / अनाटीत् , अनटीत् / गड सेचने / गडति / जगाड / अगाडीत् , अगडीत् / हेड वेष्टने / हेडति / जिहेड / अहेडीत् / लड जिह्वोन्मन्थने / लडति / ललाड / अलाडीत् , अलडीत् / फण कण रण गतौ / फणति / पफाण पफणतुः, फेणतुः पफपुः, फेणुः / फेणिय, पफणिथ / अकाणीत् , अकणीत् / रणति / रराण रेणतुः रेणुः / अराणीत् , अरणीत् / चण हिंसादानयोश्च / चणति / चचाण / अचाणीत् / शण श्रण दाने / स्नथ क्नथ क्रय क्लथ हिंसायाम् / छद ऊर्जने / मदै हर्षग्लपनयोः / मदति / ममाद / अमादीत् / ष्टन स्तन ध्वन शब्दे / स्वन अवतंसने / सस्वान सस्वनतुः सस्वनुः / अस्वानीत् , अस्वनीत् / चन Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (84) हिंसायाम् / चचान चेनतुः चेनुः / अचानीत् , अचनीत् / ज्वर रोगे / जन्वार। अज्वारीत् , चल कम्पने / चचाल चेलतुः चेलुः / अचालीत् / ह्वल मल चलने / ज्वल दीप्तौ च / इति भ्वाद्यन्तर्गणघटादेः समाप्तौ समाप्तो भ्वादिगणः / अथ अदादिगणः। 5 = = कानुबन्धा अदादयः / अदं प्सांक भक्षणे / वर्जनाद् नात्र शव / अत्ति अत्तः अदन्ति / अत्सि अत्थः अत्थ / अद्मि अवः अनः / अद्यात् अद्याताम् अद्युः / अद्याः अद्यातम् अद्यात / अद्याम् अद्याव अद्याम / अत्तु, अत्तात् अत्ताम् अदन्तु / हुधुटो हेर्षिः।४।२.८३ / होईडन्ताच्च परस्य हेर्धिर्भवति / अद्धि, अत्तात् अत्तम् अत्त / अदानि अदाव अदाम / अदचाट् / 4 / 4 / 91 / अत्ते रुदादिपञ्चकाच दिस्योः शितोरादिरड् भवति / - आदत् आत्ताम् आदन् / आदः आत्तम् आत्त / आदम् आव आद्म / परोक्षायां नवा / 4 / 4 / 18 / Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (85) ... अदेः परोक्षायां घस्ल आदेशो वा भवति / आद आदतुः आदुः / 'ऋवृव्येऽद इट' आदिथ आदथुः आद / आद आदिव आदिम / पक्षे जघास 'गमहन-' इत्यादिनोपान्त्यलोपे जक्षतुः जक्षुः / जघसिथ नक्षथुः जक्ष / जघास, जघस जक्षित जक्षिम / अद्यात् / अत्ता / अत्स्यति / आत्स्यत् / अद्यतन्याम् घस्ल सनद्यतनीघबचलि / 4 / 4 / 17 / एष्वदेर्घस्ल भवति / अघसत् अघसताम् अघसन् / अघसः अघप्ततम् अघसत / अघसम् अघसाव अघसाम / प्साति / प्सायात् / प्सातु / अप्सात् अप्साताम् / वा द्विषातोऽनः पुस् / 4 / 2 / 91 / द्विष आदन्ताच्च परस्य शितोऽवितोऽनः स्थाने पुस् वा भवति / ' इडेत्पुसि–' इति आलुकि अप्सुः, अप्सान् / अप्साः अप्सातम् अप्सात / अप्साम् अप्साव अप्साम / पप्सौ पसतुः पप्सुः / पप्सिथ, पप्साथ / प्सायात , प्सेयात् / प्साता / प्सास्यति / अप्सास्यत् / अप्सासीत् अप्सासिष्टाम् अप्सासिषुः / भांक दीप्तौ / भाति भातः भान्ति / भायात् / भातु / अमाद अभाताम् अभुः, अभान् / बभौ / भायात् / भाता। भास्यति / अभास्यत् / अभासीत् / यांक प्रापणे / वांक गतिगन्धनयोः / ष्णांक शौचे / स्नाति / सस्नौ / स्नायात, स्नेयात् / अस्ना Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीत् / श्रांक पाके / द्रांक कुत्सितगतौ / पांक रक्षणे पाति / पायात् / पातु / अपात् / पपौ पपिथ, पपाथ / पेयात् / पाता / पास्यति / अपास्यत् / अपासीत् / लाक् आदाने / दांब्क् लवने दासज्ञाऽभावात् प्रनिदाति / ख्यांक प्रकथने / ख्याति / ख्यायात् / ख्यातु / अख्यात् / चख्यौ / ख्यायात्, ख्येयात् / ख्याता / ख्यास्यति / अख्यास्यत् / ___ शास्त्यमूवक्तिख्यातेरङ् / 3 / 4 / 60 / / एभ्यो धातुभ्यः कर्तयद्यतन्यामङ् भवति / आख्यत् आख्यताम् आख्यन् / प्रांक पूरणे / मांक माने। माति / ममौ / मेयात् / माता / नास्यति / अमास्यत् / अमासीत् / इंक स्मरणे अयं प्रायेणाधिपूर्वकः / अध्येति / एति / इतः / इको वा / 4 / 3 / 16 / इंधातोर्विद्भिन्नस्वरादौ शिति परे य् वा भवति / यन्ति, इयन्ति / अधियन्ति, अधीयन्ति / अध्येषि अधीथः अधीथ / अध्येमि अधीवः अधीमः / अधीयात् / अध्येतु, अधीतात् अधीताम् अधीयन्तु, अधियन्तु / अधीहि, अधीतात् अधीतम् अधीत / अध्ययानि अध्ययाव अध्ययाम / एत्यस्तेर्वृद्धिः। 4 / 4 / 30 / / .. इणिकोः अस्तेश्चादेस्तिन्यां विषये वृद्धिर्भवति, न तु माडा। . अध्येत् अध्येताम् अव्यायन् / अध्यैः अध्यतम् अध्यैत / Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (87) अध्यायम् अध्यैव अध्यैम / अधीयाय अधीयतुः इयतुः 'योऽनेकस्वरस्य' इति यत्वम् अधीयुः / अधीयात् / अध्येता / अध्येष्यति / अध्यैष्यत् / इणिकोई / 4 / 4 / 23 / इणिकोरद्यतन्यां गा भवति / अध्यगात् अध्यगाताम् अध्यगुः। इंण्क् गतौ / एति इतः / हिणोरप्विति व्यौ / 4 / 3 / 15 / होरिणश्च नामिनः स्वरादावपित्यविति शिति यथासङ्ख्यं व्यौ भवतः / यन्ति / एषि इथः इथ / एमि इवः इमः / इयात् / एतु, इतात् इताम् यन्तु / इहि, इतात् इतम् इत। अयानि अयाव अयाम / ऐत् ऐताम् आयन् / ऐः ऐतम् ऐत / आयम् ऐव ऐम / इयाय / इणः।२।१।५१। - इणधातोः स्वरादौ प्रत्यये परे इयादेशो भवति / ईयतुः ईयुः / इययिथ, इयेथ ईयथुः ईय / इयाय, इयय ईयिव ईयिम / ईयात् 'दीर्घत्रिच्चयङ्यक्येषु च' इति दीर्घः / उपसर्गात् तु आशिषीणः। 4 / 3 / 107 / ..' उपसर्गात् परेस्येण ईतः विङति यादावाशिषि इस्वो भवति / उदियात् / एता / एष्यति / ऐष्यत् / अगात् अगाताम् अगुः / Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 8) वींक प्रजनकान्त्यसनखादने च / वेति वीतः वीयन्ति / वीयात् / वेतु / अवेत् / विवाय विन्यतुः विव्युः / विवयिथ, विवेथ विव्यथु: विव्य / विवाय, विवय विव्यिव विव्यिम / वीयात् / वेता। वेष्यति / अवेष्यत् / अवैषीत् अवैष्टाम् अवैषुः / थुक् अभिगमने / उत और्विति व्यानेऽद्वेः / 4 / 3 / 59 / ___ अद्वयुक्तस्योदन्तस्य धातोर्व्यञ्जनादौ विति परे और्भवति / द्यौति द्युतः युवन्ति / द्यौषि द्युथः धुथ / द्यौमि धुवः घुमः / धुयात् / द्यौतु / थुहि / द्यवानि / अद्यौत् अयुताम् अधुवन् / अद्यौः अद्युतम् अद्युत / अद्यावम् अद्युव अद्युम / दुधाव / द्यूयात् / द्योता। चोष्यति / अद्योष्यत् / अद्यौषीत् / षुक् प्रसवैश्वर्ययोः / सौति / सुयात् / सौतु। असौत् / सुषाव / सूयात् / सोता / सोष्यति / असोष्यत् / . धूम्सुस्तोः परस्मै / 4 / 4 / 85 / एभ्यः सिच आदिः परस्मैपदे इड् भवति / असावीत् असाविष्टाम् असाविषुः / तुंक् वृत्तिहिंसापूरणेषु / तौति / / यतुरु- ' इति तवीति / तुयात् / तवीतु, तौतु / अतौत् , अतावीत् / तुताव तुतविथ, तुतोथ / तूयात् / तोता / तोष्यति / अतोष्यत् / अतौषीत् / युक् मिश्रणे / यौति युतः / युयात् / यौतु / अयौत् / युयाव / यूयात् / यविता / यविष्यति / अयविष्यत् / अयावीत् / णुक् स्तुतौ / नौति नुतः नुवन्ति / नुयात् / नौतु / अनौत् / नुनाव / नूयात् / नविता / नविष्यति / Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (89) अनविष्यत् / अनावीत् / क्ष्णुक् तेजने / क्ष्णौतिक्ष्णुतःक्ष्णुवन्ति / श्णुयात् / क्ष्णौतु / अक्ष्णौत् / चुक्ष्णाव / क्ष्णूयात् / क्ष्णविता / क्ष्णविष्यति / अक्ष्णविष्यत् / अक्ष्णावीत् / स्नुक प्रस्नवने / स्नौति / स्नुयात् / स्नौतु / अस्नौत् / सस्नौ / अस्नौत् / सुस्नाव / स्नूयात् / स्नविता / स्नविष्यति। अस्नविष्यत / अस्नावीत् / टुक्षु रु कुंक् शब्दे / क्षौति / क्षुयात् / क्षौतु / अक्षौत् / चुक्षाव / झूयात् / क्षविता / क्षविष्यति / अक्षविष्यत् / अक्षावीत् / रौति 'यङ्तु-' इति रवीति रुतः रुवन्ति / स्यात् / रौतु अरौत् / रुराव / रूयात् / रविता / रविष्यति / अरविष्यत् / अरावीत / कौति / कुयात् / कौतु / अकौत् / चुकाव / कूयात् / कोता। कोष्यति / अकोष्यत् / अकौषीत् / रुदृक् अश्रुविमोचने / रुत्पश्चकाच्छिदयः। 4 / 4 / 88 / / रुदादेः पञ्चतः - परस्य व्यञ्जनादेः शितोऽयादेरादिरिड् भवति / रोदिति रुदितः रुदन्ति / रोदिषि रुदिथः रुदिथ / रोदिमि रुदिवः रुदिमः / रुद्यात् / रोदितु, रुदितात् रुदिताम् रुदन्तु। रुदिहि, रुदितात् रुदितम् रुदित / रोदानि रोदावरोदाम। 'दिस्योरीट्' ' अदश्चाट ' अरोदीत् , अरोदत् अरुदिताम् अरुदन् / अरोदीः, अरोदः अरुदितम् अरुदित / अरोदम् अरुदिव अरुदिम / रुरोद / रुद्यात् / रोदिता / रोदिष्यति / अरोदिष्यत् / अरुदत् अरुदंताम् अरुदन् / अरुदः अरुदतम् अरुदत / पक्षे अरोदीत् अरोदिष्टाम् अरोदिषुः / भिष्वपंक् शये / स्वपिति स्वपितः स्व Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (90) पन्ति / स्वपिषि स्वपिथः स्वपिथ / स्वपिमि स्वपिवः स्वपिमः / स्वप्यात् / स्वपितु, स्वपितात् स्वपिताम् स्वपन्तु। स्वपिहि स्वपितम् स्वपित / स्वपानि स्वपाव स्वपाम / अस्वपीत् , अस्वपत् अस्वपिताम् अस्वपन् / अस्वपः, अस्वपीः अस्वपितम् अस्वपित / अस्वपम् अस्वपिव अस्वपिम / परोक्षायां तु -- भूस्वपोरदुतौ ' सुष्वाप स्वपेर्यङ्डे च / 4 / 1 / 80 / / स्वपेर्यङि ङे किति च परे सस्वरान्तस्था य्वृद् भवति / . सुषुपतुः सुषुपुः / सुष्वपिथ, सुष्वप्थ सुषुपथुः सुषुप / सुष्वाप, सुष्वप सुषुपिव सुषुपिम / निर्दुःसुविपूर्वस्य ' अवः स्वपः ' इति निःषुषुपतुः, दुःषुषुपतुः, सुषुषुपतुः, विषुषुपतुः / सुप्यात् / स्वप्ता / स्वप्स्यति / अस्वप्स्यत् / अस्वाप्सीत् अस्वाप्ताम् अस्वाप्सुः / अन श्वसक् प्राणने / अनिति अनितः अनन्ति / अन्यात् / अनितु अनिताम् अनन्तु / आनीत, आनत् आनिताम् आनन् / आनीः, आनः आनितम् आनित। आनम् आनिव आनिम / आन आनतुः आनुः / आनिथ आनथुः 'आन / अन्यात् / अनिता / अनिष्यति / आनिष्यत् / आनीत्। 'द्वित्वेऽप्यन्तेऽप्यनितेः परेस्तु वा' प्राणिति / पर्यणिति, पर्यनिति / श्वसिति श्वसितः श्वसन्ति / श्वसिषि श्वसिथः श्वेसिथ / श्वसिमि श्वसिवः श्वसिमः / श्वस्यात् / श्वसितु, श्वसितात् श्वसिवाम् श्वसन्तु / श्वसिहि / अश्वसत्, अश्वसीत् अश्वसिताम् अश्य Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (91) ‘सन् / श्वस्यात् / श्वसिता / श्वसिष्यति / अश्वसिष्यत् / अश्वसीत्। जक्षक भक्षहसनयोः / जक्षिति जक्षितः जक्षति / जक्षिषि जक्षियः जक्षिथ / जक्षिमि जक्षिवः नक्षिमः / जक्ष्यात् / जक्षितु / अनक्षत् , अनक्षीत् अजक्षिताम् / द्वयुक्तजक्षपञ्चतः / 4 / 2 / 93 / द्वयुक्तात् नक्षादिपञ्चकाच्च धातोः परस्य शितोऽवितोऽनः पस भवति / अजक्षुः / अनक्षः, अनक्षीः . अनक्षितम् अनक्षित / अनक्षम् अजक्षिव अजक्षिम / जनक्ष / जक्ष्यात् / जक्षिता / जक्षिष्यति / अजक्षिष्यत् / अजक्षीत् / दरिद्राक् दुर्गतौ / / दरिद्राति / इर्दरिद्रः / 4 / 2 / 98 / दरिद्रो व्यञ्जनादौ शित्यवित्यात इभवति / दरिद्रितः / नश्चातः / 4 / 2 / 96 / द्वयुक्तनक्षपञ्चतः भाप्रत्ययस्य चातः शित्यविति परे लुग् भवति / अन्तो नो लुक् / 4 / 2 / 94 / / द्वयुक्तजक्षपञ्चकात् परस्य शितोऽवितोऽन्तो नो लुग भवति / दरिद्रति / दरिद्रासि दरिद्रिथः दरिद्रिथ / दरिद्रामि दरिद्रिवः दरिद्रिमः / दरिद्रियात् / दरिद्रातु / अदरिद्रात् अदरिद्रि Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (92) ताम् अदरिद्रुः / अदरिद्राः अदरिद्रितम् अदरिद्रित / अदरिद्राम् अदरिद्रिव अदरिद्रिम / परोक्षायाम्धातोरनेकस्वरादाम् परोक्षायाः कृभ्वस्ति चानु तदन्तम् / 3 / 4 / 46 / / अनेकस्वराद् धातोः परस्याः परोक्षायाः स्थाने आम् भवति / आमन्ताच्च परे कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनु प्रयुज्यन्ते / दरिद्राश्वकार / दरिद्राम्बभूव / दरिद्रामास / ' आतो णव औः' इत्यत्र ओकारेणैव सिद्धे औकारविधानात् दरिद्रातेरामादेशस्यानित्यत्वाद् ददरिद्रौ ददरिद्रतुः ददरिद्रुः / ददरिद्रिथ ददरिद्रथुः ददरिद्र / ददरिद्रौ ददरिद्रिव ददरिद्रिम इत्यपि सिद्धम् / अशित्यस्सन्णकचणकानटि / 4 / 3 / 77 / सादिसन्नादिवर्जितेऽशिति प्रत्यये विषये दरिद्रातेरन्तस्य लुग भवति / दरिद्यात् / दरिद्रिता / दरिद्रिष्यति / अदरिद्रिष्यत् / दरिद्रोऽद्यतन्यां वा / 4 / 3 / 76 / / दरिद्रातेरद्यतन्यां विषये लुग् वा भवति / अदरिद्रीत्, पक्षे 'यमिरमिनम्यातः ' इति सोऽन्तः अदरिद्रासीत् / जागृक् निद्राक्षये / जागति जागृतः जाग्रति / जागर्षि जागृथः जागृथ / जागर्मि जागृवः जागृमः / जागृयात् / जागतु / जागृहि / नागराणि जागराव जागराम / ह्यस्तन्यां गुणे सति व्यअनाद् देः सश्च दः / 4 / 3 / 78 // Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (93) . व्यञ्जनान्ताद् धातोः परस्य दे ग भवति, यथासम्भवं धातोः सो दश्च भवति / अजागः अजागृताम् अजागरुः अत्र पुसि -- पुस्पौ' इति गुणः। जाग्रुपसमिन्धेर्नवा / 3 / 4 / 49 / ___ एभ्यः परस्याः परोक्षाया आम् वा भवति / आमन्ताच्च परे कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनुप्रयुज्यन्ते / जागराञ्चकार जागराम्बभूव जागरामास / पक्षे जनागार / जागुः किति / 4 / 3 / 6 / जागृधातोः किति प्रत्यये परे गुणो' भवति / जजागरतुः जनागरुः / जनागरिथ जजागरथुः जजागर / जनागार, जनागर जजागरिव जजागरिम / जागर्यात् / जागरिता / जागरिष्यति / अजागरिष्यत् / अजांगरीत् / चकासृक् दीप्तौ / चकास्ति चकास्तः चकासति / चकास्सि चकास्थः चकास्य / चकास्मि चकास्वः चकास्मः / चकास्यात् / चकास्तु चकास्ताम् चकासतु / हेर्धित्वे चकाद्धि पक्षे ___ सो धि वा / 4 / 3 / 72 / धातोर्धादौ प्रत्यये सो लुग् वा भवति / चकाधि / चकास्तम् चकास्त / चकासानि चकासाव चकासाम / अचकात् अचकास्ताम् अचकासुः। सेः मद्धा च रुर्वा / 4 / 3 / 79 / Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (94) - व्यञ्जनान्ताद् धातोः परस्य सेंलग् भवति, यथासम्भवं सदधां वा रुश्च / अचकाः, अचकात् अचकास्तम् अचकास्त / अचकासम् अचकास्व अचकास्म / चकासाञ्चकार, चकासाम्बभूव, चकासामास / चकास्यात् / चकासिता / चकासिष्यति / अचकासिष्यत् / अचकासीत् / शासूक् अनुशिष्टौ / शास्ति इसासः शासोऽव्याने / 4 / 4 / 118 / शास्तेः आसः अङि क्ङिति व्यञ्जनादौ च परे इस् भवति / शिष्टः शासति / शास्सि शिष्ठः शिष्ठ / शास्मि शिष्वः शिष्मः / शिष्यात् / शास्तु, शिष्टात् शिष्टाम् शासतु / शासस्हनः शाध्येधिजहि / 4 / 2 / 84 / शास्-अस्-हनांयन्तानां यथासङ्ख्यं शाधि एधि नहि इत्येते मवन्ति / शाधि शिष्टम् शिष्ट / शासानि शासाव शासाम ।दे कि सो दत्त्वे अशात् अशिष्टाम् अशासुः / अशात् , अशाः अशिष्टम् अशिष्ट / अशासम् अशिष्व अशिष्म। शशास शशासतुः शशासुः। शशासिथ शशासथुः शशास / शशास शशासिव शशासिम / शिष्यात् / शासिता / शासिष्यति / अशासिष्यत् / ' शास्त्यसूकक्तिख्यातेरङ्' इति अशिषत् अशिषताम् अशिषन् / वचंक परिभाषणे / वक्ति वक्तः वचन्ति / वक्षि वक्थः वक्थ / वच्मि वच्चः वच्मः / वच्यात् / वक्तु, वक्तात् वक्ताम् वचन्तु / वग्धि, वक्तात् वक्तम् वक्त / वचानि वचाव वचाम / अवक अवक्ताम् Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (95) अवचन् / अवम् अवक्तम् अवक्त। अवचम् अवच्च अवच्मे / परोक्षायां तु उवाच ऊचतुः ऊचुः। उवचिथ, उवक्थ ऊचथुः ऊच। उवाच, उवच ऊचिव ऊचिम / उच्यात् / वक्ता / वक्ष्यति / अवक्ष्यत् / अवोचत् अवोचताम् अवोचन् / अवोचः अवोचतम् अवोचत / अवोचम् अवोचाव अवोचाम / मृजौक शुद्धौ / .. मृजोऽस्य वृद्धिः / 4 / 3 / 42 / मृजेर्गुणे सत्यकारस्य वृद्धिर्भवति / मार्टि मष्टः / / ऋतः स्वरे वा / 4 / 3 / 43 / . मृजे: ऋकारस्य स्वरादौ प्रत्यये परे वृद्धिर्वा भवति / मार्जन्ति, मृजन्ति / माक्षि मृष्ठः मृष्ठ / मामि मृज्वः मृज्मः / मृज्यात् / माष्टु, मृष्टात् मृष्टाम् मार्जन्तु, मृजन्तु / मृड्ढि मृष्टम् मृष्ट / मार्जानि मार्जाव मार्जाम / अमार्ट अमृष्टाम् अमार्जन् , अमृजन् / अमार्ट अमृष्टम् अमृष्ट / अमानम् अमृज्व अमृज्म / ममार्ज ममृजतुः, ममा तुः ममृजुः, ममार्जुः / ममार्जिय ममृजथुः, ममा थुः ममृज / ममार्ज, ममर्ज ममृजिव, ममार्जिव ममृजिम, ममार्जिम / मृज्यात् / मार्जिता, मार्टा / मार्जिष्यति, मार्क्ष्यति / अमार्जिष्यत् / अमार्क्ष्यत् / अमार्जीत् अमार्जिष्टाम् अमार्जिषुः / अमाीत् अमाष्टम् अमाझुः / विदक् ज्ञाने। वेत्ति वित्तः क्दिन्ति। वेत्सि वित्थः वित्थ / वेद्मि विद्वः विद्मः / - तिवां णवः परस्मै / 4 / 2 / 117 / ' Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (96) - वेत्तेः परेषां परस्मैपदानां तिवादीनां परस्मैपदान्येव णवादयो नव यथासङ्ख्यं वा भवन्ति / वेद विदतुः विदुः / वेत्थ विदथुः विद / वेद विद्व विद्म / पक्षे पूर्ववत् / विद्यात् विद्याताम् विद्युः / पञ्चम्याः कृग् / 3 / 4 / 52 / __ वेत्तेः परस्याः पञ्चम्याः किदाम् वा भवति, आमन्ताच्च परः पञ्चम्यन्तः कृगनुप्रयुज्यते / विदाङ्करोतु, विदाकुरुतात् विदाङ्कुरुताम् विदाकुर्वन्तु / विदाङ्कुरु, विदाङ्कुरुतात् विदाङ्कुरुतम् , विदाकुरुत / विदाङ्करवाणि विदाङ्करवाव विदाङ्करवाम / वेत्तु, वित्तात् वित्ताम् विदन्तु / विद्धि, वित्तात् वित्तम् वित्त / वेदानि वेदाव वेदाम / अवेत् अवित्ताम् अविदुः / अवेः, अवेत् अवित्तम् अवित्त / अवेदम् अविद्व अविद्म / ' वेत्तेः कित् / 3 / 4 / 51 / / वेत्तेः परस्याः परोक्षाया आम् किद् वा भवति / आमन्ताच्च कृभ्वस्तयः परोक्षान्ता अनुप्रयुज्यन्ते / विदाञ्चकार, विदाम्बभूव, विदामास / विवेद विविदतुः विविदुः / विद्यात् / वेदिता / वेदिध्यति / अवेदिष्यत् / अवेदीत् / हनं हिंसागत्योः / हन्ति यमिरमिनमिगमिहनिमनिवनतितनादेधुटि क्ङिति / 4 / 2 / 55 / एषां तनादीनां च धुडादौ विङति लुम् भवति / हतः / 'गमहन'–इत्यादिना अकारलोपे * हनो नो नः' इति प्रन्ति / Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - हथः हथ / हन्मि हन्वः हन्मः / हन्यात् / हन्तु, हतात हताम् घ्नन्तु / जहि, हतात् हतम् हत / हनानि हनाव हनामः / अहन् अहताम् अनन् / अहन अहतम् अहत / अहनम् अहन्व अहन्म / परोक्षायाम्-- . त्रिवि घः / 4 / 3 / 101 / / ___ औ णवि च परे हन्तेर्छन् भवति / जघान जन्नतुः जघ्नुः / जघनिथ, जवन्थ जन्नथु जन्न / जघान, जघन जघ्निव जनिम / - हन' आशिष्यो / 4 / 4 / 21 / / आशीविषये हन्त धादेशो भवति, न तु मिटि / वध्यात् / हन्ता / 'हनृत याय' इति हनिष्यति / अहनिष्यत् / __ अद्यतन्यां वा त्वात्मने / 4 / 4 / 22 / अद्यतन्यां विषये हनो वधादेशो भवति, आत्मनेपदे तु वा। अवधीत् अवधिष्टाम् अवधिषुः / वशक् कान्तौ / वष्टि - वशेरयङि / 4 / 1 / 83 / वशेः सस्वरान्तस्था अयङि क्ङिति वृद् भवति / उष्टः उशन्ति / वक्षि उष्ठः उष्ठ / वश्मि उश्वः उश्मः / उश्यात् / वष्टु, उष्टात् उष्टाम् उशन्तु / उड्ढि, उष्टात् उष्टम् उष्ट / वशानि वशाव वशाम / अवट , अवड् औष्टाम् औशन् / अवट् , अवड् औष्टम् औष्ट / अवशम् औश्व औश्म / उवाश ऊशतुः Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (98) ऊशुः / उश्यात् / वशिता / वशिष्यति / अवशिष्यत् / अवासीत् , अवशीत् / असक् मुवि / अस्ति / इनास्त्योर्लक् / 4 / 2 / 90 / - श्नप्रत्ययस्यास्तेश्चाकारस्य शित्यविति लुम् भवति / स्तः सन्ति / अस्तेः सि हस्त्वेति / 4 / 3 / 73 / ___अस्तेः सकारस्य सादौ प्रत्यये परे लग्, एति परे तु हो भवति / असि स्थः स्थ / अस्मि स्वः स्मः / स्यात् स्याताम् स्युः / स्याः स्यातम् स्यात / स्याम् स्याव स्याम / अस्तु, स्तात् स्ताम् सन्तु / एधि, स्तात् स्तम् स्त / असानि असाव असाम / ' एत्यस्तेर्वृद्धिः ' इति वृद्धौ ‘सः सिजस्तेर्दिस्योः' इति ईति आसीत् आस्ताम् आसन् / आसीः आस्तम् आस्त / आसम् आस्व आस्म / अस्तिब्रुवो वचावशिति / 4 / 4 / 1 / अस्तिब्रुवोर्यथासङ्ख्यं भूवचावादेशौ भवतः, अशिति विषये / बभूव / भूयात् / भविता / भविष्यति / अभविष्यत् / अभृत् / इत्यदादिपरस्मैपदं समाप्तम् / Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथात्मनेपदम्। इंङ अध्ययने / अधीते अधीयाते ‘अनतोऽन्तोऽदात्मने अधीयते / अधीषे अधीयाथे अधीध्वे / अधीये अधीवहे अधीमहे / अधीयीत अधीयीयाताम् अधीयीरन् ।अधीताम् अधीयाताम् अधीयताम् / अधीष्व अधीयाथाम् अधीध्वम् / अध्ययै अध्ययावहै अध्ययामहै / अध्यैत अध्यैयाताम् अध्यैयत / अध्यैथाः अध्यैयाथाम् अध्यध्वम् ।अध्यैयि अध्यैवहि अध्यैमहि। गाः परोक्षायाम् / 4 / 4 / 26 / इधातोः परोक्षाविषये गा भवति / अधिनगे अधिनगाते अधिनगिरे / अध्येषीष्ट / अध्येता / अध्येष्यते। वाऽद्यतनीक्रियातिपत्त्योर्गीङ् / 4 / 4 / 28 / अद्यतनीक्रियातिपत्त्योरिङो गीङ् वा भवति / अध्यष्यत, अध्यगीष्यत / अध्यैष्ट अध्यैषाताम् अध्यैषत / अध्यगीष्ट अध्यगीषाताम् अध्यगीषत / शीक् स्वप्ने शीङ ए: शिति / 4 / 3 / 104 / शिति परे शीङ एभवति / शेते शयाते / शीडो रत् / 4 / 2 / 115 / Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीङः परस्यात्मनेपदस्थस्यान्तो रत् भवति / शेरते / शेषे शयाथे शेध्वे / शये शेवहे शेमहे। शयीत शयीयाताम् शयीरन् / शेताम् शयाताम् शेरताम् / अशेत अशयाताम् अशेरत / शिश्ये शिश्याते शिश्यिरे। शयिषीष्ट / शयिता / शयिष्यते / अशयिष्यत। अशयिष्ट। अपनयने नुते / पूडौक् प्राणिगर्भविमोचने / सूते सुवाते सुवते / सुषे सुवाथे सूध्वे / सुवे सूबहे सूमहे / सुवीत सुवीयाताम् सुवीरन् / सूताम् सुवाताम् सुवताम् / सूष्व. सुंवाथाम् सूध्वम् / सूतेः पञ्चम्याम् / 4 / 3 / 13 / . सूतेः पञ्चम्यां गुणो न भवति / सुवै सुवावहै सुवामहै। असूत असुवाताम् असुवत / सुषुवे / सोषीष्ट, सविषीष्ट / सोता, सविता / सोष्यते, सविष्यते असविष्यत, असोष्यत / असविष्ट, असोष्ट / पृचैङ् पृजुङ् पिजुकि सम्पर्चने / पृक्ते पृचाते पृचते। चीत / पृक्ताम् / अपृक्त / पचे / पृचिषीष्ट / पर्चिता / पर्चिष्यते। अपर्चियत / अपर्चिष्ट / पृङ्क्ते पृञ्जाते पृञ्जते / पृक्षे पञ्जाथे गृाध्वे / पृङ्गे पृज्वहे पृ-ज्महे / पृञ्जीत / पृङक्ताम् / अप ङ्क्त / पर्छ / पृञ्जिषीष्ट / पृञ्जिता / पृञ्जिष्यते / अपृञ्जिष्यत / अपृञ्जिष्ट / पिञ्जते / पिपिजे / अपिञ्जिष्ट / वृजैकि वर्जने / णिजुकिं विशुद्धौ / निङ्क्ते / निजीत / निङ्क्ताम् / अनिङ्क्त / निनिळे / निक्षीष्ट / निङ्क्ता / निक्ष्यते / अंनिझ्यत / Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (101) अनिङ्क्त / शिजुकि अव्यक्ते शब्दे / शिङ्क्ते शिजाते शिजते / शिक्षीत / शिङ्क्ताम् / अशिङ्क्त / शिशिर्छ / शिञ्जिषीष्ट / शिञ्जिता / शिञ्जिष्यते / अशिञ्जिष्यत / अशिञ्जिष्ट अशिञ्जिषाताम् अशिञ्जिषत / ईडिक्स्तु तौ / ईट्टे ईडाते ईडते / ईशीडः सेध्वेस्वध्वमोः / 4 / 4 / 87 / आभ्यां वर्तमानासेक्योः पञ्चमीस्वध्वमोश्चादिरिड् भवति / ईडिषे ईडाथे ईडिध्वे / ईडे ईडिवहे ईडिमहे / ईडीत ईडीयाताम् ईडीरन् / ईट्टाम् ईडाताम् ईडताम् / ईडिष्व ईडाथाम् ईडिध्वम् / ईडे ईडावहै ईडामहै / ऐट्ट ऐडाताम् ऐडत / ऐट्ठाः ऐडाथाम् ऐड्ड्वम् / ऐडि ऐड्वहि ऐड्महि / ईडाञ्चक्रे, ईडाम्बभूव, ईडामास। ईडिषीष्ट / ईडिता / ईडिष्यते / ऐडिष्यत / ऐडिष्ट ऐडिषाताम् ऐडिषत। ईरिक् गतिकम्पनयोः। ईर्ते ईराते ईरते / ईराञ्चक्रे,ईराम्बभूव, ईरामास / ऐरिष्ट / ईशिक् ऐश्वर्थे / ईष्टे ईशाते ईशते।ईशिषे ईशाथे ईशिध्वे / ईशीत / ईष्टाम् ईशाताम् ईशताम् / ईशिष्व ईशाथाम् ईशिध्वम् / ऐष्ट ऐशाताम् ऐशत / ईशाञ्चक्रे / ईशाम्बभूव / ईशामास / ऐशिष्ट / वसिक् आच्छादने / वस्ते / वसीत / वस्ताम् / अवस्त / ववसे / वसिषीष्ट / वसिता / वसिष्यते / अवसिष्यत / अवसिष्ट / आङः शासूकि इच्छायाम् / प्रायेणाय माङ्पूर्वः / आशास्ते आशासीत / आशास्ताम् / आशास्त। आशशासे / : आशासिषीष्ट / आशासिता / आशासिष्यते / Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (102) आशासिष्यत / आशामिष्ट / आसिक् उपवेशने / आस्ते / आसीत / आस्ताम् / आस्त / आसाञ्चक्रे / आसाम्बभूव / आसामास / आसिषीष्ट / आसिता / आसिष्यते / आसिष्यत / आसिष्ट / कसुकि गतिसातनयोः / कंस्ते / कंसीत / कंस्ताम् / अकस्त / चकंसे / कंसिता। कंसिषीष्ट / कंसिष्यते / अकंसिष्यत / अकंसिष्ट / णिसुकि चुम्बने / निस्ते / अनिस्त / निनिसे / निसिता / अनिसिष्ट / चक्षिक व्यक्तायां वाचि / 'संयोगस्यादौ स्कोलक् ' इति चष्टे चक्षाते चक्षते / चक्षे चक्षार्थ चढ्वे / चक्षे चक्ष्वहे चक्ष्महे / चक्षीत / चष्टाम् चक्षाताम् चक्षताम् / चक्ष्व चक्षाथाम् चढ्वम् / चढे / चक्षावहै चक्षामहै। अचष्ट अचक्षाताम् अचक्षत / अचष्ठाः अचक्षाथाम् अचड्ढ्वम् / अचक्षि / अचश्वहि अचक्ष्महि / परोक्षायां तु . नवा परोक्षायाम् / 4 / 4 / 5 / चक्षो वाच्यर्थं कशांग्ख्यांगौ परोक्षायां वा भवतः / गित्त्वादुभयपदी चक्शौ चकातुः चक्शुः / चक्शे चक्शाते चक्शिरे / चख्यौ चख्यतुः चख्युः / चख्ये चरख्याते चख्यिरे / पक्षे चचक्षे चचक्षाते चचक्षिरे / चक्षो वाचि क्शांग ख्यांग् / 4 / 4 / 4 / - वागर्थस्य चक्षोऽशिति विषये क्शग्व्यांगौ भवतः / कसयात्, क्शेयात् / ख्यायात् , ख्येयात् / क्शासीष्ट, ख्यासीष्ट / क्शातासि, " क्शातासे / ख्यातामि, ग्व्यातासे / क्शास्यति, क्शास्यते। ख्या Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (103) स्यति, ख्यास्यते / अक्शास्यत्, अक्शास्यत। अख्यास्यत्, अख्यास्यत / अक्शासीत् , अक्शास्त / अङि अख्यत्, अख्यत / इत्यात्मनेपदं समाप्तम् / अथोभयपदिनः। अर्जुगक आच्छादने . वोर्णोः। 4 / 3 / 60 / .. अद्वयुक्तस्योपोर्व्यञ्जनादौ विति और्वा भवति / ऊणीति, ऊर्णोति उर्णतः अर्णवन्ति / ऊौषि, ऊर्णोषि उणुथः उर्णय / उौमि, उर्णोमि ऊर्णवः ऊणुमः / उर्णते अर्णवाते ऊर्युवते / उर्णषे ऊर्जुवाथे अणुध्वे / अर्णवे ऊर्णवहे उर्णनहे / उर्णयात् , उMवीत / ऊर्णोतु, ऊौतु, अणुतात् उणुताम् उर्जुवन्तु / उdताम् ऊर्जुवाताम् ऊर्णवताम्। न दिस्योः / 4 / 3 / 61 / ऊर्णोदिस्योः परयोरौर्न भवति / और्णोत् औणुताम् औणुवन् / और्णोः औणुतम् औणुत। औणुत औणुवाताम् औणुवत / परोक्षायाम् स्वरादेद्वितीयः / 4 / 1 / 4 / / स्वरादेवथुक्तिभाजो धातोद्वितीयोऽश एकस्वरो द्विभाति / अनेन ‘णु' इत्यस्य द्वित्वे प्राप्ते . .. अयि रः / 4 / 1 / 6 / Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8.104) स्वरादेर्धातोदितीयस्यांशस्यैकस्वरस्य सयोगादी रो द्विर्न भवति / इति रकारस्य निषेधे ऊर्णनाव उर्जुनक्तुः उर्जुनुवुः / वोर्णोः। 4 / 3 / 19 / ऊर्णोरिड् वा द्विद् भवति / उर्जुनुविथ, ऊर्जुनविथ / उर्णनुवे उर्जुनुवाते ऊर्णनुविरे / उणूयात् / अर्णविष्ट, उर्णनुविष्ट / ऊर्णवितासि, उर्जुनवितासि / ऊर्णनवितासे, उर्णनुवितासे / ऊर्णविष्यति, उणुनुविष्यति / ऊर्णनक्ष्यिते, ऊर्णनुविष्यते / और्णविध्यत् , औMनुविष्यत् / और्णनविष्यत, औMनुविष्यत / वोर्गुगः सेटि / 4 / 3 / 46 / उर्णोः सेटि सिचि परस्मैपदे वृद्धिर्वा भवति / और्णावीत् , और्णवीत् , औMवीत् / और्णविष्ट, औ विष्ट / ष्टुंग्क् स्तुतौ / स्तौति स्तुतः स्तुवन्ति। स्तौषि स्तुथः स्तुथ।स्तौमिस्तुवः स्तुमः। ___ यतुरुस्तोबहुलम् / 4 / 3 / 64 / * यङ्लुबन्तात् तुरुस्तुभ्यश्च व्यञ्जनादौ विति ईत् भवति बहुलम् / स्तवीति, स्तवीमि इत्याद्यपि / स्तुते स्तुवाते स्तुवते / स्तुयात् / स्तुवीत / स्तोतु / स्तुताम् / अस्तौत, अस्तुत / तुष्टाव तुष्टुवतुः तुष्टुवुः / तुष्टुवे / स्तूयात् / स्तोषीष्ट / स्तोतासि, स्तोतासे / स्तोष्यति, स्तोष्यते / अस्तोष्यत्, अस्तोष्यत / 'धूनसुस्तोः परस्मै' इति सिचि अस्तावीत् अस्ताविष्टाम् अस्ताविषुः / अस्तोष्ट / बॅग व्यक्तायां वाचि। .. Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बूंतः परादिः।४।३।६३ / ब्रुव ऊतः व्यञ्जनादौ विति परादिरीद् भवति / ब्रवीति ब्रूतः ब्रुवन्ति / ब्रवीषि ब्रूथः ब्रूथ / ब्रवीमि ब्रूवः ब्रूमः / गः पञ्चानां पञ्चाहश्च / 4 / 2 / 118 // - ब्रूगः परेषां तिवादीनां पञ्चानां यथासङख्य पञ्च णवादयो भवन्ति, तद्योगे ब्रूग आहश्च / आह आहतुः आहुः / ' नहाहो तौ ' आत्थ आहथुः / ब्रूते ब्रुवाते / ब्रूयात् / ब्रवीत / ब्रूताम् ब्रुवाताम् ब्रुवताम् / ब्रवीतु, ब्रूतात् ब्रूताम् ब्रुवन्तु / ब्रूहि / ब्रवाणि बवाव वाम / अब्रवीत् अब्रूताम् अब्रूवन् / अब्रवीः / अब्रूत अब्रुवाताम् अब्रुवत / परोक्षायां वचादेशे उवाच ऊचतुः ऊचुः / ऊचे ऊचाते उचिरे / उच्यात्, वक्षीष्ट'। वक्तासि, वक्तासे / वक्ष्यति, वक्ष्यते / अवक्ष्यत् , अवक्ष्यत / अवोचत् अवोचताम् अवोचन् / अवोचत अवोचेताम् अवोचत / द्विषींक अप्रीतौ / द्वेष्टि द्विष्टः द्विषन्ति / द्वेक्षि द्विष्ठः द्विष्ठ / द्वेष्मि विष्वः द्विष्मः / द्विष्टे / द्विष्यात् / द्विषीत / द्वेष्टु द्विष्टाम् द्विषन्तु / टेड्ढि द्विष्टम् द्विष्ट / द्वेषाणि द्वेषाव द्वेषाम / द्विष्टाम् द्विषाताम् द्विषताम् / अद्वेट् अद्विष्टाम् ' वा द्विषातोऽनः पुस्' अद्विषुः, अद्विषन् / अद्विष्ट अद्विषाताम् अद्विषत / दिद्वेष दिद्विषतुः / दिद्विषे दिद्विषाते दिद्विषिरे / द्विष्यात् , द्विक्षीष्ट / द्वेष्टासि, द्वेष्टासे / द्वेक्ष्यति, द्वेक्ष्यते / अद्वे क्ष्यत् , अद्वेक्ष्यतः। अद्यतन्यां सकि अद्विक्षत् अद्विक्षताम् अद्विक्षन् / अद्विक्षत / Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 106) स्वरेऽतः / 4 / 3 / 75 / सकोऽस्य स्वरादौ प्रत्यये परे लुग् भवति / अद्विक्षाताम् अद्विक्षत / दुहीक क्षरणे ' भ्वादेर्दा देर्घः ' 'अधश्चतुर्थात् तथोधः' दोग्धि दुग्धः दुहन्ति / धोति / दुग्धे दुहाते दुहते / दुह्यात् , दुहीत / दोग्धु, दुग्धात् दुग्धाम् दुहन्तु / दुग्धि / दुग्धाम् दुहा- . ताम् दुहताम् / धुक्ष्वदुहाथाम् धुग्ध्वम् / दोहै दोहावहै दोहामहै। अधोक् अदुग्धाम् अदुहन् / अदुग्ध अदुहाताम् अदुहत / अदुग्धाः / दुदोह / दुदुहे / दुह्यात् , धुक्षीष्ट / दोग्धा / धोक्ष्यति, धोक्ष्यते / अवोक्ष्यत् , अधोक्ष्यत / अधुक्षत् अधुक्षताम् अधुक्षन् / आत्मनेपदे ‘दुहदिह-' इत्यादिना दन्त्यादौ सको वा लुक् अदुग्ध, अधुक्षत अधुक्षाताम् अधुक्षन्त / अदुग्धाः, अधुक्षथाः अधुक्षाथाम् अंधुग्ध्वम् , अधुक्षध्वम् / अधुक्षि अधुक्षावहि, अधुग्वहि अधुक्षामहि, अधुग्महि / विहींक उपलेपे / देग्धि, दिग्धे / दिह्यात् , दिहीत / देग्धु, दिग्धाम् / अधेक्, अदिग्ध / दिदेह, दिदिहे / दिह्यात् , धिक्षीष्ट / देग्धा / धेक्ष्यति, धेश्यते / अधेक्ष्यत्, अधेक्ष्यत / अधिक्षत् अधिक्षताम् अधिक्षन् / अदिग्ध, अधिक्षत अधिक्षाताम् अधिक्षन्त / लिहींक आस्वादने / लेढि लीढः लिहन्ति / लेक्षि / ' हो धुट्पदान्ते' ढत्वम् , ' अधश्चतुर्थात् ' इति थस्य धत्वम्, ‘तवर्गस्य' इति धो ढत्वम् / ढस्तड्ढे ' इति ढो लुक् दीर्घत्वं च लीढः लीढ / लेहिम लिङ्गः लिहमः / लीढे लिहाते लिहते / लिह्यात् / लिहीत। Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 107) लेदु, लीढाम् / अलेट् , अलीढ / लिलेह, लिलिहे। लिह्यात्, लिक्षीष्ट / लेढा / लेक्ष्यति, लेक्ष्यते / अलेक्ष्यत् , अलेक्ष्यत / अलिक्षत् अलिक्षताम् अलिक्षन् / अलीठ, अलिक्षत अलिक्षाताम् अलिक्षत / अलीढाः, अलिक्षथाः अलिक्षाथाम् अलिक्षध्वम्, अलीढ्वम् / अलीक्षावहि, अलिहुहि अलिक्षामहि अलिहमहि / इत्युभयपदं समाप्तम् / अथ हादयः। हादयोऽपि कानुबन्धाः / हुंक् दानादनयोः / ___ हवः शिति / 4 / 1 / 12 / जुहोत्यादयो धातवः शिति द्विर्भवन्ति / जुहोति जुहुतः जुह्वति / जुहोषि जुहुथः जुहुथ / जुहोमि जुहुवः जुहुमः / जुहुयात् जुहुयाताम् जुहुयुः / जुहोतु, जुहुतात् जुहुताम् जुह्वतु / जुहुधि, जुहुतात् जुहुतम् जुहुत / जुहवानि जुहवाव जुहवाम / अजुहोत् अजुहुताम् अजुहवुः 'अतः' पुसि गुणे च सिद्धम् / अजुहोः अजुहुतम् अजुहुत / अजुहवम् अजुहुव अजुहुम / परोक्षायाम् भीहीभृहोस्तिवत् / 3 / 4 / 50 / .. एभ्यः परस्याः परोक्षाया आम् वा भवति, स च तिव्वत् इति ' हवः शिति' इति द्वित्वम् / जुहवाञ्चकार, जुहवाम्बभूव, Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (108) जुहवामास / पक्षे जुहाव जुहुवतुः जुहुवुः / जुहविथ, जुहोथः / हुयात् / होता / होष्यति / अहोष्यत् / अहौषीत् अहौष्टाम् अहौषुः / हांक त्यागे / जहाति / ' हाकः ' जहितः / पक्षे एषामीळअनेऽदः / 4 / 2 / 97 / द्वयुक्तानां जक्षादिपञ्चानां नाप्रत्ययस्य चातोऽविति शिति परे ईर्भवति / जहीतः, जहति / महासि जीथः, जहिथः जहीय, जहिथ / जहामि जहीवः, जहिवः जहीमः, जहिमः / यि लुक् / 4 / 2 / 102 / यादौ शिति परे हाक आतो लुग भवति / जह्यात् / जहातु, जहीतात् , जहितात् जहिताम् , जहीताम् जहतु / ___आ च हौ / 4 / 2 / 101 / हाको हौ आत् इश्च वा भवति / जहिहि, जहीहि, जहाहि। जहीतात् , जहितात् जहिताम् , जहीताम् जहीत, जहित / जहानि जहाव जहाम / अजहात् अजहीताम् , अजहिताम् अनहुः / अजहाः अनहीतम् , अनहितम् अजहीत , अनहित / अनहाम् अजहीव, अजहिव अनहीम, अनहिम / जहाँ जहतुः जहुः / जहिथ, जहाथ जहथुः जह / जहौ जहिव जहिम / हेयात् / हाता / हास्यति। अहास्यत् ।अहासीत् / निभीक् भये। विभेति / भियो नवा / 4 / 2199 Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (109) मियो व्यञ्जनादौ शित्यविति इर्वा भवति / बिभीतः, बिभितः विभ्यति / बिभेषि बिभीथः, बिभिथः बिभीथ, बिभिथ / बिभेमि बिभीवः, बिभिवः बिभिमः, बिभीमः / बिभीयात् , बिभियात् / विभेतु, विभीतात् , बिभितात् , बिभीताम , बिभिताम् बिभ्यतु / विभीहि, विभिहि / अबिभेत् अबिभीताम् , अबिभिताम् अबिभयुः / बिभयाञ्चकार / विभयाम्बभूव / विभयामास / विभाय बिभ्यतुः बिभ्युः / भीयात् / भेता / भेष्यति / अभेष्यत् / अभैषीत् अभैष्टाम् अभैषुः / ह्रींक् लज्जायाम् / जिङ्केति निहीत जिहियति / निहीयात् / जिहेतु / जिहीहि। निहयाणि / अजिहेत् अजिहयुः। अजिहे / जिहयाञ्चकार, जिहयाम्बभूव, जियामास / निहाय निहियतुः जिहियुः / हीयात् / हेता। हेष्यति / अहेष्यत् / अह्रषीत् / पूंक पालनपूरणयोः / / प्रभृमाहाडामिः / 4 / 1 / 58 / एषां द्वित्वे सति शिति पूर्वस्य .इभवति / पिपर्ति . ओष्ठयादुर् / 4 / 4 / 117 / धातोः सम्बन्धिन ओष्ठ्यात् परस्य ऋकारस्य उर्भवति क्छिति। पिपूर्तः, पिपुरति / पिपर्षि पिपूर्थः पिपूर्थ / पिपमि पिपूर्वः पिपूर्मन पिपूर्यात् / पिपर्तु, पिपूर्तात् / अपिपः अपिपूर्ताम् अपिपरुः / पपार पपरतुः पपरुः / पपरिथ। पूर्यात् 'वृतो नवाऽनाशी सिच्परस्मैच' इति परीता, परिता / परिष्यति, परीष्यति / अपरीष्यत् , अपरिष्यत् / Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (110) अपारीत् / इस्वोऽपि पृ पिपति पिपृतः पिप्रति इत्यादयः। ऋक् गतौ इयर्ति इयतः इयूति / इयर्षि इय॒थः इयूथ / इयर्मि इय॒वः इयूमः / इयूयात् / इयर्तु, इयतात् इयताम् इयतु / इहि / इयराणि इयराव इयराम / ऐ: ऐयुताम् ऐयरुः / ऐः ऐवृतम् ऐयत / ऐयरम् ऐयव ऐयम / आर आरतुः आरुः / आरिथ / 'क्ययङाशीयें / अर्यात् / अर्ता / अरिष्यति / 'सर्त्यर्तेर्वा' आरत् आरताम् आरन् पक्षे आपत् िआर्टाम् आर्युः / इति द्वादौ परस्मैपदं समाप्तम् / अथात्मनेपदम् / ओहां गतौ / निहीते जिहाते जिहते / बिहीषे निहाये निहीध्वे। निहे निहीवहे निहीमहे / निहीत जिहीयाताम् निहीरन्। निहीताम् जिहाताम् जिहताम् / निहै जिहावहै जिहामहै। अनिहीत अनिहाताम् अजिहत / अनिहीथाः अजिहाथाम् अजिहीध्वम् / अजिहि अजिहीवहि अजिहीमहि / जहे जहाते जहिरे / जहिषे / हासीष्ट / हाता / हास्यते / अहास्यत / अहास्त अहासाताम् अहासत / माक् मानशब्दयोः / मिमीते मिमाते मिमते / मिमीषे मिमाथे मिमीध्वे / मिमे मिमीवहे मिमीमहे / मिमीत मिमीयाताम् मिमीरन् / मिमीताम् मिमाताम् मिमताम् / अमिमीत अमिमाताम् अमिमत / ममे ममाते ममिरे / मासीष्ट / मातासे / मास्यते / अमास्यत / अमास्त / इत्यात्मनेपदं समाप्तम् // Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (111) अथोभयपदम् / * डुदांग्क् दाने / ददाति 'भश्चातः' इत्याकारलुकि दत्तः ददति / ददासि दत्थः दत्य / ददामि दुवः दद्मः / दत्ते ददाते ददते / दत्से ददाथे दद्ध्वे / ददे दद्वहे दद्महे / दद्यात् दद्याताम् दद्युः / ददीत ददीयाताम् ददीरन् / ददातु, दत्तात् दत्ताम् ददतु / हौ दः / 4 / 1 / 31 / / दासज्ञकस्य हौ परे एर्भवति, न च द्विः / देहि दत्तम् दत्त / ददानि दवाव ददाम / दत्ताम् ददाताम् ददताम् / दत्स्व / अददात् अदत्ताम् अददुः / अददाः / अदत्त अददाताम् अददत / ददौ ददतुः ददुः / ददे ददाते ददिरे। देयात् / दासीष्ट / दातासि, दातासे / दास्यति, दास्यते / अदास्यत् , अदास्यत / पिबैति-' इत्यादिना सिचो लुक् अदात् अदाताम् अदुः / अदाः अदातम् अदात / अदाम् अदाव अदाम / 'इश्च स्थादः' ‘धुड्ड्स्वात्-' इति अदित अदिषाताम् अदिषत / अदिथाः अदिषाथाम् अदिड्ढ्वम् / अदिषि अदिष्वहि अदिष्महि / डुधांगक् धारणे च / दधाति / धागस्तयोश्च / 2 / 1 / 78 / . धागश्चतुर्थान्तस्य दादेरादेर्दस्य तथोः सध्वोश्च प्रत्यययोः परयोश्चतुर्थो भवति / धत्तः दधति / दधासि धत्थः धत्थ / दधामि Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (111) दध्वः दध्मः / धत्ते दधाते दधते / धत्से दधार्थ धद्ध्वे / दधे दध्वहे दध्महे / दध्यात् / दधीत / दधातु, धत्तात् धत्ताम् दधतु / धेहि, धत्तात् धत्तम् धत्त / दधानि. दधाव दधाम / धत्ताम् दधाताम् दधताम् / धत्स्व दधाथाम् धद्ध्वम् / दधै दधावहै 'दधामहै / अदधात् अधत्ताम् अदधुः / अधत्त अदधाताम् अदधत / अवत्याः अदधाथाम् अधद्ध्वम् / अदधि अव्वहि अदध्महि / दधौ दधतुः दधुः / दध दधाते दधिरे / धेयात् / धासीष्ट / धाता / धास्यति / धास्यते / अधास्यत् / अधास्यत / अधात् अधाताम् अधुः / अधित अधिपाताम् अधिषत / अधिथाः अधिषाथाम् अधिड्ट्वम् / अधिपि अधिष्वहि अधिमहि / टुडुगक् पोषणे च / 'पृभूमाहाङामिः / बिभर्ति बिभृतः बिभ्रति / बिभर्षि विभृथः विभृय / विभर्मि बिभूवः विभृमः / बिभृते बिभ्राते बिभ्रते / बिभृषे बिभ्राथे बिभृध्वे / विभ्रे बिभृवहे बिभृमहे / विभृयात् , बिभ्रीत / बिभर्तु, बिभृतात् बिभृताम् बिभ्रतु / विभृहि / विभराणि बिभराव बिभराम / बिभृताम् बिभ्राताम् विभ्रताम् / बिभृष्व बिभ्राथाम् बिभृध्वम् / अबिभः अबिभृताम् अविभरुः / अबिभृत अबिभ्राताम् अबिभ्रत / बिभराञ्चकार, विभराञ्चक्रे बिभराम्बभूव बिभरामास / बभार / बभ्रे / भ्रियात् / . ऋवर्णात / 4 / 3 / 36 / / - ऋवर्णान्ताद् धातोरनिटावात्मनेपदविषयौं सिजाशिषौ किद्वद् Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (113) भवतः / भुषीष्ट / भर्ता / भरिष्यति / भरिष्यते / अभरिष्यत् / अभरिष्यत / अभार्षीत् अभार्टाम् अभार्षुः / अभृत अभृषाताम् अभृषत / णिचूंकी शौचे च। . निजां शित्येत् / 4 / 1 / 57 / निविन्विषां शिति विषये द्वित्वे सति पूर्वस्यैद् भवति / नेनेक्ति नेनिक्त: नेनिजति / नेनेक्षि नेनिक्थः नेनिक्थ। नेनेन्मि नेनिज्वः निन्मः / नेनिक्ते नेनिजाते नेनिजते / नेनिक्षे नेनिनाथे ननिग्ध्वं / ननिजे नेनिज्वहे नेनिज्महे / नेनिज्यात् / नेनिजीत / नेनेक्तु ननिक्ताम् नेनिजतु / नेनिग्धि / नेनिक्ताम् नेनिजाताम् ननिजताम् / नेनिश्व नेनिजाथाम् नेनिग्ध्वम् / नेनेनै नेनेजावहै नेनेजामहै / अनेने अनेनिक्ताम् अनेनिजुः / अनेनिक्त अनेनिजाताम् अनेनिजत / निनेज / निनिजे / निज्यात् / निक्षीष्ट / नेक्ता / नेक्ष्यति, नेक्ष्यते / अनेक्ष्यत्, अनेक्ष्यत / अनैक्षीत् अनैताम् अनैक्षुः / अनिक्त अनिक्षाताम् अनिक्षत / विज़ुकी पृथग्भावे / वेवेक्ति वेविक्त: वेविजति / वेविक्ते वेविजाते वेविजते / वेविन्यात् / वेविजीत। वेवेक्तु / वेविक्ताम् / अवेवेक् / अवेविक्त / विवेज / विविजे। विज्यात् / विक्षीष्ट / वेक्ता / वेश्यति / वेश्यते / अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत / ऋदित्त्वादङि अविजत् / पक्षे अवैक्षीत् . अवैक्ताम् अवैक्षुः। अविक्त अविक्षाताम् अविक्षत / विष्लंकी व्याप्तौ / वैवेष्टि वेविष्टः वेविषति / वेविष्टे / वेविष्यात् / वेविषीत / 8 Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (114 ) वेवेष्टु / वेविष्टाम् / अवेट अवेक्ष्टिाम् / विवेष / विविषे। विष्यात् / विक्षीष्ट / वेष्टा / वेक्ष्यति / वेक्ष्यते / अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत / लदित्त्वाङि अविषत् अविषताम् अविषन् / सकि अविक्षत अविक्षाताम् अविक्षन्त / अविक्षथाः अविक्षाथाम् अविक्षध्वम् / अविक्षि अविक्षावहि अविक्षामहि / इत्युभयपदं समाप्तम् / इति हादिमणः समाप्तः / अथ दिवादिगणः। चानुबन्धा दिवादयः / दिवूच क्रीडाजयेच्छापणिद्युतिस्तुतिगतिषु / दिकादेः श्यः / 3 / 4 / 72 / दिवादिभ्यः कर्तरि विहिते शिति परे श्यः प्रत्ययो भवति / ' भ्वादेर्नामिनः-' इति दीव्यति दीव्यतः दीव्यन्ति / दीव्यसि दीव्यथः दीव्यथ / दीव्यामि दीव्यावः दीव्यामः / दीव्येत् दीव्येताम् दीव्येयुः। दीव्येः / दीव्यतु, दीव्यतात् दीव्यताम् दीव्यन्तु / दीव्य / अदीव्यत् अदीन्यताम् अदीव्यन् / अदीव्यः अदीव्यतम् अदीव्यत / अदीव्यम् अदीव्याव अदीव्याम / दिदेव / दीव्यात् / देविता ।देविष्यति। अदेविष्यत् / अदेवीत् अदेविष्टाम् अदेविषुः / जष् अष्च् जरसि / Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (115) ऋतां विङतीर् / 4 / 4 / 116 / ऋदन्तस्य धातोः किति किति च परे ऋकारस्य इर भवति / दीर्घ च जीर्यति जीर्यतः जीर्यन्ति / जीर्येत् / जीर्यतु / अजीर्यत् / जजार जेरतुः, जनरतुः जेरुः, जजरुः / जेरिथ, जजरिथ जेरथुः, जनरथुः जेर, जजर / जजार, जनर जेरिव, जजरिव जेरिम, जजरिम / जीर्यात् / जरीता, जरिता / जरिष्यति, जरीष्यति / अजरीष्यत् ; अजरिष्यत् / ' ऋदिच्छ्वि -' इति वाऽङि अजरत् अजरताम् अजरन् / पक्षे अजारीत् / झीर्यति / झीर्येत् / झीर्यतु / अझीर्यत् / नझार जझरतुः / झीर्यात् / झरिता, झरीता / झरिप्यति, झरीष्यति / अझरिष्यत् , अझरीष्यत् / अझरत् , अझारीत् / शोंच तक्षणे / ____ ओतः श्ये / 4 / 2 / 103 / धातोरोकारस्य श्यप्रत्यये परे लुग् भवति / श्यति श्यतः श्यन्ति / श्यसि श्यथः श्यथ / ' श्यामि श्यावः श्यामः / श्येत् श्येताम् श्येयुः / श्यः श्येतम् श्येत / श्येयम् श्येव श्येम। श्येतु श्येतात् श्येताम् श्यन्तु / श्य श्यतम् श्यत / श्यानि श्याव श्याम / अश्यत् अश्यताम् अश्यन् / अश्यः अश्यतम् अश्यत / अश्यम् अश्याव अश्याम / शशी शशतुः शशुः / शशिथ, शशाथ / शायात् / शाता / शास्यति / अशास्यत् / 'धेवाशाच्छासो वा ' अशात् अशाताम् अशुः / Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्षे अशासीत् अशासिष्टाम् अशासिषुः / दो छोंच छेदने / धति / येत् / द्यतु / अद्यत् / ददौ ददतुः ददुः / ददिथ, ददाथ / देयात् / दाता / दास्यति / अदास्यत् / अदात् अदाताम् अदुः / छ्यति / छ्येत् / छ्यतु / अच्छ्यत् / चच्छौ / छायात् / छाता। छास्यति / अच्छास्यत् / अच्छात् , अच्छासीत् / षोंच् अन्तकर्मणि। स्यति / स्येत् / स्यतु / अस्यन् / ससौ / सेयात् / माता / सास्यति / असास्यत् / असात् असाताम् असुः / असासीत् असासिष्टाम् असासिषुः / ब्रीडच् लज्जायाम् / बीड्यति ।बीड्येत् / वीड्यतु / अबीड्यत् / विव्रीड / बीड्यात् / वीडिता। वीडिष्यति। अत्रीडिष्यत्। अव्रीडीत् / नृतैच नर्तने / नृत्यति / नृत्येत् / नृत्यतु / अनृत्यत् / ननत ननृततुः ननृतुः / ननर्तिथं / नृत्यात् / नर्तिता / कृतचूतनृतच्छंदतृदोऽसिचः सादेर्वा / 4 / 4 / 50 / - एभ्यः परम्यासिचः सादेरशित आदिरिड् वा भवति / नर्तिम्यति, नय॑ति / अनतिष्यत् , अनय॑त् / अनीत् / कुथच् धूतिभावे / कुथ्यति / कुथ्येत् / कुथ्यतु / अकुथ्यत् / चुकोथ / कुथ्यात् / कोथिता / कोथिष्यति / अकोथिष्यत् / अकोथीत् / पुथच् हिंसायाम् / पुथ्यति / पुथ्येत् / पुथ्यतु / अपुथ्यत् / पुपोथ / पुथ्यात् / पोथिता / पोथिष्यति / अपोथिष्यत् / अपोथीत् / गुधच् परिवेष्टने / गुध्यति / गुध्येत् / गुध्यतु। अगुध्यत्। मुगोध / गुध्यात् / गोधिता / गोधिष्यति / अगोधिष्यत् / Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 117) अगोधीत् / राधंच् वृद्धौ / राध्यति / राध्येत् / राध्यतु / अर:ध्यत् / रराध . अवित्परोक्षासेट्थवोरेः / 4 / 1 / 23 / / राधेहिँसार्थस्यावित्परोक्षायां सेटि थवि च परे एभवति, न च द्विः / रेधतुः रेधुः / रेधिथ रेधथुः रेध / रराध रेधिव रेधिम / हिंसार्थस्याभावे आरराधतुः आरराधुः / राध्यात् / राधिता / राधिष्यति / अराधिष्यत् / अरात्सीत् अराद्धाम् अगत्सुः / व्यधंच ताडने। ___ ज्याव्यधः क्ङिति / 4 / 1 / 81 / . ज्याव्यधोः सस्वरान्तस्था किति ङिति य्वृद् भवति। विध्यति / विध्येत् / विध्यतु / अविध्यत् / परोक्षायां ज्याव्येव्यधिव्य- . चिव्यथेरिः' विव्याध विविधतुः विविधुः / विध्यात् / व्यद्धा / : व्यत्स्यति / अव्यत्स्यत् / अव्यात्सीत् अव्याद्धाम् अव्यात्सुः / * क्षिपंच प्रेरणे / क्षिप्यति / क्षिप्येत् / क्षिप्यतु / अक्षिप्यत् / चिक्षेप / क्षिप्यात् / क्षेप्ता / क्षेप्स्यति / अक्षेप्स्यत् / अझैप्सीत् अक्षप्ताम् अझैप्सुः। अझैप्सीः / पुष्पच् विकसने / पुष्प्यति / पुष्प्येत् / पुष्प्यतु / अपुष्प्यत् / पुपुष्प / पुष्प्यात् / पुष्पिता / पुप्पिष्यति / अपुष्पिष्यत् / अपुष्पीत् / तिम तीम ष्टिम टीमच , आर्द्रभावे / षिवूच उतौ / सीव्यति / सीव्येत् / सीव्यतु / असी:व्यत् / सिषेव / सीन्यात / सेविता / सेविष्यति / असेविष्यत् / Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' असेवीत् / श्रिवच गतिशोषणयोः / ष्ठिवू तिच् निरसने / ठीव्यति / ष्ठीव्येत् / ष्ठीव्यतु / अष्ठीव्यत् / ‘तिर्वा ष्ठिवः / तिष्ठेव तिष्ठिवतुः तिष्ठिवुः / पक्षे टिष्ठेव टिष्ठिवतुः टिष्ठिवुः। ष्ठीव्यात् / ष्ठेविता। ठेविष्यति / अष्ठविष्यत् / अष्ठेवीत् / क्षीव्यति / क्षीव्येत् / क्षीव्यतु / अक्षीव्यत् / चिक्षेत्र / क्षीव्यात् / क्षेविता / क्षेविष्यति / अक्षेविष्यत् / अक्षेवीत् / इषच् गतौ / इष्यति / इष्येत् / इष्यतु / ऐष्यत् / इयेष ईषतुः ईषुः / इयेषिथ। इष्यात् / एषिता / एषिष्यति / ऐषिष्यत् / ऐषीत् / ष्णसूच निरसने / स्नम्यति / मस्नाम / म्नसिता / अस्नासीत् , अम्नमीत् / क्नसूच वृतिदीप्त्योः क्नम्यति / चक्नास / अक्नसीत् , अक्नासीत् / सैच भये / त्रस्यति / त्रस्येत् / त्रस्यतु / अत्रस्यत् / त्रस्यात् / त्रसिता / मिष्यति / अत्रमिष्यत् / अत्रासीत् , अत्रसीत् / परोक्षायाम् तत्रास तत्रसतुः, सतुः तत्रसुः, त्रेसुः / त्रेसिथ, तत्रमिथ / 'भ्रासम्लामभ्रमक्रमत्रसि' इत्यादिना वा श्ये / पक्षे त्रसति / त्रसेत् / त्रमतु / अत्रमत् / प्युसच दाहे / यह षुहच शक्तौ / मयति / सह्येत् / मह्यतु। अमह्यत्। ससाह सेहतुः सेहुः / सेहिथ / सह्यात् / महिता, मोढा / सहिष्यति / असहिष्यत् / असाहीत् , अमहीत् / ___ अथ पुषादिः। पुषंच पुटौ / पुप्यति / पुष्येत् / पुष्यतु / अपुष्यत् / पुपोष। * पुष्यातू / पोष्टा / पक्ष्यति / अपेक्ष्यित्। पुषादित्वाढङ् अपुषत् / Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1.19 ) उचच् ममवाये / उच्यति / उच्येत् / उच्यतु / औध्यत् / उचोच / उच्यात् / ओचिता। ओचिष्यति / औचिष्यत् / औचत् औचताम् औचन् / लुटच् विलोटने / लुट्यति / लुट्येत् / लुट्यतु / अलुट्यत् / लुलोट / लुट्यात् / लोटिता / लोटिष्यति / अलोटिष्यत् / अलुटत् अलुटताम् अलुटन् / विदांच् गात्रप्रक्षरणे / म्विद्यति / स्विद्येत् / स्विद्यतु / अस्विद्यत् / सिष्वेद / स्विद्यात् / स्वेत्ता / स्वेत्स्यति / अस्वेत्स्यत् / अस्विदत् अस्विदताम् अस्विदन् / क्लिदौच आर्द्रभावे / क्लियति / चिक्लेद / क्लेदिता / अक्लिदत् / जिमिदाच् स्नहने / - मिदः श्ये / 4 / 3 / 5 / मिदेरुपान्त्यस्य श्ये परे गुणो भवति / मेद्यति / मेद्येत् / मेयतु / अमेद्यत् / मिमेद। मिद्यात् / मेदिता / मेदिष्यति / अमेदिष्यत् / अमिदत् अमिदताम् / निविदाच मोचने च / क्ष्विद्यति / अश्विद्यत् / चिक्ष्वेद / श्विद्यात् / स्वेदिता / अक्ष्वेदिध्यत् / अश्विदत् / क्षुधंच बुभुक्षायाम् / क्षुध्यति / क्षुध्येत् / क्षुध्यतु / अक्षुध्यत् / चुक्षोध / क्षुध्यात् / क्षोद्धा / क्षोत्स्यति। अक्षोत्म्यत् / अक्षुधत् / शुधंच् शोचे / शुध्यति / शुशोध / अशुधत् / क्रुधंच कोपे। क्रुध्यति / क्रुध्येत् / क्रुध्यतु / अक्रुध्यत् / चुक्रोध / क्रुध्यात् / अक्रुधत् / षिवूच संराद्धौ / सिध्यति। सिषेध। मिथ्यात् / सेधा.। सेत्स्यति / असेत्स्यत् / असिधत् ।ऋधूच वृद्धौ। Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 120) ऋध्यति। ऋध्येत् / ऋध्यतु / आय॑त् / आनध / ऋध्यात् / अर्धिता / अर्धिष्यति। आर्धिष्यत् / आईत्। गृधूच् अभिवासायाम् / गृध्यति। गृध्येत्। गृध्यतु / अगृध्यत् / जगई / गृध्यात्। गर्धिता। ' गर्विष्यति / अगर्धिष्यत् / अगृधत् / रधौच हिंसासराद्धयोः / रध्यति / रध्येत् / रध्यतु / अरध्यत् / ... रध इटि तु परोक्षायामेव / 4 / 4 / 101 / . रधः स्वरात् परः स्वरादौ प्रत्यये परे नोऽन्तो भवति, इटि तु परोक्षायामेव / ररन्ध ररन्धतुः ररन्धुः / ररन्धिथ ररन्धिव ररन्धिम / रध्यात् 'धूगौदितः' रधिता, रद्धा / रधिष्यति, रत्स्यति। अरधिष्यत् / अरत्स्यत् / अरधत् अरधताम् अरधन् / तृपौच प्रीतौ / तृप्यति / तृप्येत् / तृप्यतु / अतृप्यत् / ततर्प ततृपतुः ततृपुः / तृप्यात् / ‘स्पृशादिसूपो वा ' त्रप्ता, ता, तर्पिता / त्रप्स्यति, तय॑ति, तर्पिष्यति / अत्रप्स्यत् , अतर्पिष्यत् , अत य॑त् / ‘स्पृशमृशकृषतृपडपो वा ' इति वा सिचि अताप्सीत्, अत्राप्सीत् , औदित्त्वाद् वेटि अतीत् , पुपादित्वाङि अतृपत् / दृपौच् हर्षसंमोहनयोः / दृप्यति / दृप्येत् / दृप्यतु / अदृप्यत् / ददर्प दट्टपतुः ददृपुः / दृप्यात् / दर्ता, दर्पिता, द्रप्ता / दर्पिष्यति, दय॑ति, द्रप्स्यति। अदर्पिष्यत् , अदपर्म्यत् , अद्रप्स्यत् | अद्राप्सीत् , अदासीत् , अदपीत् , अदृपत् / कुपच् क्रोधे / कुप्यति / कुप्येत् / कुप्यतु। अकुप्यत् / चुकोप ।कुप्यात्। कोपिता / कोपि Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 121) ध्यति / अकोपिष्यत् / अकुपत् / गुपच् व्याकुलत्वे / गुप्यति / जुगोप / गोपिता / अगुपत् / युप रुप लुपच् विमोहने / डिपच् क्षेपे / डिप्यति / डिडेप / डेपिता / अडिपत् / ष्ट्रपच समुच्छ्राये। लुभच् गायें / लुभ्यति ।लुभ्येत् / लुभ्यतु / अलुभ्यत् / लुलोभ / अलुभत् / शुभच् संचलने / णभ तुभच् हिंसायाम् / नभ्यति / ननाभ नेमतुः नेभुः / नेभिथ / नभ्यात् / नभिता / नभिष्यति / अनभिष्यत् / अनभत् / नशौच् अदर्शने / नश्यति / नश्येत् / नश्यतु / अनश्यत् / ननाश नेशतुः नेशुः। नेशिथ / नश्यात् / नशो धुटि / 4 / 4 / 109 / नशेः स्वरात् परो धुडादौ प्रत्यये परे नोऽन्तो भवति ।नंटा, नशिता / नक्ष्यति, नशिष्यति / अनक्ष्यत् , अनशिष्यत् / नशेर्नेश् काऽङि / 4 / 3 / 102 / नशेरङि परे नेश् वा भवति। अनेशत् , अनशत् / उपसर्गात्तु नशः शः / 2 / 3 / 78 / - अदुरुपसर्गान्तःस्थाद्रादेः परस्य शन्तस्य नशो नो णो भवति / कुशच् श्लेषणे / कुश्यति / अकुश्यत् / चुकोश / अकुशत् / . भृशू भ्रंशूच् अधःपतने / भृश्यति / अभृश्यत् / बभर्श / भर्शिता / अभृशत् / भ्रश्यति / अभ्रश्यत् / बभ्रंश / भ्रश्यात् / भ्रंशिवा / Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 122 ) भ्रशिष्यति / / अभ्रंशत् / वृशच् वरणे / वृश्यति / . अवृश्यत् / अवृशेत् / कृशच तनुत्वे / कृश्यति / चकर्श / अकृशत् / शुषंच् शोषणे / शुष्यति / शुशोष / शुष्यात् / शोष्टा / शोक्ष्यति / अशोक्ष्यत् / अशुषत् / दुषंच वैकृत्ये / दुष्यति / अदुष्यत / दुदोष / दुष्यात् / दोष्टा। दोक्ष्यति। अदोक्ष्यत् / अदुषत् / श्लिषच् आलिङ्गने / श्लिष्यति / अश्लिष्यत / शिश्लेष / श्लिष्यात्। श्लेष्टा / मेष्यति / अश्लेक्ष्यत् / / - श्लिषः / 3 / 4 / 56 / - अनिटः श्लिषोऽद्यतन्यां सक् भवति / आश्विक्षत कान्तां शिवदत्तः / आश्लिक्षताम् आश्लिक्षन् / नासत्त्वाश्लेषे / 3 / 4 / 57 / - अप्राण्याश्लेषार्थात् श्लिषः मग् न भवति / उपाश्लिषत् जतु काष्ठं च / उपाश्लिषताम उपाश्लिषन् / प्लुधूच् दाहे / प्लुष्यति / पुप्लोष / अप्लुषत्। अितृपच् पिपासायाम् / तृष्यति / तृव्येत् / तृष्यतु / अतृप्यत्। ततर्ष / अतृषत् / तुषं हृषच तुष्टौ / तुष्यति / अतुष्यत् / तुतोष / अतुषत् / हृष्यति / हृष्येत / हृष्यतु / अहृष्यत् / जहर्ष / हृष्यात् / हर्षिता / हर्षिष्यति / अहर्षिष्यत् / अषत् / रुपंच रोषे / रुष्यति / रुरोष / रुष्यात् / रोष्टा, रोषिता। रोक्ष्यति / अरोक्ष्यत् / अरुषत् / विरूच् प्रेरणे / विस्यति / Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (123) विवस / अविसत् / कुसच् श्लेषे / कुस्यति। कुस्येत् ।अकुस्थत्। धुकोस / अकुसत् / असूच क्षेपणे / अस्यति / अस्येत्। अस्यतु / आस्यत् / आस आसतुः आसुः / अस्यात् / असिता / असिष्यति / आसिष्यत् / आस्थत् आस्थताम् आस्थन् / यसूच प्रयत्ने / ' भ्रासम्लास-' इत्यादिना वा श्यः। यस्यति। यस्येत् / यस्यतु / अयस्यत् / यसति / यसेत् / यसतु / अयसत् / ययास येसतुः येसुः / येसिंथ / यस्यात् / यसिता / यसिष्यति / अयसिष्यत् / अयसत् / जसूच् मोक्षणे / तसू दसूच् उपक्षये। वसूच स्तम्भे / वुसच् उत्सर्गे / मुसच् खण्डने / मुस्यति / मुमोस / अमुसत् / ममैच् परिणामे / शमू दमूच् उपशमे / शमसप्तकस्य श्ये / 4 / 2 / 111 / शमादीनां सप्तानां श्ये परे दी| भवति / शाम्यति / शाम्येत्। शाम्यतु / अशाम्यत् / शशाम शेमतुः शेमुः। सेमिथ / शम्यात् / शमिता। शमिष्यति / / अशमिष्यत् / अशमत् / दाम्यति / दाम्येत् / दाम्यतु / अदाम्यत् / ददाम देमतुः देमुः / दम्यात् / दमिता / दमिष्यति / अदमिष्यत् / अदमत् / तमूच् कामायाम् / ताम्यति / तताम तेमतुः तेमुः / तेमिथ / तम्यात् / तमिता / तमिष्यति / अतमिष्यत् / अतमत् / श्रमूच खेदतपसोः। श्राम्यति / श्राम्येत् / श्राम्यतु / अश्राम्यत् / शश्राम / श्रम्यात् / अमिता / श्रमिष्यति / अश्रमिष्यत् / अश्रमत् / भ्रमूच अनव Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (124) स्थाने / 'भ्रासभ्लासभ्रम-'इति भ्राम्यति, भ्रमति / भ्राम्येत् , भ्रमेत् / भ्राम्यतु, भ्रमतु / अभ्राम्यत् , अभ्रमत् / बभ्राम बभ्रमतुः, भ्रमतुः बभ्रमुः, भ्रमुः। बभ्रमिथ, भ्रमिथ / भ्रम्यात्। भ्रमिता / भ्रमिष्यति / अभ्रमिष्यत्। अभ्रमत / क्षमौच सहने / क्षाम्यति / क्षाम्येत् / साम्यतु / अक्षाम्यत / चक्षाम चक्षमतुः चक्षमुः। क्षमिता, क्षन्ता / क्षमिष्यति, संस्यति / अक्षमिष्यत् , अक्षस्यत् / * अक्षमत् / मदेच् हर्षे / माद्यति / मायेत् / माद्यतु / अमाद्यत् / ममाद मेदतुः मेदुः / मेदिथ / मद्यात् / मदिता / मदिष्यति / अमदिष्यत् / अमदत् / क्लमूच् ग्लानौ / ‘ष्ठिवूक्लम्वाचमः' क्लाम्यति / क्लाम्यत / क्लाम्यतु / अक्लाम्यत् / क्लामति क्लामेत् / क्लामतु / अक्लामत् / चक्लाम / लम्यात् / क्लमिता / क्लमिष्यति / अक्लमिष्यत् / अक्लमत् / मुहौच वैचित्ये / मुह्यति / मुह्येत् / मुह्यतु / अमुह्यत् / मुमोह / मुह्यात् / मोहिता, इडभावे ' मुहदुहष्णुहष्णिही वा' मोग्धा पक्षे ढत्वे. मोढा / मोहिष्यति, मोक्ष्यति / अमोहिव्यत्, अमोक्ष्यत् / अमुहत् / दुहीच निघांसायाम् / द्रुह्यति / द्रुह्येत् / द्रुह्यतु / अद्रुह्यत् / दुद्रोह / द्रुह्यात् / द्रोहिता, द्रोग्धा, द्रोढा / द्रोहिष्यति, प्रोक्ष्यति / अद्रोहिष्यत्, अध्रोक्ष्यत् / अद्रुहत् / प्णुहोच उद्गिरणे / स्नुह्यति / स्नुह्येत् / स्नुह्यतु / अस्नुह्यत् / सुष्णोह / स्नुह्यात् / स्नोहिता, स्नोग्धा, स्नोढा / स्नोहिष्यति, स्नोक्ष्यति / अस्नोहिप्यत् , अस्नोक्ष्यत् / अस्नुहत् / ष्णिहोच प्रीतौ / स्निह्यति / निोत् / स्निह्यतु / Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (125) अस्निह्यत् / सिष्णेह / स्निह्यात् / स्नेहिता, स्नेग्धा, स्नेढा / स्नेहिप्यति, स्नेक्ष्यति / अस्नेहिष्यत् , अस्नेक्ष्यत् / अस्निहत / इति पुषादिः परिसमाप्तः। - ङौच प्राणिप्रसवे / सूयते सूयेते सूयन्ते / सूयसे सूयेथे सूयध्वे / सूये सूयावहे सूयामहे / सूयेत सूयेयाताम् सूयेरन् / सूयताम् सूयेताम् सूयन्ताम् / सूयस्व / असूयत / सुषुवे सुषुवाते सुषुविरे / सविषीष्ट, सोषीष्ट / सविता, सोता / सविष्यते, सोष्यते / असविष्यत, अमोष्यत / असविष्ट, अमोष्ट / दूच् परितापे / दूयते / दूयेत / यताम् / अदूयंत / दुदुवे / दविता / दविष्यते / अदविष्यत / अदविष्ट / दींच् क्षये। दीयते। दीयेत। दीयताम् / अदीयत। दीय दीङः विङति स्वरे / 4 / 3 / 93 / . दीङ: क्डित्यशिति स्वरे दीय् भवति / दिदीये दिदीयाते. दिदीयिरे। यबक्ङिति / 4 / 2 / 7 / दीडो यपि चाक्ङिति विषये आद् भवति / दासीष्ट / दाता / दाम्यते / अदास्यत / अदास्त अदासाताम् अदासत / धींच् अनादरे धीयते / धीयेत / धीयताम् / अधीयत / दिध्या धेषीष्ट / धेता / धेष्यते / अधेष्यत / अधेष्ट अधेषाताम् अधे Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 126) पत। मींच् हिंसायाम् / मीयते / मीयत। मीयताम् / अमीयत ।मिम्ये / मेषीष्ट / मंतासे / मेष्यते / अमेष्यत / अमेष्ट / लींच श्लेषणे / लीयते / लीयेत। लीयताम् / अलीयत / लिल्ये / लीलिनोर्वा / 4 / 2 / 9 / __ अनयोर्यपि खलअच्अल्वर्जितेऽक्ङिति च विषये आद् वा भवति / लेषीष्ट, लासीष्टी लेता, लाता।लास्यते, लेष्यते / अलास्यत, अलेष्यत / अलास्त अलासाताम् अलासत। अलेष्ट अलेषत / डीच गतौ डीयते / डिड्ये / डयिषीष्ट / इयितासे / इयिष्यते / अडयिष्यत / अडयिष्ट / वींच वरणं / व्रीयते / विद्रिये / वेषीष्ट / नेतासे / वेष्यते / अवेष्यत / अवेष्ट / इति सूयत्यादिः / पीङ्च् पाने / पीयते / पिप्ये / पेषीष्ट / पेता / पेष्यत / अपप्यत / अपेष्ट / ईच् गतौ / ईयते / ऐयत / अयाञ्चक्रे / अयाम्बभूव / अयामास / एषीष्ट / एता / एष्यते / ऐष्यत / ऐष्ट / प्रींच् प्रीतौ / प्रीयते / पिप्रिये। प्रेषीष्ट / प्रेता। प्रेष्यत / अप्रेष्ट। युजिच समाधौ / युज्यते / युज्येत / युज्यताम् / अयुज्यत / युयुजे / युक्षीष्ट / योक्ता। योक्ष्यते / अयोक्ष्यत / अयुक्त / सृजिच् विसर्गे / सृज्यते। ससृजे। स्रष्टा / स्त्रक्ष्यते / वृतूचि वरणे / पदिंच गतौ / पद्यते / पद्येत / पद्यताम् / अपद्यत / पढे पेदाते पेदिरे / पत्सीष्ट / पत्ता / पत्स्यते / अपत्स्यत / - बिच ते पदस्तलुक् च / 3 / 4 / 66 / Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (127) ... पद्यतेः कर्तर्यद्यतन्यास्ते परे जिच् भवति, निमित्ततस्य च लुक् / अपादि अपत्साताम् अपत्सत / अपत्थाः अपत्साथाम् अपद्ध्वम् / अपत्सि अपत्स्वहि अपत्स्महि / विदिच् सत्तायाम् / क्विते / अविद्यत / विक्देि / वित्सीष्ट / वेत्ता / वेत्स्यते / अवेत्स्यत / अवित्त अवित्साताम् अवित्सत। खिदिच दैन्ये। खिद्यते। चिखिदे। खित्सीष्ट / खेत्ता। खेत्स्यते। अखित्त / युधिच सम्प्रहारे। युध्यते / युयुधे / युत्लीष्टः / योद्धा / योत्स्यते / अयोत्स्यन् / युद्ध अयुत्साताम् अयुत्सत / अनो रुधिंच् कामे / प्रायेणायमनुपूर्वः / अनुरुध्यते / अनुरुरुधे / अनुरुत्सीष्ट / अनुरोद्धा / अन्वरोत्स्यत / अन्वरुद्ध अन्वरुत्साताम् अन्वरुत्सत / बुधि मनिंच ज्ञाने / बुध्यते / अबुध्यत / बुबुधे / भुत्सीष्ट / बोधासे। भोत्स्यते / अभोत्स्यत / मिचि अबोधि / पक्षे अबुद्ध अभुत्साताम् अभुत्सत / मन्यते / अमन्यत / मेने मेनाते मेनिरे / मंसीष्ट / मन्ता। मस्यते / अमंस्यत / अमंस्त अमंसाताम् अमंसत / अनिच् प्राणने / जनैचि, प्रादुर्भाव / जा ज्ञाजनोऽत्यादौ / 4 / 2 / 104 / ज्ञाजनोः शिति जा भवति न त्वनन्तरे तिवादौ / जायते / जायेत / जायताम् / अजायत / जज्ञे जज्ञाते जज्ञिरे / जविपीष्ट / जनिता / जनिव्यते / अजन्टियन दीपजन-' इति मिचि पक्षे .... न जनवधः। 4 / 3 / 54 / Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 128 ) .. अनयोः निति णिति कृति औ च परे वृद्धिर्न, भवति / अजनि, अजनिष्ट अजनिषाताम् अजनिषत / दीपैचि दीप्तौ / दीप्यते / दीप्येत / दीप्यताम् / अदीप्यत / दिदीपे दिदीपाते दिदीपिरे। दीपिषीष्ट / दीपिता / दीपिष्यते / अदीपिष्यत / अदीपि, अदीपिष्ट अदीपिषाताम् अदीपिषत / तपिंच ऐश्वर्ये वा / तप्यते / अतप्यत / तेपे तेपाते तेपिरे / तप्मीष्ट / तप्ता / तप्स्यते / अतप्स्यत / अतप्त अतप्साताम् अतप्सत / पूरैचि आप्यायने / पूर्यते / पूर्येत / पूर्यताम् / अपूर्यत / पुपूरे / पूरिषीष्ट / पूरिता / पूरिष्यते / अपूरिप्यत / अपूरि, अपूरिष्ट अपूरिषाताम् अपूरिषत / घरैङ् जूरैचि जरायाम् / पूर्यते / अघूर्यत / जुघूरे / घरिषीष्ट / घूरिता / , रिष्यते / अचूरिष्यत / अघूरिष्ट / जूर्यते / अर्यत / जुजूरे / जूरिता / जूरिषीष्ट / जूरिष्यते / अरिष्यत / अरिष्ट / धूरैङ् गूरैचि गतौ / तूरैचि त्वरायाम् तूर्यते / तूर्येत / तूर्यताम् / अतूर्यत / तुतूरे / तूरिषीष्ट / तूरिता / तूरिष्यते / अतूरिष्यत / अतूरिष्ट / घूरादयो हिंसायां च / चूरैचि दाहे / क्लिशिच् उपतापे / क्लिश्यते / चिक्लिशे / क्लेशिषीष्ट / क्लेशिता। क्लेशिष्यते / अक्लेशिष्यत / अक्लेशिष्ट / लिशिंच अल्पत्वे / लिश्यते / अलिश्यत / लिलिशे / लिक्षीष्ट / लेष्टा / लेक्ष्यते / अलेक्ष्यत / अलिक्षत अलिक्षाताम् अलिक्षन्त / काशिच दीप्तौ / काश्यते / अकाश्यत। चकाशे। काशिषीष्ट / काशिता / काशिष्यते / Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (. 129) अकाशिष्यत / अकाशिष्ट / इत्यात्मनेपदं समाप्तम् ॥शकींच मर्षणे। शक्यते / शक्येत / शक्यताम् / अशक्यत / शेके / शक्षीष्ट / शक्ता / शक्ष्यते / अशक्ष्यत / अशक्त अशक्षाताम् अशक्षत / शक्यति / शक्येत् / शक्यतु / अशक्यत् / शशाक शेकतुः शेकुः / शक्यात् / शक्ता / शक्ष्यति / अशक्ष्यत् / अशासीत् अशाक्ताम् अशाचः / शुचूगैच पूतिभावे / शुच्यति / शुच्यते / अशुच्यत् / अशुच्यत / शुशोच / शुशुचे। शुच्यात् / शोचिषीष्ट / शोचिता / शोचिष्यति / शोचिष्यते / अशोचिष्यत् / अशोचिष्यत / अशुचत् , अशोचीत् / अशोचिष्ट / रञ्जींच रागे। अकटविनोश्च रोः।४।२।५० / .. अकटि घिनणि शवि च परे रञ्जरुपान्त्यस्य नो लुग भवति / रज्यति / रज्यते / रज्येत् / रन्येत / रज्यतु / रज्यताम् / अरज्यत् / अरज्यत / ररञ्ज ररञ्जतुः ररजुः / ररले ररञ्जाते ररञ्जिरे / रज्यात् / रशीष्ट / रक्षा / रक्ष्यति / रक्ष्यते / अरक्ष्यत् / अरक्ष्यत / अरासीत् अराताम् अराक्षुः / अरत अरसाताम् अरसत / शपींच आक्रोशे। शप्यति / शप्यते / अशप्यत् / अशप्यत / शशाप शेपतुः शेपुः / शेपे शेपाते शेपिरे / शप्यात् / शप्सीष्ट / शप्ता / शप्स्यति / शप्स्यते / अशप्स्यत् / भशप्स्यत / अशाप्सीत् अशाप्ताम् अशाप्सुः / अशप्त अशप्साताम् अशप्सत / मृषीच तितिक्षायाम् / मृष्यति / मृष्यते / Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 130) अमृष्यत् / अमृष्यत / ममर्ष / ममृषे / मृष्यात् / मर्षिषीष्ट / मर्षिता / मर्षिष्यति। मर्षिष्यते / अमर्षिष्यत् / अमर्षिष्यत / अमपीत् / अमर्षिष्ट / णहीच बन्धने / नह्यति / नह्यते / नह्येत् / न त / नह्यतु / नह्यताम् / अनात् / अनह्यत / ननाह नेहतुः नेहुः / नेहे नेहाते नेहिरे / नह्यात् / 'नहाहोर्धतौ' नत्सीष्ट / नद्धा / नत्स्यति / नत्स्यते / अनत्स्यत् / अनत्स्यत / अनात्सीत् अनाद्धाम् अनात्सुः / अनंध अनत्साताम् अनत्सत / अनद्धाः अनत्साथाम् अनद्ध्वम् / अनत्सि अनत्स्वहि अनत्स्महि / इत्युभयपदं समाप्तम् / इति दिवादिगणः परिसमाप्तः / अथ खादिगणः। टानुबन्धाः स्वादयः पुंगटू अभिषवे स्वादेः श्रुः / 3 / 4 / 75 / स्वादेः कर्तरि विहिते शिति नुर्भवति / 'उनीः' इति गुणे सुनोति सुनुतः सुन्वन्ति / सुनोषि सुनुथः सुनुथ / सुनोमि / वम्यविति वा / 4 / 2 / 87 / असंयोगात् परो य उस्तदन्तस्य प्रत्ययस्य लुग्वा भवति Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (131) वमादौ अंविति परे / सुन्वः, सुनुवः सुन्मः, सुनुमः / सुनुते -सुन्वाते सुन्वते / सुनुषे सुन्वाथे सुनुध्वे / सुन्वे सुन्वहे, सुनुवहे सुन्महे, सुनुमहे / सुनुयात् / सुन्वीत सुन्वीयाताम् सुन्वीरन् / सुनोतु, सुनुतात् सुनुताम् सुन्वतु / सुनु, सुनुतात् सुनुतम् सुनुत / सुनवानि सुनवाव सुनवाम। सुनुताम् सुन्वाताम् सुन्वताम् / सुनुष्व सुन्वाथाम् सुनुध्वम् / सुनवै सुनवावहै सुनवामहै / असुनोत् असुनुताम् असुन्वन् / असुनोः असुनुतम् असुनुत / असुनवम् असुनुव, असुन्व असुनुम, असुन्म / असुनुत असुन्वाताम् असुन्वत। असुनुथाः असुन्वाथाम् असुनुध्वम् / असुन्वि असुनुवहि, असुन्वहि असुनुमहि, असुन्महि / सुषाव सुषुवतुः सुषुवुः / सुषुवे सुषुवाते सुषुविरे / सूयात् / सोषीष्ट / सोता / सोष्यति / सोष्यते / असोष्यत् / असोष्यत / 'धूगसुस्तोः परस्मै' असावीत् असाविष्टाम् असाविषुः / असोष्ट असोषाताम् असोपत / उपसर्गात तुउपसर्गात् सुग्सुवसोस्तुस्तुभोऽट्यप्यद्वित्वे / 2 / 3 / 39 / ... द्वयुक्ताभावे उपसर्गस्थाद् नाम्यादेः परस्य सुनोत्यादेः सः ष् भवति, अव्यवधानेऽपि / अभिषुणोति / पर्यषुणोत् / पिंगट बन्धने / मिनोति / सिनुते / सिनुयात् / सिन्वीत / सिनोतु / सिनुताम् / असिनोत् / असिनुत / सिषाय / सिष्ये / सीयात् / सेषीष्ट / सेता / सेष्यति / सेष्यते / असेष्यत् / असेप्यत / असे Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षीत् / असेष्ट असेषाताम् असेषत / शिंग्टु निशाने / शिनोति / शिनुते / अशिनोत् / अशिनुत / शिशाय / शिश्ये / शीयात् / शेषीष्ट / शेता / शेष्यति। शेष्यते / अशेष्यत् / अशेष्यत / अशैषीत् / अशेष्ट / डुमिंगट प्रक्षेपणे / मिनोति / मिनुते / मिनोतु / मिनुताम् / मिग्मीगोऽखलचलि / 4 / 2 / 8 / ___अनयोर्यपि खल् अच् अलवर्जितेऽक्ङिति प्रत्यये च आद् भवति / ममौ मिम्यतुः मिम्युः / ममिथ, ममाथ मिम्यथः मिग्य / ममौ मिम्यिव मिम्यिम / मिम्ये मिम्याते मिम्यिरे। मीयात् / मासीष्ट / माता / मास्यति / मास्यते / अमास्यत् / अमास्यत / अमासीत् / अमास्त / चिंगटु चयने / चिनोति / चिनुते / चिनुयात् / चिन्वीत / चिनोतु / चिनुताम् / अचिनोत् / अचिनुत / चेः किर्वा / 4 / 1 / 36 / - सन्परोक्षयोत्वेि सति पूर्वस्मात् परस्य चेः किर्वा भवति / चिकाय चिक्यतुः चिक्युः / चिक्ये चिक्याते चिक्यिो / चिचाय चिच्यतुः चिच्युः / चिच्ये चिच्याते चिच्यिरे / चीयात् / षीष्ट / चेता / चेष्यति / चेष्यते / अचेष्यत् / अचेष्यत / अचैषीत् / अचेष्ट / धूगटु कम्पने / धूनोति / धूनुते / अधूनोत् / अधूनुत / दुधाव दुधुवतुः दुधुवुः / दुधुवे दुधुवाते दुधुविरे / धूयात् / धोषीष्ट 'धूगौदितः' धविषीष्ट / धोता, धविता / धोष्यति, धविष्यति / Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 133) धोष्यते, धविष्यते / अधोष्यत् , अधविष्यत् / अधोष्यत, अधदि'ध्यत / अधावीत् , अधौषीत् / अधविष्ट, अधोष्ट / स्तूंगट * आच्छादने / स्तृणोति / स्तृणुते / अस्तृणोत् , अस्तृणुत / तस्तार 'संयोगादर्तेः' तस्तरतुः तस्तरुः / तस्तथ / तस्तरे तस्तराते तस्तरिरे / ' क्ययङाशीर्ये ' इति गुणे स्तर्यात् / ___ संयोगादतः / 4 / 4 / 37 / धातोः संयोगात् परो य ऋकारस्तदन्तात् परयोरात्मनेपदविषययोः सिजाशिषोरादिरिड् वा भवति / स्तरिषीष्ट, स्तृषीष्ट / स्तर्तामे / स्तरियाते / स्तरिष्यते / अस्तरिष्यत् / अस्तरिष्यत / अस्तापीत् अस्ताम् अस्तायुः / आत्मनेपदे इटपक्षे अस्तरिष्ट अस्तरिपाताम् अस्तरिपत / अम्तृत अस्तृवाताम् अस्तृषत / इंगट हिंमायाम् / कृणोति / कृणुत / अकृणोत् / अकृणुत / चकार / चक्र / क्रियात् / कृषीष्ट / कर्तासि / कर्तासे / करिष्यति / करिष्यते / अकरिष्यत / अकरिष्यत् / अकार्षीत् / अकृत अकृपाताम् अकृपत / वृगट वरण / वृणाति / वृणुते / वृणुयात् / वृण्वीत / अवृगात् / अवृणुत / ववार वत्रतुः वत्रुः / ववस्थि / वत्रे वनाने वत्रिरे / त्रियात् / इट सिजाशि पोरात्मने / 4 / 4 / 36 / * वृतः परयोरात्मनेपदविषये मिजाशिषोरादिरिड् वा भवति / वरिपीट, वृषीष्ट / 'वृतो नका ' इत्यादिना वरितासि, वरीतासि / Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (134 ) वरितासे, वरीतासे / वरिष्यति, वरीष्यति / वरीष्यते, वरिष्यते / अवरीष्यत् , अवरिष्यत् / अवरीष्यत, अवरिष्यत / अवारीत् अवारिष्टाम् अवारिषुः / अवरिष्ट, अवरीष्ट अवरिषाताम् , अवरीपाताम् अवरीषत, अवरिषत / पक्षे अवृत अवृषाताम् अवृषत / इत्युभयपदिनः स्वादयः समाप्ताः / अथ परस्मैपादनः स्वादयः। हिंट् गतिवृद्ध्योः / हिनोति। हिनुयात् / हिनोतु / अहिनोत् / अङे हिहनो हो घः पूर्वात् / 4 / 1 / 34 // हिहनोर्डवर्ने प्रत्यये परे द्वित्वं सति पूर्वम्मात् परस्य हो घो भवति / निघाय जिघ्यतुः नियुः / निघयिथ, जिघेथ जिघ्यथुः जिघ्य / जिघाय, जिघय निध्यिव निध्यिम / हीयात् / हेता / हेष्यति / अहेव्यत् / अहैषीत् अहैष्टाम् अहेषुः / श्रंट श्रवणे : 'श्रौतिकृयु' इत्यादिना 'शृ' आदेशे शृणोति / शृणुयात् / शृणोतु / अशृणोत् / शुश्राव शुश्रुवतुः शुश्रुवुः / शुश्रोथ / श्रूयात् / श्रोता / श्रोष्यति / अश्रोष्यत् / अश्रौषीत् / टुर्बुद उपतापे / दुनोति / दुनुयात् / दुनोतु / अदुनोत् / दुदाव / दुदविथ, दुदोथ / दूयात् / दोता / दोष्यति / अदोष्यत् / अदौपीत् / पूंट प्रीतौ / पृणोति / पृणुयात् / पृणोतु / अपृणोत् / पपार पप्रतुः पपुः / प्रियात् / पर्ता / परिष्यति। अपरिष्यत् / अपार्षीत् / स्मृट पालने च / स्मृणोति / स्मृणुयात् / स्मृणोतु / Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 135) अस्मृणोत् / सस्मार सस्मरतुः सस्मरुः / सस्मर्थ / स्मर्यात् / ‘स्मर्ता / स्मरिष्यति / अस्मरिष्यत् / अस्मार्षीत् / शक्लंट शक्तौ / शक्नोति / अशक्नोत् / शशाक शेकतुः शेकुः / शेकिथ, शशक्य / शक्यात् / शक्तासि / शक्ष्यति / अशक्ष्यत् / अशकत् अशकताम् अशकन् / तिक तिग षघट् हिंसायाम् / / तिक्नोति / अतिक्नोत् / तितेक / अतेकीत् / तिग्नोति / तितेग / अतेगीत् / सध्नोति / सघ्नुयात् / सघ्नोतु / असघ्नोत् / ससाघ सेवतुः सेयुः। सेघिय / सत्र्यात् / सघिता / सघिष्यति / असघिध्यत् / असाघीत् , असघीत् / राधं साधंट संसिद्धौ / राध्नोति राध्नुतः राध्नुवन्ति / राध्नोषि राध्नुथः राध्नुय / राध्नोमि राध्नुवः राध्नुमः / राध्नुयात् / राध्नोतु / अराध्नोत् / रराध रेधनुः रेधुः / रेधिथ रेधथुः रेध / राध्यात् / राद्धा। रात्स्यति / अरात्स्यत्। अरात्सीत् अराद्धाम् अरात्सुः / सानोति / साध्नुयात् / साध्नोतु / असाध्नोत् / ससाध / साध्यात् / साधा / सात्स्यति / असात्म्यत् / असात्सीत् असाद्धाम् असात्सुः / ऋधूट वृद्धौ / ऋनोति / आर्नोत् / आनर्ध आन्धतुः आन्धुः / ऋध्यात् / अर्धिता / अर्धिष्यति / आर्धिष्यत् / आधीत् / आप्लंट् व्याप्तौ। आप्नोति / आप्नुयात् / आप्नोतु / आप्नोत् / आप आपतुः आपुः / आपिथ। आप्यात् / आप्ता / आस्यति / आप्स्यत् / लदित्त्वादङि आपत् आपताम् आफ्न् / आपः / तृपः प्रीणने / तृप्नोति / अतृप्नोत् / ततर्प ततृपतुः ततृपुः / Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 136) तृप्यात् / तर्पिता / तर्पिष्यति / अतर्पिष्यत् / अतीत् / दम्भूट दम्भे / दम्नोति / दभ्नुयात् / दम्नोतु / अदभ्नोत् / ददम्भ / - दम्भः / 4 / 1 / 28 / दम्भेः स्वरस्यावित्परोक्षायामकारो भवति, न च द्विः / देभतुः देभुः / थे वा / 4 / 1 / 29 / __दम्भेः स्वरस्य थवि परे एर्वा भवति / ददम्भिथ, देभिय देभथुः देभ / ददम्भ देभिव देभिम / दभ्यात् / दम्भिता / दम्भिष्यति / अदम्भिव्यत् / अदम्भीत् / कृवुटु हिंसाकरणयोः / 'श्रौतिकृवु-' इत्यादिना 'कृ' आदेशे / , कृणोति / कृणुयात् / कृणोतु / अकृणोत् / चकृन्व चकृन्वतुः चकृन्वुः / कृन्त्र्यात् / कृन्विता। कृन्विष्यति / अकृन्विष्यत् / अकृन्वीत् / विवुट गतौ / धिनोति / धिनुयात् / धिनोतु / अधिनोत् / दिधिन्व / धिन्च्यात् / धिन्विता / धिन्विन्यति / अधिन्विष्यत् / अधिन्वीत् / जिधृपाट् प्रागल्भ्ये धृष्णोति / धृष्णुयात् / धृष्णोतु / अधृष्णोत् / दधर्ष / धर्षिता / अधर्षीत् / इति परस्मैपदम् / / अथात्मनेपदम् / / ष्टिविट् आस्कन्दने / स्तिघ्नुते स्तिञ्चवाते स्तिघ्नुवते / स्तिघ्नुवीत / स्तिघ्नुताम् / अस्तिघ्नुत / तिष्टिये तिष्टिघाते तिष्टिविरे / स्तेविषीष्ट / स्तेघितासे / स्तेघिष्यते / Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 137) अस्तंघियत ! अस्तेघिष्ट / अशौटि व्याप्तौ / अश्नुते / अश्नुवीत / अश्नुताम् / आश्नुत / आनशे आनशाते आनशिरे / अशिषीष्ट, अतीष्ट / अशितासे, अष्टासे / अशिष्यते, अक्ष्यते / आशिष्यत, आक्ष्यत / आशिष्ट आशिषाताम् आशिषत / पक्षे आष्ट आक्षाताम् आक्षत / आष्ठाः आमाथाम् / 'सो धि वा' इति सिन्लुकि 'यजसृज'–इत्यादिना षत्वे 'तृतीयस्तृतीयचतुर्थे' इति डत्वे 'तवर्गस्य' इत्यादिना धो ढत्वे आइट्वम् / आक्षि आश्वहि आक्ष्महि / इत्यात्मनेपदं समाप्तम् / इति स्वादयः समाप्ताः। अथ तुदादिगणः / -resoreतानुबन्धास्तुदादयः / तुदींत्. व्यथने / ___ तुदादेः शः / 3 / 4 / 81 // - एभ्यः कर्तरि विहित शिति शप्रत्ययो भवति / तुदति तुदतः तुदन्ति / तुदसि तुदथः तुदथ / तुदामि तुदावः तुदामः / तुदते तुदेते तुदन्ते / तुदसे तुर्दथे तुवे / तुढे तुदावहे तुदामहे / तुदेत् तुदेताम् तुदेयुः / तुदेः तुदेतम् तुदेत / तुदेयम् तुदेव तुदेम / तुदेत तुदेयाताम् तुदेरन् / तुदेथाः तुदेयाथाम् तुध्वम् / तुदेय तुदेवहि तुमहि / तुदतु, तुदतात् तुदताम् तुदन्तु / तुद, तुदतात् Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 138 ) तुदतम् तुदत / तुदानि तुदाव तुदाम / तुदताम् तुदताम् तुदन्ताम्। तुदस्व तुदेथाम् तुध्वम् / तुदै तुदावहै तुदामहै / अतुदत् अतुदताम् अतुदन् / अतुदः अतुदतम् अतुदत / अतुदम् अतुदाव अतुदाम / अतुदत अतुदेताम् अतुदन्त / अतुदथाः अतुदेथाम् अतुदध्वम् / अतुदे अतुदावहि अतुदामहि। तुतोद तुतुदतुः तुतुदुः / तुतोदिथ / तुतुदे तुतुदाते तुतुदिरे / तुद्यात् / तुत्सीष्ट / तोत्तासि / तोत्स्यति / तोत्स्यते / अतोत्स्यत् / अतोत्स्यत / अतौत्सीत् अतौत्ताम् अतौत्सुः / अतौत्सीः / अतुत्त अतुत्साताम् अतुत्सत। क्षिपीत् प्रेरणे / क्षिपति / क्षिपतं / क्षिपेत् / क्षिपत / क्षिपतु / क्षिपताम् / अक्षिपत् / अक्षिपत / चिक्षेप / चिक्षिपे / क्षिप्यात् / क्षिप्सीष्ट / क्षेप्तासि / क्षेप्तासे / क्षेप्स्यति / क्षेप्स्यते / अक्षेप्स्यत्। अक्षेप्स्यत / अझैप्सीत् / अक्षिप्त / भ्रस्जीत् पाके / ग्रहबश्चभ्रस्जपच्छः / 4 / 1 / 84 / एषां सस्वरान्तस्था य्वृत् भवति, विङति परे / ततः मन्य शत्वे शस्य जत्वे च भृजति / भृजते / भृज्जेत् / भृज्जेत / भृजनु / भृजताम् / अभृजत् / अभृज्जत / भृजो भर्ख / 4 / 4 / 6 / भृज्जतेरशिति विषये भ वा भवति / बभर्ज वर्जितुः बभर्तुः। बभर्निथ, बभठ बभर्जथुः बभर्ज / बभर्न बर्जिव बभर्जिम / बभ्रज्ज बभ्रजतुः बभ्रन्जुः / बभ्रज्जिथ, बभ्रष्ठ बभ्रज्जथुः बभ्रज / बभ्रज Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायाम् अभा, नासीत् अभ्रा / / अभई (139) बभ्रज्जिव बजिम / बभर्ने बभर्नाते बभनिरे / बभ्रज्जे वभ्रजाते बनजिरे / भृज्ज्यात् , भात् / भीष्ट, भ्रक्षीष्ट / भ्रष्टासि, में सि / भ्रष्टासे, भासे / भ्रक्ष्यति, भय॑ति / भ्रक्ष्यते, भयते / अभ्रक्ष्यत् , अभीत् / अभ्रक्ष्यत, अभयंत / अभ्राक्षीत् अभ्राटाम् अभ्राक्षुः / अभाीत् अभाटीम् अभाभुः / अभ्रष्ट अभ्रक्षाताम् अभ्रक्षत / अभट अभाताम् अभक्षत / दिशीत् अतिसर्जने / दिशति / दिशते / दिशेत् / दिशेत / दिशतु / दिशताम् / अदिशत् / अदिशत / दिदेश / दिदिशे। दिश्यात् / दिक्षीष्ट / देष्टासि / देष्टासे / देक्ष्यति / देश्यते / अदेक्ष्यत् / अदेक्ष्यत / सकि अदिक्षत् अदिक्षताम् अदिक्षन् / अदिक्षत अदिक्षाताम् अदिक्षत / कृषीत् विलेखने / कृषति / कृषते / अकृषत् / अकृषत / चकर्ष / चकृषे / कृष्यात् / कृक्षीष्ट / क्रष्टासि, कासि / ऋष्टासे, कर्टासे / ऋक्ष्यति, कयति / ऋक्ष्यते, कयते / अक्रत्यत् , अकय॑त् / अक्रक्ष्यत, अकीत / अक्राक्षीत् अक्राष्टाम् / अकार्षीत् अकार्टाम् / पक्षे सकि अकृक्षत् अकृक्षताम् अकृक्षन् / अकृष्ट अकृक्षाताम् अकृक्षत / अथ तुदाद्यन्तर्गणो मुचादिः / मुच्लंती मोक्षणे / मृचादितफहफगुफशुभोभः शे / 4 / 4 / 99 / एषां शे परे स्वरान्नोन्तो भवति / मुञ्चति / मुञ्चते / मुश्चेत् / मुश्चेत / मुञ्चतु / मुञ्चताम् / अमुञ्चत् / अमुञ्चत / मुमोच / मु. मुचे / मुच्यात् , मुक्षीष्ट / मोक्तासि / मोक्तासे / मोक्ष्यति / HHHHHHHHH Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (140) मोक्ष्यते / अमोस्यत् / अमोक्ष्यत / अङि * अमुचत् अमुचताम् अमुचन् / अमुक्त अमुक्षाताम् अमुक्षत / षिचीत् क्षरणे / सिञ्चति / सिञ्चते / असिञ्चत् / असिञ्चत / सिषेच / सिषिचे / सिच्यात् / सिक्षीष्ट / सेक्तासि / सेक्तासे / सेक्ष्यति / सेक्ष्यते / असेक्ष्यत् / असेक्ष्यत / अङि असिचत् असिचताम् असिचन् / 'वाऽऽत्मने' अप्सिचत असिचेताम् असिचन्त / पक्षे 'असिक्त असिक्षाताम् असिक्षत / असिक्थाः / 'स्थासेनिसि धसिचसञ्जाम् ' इत्यादिना उपसर्गात् परस्य द्वित्वेऽपि अट्यपि षत्वम् / अभिषिञ्चति / अभिषिषेच / विलंती लाभे / विन्दति / ‘विन्दते / विन्देत् / विन्दत / विन्दतु / विन्दताम् / अविन्दन् / अविन्दत / विवेद / विवि३ / विद्यात् / वित्सीष्ट / वेत्तासि / वेत्तासे / वेत्स्यति / वेत्स्यते / अवत्म्यत् / अवेत्स्यत। * अविदत् अविदताम् अविदन् / अवित्त अवित्साताम् अवित्सत / लुप्लंती छेदने / लुम्पति / लुम्पतं / लुम्पेत् / लुम्पत / लुम्पतु / लुम्पताम् / अलुम्पत् / अलुम्पत / लुलोप / लुलुपे / लुप्यात् / लुप्सीष्ट। लोप्तासि / लोप्तासे / लोप्स्यति / लोप्स्यते / अलोप्स्यत् / अलोप्स्यत / अलुपत् अलुपताम् अलुपन् / अलुप्त अलुप्साताम् अलुप्सत / लिपीत् उपदेहे / लिम्पति / लिम्पते / अलिम्पत् / : अलिम्पत / लिलेप / लिलिपे / लिप्यात् / लिप्मीष्ट / लेप्तासि / लेतासे / लेनम्यति / लेप्स्यते / अलेप्स्यत् / अलेप्स्यत / अलि Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 141) पत् अलिपताम् अलिपन् / अलिपत अलिपेताम् अलिपन्त / पक्षे. अलिप्त अलिप्साताम् अलिप्सत / इत्युभयपदिनः धातवः। .. कृतैत् छेदने / कृन्तति / कृन्तेत् / कृन्ततु / अकृन्तत् / चकर्त / कृत्यात् / कर्तिता / कतिष्यति, कर्त्यति। अकतिष्यत् , अकय॑त् / अकर्तीत् अकतिष्टाम् अकर्तिषुः / खिदत् परिघाते / खिन्दति। अखिन्दत् / चिखेद / खिद्यात् / खेत्तासि / खेत्स्यति / अखेत्स्यत् / अखैत्सीत् अखैत्ताम् अखैत्सुः / पिशत् अवयवे पिंशति। अपिंशत् / पिपेश / पिश्यात् / पेशिता / पेशिष्यति / अपेशिप्यत् / अपेशीत् / इति मुचादिगणः समाप्तः // रिं पित् गतौ / रियति / रियेत् / रियतु / अरियत् / रिराय रिर्यतुः / रियात् / रेतासि / रेष्यति / अरेष्यत् / अरैषीत् / पियति / पिपाय / पेता / धित् धारणे / धियति / धियेत् / धियतु / अधियत् / दिधाय दिध्यतुः / धीयात् / धेता.। धेष्यति / अधेष्यत् / अधैषीत् / क्षित् निवासगत्योः / षूत् प्रेरणे / सुवति / असुवत् / सुषाव / सूयात् / सवितासि / सविष्यति / असविष्यत् / असावीत् / मृत् प्राणत्यागे। म्रियतेरद्यतन्याशिषि च / 3 / 3 / 42 / / . ' अस्मादद्यतन्याशीविषयात् शिद्विषयाच कर्तर्यात्मनेपदं भवति / 'रिः शक्याशीयें' म्रियते / म्रियेत / म्रियताम् / Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 142) अम्रियत / ममार मम्रतुः मनुः / ममर्थ / मृषीष्ट / मर्तासि / मरिष्यति / अमरिष्यत् / अमृत अमृषाताम् अमृषत / कृत् विक्षेपे 'ऋतां विडतीर् ' किरति / किरेत् / किरतु / अकिरत् / चकार चकरतुः चकरुः / चकरिथ। कीर्यात् / करितासि, करीतासि / करिष्यति, करीष्यति / अकरीष्यत् , अकरिष्यत् / अकारीत अकारिष्टाम् अकारिषुः / गत् निगरणे गिरति। गिलति / गिरेत् / अगिरत् / जगार जगरतुः जगरुः / गीर्यात् / गरितासि, गरीतासि / गरिष्यति, गरीष्यति / अगरिष्यत् अगरीष्यत् / अगारीत् / लिखत् अक्षरविन्यासे / लिखति / लिखेत् / अलिखत् / लिलेख / लिख्यात् / लेखिता / लेखिष्यति / अलेखिष्यत् / अलेखीत् / जर्च झर्चत् परिभाषणे / त्वचत् संवरणे / त्वचति / तत्वाच / अत्वाचीत् / ऋचत् स्तुतौ / ऋचति। ऋचेत् / ऋचतु / अऋचत्। आनर्च / ऋच्यात् / अर्चिता / अर्चिष्यति / आर्चीत् / ओबश्चौत् छेदने / ‘ग्रहश्चभ्रस्जप्रच्छः ' वृश्चति / वृश्चेत् / वृश्चतु / अवृश्चत् / ववश्व ववश्चतुः वत्रश्चुः / वृश्च्यात् / व्रश्चिता, व्रष्टा / श्चिष्यति, व्रक्ष्यति / अव्रश्चिष्यत् , अव्रक्ष्यत् / अत्रश्चीत् अत्रश्चिष्टाम् अवश्चिषुः / अवाक्षीत् अब्राष्टाम् अवाक्षुः / ऋछत् इन्द्रियप्रलयमूर्तिभावयोः / ऋच्छति / ऋच्छेत् / ऋच्छतु / आर्छत् / आनछे आन तुः आनछुः / ऋच्छ्यात् / ऋच्छिता / ऋच्छिष्यति / आच्छिष्यत् / आर्चीत् आच्छिष्टाम् आच्छिषुः / विछत् गतौ / ‘गुपौधूप ' इत्यायादेशे विच्छायति / विच्छायेत् / Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (143) अविच्छाथत् / विच्छायाञ्चकार, विच्छायाम्बभूव, विच्छायामास / पले विविच्छ / विच्छाय्यात् , विच्छ्यात् / विच्छायिता, विच्छिता / विच्छायिष्यति, विच्छिष्यति / अविच्छायिष्यत् , अविच्छिष्यत् / अविच्छायीत् , अविच्छीत् / उछैत् विवासे उच्छति / उच्छेत् / उच्छतु / औच्छत् / उच्छाञ्चकार, उच्छा-- म्बभूव, उच्छामास / उच्छ्यात् / उच्छिता / औच्छीत् / प्रछत् झीप्सायाम् / स्वृति पृच्छति / पृच्छेत् / पृच्छतु / अपृच्छत् / पप्रच्छ पप्रच्छतुः पप्रच्छुः / पप्रच्छिथ, पप्रष्ठ / पृच्छ्यात् / प्रष्टा / प्रक्ष्यति / अप्रक्ष्यत् / अप्राक्षीत् अप्राष्टाम अप्राचः / ऊजत् आजवे / सृजत् विसर्गे। सृजति / सृजेत् / सृजतु / असृजत् / ससर्ज ससृजतुः ससृजुः / ससर्जिथ, सनष्ठ / सृज्यात् / स्रष्टा / स्त्रक्ष्यति / अस्त्रक्ष्यत् / अस्राक्षीत् अस्राष्टाम् अस्राक्षुः / रुनोत् भङ्गे / रुजति / अरुजत् / रुरोज / रुन्यात् / रोक्ता / सेक्ष्यति / अरौक्षीत् / भुनोत् कौटिल्ये / भुजति / अभुजत् / बुभोज / अभोक्षीत / टुमस्जोंत् शुद्धौ / मज्जति / अमज्जत् / ममज ममज्जतुः ममन्जुः / ममजिथ, ममष्ठ / मज्यात् / __ मस्जे सः / 4 / 4 / 110 / . मस्जेः स्वरात् परस्य धुडादौ प्रत्यये परे नोऽन्तो भवति / मक्तामि / मझ्यति / अमझ्यत् / अमामीत् अमाङ्क्ताम् असाक्षुः / जर्ज अर्थात् परिभाषणे / उझत् उत्सर्गे जुडत् गतौ / जुडति / अजोडीत् / कडत मदे / कडति / अकाडीत् , अकडीत् / Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (144 ) - पृणत् पीणने / पृणति / पपर्ण / पर्णिता / अपर्णीत् / तुणत् कौटिल्ये / मृणत् हिंसायाम् / द्रुणत् गतिकौटिल्ययोश्च / घुण पूर्णत् भ्रमणे / घूर्णति / जुघूर्ण / चूर्णिता / अघूर्णीत् / णुदत् प्रेरणे / नुदति / अनुदत् / नुनोद। नुद्यात् / नोत्ता / नोत्स्यति / अनोत्स्यत् / षद्लत् अवसादने / 'श्रौतिकृवुधिवु-' इति सीदादेशः / सीदति / ससाद / तृफ तृम्फत् तृप्तौ / ' मुचादितफडफ-' इति नकारे तृम्फति / अतृम्फत् / ततर्फ / तर्फिता। तृफति / अतृफत् / ततृम्फ / तृम्फिता / दृफ दृम्फत् उत्क्लेशे / दृम्फति / अहम्फत् / ददर्फ / दर्फिता / अदफीत् / दृफति / अदृफत् / दम्फ / दम्फिता / अदृम्फीत् / गुफ गुम्फत् ग्रन्थने / गुम्फति / अगुम्फत / जुगोफ / गोफिता / गुफति / अगुफत् / जुगुम्फ / गुम्फिता / उभ उम्भत् पूरणे / उम्भति / उवोभ / उभिता / औभीत् / उभति / उम्भाञ्चकार / उम्भिता / औम्भीत् / शुभ शुम्भत् शोभार्थे / पूर्ववत् / दृभत् ग्रन्थे / दृभति / दभेत् / दृभतु / अदृभत् / ददर्भ ददृभतुः दद्दभुः / दृभ्यात् / दृर्भिता / दर्भिध्यति / अदर्भिव्यत् / अदर्भीत् / लुभत विमोहने / लुभति / अलुभत / लुलोभ / लुभ्यात् / लोभिता, लोब्धा / लोभिष्यति / अलोभीत् / कुरत् शब्दे कुरति / अकुरत् / चुकोर / ' कुरच्छुरः ' इति दीर्घाभावे भ्वादेरिति दीर्चे कूर्यात् / कोरिता। अकोरीत् / क्षुरत् विखनने / क्षुरति / चुक्षोर। सूर्यात् / क्षोरिता / अक्षोरीत् / खुरत् छेदने च / खुरति / चुखोर / Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (145) खोरिता / अखोरीत् / घुरत भीमार्थशब्दयोः / घुरति / जुघोर / घोरिता / अघोरीत् / पुरत् अग्रगमने / पुरति / पुपोर / पूर्यात्। पोरिता / अपोरीत् / मुरत् संवेष्टने / मुरति / मुमोर / मोरिता / सुरत् ऐश्वर्यदीप्त्योः / स्फर स्फलत् स्फुरणे / इलत् गतिस्वप्नक्षेपर णेषु / इलति / ऐलत् / इयेल ईलतुः ईलुः / इल्यात् / एलिता / एलिष्यति / ऐलीत् / चलत् विलसने / चलति / अचलत् / चचाल / चलिता / अचालीत् / चिलत् वसने / चिलति / चिचेल में चेलिता / अचेलीत् / विलत् वरणे / विलति / विवेल / वेलिता। अवेलीत् / मिलत् श्लेषणे / मिलति / अमिलत् / मिमेल लिमिलतुः मिमिलुः / मेलिता। मेलिष्यति / अमेलीत् / स्पृशंत् संस्पर्शे / स्पृशति / स्पृशेत् / अस्पृशत् / पस्पर्श पस्पृशतः पस्पृशुः / स्पृश्यात् / स्प्रष्टा, स्पर्टी / स्प्रक्ष्यति, स्पर्ध्यति / अस्प्रक्ष्यत् , अस्पीत् / अस्प्राक्षीत् अस्प्राष्टाम् अप्राक्षुः / अस्पाक्षीत् अस्पार्टाम् अस्पाक्षुः / पक्षे सकि अस्पृक्षत् अस्पृक्षताम् / रुशं रिशंत् हिंसायाम् / रुशति / अरुशत् / / रुरोश / रोष्टा / रोक्ष्यति। अरोक्ष्यत् / अरुक्षत् अरुक्षताम् अरुक्षन् / रिशति / अरिशत् / रिरेश / रिश्यात् / रेष्टा / रेक्ष्यति / अरेक्ष्यत् / अरिक्षत् / विशंत् प्रवेशने / विशति / विशतु / अविशत् / विवेश विविशतुः विविशुः / विवेशिथ / विश्यात् / वेष्टा / वेक्ष्यति / भनेत्यत् / अविक्षत् अविक्षताम् अविक्षन् / मृशंत् आमर्शने / मृशति / अमृशत् / ममर्श ममर्शिय, मम्रष्ठ / मृश्यात् / म्रष्टा, ___ 10 Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (156 मी / म्रक्ष्यति, मय॑ति / अम्रक्ष्यत् , अमय॑त् / अम्राक्षीत् , अमाीत् , अमृक्षत् / लिशं ऋषैत् गतौ / लिशति / अलिशत् / लिलेश / लिश्यात् / लेष्टा / लेक्ष्यति / अलेक्ष्यत् / भलिक्षत् / इषत् इच्छायाम् / इच्छति / इच्छेत् / इच्छतु / ऐच्छत् / इयेष ईषतुः ईषुः / इष्यात् / एष्टा, एषिता / एषिव्यति / ऐषिष्यत् / ऐषीत् / मिषत् स्पर्द्धायाम् / वृहौत् उद्यमे / वृहति / अवृहत् / वर्ह / वृह्यात् / वर्हिता, वा / वहिष्यति, वयति / अवहिष्यत् , अवय॑त् / अवहीत् / अवृक्षत् अवृक्षताम् अवृक्षन् / तृहौ तूंहौ स्तृहौ स्तूंहौत् हिंसायाम् / तृहति / तृहेत् / तृहतु / अतृहत् / ततर्ह / तृह्यात् / तर्हिता, तर्दा / तहिष्यति, तय॑ति / अतर्हिष्यत् , अतय॑त् / अतीत्, अतृक्षत्। तुंहेर्नलोपे तृहति / ततुंह / तृह्यात् / तूंहिता, तृण्ढा / तूंहिष्यति, इङक्ष्यति / अहिष्यत् , अतृझ्यत् / अतुंहीत् , अताक्षीत् / अथ कुटादिगणः / . कुटत् कौटिल्ये / कुटति / चुकोट / कुट्यात् / .... कुटादेर्डिद्वदणित् / 4 / 3 / 17 / / कुटादेः परो जिगिद्व प्रत्ययो द्विद् भवति / कुटिता / कुटिष्यति / अकुटिष्यत् / अकुटीत् / गुंत् पुरीषोत्सगें। गुवति / गुवेत् / गुवतु / अगुवत् / जुगाव जुगुवतुः जुगुवुः / गूयात् / गुतासि / गुष्यति / अगुष्यत् / अगुषीत् / धुड्ड्स्वादित्यादिना सिचो लोपे अगुताम् अगुषुः / अगुषीः अगुतम् अगुत / अगु Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (147) पम् अगुष्व अगुष्म / ध्रुत् गतिस्यैर्ययोः / ध्रुवति / अध्रुवत् / धाव / धूयात् / ध्रुता / ध्रुष्यति / अध्रुष्यत् / अध्रुषीत् अध्रुताम् अध्रुषुः / अध्रुषी: अध्रुतम् अधुत / णूत् स्तवने / दुवति / नुवेत् / अनुवत् / नुनाव / नूयात् / नुविता / नुविष्यति। भनुविष्यत् / अनुवीत् / धूत् विधूनने / धुवति / धुवेत् / धुवताम् / अधुवत् / दुधाव दुधुवतुः दुधुवुः / धूयात् / धुविष्यति / अधुविष्यत् / अधुवीत् / कुचत् संकोचने / कुचति / चुकोच / कुचिता / व्यचत् व्याजीकरणे / व्यचोऽनसि / 4 / 1 / 82 / व्यचेः सस्वरान्तस्था य्वृत् भवति, अस्व विङति प्रत्यये परे / विचति / विचेत् / विचतु / अविचत् / विव्याच विविचतुः विविचुः / विन्यचिथ विविचथुः विविच / विव्याच, विव्यच विविचिव विविचिम / विच्यात् / विचिता / विचिष्यति / अविचिष्यत् / अव्याचीत् , अव्यचीत् / गुजत् शब्दे / गुजति / अगुजीत् / घुटत् प्रतीघाते / घुटति / घुटेत् / घुटतु / अघुटत् / सुघोट / घुटिता / घुटिष्यति / अघुटीत् / चुट छुट त्रुटत् छेदने / तुटत कलहकर्मणि / मुटत् आक्षेपप्रमर्दनयोः / स्फुटत् विकसने / स्फुटति / पुस्फोट / स्फुटिता / स्फुटिष्यति / अस्फुटिष्यत् / भास्फटीत् / पुट लुठत् संश्लेषणे / कृडत् घसने / कुडत् बाल्ये प गुडत् रक्षायाम् / गुडति / जुगोड / गुडिता / अगुडीत् / Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुडत् बन्धे / तुडत् तोडने / लुड थुड स्थुडत् संवरणे / वुडत् उत्सर्गे च / ब्रुड भ्रुडत् संघाते / दुड हुड त्रुडत् निमज्जने / चुणत् छेदने / चुणति / चुचोण / चुण्यात् / चुणिता / अचुणीत् / डिपत क्षेपे / छुरत् छेदने / छुरति / अच्छुरत् / चुच्छोर / छुरिता / अछुरीत् / स्फुरत् स्फुरणे / स्फुरति / स्फुलत संचये च / इति परस्मैपदं समाप्तम् / / - अथात्मनेपदम् / कुं कृत् शब्दे / कुवते / कुवेत / कुवताम् / अकुवत / चुकुवे / कुषीष्ट / कुतासे / कुष्यते / अकुष्यत / अकुत अकुपाताम् अकुषत / कुवते / कुवेत / चुकुवे / कुविता / गुरैति उद्यमे / गुरते / गुरिता / अगुरिष्ट / इति कुटादिगणः समाप्तः / / पुत् व्यायामे / प्रियते / प्रियेत / प्रियताम् / अप्रियत / पत्रे पप्राते पपिरे / पृषीष्ट / पर्तासे / परिष्यते / अपरिष्यत / अतः। टुङ्तु आदरे / प्रायेणायमाङ्पूर्वः, आद्रियते / आद्रियेत / आद्रियताम् / आद्रियत / आदतें / आदृषीष्ट / आदर्तासे / आदरिष्यते / आदरिष्यत / आहत आहषाताम् आदृषत / धुंजतु स्थाने / ध्रियते / ध्रियेत / ध्रियताम् / अध्रियत / दधे / दधिषा धृषीष्ट / धर्ता / धरिष्यते / अधरिष्यत / अधृत / ओविनैति भयचलनयोः / उद्विजते / उद्विनताम् / उदविनत / उद्विविजे / उद्वेजिता। उद्वेनिष्यते / उदवेजिष्ट / ओलनैङओलम्जैति वीडे। Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 149) लनते / लेजे / लजितासे / अलनिष्ट / लज्जते / ललजे / लज्जिता / अलजिष्ट / प्वजित् सङ्गे ‘नो व्यञ्जनस्य' इत्यादिना नो लुकि स्वजते / स्वजेत / स्वजताम् / अस्वजत / स्वनश्च / 2 / 3 / 45 / उपसर्गस्थाद् नाम्यादेः परस्य स्वञ्जः सकारस्य पकारो भवति, द्वित्वेऽपि, अट्यपि / अभिष्वजते / अभिष्वजेत / अभिध्वजताम् / अभ्यष्वजत / स्व नवा / 4 / 3 / 22 / ___स्वनः परोक्षा विद्धन वा भवति / इति नलुगभावे सस्वने, परिषस्वजे / पक्षे सस्वजे / परिषस्वजे परिषस्वजाते परिषस्वनिरे / स्वङ्क्षीष्ट / स्वङक्तासे / स्वक्ष्यते / अस्वझ्यत / नत्रा निर्दिष्टयानित्यत्वादिटि अस्वञ्जिष्ट / जुपैति प्रीतिसेवनयोः / जुषते / जुषेत / जुषताम् / अजुषत / जुजुषे / जोषिषीष्ट / जोषितासे / जोषिष्यते / अजोषिष्यत / अजोषिष्ट अजोषिषातास् अजोषिषत / // इति तुदादिगणः समाप्तः // Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 150) अथ रुधादिगणः। पानुबन्धा रुधादयः / रुबॅपी आवरणे / आवरणं व्यापित्वम् / रुधा स्वराच्छ्नो नलुक् च / 3 / 4 / 82 / .: रुधादीनां स्वरात् परः कर्तरि विहिते शिति नो भवति, तंद्योगे च प्रकृतेर्नो लुक् च यथासम्भवम् / शकारः शिकार्यार्थः / ङित्त्वाद् गुणाभावे नकारस्य णकारे तकारस्य च धकारे धातोर्धकारस्य दकारे रुणद्धि / अविति शिति ‘नास्त्यो क्' इति अकारस्य लुकि रुन्द्धः / ननु अत्र णत्वं कथं न ? उच्यते 'नां धुड़र्गेऽन्त्योऽपदान्ते' इत्यत्र ‘म्नां ' इति बहुवचनत्वेन णत्वस्याप्यपवादभूतमिदं सूत्रमिति ज्ञाप्यते, तेनानेन नस्य न एव / रुन्धन्ति / रुणत्सि रुन्धः रुन्ध / रुणद्मि रुन्ध्वः रुन्ध्मः / रुन्धे रुन्धाते रुन्धते / रुन्त्से रुन्धाथे रुन्द्ध्वे / रुन्धे रुन्ध्वहे. रुन्ध्महे / रुन्ध्यात् रुन्ध्याताम् रुन्ध्युः / रुन्ध्याः रुन्ध्यातम् रुन्ध्यात / रुन्ध्याम रुन्ध्याव सन्ध्याम / रुन्धीत रुन्धीयाताम् रुन्धीरन् / रुन्धीथाः रुन्धीयाथाम् रुन्धीध्वम् / रुन्धीय रुन्धीवहि रुन्धीमहि / रुणधु रुन्धात् रुन्धाम् रुन्धन्तु / रुन्धि, रुन्धात् रुन्धम् रुन्ध / रुणधानि रुणधाव रुणधाम / रुन्ताम् स्न्धाताम् रुन्धताम् / रुन्तस्व रुन्धाथाम् रुन्द्वम् / रुणधै रुणधावहै रुणधामहै। अरुणत् अरुन्धाम् अरुन्धन् / सेोपे धस्य च Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्वे विसर्गे अरुणः, अरुन्धम् अरुन्ध / अरुणधम् अरुन्ध्य भरुन्ध्म / अरुन्द्ध अरुन्धाताम् अरुन्धत / अरुन्धाः अरुन्धाथाम् अरुन्ध्वम् / अरुन्धि अरुन्ध्वहि अरुन्ध्महि / रुरोध रुरुधतुः / रुरोधिय रुरोद्ध / रुरुधे / रुध्यात् / रुत्सीष्ट / रोद्धासि / रोद्धासे / रोत्स्यति / रोत्स्यते / अरोत्स्यत् / अरोत्स्यत / ऋदित्वादद्यतन्यामङि अरुषत् अरुधताम् अरुधन् / पक्षे अरौत्सीत् अरौद्धाम् अरौत्सुः / आत्मनेपदे अरुद्ध अरुत्साताम् अरुत्सत / रिचूंपी विरेचने / विरेचनं निःसारणम् / रिणक्ति रिश्तः रिश्चन्ति / रिक्ते रिश्चाते रिश्चते / रिश्च्यात् / रिश्चीत / रिणक्तु / रिङ्क्ताम् / अरिणक् / अरिक्त / रिरेच / रिरेचिथ, रिरेक्थ / रिरिचे / रिच्यात् / रिक्षीष्ट / रेक्तासि / रेक्तासे / रेक्ष्यति / रेक्ष्यते / अरेक्ष्यत् / अरेक्ष्यत / अरिचत् , अरैक्षीत् / अरिक्त / विचूपी पृथग्भावे / विनक्ति / विङ्क्ते / विञ्च्यात् / विञ्चीत / विनक्तु विङ्क्ताम् / अविनक् / अविङक्ल / विवेच / विवेचिथ, विवेक्थ। विविचे / विच्यात् / विक्षीष्ट / वेक्तासि / वेक्तासे / वेश्यति / वेक्ष्यत / अवेक्ष्यत् / अवेक्ष्यत / अविचत् , अवैक्षीत् / अविक्त। युपी योगे / युनक्ति युक्तः युञ्जन्ति / युङ्क्ते युञ्जाते युञ्जते / युज्यात् / युञ्जीत / युनक्तु / युताम् / अयुनक् / अयुक्त / युयोज / युयुजे / युन्यात् / युक्षीष्ट / योक्तासि / योक्तासे / योक्ष्यति / योश्यते / अयोक्ष्यत् / अयोक्ष्यत / Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भयुनत् , अयोक्षीत् / अयुक्त / क्षुद्रूपी संपेपे / क्षुणत्ति क्षुन्तः चन्दन्ति / क्षुन्ते क्षुन्दाते क्षुन्दते / शुन्यात् / क्षुन्दीत / क्षुणत्तु / चन्ताम् / अक्षुणत् / . अक्षुन्त / चुक्षोद / चुक्षुदे / क्षुद्यात् / हुत्सीष्ट / क्षोत्तासि / क्षोत्तासे / क्षोत्स्यति / क्षोत्स्यते / अक्षोस्स्यत् / अक्षोत्स्यत / अक्षुदत् / अक्षौत्सीत् / अक्षुत्त अक्षु. साताम् अक्षुत्सत / भिदूंपी विदारणे / भिनत्ति / भिन्ते / मिन्द्यात् / भिन्दीत / भिनत्तु / भिन्ताम् / अभिनत् / अभिन्त / बिभेद / बिभिदे / भिद्यात् / भित्सीष्ट / भेत्तासि / भेत्तासे / भेत्स्यति / भेत्स्यते / अभेत्स्यत् / अभेत्स्यत / अभिदत् , अभैत्सीत् / अभित्त / छिद्रंपी द्वैधीकरणे अद्वैधस्य पृथक्त्वे / छिनत्ति / छिन्ते / छिन्द्यात् / छिन्दीत / छिनत्तु / छिन्ताम् / अच्छिनत् / अच्छिन्त / चिच्छेद / चिच्छिदे / छिद्यात् / छित्सीष्ट / छेत्तासि / छेत्तासे / छेत्स्यति / छेत्स्यते / अच्छेत्स्यत् / अच्छेत्स्यत / अच्छिदत् , अच्छेत्सीत् / अच्छित्त / उदपी दीप्तिदेवनयोः / कृणत्ति / छन्ते / छ्न्यात् / छून्दीत / छृणत्तु / छन्ताम् / अच्छृणत् / अच्छृन्त / चच्छर्द चच्छर्दतुः चच्छर्दुः / चच्छ्दे / छ्यात् / छर्दिषीष्ट / छर्दितासि / छर्दितासे / छर्दिष्यति, छत्यति / छर्दिष्यते, छयते / अच्छर्दिष्यत् , अच्छत्य॑त् / अच्छर्दिष्यत , अच्छत्यंत / अच्छृदत् , अच्छदीत् / अच्छर्दिष्ट / ऊतृपी हिंसाऽनादरयोः / तृणत्ति / तृन्ते / तृन्यात् / तृन्दीत / तृणत्तु / तृन्ताम् / अतृणत् / अतृन्त / Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 193) मतर्द / तंतृदे। तृद्यात् / तर्दिषीष्ट / तर्दितासि / तर्दितासे / * तर्दिष्यति, यति / तर्दिष्यते, तय॑ते / अतर्दिष्यत् , अत य॑त् / अतर्दिष्यत, अतयंत / अतृदत् , अतीत् / अतर्दिष्ट / इति रुधादिगणे उभयपदिनो धातवः समाप्ताः // पृचैप सम्पर्के / पृणक्ति / पृच्यात् / पृणक्तु / अपृणक् / पपर्च पश्चुः / पृच्यात् / पर्चिता / पर्चिष्यति / अपर्चिष्यत् / अपर्चीत् / वृचैप् वरणे / वृणक्ति वृक्तः वृञ्चन्ति / वृञ्च्यात् / भवृणक् / ववर्च ववृचुः / वर्चिता / अवर्चीत् / तचू तोप संकोचने / तनक्ति / अतनक् / ततञ्च / तच्यात् / तञ्चिता / तञ्चिप्यति / अतश्चियत् / अतञ्चीत् / तनक्ति / अतनक् / ततञ्ज / तज्यात् / तञ्जिता, तङ्क्ता / तञ्जिष्यति, तक्ष्यति / अतञ्जिप्यत् , अतक्ष्यत् / अतञ्जीत् , अताङ्क्षीत् / भञ्जों आमर्दने / भनक्ति / अभनक् / बभञ्ज / भज्यात् / भङ्क्ता / भक्ष्यति / अभक्ष्यत् / अभाङ्क्षीत् अभाङ्क्ताम् अभाक्षुः / भुजंप पालनाभ्यवहारयोः / अभ्यवहारो भोजनम् / भुनक्ति मुळ्यात् / अभुनक् / बुभोज / भुज्यात् / भोक्तासि / भोक्ष्यति / अभोक्ष्यत् / अभौक्षीत् / त्राणादन्यत्र भुनन इत्यात्मनेपदे हविभुङ्क्ते / बुभुने। अभुङ्क्त / अनौप् . व्यक्तिम्रक्षणगतिषु / व्यक्तिः प्रकटता, म्रक्षणं घृतादिसेकः / अनक्ति / अङ्ग्यात् / अनक्तु / आनक् / आनन्ज / अ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 194) ज्यात् / अञ्जितासि, अक्तासि / अञ्जिष्यति, अक्ष्यति / आमिष्यत् , आक्ष्यत् / सिचोऽः / 4 / 4 / 04 / - अञ्जेर्धातोः सिच आदिरिड् भवति / आञ्जीत् आञ्जिष्टाम् आञ्जिषुः / ओविनैप भयचलनयोः / विनक्ति / विङ्क्तः / विच्यात् / विनक्तु / अविनक / विवेन / विजेरिट् / 4 / 3 / 28 / . विजेरि ङिद्वद् भवति / विविजिथ / विन्यात् / विनिता / विनिष्यति / अविजिष्यत् / अविजीत् / कृतैप वेष्टने / कृणत्ति कृन्तः / कृन्त्यात् / अकृणत् / चकर्त / कृत्यात् / कतितासि / कर्त्यति, कतिष्यति / अयत् , अकर्तिष्यत् / अकर्तीत् / उन्दप क्लेदने / उनत्ति / उन्धात् / औनत् / उन्दाञ्चकार / उन्दाम्बभूव / उन्दामास / उद्यात् / उन्दिता। उन्दिष्यति / औन्दीत् / शिष्लंप् विशेषणे। विशेषणं गुणान्तरोत्पादनम् / शिनष्टि / शिष्यात् / शिनष्टु / अशिनट् / शिशेष / शिष्यात् / शेष्टा / शेक्ष्यति / अशेक्ष्यत् / अशिषत् अशिषताम् अशिषन् / पिष्लंप सञ्चूर्णने / पिनष्टि पिष्टः पिंषन्ति / पिनक्षि / अपिनट् / पिपेष / पिष्यात् / पेष्टा / पेक्ष्यति / अपेक्ष्यत् / अपिषत् / हिसु तृहप हिंसायाम् / हिनस्ति हिंस्तः हिंसन्ति / हिनस्सि / हिंस्यात् / हिंसन्तु / हौ ' हुधुटो हेधिः ' इति हेर्धित्वे ' सो धि Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पा' इति सो खुकि हिन्धि पक्षे हिन्धि / अहिनत् / निहिंस। हिस्यात् / हिंसिता / हिसिष्यति / अहिंसीत् / वहः भादीत् / 4 / 3 / 62 / / तृहेः श्नात् परो व्यञ्जनादौ विति परे ईद् भवति / तृणेढि. तृण्डः स॒हन्ति / तृणेक्षि तृण्डः तृण्ढ / तृणेमि तूंहः तूंमः। तुंह्यात्। तृणेढु / तृण्ढि / तृणहानि तृणहाव तृणहाम / अतृणेट् / ततह / तृह्यात् / तहिता / तर्हिष्यति / अतर्हिष्यत् / अतीत् / इति परस्मैपदं समाप्तम् / अथात्मनेपदम्... खिदिप दैन्ये / खिन्ते खिन्दाते खिन्दते / खिन्दीत / खि न्ताम् / अखिन्त / चिखिदे / खित्सीष्ट / खेत्तासे / खेत्स्यते। अखेत्स्यत / अखित्त अखित्साताम् अखित्सत / विदिप् विचारणे / विन्ते / विन्दीत। विन्ताम् / अविन्त। विविदे। वित्सीष्ट / वेत्तासे / वेत्स्यते / अवेत्स्यत / अवित्त / जिइन्धैपि दीप्तौ। इन्धे, इन्द्धे एवं यथायोगं 'धुटो धुटि स्वे वा' इति वा दलुक् विधेयः / इन्धाते इन्धते / इन्धीत / इन्दधाम् / ऐन्ध / ' जाग्रुषसमिन्धेर्नवा ' समिन्धाञ्चक्रे, समिन्धाम्बभूव, समिन्धामास / पक्षे कित्त्वात् नो लुकि समीधे समीधाते समीधिरे / इन्धिषीष्ट / इन्धिः . तासे / इन्धिष्यते / ऐन्धिष्यत / ऐन्धिष्ट / इति रुधादिगणः समाप्तः // Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (156) अथ तनादिगणः। यानुबन्धास्तनादयः / तयी विस्तारे ' कृग्तनादेः' इति कर्तरि शिति परे उप्रत्यये ' उश्नोः' इति अक्ङिति परे गुणे तनोति तनुतः तन्वन्ति / तनोषि तनुथः तनुथ / तनोमि / ' वम्यविति वा ' इति तनुवः, तन्वः तनुमः, तन्मः। तनुते तन्वाते तन्वते। तनुषे तन्वाथे तनुध्वे / तन्वे' तनुवहे, तन्वहे तनुमहे, तन्महे / तनुयात् तनुयाताम् तनुयुः / तनुयाः तनुयातम् तनुयात / तनुयाम् तनुयाव तनुयाम / तन्वीत तन्वीयाताम् तन्वीरन् / तन्वीथाः तन्वीयाथाम् तन्वीध्वम् / तन्वीय तन्वीवहि तन्वीमहि / तनोतु, तनुतात् तनुताम् तन्वन्तु / तनु, तनुतात् तनुतम् तनुत / तनवानि तनवाव तनवाम / तनुताम् तन्वाताम् तन्वताम् / तनुष्व तन्वाथाम् तनुध्वम् / तनवै तनवावहै तनवामहै। अतनोत् अतनुताम् अतन्वन्। मतनोः अतनुतम् अतनुत / अतनवम् अतनुव, अतन्व अतनुम अतन्म / अतनुत अतन्वाताम् अतन्वत / अतनुथाः अतन्वाथाम् अतनुध्वम् / अतन्वि अतनुवहि, अतन्वहि अतनुमहि, अतन्महि / ततान तेनतुः तेनुः / तेनिथ तेनथुः तेन / ततान, ततन तेनिव वेनिम / तेने तेनाते तेनिरे / तेनिषे तेनाथे तेनिध्वे / तेने तेनिवहे तेनिमहे / तन्यात् तन्यास्ताम् तन्यासुः / तन्याः तन्यास्तम् तन्यास्त / तन्यासम् तन्यास्व तन्यास्म / तनिषीष्ट तनिषीयास्ताम् तनिषीरन् / तनितासि / तनितासे / तनिष्यति / तनिष्यते / अतनिष्यत् / अतनिष्यत / अतानीत् , अतनीत् अतनिष्टाम् अतनिषुः / Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (.157) तन्भ्यो वा तथासि म्णोश्च / 4 / 3 / 68 / / तनादिभ्यः परस्य सिचः ते थासि च लुब् वा, तद्योगे न्णोश्च लुच न चेड् भवति / अतत, अतनिष्ट अतनिषाताम् अतनिषत / अतथाः, अतनिष्ठाः अतनिषाथाम् अतनिड्ढवम् , अतनिध्वम् / अतनिषि अतनिध्वहि अतनिष्महि / षणूयी दाने / सनोति / सनुते / सनुयात् / सन्वीत / सनोतु / सनुताम् / असनीत् / असनुत / ससान सेनतुः सेनुः / सेने सेनाते सेनिरे। सन्यात् / सनिषीष्ट / सनितासि / सनितासे / सनिष्यति / सनिप्यते / असनिष्यत् / असनिष्यत / असानीत् , असनीत् / सनस्तत्रा वा / 4 / 3 / 69 / सन सनो लुपि सत्यामा वा भवति / असात, असत, असनिष्ट असनिषाताम् असनिषत / असाथाः, असनिष्ठाः असनिषायाम् अमनिध्वम् , असनिड्ढ्वम् / असनिषि असनिध्वहि असनिष्महि / क्षणूग क्षिणूयी हिंसायाम् ।क्षणोति / क्षणुते / क्षणुयात् / क्षण्वीता अक्षणोत् / अक्षणुत / चक्षाण / चक्षणे / क्षण्यात् / क्षणिषीष्ट / क्षणितासि / क्षणितासे / क्षणिष्यति / क्षणिष्यते / अक्षणिष्यत् / अक्षणिष्यत / व्यञ्जनादेरिति वा वृद्धेर्न श्वि-जाग्रिति प्रतिषेधे अक्षणीत् / अक्षत, अक्षणिष्ट / अक्षथाः, अक्षणिष्ठाः / क्षिणोति / क्षिणुते / क्षिणुयात् / क्षिण्वीत / क्षिणोतु / क्षिणुताम् / अति Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 158) 'गोत् / अक्षिणुत / चिक्षेण / चिक्षिणे / क्षिण्यात् / क्षेणिषीष्ट / क्षेणितासि / क्षेणिष्यति / क्षेणिष्यते / अक्षेणीत् / अक्षित / भक्षेणिष्ट / अक्षेथाः, अक्षेणिष्ठाः / ऋणूयी गतौ / अर्णोति अणुते / अणुयात् / अण्वीत / अर्णोतु / अणुहि / अणुताम् / आर्णोत् / आMत / आनर्ण आनृणतुः आनृणुः / आनृणे / ऋण्यात् / अर्णिषीष्ट / अर्णितासि / अर्णितासे / अर्णिष्यति / भर्णिष्यते / आणिष्यत् / आणिष्यत / आणीत् आणिष्टाम् आणिषुः / आतं, आणिष्ट आर्थाः, आणिष्ठाः / तृणूयी अदने। तर्णोति / तणुते / तर्णहि / तणुताम् / अतर्णात् / अतणुत / ततर्ण / ततृणे / तृण्यात् / तर्णिषीष्ट / तर्णिता / तर्णिष्यति, तर्णिष्यते / अतर्णिष्यत् / अतर्णिष्यत / अतीत् / अतर्त, अतर्णिष्ट / अतः, अंतर्णिष्ठाः / घृणूयी दीप्तौ / पर्णोति / वर्णते / जवर्ण / जघृणे / घर्णिता / अघर्त, अघर्णिष्ट / अघाः , भवर्णिष्ठाः / इति तनादिगणे उभयपदं समाप्तम् / अथात्मनेपदम्वयि याचने / वनुते / वन्वीत / वनुताम् / अवनुत / ववने बवनाते ववनिरे / वनिषीष्ट / वनिता / अवनिष्यत / अवत, अवनिष्ट / अवथाः, अवनिष्ठाः / मनूयि बोधने / मनुते मन्वाते :मन्वते / मनुमहे, मन्महे / मन्वीत मन्वीयाताम् मन्वीरन् / मनुताम् मन्वाताम् मन्वताम् / अमनुत / मेने मेनाते मेनिरे / मनिषीष्ट / मनिता / अमत, अमनिष्ट / अमथाः, अमनिष्ठाः / इत्यात्मनेपदं समाप्तम् / इति समाप्तः तनादिगणः // Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (199) अथ क्रयादिगणः। शानुबन्धाः क्रयादयः / डुक्रींग्श् द्रव्यविनिमये / विनिमयः परिवर्तः / क्रयादेः।३।४। 79 / ___क्रयादेः कर्तरि विहिते शिति भा भवति / क्रीणाति 'एषामीर्व्यञ्जनेऽदः ' क्रीणीतः 'नश्चातः ' क्रीणन्ति / क्रीणासि कीणीयः क्रीणीथ / क्रीणामि क्रीणीवः क्रीणीमः / क्रीणीते कीणात क्रीणते / क्रीणीषे क्रीणाथे क्रीणीध्वे / क्रीणे क्रीणीवहे क्रीणीमहे / क्रीणीयात् क्रीणीयाताम् क्रीणीयुः / क्रीणीत कीणीयाताम् क्रीणीरन् / क्रीणातु, क्रीणीतात् क्रीणीताम् क्रीणन्तु / क्रीणीहि क्रीणीतम् क्रीणीत / क्रीणानि क्रीणाव क्रीणाम / क्रीणीताम् क्रीणाताम् क्रीणताम् / क्रीणीष्व क्रीणाथाम् क्रीणीध्वम् / क्रीणै क्रीणावहै क्रीणामहै। अक्रीणात् अक्रीणीताम् अक्रीणन् / अक्रीणाः अक्रीणीतम् अक्रीणीत / अक्रीणम् अक्रीणीव अक्रीणीम / अक्रीणीत अक्रीणाताम् अक्रीणत / अक्रीणीथाः अक्रीणाथाम् अक्रीणीध्वम् / अक्रीणि अक्रीणीवहि अक्रीणीमहि / चिक्राय चिक्रियतुः चिक्रियुः / चिक्रिये। क्रीयात् / ऋषीष्ट / क्रेतासि / क्रेतासे / वेष्यति / वेष्यते / अक्रेष्यत् / अक्रेष्यत / भनषीत् / अष्टाम् अक्रैषुः / अक्रेष्ट अवेषाताम् अक्रेषत / पिंगश बन्धने / सिनाति / सिनीते / सिनीयात् / सिनीत / Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (160) सिनातु / सिनीताम् / असिनात् / असिनीत / सिषाय / सिष्ये / सीयात् / सेषीष्ट / सेतासि / सेतासे / सेष्यति / सेष्यते / असेष्यत् / असेष्यत / असैषीत् / प्रींग्श् तृप्तिकान्त्योः / प्रीणाति / प्रीणीते / अप्रीणात् / अप्रीगीत् / पिप्राय / पिप्रिये / प्रेता / प्रेष्यति / प्रेष्यते / अप्रैपीत् / अप्रेष्ट / श्रींग्श पाके / श्रीणाति / श्रीणीते / शिश्राय / शिश्रिये / श्रीयात / श्रेषीष्ट / श्रेता। अश्रेषीत् / अश्रेष्ट / मींगश् हिंसायाम् / मीनाति / प्रमीणाति / मीनीते / मीनीयात् / मीनीत / मीनातु / मीनीहि / मीनीताम् / अमीनात् / अमीनीत् / ‘मिग्मीगोऽखलचलि' इति अक्ङिति आत्वे ममौ भिम्यतुः मिम्युः / ममिथ, ममाथ मिम्यथुः मिम्य / मिमाय, मिमय मिम्यिव मिम्यिम / मिम्ये मीयात् / मासीष्ट / मातासि / मातासे / मास्यति / मास्यते / अमास्यत् / अमास्यत / अमासीत् / अमास्त / युंग्श् बन्धने / युनाति / युनीते / युनीयात् / युनीत / युनातु / युनीताम् / अयुनात् / अयुनीत / युयाव / युयविथ, युयोथ / युयुवे / यूयात् / योषीष्ट / योता / अयौषीत् / अयोष्ट / स्कुंग्श् आप्रवणे / आप्रवणमुद्धरणम् / स्तम्भूस्तम्भूस्कम्भूस्कूम्भूस्कोः ना च / 3 / 4 / 78 / स्तम्भ्वादेः सौत्रधातोः स्कुगश्च कर्तरि विहिते शितिभा अनुश्च भवति / स्कुनाति, स्कुनीते / स्कुनोति, स्कुनुते / स्कुनीयात्, Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कुनीत / स्कुनुयात् , स्कुन्वीत / स्कुनातु, स्कुनीताम् / स्कुनोतु, स्कुनुताम् / अस्कुनात् , अस्कुनीत / अस्कुनोत्, अस्कुनुत / चुस्काव / चुस्कुवे / स्कूयात् / स्कोषीष्ट / स्कोता / अ. स्कौषीत् / अस्कोष्ट / क्नूगश् शब्दे / क्नूनाति, क्नूनीते / चुक्नाव / चुक्नुवे। क्नविता / क्नविष्यति।क्नविष्यते / अक्नावीत् / अक्नविष्ट / द्रुगश् हिंसायाम् / द्रूणाति / द्रूणीते / अद्रूणात् / अPणीत / दुंद्राव / दुद्रुवे / द्रुयात् / द्रविषीष्ट / द्रवितासि / द्रवितासे / अद्रावीत्। अद्रविष्ट / ग्रहीश उपादाने। उपादानं स्वीकारः। गृह्णाति / गृह्णीत ‘ग्रहत्रश्च-' इत्यादिना य्वृत् / गृह्णीयात् / गृह्णीत / गृह्णातु / / व्यञ्जनाच्छ नाहेरानः / 3 / 4 / 80 / व्यञ्जनात् परस्य श्नायुक्तस्य हेरानो भवति / गृहाण। गृह्णीतात् / गृह्णीताम् / अगृह्णात् / अगृह्णीत / जग्राह / जगृह जगृहाते जगृहिरे / गृह्यात् / - गृहोऽपरोक्षायां दीर्घः / 4 / 4 / 34 / ग्रहातोर्विहित इड् दीर्घा भवति, न तु परोक्षायाम् / ग्रहीषीष्टः / ग्रहीतासि / ग्रहीतासे / ग्रहीष्यति / ग्रहीष्यते / अग्रहीप्यत् / अग्रहीष्यत / ' न श्चि' इत्यादिना वृद्धिनिषेधात् अग्रहीत् . 11 Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (162) अग्रहीष्टाम् अग्रहीषुः / अग्रहीष्ट अग्रहीषाताम् अग्नहीषत / अथ क्रयाद्यन्तर्गणः प्वादिः / पादेईस्वः / 4 / 2 / 105 / प्वादेरत्यादौ शिति ह्रस्वो भवति / पूगश् पवने / पवनं शुद्धिः। पुनाति / पुनीते / अपुनात् / अपुनीत / पुपाव / पुपुवे / पूयात् / पविषीष्ट / पवितासि / पवितासे / पविष्यति / पविष्यते / अपावीत् अपाविष्टाम् अपाविषुः / अपविष्ट अपविषाताम् अपविषत। लूगश् छेदने / लुनाति / लुनीते / लुनीयात् / लुनीत / लुनातु / लुनीताम् / अलुनात् / अलुनीत / लुलाव / लुलुवे / अलावीत् / अलविष्ट / धूगश् कम्पने / धुनाति / धुनीते / धुनातु / धुनीताम् / अधुनात् / अधुनीत / दुधाव / दुधुवे / धूयात् / धविपीष्ट / धोतासि, धवितासि / धोतासे, धवितासे / धविष्यति / धविष्यते / अधविष्यत् / अधविष्यत / अधावीत् / अधोष्ट, केचित् सुसाहचर्यात् तत्र सूत्रे प्वादेर्ग्रहणादस्य अधविष्ट इतीच्छन्ति / स्तृगश आच्छादने / स्तृणाति / स्तृणीते / स्तृणीयात् / स्तृणीत / अस्तृणात् / अस्तृणीत / तस्तार तस्तरतुः तस्तरुः / तस्तरिथ / तस्तरे तस्तराते तस्तरिरे / स्तीर्यात् / ' इट् सिनाशिषोरात्मने ' इति वा इट स्तरिषीष्ट, स्तोर्षीष्ट / 'वतो नवाऽनाशीःसिच्परस्मै च' इतीटो वा दीर्घ स्तरीतासि; स्तरितासि / स्तरीतासे, स्तरितासे / स्तरीष्यति, स्तरिष्यति / स्तरिष्यते, स्तरीष्यते / अस्त Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 163) रिष्यत् , अस्तरीष्यत् / अस्तरिष्यत, अस्तरीष्यत / अस्तारीत् - अस्तारिष्टाम् अस्तारिषुः / अस्तरिष्ट अस्तरिषाताम् अस्तरिषत / अस्तरिष्ठाः अस्तरिषाथाम् अस्तरिड्ड्वम् , अस्तरिढ्वम् , अस्तरिध्वम् / अस्तरिषि अस्तरिष्वहि अस्तरिष्महि / पक्षे दीर्घः अस्तरीष्ट अस्तरीषाताम् अस्तरीषत इत्यादिः / इडभावे तु वर्णात् ' इति कित्वे अस्तीर्ट अस्तीर्षाताम् अस्तीर्षत / कृगश् हिंसायाम् / कृणाति / कृणीते / चकार चकरतुः चकरुः / चकरिथ / चकरे चकराते चकरिरे / कीर्यात् / करिषीष्ट, कीर्षीष्ट / करितासि, करीतासि / करितासे, करीतासे / करिष्यति, करीध्यति / करिष्यते, करीष्यते / अकरिष्यत् , अकरीष्यत् / अकरिष्यत, अकरीष्यत / अकारीत् / अकरिष्ट अकरिषाताम् अकरिपत / अकरीष्ट अकरीषाताम् अकरीषत / अकीष्ट अकीर्षाताम् अकीर्षत / वृगशु वरणे। वृणीयात् / वृणीत / ववार ववरतुः . ववरुः / ववरिथं / ववरे ववराते ववरिरे / उरादेशे दीर्घ च वूर्यात् / वरिषीष्ट, वर्षीष्ट / वरितासि, 'वरीतासि / वरितासे, वरीतासे / वरिष्यति, वरीष्यति / वरिष्यते, वरीष्यते / अवरिष्यत् , अवरीप्यत् / अवरिष्यत, अवरीष्यत / अवारीत् अवारिष्टाम् अवारिषुः / अवरिष्ट अवरिषाताम् अवरिषत / अवरीष्ट अवरीषाताम् अवरीषत / अवूष्ट अवर्षाताम् अवर्षत / इत्युभयपदम् // ' ज्यांश् हानौ ' ज्याव्यधः क्ङिति ' इति वृति दीर्घमवोऽन्त्यम् / 4 / 1 / 103 / Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (164) . . वेग्वर्जस्य य्वृदन्त्यं दीर्वं भवति / प्वादित्वाद हम्वे जिनाति / जिनीयात् / जिनातु / अजिनात् / ‘ज्याव्येव्यधिव्यचिव्यथेरिः' इति द्वित्वे पूर्वस्य इत्वे जिज्यौ / ' ज्याव्यधः ' इत्यादिना य्वृति निज्यतुः जिन्युः / जिज्यिथ, जिन्याथ जिन्यथुः जिन्य / जिज्यौ निज्यिव निज्यिम / जीयात् / ज्यातामि / ज्यास्यति / अज्यास्यत् / अन्यासीत् अन्यासिष्टाम् अज्यासिषुः। रीश् गतिरेषणयोः। रिणाति / रिणीयात् / रिणातु / अरिणात् / रिराय रिर्यतुः रियुः / रीयात् / रेतासि / अरैषीत् / लींश श्लेषणे / लिनाति / लिनीयात् / लिनातु / अलिनात् / लिलाय / लीयात् / लाता, लेता / अलैषीत् / ब्लीश वरण / ल्वीश् गतौ / कृ मृ शश् हिंसायाम् / कृणाति / चकार चकरतुः चकरुः / करिता, करीता / मृणाति / अमृणात् / ममार ममरतुः ममरुः / ममरिथ / मूर्यात् / मरितासि, मरीतासि / अमारीत् / शणाति / अशृणात् / शशार। ऋः शृदृषः / 4 / 4 / 20 / एषां परोक्षायामृर्वा भवति / शश्रतुः, शशरतुः / शश्रुः, शशरुः / शशरिथ / शीर्यात् / शरितासि, शरीतासि / अशारीत् / पृश् पालनपूरणयोः / पृणाति / पपार पप्रतुः, पपरतुः पप्रः, पपरुः / पपरिथ / पूर्यात् / परिता, परीता। परिष्यति, परीष्यति / अपारीत्। वृश् भरणे / बृणाति / बबार बबरतुः बबरुः / बूर्यात् / बरिता, Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 165) चरीता / अंबरिष्यत्, अबरीष्यत् / अबारीत् / भृश् भर्जने च / भृणाति / बभार बभरतुः / भरिथ / भूर्यात् / भरिता, भरीता / भरिष्यति, भरीष्यति / अभरिष्यत् , अभरीष्यत् / अभारीत् / दृश विदारणे / दृणाति / अहणात् / ददार ददरतुः, दद्रतुः ददरुः, द्रुः / ददरिथ / दीर्यात् / अदारीत्। जश् वयोहानौ। नश् नये। नृणाति / अनृणात् / ननार ननरतुः ननरुः / नीर्यात् / नरिता, नरीता / अनारीत् / गृश् शब्दे / गृणीयात् / नगार जगरतुः / गीर्यात् गरिता, गरीता / गरिष्यति, गरीष्यति / अगारीत् / ऋश् गतौ / ऋणाति / आर्णात् / आर / आरीत् / अरिता, अरीता / .. इति प्वादिगणः समाप्तः // ज्ञांश् अवबोधने / 'जा ज्ञाजनोऽत्यादौ ' जानाति / जानीयात् / अजानात् / जज्ञौ जज्ञतु: जजुः / जज्ञिथ, जज्ञाथ / ज्ञेयात् , ज्ञायात् / ज्ञातासि / ज्ञास्यति / अज्ञास्यत् / अज्ञासीत अज्ञासिष्टाम् / क्षिष्श् हिंसायाम् / क्षिणाति / क्षिणातु / चिक्षाय चिक्षियतुः चिक्षियुः / क्षेता / क्षेष्यति / अक्षेष्यत् / अक्षैषीत् त्रींश् वरणे / वीणाति / विवाय विवियतुः वित्रियुः / त्रेता / श्रीश् भरणे / भ्रीणाति / बिभ्राय बिभ्रियतुः विभ्रियुः / भ्रता / अभैषीत् / हेठश् भूतप्रादुर्भावे / तवर्गस्येति नस्य णत्वे / हेह्णाति / हेठान / अहेट्नात् / निहेठ / हेठिता / अहेठीत् / मृडश सुखने / मृड्णाति / मृड्णातु / मृडान / ममर्ड ममृडतुः / Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (166 ) ममडिथ / मर्डिता / अमर्डीत् / श्रन्थश् मोचनप्रतिहर्षयोः / श्रथ्नाति / श्रथ्नातु / श्रयान / शश्रन्थ ‘वा श्रन्थग्रन्थोन्लक् च ' अनेन अवित्परोक्षासेट्यवोर्वा तद्योगे नो लुक् न च द्विः इति श्रेथतुः, शश्रन्थतुः / श्रेथुः, शश्रन्थुः / श्रेथिथ, शश्रन्थिय / श्रथ्यात् / श्रन्थिता / अश्रन्थीत् / मन्थश् विलोडने / मथ्नाति / मथ्नातु / मथान / अमथ्नात् / ममन्थ / मथ्यात् / मन्थिता / अमन्थीत्। ग्रन्थश् संदर्भ ग्रंथ्नाति / अथ्नीयात् / प्रथ्नातु / ग्रथान / अग्रथ्नात्। जग्रन्थ जग्रन्थतुः, ग्रेथतुः जग्रन्थुः, ग्रेथुः / जग्रन्थिथ, ग्रेथिथ / प्रथ्यात् / ग्रन्थितासि / ग्रन्थिष्यति / अग्रन्थिष्यत् / अग्रन्थीत् / कुन्थश् संक्लेशे / कुथ्नाति / कुथान / चुकुन्थ / कुथ्यात् / कुथ्निता / अकुन्थीत् / मृदश् क्षोदे / मृद्नाति / मृनातु मृदान / ममर्द ममृदतुः / मर्दिता / अमर्दिष्यत् / अमर्दीत् / गुधश् रोषे / गुध्नाति / गुधान / जुगोध / गोधिता / अगोधीत् / बन्धंश् बन्धने / बध्नाति / बध्नीयात् / बध्नातु / बधान / अबध्नात् / बबन्ध / बबन्धिथ / बबन्ध / बन्दधासि / भन्त्स्यति / अभन्तस्यत् / अमान्त्सीत् अबान्दधाम् अभान्त्सुः / णम तुभश् हिंसायाम् / नम्नाति / नभान / ननाभ नेमतुः नेभुः / नेभिथ / नभिता / अनाभीत् / तुभ्नाति / तुभान / तुतोभ तुतुभतुः तुतुभुः / तोभिता / अतोभीत् / क्लिशौर. विबाधने / क्लिश्नाति / क्लिश्नातु / क्लिशान / चिक्लेश / क्लिश्यात् / क्लेशिता, क्लेष्टा / क्लेशिष्यति, क्लेक्ष्यति / अक्लेशीत्, अक्लिक्षत् / Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 167) अशश् भोजने / अश्नाति / अश्नीयात् / अश्नातु / अशान / आश्नात् / आश आशतुः आशुः / अशिता। अशिष्यति / आ. शीत् / इषश् आभीक्ष्ण्ये / आभीक्ष्ण्यं पौनः पुन्यम् / इष्णाति / इष्णीयात् / इष्णातु / इषाण / ऐष्णात् / इयेष ईषतुः ईषुः / इयेषिथ ईषथुः। ऐषीत् / विषश् विप्रयोगे / विष्णाति / विषाण / विवेष / वेषिता / वेषिष्यति। अवेवीत् / मुषश स्तेये / मुष्णाति / मुष्णीयात् / मुष्णातु / मुषाण / अमुष्णात् / मुमोष / मोषिता / मोषिष्यति / अमोषीत् / पुषश् पुष्टौ / पुष्णाति / पुष्णीयात् / पुष्णातु / पुषाण / पुपोप / पोषिता। अपोषीत् / कुषश् निष्कर्षे / कुष्णाति / कुष्णीयात् / कुष्णातु। कुषाण / अकुष्णात् / चुकोष / कुष्यात् / कोपिता / कोषिष्यति / अकोषीत् / निष्कुषः / 4 / 4 / 39 / निःपूर्वात् कुषः परस्य स्ताद्यशित आदिरिड् वा भवति / निष्कोष्टा, निष्कोषिता / निष्कोक्ष्यति, निष्कोषिष्यति / निरकोक्ष्यत् , निरकोषिष्यत् / निरकुक्षत् निरकुक्षताम् निरकुक्षन् / निरकोषीत् / कुषिराप्ये वा परस्मै च / 3 / 4 / 74 / आभ्यां कर्मकर्तरि शिद्विषये परस्मैपदं वा भवति, तद्योगे च श्यः। रोगः पादं कुष्णाति, रोगः किम् ? पादः स्वयमेव कुष्यति, Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 168) कुष्यते वा / कर्मकर्तुरभावे रोगः पादं कुष्णातीत्येव / अथ. स्तम्भू स्तम्भू स्कम्भू स्कुम्भू एते सौत्रा धातवम्तेषामपि अनुपक्षे नाभवनात् रूपाणि दयन्ते-स्तम्नाति / स्तम्नीयात् / स्तम्नातु / स्तभान / अस्तभ्नात् / तस्तम्भ / स्तभ्यात् / स्तम्भिता / अस्तम्भीत् , अस्तभत् / स्तुभ्नाति / स्तुभ्नीयात् / स्तुभ्नातु / अस्तुभ्नात् / तुस्तुम्भ / स्तुभ्यात् / स्तुम्भिता / स्तुम्भिष्यति / अस्तुम्भीत् / स्कंम्नाति / स्कमान / अस्कम्नात् / चस्कम्भ / स्कभ्यात् / अस्कम्भीत् / स्कुम्नाति / स्कुम्नीयात् / स्कुम्नातु / स्कुभान / अस्कुभ्नात् / चुस्कुम्भ / स्कुभ्यात् / स्कुम्भिता / स्कुम्भिष्यति / अस्कुम्भीत् / इति परस्मैपदं समाप्तम् // वृश् संभक्तौ / संभक्तिः संसेवा / वृणीते वृणाते वृणते / वृणीत वृणीयाताम् वृणीरन् / वृणीताम् वृणाताम् वृणताम् / अवृणीत अवृणाताम् अवृणत / वत्रे वाते वत्रिरे / वृषीष्ट वृषीयास्ताम् वृषीरन् / वरितासे, वरीतासे / वरिष्यते, वरीष्यते / अवरिष्यत, अवरीष्यत / अवरिष्ट अवरिषाताम् अवरिषत / अवरिष्ठाः, अवरिषाथाम् अवरिट्वम् , अवरिडढ्वम् / अवरिषि अवरिष्वहि अवरिष्महि / पक्षे दीर्घ अवरीष्ट अवरीषाताम् अवरीषत / अवरीष्ठाः अवरीषाथाम् अवरीढ्वम् , अवरीढ्वम् / अवरीषि अवरीष्वहि अवरीष्महि / सिचोऽभावे अवृत अवृषाताम् अवृषत / Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 169) अवृष्ठाः, अवृषायाम् अवृढ्वम् , अवृड्ढ्वम् / अवृषि अवृष्वहि अवृष्महि / इति समाप्तः क्रयादिगणः। अथ चुरादिगणः। णानुबन्धाश्चुरादयः / चुरण स्तेये / चुरादिभ्यो णिच् / 3 / 4 / 17 / चुरादिधातुभ्यः स्वार्थे णिच् प्रत्ययो भवति / ' शेषात् ' - इति परस्मैपदे चुर+इ+ति इति स्थिते गुणे कृते चोरि+ति इति स्थिते शवि कृते गुणे च अयादेशे च चोरयति चोरयतः चोरयन्ति। चोरयसि चोरयथः चोरयथ / चोरयामि चोरयावः चोरयामः। चोरयेत् चोरयेताम् चोरयेयुः। चोरयेः चोरयेतम् चोरयेत / चोरयेयम् चोरयेव चोरयेम / चोरयतु, चोरयतात् चोरयताम् चोरयन्तु चोरय, चोरयतात् चोरयतम् चोरयत / चोरयाणि चोरयाव चोरयाम / अचोरयत् अचोरयताम् अचोरयन् / अचोरयः अचोरयतम् अचोरयत / अचोरयम् अचोरयाव अचोरयाम / चोरयाञ्चकार चोरयाम्बभूव / चोरयामास / Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (170) णेरनिटि / 4 / 3 / 83 / .. - अनिटि अशिति प्रत्यये गेलुंग भवति / चोर्यात् / चोरयिता / चोरयिष्यति / अचोरयिष्यत् / अद्यतन्यां -- णिश्रिद्रुनुकमः कर्तरि ङः' इति डे कृते 'आद्योऽश एकस्वरः' इत्यनेन आद्यस्य एकस्वरवतोऽवयवस्य द्वित्वे चो+चोर+इ+अ+त् इति स्थिते द्वित्वे पूर्वस्य हूस्वे- . उपान्त्यस्यासमानलोपिशास्वृदितोडे / 4 / 2 / 36 / समानलोपिशास्वृदिद्वर्नस्य धातोरुपान्त्यस्य ङपरे णौ हस्वो भवति / इति ह्रस्वे कृते लघोदीर्घोऽस्वरादेः / 4 / 1 / 64 / अस्वरादेरसमानलोपे ङपरे णौ द्वित्वे पूर्वस्य लघोलघुनि धात्वक्षरे परे दीर्घो भवति / अडागमे च णेर्लोपे च अचूचुरत् अचूचुरताम् अचूचुरन् / अचूचुरः अचूचुरतम् अचूचुरत / अचूचुरम् अचूचुराव अचूचुराम / पृण पूरणे / णौ 'नामिनोऽ कलिहलेः ' इति वृद्धौ आरादेशे शवि गुणे च पारयति पारयतः पारयन्ति / पारयेत् / पारयतु / अपारयत् / पारयाञ्चकार / पारयाम्बभूव / पारयामास / पार्यात् / पारयिता / पारयिष्यति / अपारयिष्यत् / अद्यतन्यां दिप्रत्यये हे च कृते पार+३+अ+त् Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (171) इति स्थिते द्वित्वे तस्य च हस्वत्वे पपार+इ+अ+त् इति स्थिते : उपान्त्यस्य हस्ते कृते पपर+इ+अ+त् इति जाते असमानलोपे सन्वल्लघुनि / 4 / 1 / 63 / न विद्यते समानस्य लोपो यस्मिन् तस्मिन् ङपरे णौ द्वित्वे पूर्वस्य लघुनि धात्वक्षरे परे सनीव कार्य भवति / सनि परे द्वित्वे पूर्वस्याकारस्य यथा इत्वं भवति तथाऽत्रापीत्यर्थः / अडागमे अपिपर+इ+अ+त् इति जाते 'लघोर्दीघ' इत्यादिना दीर्धे ‘णेरनिटि' इति णेर्लोपे अपीपरत् अपीपरताम् अपीपरन् / घृण स्रवणे / घारयति / घारयेत् / घारयतु / अघारयत् / घारयाञ्चकार / घारयाम्बभूव / घारयामास / घार्यात् / घारयिष्यति / अजीघरत् अजीघरताम् अनीघरन् / श्वल्क वल्कण भाषणे / श्वल्कयति / अश्वल्कयत्। श्वल्कयाञ्चकार / श्वल्कयाम्बभूव / श्वल्कयामास / श्वल्क्यात् / अश्वल्कयिष्यत् / परस्मिन् लघुधात्वक्षराभावात् न दीर्घः अशश्वल्कत् / नक्क धक्कण नाशने / नक्कयति / अननवत् / धक्कयति / अदधकत् / चक्क चुक्कण व्यथने / चक्कयति / अचचकत्।चुक्कयति। अचुचुक्कत् / टकुण् बन्धने / टङ्कयति / टङ्कयाञ्चकार / अटटङ्कत् / अर्कण् स्तवने / अर्कयति / आर्कयत् / अर्कयाञ्चकार / अात् / अर्कयिता / अर्कयिष्यति / स्वरादेद्वितीयः / 4 / 1 / 4 / Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 172) द्वयुक्तिभाजः स्वरादेर्धातोर्द्वितीयोऽश एकम्बगे द्विर्भवति / इति / किं ' इत्यस्य द्वित्वे प्राप्ते / ___अयि रः / 4 / 1 / 6 / स्वरादेर्धातोद्वितीयम्यांशस्यैकस्वरस्य मंयोगाढ़ी रो दिन भवति, न तु रादनन्तरे यि / आर्किक आर्किकताम् आर्किकन् / ङपरे / णौ लघ्वक्षराभावात् न मन्वत्कार्य दीर्घश्च / पचुण विस्तार पञ्चयति। अपञ्चयत् / पञ्च्यात् / पञ्चयिता / पञ्चयिष्यति / अपञ्चयिष्यत् / अपपञ्चत् अपपञ्चताम् अपपश्चन् / म्लेच्छण् म्लेच्छने / म्लेच्छयति / म्ले छ्यात् / अमिम्लेच्छन् अमिम्लच्छताम् अमिम्लेच्छन् / ऊर्जण बलप्राणनयोः / प्राणनं जीवनम् / उर्जयति / और्जयत् / उात् / उर्जयिता / उर्जयिष्यति / औजयिष्यत् / और्जिनत् और्निजताम् और्जिजन् / तुजु पिजण हिंमाबलदाननिकेतनेषु / तुञ्जयति / पिञ्जयति / अपिपिञ्जत् अपिपिञ्जताम् अपिपिञ्जन् / पूजण पूजायाम् / पूजयति / पूजयाञ्चकार / पूज्यात्। पूजयिता / अपूपुजत् अपूपुजताम् अपूपुजन् / तिजण निशाने / तेजयति / तेजयतु / तेजयामास / तेज्यात् / अतीतिजत् अतीतिजताम् अतीतिजन् / वज व्रजण मार्गणसंस्कारगत्योः / मार्गणो बाणस्तस्य संस्कारे गतौ च / अवीवजत् / अविव्रजत् / रुजण हिंसायाम् / नटण अवस्यन्दने / अवस्यन्दनं भ्रंशः / तुट चुट चुटु छुटुण् छेदने / कुट्टण् कुत्सने च / पुट मुटण् संचूर्णने / लुण्टण स्तेये / लुण्टयति / अटुलुण्टत् / स्फुटण परिहासे / Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (173) वटुण् विभाजने / शुठण आलस्ये / शोठयति / अशूशुठत् / गुठण वेष्टने / लडण उपसेवायाम् / लाडयति / लाड्यात् / अलीलडत् / डम्य लत्वे लालयति / स्फुडुण परिहासे / ओलडुण् उत्क्षेपे। ओलण्डयति ओदिदयमित्यन्ये तन्मते लण्डयति / पीडण गहने / गहनं बाधा / पीडयति / भ्रानभासभाषदीपपीडजीवमीलकणरणवणभणश्रणलॅहेठ लुटलुपलपां नवा / 4 / 2 / 36 / एषां ङपरे णावुपान्त्यस्य ह्रस्वो वा भवति / अपीपिडत्, अपिपीडत् / तडण् आघाते / कडुण् खण्डने च / चुडुण् छेदने / मडुण भूषायाम् / मण्डयति / मण्डयाञ्चकार / अममण्डत् / भडुण् कल्याणे / भण्डयति / अबभण्डत् / ईडण् स्तुतौ / ईडयति / ऐडिडत् / चडुण कोपे / चण्डयति अचचण्डत् / चूण तूणण संकोचने / चूणयति / अचूचुणत् / तूणयति / तूण्यात् / अतृतुणत् / अणण् दाने / श्राणयति / अशिश्रणत्, अशश्राणत् / चितुण् स्मृत्याम् / चिन्तयति / अचिचिन्तत् / पुस्त बुस्तण आदरानादरयोः / पुस्तयति। पुस्ताञ्चकार / पुस्त्यात् , अपुपुस्तत् / बुस्तयति / अबुबुस्तत् / मुस्तण संघाते / कृतणू संशब्दने / कृतः कीर्तिः / 4 / 4 / 122 / कृतणः कीर्तिर्भवति। कीर्तयति / अकीर्तयत्। कीर्तयाञ्चकार। ऋद् ऋवर्णस्य / 4 / 2 / 37 / Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (171) उपान्त्यऋवर्णस्य ङपरे णौ वा ऋभवति / अचीकृतत् , अचिकीर्तत् / श्रथण प्रतिहर्षे / पृथण प्रक्षेपणे। पर्थयति / प्रथण प्रख्याने। छदण् संवरणे / चुदण् संचोदने / संचोदनं नोदनम् / चोदयति / चोदयाञ्चकार / अचूचुदत् / मिदुण स्नेहने / मिन्दयति / छर्दण् वमने / छर्दयति / छर्दयाञ्चकार / अचच्छर्दत् / बुधुण हिंसायाम् / बुधयति / वर्धम् छेदनपूरणयोः / वर्धयति / गर्वण अभिकाङ्क्षायाम् / गर्धयति / बन्ध बधण संयमने / बन्धयति / अबबन्धत् / बाधयति / बाधयाञ्चकार / अबीबधत् / छपुण् गतौ / ष्ट्रपण् समुच्छ्राये। स्तूपयति / क्षपुण् क्षान्तौ / डिपण् क्षेपे / डपु डिपुण् संघाते / शूर्पण माने / शूर्पयति / अशुशूर्पत् / डबु डिबुण् क्षेपे / लुबु तुबुण अर्दने / पुर्वण निकेतने। यमण परिवेषणे / यमयति / अयीयमत् / व्ययण् क्षये / यत्रुण संकोचने / यन्त्रयति / यन्त्रयाञ्चकार / अययन्त्रत् / तिलण स्नेहने / जलण अपवारणे / क्षलण् शौचे। पुलम् समुच्छ्राये। बिलण् भेदे / तलण प्रतिष्ठायाम् / तुलण उन्माने / दुलण उत्क्षेपे / बुलण निमजने / मूलण रोहणे / कल किल पिलण् क्षेपे / पलण रक्षणे / पालयति / पालयाञ्चकार / अपीपलत् / इलण् प्रेरणे / एलयति / एलयाञ्चकार / एल्यात् / ऐलिलत् / चलण् भृतौ / सान्त्वण सामप्रयोगे / धूशण कान्तीकरणे / लूषण हिंसायाम् / रुषण रोषे / रोषयति / रोषयाञ्चकार / रोष्यात् / अरूरुषत् / रक्षणे / भक्षण अदने / पक्षण परिग्रहे / पक्षयति / पक्षया Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 175 ) श्वकार / अपपक्षत् / लक्षीण दर्शनाङ्कनयोः / लक्षयति / लक्षयाञ्चकार / अललक्षत् / ज्ञाण मारणादिनियोजनेषु / अतिरीब्लीहीक्नूयिक्ष्माय्यातां पुः / 4 / 2 / 21 / एषामादन्तानां च णौ पुरन्तो भवति / मारणतोषणनिशाने ज्ञश्च / 4 / 2 / 30 / मारणादिष्वर्थेषु वर्त्तमानस्य जानातेर्धातोणिचि अणिचि च णौ परे हस्वो भवति, भिणम्परे तु वा / मारणे सञ्ज्ञपयति पशून् हिनस्तीत्यर्थः / तोषणे विज्ञपयति गुरून् तोषयतीत्यर्थः / निशाने प्रज्ञपयति शस्त्रम् तीक्ष्णयतीत्यर्थः / अन्यत्र तु आज्ञापयति भृत्यान् आज्ञां करोतीत्यर्थः / ज्ञपयति / अजिज्ञपत् अनिज्ञपताम् अजिज्ञपन् / भूण अवकल्कने / अवकल्कन मिश्रीकरणम् / दध्ना ओदनं भावयति। अन्ये त्ववकल्कने नेच्छन्ति तन्मते साधुः समयं भावयति विचारंयतीत्यर्थः / भावयेत् / भावयतु / अभावयत् / भावयाञ्चकार / भावयाम्बभूव / भावयामास / भाव्यात् / भावयिता। भावयिष्यति / अभावयिष्यत् अबीभवत् / लिगुण चित्रीकरणे / लिङ्गयति / चर्चण अध्ययने / चर्चयति / अचचर्चत् / अञ्चण् विशेषणे / विशेषणमतिशयः अञ्चयति मुचण् प्रमोचने / अर्जण प्रतियत्ने / भनण् विश्राणने / चट स्फुटण भेदे / चाट्यति / उच्चाटयति / स्फोटयति / आस्फोटया Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 176) श्कार। णिचोऽनित्यत्वात् चटति, स्फोटति / घटण संघाते / अर्थान्तरे घटिए चेष्टायाम् , अयमेवार्थान्तरे बटादौ बोध्य इत्यर्थः / घटादेईस्वो दीर्घस्तु वा त्रिणम्परे / 4 / 2 / 24 / ___घटादीनां धातूनां णौ परे हस्वो भवति / जिणम्परे तु णौ वा दीर्घः / घटयति / घटयेत् / घटयतु / अवटयत् / घटयाञ्चकार / घटयाम्बभूव / घटयामास / अजीवटत् अनी घटताम् अनीघटन् / हन्त्यर्थाश्च ये धातवोऽन्यत्र पठिता हिंमार्थास्तेषामपि चुरादौ पाठो बोध्यः / यतण निकारोपणकारयोः / यातयति शत्रुन क्षेत्रः / उपस्कारे यातयति दरिद्रः परम्य धनम् / अयीयतत् / निरश्च प्रतिदाने निःपूर्वो यत्धातुश्चुरादौ ज्ञातव्यः, स च प्रतिदानेऽर्थे / निर्यातयति ऋणम् / शब्दण् उपसर्गाद् भाषाविष्कारयोः / शब्दयति / अशशब्दत् / ष्वदण् आस्वादने / स्वादयति / असिष्वदत्। मुदण् संसर्गे / मोदयति सक्तून् सर्पिषा संयोजयतीत्यर्थः / नभुण् नाशने / अमण रोगे / चरण असंशये / पूरण आप्यायने / दलण् विदारणे। पश पषण बन्धने / पुषण धारणे / वृष्ण विशब्दने। विशब्दनं विशिष्टशब्दकरणं नानाशब्दनं वा / घोषयति / अयुषत्। ऋदित्करणात् अनित्यो णिच् चुरादीनामिति ज्ञापितं तेनाङि अधुषत् अघुषताम् अधुषन् / अर्थान्तरे तु घुष शब्दे घोषति चैत्रः शब्दं करोतीत्यर्थः / आङः परस्तु वृषण क्रन्दार्थे ज्ञेयः, आघोषयति क्रन्दते इत्यर्थः / भूष तसुण अलङ्कारे / भूषयति / Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (177) तंसयति कन्याम् / अवतंसयति / उत्तंसयति / अततंसत् / जतण ताडने / जासयति / अजीजसत् / त्रसण वारणे / त्रासयति मृमान् व्याधः / अतित्रसत् / वसण स्नेहच्छेदावहरणेषु / वासयति / अवीवमत् / ध्रसण उत्क्षेपे / असण् ग्रहणे / लमण शिल्पयोगे / अर्हः पूजायाम् / अर्हयति / आयत् / अर्हयाञ्चकार, अर्हयाबभूव, अहयामास / अर्थात् / अर्हयिता / अर्हयिष्यति। आईयिष्यत् / आर्जिहत् / मोक्षण असने / लोक तर्क रघु लघु लोचू विच्छ अजु तुजु पिजु लजु लुजु भजु पट.पुट लुट घट घटु वृत पुथ नद वृध गुप धूप कुप चीब दशु कुशु त्रसु पिसु कुसु दसु वह वृहु वल्ह अहु वहु महुण भासार्थाः / लोकयति / ऋदित्त्वादुपान्त्यहस्वाभाव अलुलोकत् / लोचयति / अलुलोचत् / अञ्जयति / आञ्जिनत् / तुञ्जयति / अतुतुञ्जत् / लञ्जयति / अललअत् / सयति ।अतंत्रंसत् / इति परस्मैपदं समाप्तम् / अथात्मनेपदम्- युणि जुगुप्सायाम् / यावयते / यावयेत / यावयताम् / अयावयत / यावयाञ्चक्रे / यावयिषीष्ट / यावयितासे ।यावयिष्यते। अयावयिष्यत / अद्यतन्यां णौ कृतस्य स्थानिवद्भवनाद् ‘यु' इत्यस्य द्वित्वे -- असमानलोपे सन्वल्लघुनि डे' इत्यनेन सनीव कार्ये कृते अस्य धातोः सनि तु 'ओन्तिस्थापवर्गेऽवणे ' इति 12 Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वयोकारस्येत्वमिति अयियवत् / गृणि विज्ञाने / गारयते ।वञ्चिण प्रलम्भने / प्रलम्भनं मिथ्याफलाख्यानम् / वश्चयते / अवञ्चयत / वश्चयाञ्चक्रे / वञ्चयाम्बभूव / वश्चयामास / वञ्चयिषीष्ट / वञ्चयितासे / वञ्चयिष्यते / अवञ्चयिष्यत / अववञ्चत अववञ्चेताम् अववञ्चन्त / इदित्वादेव णिगन्तादप्यात्मनेपदे मिद्धे प्रलम्भे गृधिवश्वेः' इत्यनेनात्मनेपदविधानं णिगन्तादफलवति कर्तर्यपि आत्मनेपदविधानाथम् / मदिण तृप्तियोगे / मादयते / मादयताम् / मादयाञ्चक्रे / मादयिष्यते / अमीमदत अमीमदेताम् / विदिण चेतनाग्व्याननिवासेषु / वेदयते / वेदयेत / वेदयाञ्चक्रे / वेदयिष्यते / अवीविदत अवीविदेताम् अवीविदन्त / मनिण स्तम्भे / स्तम्भो गर्वः / मानयते गर्व करोतीत्यर्थः / मानयाञ्चक्रे / मानयाम्बभूव / मानयामास / अमीमनत / बलि भलिण आभण्डने / आभण्डनं निरूपणम् / बालयते भालयते रूपं निरूपयतीत्यर्थः / भालयाञ्चक्रे / भालयामास / अबीभलत / दिविण परिकूजने / देवयते / देवयताम् / अदेवयत / देवयाञ्चक्रे / अदीदिवत / लक्षिण आलोचने / लक्षयते / अलक्षयत / लक्षयाञ्चके / अललक्षत / कूटिण अप्रमादे। शठिण श्लाघायाम् / कूणिण संकोचने / तूणिण पूरणे / भ्रणिण आशायाम् / चितिण संवेदने / वस्ति गन्धिण् अर्दने / शमिण आलोचने / 'अमोऽकम्यमिचमः ' इत्यनेन ह्रस्वं प्राप्ते. 'शमोऽदर्शने ' इत्यनेनादर्शने एव णौ परे शमो इस्वत्वकरणात शामयते / निशामयते / अशामयत / शामयाञ्चक्रे / अशीशमत / Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (179) गूरिण उद्यमं / गूरयते / अजगुरेत / ललिण ईप्सायाम् / लालयते / अलीललत / दंशिण दशने / यक्षिण पूजायाम् / यक्षयते / अययक्षत। इत्यात्मनेपदं समाप्तम् // अथ अदन्ता धातवःअङ्कण लक्षणे / अङ्कयति। आञ्चिकत् / सुख दुःखण तत्कियायाम् / अतः / 4 / 3 / 82 / / अदन्ताद् धाताविहितेऽशिति प्रत्यये परे धातारकारस्य लुग भवति / मुग्वयति / नन्वत्र अकारलुकि गुणः कथं न भवतीति चेत्, स्थानिवद्भावात् / सुग्वयेत् / असुखयत् / सुखयाञ्चकार / असुसुखत् समानलोपित्वात् सन्वद्भावदीर्घत्वयोरभावः / अङ्कादीनामदन्तषु पाठः पूर्वाचार्यानुरोधादेव, णिजभावेऽनेकावरत्वेन यङ्प्रत्ययाभावार्थ इत्यन्ये / केचित्तु एवंविधानामदन्तत्वविधानसाम * देवाल्लोपाभावं मन्वानाः णिति परे वृद्धौ प्वागमे च अङ्कापयति इत्यादीन्युदाहरन्ति / एवं सुखापयति, दुःखापयति, वण्टापयति, कथापयति, अर्थापयते, सूत्रापयते, गर्वापयते इत्यादीन्यपीच्छन्ति। रचण् प्रतियत्ने / रचयति / रचयाञ्चकार / अरचयत् / अररचत् / सूचण पैशून्ये / भाजण् पृथक्कर्मणि / सभाजण प्रीतिसेवनयोः / कूटणू दाहे / पट वटणू ग्रन्थे / खेटण् भक्षणे / खोटण क्षेपे / Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 180) दण्डण् दण्डनिपातने / गणण् मळ्याने / गणयति / गणयेत् / गणयतु / अगणयत् / गणयाञ्चकार / गणयिता / गणयिष्यति / अद्यतन्यां डे कृते ई च गणः / 4 / 1 / 67 / गणेः ङपरे णौ द्वित्वे पूर्वस्य इरश्च भवतः / अनीगणत् अनीगणताम् अजीगणन् / अंजगणत् अनगणताम् अजगणन् / अदन्तत्वं सुखादीनां णिज्योगे एवातोऽनित्यत्वेन णिनोऽभावे जगाण जगणतुः जगणुः / आनङ्क आनङ्कतुः आनङ्कुः इत्यादीन्येव, नात्राम् / पतण गतौ वा। वाशब्दो णिजदन्तत्वयोर्युगपद्विकल्पार्थः / वातण गतिसुखसेवनयोः / कथण वाक्यप्रबन्धे / कथयति / अचकयत् / छेदण द्वैधीकरणे / गदण गर्ने / अन्धण दृष्ट्युपपाते / स्तनण गर्ने / ध्वनण् शब्दे / स्तेनण् चौर्ये / उनण् परिहाणे / उनयति / औनिनत् औनिनताम् औनिनन् / मा भवान् उनिनत्। रूपण रूपक्रियायाम् / भामण कोधे / गोमण उपलेपने / सामण सान्त्वने / स्तोमण श्लाघायाम् / व्ययण वित्तसमुत्सर्गे / सूत्रण विमोचने / सूत्रयति / असुसूत्रत् / मूत्रण प्रस्त्रवणे / मूत्रयति / अमुमत्रत् / पार तीरण कर्मसमाप्तौ / पारयति / पारयाञ्चकार / अपपारत् / तीरयति / तीरयाञ्चकार / अतितीरत् / चित्रण चित्रक्रियाकदाचिदृष्टयोः / वरण ईसायाम् / शारण दौर्बल्ये / कुमारण क्रीडायाम् / कलण सख्यानगत्योः। शीलण उपधारणे। वेल कालण उपदेशे / पल्यला लवनपवनयोः / गवेषण मार्गणे / .. Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (181) मृषण क्षान्तौ / रसण आस्वादस्नेहनयोः / वासण उपसेवायाम् / निवासण आच्छादने / चहण कल्कने / महण पूजायाम् / रहण त्यागे / स्पृहण ईप्सायाम् / रूक्षण पारुष्ये / गुरूपान्त्यत्वेन गुणाभावे मिद्धेऽदन्तत्वमध्ये पाठः णिजभावेऽपि अदन्तत्वख्याएनार्थस्तनानकस्वरत्वाद् यङ न भवति / इति परस्मैपदं समाप्तम् / अथादन्तेवात्मनेपदम् / मृगणि अन्वेषणे / मृगयते / अममृगत / अर्थणि उपयाचने। पदणि गतौ / संग्रामणि युद्धे / मंग्रामयते / शूर वीरणि विक्रान्तौ। सत्रणि संदानक्रियायाम् / स्थूलणि परिवहणे / गर्वणि माने / गृहणि ग्रहणे / कुहणि विस्मापने / कुहयते / अचुकुहत / इत्यात्मनेपदम् ; इत्यदन्ता धातवः समाप्ताः / . अथ वृत युजादिः / युजण. संपर्चने युजादेनवा / 3 / 4 / 18 / एभ्यो धातुभ्यो णिज् वा भवति / योजयति / अयोजयत् / योजयाञ्चकार / योनयिता / अयूयुनत् / पक्षे योजति / योजेत् / योजतु / अयुजत् / युयुज / युज्यात् / योनिता / योजिष्यति / अयोनीत् / लीण् द्रवीकरणे लियो नोऽन्तः स्नेहवे / 4 / 2 / 15 / - Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (182) लीधातोः स्नेहवे गम्यान णौ परे नोऽन्ता वा भवति / घृतं विलीनयति / पक्षे वृद्धौ विलाययति / लीइलिनो; ' इत्यनेनात्त्वं केचिदिच्छन्ति तन्मते आत्त्वे कृते लो लः / 4 / 2 / 16 / लारूपस्य धातोः णौ परे स्नेहवे गम्यमाने लोऽन्तो वा / भवति / विलालयति. पक्षे विलापयति इत्यादीनि भवन्ति / विलीनयेत् / विलाययेत् / विलीनयाञ्चकार / विलाययाञ्चकार / व्यलीलिनत् , व्यलीलयत् , व्यलीललत , . व्यलीलपत् / प्रीगण तर्पणे / धूगण कम्पने / गित्त्वमुभयपदार्थम् / धृगमीगानः / 4 / 2 / 18 / ___अनयोी परे नोऽन्तो भवति / धूनगति / धूनयते / प्रीणयति। प्रीणयते / धूनयाञ्चकार / प्रीणयाञ्चकार / अदूधुनत् / अपिप्रिणत् / वृगण आवरणं / वारयति / जग् वयोहानौ / जारयति / चीक शीकण आमर्षणे / मार्गण अन्वेषणे / मार्गयति / मार्गयाञ्चकार / पृचण मम्पर्चने / रिण वियोजन च / रेचयति / वचण भाषणे / वाचयति / अर्चिण पूनायाम् / अर्चयति, पक्षे इदित्त्वादात्मनेपदे शवि अर्चते / वृनैण वर्जने / मृगौण शौचालङ्कारयोः / ' मृगोऽस्य वृद्धौ ' इति मार्नयति / मानयेत् / अमानयत् / मार्जयाञ्चकार / अमीमृजत् , अममार्जत्। णिजभाव मार्जति / मार्नेत् / अमाक्षीत् , अमार्नीत् / कटुण शोके / कण्ठयति / उत्कण्ठयति / उदचकण्ठत् / कण्ठति / अकण्ठीत् / क्रय अर्दिः असा Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (183) हिंसायाम् / वदिण भाषणे / वादयति / वदते / अवीवदत् / छदण् अपवारणे / आङः सदण गतौ / आसादयति / पक्षे आसीदति / सदिता / असदीत् / मानण पूजायाम् / मानयति / मानति / अमीमनत् / तपिण् दाहे / तापयति, तपते / अतीतपत् / आप्लम् लम्भने / आपयति / प्रापयति / आपिपत् / पक्षे आपति / आपिता / आपत् / ईरण क्षेपे / ईरयति / ऐरिरत् / ईरति / ईराञ्चकार / ऐरीत् / मृषिण तितिक्षायाम् / मर्षयति / अमीमृषत् , अममर्पत् / पक्षे इदित्त्वादात्मनेपदे मर्षत / अमर्षिष्ट / शिषण असर्वोपयोगे। असर्वोपयोगोऽनुपयुक्तत्वम्। शेषयति। अशीशिषत् / विपूर्वस्तूत्कर्षे / विशेषयति / पक्षे शेषति / शेषिता / अशेषीत् / धषण प्रसहने / प्रसहनमभिभवः / धर्षयति / अदीधृषत् , अदधर्षत् / पक्षे धर्षति / अधर्षीत् / हिसुण हिंसायाम् / हिंसयति, हिंसति / अनिहिंमत् / गर्हण विनिन्दने / गर्हयति, गर्हति / अजगर्हत् / षहण मर्षणे / साहयति / असीषहत् / सहति / सहिता। असाहीत , असहीत् / एतन्निदर्शनं बहुलं द्रष्टव्यं तेनात्रापठिता अपि क्लविप्रभृतयो लौकिकाः, स्तम्भ्वादयश्च सौत्राः, चुलुम्पादयश्च वाक्यकरणीया घातव उदाहरणीयाः-दिवि ग्रहा विक्लवन्ते विच्छायीभवन्तीत्यर्थः / उपक्षपयति प्रावृड् आसन्नीभवतीत्यर्थः, उत्तम्नातीत्यादयः / इति युनादिगणः समाप्तः, तत्समाप्तौ समाप्तथुरादिगणोऽपि। Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 184) अथ णिगन्तप्रक्रिया। meeste प्रयोक्तृव्यापारे णिम् / 3 / 4 / 20 / कुर्वन्तं यः प्रयुक्ते तस्य व्यापारे वाच्ये धातोः णिग वा भवति / चैत्रो भवति, भवन्तं चैत्रं मैत्रः प्रेरयतीति भावयांत चैत्र मैत्रः / गित्त्वादात्मनेपदमपि भावयते / भावयेत् / भावयेत / भावयतु / भावयताम् / अभावयत् / अभावयत / भावयाञ्चकार / भावयाञ्चके / भावयाम्बभूव / भावयामाल / भाव्यात् / भावयिषीष्ट / भावयिष्यति / भावयिष्यते / अद्यतन्यां तु गौ कृतस्य कार्यस्य स्थानिवद्भावाद् अबुभव--इ+अ+त् इति स्थिते ' असमानलोपे ' इत्यादिना सन्वत्कार्ये सनि च ‘ओन्तिस्थापवर्गेऽवणे' इतीकारे तस्य च ' लबोर्दीघ-' इत्यादिना दीर्वे अबीभन्+इ+अत् णेलुंकि अबीभवत् अबीभवताम् अवीभवन् / अबीभवत अबीभवेताम् अबीभवन्त / जु गतौ / जवन्तं प्रेरयति जावयति / जावयते / अजावयत् / अजावयत / जाव्यात् / जावयिषीष्ट / अजीजवत् अजीजवताम् अजीजवन् / अजीजवत अजीजवेताम् ।युंक् मिश्रणे ।यावयति / यावयेत् / यावयाश्चकार / याव्यात् / यावयिषीष्ट / अयीयवत् / अयीयवत / रि गतौ / राययति / अरीरयत् / अरीरयत। श्रृंट श्रवणे। श्रावयति / श्रावयेत्। श्रुरुद्रगुप्लुच्योर्वा / 4 / 1 / 61 / . C .' Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 185) एषां धातूनां सनि परे द्वित्वे सति पूर्वस्योकारस्य इत्वं वा भवति, अवर्णान्तेऽन्तःस्थायां परे। ' असमानलोपेसन्वल्लघुनि' इति अशुश्रवत् , अशिश्रवत् / अशुश्रवत, अशिश्रवत / स्त्रावयति / स्रावयते / स्रावयेत् / असुस्रवत् , असुस्रवत / असिस्रवत्, असिस्रवत / अदिद्रवत् , अद्विद्वत / अदुद्रवत् , अदुद्रवत / अपिप्रवत् , अपुप्रवत् / अपिप्लवत् , अपुप्लवत् / च्यावयति / अचिच्यवत् , अचुच्यवत् / ञ्जिति घात् / 4 / 3 / 100 / - जिति णिति च प्रत्यये परे हन्तेर्षातादेशो भवति / घ्नन्त प्रयुङ्क्ते घातयति, घातयते / घात्यात् / घातयिषीष्ट / अजीबतत् , अनीघतत / शदेरगतौ शात् / 4 / 2 / 23 / ___अगत्यर्थे वर्तमानस्य शदिधातोः शातादेशो भवति, गौ परे / शातयति / अशीशतत् / शात्यात् / ष्ठां गतौ / स्थापयति। स्थापयते / स्थापयेत् / अस्थापयत् / तिष्ठतेः / 4 / 2 / 39 / स्थाधातोरुपान्त्यस्य ङपरे णौ इभवति / अतिष्ठिपत् / / स्थाप्यात् / ब्रा प्रापयति / प्रापयेत् / ब्रापयेत / जिघ्रतेरिः। 4 / 2 / 38 / . ' ब्राधातोरुपान्त्यस्य उपरे णौ इयं भवति / अनिघ्रिपत्अजिघ्रपत् / Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (186) . उद् दुषो णौ / 4 / 2 / 40 दुष्धातोरुपान्त्यस्य णौ परे उद् भवति / दूषयति / दूषयते। अंदू दुषत् / डे न ह्रस्व इत्यन्ये अदुदूषत् / दूप्यात् / चित्ते वा / 4 / 2 / 41 / चित्तकर्तृकस्य दुवातोरुपान्त्यम्य णौ वा उद् भवति / चित्तं दूषयति, दोषयति वा।. . * णौ क्रीजीङः / 4 / 2 / 10 / एषां धातूनां णौ परे आद् भवति / क्रापयति / अचिक्रपत् / जापयति / अजीजपत् / अध्यापयति / अध्यापयते / अध्यापयताम् / अध्यापिपत् / . सिध्यतेरज्ञाने / 4 / 2 / 11 / / अज्ञानार्थे वर्तमानस्य सिध्यतेः णो आद भवति / मन्त्रं साधयति / असीषवत् / अज्ञानादन्यत्र तपः तापमं सेधयति / चिस्फुरोर्नवा / 4 / 2 / 12 / अनयोी आत्त्वं वा भवति। चापयति, चाययतिः / अचीचपत्, अचीचयत् / स्फारयति, म्फोरयति / अपिम्फरत् , अपस्फुरत् / वियः प्रजने / 4 / 2 / 13 / गर्भाधानार्थे वर्तमानस्य वियो णौ आत्त्वं वा भवति / -पुरो वातो गाः प्रवापयति, प्रवाययति / प्रावीवपत् , प्रावीवयत् / रुहः पः। 4 / 2 / 14 / Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (187) रुहो णौ पो वा भवति / रोपयति, रोहयति / अरूरुपत् , अरूरुहत् / . पातेः / 4 / 2 / 17 / पाधाताणौं लोऽन्तो भवति / पालयति / अपीपलत् / वो विधृनने जः। 4 / 2 / 19 / विधूननार्थे वर्तमानस्य वाधातोः णौ जोऽन्तो भवति / पक्षे. णोपवाजयति / उपावीवजत् / पाशाच्छासावेव्याह्रो यः।४।२।२०। / एषां णौ परे योऽन्तो भवति / पाययति / डे पिकः पीप्य् / 4 / 1 / 33 / / .. ण्यन्तस्य पाधातोः डे परे पीप्यादेशो भवति, न च द्विः / अपीप्यत् / शाययति / अशीशयत् / छाययति / अच्छिच्छयत् / साययति / असीषयत् / वाययति / अवीवयत्। व्याययति / अवि. व्ययत् / ह्वाययति / . णौ ङसनि / 4 / 1 / 88 / केंगधातोः ङपरे सन्परे च णौ सस्वरान्तस्प.या य्वृद् भवति। भ्राजभास-' इत्यादिना वा हस्वे अजुहावत् , अजूहवत् / स्फाय स्फा / 4 / 2 / 22 / / णौ स्फायः स्फावादेशो भवति / स्फावयति / अपिस्फवत् / घटादेहस्वो दीर्घस्तु वा अिणम्परे / 4 / 2 // 24 // Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (188) घटादीनां णौ हस्वो भवति, भिणम्परे तु वा दीर्घः / ‘वटयति / अनीघटत् / जिपरे अघाटि, अघटि / घाट घाटम् , बर्ट घटम् / व्यथयति / अविव्यथत् / अव्याथि, अव्यथि / / . कगेवनूजनैजपनस्राः / 4 / 2 / 25 / / एषां णौ ह्रस्वः, भिणम्परे तु वा दीर्घो भवति / कगयति / अचीकगत् / अकागि, अकगि / कागं कागम् , कगं कगम् / वनयति / अवीवनत् / अवानि, अवनि / जनयति / अजीजनत् / अजानि, अजनि / जानं जानम् , जनं जनम् / अमोऽकम्यमिचमः / 4 / 2 / 26 / अमन्तस्य धातोः णौ परे हम्वो भवति, भिणम्परे तु वा दीर्घः, न तु कम्यमिचमीनाम् / रमयति / अरीरमत् / अरामि, अरमि / कम्यमिचमीनां वर्जनात् कामयते / आमयति / चामयति, आचामयति / अचामि / चामं चामम् / पर्यपात् स्खदः / 4 / 2 / 27 / / आभ्यामेव परस्य स्खदेः णौ ह्रस्वो भवति, जिणम्परे तु वा दीर्घः / परिस्खदयति / पर्यस्खादि, पर्यस्खदि / अपस्खदयति / एवमदर्शनार्थे शमः / शमयति / अशामि, अशमि / अशीशमत् / अपरिवेषणार्थस्य यमोऽपि / यमयति / अयीयमत् / अयामि, अयमि / मारणतोषणनिशानेष्वर्थेषु ज्ञाधातोरपि / ज्ञपयति / अजिज्ञपत् / ज्ञापं ज्ञापम् , ज्ञपं ज्ञपम् / अज्ञापि, अज्ञपि / Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 189) चहणः शाठ्ये / 4 / 2 / 31 / - शाठ्यार्थे वर्तमानस्याम्य णिचि णौ हस्वो भवति, जिणम्परेतु वा दीर्चः / चयति / अचहत् / अचाहि, अचहि / चाहं चाहम् , चहं चहम् / ज्वल-ह्वल-मल-ग्ला-स्ना-वनूवमनमोऽनुपसर्गस्य वा / 4 / 2 / 32 / उपसर्गरहितानामेषां णौ. इस्वो वा भवति / ज्वलयति, न्वालयति / मलयति, ह्यालयति / क्नूयि शब्दे। . वोः प्वव्याने लुक् / 4 / 4 / 121 / पौ यवर्जव्यञ्जनादौ च परे बोटुग भवति / नोपयति / अचुक्नुपत् / मापयति / अचिक्ष्मपत् / रभोऽपरोक्षाशवि / 4 / 4 / 102 / ..... रमेः स्वरात् परो नोऽन्तो भवति, परोक्षाशवर्षे स्वरादौ प्रत्यये / रम्भयति / अररम्भत्। परोक्षाशवयोः आरेभे / आरभते / ___ लभः / 4 / 4 / 103 / . 'लभूधातोः स्वरात् परो नोऽन्तो भवति, परोक्षाशवनें स्वरादौ प्रत्यये / लम्भयति / अललम्भत् / हि गतिवृद्धयोः / हाययति / अनीहयत् / स्मारयति / असिस्मरत् / दारयति / अदीदरत् / .. णौ मृगरमणे / 4 / 2 / 51 / Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (190) रब्धातोरुपान्त्यस्य नो णौ परे लुग भवति, मृगाणां क्रीडायाम् / रजयति मृगं व्याधः / अरीरजत् / ..वा वेष्टचेष्टः / 4 / 1 / 66 / .. अनयोर्धात्वोरसमानलोपे उपर णौ द्वित्वे सति पूर्वस्याद् वा भवति / अववेष्टत् , 'अविवेष्टत् / अचचेष्टत् , अचिचेष्टत् / स्वपधातोः स्वापयति / अद्यतत्याम् स्वपेर्यड़े च / 4 / 1 / 80 / स्वप्धातोर्यङि डे किति च सस्वरान्तस्था य्वृद् भवति / अमूघुपत् / सोषुप्यते / सुप्यते / श्वि-श्वाययति / ___श्वेर्वा / 4 / 1 / 89 / / श्विधातोः सस्वरान्तस्था ङपरे सन्परे च णौ विषये य्वृद् वा भवति / अशूशवत् , अशिश्वयत् / इंक् स्मरणे / इणक् गतौ णावज्ञाने गमुः। 4 / 4 / 24 / - अज्ञानार्थे वर्तमानयोः इणिकोः णौ गम्वादेशो भवति / अधिगमयति प्रियम् / अध्यजीगमत् / गमयति / अजीगमत् / ज्ञाने तु प्रत्याययति शब्दोऽर्थम् / इति णिगन्तप्रक्रिया। Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 191) अथ सन्नन्तप्रक्रिया। तुमहादिच्छायां सन्नतस्सनः / 3 / 4 / 21 / यो धातुरिषेर्धातोः कर्म तथेषिधातुना सह समानकर्तृकः स तुमाहः, तस्माद् धातोः इच्छार्थे सन् प्रत्ययो भवति / इच्छासन्नन्तात् पुनरिच्छायां सन् न भवति / भवितुमिच्छति भू+म इति स्थिते / सन्यङश्च / 4 / 1 / 3 / / सन्प्रत्ययान्तस्य यङ्प्रत्ययान्तस्य च धातोराद्य एकस्वरोंऽशो द्विर्भवति / भू+भू+स् पूर्वस्य भस्य बत्वे सः पत्वे तिवि शवि च बुभूषति / बुभूषेत् / बुभूषतु / अबुभूषत् / बुभूषाञ्चकार / बुभूपाम्बभूव / बुभूषामास / बुभूष्यात / बुभूषिता / बुभूषिष्यति / अबुभूषिष्यत् / अबुभूषीत् अबुभषिष्टाम् अबुभूषिषुः / कर्तुमिच्छति___ऋवर्णयुण्णुगः कितः / 4 / 4 / 57 / ऋवर्णान्ताद् श्रेर्णाश्च धातोरेकस्वराद् विहितस्य कित आदिरिड़ न भवति / स्वरहन्गमोः सनि धुटि / 4 / 1 / 184 / ...स्वरान्तस्य हनो गमोश्च धुडादौ सनि परे दीर्घा भवति / पूर्वेण इनिषेधे ऋतां विडतीर् ' इतीरादेशे द्वित्वे चत्वे षत्वे Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिकीर्षति चिकीत् / चिकीर्षतु / अचिकीर्षत् / चिकीर्षाश्चकार / चिकीर्ष्यात् / चिकीर्षिता / चिकीर्षिष्यति / अचिकीपीत् / तरितुमिच्छति -- वृध-' इत्यादिना वटि वृतो नवा' इत्यादिना वा दीर्थे / तितीर्षति, तितरीषति, तितरिषति / अतितीर्षीत् , अतितरिपीत् , अतितरीषीत् / ग्रहीतुमिच्छति ! __ ग्रहगुहश्च सनः / 4 / 4 / 59 // आभ्यामुवर्णान्ताच्च विहितस्य सन आदिरिड न भवति / रुदविदमुपग्रहस्वपप्रच्छः सन् च / 4 / 3 / 32 // एभ्यः क्त्वा सन् च किन भवति / ‘ग्रवश्व-' इत्यादिना य्वृति, द्वित्वे पूर्वस्यात्वे- , सन्यस्य / 4 / 1 / 59 / ___ सनि परे द्वित्वे सति पूर्वस्याकारस्येकारो भवति / जिवृक्षति। "निघृक्षेत् / जिवृक्षतु / अनिवृक्षत् / जिवृक्षाञ्चकार / जिवृक्ष्यात्। निघृक्षिता / जिघृक्षिष्यति / अजिघृक्षीत् / प्रष्टुमिच्छति / ऋस्मिपूङअशौकगधुप्रच्छः / 4 / 4 / 48 / एभ्यो धातुभ्यः सन आदिरिड् भवति / पिपृच्छिपति / पिच्छिपतु / अपिपृच्छिषत् / पिच्छिषाञ्चकार / पिपृच्छिन्यात् / पिच्छिषिता / पिपृच्छिषिष्यति। अपिच्छिषिष्यत् / अपिच्छिषीत्। रुरुदिषति / अरुरुदिषीत् / विविदिषति / अविविदिपीत् / मुमुषि Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (193) पति / अमुमुषिषीत् , कित्त्वान्न गुणः।स्वप्-सुषुप्सति / सुषुप्सेत् / सुषुप्यतु / असुषुप्मत् / सुषुप्साञ्चकार / सुषुप्स्यात् / सुषुप्सिता। सुषुप्तिष्यति / असुषुप्सीत्। ऋ-अरिरिषति / अरिरिषेत्। अरिरिपतु ।आरिरिपत् / अरिरिषाञ्चकार / आरिरिषीत्। स्मि-सिम्मयिषते। असिम्मयिषत / सिम्मयिषाञ्चक्रे / असिस्मयिषिष्ट / पूङ-पिपविषते / पिपविषेत। पिपविषताम् / अपिपविषत / अपिपविषिष्ट। अज्-अञ्जिजिपति / अञ्जिनिपाञ्चकार / आञ्जिनिपीत् / अशौ-अशिशिषते। आशिशिषत / अशिशिषाञ्चक्रे / आशिशिषिष्ट / कु-चिकरिषति, चिकरीपति / चिकरिषेत् , चिकरीपेत् / अचिकरीषत् / चिकरीषाञ्चकार।अनिारीपीत् / ग-जिगरीषति, जिगरिषति, जिगलिषति / निगरीयतु / अजिगरीपत् / जिगरीपाञ्चकार / अजिगरीषीत् / दृङ्दिदरिषते / आदिदरिषते। आदिदरिषेत। आदिदरिषताम् / आदिदरिषत / आदिदरिषिषीष्ट / आदिदरिषिष्ट / धङ्-दिधरिषते / दिधरिषेत / दिधरिषताम् / अदिधरिषत / दिधरिषिता / अदिधरिषिष्ट / दिव् इधभ्रस्जदम्भश्रियण्णुभरज्ञपिसनितनिपति... वृद्दरिद्रः सनः / 4 / 4 / 47 / इवन्ताद् ऋधादिभ्यः ऋदन्तेभ्यश्च धातुभ्यो दरिद्रश्च सन आदिरिड् वा भवति / ___ उपान्त्ये / 4 / 3 / 34 / नाम्युपान्त्यस्य धातोः परेऽनिट् सन् किद्वद् भवति / 13 Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 194) अनुनासिके च च्छ्वः शूट् / 4 / 1 / 108 / ... अनुनासिकादौ क्वौ धुडादौ च धातोः च्छ्वोर्यथासङ्ख्यं शूटौ भवतः / दुयूपति / दुयूषेत् / दुबूषतु / अदुघ्पत् / दुबूषाञ्चकार / दुबूषिता / दुबूषिष्यति / अदुयुषीत् / पक्षे दिदेविषति / दिदेविषेत् / दिदेविषतु / अदिदेविषत् / अदिदेविषीत् / ऋध इत् / 4 / 1 / 17 / _____ ऋधधातोः सादौ सनि परे ईर्तादेशो भवति / ईर्त्यति / ईर्सेत् / ईतुि / ऐत् i / ईञ्चिकार / ऐर्सीत् / इट्पक्षे अर्दिधिषति / आर्दिधिषीत् / भ्रस्ज्–बिभक्षति, बिभ्रक्षति, विभर्जिपति, विभ्रजिषति / दम्भ. दम्भो धिप धीप् / 4 / 1 / 18 / दम्भेः सादौ सनि धिप-धीपो भवतः / धिप्सति, धीप्सति / धिप्सेत् , धीप्सेत् / धिप्सतु, धीप्सतु / अधिप्सत्, अधीप्सत् / अधिप्सीत् , अधीप्सीत्। पक्षे दिदम्भिवति / दिदम्भिषेत् / दिदम्भिषतु / अदिदम्भिषत् / अदिदम्भिषीत् / श्रि-शिश्रीषति-ते, शिश्रयिषति–ते / यु-युयूषति, यियविषति। उर्ण-प्रोणुनूषति-ते, प्रोणुनविपति-ते, प्रोणुनविषति-ते / भृ-बुमूर्षति-ते, विभरिषति–ते / अबुभूर्षीत् , अविभरिषीत् / ज्ञप्ज्ञप्यापो ज्ञीपीप् न च द्विः सि सनि / 4 / 1 / 16 / ज्ञप्--आफ्धातोः सादौ सनि परे यथासङ्ख्यं ज्ञीपीपौ भवतः, न च द्विस्वम् / ज्ञीप्सति-ते / ज्ञीप्सेत् / ज्ञीप्सतु / अज्ञीप्सत् / Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 195) ज्ञीप्साञ्चकार / ज्ञीप्सिता / ज्ञीप्सिष्यति / अज्ञीप्सिष्यत् / अज्ञीप्सीत् / पक्षे जिज्ञपयिषति-ते। अजिज्ञपयिषीत् / आप्-ईप्सति / सनि / 4 / 2 / 61 / / खन्सन्जनां धातूनां धुडादौ सनि आत्त्वं भवति / सिषासति-ते, सिसनिषति-ते। चिख़ासति, चिखनिषति / जिजासति, जिजनिषति / तितंसति, तितनिषति / रमलभशकपतपदामिः / 4 / 1 / 21 / / एषां स्वरस्य मादौ सनि परे इकारो भवति, न च द्विः / रिप्सते, आरिप्सते / आरिप्सेत / आरिप्सिष्ट / लिप्सते / अलिप्सिष्ट। शिक्षति / अशिक्षीत्। पित्सति, पिपतिपति। अपित्सीत्। पित्सते / अपित्सिष्ट / बुवूपति, विवरिषति, विवरीषति / तितीपति, तितरिषति, तितरीपति / दिदरिद्रासति, दिदरिद्विषति / शानदानमानवधा निशानार्जवविचारवैरूप्ये दीघश्वेतः / 3 / 4 / 7 / / - निशानाद्यर्थभ्य एभ्यो यथासङ्ख्यं स्वार्थे सन् भवति, द्वित्वे पूर्वस्येतो दीर्घश्च / शीशांसति--ते / दीदांसति-ते। मीमांसते / बीभत्सते / अर्थान्तरे न भवति / गुप्तिजो गर्दाक्षान्तो सन् / 3 / 4 / 5 / गुपेर्गीयां तिजः क्षान्तौ स्वार्थे सन् भवति / 'स्वार्थे ' इति नेट्जुगुप्सते / तितिक्षते / अन्यत्र प्रायेण त्यादयो न भवन्ति तेन सन्व्यवधानेऽप्यात्मनेपदम् / अर्थान्तरे णौ गोपयति। तेजनम् / Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 196 ) कितः संशयप्रतीकारे / 3 / 4 / 6 / संशयप्रतीकारार्थात् कितः स्वार्थे सन् भवति / विचिकित्सति मे मनः / व्याधिं चिकित्सति / अन्यत्र केतयति / - अव्याप्यस्य मुचेर्मोग् वा / 4 / 1 / 19 / अकर्मकम्य मुचेः सादौ सनि मोग वा भवति, न च द्विः / मोक्षति-ते / मुमुक्षति-ते / व्याप्ये सति तु मुमुक्षति वत्सम् / मिमीमादामित् स्वरस्य / 4 / 1 / 20 / एषां दासज्ञानां च स्वरस्य सादौ सनि परे इत् भवति, न च द्विः / मित्सति / मित्सते / मित्सते / दित्सति, दित्सत। धित्सति, वित्सते / राधेर्वधे / 4 / 1 / 22 / '' हिंसार्थस्य राध्धातोः स्वरस्य इभवति सादौ सनि / प्रतिरित्सति / वध इति किम् / आरिरात्सति गुरुम् / इति सन्नन्तप्रक्रिया समाप्ता। Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 197) अथ यङन्तप्रक्रिया। व्यअनादेरेकस्वराद् भृशाभीक्ष्ण्ये यङ् वा / 3 / 4 // 9 // गौणक्रियाणामधिश्रयणादीनां क्रियान्तरात्र्यवधानेन सम्पत्तिः फलातिरेको वा भृशत्वम्, प्रधानक्रियाया विक्लेदादेः क्रियान्तराव्यवधानेनाऽऽवृत्तिराभीक्ष्ण्यम् ; तद्विशिष्टार्थे वर्तमानाद् धातोर्य प्रत्ययो भवति / भृशं पुनः पुनर्वा पचति इति पञ्+य ‘सन्यड इति द्वित्वेऽनादेर्व्यञ्जनम्य लुकि प+पच्+य इति जाते आगुणावन्यादेः / 4 / 1 / 18 / यङन्तस्य धातोत्विं सति न्याद्यागमवर्जितस्य पूर्वस्य आकारगुणौ भवतः / पापच्यधातुत्वात् त्यादौ शवि अतो लोपे पापच्यते / पापच्थेत / पापच्यताम् / अपापच्यत। योऽशिति। 4 / 3 / 80 / व्यञ्जनान्ताद् धातोः परस्य यकारस्य अशिति प्रत्यये लुग भवति / पापचाञ्चक्रे / पापचिषीष्ट / पापचिता। पापचिष्यते / अपापचिप्यत / अपापचिष्ट / पुनः पुनरतिशयेन वा भवति बोभूयते / बोभूयेत / बोभूयताम् / अवोभूयत / बोभूयाञ्चक्रे / बोभूयाम्बभूव, बोभूयामास / बोभूयिषीष्ट / बोभूयितासे C बोभूयिष्यते / अबोभूयिष्यत / अबोभूयिष्ट। : Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 198 ) न कवतेर्यङः / 4 / 1 / 47 // यङन्तस्य कवतेर्द्वित्वे सति पूर्वम्य कम्य चकारो न भवति / 'दीर्वत्रिच्चयङ्' इत्यादिना दीर्घे कोकूयते / कोक्यताम्। अकोयत / कोकूयाञ्चके / कोकृयिषीष्ट / अकोकूयिष्ट / कवतेरिति वचनात् कौतिकुवत्योर्भवत्येव चोकूयते / अत्यतिमुत्रिमूत्रिसूच्यशू!ः / 3 / 4 / 10 / एभ्यो भृशाभीक्ष्ण्ये यङ् भवति / अटाट्यते / अटाट्येत / अटाट्यताम् / आटाट्यत / अटाटाञ्चक्रे / अंटाटिपीष्ट / अटाटिप्यते / आटाटिष्ट / अयि रः / 4 / 1 / 6 / स्वरादेर्धातोद्वितीयांशस्यैकस्वरस्य संयोगादी रो द्विर्न भवति, न तु रादनन्तरे यः। और्णोनूयत / अनन्तरे ये अरार्यते / अरार्येत / अरार्यताम् / आरार्यत / अराराञ्चक्रे / अरारिषीष्ट / * अरारिता / अरारिष्यते / आरारिष्यत / आरारिष्ट / सोसूत्र्यते / 'सोसूत्राञ्चके / असोसूत्रिष्ट / मोमूत्र्यते / मोमूत्राञ्चक्रे / अमोमूत्रिट / सोसूच्यते / सोसूचाञ्चके / असोसूचिष्ट / अशाश्यते / अशाशाञ्चके / आशाशिष्ट / प्रोर्णोनूयते। प्रोर्णोनूयेत / प्रो!मूयताम् / प्रौर्णोनूयत / प्रोर्णोनूयाञ्चके / प्रोर्णोनूयिषीष्ट / प्रोर्णोनूखिता / प्रोर्णोनूयिष्यते / प्रौर्णोनूयिष्यत / प्रौर्णोनूयिष्ट / गत्यर्थात् कुटिले / 3 / 4 / 11 / Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (199) ____ व्यञ्जनादेरेकस्वराद् गत्यर्थात् कुटिले एवार्थे धातोर्यङ् भवति / कुटिलं ब्रजति वाव्रज्यते / वावजाञ्चक्रे / वात्रनिषीष्ट / अवावनिध्यत / अवाव्रजिष्ट / अन्यत्र भृशं बनतीत्येव वाक्यम् / ... गलुपसदचरजपजभदशदहो गये / 3 / 4 / 12 / / एभ्यो धातुभ्यो गर्योऽर्थे एव यङ् प्रत्ययो भवति / गर्हितं गिलति जेगिल्यते / जेगिलाञ्चके / अजेगिलिष्ट / लोलुप्यते / लोलुपिष्यते / अलोलुपिष्ट / सासद्यते / असासद्यत / सासदाञ्चक्रे / सासदिष्यते। असामदिष्यत / असासदिष्ट / चरफलाम् / 4 / 1 / 53 / एषां यडन्तानां धातूनां द्वित्वे सति पूर्वस्य मुरन्तो भवति / उकार उच्चारणार्थः / ति चोप्रान्त्यातोऽनोदुः / 4 / 1 / 54 / यङन्तानां चरफलां तादौ च प्रत्यये परे उपान्त्यस्याकारस्य उर्भवति, तस्य च ओत्त्वं न भवति / च-चूर्यते / चन्चुराञ्चक्रे / अचञ्चुरिष्ट / पम्फुल्यते / पम्फुलाञ्चक्रे / अपम्फुलिष्ट / ___ जपजभदहदशभअपशः। 4 / 1 / 52 / . एषां यङन्तानां धातूनां द्वित्वे सति पूर्वस्य मुरन्तो भवति / . जाप्यते / अजञ्जपिष्ट / दन्दह्यते / अदन्दहिष्ट / दन्दश्यते / अदन्दशिष्ट / बम्भज्यते / अबम्भजिष्ट / पम्पश्यते / अपम्पशिष्ट / Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (200) न गृणाशुभरुचः / 3 / 4 / 13 / एभ्यो यङ् न भवति / निन्दितं गृणाति / भृशं शोभते / भृशं रोचते। वञ्चसंसध्वंसद्मशकसपतपदस्कन्दोऽन्तो नीः / 4 / 1 / 50 / एषां यङन्तानां द्वित्वे सति पूर्वस्य नीरन्तो भवति / वनीचच्यते / अवनीवचिष्ट। सनीस्रस्यते। असनीस्रसिष्ट / दनीध्वस्यते / अदनीध्वसिष्ट / बनीभ्रश्यते / अबनीभ्रशिष्ट / चनीकस्यते / अचनीकसिष्ट / पनीपत्यते / अपनीपतिष्ट / पनीपद्यते / अपनीपदिष्ट / चनीस्कद्यते / अचनीस्कदिष्ट / मुरतोऽनुनासिकस्य / 4 / 1 / 51 / आत् परो योऽनुनासिकस्तदन्तस्य यडन्तस्य धातोद्वित्वे सति पूर्वस्य मुरन्तो भवति / बम्भण्यते / चक्रम्यते / ननम्यते / यंयम्यते / रंरण्यते / चङ्कण्यते / अत इति किम् तेतिम्यते / अनुनासिकस्येति किम् / पापच्यते / ऋमतां रीः। 4 / 1 / 55 / ___ ऋमतां यङन्तां धातूनां द्वित्वे सति पूर्वस्य रीरन्तो भवति / नरीनृत्यते / चरीकृत्यते / वरीवृश्चयते / जरीगृह्यते। परीपृच्छ्यते / चलीक्लप्यते / वशेरयङि / 4 / 1 / 83 / . Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (201) __वश्वातोः यङि परे वृद् न भवति / वावश्यते / वावश्यताम् / अवावशिष्ट / वा परोक्षायढि / 4 / 1 / 90 / .. श्विधातोः परोक्षायां यङि च वा वृद् भवति / शोशूयते / शोशूयाञ्चके / अशोशूयिष्ट / पक्षे शेश्वीयते / अशेश्वीयिष्ट / स्मृसास्मयते / असास्मरिष्ट / ऋतो रीः। 4 / 3 / 109 / ऋदन्तानां च्च्यादौ परे ऋतः स्थाने रीभवति / चेक्रीयते / हीयते / वेत्रीयते / ईय॑ञ्जनेऽयपि / 4 / 3 / 97 / गापास्थासादामाहाकां धातूनां यप्वजे व्यञ्जनादौ विडत्यशिति परे ईर्भवति / जेगीयते / पेपीयते / तेष्ठीयते। सेषीयते। देदीयते। देधीयते / मेमीयते / जेहीयते / . प्राध्मोङि / 4 / 3 / 98 / अनयोर्यङि परे ईर्भवति / जेनीयते / देध्मीयते / यङ्लुपि न ईर्भवति / हनो धनीर्वधे / 4 / 3 / 99 / हिंसार्थस्य हन्धातोर्यङि घ्नीभवति / जेघ्नीयते / जेघ्नी• याञ्चक्रे / अजेघ्नीयिष्ट / स्वप्धातोर्यङि म्वृति सोसुप्यते / असोसुपिष्ट / Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (202) व्येस्यमोर्यडि / 4 / 1 / 85 / व्यग्स्यमोः सस्वरान्तस्था यङि वृद् भवति / वेवीयते / ववीयाश्चक्रे / अवैवीयिष्ट / सेसिम्यते / असेसिमिष्ट / द्वित्वे हुः / 4 / 1 / 87 / हेग्धातोः द्वित्वविषये य्वृद् भवति / जोहयते / जोयाचक्रे / अनोहूयिष्ट। प्यायः पीः / 4 / 1 / 91 / प्यायधातोः परोक्षायङि पीभवति / पेपीयते / पेपीयाञ्चके / अपेपीयिष्ट। 'चायः कीर्वक्तव्यः' चेकीयते। अचेकीयिष्ट। शीक्षातोस्तु शयादेशे शाशय्यते / शाशयाश्चक्रे / अशाशयिष्ट / सिचूधातोर्यङि पत्वं न भवति / सेमियते / सेसिचाश्चके / असेसिचिष्ट / . इति यङन्तप्रक्रिया समाप्ता। Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (203) अथ यङ्लुबन्तप्रक्रिया। बहुलं लुप् / 3 / 4 / 14 / / यको लुच बहुलं भवति / लुपि सत्यां तन्निमित्तकं कार्यमपि न भवति, तेन यङलुबन्तात् परम्मैपदं भवति / यङलुबन्तानां धातूनामदायन्तर्गणहादौ पाठाद विकरणप्रत्ययाभावः / यतुरुस्तोबहुलम् / 4 / 3 / 64 / यङलुबन्तात् तुरुस्तुभ्यश्च पर ईभवति व्यञ्जनादौ विति परे, म च परादिः / बाहुलकात् क्वचिद् विकल्पः, क्वचिदविकल्पः / बोभवीति, बोभोति बोभूतः बोभुवति / बोभवीषि, बोभोपि बोभूयः चोभूथ / वोभवीमि, वोभोमि बोभूवः बोभूमः / बोभूयात् वोभ्याताम् वोभूयुः / बोभूयाः बोभूवातम् व भूपात / बोभ्याम् बोभूयाव बोभ्याम / वोभवीतु, बोभोत, बोभूतात् बोभूताम् बोमुत्तु / बोभूहि, बोभृतात् बोभूतम् बोभूत / बोभवानि बोभवाव बोभवाम / अवोभवीत्, अबोभोत् अबोभृताम् अबोभवुः / अबोभवी:, अबोभोः अवोभूतम् अबोभत / अवोभम् अवोभूव अबोभूम / बोभवाञ्चकार / वोभवाम्बभूव / बोभवामास / बोभूयात् / बोम विता / बोभविष्यति / अबोभविष्यत् / अवोभूवीत् , अबोभोत् / पापचीति, पापक्ति / पापचीषि, पापक्षि / पापच्यात् / पापचीन, Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (204) 'पापक्तु / अपापचीत , अपापक् / पापचाञ्चकार / पापच्यात् / पापचिता / पापचिष्यति / अपापचिष्यत् / अपापचीत् / युक्तोपान्त्यस्य शिति स्वरे / 4 / 3 / 14 / द्वयुक्तस्य धातोरुपान्त्यस्य नामिनो गुणो न भवति, स्वरादौ शिति परे / नेनिनीति, नेनेक्ति नेनिक्तः / नेनिनीषि, नेनेति / नेनिज्यात् / नेनिनीतु, नेनेक्तु / अनेनिनीत् , अनेनेक् / अनेनिनीः, अनेनेः / नेनेजाञ्चकार / नेनियात् / नेनेनिता / नेनेजिष्यति / अनेनेजिष्यत् / अनेनेनीत् / बोमुनीति, बोमोक्ति / बोमुन्यात् / बोभुनीतु, बोभोक्तु / अबोमुनीत्, अबोभोक् / बोभोजाञ्चकार / बोभुन्यात् / बोभोजिता / बोभोजिष्यति / अबोभोजिष्यत् / अबोभोजीत् / वद व्यक्तायां वाचि। वावदीति, वावृत्ति / वावद्यात् / वावदीतु, वावत्तु / अवावदीत् , अवावत् अवावत्ताम् अवावदुः। - से स्-द्-धां च रुर्खा / 4 / 3 / 79 / व्यञ्जनान्ताद् धातोः परस्य से ग् भवति, यथासम्भवं स-द-धां सो भवति / अवावः, अवावत् / वावदाञ्चकार / वावद्यात् / वादिता / वावदिष्यति / अवावदिष्यत् / अवावदीत् / घट चेष्टायाम् / नाघटीति, जाघट्टि / जाघट्यात् / जाघटीतु, जाघ? / अनाघटीत , अजाघट / जाघटाञ्चकार / जाघट्यात्। जाघटिता। जापटिष्यति / अजाघटिष्यत् / अजावटीत् / स्पर्ध संघर्षे। पास्पर्धीति, Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (205) पास्पर्द्धि पाम्पर्द्धः पाम्पर्धति / पास्पर्धीषि, पास्पत्सि / पास्पर्ध्यात् / पाम्पधीत, पाम्पधै। हौ पाम्पर्द्धि / अपास्पर्धीत् , अपास्पत् अपाम्पर्दधाम अपाम्पधुः / अपास्पर्धीः, अपास्प , अपाम्पाः / पास्पर्धाञ्चकार / पाम्पात् / पाम्पर्धिता / पास्पर्धिव्यति / अपाम्पर्विप्यत / पापीत् / गाध प्रशंसालिप्साग्रन्थेषु / जागाधीति, जागादृधि / जागाधीपि, जागासि / जागाध्यान् / जागाधीतु, जागादधु / अजागाधीत , अजागात् / नाथू याञ्चायाम् / नानाथीति, नानात्ति / नानाथ्यात् / नानाथीतु, नानात्त / अनानाथीत , अनानात् / नानाथाञ्चकार / नानाथ्यात् / नानाथिष्यति ! अनानाथिष्यत् / अनानाथीत् / दधि धारणे / दादधीति, दादद्धि / दादधीपि, दादन्मि / दादध्यात् / दादधीतु, दादधु / अदादधीत , अदावत् / अदाधः, अदाधत / दादधाञ्चकार / दादध्यात् / अदादधीत् / मुदि हर्षे / मोमुदीति, मोमोत्ति / मोमुद्यात् / मोमदीत. मोमोत्तु / अमोमुदीत , अमोमोत् / अमोमुद्रीः, अमामात , अमोमोः। मोमोदाञ्चकार / मोमोदिता / मोमोदिप्यति / अमोमोदीत / कुर्दि गुर्दि (खुर्दिी गुदि क्रीडायाम् / चोकूदौति, चोकृति / चोकूर्यात / चोकूर्दीतु, चोकोर्तु / चोकूर्धि / अचोकूर्दीत् / अचाकूः, अचोकूर्त , अचोकूर्दीः / चोकूर्दाञ्चकार / नोकर्दिता / अचोकूर्दिष्यत् / अचोकूर्दीत् / कृ रिरो चलपि / 4 / 1 / 56 / ऋमतां धातूनां यो लुपि द्वित्वे सति पूर्वस्य रिरौ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (206) रीश्चान्तो भवति / चरिकरीति, चर्करीति, चरीकरीति, चरिकर्ति, चर्कर्ति, चरीकति / चरिकृतः, चर्कतः, चरीकृतः / चरिक्रति, चक्रति, चरीक्राति / चरिकरीषि, चर्करीषि, चरीकरीपि। चरिकर्षि, चर्कर्षि, चरीकर्षि / चरिकृयः, चर्कथः, चरीकृथः / चरिकृथ, चकृय, चरीकृथ। चरिकरीमि, चकरीमि, चरीकरीमि,चर्कर्मि, चरिकर्मि, चरीकर्मि / चरिकृवः, चवः, चरीकृवः। चरिकृमः,चक्रमः, चरीकृमः / चरिकृयात् , चकृयात् , चरीकृयात् / चरिकरीतु, चर्करीतु, चरीकरीतु, चरिकत, चर्कर्तु, चरीकर्तु। अचरिकरीत् , अचर्करीत् , अचरीकरीत् , अर्कः, अचरिकः, अचरीकः / अचरिकरी:, अचर्करीः, अचरीकरीः, अचरिकः, अचर्कः, अचरीकः / चरिकराञ्चकार, चर्कराञ्चकार, चरीकराञ्चकार। चरिक्रियात् , चक्रियात् , चरीक्रियात् / चरिकरिता, चर्करिता, चरीकरिता। चरिकरिष्यति, चर्करिष्यति, चरीकरिष्यति / अचरिकरिष्यत् , अचर्करिष्यत् , अचरीकरिष्यत् / अचरिकारीत् , अचर्कारीत्, अचरीकारीत् / वृ वरणे। परिवरीति, वर्वरीति, वरीवरीति, वरिवर्ति, वर्वति, वरीवति / वरिसुयात् , वर्च्यात् , वरीवृयात् / वरिवरीतु, वर्वरीतु, वरीवरीतु, चरिवर्तु, वर्वर्तु, वरीवर्तु / अवरिवरीत् , अवर्वरीत्, अवरीवरीत् , अवरिवः, अवर्वः, अवरीवः, / वरिवराञ्चकार / अवरिवारीत् , अवरीवारीत् , अवर्वारीत् / वृत्-वरिवृतीति, वर्वृतीति, वरीवृतीति, वरिवर्ति, वर्वति, वरीवति / वरिवृत्यात् , वत्यात्, वरीवृत्यात् / वरिवृतीतु, ववृतीतु, वरीवृतीतु, वरिवर्तु, Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 207) . वर्तु, वरीवर्तु / अवरिवृतीत , अवतीत् , अवरीवृतीत , अवरिवत् , अव , अवरीवत् / अवरिवृतीः, अवतीः, अवरीवृतीः, अव , अवरिवत् , अवरीवत् , अवरिवः, अवर्वः, अवरीवः / वरिवर्ताचकार, वर्वर्ताञ्चकार, वरीवर्ताञ्चकार / वरिवृत्यात् , वर्वृत्यात्, वरीवृत्यात् / वरिवर्तिता, वर्तिता, वरीवर्तिता। वरिवर्तिष्यति, र्वतिष्यति, वरीवर्तिष्यति / अवरिवर्तिष्यत् , अवर्वतिष्यत्, अवरीवतिष्यत् / अवरिवर्तीत् , अवर्वीत् , अवरीवर्तीत् / कच्वनीवञ्चोति -- वञ्चत्रंस-' इत्यादिना पूर्व नोऽन्तः, वनीवङ्क्ति / वनीवञ्चीषि, वनीवसि / वनीवच्यात / वनीवञ्चीतु, वनीवक्तु / वनीवग्धि / अवनीवश्चीत् , अवनीवन् / वनीवञ्चाञ्चकार / वनीवच्यात् / वनीवञ्चिता / वनीवञ्चिष्यति / अवनीवञ्चीत् / गम्ल- जङ्गमीति, जङ्गन्ति / जङ्गतः ‘यमिरमि' इत्यादिना मो लुक् / जङ्गमति / जङ्गमीषि, जङ्गंसि जङ्गथः जङ्गथ / जङ्गमीमि, जङ्गन्मि जगन्वः जगन्मः / जङ्गम्यात् / जङ्गमीतु, जगन्तु / जङ्गहि / अजङ्गमीत् , अजङ्गन् / जङ्गमाञ्चकार / जङ्गम्यात् / जङ्गमिता / अजङ्गमीत् / हन्-वधेऽर्थे घ्नीः जेनेति, जेघ्नयीति / जेनीयात् / जेघ्नेतु, जेघ्नयीतु। जेघ्नीहि / अजेघ्नयीत् , अजेघ्नेत् / जेब्नयाञ्चकार / अजेध्नायीत् / रधादन्यत्र गतौ जङ्घनीति, जवन्ति जङ्घतः जनति / जवनीषि, जचंसि जङ्घयः जवथ / जङ्घनीमि, जवन्मि जन्वः जङ्घन्मः / जवन्यात् / जङ्घनीतु, जङ्घन्तु / हौ तु जहि / Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (208) अनवनीत् , अजवन् अनङ्घताम् अजनुः / जङ्घनाञ्चकार / अजवनीत् / ये तु 'यमिरमि-' इति लुगभावं किङति च 'अहन्पञ्चमस्य' इति हन्तरपि दीर्वत्वमिच्छन्ति तन्मते तसि जङ्घान्तः / जङ्घान्थः / हौ जवांहि इत्याद्यपि भवति / आशिषि वध्यात् / अद्यतन्याम् अवधीत् प्रकृतिग्रहणे यङ्लुपोऽपि ग्रहणात् / चर भक्षणे चन्चुरीति, चन्चूर्ति च-चूर्तः च-चुरति / चञ्चूयोत् / च-चुरीतु, चचूर्तु / चन्चूर्हि / अचम्चुरीत् , अच-चूः / चचुराञ्चकार / चचूर्यात् / अचञ्चुरीत् / स्कुदु-चोस्कुन्दीति, चोस्कुन्ति चोस्कुन्तः चोस्कुन्दति / चोम्कुन्यात् / चोस्कुन्दीतु, चोस्कुन्तु / चोस्कुन्दधि / अचोस्कुन्दीत , अचोस्कुन् अचोस्कुन्ताम् अचोस्कुन्दुः / अचोस्कुन्दीः, अचोस्कुन् / चोस्कुन्दाचकार / चोस्कुन्दिता / अचोस्कुन्दीत् / खन् चङ्खन्ति, चङ्खनीति / चलातः ' आः खनिसनिजनः ' इत्याः / चङ्खनति / चङ्खनीषि, चङ्खसि चढाथः चढाथ / चङ्खनीमि, चङ्खन्मि चकन्वः चजन्मः / 'ये नवा ' चङ्खन्यात , चलायात् / चङ्खनीतु, चङ्खन्तु, चातात् चङ्खाताम् चनतु / चलाहि / अचङ्खनीत् , अचङ्खन् , अचङ्खाताम् अचग्नुः / चङ्खनाञ्चकार / चङ्खन्यात् / चङ्खनिता / चङ्खनिष्यति / अचङ्खनीत , अचजानीत् / यु-योयवीति, योयोति योयुतः योयुवति / केचित्तु औत्वमपीच्छन्ति योयौति / योयुयात् / योयवीतु, योयोतु / अयोयवीत् , अयोयोत् / योयवाञ्चकार / अयोयावीत् / पु Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2.9) नोनवीति, नोनोति / अनोनवीत् , अनोनोत / अनोनावीत / हाकू- जहेति, जहाति ‘न हाको लुपि ' इति पूर्वमात्त्वं न / जहीतः जहति / जहीयात् / जहेतु, जहातु / अजहेत् , अजहात् अजहीताम् अजहुः / जहाञ्चकार / जहीयात् / जहिता। जहिष्यति / अजहासीत् / दा-दादेति, दादाति दात्तः दादति। दादेषि, दादासि दात्थः / दाद्यात् / / दादेतु, दादातु, दात्तात् दात्ताम् / देहि, दात्तात् दात्तम् दात्त / अदादेत् , अदादात् अदात्ताम् अदादुः / दादाञ्चकार / दादेयात् / दादिता / दादिष्यति / अदादात् / धे- दाधेति, दाधाति / दाध्यात् / दाधेतु, दाधातु। धेहि / अदाधेत् , अदाधात् अधात्ताम् अदाधुः / दाधाञ्चकार / दाधेयात् / अदाधात् , अदाधासीत् / दैव् शोधने दांव लवने दादाति, दादेति / दादीयात् / दादेतु, दादातु। दादीहि / अदादेत् , अदादात्। अदादासीत् / स्वप्-यङ्लुप्यपि रवृति सोषुपीति, सोषोप्ति सोषुप्तः सोषुपति / सोषुप्यात् / सोषुपीतु, सोषोप्तु / असोषुपीत्, असोषोप् / सोषुपाञ्चकार / सोषुप्यात् / सोषुपिता / सोषुपिष्यति / असोषुपिष्यत् / असो. षोपीत् / केचिद् य्वृतं नेच्छन्ति तन्मते सास्वप्ति / सास्वप्यात् / सास्वप्तु, सास्वपीतु / असास्वप् , असास्वपीत् / सास्वपाञ्चकार / सासुप्यात् / सास्वपिता / असास्वापीत् , असास्वपीत् / कृ विक्षेपे- चाकरीति, चाकर्ति चाकीर्तः चाकिरति / चाकीर्यात् / चांकरीतु, चाकर्तु, चाकीर्तात् / चाकीहि / अचाकरीत् , अचाक: 14 Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (210) अचाकीर्ताम् अचाकरुः / चाकराञ्चकार / चाकीर्यात् / चाकरिता, चाकरीता / चाकरिष्यति, चाकरीष्यति / अचाकरिष्यत् , अचाकरीष्यत् / अचाकारीत् / तृ-तातरीति, तातति तातीतः / तातीर्यात् / तातरीतु, तातर्तु / अतातरीत् , अतातः / तातराञ्चकार / तातीर्यात् / तातरीता, तातरिता / तातरीष्यति, तातरि. ष्यति / अतातारीत् / ऋ- यङ्लुपि द्वित्वे पूर्वस्य ऋतोऽत्त्वे 'रिरौ चलुपि' इति रागमे अर इति रूपम् ; रि री आगमे च अरिऋ, अरीऋ तत्र -- पूर्वस्यास्वे स्वरे' इतीयादेशे अरियू / अत्र केचिदियादेशं नेच्छन्ति इति यत्वे अर्य इति रूपं भवति ततो विभक्तिः / स्वमते तु अर-अरिय-इत्येतयोः विभक्तौ रूपाणि लिख्यन्ते अररीति, अरर्ति अरतः।, अन्ति प्रत्यये अर+अन्ति इति स्थिते -- इवर्णा देः' इति रत्वे ' रो रे लुक् ' इति रो लुकि पूर्वस्य दीर्घत्वे च आरति / अररीषि, अरर्षि अरथः अरथ / अररीमि, अरर्मि अरवः अरमः / अयात् अरयाताम् अर॒युः / अररीतु, अरर्तु, अस्तात् अर॒ताम् आरतु / अरहि, अरृतात् असृतम् अर॒त / अरराणि अरराव अरराम / आररीत् , आरः आरताम् आररुः / आररीः, आरः आरतम् आरत / आररम् आरव आरम / अरराञ्चकार, अरराम्बभूव, अररामास / आरियात् / रिः शक्याशीर्ये' इति रिः ‘रो रे लुक् ' इति लुग्दीघौ च / अररिता / अररिष्यति / आररिष्यत् / आरारीत् आरारिष्टाम् आरारिषुः / आरारी: आरारिष्टम् आरा Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (211) रिष्ट / आरारिपम् आरारिष्व आरारिष्म / अरियू इत्यस्य रूपाणि- अरियरीति, अरियति अरिय॒तः अरियति / अरिययात्। अरियरीतु, अरियतु / आरियरीत् , आरियः आरियताम् आरियरुः / अरियराञ्चकार / अरियियात् / अरियरिता / अरियरिप्यति / आरियरिष्यत् / आरियारीत् / गृह ग्रहणे / जरिहीति, जरीगृहीति, जर्गृहीति, जरिगर्डि, जरीगढि, जर्गढि / जरिगृढः, जरीगृढः, जर्मूढः / जरिगृहति, जरीगृहति, नर्गृहति / जरिगृह्यात्, जरीगृह्यात् , जर्गृह्यात् / जरिगृहीतु, जरीगृहीतु, जर्गृहीतु, जरिगई, जरीग?, जगई / हौ जरिगृढि, जरीगृढि, जढि / अनरिगृहीत् , अजरीगृहीत् , अजगृहीत् , अजरिघट्ट, अजरी- घट्ट , अजब / जरिगर्दाञ्चकार / जर्गृह्यात् , जरिगृह्यात, जरीगृह्यात् / जरिगर्हिता, जरीगर्हिता, जर्गर्हिता / अनरिगहीत् , अजरीगीत् , अनर्गहीत् / ग्रह उपादाने इत्यस्यापि वृद्भवनादेवमेव / गृधू भभिकाङ्क्षायाम् / जरिगृधीति, जरीगृधीति, जगूधीति, जरिगद्धि, जरीगद्धि, जर्गधि / जरिगृद्धः, जरीगृद्धः,जगुद्धः। जरिंगृधति, जरीगृधति जगंधति / जरिगृध्यात् , जरीगध्यात् , नध्यात् / जरिगृधीतु, जरीगृधीतु, जधीतु, जरिगर्ल्ड, जरीगर्ल्ड, जर्गर्छ / अनरिगृधीत , अनरीगृधीत् , अनधीत , अजरिघt , अजरीघर्त, अनर्घ / अजरिघाः, अजरीघाः, अजर्घाः, अजरिघ इत्यादि / जरिगर्वाञ्चकार, जरीगर्धाञ्चकार, जर्गर्धाञ्चकार / जरिगर्धिता, जरीगर्धिता, जर्गर्धिता / जरिगर्षि Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (212) ध्यति, जरीगर्धिष्यति / अनरिगर्धिष्यत् , अजरीगर्धिष्यत् / अजरिंग/त् , अजरीगीत् , अनर्गधीत् / प्रच्छ् ज्ञीप्सायाम् / अत्रापि ग्रधातोरिव लुप्यय्टल्लेनत् / 7 / 4 / 112 / इत्यत्र य्वृद्वर्जनाद् यङ्लुपि. य्वृद् भवति / परिपृच्छीति, परीपृच्छीति, पर्पच्छीति / स्वृति द्वित्वे ' अनुनासिके ' इति च्छः शत्वे ' यजसृजमृज-' इति शः षत्वे गुणे च परिपष्टि, परीपर्टि पर्पटि / परिपृष्टः, परीपृष्टः, पर्पष्टः / परिपृच्छति, परीपृच्छति, पर्पच्छति / परिपृच्छ्यात् / परिपृच्छीतु, परिपष्टुं / हौ परिड्ढि / अपरिपृच्छीत् , अपरिपई / परिपृच्छाञ्चकार / परिपृच्छिता / परिगृच्छिष्यति। अपरिपृच्छिष्यत्। अपरिपृच्छीत् / हय् गतौ / जाहयीति, जाहतिजाहतः जाहयति / जाहय्यात् / जाहयीतु, जाहतु / जाहहि / अजाहयीत् , अजाहयत् / जाह्याञ्चकार / अजाहयीत् / हर्य गतिकान्त्योः / जाहीति, जाहर्ति जाहर्तः जाहयति / अजाहीत् / मव्यविधिविज्वरित्वरेरुपान्त्येन। 4 / 1 / 109 / एषां धातूनामनुनासिकादौ क्वौ धुडादौ च प्रत्यये परे वकारस्योपान्त्येन सहोट् भवति / ज्वर-जाज्वरीति, जाजूर्ति जाजूर्तः जाज्वरति / जाजूर्यात् / जाज्वरीतु, जाजूर्तु / अजाज्वरीत् , अजाजूः / जाज्वराञ्चकार / जाज्वरिता / जाज्वरिष्यति / अजाज्वरीत् / त्वर-तात्वरीति, तातूर्ति / अतात्वारीत , अतात्वरीत् / मत्-मामवीति, Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (213) मामोति मामूतः मामवति / मामवीमि, मामोमि मामूकः मामूमः / हो मामूहि / अमामवीत् , अमामोत् / अमामावीत्, भमामवीत् / पूर्वी थूर्वी दूर्वी पूर्वी हिंसायाम् / तोतूर्वीति / राल्लुकः / 4 / 1 / 110 / रकारात् परयोः च्छ्वोरनुनासिकादौ क्वौ धुडादौ च प्रत्यये परे लुग् भवति / तोतोति तोतूर्तः तोतूर्वति / अतोतूर्वीत् , अतोतोः / एवं तोथूर्वीति, तोथोति तोथूर्तः तोथूर्वति / दोदूर्वीति, दोदोर्ति / मूर्छ-मोमूर्छाति, मोमोति मोमूर्तः / मोमूर्चीत, मोमोतु / मोमूर्हि / अमोमूछीत् , अमोमोः / मोमूर्छाञ्चकार / अमोमूर्चीत्। इति यङ्लुबन्तप्रक्रिया समाप्ता। Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 214) अथ नामधातुप्रक्रिया। द्वितीयायाः काम्यः / 3 / 4 / 22 / द्वितीयान्ताद् नाम्न इच्छार्थे काम्यः प्रत्ययो वा भवति / इदमिच्छतीति इदंकाम्यति / इदंकाम्येत् / इदंकाम्यतु / ऐकाम्यत् / इदंकाम्याञ्चकार / इदकाम्य्यात् / इदंकाम्यिता अत्र ' योऽशिति ' इति यस्य लुग् न धातोर्व्यञ्जनात् परस्य यस्याभावात् / इदंकाम्यिष्यति / ऐटंकाम्यिष्यत् / ऐदंकाम्यीत् / पुत्रमिच्छति पुत्रकाम्यति / अपुत्रकाम्यत् / पुत्रकाम्याञ्चकार। पुत्रकाम्यिता / अपुत्रकाम्यीत् / स्वः इच्छति स्वःकाम्यति / दिवमिच्छति झुकाम्यति / अधुकाम्यीत् / मामिच्छति मत्काम्यति / युष्मानिच्छति युष्मत्काम्यति / राजकाम्यति / धूःकाम्यति / अधूःकाम्यीत् / भवत्काम्यति / एककाम्यति / धनकाम्यति / स्वस्तिकाम्यति / हविष्काम्यति / सर्पिष्काम्यति / धनुष्काम्यति 'नामिनस्तयोः षः' इति षः / तेजस्काम्यति / श्रेयस्काम्यति रोः काम्ये ' इति सः / अमाव्ययात् क्यन् च / 3 / 4 / 23 / / मकारान्तं नामाव्ययं च वर्जित्वा द्वितीयान्ताद नाम्न इच्छार्थे क्यन् काम्यश्च वा भवतः / पुत्रमिच्छति इति क्यनि Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (215) - क्यनि / 4 / 3 / 112 / - क्यनि परे अवर्णस्य ईकारो भवति / पुत्रीयति / पुत्रीयेत् / पुत्रीयतु / अपुत्रीयत् / पुत्रीयाञ्चकार / पुत्रीयिता। पुत्रीयिष्यति। अपुत्रीयिष्यत् / अपुत्रीयीत् / खट्वामिच्छति खट्वीयति / मालीयति / निधीयति 'दीर्घत्रिच्च-' इति दीर्घः / पटूयति / दात्रीयति -- ऋतो रीः ' इति रीः / पित्रीयति / मात्रीयति / स्वस्त्रीयति / रायमिच्छति रैयति / गामिच्छति गव्यति, नावमिच्छति नाव्यति ‘य्यक्ये ' इत्यवावौ / गार्ग्यमिच्छति गार्गीयति -- आपत्यस्य क्यच्च्योः / इति यस्य लुक / राजीयति। अहः इच्छति अर्यति / यमिच्छति यबति / त्यति / एतद्यति / अदस्यति / सर्पिष्यति / क्षुधातः सन्नशनमिच्छति अशनायति, तृषार्तः सन्नुदकमिच्छति उदन्यति, गृद्धः सन् धनमिच्छति धनायति एते त्रयः / शुत्तड्गधेऽशनायोदन्यधनायम् ' इति निपात्यन्ते / अन्यत्र अशनीयति, उदकीयति. वनीयति / वृषमिच्छति वृषस्यति, अश्वमिच्छति अश्वस्यति 'वृपाश्चाद मैथुने स्सोऽन्तः' इति स्सोऽन्तः। वृषस्याश्वस्यशब्दो मैथुनेच्छापर्यायौ मनुष्यादावपि प्रयुज्येते / लक्ष्मणं सा वृषस्यन्ती, सा तम् अश्वस्यति / मथुनादन्यत्र वृषीयति, अश्वीयति / तृष्णायां ‘अस् च लौल्ये ' इति अस सश्चान्तो भवति / लोलुपः सन् दधि इच्छति दध्यस्यति, दधिस्यति / एवं मध्वस्यति, मधुस्यति / मान्ताव्ययनिषेधात् इदमिच्छति, किमिच्छति, स्वस्तीच्छतीत्यादौ वाक्यमेव / Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 216) आधाराचोपमानादाचारे / 3 / 4 / 24 / .. मान्ताव्ययवनितादुपमानवाचिनो द्वितीयान्तादाधाराच्च नाम्न आचारार्थे क्यन् वा भवति / पुत्रमिवाचरति पुत्रीयति च्छात्रमुपाध्यायः / प्रासादे इवाचरति प्रासादीयति कुट्यां भिक्षुः / कर्तुः क्विन् गल्भक्लीबहोडात् तु डिन्त / 3 / 4 / 25 / करुपमानवाचिनो नाम्न आचारार्थे क्विन् वा भवति, स च गल्भक्लीबहोडात् डिद् भवति, तेनात्मनेपदम् / निन इवाचरति निनति / बुधति / अ इवाचरति अति अतः अन्ति / असि अथः अथ / आमि आवः आमः / एत् एताम् एयुः / एः एतम् एत / एयम् एव एम। अतु अतात् अताम् अन्तु / अ, अतात् अतम् अत / आनि आव आम / आत्. आताम् आन् / आः आतम् आत / आम् आव आम | आ आतुः ओः। इथ / आथुः आ। आ एव एम / यात् यास्ताम् यासुः 'अतः' इत्यकारलोपः / इता इतारौ इतारः / इष्यति इष्यतः इष्यन्ति / इष्यत् इष्यताम् इष्यन् / इत् इष्टाम् इषुः / 'सर्वेभ्यो लोपः' इति न्यायाद्, अन्यथा वृद्धौ ऐष्यत् ऐष्यताम् ऐष्यन् / ऐत् ऐष्टाम् ऐषुः / मालेवाचरति मालाति / मालायात् / मालातु / मालाहि / अमालात् / मालाञ्चकार / मालिता। मालिष्यति / अमालासीत् / कविरिवाचरति कवयति / कवयेत् / कवयतु / Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (217) भकवयत् / कंवयाञ्चकार / कवीयात् / कवयिता / अकवयिष्यत् / भकवयीत् / गल्भते / क्लीबते / होडते / पय इवाचरति सो वा लुक् च / 3 / 4 / 27 / सकारान्तात् कर्तरुपमानवाचिनो नाम्न आचारार्थे क्यङ् वा भवति, तद्योगे सो वा लुक् च / पयस्यते, पयायते / यशस्यते, यशायते / चन्द्रमस्यते, चन्द्रमायते / . क्यङ्।३।४।२६ / कर्तुरुपमानवाचिन आचारार्थे क्यङ्वा भवति / हंस इवाचरति हंसायते / ओजोऽप्सरसः।३।४।२८ / आभ्यां कर्तुरुपमानाभ्यामाचारार्थे क्यङ् भवति वा, सश्च लुक च / ओजस्वीवाचरति ओजायते / अप्सरायते / व्यर्थे भृशादेः स्तोः / 3 / 4 / 29 / कर्तुरुपमानाद् भृशादेर्नाम्नः व्यर्थे क्यङ् वा भवति / यथासम्भवं स्तोः लुक् च / अभूततद्भावव्यर्थः / अभृशो भृशो भवति भृशायते / उन्मनायते / अवेहत् वेहद् भवति वेहायते / कर्तुरित्येव अभृशं भृशं करोति / च्व्यर्थ इति किम् भृशो भवति / डाच-लोहितादिभ्यः पित् / 3 / 4 / 30 / . . डानन्तेभ्यो लोहितादिभ्यश्च कर्तुः च्यर्थे षित् क्य भवति / पटपटायते, पटपटायति / लोहितायते, लोहितायति / Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (218) कर्तुरित्येव अपटपटा पटपटा करोतीत्यत्र न भवति / च्यर्थ इत्येव / लोहितो भवति / . . कष्टकक्षकृच्छ्रसत्रगहनाय पापे क्रमणे / 3 / 4 / 31 / ... एभ्यः पापवृत्तिभ्यः चतुर्थ्यन्तेभ्यः क्रमणेऽर्थे क्यङ् वा भवति / कष्टाय क्रमते कष्टायते / एवं कक्षायते, कृच्छ्रायते, सत्रायते, गहनायते पापायोत्सहत इत्यर्थः / रोमन्थाद् व्याप्यादुचर्वणे / 3 / 4 / 32 / अभ्यवहृतं द्रव्यं रोमन्थः, उद्गीर्य चर्वणमुच्चर्बणम् / अस्मिन्नर्थे रोमन्थात् कर्मणः क्यङ् वा भवति। रोमन्थमुच्चयति रोमन्थायते / उच्चत्रण इति किम् , कीटो रोमन्थं वर्तयति। फेनोष्मबाष्पधूमादुद्रमने / 3 / 4 / 33 / एभ्यः कर्मभ्य उद्वमनेऽर्थे क्यङ् वा भवति / फेनमुद्रुमति फेनायते / ऊष्मायते / बाष्पायते / धूमायते / ..: सुखादेर नुभवे / 3 / 4 / 34 / / सुखादिभ्यः कर्मवाचिभ्योऽनुभवेऽर्थे क्यङ् वा भवति / सुखमनुभवति सुखायते / दुःखायते / शब्दादेः कृतौ वा / 3 / 4 / 35 / . एभ्यः कर्मभ्यः कृतावर्थे क्यङ वा भवति / शब्दं करोति शब्दायते / वैरायते / पक्षे णिच शब्दयति / वैरयति / . .. Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (219) अङ्गाद् निरसने णिङ् / 3 / 4 / 38 / / अङ्गवाचिनः कर्मणो निरसनेऽर्थे णिङ् वा भवति / हस्ते निरस्यति हस्तयते / पुच्छादुत्परिव्यसने / 3 / 4 / 39 / पुच्छात् कर्मण उदसने पर्यसने व्यसने असने चार्थे णिक वा भवति / पुच्छमुदस्यति पर्यस्यति व्यस्यति उत्पुच्छ्यते / परिपुच्छ्यते / विपुच्छयते / पुच्छ्यते / . -- भाण्डात् समाचितौ / 3 / 4 / 40 / भाण्डात् कर्मणः समाचितावर्थे णिङ् वा भवति / भाण्डं समाचिनोति सम्भाण्डयते / एवं परिभाण्डयते / 'परिधानार्जने चीवरादपि वक्तव्यः '. चीवरं परिधत्ते परिचीवरयते / संचीवरयते। तपसः क्यन् / 3 / 4 / 36 / अस्मात् कर्मणः कृतावर्थे क्यन् भवति / तपः करोति तपस्यति / नमोवरिवश्चित्रकोऽर्चासेवाऽऽश्चर्ये / 3 / 4 / 37 / . एभ्यः कर्मभ्यो यथासङ्ख्यमर्चादिषु क्यन् वा भवति / नमःअर्चा करोति नमस्यति / वरिवस्यति विजयधर्मसूरि सिंहः / चित्रं करोति चित्रीयते / क्षुत्तुड्गर्धेऽशनायोदन्यधनायम् / 4 / 3 / 113 / Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (220) एष्वर्थेषु यथासङ्ख्यमेते क्यन्नन्ता निपात्यन्ते / अशनायति। उदन्यति / धनायति / क्षुधादाविति किम् / अशनीयति, उदकीयति, धनीयति दानाय। . वृषावाद् मैथुने स्सोऽन्तः / 4 / 3 / 114 / ___ मैथुनार्थाभ्यामाभ्यां क्यनि स्सोऽन्तो भवति / वृषस्यति / अश्वस्यति / अस् च लौल्ये / 4 / 3 / 115 / लौल्ये गम्ये क्यनि परे नाम्नोऽस सश्चान्तो भवति / लवणस्यति उष्ट्रः। णिज् बहुलं नाम्नः कुगादिषु / 3 / 4 / 42 / - कृगादीनां धातूनामर्थे नाम्नो णिज् बहुलं भवति / मुण्डं करोति मुण्डयति / पटुमाचष्टे पटयति / कृतं गृह्णाति कृतयति / वस्त्रं समाच्छादयति संवस्त्रयति / लवणं करोति लवणयति व्यञ्जनम् / मिभं करोति मिश्रयति धान्यम् / व्रताद् भुजितनिवृत्त्योश्च / 3 / 4 / 43 / . शास्त्रविहितो नियमो व्रतम् / व्रतशब्दाद् मुज्यर्थे तन्निवृत्त्यर्थे च वर्तमानात् कृगादीनामर्थे णिज् बहुलं भवति / पयसा व्रतं करोति पयो व्रतयति पय एवाद्य मया भोक्तव्यं नान्यदिति व्रतं करोतीत्यर्थः / सावद्यान्नस्य व्रतं करोति सावद्यान्नं व्रतयति सावद्यानं मया न मोक्तव्यमित्यर्थः / Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 221) सत्यार्थवेदस्याः / 3 / 4 / 44 / एपां णिसंनियोगे आकारो भवति / सत्यमाचष्टे करोति वा सत्यापयति / अर्थापयति / वेदापयति / श्वेताश्वाश्वतरगालोडिताह्वरकस्याश्वतरेतकलुक्।३ / 4 / 45 / एषां णिच्संनियोगे यथासङ्ख्यमश्वादिशब्दस्य लुग् भवति / श्वेताश्वमाचष्टे करोति वा श्वेतयति / एवम् अश्वयति / गालोडयति / आहरयति / 'प्रियादिशब्दानां णौ प्रादय आदेशा वक्तव्याः / प्रियमाचष्टे प्रापयति, अपिप्रपत् / स्थिरमाचष्टे स्थापयति, अतिठपत् / स्फिरमाचष्टे . स्फापयति, अपिस्फपत् नैकस्वराणामिति निषेधाद् न समानलोपित्वम् / ॐ वरयति / गुरुं गरयति, अजगरत् / बहुलं बंहयति, अबबंहत् / तृपं त्रपयति, अतत्रपत् / दीर्घमाचष्टे द्रावयति, अदद्धत् / वृद्धं वर्षयति, अववर्षत् / वृन्दोरकं वृन्दयति, अववृन्दत् / बाढमाचष्टे साधयति, अससाधत् / अन्तिकं नेदयति, अनिनेदत् / वृद्धं ज्ययति, अजिन्यत् / प्रशस्यं श्रयति अशिश्रत्-एकस्वरत्वान्न लुगिति न समानलोपित्वम् / एवम् अल्पं कनयति, अल्पयति / युवानमाचष्टे कनयति, अचीकनत् वा यवयति, अययवत् / पृथु प्रथयति, अपप्रथत् / मृदुं म्रदयति, अमम्रदत् ।भृशं भ्रशयति, अबभ्रशत् / कृशं क्रशयति, अचक्रशत् / दृढं द्रढयति, अदद्रढत् / परिवृढं परिवढयति, अपपरिवढत् / बहुं भूययति, अवूभुयत् / स्थूलं स्थवयति, अतस्थवत् / दूरं दवयति, अददवत् / Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 222) ह्रस्वं इसयति, अजहूसत् / क्षिप्रं क्षेपयति, अचिक्षेपत् / क्षुद्रं सोदयति, अचुक्षोदत् / पटुं पटयति 'नामिनोऽकलिहलेः' इति कलिहलिवर्जनात् पूर्वं वृद्धौ पश्चाद् औकारलोपेनासमानलोपित्वात् अपीपटत् / ऊढिमाचष्टे ऊढयति, औनिढत् / शूनीमाचष्टे पुंवद्भावाद् / नैकस्वराणाम् ' इति अन्त्यस्वरादिलोपनिषेधाच्च श्वानयति कलिहलिवर्जनाद् नाम्नोऽपि णौ परे वृद्धिः ज्ञापितेति वृद्धिः विद्वांसं विद्वयति, अविविद्वत् / उदञ्चमाचष्टे (उदच् उदीच् ' इत्यत्र णेवर्जनात् उदयति / प्रत्यञ्चं प्रत्ययति / श्रियं श्राययति / गां गवयति / रायं राययति / नावं नावयति, अनूनवत् / स्वः स्वयति अव्ययानामन्त्यस्वरादेर्लोपः / स्रग्विणं स्रनयति, श्रीमन्तं श्राययति, धीमन्तं धाययति णौ, मत्वर्थीययोः विन्मतो क् / पयस्विनीं पययति / त्वामाचष्टे त्वदयति / युवां युष्मान् वाऽऽचष्टे युध्मयति / सध्यञ्चं सध्ययति, अससध्यत् / देवद्यञ्चं देवद्ययति, अदिदेवद्यत् / अदांचं अदययति, अद्यत् / अमुमुयश्चमाचष्टे अमुमुययति, आमुमुययत् / सध्यंचादौ निमित्तापाये नैमित्तिकस्याप्यभावः ' न चिन्त्यते, अन्यथा सहयति वा सवाययति; देवद्राययति, अमुमुआययति इत्यादयो भवेयुः / इति नामधातुप्रक्रिया समाप्ता / Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (223 ) अथ कण्ड्वादिप्रक्रिया। 18tN धातोः कण्ड्वादेर्यक् / 3 / 4 / 8 / एभ्यो धातुभ्यः स्वार्थे यक् प्रत्ययो भवति / कण्डूग् गात्रविवर्षण / कण्डूयति, कण्डूयते / महीङ् पूनायाम् महीयते / मन्तु अपराधे रोषे च मन्तूयति / वल्गु पूजामाधुर्ययोः वल्गूयति / असु असूग उपतापे च असूयति, असूयते / लेट् लोट् धौत्यें दीप्तौ / लेट्यति / लोट्यति / इरस् इरज् इरग् ईर्ष्यार्थाः इरस्यति, इरयति, ईयंति, ईर्यते / उषस् प्रभातीभावे, उपस्यति, वेद् धौत्ये स्वप्ने च वेद्यति / मेधा आशुग्रहणे, मेधायति / कुषुभ् क्षेपे कुषुभ्यति। मगध् परिवेष्टने मगध्यति / नीच दास्ये नीच्यति / तन्तस् पम्पस् दुःखे तन्तस्यति, पम्पस्यति / सुख दुःख तत्क्रियायाम् सुख्यति, दुःख्यति / सपर पूजायाम् सपर्यति / अरर आराकर्मणि अश्यति / भिपज् 'चिकित्सायाम् भिषज्यति / भिष्णन् उपसेवायाम् भिष्णन्यति / इषुध् शरधारणे इषुध्यति / चरण वरण गतौ चरण्यति, वरण्यति / चुरण चौर्ये चुरण्यति / तुरण त्वरायाम् तुरण्यति / मुरण धारणे पोषणे च मुरण्यति / गद्द् वाक्स्खलने गद्गद्यति। एला केला खेला विलासे / एला‘यति, केलायति, खेलायति / लेखा लेख्यति / लिट् अल्पकुत्सनयोः लिट्यति / लाट् जीवने लाट्यति / हणीङ् लज्जा-रोषयोः हृणीयते / रेखा Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 224) श्लाघासादनयोः रेख्यति / द्रवस् परिताप-परिचरणयोः द्रवस्यति / तिरस अन्तधौं तिरस्यति / अगद् नीरोगत्वे अगद्यति / उरस् बलार्थे उरस्यति / तरण गतौ तरण्यति / पयस् प्रसृतौ पयस्यति / सम्भूयस् प्रभूतभावे सम्भूयस्यति / अम्बर् सम्भर संभरणे अम्बर्यति, सम्भर्यति / आकृतिगणोऽयम् / इति कण्वादिगणः समाप्तः। अथ प्रत्ययमाला। कण्डूयितुमिच्छतीति सनि -- सन्यङः' इति एकस्वरस्याद्यवयवस्य द्वित्वे प्राप्ते कण्ड्वादेस्तृतीयः / 4 / 1 / 9 / कण्डवादेर्द्वित्वभाज एकस्वरोंऽशः तृतीय एव द्विर्भवति / कण्डूयियिषति / असूयियिषति / नाम्नो द्वितीयाद् यथेष्टम् / 4 / 1 / 7 / स्वरादेर्नामधातोत्विभाजो द्वितीयादारभ्यैकस्वरोंऽशो यथेष्टं द्विर्भवति / अश्वमिच्छति अश्वीयति / अश्वीयितुमिच्छति अशिश्वीयिषति, अश्वीयियिषति, अश्वीयिषिषति / अन्यस्य / 4 / 1 / / Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (225) व्यञ्जनादेर्नामधातोद्वित्वमाज एकस्वरोंऽशो यथेष्टं प्रथमाद द्विभवति / पुत्रभिच्छति पुत्रीयति, पुत्रीयितुमिच्छति पुपुत्रीयिषति, पुतित्रीयिषति / पुत्रीयियिषति / पुत्रीयिषिषति / यिः सन् वेयः / 4 / 1 / 11 / द्वित्वभान ईर्ण्यः सन् यिश्च वा द्विर्भवति / ईयियिषति / ईयिषिषति / प्रियमाचष्टे प्रापयति, प्रापयितुमिच्छति पिप्रापयिषति, प्रापिपयिषति, प्रापयियिषति, प्रापयिषिति / पुनः पुनः भवन्तमिच्छन्तं प्रयुयुक्षते अर्थात् पुनः पुनः बुभूषन्तं प्रयुयुक्षते इत्यत्र यङ् सन् णिग् सन् इति प्रत्ययचतुष्टयान्तस्य बोभूयिषयिषति : द्वित्वे कृते पुनः द्वित्वं न भवतीत्येकमेव रूपम् / पुनः पुनः भवन्तं प्रयुयुक्षते इति यङ्गिच्सन्नन्तस्य बोभूययिषति / इति तिवाद्यन्तप्रत्ययमाला समाप्ता / Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 226) अथ पदविभागप्रक्रिया। पराणि कानानशौ चात्मनेपदम् / 3 / 3 / 20 / सर्वविभक्तीनां पराणि नव नव वचनानि कानानशौ चात्मनेपदानि भवन्ति / ते, आते, अन्ते / से, आथे, ध्वे / ए, वहे, महे इत्यादयः / ___ इडितः कर्तरि / 3 / 3 / 22 / इदितो ङितश्च धातोः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / एधते / एधमानः / शेते / शयानः / क्रियाव्यतिहारेऽगतिहिंसाशब्दार्थहसोहबहचान न्योन्यार्थे / 3 / 3 / 23 / अन्यस्य कर्तुमिच्छाविषयीभूतायाः क्रियाया अन्येन करणं क्रियाव्यतिहारः / तदर्थाद् गतिहिंसाशब्दार्थहसवर्जिताद् हवहिभ्यां च, कर्तर्यात्मनेपदं भवति, न तु अन्योन्येतरेतरपरस्परशब्दयोगे। क्रियाव्यतिहारश्च व्यतिना द्योत्यते इति व्यती प्रयोक्तव्यौ / व्यतिलुनते / व्यतिहरन्ते / व्यतिवहन्ते / गत्यादिवर्ननं - किम् ? व्यतिसर्पन्ति, व्यतिहिंसति, व्यतिजल्पन्ति / अनन्योन्यार्थ इति किम् ?-परस्परं व्यतिलुनन्ति / / Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 227) निविशः।३।३।२४ / निपूर्वाद् विशेरात्मनेपदं भवति / निविशते / उपसर्गादस्योहो वा / 3 / 3 / 25 / उपसर्गपूर्वाभ्यामाभ्यां कर्तर्यात्मनेपदं वा भवति। विपर्यस्यति, विपर्यस्यते / समूहति, समूहते / उत्स्वराद् युजेरयमतत्पात्रे / 3 / 3 / 26 / उत्पूर्वात् स्वरान्तोपसर्गपूर्वाञ्च युजेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, न चेद् यज्ञे यत् पात्रं तद्विषयो युज्धात्वर्थः / उद्युङ्क्ते / उपयु ङ्क्ते / उत्स्वरादिति, किम् ? संयुनक्ति। अयज्ञतत्पात्र इति किम् ! द्वन्द्वं यज्ञपात्राणि प्रयुनक्ति / परिव्यवात् क्रियः / 3 / 3 / 27 / एभ्यः क्रियः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / परिक्रीणीते / विक्रीजीते / अवक्रीणीते / उपसर्गादित्येव उपरि क्रीणाति / परावेर्जेः / 3 / 3 / 28 / आभ्यां परात् जयतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / पराजयते / विजयते / उपसर्गादित्येव बहुवि जयति वनम् / समः क्ष्णोः / 3 / 3 / 29 / .. सम्पूर्वात् क्ष्णौतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / संक्ष्णुते शस्त्रम् / समिति किम् ? क्ष्णौति / उपसर्गादित्येव आयसं क्ष्णौति / Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (228) अपस्किरः / 3 / 3 / 30 / अपात् किरतेः सस्सट्कात् कर्तर्यात्मनेपदं भवति / अपाच्चतुष्पात्पक्षिशुनि हृष्टान्नाश्रयार्थे / 4 / 4 / 95 / अपपूर्वात् किरतेः चतुष्पदि पक्षिणि शुनि च कर्तरि यथासङ्ख्यं हृष्टे अन्नार्थिनि आश्रयार्थिनि चार्थे स्पडादिर्भवति / अपस्किरते गौः हृष्टः, कुक्कुटो अन्नार्थी, या आश्रयार्थी च / वौ विष्किरो वा / 4 / 4 / 96 / - पक्षिणि वाच्ये विपूर्वात् किरतेः स्सडादिर्वा भवति। विष्किरः, विकिरो वा। प्रात तुम्पतेर्गवि / 4 / 4 / 97 / प्रपूर्वात तुम्पतेः गवि कर्तरि स्सडादिर्भवति / प्रस्तुम्पति गौः। उदश्वरः साप्यात् / 3 / 3 / 31 / - उत्पूर्वात् साप्यात् चरतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / मार्गम् / उच्चरते साप्यादिति किम् ? धूम उच्चरति / समस्तृतीयया / 3 / 3 / 32 / तृतीयान्तेन योगे सति सम्पूर्वाच्चरतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / अश्वेन संचरते। क्रीडोऽकूजने / 3 / 3 / 33 / कूजनमव्यक्तशब्दः, ततोऽन्यार्थात् संपूर्वात् क्रीडतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / संक्रीडते / समित्येव क्रीडति / अकूजन इति किम् संक्रीडन्ति शकटानि / Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (229) अन्वाङ्परेः / 3 / 3 / 34 / एभ्यः क्रीडतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / अनुक्रीडते / आक्रीडते / परिक्रीडते। शप उपलम्भने / 3 / 3 / 35 / .. उपलम्भनं प्रकाशनं शपथो वा। तदर्थात् शपतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / मैत्राय शपते शपथपूर्व स्वाभिप्राय मैत्रं ज्ञापयतीत्यर्थः / उपलम्भने इति किम् ? मैत्रं शपति। . आशिषि नाथः / 3 / 3 / 36 / . आशिष्येव नाथधातोः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, नान्यत्र / सर्पिः नाथते सर्पिर्मे भूयादित्याशास्ते / आशिषोऽन्यत्र नाथति ईष्टे इत्यर्थः, याचते, उपतापयति वा। भुनजोऽत्राणे / 3 / 3 / 37 / अपालनार्थाद् भुनक्तेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / ओदन मुङ्क्ते / भुनन इति किम् ? ओष्ठौ निर्भुजति / अत्राण इति किम् ? महीं मुनक्ति / हृगो गतताच्छील्ये / 3 / 3 / 38 / गतं सादृश्य, ताच्छील्यं तत्स्वभावता सदृशतत्स्वभाव इत्यर्थः, स्तत्र वर्तमानाद् हृगः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / पैतृकम् अश्वा अनुहरन्ते पितुरागतं सादृश्यं शीलयन्तीत्यर्थः। मातृकं गावोऽनुहरन्ती Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (230) गत इति किम् पितुः हरति चोरयतीत्यर्थः / ताच्छील्यादिति किम् नटो राममनुहरति / कृष्णमनुहरति / पूजाऽऽचार्यकभृत्युत्क्षेपज्ञानविगणनव्यये नियः / 3 / 3 / 39 / पूनादिषु गम्यमानेषु नयतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / नयते विद्वान् स्याद्वादे / माणवकमुपनयते / कर्मकरान उपनयते। शिशुमुदानयते नयते तत्त्वार्थे / कारं विनयन्ते मद्राः / शतं विनयते / एष्विति किम् अजां नयति / ' कर्तृस्थामूर्ताऽऽप्यात् / 3 / 3 / 40 / कर्तृस्थममूर्तमाप्यं कर्म यस्य तस्माद् नयतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / श्रमं विनयते / कर्तृस्थेति किम् ? शैत्रो वैष्णवस्य मन्यु विनयति / अमूर्तेति किम् ? श्लेष्माणं विनयति / आप्य इति किम् ? बुद्ध्या विनयति। शदः शिति / 3 / 3 / 41 / शिद्विषयाच्छंदेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / शीयते / शितीति किम् ? शेत्स्यति / म्रियतेरद्यतन्याशिषि च / 3 / 3 / 42 / अद्यतनीविषयादाशीविषयाच्छिद्विषयाच म्रियतेः कर्तर्यात्म नेपदं भवति / अमृत अमृषाताम् अमृषत / मृषीष्ट / म्रियते / नियेत / म्रियताम् / अनियत / अन्यत्र ममार / Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 231) क्यक्षो नवा / 3 / 3 / 43 / क्यमन्तात् कर्तयात्मनेपदं वा भवति / लोहितायति, लोहितायते / निद्रायति, निद्रायते / युद्भयोऽद्यतन्याम् / 3 / 3 / 44 / द्यतादिभ्योऽद्यतन्यां कर्तर्यात्मनेपदं वा भवति / व्यातत् , व्यद्योतिष्ट / अरुचत् , अरोचिष्ट / अघुटत् , अघोटिष्ट / अरुटत् , अरोटिष्ट। अलुटत् , अलोटिष्ट। अश्वितत् , अश्वेतिष्ट / अमिदत्, अमेदिष्ट / अश्विदत् , अश्वेदिष्ट / अस्विदत्, अस्वेदिष्ट / अशुभत् , अशोभिष्ट / / अशुभत् , अक्षोभिष्ट / अनभत् , अनभिष्ट / अतुभत्, अतुम्भिष्ट / अत्रभत् , अस्त्रम्भिष्ट / अध्वसत् , अध्वंसिष्ट / अभ्रशत् , अभ्रंशिष्ट / अवृतत् , अवतिष्ट / अस्यदत् , अस्यन्दिष्ट / अवृधत् , अवर्धिष्ट / अश्वत् , अशर्धिष्ट / अक्लपत् , अकल्पिष्ट / . वृद्भयः स्यसनोः / 3 / 3 / 45 / वृतादेः पञ्चतः स्यादौ प्रत्यये सनि च विषये कर्तर्यात्मनेपदं वा भवति / वय॑ति, . वर्तिष्यते / स्यन्त्स्यति, स्यन्दिष्यते, स्यन्त्स्यते / वर्ण्यति, वर्धिष्यते / शय॑ति, शर्धिष्यते / कल्पस्यति, कल्पिष्यते / कृपः श्वस्तन्याम् / 3 / 3 / 46 / Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 232) श्वस्तनीविषये कृपेः कर्तर्यात्मनेपदं वा भवति / कल्प्तासि, कल्पितासे। क्रमोऽनुपसर्गात् / 3 / 3 / 47 / - अविद्यमानोपसर्गात् क्रमेः कर्तर्यात्मनेपदं वा भवति / क्रमते, कामति / उपसर्गात्तु संक्रामति / .. वृत्तिसर्गतायने / 3 / 3 / 48 / वृत्तिरप्रतिबन्धः, सर्गः उत्साहः, तायनं स्फीतता / एतदर्थात् क्रमेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / क्रमतेऽस्य बुद्धिः शास्त्रे अप्रतिहता सती शास्त्रमवगाहत इत्यर्थः / सूत्राय क्रमते उत्सहत इत्यर्थः / क्रमन्तेऽस्मिन् योगा वर्धन्त इत्यर्थः / , परोपात् / 3 / 3 / 41 / - आभ्यामेव परात् वृत्त्याद्यर्थात् क्रमेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / पराक्रमते / उपक्रमते / अन्यत्र तु अनुक्रामति / वृत्त्यादावित्येव पराक्रामति / वेः स्वार्थे / 3 / 3 / 50 / स्वार्थः पादर्विक्षेपस्तदर्थात् विपूर्वात् क्रमः कर्तर्यात्मनेपदं भवति। साधु विक्रमते गजः / स्वार्थ इति किम् ? गजेन विक्रामति। प्रोपादारम्भे / 3 / 3 / 51 / . आरम्भार्थात् प्रपूर्वात् क्रमः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / भोक्तुं प्रक्रमते / उपक्रमते / आरम्भ इत्येव प्रक्रामति गच्छतीत्यर्थः / Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (233) आङो ज्योतिरुद्गमे / 3 / 3 / 52 / चन्द्राद्युद्गमार्थादाङ्पूर्वात् क्रमेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति। आक्रमते चन्द्रः सूर्यो वा / ज्योतिरुद्गम इति किम् ? आक्रामति कुतुपं बटुः / दागोऽस्वास्यप्रसारविकाशे / 3 / 3 / 53 / स्वास्यप्रसारविकाशादन्यत्रार्थे वर्तमानाद् दागः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / आदत्ते विद्याम् / स्वास्यप्रसारविकाशवर्जनं किम् ? उष्ट्रो मुखं व्याददाति / कूलं व्याददाति / नु-प्रच्छः / 3 / 3 / 54 / आङपूर्वाभ्यामाभ्यां कर्तर्यात्मनेपदं भवति। आनुते शृगालः / आपृच्छते गुरून् / . गमेः शान्तौ / 3 / 3 / 55 / कालहरणार्थादाङपूर्वाद् गमेः कतर्यात्मनेपदं भवति / आगमयते गुरुम्-कंचित् कालं प्रतीक्षते / क्षान्ताविति किम् ? विद्यामागमयति / ह्वः स्पर्धे / 3 / 3 / 56 / आङ्पूर्वाद् ह्वयतेः स्पर्धे गम्ये कर्तर्यात्मनेपदं भवति / मल्लो . मल्लमाहूयते / संनिवेः / 3 / 3 / 57 // Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 234 ) एभ्यो हुयतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / संहुयते / निहुयते / विहयते / उपात् / 3 / 3 / 58 / उपाद् हुयतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / उपहयते / यमः स्वीकारे, / 3 / 3 / 59 / उपपूर्वाद् यमेः स्वीकारेऽर्थे कर्तर्यात्मनेपदं भवति / उपयच्छते कन्याम् / उपायस्त महास्त्राणि। विनिर्देशात् शाटकान् उपयच्छति। देवार्चामैत्रीसंगमपथिकर्टकमन्त्रकरणे स्थः / 3 / 3 / 60 / एषुः वर्तमानादुपपूर्वात् तिष्ठतेः कार्यात्मनेपदं भवति / जिनेन्द्रमुपतिष्ठते / पथिको रथिकान् उपतिष्ठते / याना गङ्गामुपतिष्ठते, / वाराणस्यामुपतिष्ठते पन्थाः / ऐन्या ऋचा गार्हपत्यं नाम कुण्डमुपतिष्ठते / 'उपाल्लिप्सायां वा वाच्यम्' / दातृकुलमुपतिष्ठते उपतिष्ठति वा भिक्षुकः / उदोऽनूहे / 3 / 3 / 62 / ईहा चेष्टा, अनू; या चेष्टा तदर्थात् उत्पूर्वात् तिष्ठते: कर्तर्यात्मनेपदं भवति / मोक्षे उत्तिष्ठते / अनूइँह इति किम् ? आसनादुत्तिष्ठति / 'संविप्रावेभ्योऽपि वाच्यम्' संतिष्ठते, वितिष्ठते, प्रतिष्ठते, अवतिष्ठते / ज्ञीप्सा-स्थेये 3 / 3 / 64 / . Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 235) ... झीप्सा आत्मप्रकाशनम् , स्थेयः सभ्यः / ज्ञीप्सायां स्थेये च विषये स्थाधातोः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / तिष्ठते कन्या च्छा. त्रेभ्यः / त्वयि तिष्ठते विवादः / प्रतिज्ञायाम् / 3 / 3 / 65 / - एतदर्थे स्थाधातोः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / नित्यं शब्दमातिष्ठन्ते वैयाकरणाः। समो गिरः। 3 / 3 / 66 / सम्पूर्वाद् गिरतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, प्रतिज्ञायाम्। स्याद्वाद संगिरन्ते जैनाः / 'अवादपि वक्तव्यम्' अवगिरते। निह्नवे ज्ञः / 3 / 3 / 68 / निह्नवोऽपलापः, तवृत्ताधातोः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / शतमपजानीते। संप्रतेरस्मृतौ / 3 / 3 / 69 / . स्मृतेरन्यार्थात् संप्रतिभ्यां परात् ज्ञाधातोः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / अनेकान्तं संजानीते, प्रतिमानीते / स्मृतौ तु मातु: संजानाति / - अननोः सनः / 3 / 3 / 70 / सन्नन्ताद् ज्ञाधातोः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, न तु अनुपूर्वात् / धर्म निज्ञासते / अननोरिति किम् ? धर्ममनुनिज्ञासति / / श्रुवोऽनाङ्-प्रतेः / 3 / 3 / 71 / / Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (23.6) सन्नन्तात् शृणोतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, न तु आङप्रतिपूर्वात् / गुरुं शुश्रूषते / अनाङ्मतेरिति किम् ? आशुश्रषति / प्रतिशुश्रूषति / स्मृदृशः / 3 / 3 / 72 / - आभ्यां सन्नन्ताभ्यां कर्तर्यात्मनेपदं भवति / सुस्मूर्षते / दिदृक्षते / ___ शको जिज्ञासायाम् / 3 / 3 / 73 / जिज्ञासायां वर्तमानात् सन्नन्तात् शके: कर्तर्यात्मनेपदं भवति। 'विद्यां शिक्षते / जिज्ञासायामिति किम् ? शिक्षति / प्राग्वत् / 3 / 3 / 74 / सन्प्रत्ययात् पूर्वो यो धातुस्तस्मादिव सन्नन्तात् कर्तर्यात्मनेपदं भवति / शिशयिषते / अश्वेन संचिचरिषते / आमः कृगः / 3 / 3 / 75 / आमः परादनुप्रयुक्तात् कृग आम एव प्राग् यो धातुस्तस्मादिव कर्तर्यात्मनेपदं भवति / स्याच्च न स्यादिति विधिनिषेधौ / ईहाञ्चक्रे / बिभराञ्चक्रे, बिभराञ्चकार / कृग इति किम् ? ईक्षामास, ईक्षाम्बभूव / गन्धनावक्षेपसेवासाहसप्रतियत्नप्रकथनोपयोगे। 3 / 3.176 / एतदर्थात् करोतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / गन्धनं द्रोहेण 'परदोषोद्घाटनमुत्कुरुते / अवक्षेपः कुत्सनम्-दुर्वृत्तानवकुरुते / Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (227) सेवा महामात्रानुपकुरुते / साहसमविचार्य प्रवृत्तिः परदारान् प्रकुरुते / प्रतियत्नः गुणान्तराधानमेधोदकमुपस्कुरुते / प्रकथनम् परापवादान् प्रकुरुते / उपयोगो धर्मादिषु विनियोगः शतं प्रकुरुते / अधेः प्रसहने / 3 / 3 / 77 / .. प्रसहने वर्तमानादधेः परात् कृगः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / प्रसहनं परेणाभिभवः, परस्य पराजयो वा / तं हा अधिचक्रे / प्रसहनं किम् ? तमधिकरोति / दीप्तिज्ञानयत्नविमत्युपसंभाषणोपमन्त्रणे वदः / 3 / 3 / 78 / ___ एषु गम्यमानेषु वदतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति / दीप्तिर्भासनं विद्वान् वदते स्याद्वादे / ज्ञाने धीमान् तत्त्वार्थे वदते / यत्ने तपसि वदते / नानामतिः विमतिः धर्मे विवदन्ते / उपसंभाषणमुपसान्त्वनं कर्मकरानुपवदते / उपमन्त्रणं रहस्युपच्छन्दनं कुलभार्यामुपवदते / . व्यक्तवाचा सहोक्तौ / 3 / 3 / 79 / ... __ व्यक्तवाचो रूड्या मनुष्यादयः तेषां सम्भूयोच्चारणार्थाद वदतेः कर्तर्यात्मनेदं भवति / सम्प्रवदन्ते ग्राम्याः / व्यक्तवाचामिति किम् ? शुकाः संप्रवदन्ति / 'विवादे वा वाच्यम्' विप्रवदन्ते, विप्रवदन्ति वा मौहूर्तिकाः। . .. .. . अनोः कर्मण्यसति / 3 / 3 / 81 / . . व्यक्तवाचामर्थे वर्तमानादनुपूर्वाद् वदतेः कर्मण्यसति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / अनुवदते। कर्मण्यमतीति किम् ? उक्तमनुवदति। Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (238) ज्ञः / 3 / 3 / 82 / / जानातेः कर्मण्यसति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / सर्पिषो जानीते। कर्मण्यसतीत्येव तैलं सर्पिषो जानाति / उपात् स्थः / 3 / 3 / 83 / - उपपूर्वात् तिष्ठतेः कर्मण्यसति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / योगे योगे उपतिष्ठते / कर्मणि तु राजानमुपतिष्ठति / समो गमृच्छिपच्छिश्रुवित्स्वरत्यतिदृशः। 3 / 3 / 84 / ___ सम्पूर्वेभ्य एभ्यः कर्मण्यसति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / संगच्छते / समृच्छते / सम्पृच्छते / संशणुते / संवित्ते / संस्वरते / समियते / सम्पश्यते / कर्मणि सति तु मैत्रं संगच्छति / / वेः कृगः शब्दे चानाशे / 3 / 3 / 85 / अनाशार्थाद् विपूर्वाद् कृगः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, कर्मण्यसति शन्दे च कर्मणि / विकुर्वते सैन्धवाः / क्रोष्टा स्वरान् विकुरुते / शब्दे चेति किम् मृदं विकरोति / अनाश इति किम् ? अध्याय विकरोति / आङो यमहनः स्वेऽङ्गे च / 3 / / / 86 / आङ्पाभ्यां यम्हन्भ्यां कर्मण्यसति स्वेऽङ्गे च कर्मणि कर्तर्यात्मनेपदं भवति / आयच्छते, आहते / आयच्छते आहते चा पादम् / स्वेऽङ्गे चेति किम् ? आयच्छति रन्जुम् / Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (239) * व्युदस्तपः / 3 / 3 / 87 / . आभ्यां तपतेः कर्मण्यसति स्वेऽङ्गे च कर्मणि कर्तर्यात्मनेपदं भवति / वितपते, उत्तपते सूर्यः / वितपते, उत्तपते पाणिम् / प्रलम्भे गृधि-वञ्चः / 3 / 3 / 89 / आभ्यां णिगन्ताभ्यां प्रलम्भने वर्तमानाभ्यां कर्तर्यात्मनेपर्द भवति / बटुं गर्धयते वञ्चयते वा / प्रलम्भ इति किम् ? श्वानं गर्धयति। लीङ्लिनोऽर्चाभिभवे चाचाकर्तर्यपि / 3 / 3 / 90 / अभिभव-प्रलम्भनार्थाभ्यामाभ्यां कर्तर्यात्मनेपदं भवति / आकारश्चानयोरकर्तर्यपि भवति / रजोहरणेन आलापयते / श्येनः वर्तिकामपलापयते / कस्त्वामुल्लापयते / स्मिङः प्रयोक्तुः स्वार्थे / 3 / 3 / 91 / प्रयोक्तृतो यः स्वार्थः स्मयः, तदर्थाद् णिगन्तात् स्मिकः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, आञ्चाकर्तर्यपि / जटिलो विस्मापयते / प्रयोक्तु: स्वार्थ इति किम् ? रूपेण विस्माययति / बिभेतीष् च / 3 / 3 / 92 / प्रयोक्तुः यः स्वार्थस्तदर्थाद् णिगन्ताद् बिभेतेः कर्तर्यात्मनेपदं भवति, आञ्चाकर्तर्यपि, पक्षे भीषादेशः। मुण्डो भीषयते, भापयते / स्वार्थ इत्येव कुञ्चिकया भाययति / मिथ्याकृगोऽभ्यासे / 3 / 3 / 93 / Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (240) मिथ्यायुक्ताद् णिगन्तात् कृगः क्रियाभ्यासे कर्तर्यात्मनेपदं भवति / पदं मिथ्या कारयते। मिथ्येति किम् ? पदं साधु कारयति / अभ्यास इत्येव सकृत् पदं मिथ्या कारयति / परिपुहायमायसपाट्धेवदवसदमादरुचनृतः फलमति / 3 / 3 / 94 / एभ्यो णिगन्तेभ्यः फलवति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / परिमोहयते चैत्रम् / आयामयते सर्पम् / आयासयते जिनदत्तम् / पाययते शिशुम् / धापयते बटुम्।वादयते शिशुम् / वासयते पान्थम् / 'दमयते अश्वम् / आदयते चैत्रेण / रोचयते मैत्रम् / नर्तयते नटम् / ईगितः / 3 / 3 / 95 / ईदितो गितश्च धातोः फलवति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / यनते। कुरुते / फलवतीत्येव यजति पराय / पचन्ति देवदत्ताय / ज्ञोऽनुपसर्गात् / 3 / 3 / 96 / ज्ञाधातोः फलवति कर्तर्यात्मनेपदं भवति, न तूपसर्गपूर्वात् / गां जानीते / फलवतीत्येव परस्य गां जानीते / - वदोऽपात् / 3 / 3 / 97 // अपपूर्वाद् वदधातोः फलवति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / एकान्तमपवदते / फलवतीत्येव स्वभावात् परमपवदति / समुदाडो यमेरग्रन्थे / 3 / 3 / 98 / Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (241) एभ्यः पराद् यमः अग्रन्थविषये फलवति कर्तर्यात्मनेपदं भवति / संयच्छते व्रीहीन् / उद्यच्छते भारम् / आयच्छते वस्त्रम्। अग्रन्थ इति किम् ? चिकित्सामुद्यच्छति / फलवतीत्येव संयच्छति। पदान्तरगम्ये वा / 3 / 3 / 99 / . प्रक्रान्तसूत्रपञ्चके यदात्मनेपदमुक्तं तत्र फलवत्कर्तृकत्वं यदि पदान्तरेण बोध्यते तदाऽऽत्मनेपदं वा भवति / स्वं शत्रु परिमोहयति, परिमोहयते वा। स्वं यज्ञं यजति, यजते वा / स्वं गां जानाति, जानीते वा। स्वं शत्रुमपवदति, अपवदते वा / स्वान् ब्रीहीन संयच्छति, संयच्छते वा। इत्यात्मनेपदप्रक्रिया। अथ परस्मैपदप्रक्रिया / शेषात् परस्मै / 3 / 3 / 100 / - एभ्यो धातुभ्यो येन विशेषेणात्मनेपदमुक्तं ततोऽन्यस्माद् धातोः कर्तरि परस्मैपदं भवति / भवति / पिबति / धयति / अत्ति / जुहोति / दीव्यति / तुदति / सुनोति / रुणद्धि / चोरयति / परानोः कृगः।३।३ / 101 / परानुपूर्वात् कृगः कर्तरि परस्मैपदं भवति / पराकरोति / अनुकरोति / . . . . 16 Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 242) प्रत्यभ्यतेः क्षिपः / 3 / 3 / 102 / एभ्यः परात् क्षिपेः कर्तरि परस्मैपदं भवति / प्रतिक्षिपति / अभिक्षिपति / अतिक्षिपति बटुम् / माद् वहः / 3 / 3 / 103 / / अस्मात् कर्तरि परस्मैपदं भवति / प्रवहति / परेमषश्च / 3 / 3 / 104 / परिपूर्वात् मृषेः वहेश्च कर्तरि परस्मैपदं भवति / परिमृष्यति। परिवहति / व्याङ्परे रमः / 3 / 3 / 105 / एभ्यो रमतेः कर्तरि परस्मैपदं भवति / विरमति / आरमति। परिरमति / ' उपाद् वा वक्तव्यम् ' उपरमते, उपरमति भार्याम् / अणिगि प्राणिकर्तृकानाप्याणिगः / 3 / 3 / 107 / ___ अणिगवस्थायां यः प्राणिकर्तृकोऽकर्मकश्च धातुः तस्माद णिगन्तात् कर्तरि परस्मैपदं भवति / आसयति चैत्र मैत्रः / अणिगीति किम् ? स्वयमेवारोहयमाणं गजं प्रयुङ्क्ते आरोहयते / अणिगीति गकारः किम् ? चेतयमानं प्रयुङ्क्ते चेतयति / प्राणिकर्तृकादिति किम् ? आतपो व्रीहीन शोषयते / अनाप्यादिति / किम् ? कटं कारयते / चल्याहारार्थेबुधयुधमुद्रसुनशजनः / 3 / 3 / 108 / Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (243) चल्याहारार्थेभ्य इडादिभ्यश्च णिगन्तेभ्यः कर्तरि परस्मैपदं भवति / चलयति / कम्पयति / भोजयति, आशयति चैत्रमन्नं मैत्रः / सूत्रमध्यापयति शिष्यम् / रविः पद्मं बोधयति / योधयति / प्रावयति / द्रावयति / स्रावयति / नाशयति / जनयति / इति पदविभागप्रक्रिया समाप्ता / अथ भावकर्मप्रक्रिया। -news क्यः शिति / 3 / 4 / 70 / भावकर्मविहिते शिति प्रत्यये परे धातुभ्यः क्यः प्रत्ययो भवति / तत्साप्यानाप्यात् कर्मभावे कृत्यक्तखलाश्च / 3 / 3 / 21 / तदित्यात्मनेपदं कृत्यक्तखलाश्च प्रत्ययाः सकर्मकाद् धातोः कर्मणि, अकर्मकादविवक्षितकर्मकाच्च भावे भवन्ति / कर्मणि तु युष्मदस्मद्भ्यां सामानाधिकरण्यसम्भवाद् एक-द्वि-बहुवचनादि युष्मदस्मत्सम्बन्धि भवति, भावे तु युष्मदस्मद्भ्यामसामानाधिकरण्यात् अन्यसम्बन्धी एव प्रत्ययस्तत्रापि क्रियायाः प्राधान्यात् तस्याश्चैकत्वाद्भावे एकवचनमेव / 'रिः शक्याशीर्ये ' इति रिः क्रियते कटः चैत्रेण / गम्यसे त्वं मैत्रेण। शय्यते मैत्रेण इत्यादीनि उदाहर्तव्यांनि / क्रियेते क्रियन्ते / क्रियेत / क्रियताम् / अक्रि Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (244) यत / भूयते त्वया / भूयेते भूयन्ते / भूयेत / भूयताम् / अभूयत / चक्रे चक्राते चक्रिरे / चकृषे चकृट्वे / स्वरग्रहदशहन्भ्यः स्यसिजाशीःश्वस्तन्यां बिट् वा / / 3 / 4 / 69 / स्वरान्ताद् ग्रहादेश्च धातोः भावकर्मविहितासु स्यमिजाशी:श्वम्तनीषु परासु भिड् वा भवति / कारिषीष्ट, कृषीष्ट / कारिता, कर्ता / कारिष्यते, करिष्यते / अकारिष्यत, अकरिष्यत / बभूवे / भाविषीष्ट, भविषीष्ट / भाविता, भविता / भाविष्यते, भविष्यते / अभाविष्यत, अभविष्यत / . भावकर्मणोः / 3 / 4 / 68 / भावकर्मविहितेऽद्यतन्याः सम्बन्धिनि ते परे धातोः मिच भवति, तस्य च लुक् / अकारि अकारिषाताम् , अकृषाताम् अकारिषत, अकृषत / अकारिष्ठाः, अकृथाः / अभावि अभाविषाताम् , अभविषाताम् अभाविषत, अभविषत। गृह्यते / गृह्येत / गृह्यताम् / अगृह्यत / जगृहे / ग्राहिषीष्ट, ग्रहीषीष्ट / आहिता, ग्रहीता / ग्राहिप्यते, ग्रहीष्यते / अग्राहिष्यत, अग्रहीध्यत / अग्राहि अग्राहिषाताम् , अग्रहीषाताम् / दृश्यते / दृश्येत / दृश्यताम् / अदृश्यत / ददृशे / दर्शिषीष्ट, द्रक्षीष्ट / दर्शिता, द्रष्टा / दर्शिष्यते, द्रक्ष्यते / अदर्शिष्यत, अद्रक्ष्यत / अदर्शि अदर्शिषाताम् , अदृक्षाताम् / हन्यते / हन्येत / Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (245) हन्यताम् / अहन्यत / जघ्ने जघ्नाते जघ्निरे। घानिषीष्ट, यधिषीष्ट / घानितासे, हन्तासे / घानिष्यते, हनिष्यते / अघानिष्यत , अहनिष्यत / बिणवि घन / 4 / 3 / 101 / भिणवि परे हन्तेर्घनादेशो भवति। अघानि / अघानिषाताम्, * अद्यतन्यां वा त्वात्मने ' इति वा वधादेशे अवधिषाताम् पक्षे अहसाताम् / 'अकर्मका अपि सोपसर्गाः सकर्मका भवन्ति स्वामिना सुखमनुभूयते / लज्जाद्या धातवोऽकर्मकास्तदुक्तम्--- लज्जासत्तास्थितिजागरणं वृद्धिक्षयभयजीवितमरणम् / शयनक्रीडारचिदीप्त्यर्थ धातुगणं तमकर्मकमाहुः" // 1 // __लक्षणं त्वेतेषां फलव्यापारयोराधाराभेदेऽकर्मकत्वमाधारभेदे च सकर्मकत्वम् , तदुक्तम्--- " फलव्यापारयोरेकनिष्ठतायामकर्मकः / धातुस्तयोधर्मिभेदे सकर्मक उदाहृतः" // 2 // अन्यच" धातोरान्तरे वृत्तेर्धात्वर्थेनोफ्संग्रहात / . .. .......... ..प्रसिद्धरविवक्षातः कर्मणोऽकर्मिका क्रिया" // 3 ॥____एवं च लक्षणमभ्यूह्य सकर्मकत्वमकर्मकत्वं च धातोर्वेदिता व्यमिति / Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 246 ) विङति यि शय् / 4 / 3 / 105 / ' किति ङिति च यादौ प्रत्यये शीधातोः शयादेशो भवति / शय्यते / शय्येत / शय्यताम् / अशय्यत / शिश्ये / शायिषीष्ट, शयिषीष्ट / शायितासे, शयितासे / शायिष्यते, शयिष्यते / अशायिष्यत, अशयिष्यत / अशायि अशायिषाताम् , अशयिषाताम् अशायिषत, अशयिषत / अशायिष्ठाः, अशयिष्ठाः / भङ्ग्-भज्यते / अभन्यत। ___ भनौं वा / 4 / 2 / 48 / भञ्जनौं परे उपान्त्यस्य नो लुग् वा भवति / अभानि, अभञ्जि / अभञ्जिषाताम् , अभासाताम् वेट्त्वात् / जन्धातोः ये नवा / 4 / 2 / 62 / सनखनजनां ये क्ङिति परे आकारो वा भवति / जायते, जन्यते / जायेत, जन्येत / जायताम् , जन्यताम् / अजायताम् / अजन्यताम् / सायते, सन्यते / सायेत, सन्येत / सायताम् , सन्यताम् / असायत, असन्यत / खायते, खन्यते / खायेत, खन्येत / खायताम , खन्यताम् / अखायत, अखन्यत / जज्ञे / अननि अजनिषाताम् / सेने / असनि असनिषाताम् / चल्ने / अखानि अखानिषाताम् / तनः क्ये / 4 / 2 / 63 / Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (247) तन्धातोः क्ये परे आत्त्वं वा भवति / तायते, तन्यते / तायेत, तन्येत / तायताम् , तन्यताम् / अतायत, अतन्यत / अतानि / भाव्यते / भाव्येत / भाव्यताम् / अभाव्यत / भावयाचक्रे, भावयाम्बभूवे / अस्तेः सि हस्त्वेति / 4 / 3 / 73 / अस्तेः सकारस्य सादौ प्रत्यये परे लुग् , एति परे तु सस्य हो भवति / भावयामाहे भावयामासाते भावयामासिरे / भावयिषीष्ट, भाविषीष्ट / भावयितासे, भावितासे / भावयिष्यते, भाविष्यते / अभावयिष्यत, अभाविष्यत / अभावि अभावयिपाताम् , अभाविषाताम् / सन्नन्तात् बुभूष्यते / बुभूष्येत / बुभ्रष्यताम् / अबुभूष्यत / बुभूषाञ्चके / अबुभूषि / यङन्तात् बोभूय्यते / बोभूय्येत / बोभूय्यताम् / अबोभूय्यताम् / बोभूया. चक्रे / अबोभूयि / यलगन्ताद् बोभूयते / बोभूयेत / बोभूयताम् / अबोभूयत / बोभवाञ्चक्रे / बोभाविषीष्ट, बोभविषीष्ट / अबोभावि / स्तूयते / अस्तावि / ऋधातोः- क्ययङाशीये . . इति गुणे अर्यते / आर्यत / आरे। आरिषीष्ट, ऋषीष्ट / आरितासे, अर्तासे / आरिष्यते, अरिष्यते / आरि / स्मर्यते / स्मारिता, स्मर्ता / इज्यते / ईजे / यक्षीष्ट / यष्टासे / अयानि / ... तपेः कत्रनुतापे च / 3 / 4 / 91 / तपेः कर्मकर्तरि कर्तरि अनुतापे च त्रिच न भवति / Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (248) अन्ववातप्त कितवः स्वयमेव / साधुः तपांसि अतप्त / चैत्रेण अन्वतप्त / अन्ववातप्त पापः कर्मणा / अन्यत्र अतापि पृथ्वी राज्ञा / आदन्तानां धातूनाम् ' आत ऐः कृऔ ' इत्यनेनैकारे आयादेशे च अदायि अदायिषाताम् , अदिषाताम् 'इश्च स्थादः' इतीः / दायिषीष्ट, दासीष्ट / दायिता, दाता / धीयते / धीयेत / धीयताम् / अधीयत / अधायि, अधायिषाताम् , अधिषाताम् / धायिषीष्ट, धासीष्ट / शम्यते / शम्येत / शम्यताम् / अशम्यत / अशमि 'मोऽकमि' इत्यादिना निषेधात् न वृद्धिः / ण्यन्तस्य तु 'शमोऽदर्शने' इति वा दीर्घ अशमि, अशामि / विरुणमोर्वा / 4 / 4 / 106 / 5 औ ख्णमि च परे लभधातोः स्वरात् परो नोऽन्तो वा भवति / लभ्यते / लभ्येत / लभ्यताम् / अलभ्यत / लेभे लेभाते लेभिरे / लब्धा लब्धारौ लब्धारः / लप्स्यते लप्स्येते लप्स्यन्ते / अलम्भि, अलाभि / यद्यपि सकर्मकाणां कर्मणि प्रत्ययः, तथापि द्विकर्मकत्वे नियमः, तदुक्तम्- "गौणे कर्मणि दुह्यादेः प्रधाने नीहृकृषिवहाम् / बुद्धिभक्षार्थयोः शब्दकर्मणां च निजेच्छया // 1 // प्रयोज्यकर्मण्यन्येषां ण्यन्तानां त्यादयो मताः।" इति ___गौः दुह्यते पयश्चत्रण, धुक्षीष्ट। अजा ग्रामं नीयते / बोध्यते माणवक्र धर्मः, माणवको वा धर्मम्। भोज्यते मात्रा माणवकमोदनः, Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (249 ) माणवको वौदनमित्यादयः / येषामकर्मकाणां योगे कालाद्याधाराणां कर्माकर्म च सञ्ज्ञा युगपद् भवति, तेषां सत्यपि कर्मणि भावे. प्रत्ययो भवति। मासमास्यते चैत्रेण कर्मसज्ञात्वाद् द्वितीया, अकर्म. सज्ञात्वाच्च भावे प्रत्ययः / मास आस्यते इत्यपि भवति, कर्मसज्ञाया अपि सत्त्वेन सकर्मकत्वात् कर्मण्यपि प्रत्ययः / यदा तु कर्माकर्मसंज्ञाया वैकल्पिकत्वादभवनं तदाऽऽधारत्वाद् अकर्मकत्वेन भाव एव प्रत्ययः मासे आस्यते / ण्यन्तात् प्रयोज्ये मासमास्यते माणवकश्चैत्रेण / इति भावकर्मप्रक्रिया समाप्ता। अथ कर्मकर्तृप्रक्रिया। एकधातौ कर्मक्रिययैकाकर्मक्रिये / 3 / 4 / 86 / . एकरि मन् धातौ सति पूर्वदृष्टया कर्मस्थया क्रियया एका अभिन्ना संप्रति चाकर्मिका क्रिया यस्य कर्तुस्तस्मिन् कर्तरि अर्थात् कर्मकर्तरि धातोः स्क्यिात्मनेपदानि भवन्ति यथा पूर्व विहितानि / चैत्र: ओदनं पचति तत्र सौकर्यात् कर्तृव्यापारो न विवक्ष्यते तदा चैत्रः किमोदनं पचति ? ओदनः स्वयमेव पच्यते इति भवति। एवं क्रियते / क्रियेत / क्रियताम् / अक्रियत / चक्रे / कृषीष्ट / कर्तासे / करिष्यते / अकरिष्यत / अकारि / एकधाताविति किम् / Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 250) चैत्रः ओदनं पचति, ओदनः स्वयमेव सिध्यति / कर्मक्रिययेति किम् ? चैत्रः असिना च्छिनत्ति, असिः स्वयमेव च्छिनत्ति। एकक्रियेति किम् ? स्रवत्युदकं कुण्डिका / कुण्डिकाया उदकं स्रवति। अकर्मक्रिय इति किम् ? भिद्यमानः कुशूलः पात्राणि भिनत्ति / पचि-दुहेः / 3 / 4 / 87 / एकधातौ कर्मस्थक्रियया पूर्वदृष्टया अकर्मिकया वा सकर्मिकया एकक्रिये कर्मकर्तृरूपे कर्तरि आभ्यां धातुभ्यां जिक्यात्मनेपदानि भवन्ति / पच्यते ओदनः स्वयमेव / पच्येत / पच्यताम्। अपच्यत / पेचे / पक्षीष्ट / पक्ता / अपक्ष्यत / अपाचि / दुह्यते गौः स्वयमेव / दुह्येत / दुह्यताम् / अदुह्यत। दुदुहे / धुक्षीष्ट / दोग्धा / धोक्ष्यते / अधोक्ष्यत / अदोहि, अदुग्ध अग्रे विकल्पो वक्ष्यते। न कर्मणा बिच / 3 / 4 / 88 / पचिदुहिभ्यां कर्मणा योगे अनन्तरोक्ते कर्मकर्तृरूपे कर्तरि . निच् न भवति / उदुम्बरः फलं स्वयमेव पच्यते, अपक्त / दुहधातोस्तु किरादौ पाठाद् जिक्यनिषेधेन दुग्धे / धोक्ष्यते / अदुग्ध गौः पयः स्वयमेव / कर्मणेति किम् ? अपाचि ओदनः स्वयमेव / अनन्तरोक्ते इति किम् ? अपाचि उदुम्बरः फलं वायुना / रुधः / 3 / 4 / 09 / Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (251) रुधेरनन्तरोक्ते कर्तरि बिच् न भवति / अरुद्ध गौः स्वयमेव / अन्यत्र अरोधि गौर्गोपालकेन / स्वरदुहो वा / 3 / 4 / 90 / स्वरान्ताद् दुहेश्चानन्तरोक्ते कर्तरि जिच् वा भवति। अकृत, अकारि कटः स्वयमेव / अदुग्ध, अदोहि गौः स्वयमेव / णिस्नुश्यात्मनेपदाकर्मकात् / 3 / 4 / 92 / ण्यन्तात् स्नुश्रिभ्यामात्मनेपदेऽकर्मकेभ्यश्च कर्मकर्तरि निच् न भवति / मैत्रः चैत्रेणौदनमपीपचत् , ओदनः स्वयमेवापीपचत / प्रास्नोष्ट गौः स्वयमेव / उदशिश्रियत दण्डः स्वयमेव / व्यकृत कटः स्वयमेव। भूषार्थसकिरादिभ्यश्च जिक्यौ / 3 / 4 / 93 / भूषार्थेभ्यः सन्नन्तेभ्यः किरादिभ्यो ण्यादिभ्यश्च कर्मकर्तरि निक्यौ न भवतः / अलंकुरुतें कन्या स्वयमेव। अलमकृत कन्या स्वयमेव / अचिकीर्षिष्ट कटः स्वयमेव / किरादि- किरते, अकीट पांशुः स्वयमेव। अगीष्ट, गिरते वा ग्रासः स्वयमेव / ण्यादि- कारयते कटः स्वयमेव / चोरयते गौः स्वयमेव। प्रस्नुते गौः स्वयमेव / उच्छ्यते दण्डः स्वयमेव / आत्मनेपदाकर्मकस्य विकुर्वते सैन्धवाः स्वयमेव / करणक्रियया क्वचित् / 3 / 4 / 94 / Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 252) . एकधातौ पूर्वदृष्टया करणस्थया क्रियया अभिन्नाकर्मक्रिये कर्तरि झिक्यात्मनेपदानि भवन्ति क्वचित् / परिवारयन्ते कण्टका वृक्षं स्वयमेव / क्वचिदित्यत्र न साध्वसिः छिनत्ति / सृजः श्राद्ध बिक्यात्मने तथा।३।४। 84 / सृजः श्रद्धावति कर्तरि जिक्यात्मनेपदानि भवन्ति, यथा पूर्व विहितानि / असर्जि, सृन्यते, स्त्रक्ष्यते मालां धार्मिकः / श्राद्ध इति किम् ? व्यत्यसृष्ट माले मिथुनम् / , तपेस्तपःकर्मकात् / 3 / 4 / 85 / ___तपःकर्मकात् तपतेः कर्तरि जिक्यात्मनेपदानि भवन्ति, तथा / तप्यते, तेपे, अन्वतप्त तपः साधुः। तप इति किम् ? उत्तपति स्वर्ण स्वर्णकारः / कर्म इति किम् ? तपः साधु तपति। कुषिरओाप्ये वा परस्मै च / 3 / 4 / 74 / आभ्यां व्याप्ये कर्तरि शिद्विषये परस्मैपदं वा भवति / तद्योगे च श्यः कुष्यति, कुष्यते वा पादः स्वयमेव / रन्यति, रज्यते वा वस्त्रं स्वयमेव / व्याप्ये कर्तरीति किम् ? कुष्णाति पादं रोगः / इति कर्मकर्तप्रक्रिया समाप्ता। Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 253) अथ त्यादिविभक्त्यर्थप्रक्रिया। श्रुसदवस्भ्यः परोक्षा वा / 5 / 2 / 1 / भूतार्थे वर्तमानेभ्य एभ्यो धातुभ्यः परोक्षा वा भवति / उपशुश्राव पक्षे उपाश्रौषीत् , उपाशृणोत् / उपससाद, पक्षे उपासदत्, उपासीदत् / अनूवास पक्षे अन्ववात्सीत् , अन्ववसत् / / अद्यतनी / 5 / 2 / 4 / / भूतार्थाद् धातोरद्यतनी भवति / अकार्षीत् / विशेषाविवक्षाव्यामि।। 5 / 2 / 5 / अनद्यतनादिविशेषस्याविवक्षायां व्यामिश्रणे च भूतार्थाद धातोरद्यतनी भवति / रामो वनमगमत् / अद्य ह्यो वाऽमुक्ष्महि / रात्रौ वसोऽन्त्ययामास्वप्तर्यद्य / 5 / 2 / 6 / / रात्रौ भूतार्थवृत्तेर्वसतेरद्यतनी भवति, स चेदर्थो यस्यां रात्रौ भूतस्तस्या एवान्त्ययामं व्याप्य कर्तरि अस्वप्तरि सति भवति / अद्यतनेनैवान्त्ययामेनावच्छिन्नेऽद्यतने चेत् प्रयोगोऽस्ति, नाद्यतनान्तरे / अमुत्रावात्सम् / रात्रावन्त्ययामे मुहूर्तमपि स्वार्थ अमुत्रावसमिति / ____ अनद्यतने ह्यस्तनी / 5 / 2 / 7 / आ न्याय्यादुत्थानादा न्याय्याच संवेशनादहरुभयतः सार्ध Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 254) रात्रं वा अद्यतनः, तस्मिन्नसति भूतार्थाद् धातोर्चस्तनी भवति / कटमकरोत् / ख्याते दृश्ये / 5 / 2 / 8 / ख्याते-लोकविज्ञाते प्रयोक्तुः शक्यदर्शने भूतानद्यतनेऽर्थे वर्तमानाद् धातोस्तिनी भवति / महात्मना गान्धिकमोहनलालेन निर्णीतमसहकारधोरणमुत्तीर्णमकरोत् नागपुरे भारतीया महासमा। अरुणत् जर्मनसनाट् फ्रान्सम् / ख्यात इति किम् / कटं चकार / दृश्य इति किम् / रुरोध कोणिको विशालाम् / अयदि स्मृत्यर्थे भविष्यन्ती / 5 / 2 / 9 / स्मृत्यर्थे धातावुपपदे सति भूतानद्यतनार्थे वर्तमानाद् धातोभविष्यन्ती भवति, न तु यदयोगे / स्मरसि साधो ! स्वर्गे स्थास्यामः। अयदि किम्-अभिजानासि मित्र ! यत् वाराणस्यामवसाम। वाऽऽकाङ्क्षायाम् / 5 / 2 / 10 / स्मृत्यर्थधातावुपपदे प्रयोक्तुः क्रियान्तराकाङ्क्षायां भूतानद्यतनार्थाद् धातोभविष्यन्ती वा भवति / स्मरसि मित्र ! काशीपाठशालायां वत्स्यामः, अवसाम वा; तत्र सह व्युत्पत्तिवादं पठिष्यामः, अपठाम वा। कृतास्मरणातिनिह्नवे परोक्षा / 5 / 2 / 11 / . कृतस्यापि कार्यस्यास्मरणे सति अत्यन्तनिहवे वा गम्ये भूता Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (255) नद्यतनार्थाद् धातोः परोक्षा भवति / सुप्तोऽहं किल विललाप / शत्रुञ्जये त्वयाऽकार्यं कृतम् , नाहं शत्रुञ्जयं जगाम / ___परोक्षे / 5 / 2 / 12 / __भूतानद्यतनपरोक्षार्थाद् धातोः परोक्षा भवति / धर्म दिदेश तीर्थङ्करः / हशश्वयुगान्तःपच्छ्ये हस्तनी च / 5 / 2 / 13 / ___हशब्दप्रयोगे शश्वति च प्रयुक्ते पञ्चवर्षमध्ये प्रच्छ्ये च भूतानद्यतने परोक्षेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः ह्यस्तनी परोक्षा च भवति / इति ह चकार, इति हाकरोत् / शश्वदकरोद्, शश्वत् चकार / किमगच्छस्त्वं सिद्धगिरिम् ? किं जगन्थ त्वं सिद्धगिरिम् / __ अविवक्षिते / 5 / 2 / 14 / भूतानद्यतने परोक्षे परोक्षत्वेनाविवक्षितेऽर्थे वर्तमानाद् धातोस्तिनी भवति / अहन् कंसं किल वासुदेवः / - वाऽद्यतनी पुरादौ / 5 / 2 / 15 / भूतानद्यतने परोक्षे चापरोक्षे चार्थे वर्तमानाद् धातोः पुरादावुपपदे सति अद्यतनी वा भवति / अवात्सुरिह पुरा जैनाः पक्षे अवसन् , अषुर्वा / तदाऽभाषिष्ट गौतमः, पक्षे अभाषत, बभाषे / स्मे च वर्तमाना। 5 / 2 / 16 / / Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (256) ... भूतानद्यतनार्थे वर्तमानाद् धातोः स्मे पुरादौ चोपपदे वर्तमाना भवति / पृच्छति स्म प्रश्नान् विनयधर्मसूरिम् / सन्तीह पुरा जिनालयाः / ननौ पृष्टोक्तौ सद्वत / 5 / 2 / 17 / / ननावुपपदे पृष्टस्य प्रतिवचने भूतार्थे वर्तमानाद् धातोः वर्तमानेव वर्तमाना भवति / हे च्छात्र ! किमकार्षीः पाठम् ?, ननु करोमि भोः !, पाठं कुर्वन्तं मां पश्यत / --- नन्वोर्वा / 5 / 2 / 18 / नन्वोरुपपदयोः पृष्टोक्तौ भूतार्थे वर्तमानाद् धातोर्वर्तमाना वा भवति, सा च सद्वद् / किमकार्षीः पटं मैत्र !, न करोमि भोः ! न कुर्वन्तं मां पश्य, नाकार्षम् / नु करोमि, नु कुर्वाणं मां पश्य, न्वकार्षम् / . . . . . . . सति / 5 / 2 / 19 / वर्तमानार्थाद् धातोर्वर्तमाना भवति / अस्ति / पठति / पचति / भक्षयति / अधीमहे / तिष्ठन्ति / भविष्यन्ती / 5 / 3 / 4 / / भविष्यदर्थाद् धातोर्भविष्यन्ती भवति / भोक्ष्यते / गमिष्यति चैत्रः / पक्ष्यते। अनद्यतने श्वस्तनी / 5 / 3 / 5 / नास्त्यद्यतनो यत्र तस्मिन् , अनद्यतने भविष्यदर्थे वर्तमानाद घातोः श्वस्तनी भवति / कर्ता / हर्ता / पक्ता / अनद्यतने Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . (297) किम् ?-- अद्य श्वो वा गमिष्यति ग्रामं चैत्रः। ' अनुशोचनेऽपि ' इयं तु.कदा गन्ता यैवं पादौ निधत्ते / पुरा-यावतोर्वर्तमाना। 5 / 3 / 7 / . अनयोरुपपदयोः भविष्यदर्थाद् धातोर्वर्तमाना भवति / पुरा मुङ्क्ते / यावद् मुक्ते। . कदाकोर्नवा / 5 / 3 / 8 / - अनयोरुपपदयोभविष्यदर्थाद् धातोर्वर्तमाना वा भवति / कदा भुङ्क्ते, भोक्ष्यते, भोक्ता / कर्हि मुङ्क्ते, भोक्ष्यते, भोक्ता / किंवृत्ते लिप्सायाम् / 5 / 3 / 9 / स्यादिविभक्त्यन्तस्य डतरडतमान्तस्य च किमो वृत्तं किंवृत्तम् , तस्मिन्नुपपदे प्रष्टुलिप्सायां गम्यायां भविष्यदर्थाद् धातोर्वर्तमाना वा भवति / को भवतां मिक्षां ददाति, दास्यति, दाता वा / कतमो भवतां भिक्षां ददाति, दास्यति, दाता का। किंवृत्त इति किम् ?-भिक्षां दास्यति.। लिप्सायामिति किम् -- कः पुरं यास्यति / - लिप्स्यसिद्धौ / 5 / 3 / 10 / लब्धुमिष्यमाणाद् भक्तादेः फलावाप्तौ गम्यायां भविष्यदर्थाद धातोर्वर्तमाना वा भवति / यो भिक्षां ददाति, दास्यति, दाता वा; स स्वर्गलोकं याति, यास्यति, याता वा / पञ्चम्यर्थहेतौ / 5 / 3 / 11 / . 17 Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 258) . पञ्चम्या अर्थः प्रषादिस्तस्य हेतुरुपाध्यायागमनादिः, तस्मिन्नर्थे भविष्यत्कालिके वर्तमानाद् धातोर्वर्तमाना वा भवति / उपाध्यायश्चेदागच्छति, आगमिष्यति, आगन्ता वा; अथ त्वं भगवतीमधीष्व / सप्तमी चोर्ध्वमौहूर्तिके / 5 / 3 / 12 / मुहूर्तादूर्ध्वं भव ऊर्ध्वमौर्तिकः, तस्मिन् पञ्चम्यर्थहेतौ वय॑त्यर्थे वर्तमानाद् धातोः सप्तमी वर्तमाना च वा भवति ऊर्ध्वं मुहूर्तात् चेदुपाध्याय आगच्छेत् , आगच्छति, आगमिष्यति, आगन्ता वा; अथ त्वं नन्दिमधीष्व / * सत्सामीप्ये सचद् घा / 5 / 4 / 1 / समीपमेव सामीप्यम् , वर्तमानस्य सामीप्ये भूते भविष्यति चार्थे वर्तमानाद् धातोः वर्तमाना इव प्रत्यया वा भवन्ति / कदा वत्स ! आगतोऽसिं ?; अयमागच्छामि, आगच्छन्तमेव मां वित्त / पक्षे अयमागमम् , आगच्छम् / कदा चैत्र ! गमिष्यसि ?; एष गच्छामि, गच्छन्तमेव मां जानीत / पक्षे गमिष्यामि, गन्तास्मि, गमिष्यन्तं मां जानीत / भृतवच्चाशंस्ये वा / 5 / 4 / 2 / अनागतस्यार्थस्य प्राप्तुमिच्छा आशंसा तद्विषय आशंस्यः, तदर्थाद् धातो तवत् सवच्च प्रत्यया भवन्ति। उपाध्यायश्चेदागमत् ; एते तर्कमध्यगीष्महि / उपाध्यायश्चेदागच्छति। एते तर्कमधीमहे / Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 259) पक्षे उपाध्यायश्चेदागमिष्यति, आगन्ता वा; एते तर्कमध्येष्यामहे, अध्येतास्महे वा। क्षिमाशंसार्थयोर्भविष्यन्ती-सप्तम्यौ / 5 / 4 / 3 / क्षिप्राशंसायोरुपपदयोराशंस्यार्थाद् धातोः यथासंख्यं भविप्यन्तीसप्तम्यौ भवतः / उपाध्यायश्चेद् आगच्छति, आगमत् , आगमिष्यति, आगन्ता वा; तदा शीघ्रं क्षिप्रम् आशु एते सिद्धान्तमध्येष्यामहे / उपाध्यायश्चेदागच्छति, आगमिष्यति, आगमत् , आगन्ता वा; आशंसे, सम्भावये युक्तोऽधीयीय / सम्भावने सिद्धवत् / 5 / 4 / 4 / हेतोः सामर्थ्यस्य श्रद्धा सम्भावनम् , तस्मिन् विषयेऽसिद्धेऽपि वस्तुनि सिद्धवत् प्रत्यया भवन्ति / समये चेत् प्रयत्नोऽभूद उदभूवन विभूतयः / नानद्यतनः प्रबन्धासत्त्योः / 5 / 4 / 5 / धात्वर्थस्य प्रबन्धे आसत्तौ च गम्यमानायां धातोरनद्यतन. विहितः प्रत्ययो न भवति / यावज्जीवं भृशमन्नमदात् , दास्यति वा / यदिदं पर्युषणापर्व अतिक्रान्तमेतस्मिन् जिनोत्सवः प्रावर्तिष्ट / येयं पौर्णमासी आगामिनी, एतस्यां जिनकल्याणकोत्सवः प्रवर्तिष्यते। एष्यत्यवधौ देशस्यार्वाग्भागे / 5 / 4 / 6 / देशस्य योऽवधिस्तद्वाचिन्युपपदे देशस्यैवार्वाग्भागे य Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (260) एष्यदर्थस्तत्र वर्तमानाद् धातोः अनद्यतनविहितः प्रत्ययो न भवति / योऽयमध्वा गन्तव्यः, आ शत्रुञ्जयात् तस्य यदवरं वलम्यास्तत्र द्विभॊक्ष्यामहे मोदकान् / ... कालस्यानहोरात्राणाम् / 5 / 4 / 7 / कालस्य योऽवधिस्तद्वाचिन्युपपदे कालस्यैवार्वाग्भागे यो भविष्यदर्थस्तस्मिन् वर्तमानाद् धातोरनद्यतनविहितः प्रत्ययो न भवति / न चेत् सोऽर्वाग्भागोऽहोरात्राणाम् / योऽयमागामी संवत्सरस्तस्य यदवरमाग्रहायण्यास्तत्र जिनपूजां करिष्यामः / अनहोरात्राणामिति किम् ?--योऽयं मास आगामी तम्य योऽवरः पञ्चदशरात्रस्तत्र युक्ता द्विरध्येतास्महे / ___परे वा / 5 / 4 / 8 / कालस्य योऽवधिस्तद्वाचिन्युपपदे कालस्यैवानहोरात्रसम्बन्धिनि परे भागे य एष्यदर्थस्तवृत्तेर्धातोरनद्यतनविहितः प्रत्ययो वा न भवति / आगामिनः संवत्सरस्याग्रहायण्याः परस्ताद् द्विः भाष्यमध्येष्यामहे, अध्येतास्महे वा। सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तौ क्रियातिपत्तिः / 5 / 4 / 9 / सप्तम्या अर्थोः निमित्तं हेतुफलकथनादिसामग्री / कुतश्चिद्. वैगुण्यात् क्रियाऽनभिनिवृत्तौ सत्यामेष्यदर्थाद् धातोः सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तिर्भवति / असहकारः सम्पूर्णतयाऽभविष्यद् न परदेशिराज्यमस्मिन् वर्षेऽस्थास्यत् / Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 261) भूते / 5 / 4 / 10 / ___भूतार्थाद् धातोः क्रियातिपत्तौ सत्यां सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तिभवति / दृष्टो मयाऽन्नार्थी चंक्रम्यमाणस्तव पुत्रोऽपरश्चातिथ्यर्थी; यदि स तेन दृष्टोऽभविष्यदुताभोक्ष्यत, अप्यभोक्ष्यत / वोतात् / 5 / 4 / 11 / / ‘सप्तम्युताप्योर्बा हे ' इति सूत्रे यदुतशब्दकथनं ततः प्राक् सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तौ सत्यां भूतार्थाद् धातोर्वा क्रियातिपत्तिर्भवति। कथं नाम संयतः मन्ननागाढे तत्र भवान् अब्रह्म असेविष्यत, धिग् गर्हामहे / पक्षे कथं सेवेत, धिगू गर्हामहे / उतात् प्रागिति किम् ?कालो यदभोक्ष्यत भवान् / क्षेपेऽपिजात्वोर्वर्तमाना / 5 / 4 / 12 / अपिजात्वोरुपपदयोः क्षेपे गम्ये धातोर्वर्तमाना भवति / अपि ' तत्रभवान् जन्तून् हिनस्ति / जातु तत्रभवान् भूतानि हिनस्ति, घिग गर्हामहे / कथमि सप्तमी च वा / 5 / 4 / 13 / / कथंशब्दे उपपदे क्षेपे गम्ये धातोः सप्तमी वर्तमाना च वा भवति। कथं नाम तत्र भवान् विदेशभवं वस्त्रं धारयेत् ,धारयतिवा, गर्हामहे अन्याय्यमेतत् / पक्षे अदीधरत्, अधारयत्, धारयाचकार, धारयिता, धारयिष्यति / अत्र सप्तमीनिमित्तमस्तीति भूते क्रियातिपतने वा क्रियातिपत्तिः / कथं नाम तत्रभवान् विदेश Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (262) वस्त्रमधारयिष्यत् / पक्षे यथाप्राप्तम् / भविष्यति क्रियातिपतने तु नित्यमेव क्रियातिपत्तिः / कथं नाम तत्रभवान् विदेशभवं वस्त्रमधारयिष्यत् / __किंवृत्ते सप्तमीभविष्यन्त्यौ / 5 / 4 / 14 / किंवृत्ते उपपदे क्षेपे गम्ये धातोः सप्तमीभविष्यन्त्यौ भवतः / किं तत्रभवान् अनृतं ब्रूयात, वक्ष्यति वा / को नाम, कतरो नाम, कतमो नाम; यस्मै तत्रभवाननृतं ब्रूयात् , वक्ष्यति वा / ___अश्रद्धाऽमर्षेऽन्यत्रापि / 5 / 4 / 15 / अकिंवृत्ते किंवृत्ते चोपपदेऽश्रद्धाऽमर्षयोः गम्यमानयोः सप्तमीभविष्यन्त्यौ भवतः / न श्रद्दधे, न सम्भावयामि तत्रभवान् नाम अदत्तं गृह्णीयात् , ग्रहीष्यति वा / न श्रद्दधे किं तत्रभवान् अदत्तमाददीत, आदास्यते वा / न मर्षयामि, न क्षमे तत्रभवानदत्तं गृह्णीयात् , ग्रहीष्यति वा / किंकिलास्त्यर्थयोभविष्यन्ती / 5 / 4 / 16 / किंकिले अस्त्यर्थे चोपपदेऽश्रद्धाऽमर्षयोर्गम्यमानयोः भविष्यन्ती भवति / न श्रद्दधे, न संभवयामि किंकिल नाम तत्रभवान् परदारान् उपकरिष्यते / न श्रद्दधे, न मर्षयामि अस्ति नाम, भवति नाम, विद्यते नाम तत्रभवान् परदारानुपकरिष्यते / जातु-यद्-यदा-यदौ सप्तमी / 5 / 4 / 17 / Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (263) ____ एखूपपदेषु अश्रद्धाऽमर्षयोः धातोः सप्तमी भवति / न श्रद्दधे,न क्षमे जातु तत्रभवान् सुरां पिबेत् / एवं यद् यदा यदि सुरां .पिबेत् / क्षेपे च यच्च-यत्रे / 5 / 4 / 18 / . यचयत्रयोरुपपदयोः क्षेपे अश्रद्धाऽमर्षयोश्च धातोः सप्तमी भवति / यच्च यत्र वा तत्रभवान् अस्मान् आक्रोशेत् / न श्रद्दधे, न क्षमे यच्च यत्र वा तत्रभवान् परपरिवादं कथयेत् / - चित्रे / 5 / 4 / 19 / आश्चर्ये गम्ये यच्च-यत्रयोरुपपदयोः सप्तमी धातोः भवति / चित्रमाश्चर्यं यच्च यत्र वा तत्रभवान् असेव्यं सेवेत / शेषे भविष्यन्त्ययदौ / 5 / 4 / 20 / यच्चयत्राभ्यामन्यस्मिन्नुपपदे चित्रे गम्ये धातोः भविष्यन्ती भवति, न तु यदिशब्दे / चित्रमाश्चर्यमन्धो नाम गिरिमारोक्ष्यति / . सप्तम्युताप्यो| ढे / 5 / 4 / 21 / बाढार्थयोरुताप्योरुपपदयोः धातोः सप्तमी भवति / उत कुर्याद अपि वा / बाढ इति किम् ?-उत दण्डः पतिष्यति / अपिधास्यति द्वारम् / सम्भावनेऽलमर्थे तदर्थानुक्तौ / 5 / 4 / 22 / अलमोऽर्थे शक्तौ यत् सम्भावनं तस्मिन् गम्ये अलमार्थस्याप्रयोगे धातोः सप्तमी भवति / अपि मासमुपवसेत् / अलमर्थ इति Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (264) किम् ?-निदेशस्थायी मे चैत्रः प्रायेण यास्यति / तदर्थानुक्ताविति किम् ?-शक्तः सिद्धपुत्रो धर्म करिष्यति / अयदि श्रद्धाघातौ नवा / 5 / / 23 / सम्भावनार्थे धातावुपपदेऽलमर्थविषये सम्भावने गम्ये धातोः सप्तमी वा भवति, न तु यच्छब्दे / श्रद्दधे, संभावयामि मुञ्जीत भवान् , पक्षे भोक्ष्यते, अमुफ्त, अमुक्त। अयदीति किम् ? सम्भावयामि यद् मुञ्जीत भवान् / श्रद्धाधाताविति किम् ?--अपि शिरसा पर्वत भिन्द्यात् / सतीच्छार्थात् / 5 / 4 / 24 / सदर्थे इच्छार्थाद् धातोः सप्तमी वा भवति / इच्छेत् , इच्छति। वस्य॑ति हेतुफले / 5 / 4 / 25 / . हेतुभूते फलभूते च भविष्यत्कालार्थे वर्तमानाद् धातोः सप्तमी वा भवति / यदि गुरूनुपासीत शास्त्रान्तं गच्छेत् / यदि गुरूनुपासिष्यते, शास्त्रान्तं सगमिष्यति / वय॑तीति किम् ? दक्षिणेन चेद याति शकटं न पर्याभवति / कामोक्तावकञ्चिति / 5 / 4 / 26 / / इच्छाप्रवेदनगम्ये सप्तमी भवति , न तु कच्चितप्रयोगे। कामो मे मुञ्जीत भवान् / अकच्चितीति किम् ? कच्चिद् जीवति मे माता। इच्छार्थे सप्तमीपञ्चम्यौ।।४ / 27 / Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इच्छार्थे धातावुपपदे कामोक्तौ गम्यमानायां धातोः सप्तमीपञ्चम्यौ भवतः / इच्छामि मुञ्जीत, भुङ्क्तां वा भवान् / विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नपार्थने / 5 / 4 / 28 / विध्यादिविशिष्टेषु कर्तृकर्मभावेषु प्रत्ययार्थेषु धातोः सप्तमीपञ्चम्यौ भवतः / विधिः-क्रियायां प्रेरणा / कटं कुर्यात् , करोतु भवान् / / प्रेरणायामेव यस्यां प्रत्याख्याने प्रत्यवायस्तन्निमन्त्रणम् द्विसन्ध्यमावश्यकं कुर्यात् , करोतु वा। यत्र प्रेरणायामेव प्रत्याख्याने कामचारस्तदामन्त्रणम् / इह आसीत, आस्तां भवान् / सत्कारपूर्विका प्रेरणाऽधीष्टम् व्रतं रक्षतु, रक्षेत् ।संप्रश्नः-सम्प्रधारणा / किन्नु भोः पूज्याः ! अहं व्याकरणमधीयीय, अध्ययै; उत सिद्धान्तमधीयीय, अध्ययै / प्रार्थनं याश्चा / प्रार्थना मे तर्कमधीयीय, अध्ययै / प्रैषानुज्ञाऽवसरे कृत्य-पञ्चम्यौ। 5 / 4 / 29 / प्रैषादिविशिष्टे कळदावर्थे कृत्याः पञ्चमी च भवन्ति / न्यत्कारपूर्विका प्रेरणा प्रैषः / भवता खलु कटः कार्यः / भवान् कर करोतु / भवान् हि प्रेषितोऽनुज्ञातः, भवतोऽवसरः कटकरणे / ___सप्तमी चोर्ध्वमौहर्तिके / 5 / 4 / 30 / प्रैषादिषु गम्येषु ऊर्ध्वमौहर्तिके च वर्तमानाद् धातोः सप्तमीपञ्चम्यौ कृत्याश्च भवन्ति / ऊर्ध्व मुहूर्तात् कटं कुर्यात् , करोतु, कटः कृत्यश्च / भवान् हि प्रेषितः, अनुज्ञात;; भवतोऽवसरः कटकरणे / स्मै पञ्चमी / 5 / 4 / 31 / Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (266) - स्म उपपदे प्रैषादिषु गम्येषु ऊर्वमौहुर्तिकाद् धातोः पञ्चमी भवति / ऊर्च मुहूर्ताद् भवान् कटं करोतु स्म / भवान् हि प्रेषितोऽनुज्ञातः; भवतोऽवसरः कटकरणे। अधीष्टौ / 5 / 4 / 32 / - स्मे उपपदेऽध्येषणायां गम्यमानायां धातोः पञ्चमी भवति / अङ्ग स्म हे विद्वन् ! अणुव्रतानि रक्ष। ___ सप्तमी यदि / 5 / 4 / 34 / - यच्छब्दप्रयोगे कालादिश्रुपपदेषु धातोः सप्तमी भवति / कालो यद् अधीयीत भवान् / वेला यद् भुञ्जीत / समयो यच् छ्यीत / आशिष्याशी:-पञ्चम्यौ। 5 / 4 / 38 / आशीविशिष्टार्थादाशी:- पञ्चम्यौ भवतः / जीयात् भवान् / जयतु राजन् / आशिषीति किम् ? चिरं जीवति सिद्धपुत्रः / माङयद्यतनी / 5 / 4 / 39 / माङि उपपदे धातोरद्यतनी भवति / मा कार्षीत् / मा गमः / सस्मे ह्यस्तनी च / 5 / 4 / 40 / स्मयुक्ते माङिः उपपदे धातो ह्यस्तन्यद्यतन्यौ भवतः / मा स्म करोत् , मा स्म कार्षीत् / . धातोः सम्बन्धे प्रत्ययाः / 5 / 4 / 41 / . धात्वर्थानां सम्बन्धे विशेषणविशेष्यभावे सति अयथाकालमपि Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 267) प्रत्यया भवन्ति / विश्वदृश्वा अस्याः पुत्रो भविता / भावि कृत्यमासीत् / गोमान् आसीत् / भृशाभीक्ष्ण्ये हिस्वौ यथाविधि तध्वमौ च तद्युष्मदि / 5 / 4 / 42 / भृशाभीक्ष्ण्ये सर्वकालार्थे वर्तमानाद् धातोः सर्वविभक्तिसर्ववचनविषये हिस्वौ भवतः, यस्मादेव धातोर्यस्मिन्नेव कारके हिस्वौ तत्कारकविशिष्टस्यैव तस्यैव धातोः अनुप्रयोगे सति / तथा पञ्चम्या एव तध्वमौ तयोः सम्बन्धिनि बहुत्वविशिष्टे युष्मदर्थे हिस्वौ च भवतः, ययाविधि धातोः सम्बन्धेऽनुप्रयोगे सति / लुनीहि लुनीहि इत्येवायं लुनाति, इमौ लुनीतः, इमे लुनन्ति। त्वं लुनासि, युवां लुनीथः, यूयं लुनीथ / पक्षे लुनीत लुनीतेति यूयं लुनीथ / अहं लुनामि, आवां लुनीवः, वयं लुनीमः / लुनीहि लुनीहि इत्योमयं लविष्यति, अलावीदित्यादीन्यपि / अधीष्व अधीष्व इत्येवायमधीते, अधीयाते, अधीयते / अधीषे, अधीयाथे। युष्मद्बहुत्वे तु अधीष्व अधीष्व इति यूयमधीध्वे वा अधीध्वमधीध्वमिति यूयमधीध्वे इति प्रयोगद्वयम् / अधीये अधीवहे अधीमहे / यथाविधीति किम् ? लुनीहि लुनीहीत्येवायं लुनीते छिनत्ति लूयते इति धातोः सम्बन्धे न भवति। ____प्रचये नवा सामान्यार्थस्य / 5 / 4 / 43 / धात्वर्थानां समुच्चये गम्ये सामान्यार्थस्य धातोः सम्बन्धे सति धातोः परौ हिस्त्रौ तध्वमौ च तयुष्मदि वा भवतः। श्रीहीन Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (268) वप, छुनीहि, पुनीहि इत्येव यतते यत्यते वा / सूत्रमधीष्व, नियुक्तिमधीष्व, भाष्यमधीष्व इति अधीते, पठ्यते / पक्षे सूत्रमधीते, नियुक्तिमधीते, भाष्यमधीते इत्येव, अधीते. पठ्यते / व्रीहीन् वपत लुनीत पुनीतेत्येव यतध्वे। ब्रीहीन् वप लुनीहि पुनीहीत्येव चेष्टध्ये पक्षे व्रीहीन् वपथ लुनीथ पुनीथ इत्येव यतध्वे। सूत्रमधीध्वम् , नियुक्तिमधीध्वम् , चूर्णिमधीध्वमित्येवाधीध्वे पक्षे सूत्रमधीध्वे, निर्युक्तिमधीध्वे,भाष्यमधीध्वे इत्येव अधीध्वे / सामान्यार्थस्येति किम् ? ब्रीहीन् वप लुनीहि पुनीहि इत्येव वपति लुनाति पुनातीति मा भूत्। इति विभक्त्यर्थप्रक्रिया समाप्ता। इत्याख्यातप्रक्रिया। इति समाप्ता श्रीधर्मदीपिकाया द्वितीया वृत्तिः / Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 269) नमो नमः श्रीप्रमुधर्मसूरये। अथ कृदन्तप्रक्रिया। अथ कृत्प्रत्ययान्तर्गता कृत्यप्रक्रिया / आ तुमोऽत्यादिः कृत् / 5 / 1 / 1 / तुमभिव्याप्य त्यादि वर्जयित्वा ये प्रत्ययास्ते कृत्संज्ञका भवन्ति। घनघात्यः / ऋवर्णव्यानान्ताद् ध्यण / 5 / 1 / 17 / ऋवर्णान्ताद् व्यञ्जनान्ताच्च धातोः घ्यण् भवति / कृत्यत्वात् 'तत्साप्यानाप्याद्' इति कर्मणि भावे च क्रियते यत् तत् कार्यम् / पच्यते इति पाक्यम् ‘क्तेऽनिटश्चनोः कगौ ' इति सूत्रेण चस्य कत्वम् / पाणिसमवाभ्यां सृजः / 5 / 1 / 18 / आभ्यां सृज्धातोः ध्यण भवति / पाणिभ्यां सृज्यते पाणिसारन्जुः, समवसर्या / .. उवर्णादावश्यके / 5 / 1 / 19 / / उवर्णान्तादावश्यके गम्ये व्यण् भवति / अवश्यं भूयते अवश्यभाव्यम् / आसुयुवपिरपिलपित्रपिडिपिदभिचम्यानमः / 5 / 1 // 20 // Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (270) आङ्पूर्वाभ्यां सुग्नमाभ्यां यौत्यादेश्य घ्यण भवति / आसाव्यम् / पाव्यम् / वाप्यम् / राप्यम् / लाप्यम् / त्राप्यम् / डेप्यम् / दाभ्यम् / आचाम्यम् / वाऽऽधारेऽमावस्या / 5 / 1 / 21 / अमापूर्वाद् वस्धातोः आधारे घ्यण भवति, इस्वश्च वा / अमा सह वसतः सूर्याचन्द्रमसौ यस्यां तिथौ सा अमावस्या, अमावास्या वा तिथिः / संचाय्यकुण्डपाय्यराजसूयं ऋतौ / 5 / 1 / 22 / / एते क्रतावर्थे व्यण्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / संचाय्यः / कुण्डेन पीयते यस्मिन् स कुण्डपाय्यः / राजभिः सूयते राजसूयः यज्ञः / प्रणाय्यो निष्कामासम्मते / 5 / 1 / 23 / प्रपूर्वाद् नयतेः . ध्यणआयादेशश्च भवतः, निष्कामेऽसम्मते चार्थे / प्रणाय्यः शिष्यः, चौरो वा। धाय्यापाय्यसानाय्यनिकाय्यमृग्मानहविनिवासे / 5 / 1 / 24 / एते ऋगाद्यर्थेषु ध्यणन्ता यथासंख्यं निपात्यन्ते / धाय्या ऋक् / पाय्यं मानम् / सानाय्यं हविः / निकाय्यो निवासः / परिचाय्योपचाय्यानाय्यसमूह्यचित्यमग्नौ / 5 / 1 / 25 / एते अग्नावर्थे निपात्यन्ते / परिचाय्यः, - उपचाय्यः, आनाय्यः, समूह्यः, चित्योऽग्निः / Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (271) याज्या दानर्चि। 5 / 1 / 26 / * करणेदानय॑भिधेयायां यन्धातोः घ्यण् निपात्यते / याज्या / तव्यानीयौ / 5 / 1 / 27 / धातोः परौ भावे कर्मणि एतौ भवतः / कर्तव्यम् / हर्तव्यः पठनीयम् / ____ य एचातः / 5 / 1 / 28 / स्वरान्ताद् धातोः यः प्रत्ययो भवति, आकारस्य चैकारः / चेयम् / हेयम् / धेयम् / देयम् / पेयम् . शकितकिचतियतिशसिसहियजिभजिपवर्गात् / 5 / 1 / 29 // एभ्यः पवर्गान्तेभ्यश्च धातुभ्यो यो भवति / शक्यः / तक्यम् / चत्यः / यत्यः / शस्यः / सह्यम् / यज्यम् / भन्यम् तप्यम् / गम्यः / क्षय्य-जय्यौ शक्तौ / 4 / 3 / 90 / एतौ शक्तौ गम्यमानायां यान्तौ निपात्येते / क्षय्यो व्याधिः। जय्यः शत्रुः / शक्ताविति किम् ? क्षेयं पापम् / जेयं मनः क्रय्यः क्रयार्थे / 4 / 3 / 91 / / क्रयार्थे क्रय्य इति निपात्यते / क्रय्यः गौः / क्रय्यो इति किम् ? क्रेयं धान्यं न च प्रसारितम् / यममदगदोऽनुपसर्गात् / 5 / 1 / 30 / . उपसर्गरहितेभ्य एभ्यो यः प्रत्ययो भवति / यम्यम् / मद्यम् / गद्यम् / Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (272) चरेराङस्त्वगुरौ / 5 / 1 / 31 / .. अनुपसर्गाच्चरतेः आङपूर्वात् तु अगुरावर्ये यो भवति / चर्यः / आचों देशः / गुरौ तु आचार्यः / वर्योपसर्यावधपण्यमुपेयर्तुमतीगीविक्रेये। 5 / 1 / 32 / उपेयादिष्वथेष्वेते यथासंख्यं निपात्यन्ते / वर्या कन्या / उपसर्या गौः / अवयं गर्यम् / पण्या गौः / स्वामिवैश्येऽर्यः / 5 // 1 33 // स्वामिवैश्ययोर्वाच्ययोः ऋधातोः यः प्रत्ययो भवति / अर्यः स्वामी, वैश्यः / आर्योऽन्यः / ___ वा करणे / 5 / 1 / 34 / वहेः करणे यो भवति / वह्यं शकटम् / अन्यत्र वाह्यम् , नानो वदः क्यप् च / 5 / 1 / 35 / / अनुपसर्गाद् नाम्नः पराद् वदतः क्यप्यौ भवतः / ब्रह्मोद्यम् / ब्रह्मवद्यम् / 'भावे हत्याभूयौ निपात्यो' ब्रह्महत्या, देवभूयम् / ___ अग्निचित्या / 5 / 1 / 37 / अग्नेः परात् स्त्रीभावे चिनोतेः क्यब् भवति / अग्निचित्या। खेय-मृषोधे / 5 / 1 / 38 / / एतौ क्यबन्तौ साधू भवतः। खेयम् / मृषा उद्यते मृषोद्यम् / कुप्यभिद्योध्यसिध्यतिष्यपुष्ययुग्याज्यसूर्य नाम्नि / 5 / 1 / 39 Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (273) एते सज्ञायां क्यबन्ता निपात्यन्ते। कुप्यं धनम् / भिद्यः उद्ध्यः / सिध्यः / तिष्यः / पुष्यः / युग्यं वाहनम् / आज्यं घृतम् / सूर्यो रविः / दृग्रस्तुजुषैतिशासः / 5 / 1140 / - एभ्यः क्यब् भवति / आदृत्यः / आवृत्यः / स्तुत्यः / जुष्यः / इत्यः / शिष्यः / इस्वस्य तः पित्कृति / 4 / 4 / 113 / हस्वान्तस्य धातोः पिति कृति परे तोऽन्तो भवति / तथा चोदाहृतानि / ऋदुपान्त्यादकृपिचूदृचः / 5 / 1 / 41 / कृपिवृतिऋचिवर्जिताद् ऋदुपान्त्याद् धातोः क्यब् भवति / वृत्यम् / गृध्यम् / वृध्यम् / अकृपीत्यादि किम् ? कल्प्यम्। चय॑म् / अर्च्यम् / . - कृषिमृजिशंसिगुहिदुहिजयो वा / 5 / 1 / 42 / / एभ्यः क्यब् वा भवति / कृत्यं, * कार्यम् / वृष्यं, वर्ण्यम् / मृन्यं, मार्यम् / शस्यं, शंस्यम्। गुह्यं, गोह्यम् / दुह्यं, दोह्यम् / नप्यं, जाप्यं वा। जिविपून्यो हलिमुअकल्के / 5 / 1 / 43 / जयतेः विपूर्वाभ्यां पूनीभ्यां च यथासंख्यं हलिमुञ्जकल्करूपेषु कर्मसु वाच्येषु क्यब् भवति / जित्यो हलिः / विपुयो मुञ्जः / विनीयः कल्कः / . 18 Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (274) पदास्वैरिवाह्यापक्ष्ये ग्रहः / 5 / 1 / 44 / _ एष्वर्थेषु वाच्येषु गृह्णातेः क्यब् भवति. / प्रगृह्यं पदम् / गृह्याः परतन्त्राः / ग्रामगृह्या बाह्या इत्यर्थः / गुणगृह्या गुणपक्ष्या इत्यर्थः / भृगोऽसञ्ज्ञायाम् / 5 / 1 / 45 / . असञ्ज्ञायां भृगः क्यब् भवति / भृत्यो योज्यः / संज्ञायां तु भार्या पत्नी। समो वा / 5 / 1 / 46 / सम्पूर्वाद् भृगः क्यब् वा भवति / सम्भृत्यः, सम्भार्यः / ते कृत्याः / 5 / 1 / 47 / घ्याम् तव्य अनीय य क्यब् एते प्रत्ययाः कृत्यसंज्ञका भवन्ति / एते सकर्मकात् कर्मणि, अकर्मकादविवक्षितकर्मकाच्च भावे भवन्ति, तथैवोदाहृताः / इति कृत्प्रत्ययान्तर्गता कृत्यप्रक्रिया समाप्ता / Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1275) अथ कृत्यभिन्नकृत्प्रत्ययप्रक्रिया। बहुलम् / 5 / 1 / 2 / निर्दिष्टादर्थादन्यस्मिन्नर्थे कृत्प्रत्यया बहुलं भवन्ति / पादाभ्यां हियते पादहारकः / मुह्यते आत्माऽनेन मोहनीय कर्म / सम्प्रदीयतेऽस्मै सम्प्रदानम् / कर्तरि / 5 / 1 / 3 / __ अर्थविशेषोक्ति विना कृत्प्रत्याः कर्तरि वेदितव्याः / करोतीति कर्ता, कारकः / - व्याप्ये घुरकेलिमकृष्टपच्यम् / 5 / 1 / 4 / ___ घुर-केलिमौ प्रत्ययौ कृष्टपच्यश्च व्याप्ये कर्तरि भवन्ति / भज्यते स्वयमेवेति भगुरं काष्टम् / भिदुरम् / विदुरः / पच्यन्ते स्वयमेवेति पचेलिमा माषाः / भिदेलिमाः / कृष्टे स्वयमेव पच्यन्त इति कृष्टपच्याः शालयः / 'संगतेऽर्थे अजयं निपात्यम् ' अजर्यमायसंगतम् , अन्यत्र अजरः पटः / ___ रुच्याव्यथ्यवास्तव्यम् / 5 / 1 / 6 / ___एते कर्तरि निपात्यन्ते / रोचते इति रुच्यो धर्मः / न व्ययते इति अव्यथ्यो मुनिः / वसतीति वास्तव्यः / भव्यंगेयजन्यरम्यापात्याप्लाव्यं नवा / 5 / 1 / 7 / Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (276) एते कर्तरि वा निपात्यन्ते / भवतीति भव्यः, पक्षे भव्यमनेन / गायतीति गेयः साम्नाम् , पक्षे गेयानि सामानि / एवं जन्यः, जन्यमनेन / रम्यः, रम्यमनेन / आपात्यः, आपात्यमनेन / आप्लाव्यः, आप्लान्यमनेन / प्रवचनीयादयः / 5 / 1 / 8 / ___ एतेऽनीयप्रत्ययान्ताः कर्तरि वा निपात्यन्ते / प्रवक्तीति प्रवचनीयो गुरुः शास्त्रस्य, पक्षे 'प्रोच्यते इति प्रवचनीयं शास्त्रं गुरुगा। एवमुपस्थानीयः शिष्यः गुरोः, उपस्थानीयो गुरुः शिष्येण / श्लिषशीस्थाऽऽसवसजनसहभजेः क्तः / 5 / 1 / 9 / ____ एभ्यः क्तप्रत्ययः कर्तरि वा भवति / आश्:ि चैत्रः कान्ताम् , आश्लिष्टा कान्ता चैत्रेण / अतिशयितो गुरुं शिष्यः, अतिशयितो गुरुः शिष्येण / उपस्थितो गुरुं शिष्यः, उपस्थितो गुरुः शिष्येण / उपासिता गुरुं शिष्याः, शिष्यैरुपासितो गुरुः / अनूषिता गुरुं शिष्याः, शिष्यैरुनूषितो गुरुः / ते तामनुजाताः, तैः साऽनुजाता / चैत्रोऽश्वमारूढः, चैत्रेणाश्च आरूढः / ते कामकास्तामनुजीर्णाः, तैः साऽनुजीर्णा / ते धनं विभक्ताः, तैः धनं विभक्तम् / आरम्भे / 5 / 1 / 10 / आरम्भार्थाद् धातोः भूतादौ यः क्तः स कर्तरि वा भवति / ते कटं प्रकृताः, पक्षे तैः कटः प्रकृतः / .. Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (277) गत्यर्थाकर्मकपिबभुजेः / 5 / 1 / 11 / / भूतादौ यः क्तः स एभ्यः कर्तरि वा भवति / स ग्राम गतः / असौ आसितः / ते पयः पीताः / तेऽन्नं भुक्ताः / पक्ष तेन ग्रामो गत इत्यादि। ... अद्यर्थाचाधारे / 5 / / 12 / आहारार्थाद् गत्यर्थी देश्च यः क्तः स आधारे वा भवति / . इदमेषां जग्धम्। इदमेषां यातम् / इदमेषां शयितम् / इदमेषामासितम्। इदं गवां पीतम्। इदं तेषां भुक्तम् / पक्षे तैरस्मिन् जग्धम् / एतैरस्मिन् यातम् / एभिर स्मिन् शग्नितम् , आसितम् / गोभिरस्मिन् पीतम् / ' तैरस्मिन् भुक्तम् / गत्यादीनां. पक्षे कर्तर्यपि भवनात् एतेऽस्मिन याताः / एतेऽस्मिन् शयिताः / गायोऽस्मिन् भुक्ता इत्यादि। . भीमादयोऽपादाने / 5 / 1 / 14 / भीमादयः शब्दा अपादाने निपात्यन्ते / बिभेति अस्मादिति भीमः, भयानकः / असरूपोऽपवाद वो सर्गः प्राक् क्तेः / 5 / 1 / 16 / . एतत्सूत्रादारभ्य 'स्त्रियां क्तिः' इति सूत्रात् प्राग् योऽपवादस्तद्विषये असरूप उत्सर्गोऽपि प्रत्ययो वा भवति / अवश्यलाव्यम् अवश्यलवितव्यम्। ... . ..... णक-तृचौ / 5 / 1 / 48 / .. Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (278) धातोः परावेतौ भवतः / करोतीति कारकः, कर्ता / हारकः / खादकः / पाचकः / हर्ता / खादिता / पक्ता / अहे तृच / 5 / 4 / 37 / - अर्हे कर्तरि धातोस्तृच् भवति / भवान् छेदसूत्रस्य वोढा / कन्याया वोढा / ___ अच् / 6 / 1 / 49 / धातोः कर्तरि अच् भवति / करः / हरः / पचः / भवः / __णिन् चावश्यकाधमण्ये / 5 / 4 / 36 / अवश्यं भाव आवश्यकम् , ऋणेऽधमः अधमर्णस्तस्य भाव आघमर्ण्यम् / आवश्यकाऽऽधमर्ण्ययोः गम्यमानयोः धातोः कर्तरि णिन् कृत्याश्च भवन्ति। अवश्यं करोतीति कारी। हारी / अवश्यंकारी / अवश्यगेयः साम्नाम् / शतं दायी। सहस्रं दायी। लिहादिभ्यः / 5 / 1 / 50 / ____ एभ्यो धातुभ्यः कर्तर्यच् प्रत्ययो भवति / लेढीति लेहः / शेषः। अचि / 3 / 4 / 15 / अचि प्रत्यये परे यङो लुब् भवति / चेच्यः / नेन्यः / न वृद्धिश्चाविति क्डिल्लोपे / 4 / 3 / 11 / / अविति प्रत्यये परे यः कितो ङितश्च लोपस्तस्मिन् सति Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '( 279) गुणवृद्धी न भवतः। नेन्यः / चेच्यः। मरीमृजः। 'ब्रूगोऽचि ब्रुवादेशो वक्तव्यः' ब्राह्मणब्रुवः / नन्यादिभ्योऽनः / 5 / 1 / 52 / / एभ्यो गणदृष्टेभ्यः कर्तर्यनः प्रत्ययो भवति / नन्दनः / वाशनः / सहनः / संक्रन्दनः / सर्वदमनः / नर्दनः / ग्रहादिभ्यो णिन् / 5 / 1 / 53 / एभ्यः कर्तरि णिन् प्रत्ययो भवति / ग्राही / स्थायी / दायी। नाम्युपान्त्यप्रीकृगृज्ञः कः / 5 / 1 / 54 / नाम्युपान्त्येभ्यः प्रीकृगृज्ञाभ्यश्च कर्तरि को भवति / विक्षिपः। प्रियः / किरः / गिलः / ज्ञः / गेहे ग्रहः / 5 / 1 / 55 / गेहेऽर्थे वाच्ये ग्रहधातोः कः प्रत्ययो भवति / गृहम् / गृहाः दारा इत्यर्थः / ' . उपसर्गादातो डोश्यः। 6 / 1 / 56 / श्यैवर्जितादुपसर्गात् / परादादन्ताद् धातोः डः प्रत्ययो भवति / आह्वः / प्रह्वः / उपसर्गादिति किम् ? दायः / अश्य इति किम् ? अवश्यायः / व्याघ्राले प्राणिनसोः।५।१। 57 / . एतौ यथासंख्यं प्राणिनि नासिकायां चार्थे निपात्येते / व्याघ्रः प्राणी / आघ्रा नासिका / Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (280) घ्राध्मापाद्धेदृशः शः / 5 / 1 / 58 / एभ्यः कर्तरि शः प्रत्ययो भवति / शित्त्वाद जिघ्राबादेशाः / निघः / उद्धमः / पिवः / वयः / उत्पश्यः / साहिसातिवेद्युदेजिधारिपारिचेतेरनुपसर्गात् / 5 / 1 / 19 / ___अनुपसर्गेभ्यो ण्यन्तेभ्य एतेभ्यः शो भवति / साहयः / सातयः / वेदयः / उदेजयः / धारयः / पारयः / चेतयः / लिम्प-विन्दः / 5 / 1.60 / अनुपसर्गाभ्यामाभ्यां शो भवति / लिम्पतीति लिम्पः / विन्दतीति विन्दः / निगवादेर्नाम्नि / 5 ! 1 / 61 / निपूर्वाद् लिम्पेः गवादिपूर्वाञ्च विन्दे: लज्ञायां को भवति / निलिम्पा देवाः / गोविन्दः / कुविन्दः / / वा ज्यलादिधुनीभृग्रहास्रोणः / 5 / 1 / 62 / ज्वलादिभ्योः दुनोत्यादिभ्य आस्रोश्चानुपसर्गेभ्यो णः प्रत्ययो वा भवति / ज्वलः, ज्वालः / चालः, चलः / दावः, दवः / नायः, नयः / भावः, भवः / ग्राहो मकरादिः, ग्रहः सूर्यादिः / आस्रावः, आत्रवः / अवहसासंस्रोः / 5 / 1 / 63 / अवपूर्वाभ्यां हसाभ्यां सम्पूर्वाच्च स्रोश्च णः प्रत्ययो भवति / अवहारः / अवसायः / संत्रावः / Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्यायः / पिन्यको अक्ट प्रत्ययाति नलुकिं (281). तनव्यधीश्वसातः / 5 / 1 / 64 / एभ्यो धातुभ्य आदन्तेभ्यश्च णप्रत्ययो भवति / तानः / व्याधः / प्रत्यायः / श्वासः / अवश्यायः / नृत-खन्-रञ्जः शिल्पिन्यकट् / 5 / / 65 / ___एभ्यो धातुभ्यः शिल्पिनि वाच्ये अकट् प्रत्ययो भवति / नर्तकः / नर्तकी / खनकः / ' अकट-घिनोश्च रञ्जः ' इति नलुकि रजकः / शिल्पिनीत्येव नर्तिका / गस्थकः। 5 / 1 / 66 / गाधातोः शिल्पिनि थकः प्रत्ययो भवति / गाथकः / टनण् / 5 / / 67 / शिल्पिनि वाच्ये गाधातोष्टनण् भवति / गायनी / हः कालत्रीह्योः / 5 / 1 / 68 / .. हाको हाङो वा कालवीह्योर्वाच्ययोः कर्तरि टनण् भवति.। हायनः वर्षम् / हायना व्रीहयः / . असल्वोऽकः साधौ / 5 / 1 / 69 / ___एभ्यो धातुभ्यः साधावर्थे अकः प्रत्ययो भवति / साधु प्रवते इति प्रवकः / सरकः / लवकः / अन्यत्र प्रावकः / आशिष्यकन् / 6 / 1 / 70 / . आशिषि गम्यमानायां धातोः कर्तर्यकन् प्रत्ययो भवति / वतात जीवकः / आशिषीति किम् ? जीवतीति जीविका।: Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 282) तिक्कृतौ नाम्नि / 5 / 1 / 71 / / आशीविषये सञ्ज्ञायां गम्यमानायां धातोः तिक् कृत्संज्ञकाश्च प्रत्यया भवन्ति / शान्तिः / वीरभूः / वर्धमानः / कर्मणोऽण् / 5 / 1 / 72 / कर्मणः पराद् धातोः अण् प्रत्ययो भवति / कुम्भं करोतीति कुम्भकारः / शीलिकामिभक्ष्याचरीक्षिक्षमोणः / 5 / 1 / 73 / कर्मणः परेभ्य एभ्यो धातुभ्यः कर्तरि णः प्रत्ययो भवति / धर्मशीला / धर्मकामा / वायुभक्षा / कल्याणमाचरति कल्याणाचारा / सुखप्रतीक्षा / बहुक्षमा / , गायोऽनुपसर्गात् टक् / 5 / 1 / 74 / कर्मणः परादनुपसर्गाद् गायतेष्टक् प्रत्ययो भवति / वक्रगी। उपसर्गात्तु खरुसंगायः / सुरासीधोः पित्रः / 5 / 1 / 75 / आभ्यां कर्मभ्यां परादनुपसर्गात् पिबतेष्टक भवति / सुरापी। सीधुपी। आतो डोऽहावामः / 5 / 1 / 76 / कर्मणः परादनुपसर्गाद् हावामावनितादादन्ताद् धातोः कर्तरि डो भवति / गां ददाति गोदः / अहावाम इति किम् ? स्वर्गहायः, तन्तुवायः, धान्यमायः / Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (283 ) समः ख्यः / 5 / 1 / 77 / कर्मणः परात् सम्पूर्वात् ख्यातेः डो भवति / गां संख्याति गोसंख्यः। दश्चाङः / 5 / 1 / 78 / - कर्मणः परादाङपूर्वाद् दागः ख्यातेश्च डो भवति / दायमाददाति दायादः / स्त्रयाख्यः / प्राज्ज्ञश्च / 5 / 1 / 79 / कर्मणः परात् प्रपूज् ज्ञो दश्च डप्रत्ययो भवति / पथिप्रज्ञः / प्रपाप्रदः। आशिषि हनः / 5 / 1 / 80 / कर्मणः पराद् हन्तेः आशिषि गम्यायां कर्तरि डो भवति / शत्रु वध्यात् शत्रुहः / क्लेशादिभ्योऽपात् / 5 / 1 / 81 / / क्लेशादिकर्मणः पराद् हन्तेः कर्तरि डः प्रत्ययो भवति / क्लेशमपहन्ति क्लेशापहो मुनिः / तमांस्यपहन्ति तमोऽपहः सूर्यः / / ___ कुमारशीर्षाण्णिन् / 5 / 1 / 82 / आभ्यां कर्मभ्यां पराद् हन्तेणिन् प्रत्ययो भवति / कुमार घाती / शीर्षघाती। अचित्ते टक् / 5 / 1 / 83 / / ___ कर्मणः पराद् हन्तेरचित्तवति कर्तरि कू भवति / वातघ्नं तैलम् / अचित्त इति किम् ? पापघातो यतिः / . Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 284) जायापतेश्चिह्नवति / 5 / 1 / 84 / / आभ्यां कर्मभ्यां पराद् हन्तेः चिह्नवति कर्तरि टक् प्रत्ययो मवति / जायाघ्नः / पतिघ्नी कन्या / ब्रह्मादिभ्यः / 5 / 1 / 85 / / एभ्यः कर्मभ्यः पराद् हन्तेः टक् प्रत्ययो भवति / ब्रह्मनः / गोध्नः पापी। हस्तिबाहुकपाटाच्छक्तौ / 5 / 1 / 86 / . एभ्यः कर्मभ्यः पराद् हन्धातोः शक्तौ गम्यमानायां कर्तरि टक् प्रत्ययो भवति / हस्तिघ्नः / बाहुघ्नः / कपाटनः / 'रानघ इति निपात्यः' राजानं हन्ति राजयः ! नगरादगजे / 5 / 1 / 87 // अस्मात् कर्मणः पराद् हन्तेरगजे कर्तरि टक् प्रत्ययो भवति। नगरघ्नो व्याघ्रः / अगज इति किम् ? नगरघातो हस्ती / ' शिल्पिनि पाणिघताडयौ निपात्यौ'। कुक्ष्यात्मोदराद् भृगः खिः / 5 / 1 / 90 / एभ्यः कर्मभ्यो भृगः खिः भवति / कुशिम्भरिः / आत्मम्भरिः / उदरम्भरिः। अोऽच् / 5 / 1 / 91 / कर्मणः परादहतेरच् प्रत्ययो भवति / पूजामर्हतीति पूजार्हा वीतरागमूर्तिः / पूजार्होऽर्हन् / Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (285) धनुर्दण्डत्सरुलाङ्गलाङ्कुशयिष्टिशक्तिोमरघटाद् - ग्रहः / 5 / 1 / 92 / . एभ्यः कर्मभ्यः पराद् ग्रहेरच प्रत्ययो भवति / धनुर्ग्रहः / दण्डग्रहः / त्सरुग्रहः / लाङ्गलग्रहः / अङ्कुशग्रहः / ऋष्टिग्रहः / यष्टिग्रहः / शक्तिग्रहः / तोमरग्रहः / घटग्रहः / सूत्राद् धारणे / 5 / 1 / 93 / सूत्रात् कर्मणः पराद् ग्रधातोः ग्रहणपूर्वकधारणार्थाद् अच भवति / सूत्रं गृह्णाति सूत्रग्रहः प्राज्ञः सूत्रधारो वा / आयुधादिभ्यो धृगोऽदण्डादेः / 5 / 1 / 94 / . दण्डादिवर्जितादायुधादः कर्मणः पराद् धृगोऽच् भवति / धनु-- धरः / भूधरः / दण्डादिपूर्वात् तु दण्डधारः, कुण्डधारः / हृगो वयोऽनुद्यमे / 5 / 1 / 96 / कर्मणः पराद् हरते: * वयसि अनुद्यमे च गम्येऽच् भवति / अस्थिहरः श्वशिशुः / अंशहरो दायादः / मनोहरा माला / आङः शीले। 5 / 1 / 96 / कर्मणः परादाङपूर्वाद् हृगः शीले गम्येऽच् प्रत्ययो भवति / पुष्पाहरः / शील इति किम् ? पुष्पाहारः / दति-नाथात् पशाविः / 5 / 1 / 97 / आभ्यां कर्मभ्यां पराद् हरतेः पशौ कर्तरि इः प्रत्ययो भवति। दृतिहरिः श्वा / नाथहरिः सिंहः / Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (286) रजः-फले-मलाद् ग्रहः / 5. / 1 / 98 / एभ्यः कर्मभ्यः पराद् ग्रधातोः इ: प्रत्ययो भवति / रजोग्रहिः / फलेअहिः / मलग्रहिः / / देव-वातादापः / 5 / 1 / 99 / आभ्यां परादापधातोरिः प्रत्ययो भवति / देवापिः / वातापिः / शकृत्स्तम्बाद् वत्सनीही कृगः / 5 / 1 / 100 / आभ्यां कर्मभ्यां परात् कृगो यथासंख्यं वत्सब्रीह्योः कोरिः भवति। शकृत्करिः वत्सः / स्तम्बकरिः व्रीहिः / 'किंयत्तबहुभ्यः कृगः अः वाच्यः' किंकरः, यत्करः, तत्करः, तस्करः चौरश्चेत् , बहुकरः। संख्याहर्दिवाविभानिशाप्रभाभाश्चित्रकर्नाद्यन्तानन्तकारबाहरुर्धनुर्नान्दीलिपिलिविबलिभक्तिक्षेत्रजङ्घाक्षपाक्षणदार जनिदोषादिनदिवसाट्टः / 5 / 1 / 102 / एभ्यः कर्मभ्यः कृगः ट: प्रत्ययो भवति / संख्याकरः / द्विकरः / अहस्करः / दिवाकरः / विभाकरः / निशाकरः / प्रभाकरः / भास्करः / चित्रकरः / कर्तृकरः / आदिकरः / अन्तकरः / अनन्तकरः / कारकरः / बाहुकरः / अरुष्करः / धनुष्करः / नान्दीकरः / लिपिकरः / लिविकरः / बलिकरः / भक्तिकरः / क्षेत्रकरः / जङ्घाकरः / क्षपाकरः / क्षणदाकरः / रजनिकरः / दोषाकरः / दिनकरः / दिवसकरः / संख्याकरी / Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 287.) हेतुतच्छीलाजुकूलेऽशब्दश्लोककलहगाथावरचाटुमूत्र . मन्त्रपदात् / 5 / 1 / 103 / / शब्दादिवर्जितात् कर्मणः परात् कृगष्टक् प्रत्ययो भवति, हेतुतच्छीलानुकूलेषु कर्तृषु / यशस्करी विद्या / श्राद्धकरो ब्राह्मणः / प्रेषणाकरः / शब्दादिवर्जनं किम् ? शब्दकारः। श्लोककारः / कलहकारः / गाथाकारः / वैरकारः / चाटुकारः / / सूत्रकारः / मन्त्रकारः / पदकारः / भृतो कर्मणः / 5 / 1 / 104 / कर्मणः कर्मणः पराद भृतौ गम्यमानायां कृगष्टक् भवति / कर्मकरी दासी। क्षेम-प्रिय-मद्र-भंद्रात खाण् / 5 / 1 / 105 / एभ्यः कर्मभ्यः परात् कृगः खोऽणश्च भवतः / क्षेमङ्करः, क्षेमकारः / प्रियङ्करः, प्रियकारः / मद्रङ्करः, मद्रकारः / भद्रङ्करः, भद्रकारः / . मेघर्तिभयाभयात् खः / 5 // 1 / 106 / एभ्यः कर्मभ्यः कृगः खो भवति / मेघङ्करः / ऋतिङ्करः / भयङ्करः / अभयङ्करः। प्रिय-वशाद् वदः / 5 / 1 / 107 / आभ्यां कर्मभ्यां वदतेः कर्तरि खः प्रत्ययो भवति। प्रियंवदः / वशंवदः / द्विषन्तप-परन्तपौ कर्तरि ण्यन्तस्य तपेः निपात्यौ' द्विषतः तापयतिं द्विपन्तपः / एवं परन्तपः / Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (288) परिमाणार्थमितनखात् पचः। 5 / 1 / 109 / . परिमाणार्थात् मितनखाभ्यां च कर्मभ्यः परात् पचेः खो भवति / प्रस्थम्पचा / नखम्पचः / कूलाभ्रकरीषात् कपः / 5 / 1 / 110 / - एभ्यः कर्मभ्यः कषतेः खो भवति / कूलषा / अभ्रषः / करीषङ्कषः / सर्वात् सहश्च / 6 / 1 / 111 / सर्वशब्दात् परात् सहेः कषेश्च खः प्रत्ययो भवति / सर्व. सहो मुनिः / सर्वकषः खलः / भृवृजितृतपदमेश्व नान्नि। 5 / 1 / 112 / कर्मभ्यः परेभ्य एभ्यः सहतेश्च संज्ञायां खो भवति / विश्वम्भरा मेदिनी। पतिंवरा कन्या / शत्रुञ्जयः अद्रिः / रथन्तरं साम / शत्रुन्तपो राजा / बलिन्दमः कृष्णः / शत्रुसहो राजा / नाम्नीति किम् ? कुटुम्बभारः / धारेर्धर् च / 5 / 1 / 113 / कर्मणः पराद् धारेः सञ्ज्ञायां खो भवति, धारेः धरादेशश्च / वसुन्धरा पृथ्वी। ____पुरन्दर-भगन्दरौ। 5 / 1 / 114 / एतौ सज्ञायां निपात्येते / पुरं दृणाति पुरन्दरः शक्रः / भगं दारयति भगन्दरो व्याधिः / 'व्रते गम्ये वाचंयमो निपात्यः' वाचंयमो व्रतीत्यर्थः / Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 289) . . मन्याण्णिन् / 5 / 1 / 116 / कर्मणः परात् मन्यतेर्णिन् प्रत्ययो भवति / पण्डितमानी बन्धोः / कर्तुः खश् / 5 / 1 / 117 / प्रत्ययार्थरूपात् कर्तृरूपात् कर्मणः परात् मन्यतेः खश् प्रत्ययो भवति / आत्मानं पण्डितं मन्यते इति / . खित्यनव्ययारुषो मोन्तो ह्रस्वश्च / 3 / 2 / 111 / स्वरान्तस्याव्ययभिन्नस्यारुषश्च खित्प्रत्ययान्ते उत्तरपदे परे मोऽन्तो यथासम्भवं हूस्वश्च / पण्डितम्मन्यः / शम्मन्यः / अरुन्तुदः। 'कर्मणः परादेजेः खश् वाच्यः' जनमेजयो नाम राजा / शुनीस्तनमुझकूलास्यपुष्पात् दधेः / 5 / 1 / 119 / एभ्यः कर्मभ्यः धेः कर्तरि खश् प्रत्ययो भवति / शुनिन्धयः। स्तनन्धयः / मुञ्जन्धयः कुलन्धयः / आस्यन्धयः / पुष्पन्धयः / नाडीघटीखरीमुष्टिनासिकावाताद् ध्मश्च / 5 / 1 / 120 / . एभ्यः कर्मभ्यो धमतेः धयतेश्च कर्तरि खश् प्रत्ययो भवति / नाडिन्धमः / नाडिन्धयः / घटिन्धमः / घटिन्धयः / खरिन्धमः / खरिन्धयः / मुष्टिन्धमः / मुष्टिन्धयः / नासिकन्धमः। नासिकन्धयः। वातन्धमः / वातन्धयः / _ पाणि-करात् / 5 / 1 / 121 / आभ्यां धमतेः खश् प्रत्ययो भवति / पाणिन्धमः / करन्धमः / 19 Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (290) कूलादुद्रुनोद्वहः / 5 / 1 / 122 / अस्मात् पराभ्यामाभ्यां खश् भवति / कूलमुद्रुनः / कूल. मुद्रहः / वहानाल्लिहः / 5 / 1 / 123 / वहाभ्राभ्यां कर्मभ्यां परात् लिहेः खश् भवति / वहलिहः / भभ्रंलिहः / बहुविध्वरुस्तिलात् तुदः / 5 / 1 / 124 / एभ्यः कर्मभ्यः परात् तुदतेः खश् भवति। बहुन्तुदः / विधु. न्तुदः / अरुन्तुदः / तिलन्तुदः / ललाट-वात-शर्थात् तपाजहाकः / 5 / 1 / 125 / एभ्यः कर्मभ्यः परेभ्यो यथासंख्यं तपाजहाभ्यः कर्तरि खश् प्रत्ययो भवति / ललाटन्तपः सूर्यः / वातमजः मृगः / शर्धञ्जहः / असूर्योग्राद् दृशः / 5 / 1 / 126 / आभ्यां पराद् दृशेः कर्तरि खश् प्रत्ययो भवति / न सूर्य पश्यन्तीति असूर्यम्पश्या राजदाराः / उग्रम्पश्यो राना। इरम्मदः / 5 / 1 / 127 / इरापूर्वाद् माद्यतेः कर्तरि खश् प्रत्ययो भवति / इरया माद्यतीति इरम्मदः / नाम्नो गमः खड्डौ च विहायसस्तु विहः। 5 / 1 / 131 // नाम्नः पराद् गच्छतेः एते खड्डखाः स्यु:, विहायसस्तु विहा Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (291), देशश्च / तुरं गच्छतीति तुरङ्गमः / विहायसा गच्छतीति विहङ्गमः पक्षी / सुतङ्गमो मुनिः / तुरगः / विहगः / तुरङ्गः / विहङ्गः / सुग-दुर्गमाधारे / 5 / 1 / 132 / ... सुदुर्यो पराद् गमेराधारे डप्रत्ययो भवति / सुखेन गम्यतेऽस्मिन्निति सुगः / एवं दुर्गः / निर्गो देशे / 5 / 1 / 133 / ' निरपूर्वाद् गमेः देशेऽर्थे डप्रत्ययो भवति / निर्गो देशः / . शमो नाम्न्यः / 5 / 1 / 13 / शमो नाम्नः पराद् धातोः सञ्ज्ञायामः प्रत्ययो भवति / शम्भवो नामाईन् / . पार्थादिभ्यः शीङः / 5 / 1 / 135 / . एभ्यो नामभ्यः परात् शीङः अप्रत्ययो भवति / पार्श्वशयः / ऊर्ध्वादिभ्यः कर्तुः। 5 / 1 / 136 / .. एभ्यः कर्तृवाचिभ्यः परात् शीङः अप्रत्ययो भवति / उर्ध्वशयः / उत्तानशयः / आधारात् / 5 / 1 / 137 / : आधारवाचिनो नाम्नः पराच्छीङः अः प्रत्ययो भवति / खे ोते खशयः / चरेष्टः / 5 / 1 / 138 / .. आधाराचरतेष्टः प्रत्ययो भवति / कुरुषु चरति कुरुचरी। गूर्जरचरा मुनयः / Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 292) भिक्षा-सेना-दायात् / 5 / 1 / 139 / / एभ्यः पराञ्चरतेष्टः प्रत्ययो भवति / भिक्षाचरी / सेनाचरः / मादायचरः। . पुरोऽग्रतोऽग्रे सतेः / 5 / 1 / 140 / .. एभ्य आधारेभ्यः परात् सरतेष्टः प्रत्ययो भवति / पुरःसरः / अग्रतःसरः / अग्रेसरः / . पूर्वात् कर्तुः। 5 / 1 / 141 / / कर्थे वर्तमानात् पूर्वात् परस्य सरतेष्टों भवति / पूर्वः सन् सरति पूर्वसरः / स्था-पा-स्ना-त्रः कः। 5 / 1 / 142 / / नाम्नः परेभ्य एभ्यः कः प्रत्ययो भवति / समात्यः / कच्छपः / नदीष्णः / धर्मत्रं छत्रम् / शोकापनुद-तुन्दपरिमृज-स्तम्बरम-कर्णेजपं प्रियालस हस्तिसूचके / 5 / 1 / 143 / एते प्रियाद्यर्थेषु यथासंख्यं कप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / शोकमपनुदति शोकापनुदः प्रियजनः / तुन्दं परिमार्टि तुन्दपरिमृजोऽलसः / स्तम्बे रमते स्तम्बेरमो हस्ती / कर्णे जपति कर्णेजपोऽतिखलः / मूलविभुजादयः / 5 / 1 / 144 / . - एते कप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / मूलविमुनो रथः / कुमुदं कैरवम्। Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (293) दुहेर्डधः / 5 / 1 / 145 / . नाम्नः पराद् दुहेः डुघः प्रत्ययो भवति / कामान् दोषि कामदुधा गौः। भजो विण / 5 / 1 / 146 / नाम्नः पराद् भजतेविण प्रत्ययो भवति / अध भनते भर्धभाक् / ... मन्वन्क्वनिविच क्वचित् / 5 / 1 / 147 / .. नाम्नः पराद् धातोरेते प्रत्यया भवन्ति / इन्द्रशर्मा / देवशर्मा। जिनशर्मा / विजावा / वावा / अवावा / सुधीवा / शुभंयाः / क्वि / / 1 / 148 / नाम्नः पराद् धातोः क्विबू भवति / कार्य करोति कार्यकृत् / हरतीति हृत्। . स्पृशोऽनुदकात् / 5 / 1 / 149 / उदकवर्नाद् नाम्नः परात् स्पृशतेः क्विय् भवति / घृतस्क / अनुदकादिति किम् ? उदकस्पर्शः / अदोऽनन्नात् / 5 / 1 / 150 / . . अन्नवर्नाद् नान्नः पराददेः क्विब् भवति / आमात् / अनन्नादिति किम् ? अन्नादः / क्रव्यात्-ऋव्यादावामपक्वादौ / 5 / 1 / 151 / .. क्रयपूर्वादत्तरेतौ यथासंख्यमामादपक्वादयोः साधू भवतः / कल्यात् आममांसभक्षः / क्रयादः पक्वमांसभक्षः / / / Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (294) त्यदाद्यन्यसमानादुपमानाद् व्याप्ये दृशष्टक्-सको च / 5 / 1 / 152 / उपमानरूपव्याप्येभ्य एभ्यः पराद् दृशेः व्याप्येऽथे एव टक्सको क्विप् च भवन्ति / स्य इव दृश्यते त्यादृशः, त्यादृक्षः, त्यादृक् / तादृशः, तादृक्षः, तादृक् / अन्यादृशः, अन्यादृक्षः, अन्यादृक् / अमूदृशः, अमूदृक्षः, अमूदृक् / सदृशः, सदृक्षः, सहक् / कर्तुणिन् / 5 / 1 / 153 / __ कर्तुरुपमानात् पराद् धातोर्णिन् प्रत्ययो भवति / उष्ट्र इव कोशति उष्ट्रकोशी। अजातेः शीले। 5 / 1 / 154 / अजात्यर्थाद् नाम्नः पराद् शीलेऽर्थे, णिन् भवति / उष्णं मुझे तच्छील उष्णभोजी। साधौ / 5 / 1 / 155 / नाम्नः परात् साध्वर्थाद् धातोः णिन् भवति / साधुकारी। साधुपाठी। ब्रह्मणो वदः।५।१।१५६ / ब्रह्मणः पराद् वदेर्णिन् भवति / ब्रह्मवादी / व्रताभीक्ष्ण्ये / 5 / 1 / 157 / व्रताभीक्ष्ण्ययोः गम्ययोः नाम्नः पराद् धातोणिन् प्रत्ययो भवति / स्थण्डिले वर्तते स्थण्डिलवर्ती / क्षीरं पुनः पुनः पिबन्ति सीरपायिण उशीनराः / Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (295) करणाद् यजो भूते / 5 / 1 / 158 / करणार्थाद् नाम्नः पराद् भूतार्थाद् यजधातोः णिन् भवति / भग्निष्टोमेन अयाक्षीत् अग्निष्टोमयाजी। निन्द्ये व्याप्यादिन् विक्रियः / 5 / 1 / 159 / व्याप्याद् नाम्नः पराद् भूतार्थाद् विपूर्वात् क्रियः निन्छ कर्तरि इन् प्रत्ययो भवति / सोमविक्रयी / 'व्याप्यात् पराद् हन्तेः भूतार्थाद् णिन् वाच्यः, निन्ये कर्तरि सति' पितृघाती / मातृघाती। ब्रह्म-भ्रूण-त्रात क्विप् / 5 / 1 / 161 / .. एभ्यः कर्मभ्यः पराद् भूतार्थाद् हन्तेः क्विब् भवति / बह्माणं हतवान् ब्रह्महा / भ्रूणहा / वृत्रहा। कुगः सुपुण्यपापकर्ममन्त्रपदात् / 5 / 1 / 162 / एभ्यः पराद् भूतार्थाद् कृगः क्विब् भवति / सुकृत् / पुण्यकृत् / पापकृत् / कर्मकृत् / मन्त्रकृत् / पदकृत् / ___ सोमात् सुगः / .5 / 1 / 163 / सोमात् कर्मणः पराद् भूतार्थात् सुगः क्विब् भवति / सोमसुत् / 'अग्नेः कर्मणः पराद् भूतार्थात् चिनोतेः क्विन् वाच्यः।' अग्निं चितवान् अग्निचित् / . कर्मणामर्थे / 5 / 1 / 165 / कर्मणः पराद् भूतार्थात् चिनोतेरग्निरूपे कर्मणि क्विन् भवति / श्येनचित् / Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) - दृशः क्वनिप् / 5 / / 166 / व्याप्यात् पराद् भूतार्थाद् दृशेः क्वनि भवति / बहुदृश्वा / सह-राजभ्यां कृग्-युधेः।५।१।१६७ / आभ्यां कर्मभ्यां पराभ्यां भृतार्थाभ्यां कृग्युधिभ्यां क्वनिक भवति / सहकृत्वा / सहयुध्वा / राजकृत्वा / राजयुध्वा / __अनोजनेडः / 5 / 1 / 168 / कर्मणः परादनुपूर्वाजनेः भूतार्थाद् डः प्रत्ययो भवति / पुमनुजा सप्तम्याः / 5 / 1 / 169 / सप्तम्यन्तात् पराद् भूतार्थाजनेः डः प्रत्ययो भवति / मन्दुरायां जातः मन्दुरजः। .. अजातेः पञ्चम्याः / 5 / 1 / 170 / अजात्यर्थात् पञ्चम्यन्तात् पराद् भूतार्थाद् जनेर्डप्रत्ययो भवति / बुद्धेर्जाता बुद्धिना कल्पना। जात्यर्थात् परात्तु गजाज्जातः इत्येव, न डप्रत्ययः। क्वचित् / 5 / 1 / 171 / उक्तादन्यत्रापि क्वचिद् ङः प्रत्ययो भवति / किञ्जः / अनुजः / अजः / स्त्रीजः / ब्रह्मज्यः / वराहः / ...... सुयजो वनिप् / 5 / 1 / 172 / आभ्यां भूतार्थाभ्यां वनिप् प्रत्ययो भवति / सुत्वानौ / यज्वा। Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (297) ऋषोऽनुः / 5 / 1 / 173 भूतार्थाद् जुषेरतः प्रत्ययो भवति / जरती / जरन् / नग्नपलितप्रियान्धस्थूलसुभगान्यतदन्ताच्च्व्यर्थे: च्चेर्भुवः खिष्णु-खुको / 5 / 1 / 128 / नग्नादिभ्यः केवलेभ्यस्तदन्तेभ्यश्च व्यर्थे वर्तमानेभ्यः भच्यन्तेभ्यः पराद् भुवः खिष्णु-खुकौ भवतः / अनग्नो नग्नो भवतीति नग्नंभविष्णुः, नग्नंभावुकः / पलितंभविष्णुः, पलितंभावुकः / प्रियंभविष्णुः, प्रियंभावुकः / अन्धभविष्णुः, अन्धंभावुकः / स्थूलंभविष्णुः, स्थूलंभावुकः / सुभगंभविष्णुः, सुभगंभावुकः / आन्यंभविष्णुः, आत्यंभावुकः / तदन्तः सुनग्नंभविष्णुः / कृगः खनट् करणे / 5 / / 129 / - अळ्यन्तेभ्यश्व्यर्थवृत्तिभ्यो नग्नादिभ्यः परात् कृगः करणे खनट् प्रत्ययो भवति / अनग्नो नग्नः क्रियतेऽनेनेति नग्नंकरणं द्यूतम् / पलितंकरणम् / प्रियंकरणम् / अन्धकरणम् / स्थूलंकरणम् / सुभगंकरणम् / आढ्यंकरणम् / भावे चाशिताद् भुवः खः / 5 / 1 / 130 / आशितात् पराद् भूधातोः भावे करणे च खः प्रत्ययो भवति / आशितम्भव ओदनः। शत्रानशावेष्यति तु सस्यौ / 5 / 2 / 20 / Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (298) वर्तमानार्थाद् धातोः शत्रानशौ भवतः, भविष्यति तु स्ययुक्ती भवतः / गच्छतीति गच्छन् / यातीति यान् / शेते इति शयानः / पचमानः / गमिष्यतीति गमिष्यन् / यास्यन् / शयिष्यमाणः / पक्ष्यमाणः / 'माङयुपपदे आक्रोशेऽपि वक्तव्यौ ' मा पचन् वृषल ! ज्ञास्यसि / मा पचमानोऽसौ मर्तुकामः / / वा वेत्तेः क्वसुः / 5 / 2 / 22 / / ... वर्तमानार्थाद् वेत्तेः क्वसुर्वा भवति / वेत्तीति विद्वान् , विदन् सत्त्वम् / पूड-यजः शानः / 5 / 2 / 23 / आभ्यां वर्तमानार्थाभ्यां परः शानः प्रत्ययो भवति / पवते इति पवमानः / यजमानः। वय:-शक्ति-शीले। 5 / 2 / 24 / वर्तमानार्थाद् धातोः परः शानो भवति, एषु अर्थेषु गम्येषु / स्त्रियं गच्छमानः / समश्नानः / निन्दमानः / धारीडोऽकृच्छ्रेऽतृश् / 5 / 2 / 25 / वर्तमानार्थाद् धारेरिङश्च परः अकृच्छेऽर्थेऽतृश् प्रत्ययो भवति। धारयन् आचाराङ्गम् / अधीयन् / सुद्विषाहः सत्रिशत्रुस्तुत्ये / 5 / 2 / 26 / - वर्तमानार्थेभ्य एभ्यो यथासंख्यं सत्रिशत्रुस्तुत्येऽर्थे कर्तरि अतृश् प्रत्ययो भवति / सर्वे सुन्वन्तः / चौरं द्विषन् / पूनामर्हन् / Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 299) तृन् शील-धर्म-साधुषु / 5 / 2 / 27 / वर्तमानकालार्थाद् धातोः शीलाद्यर्थेषु तृन् प्रत्ययो भवति / करोति तच्छीलः कर्ता कटम् / मुण्डयितारः श्राविष्ठायनाः / गत्ता खेलः / भ्राज्यलंकगनिराकम्भूसहिरुचिकृत्तिद्धिचरिप्रजनापत्रप . इष्णुः / 5 / 2 / 28 / वर्तमानकालेभ्य एभ्यः शीलाद्यर्थेषु इष्णुः प्रत्ययो भवति / भ्रानिष्णुः / अलंकरिष्णुः / निराकरिष्णुः / भविष्णुः / सहिष्णुः। रोचिष्णुः / वर्तिष्णुः / वर्धिष्णुः / चरिष्णुः / प्रननिष्णुः / अपत्रपिष्णुः / उदः पचि-पति-पदि-मदेः। 5 / 2 / 29 / शीलादिसदर्थेभ्य एभ्य इष्णुः प्रत्ययो भवति / उत्पचिष्णुः / उत्पतिष्णुः / उत्पदिष्णुः / उन्मदिष्णुः / . भू-जेः ष्णुक् / 5 / 2 / 30 / आभ्यां शीलादिसदाभ्यां ष्णुक् भवति / भूष्णुः / जिष्णुः। स्थाग्लाम्लापचिपरिमृजिः स्नुः / 5 / 2 / 31 / एभ्यः सदर्थेभ्यः शीलादौ स्तुः भवति / स्थास्नुः / रलास्नुः / म्लास्नुः / पक्ष्णुः / परिमाणुः / क्षेष्णुः। त्रसि-गृधि-धृषि-क्षिपः क्नुः / 5 / 2 / 32 / शीलादिसदर्थेभ्य एभ्यःक्नुः भवति / त्रस्नुः / गृध्नुः / धृष्णुः। क्षिण्णुः / Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभिक्षाऽऽसेरुः / 5 / 2 / 33 / शीलादिसदर्थेभ्यः सन्नन्तभिक्षाऽऽशंसिभ्य प्रत्ययो भवति / लिप्सुः / चिकीर्षुः / भिक्षुः / आशंसुः / / विन्दिच्छु / / 2 / 34 / शीलादिसदाभ्यामाभ्यां वेत्तीच्छिभ्यां यथासंख्यं नुपान्त्य च्छान्तादेशौ च निपात्येते / वेत्ति तच्छीलः विन्दुः / इच्छुः / : शु-चन्देरारुः / 5 / 2 / 35 / / ' शीलादिसदाभ्यामाभ्यामारुः भवति / शरारुः / विशरारुः / चन्दारुः / दा-धे-मि-शद-सदो रुः / 5 / 2 / 36 / शीलादिसदर्थेभ्य एभ्यो रुः प्रत्ययो भवति / दारुः / धारुः / सेरुः / शगुः / सद्रुः। . . शीश्रद्धानिद्रातन्द्रादयिपतिगृहिस्पृहेरालुः / 5 / 2 / 37 / ___शीलादिसदर्थेभ्य एभ्य आलुः प्रत्ययो भवति / शयालुः / श्रद्धालुः / निद्रालुः / तन्द्रालुः / दयालुः / पतयालुः / गृहयालुः / स्पृहयालुः / ___ ङौ सासहिवावहिचाचलिपापति / 5 / 2 / 38 / ____ एते यङन्ता डिप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / सासहिः / वावहिः / चाचलिः / पापतिः / सास्त्रि-चक्रि-दधि-जज्ञि-नेमि / 5 / 2 / 39 / . - एते यङन्ता डिप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / सस्त्रिः / चक्रिः / दधिः / जज्ञिः / नेमिः / Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 301) शूकमगमहनवृषभूस्थ उकण् / 5 / 2 / 10 / ... - शीलादिसदर्थेभ्य एभ्य उकण् भवति / शारुकः / कामुकः / / गामुकः / घातुकः / वय्कः / भावुकः / स्थायुकः / लष-पत-पदः। 5 / 2 / 41 / एभ्यः शीलादिसदर्थे उकण भवति / अभिलाषुकः / पातुकः। पादुकः / भूषाक्रोधार्थजुमृगृधिज्वलशुचश्चानः / 5 / 2 / 42 / __भूषार्थेभ्यः क्रोधार्थेभ्यो ज्वादिभ्यो लषादिभ्यश्च शीलादिसदर्थेभ्यः अनः भवति / भूषणः / क्रोधनः / कोपनः / जवनः / / सरणः / गर्धनः / ज्वलनः / शोचनः / लषणः / पतनः / पदनः। __चलशब्दार्थादकर्मकात् / 5 / 2 / 43 / चलनार्थाच्छब्दार्थादकर्मकात् शीलादिसदर्थे अनो भवति / चलनः / रवणः / अकर्मकादिति किम् ? पठिता विद्याम् / इङितो व्यअनाद्यन्तात् / 5 / 2 / 44 / व्यञ्जनमादि अन्तं च यस्य तस्मादिदितो ङितश्च शीलादिसदर्थे अनो भवति / स्पर्धते तच्छीलः स्पर्धनः / वर्तनः / 'यङन्ताभ्यां द्रमक्रमाभ्यामनो वाच्यः' / दंद्रमणः / चंक्रमणः / न गिङ्-य-सूद-दीप-दीक्षः। 5 / 2 / 15 / . णिङन्ताद् यन्तात् सूदादिभ्यश्च शीलादिसदर्थेभ्य अनः / Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (302) प्रत्ययो न भवति / भावयिता / क्ष्मायिता / सूदिता / दीपिता / दीक्षिता। यजि-जपि-दंशि-वदादूकः / 5 / 2 / 17 / . एभ्यो यङन्तेभ्यः शीलादिसदर्थेभ्यो उकः भवति / यायजूकः / जनपूकः / दंदशूकः / वावदूकः / 'जागृधातोरपि उको बक्तव्यः' जागर्ति तच्छीलो जागरूकः / / शमष्टकाद् घिनण् / 5 / 2 / 49, / एभ्यः शीलादिसदर्थेभ्यो घिनण् भवति / शमी / दमी। तमी। श्रमी / भ्रमी / क्षमी / मादी / क्लमी / युजभुजभजत्यजरअद्विषदुपद्रुहदुहाभ्याहनः / 5 / 2 / 50 / शीलादिसदर्थेभ्य एभ्यो घिनण् प्रत्ययो भवति / योगी / भोगी। भागी। त्यागी / रागी / द्वेषी / दोषी / द्रोही / दोही। भभ्याघाती। 'आङपूर्वाभ्यां क्रीड-मूषाभ्यामपि वक्तव्यः' आक्रीडी, भामोषी / 'प्रपूर्वाभ्यां मथ-लपाम्यां घिनण वाच्यः' प्रमाथी, प्रलापी। 'आङपूर्वाभ्यां प्रपूर्वाभ्यां च यम-यसाभ्यां घिनण कर्तव्यः' प्रयामी, आयामी / प्रयासी, आयासी / वेविचकत्यसम्भकषकसलसहनः / 5 / 2 / 59 / विपूर्वादेभ्यो घिनण् शीलादिसदर्थे भवति / विवेकी विकत्थी / विनम्भी / विकाषी / विकासी / विलासी / विघाती व्यपाभेर्लषः / 5 / 2 / 6 / / Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 303) एभ्यः पराद् लषेः शीलादिसदर्थे घिनण भवति / विलॉषी। अपलाषी / अभिलाषी / 'संप्राभ्यां पराद् वसाद घिनण काच्यः। संवासी, प्रवासी। समत्यपाभिव्यभेश्वरः / 5 / 2 / 62 / एभ्यः पराञ्चरतेः घिनण् भवति / संचारी / अतिचारी। अपचारी / अभिचारी / व्यभिचारी। समनुव्यवाद् रुधः / 5 / 2 / 63 / एभ्यः .राद् रुधेः शीलादिसदथे घिनण् भवति / संरोधी / भनुरोधी / विरोधी / अवरोधी / 'विपूर्वाद् दहेः, परिपूर्वाद् देविमुहि-दहि-क्षिर-रटिभ्यश्च घिनण् वाच्यः' / विदाही, परिदेवी, . परिमोही, परिदाही, परिक्षेपी, परिराटी। , वादेश्च णकः / 5 / 2 / 67 / परिपूर्वात् क्षिप-रटिभ्यां वादेश्च णकः प्रत्ययो भवति। परिक्षेपकः / परिराटकः / परिवादकः / निन्द-हिंस-क्लिश-खाद-विनाशिव्या-भाषासूयानेक स्वरात् / 5 / 2 / 68 / ... एभ्यः शीलादिसदर्थे णकप्रत्ययो भवति / निन्दकः / हिंसकः / क्लेशकः / खादकः / विनाशकः / व्याभाषकः / असूयकः चकासकः / 'उपसर्गात् परेभ्यो देव-देवि-क्रुशिभ्यः शीलादिसदथें गको वाच्यः' आदेवकः, परिदेवकः, आक्रोशकः / Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) इभितिलण्टिजल्पिकुट्टात् यकः / 5 / 2 / 70 / एभ्यः टाकप्रत्ययो भवति / वराकी / भिक्षाकः / लुण्टाकी। जल्पाकः / कुट्टाकः / सू-घस्यदो मरक् / 5 / 2 / 73 / एभ्यः शीलादिसदर्थेभ्यो मरक् भवति / सृमरः / घस्मरः / अमरः / __ भनि-भासि-मिदो घुरः / 5 / 2 / 74 / . एभ्यः शीलादिसदर्थेभ्यो घुरो भवति / भारम् / भासुरः / मैदुरः / वेत्ति-च्छिद-भिदः कित् / 5 / 2 / 75 / एभ्यः शीलादिसदर्थे घुरो भवति, स च कित् / विदुरः। छिदुरः / भिदुरः कुठारः / भियो रु-रुक-लुकम् / 5 / 2 / 76 / अस्माच्छीलादिसदादेते भवन्ति। भीरुः / भीरुकः / भीलुकः। स-जीण-नशट्वरप / 5 / 2 / 77 / शीलादिसदर्थेभ्य एभ्यः ट्वरप् भवति / सृत्वरी / जित्वरः। इत्वरः / नश्वरः / 'गमेष्टुरपि गत्वर इति निपात्यते' गत्वरी / स्म्यजसहिंसदीपकम्पकमनमो रः।५।२ / 79 / __ भ्यः शीलादिसदर्थे रः प्रत्ययो भवति / स्मेरम् / अनरुम् / हिंस्रः / दीप्रः / कम्प्रः / कनः / नम्रः / Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3.5) तृषि-धृषि-स्वपो नजिङ् / 5 / 2 / 80 / एभ्यः शीलादिसदर्थे नजिङ् भवति / तृष्णक् / धृष्णक् / स्वप्नक् / स्थेश-भास-पिस-कसो वरः। 5 / 2 / 81 / एभ्यः शीलादिसदर्थेभ्यो वरः भवति / स्थावरः / ईश्वरः / भास्वरः। पेस्वरः। कस्वरः / 'यङन्तयाधातोः यायावर इति निपात्यः। . मात् सू-जोरिन्। 5 / 2 / 71 / प्रात् पराभ्यामाभ्यां शीलादिसदाभ्यामिन् प्रत्ययो भवति / प्रसवी / प्रजवी। जीण्डक्षिविश्रिपरिभूवमाभ्यमाव्यथः / 5 / 2 / 72 / ___एभ्यः शीलादिसदर्थे इन् भवति / जयी / अत्ययी। आदरी / क्षयी / विश्रयी / परिभवी / वमी / अभ्यमी / अव्यथी। दिद्युद्-ददृज्जगज्जुहू-बाक्-पाड्-धी-श्रीन्द्र-स्त्र-ज्वायतस्तूकटपू-परिवाइ-भ्राजादयः विपः / 5 / 2 / 83 / एते क्विबन्ता निपात्यन्ते / दिद्युत् / ददृत् / जगत् / जुहूः / वाक् / शब्दप्राट् / धीः / श्रीः / शतद्रूः / खूः। जूः / आयतस्तूः / कटपूः / परिबाड् / विभ्राड् / भाः / शं-सं-स्वयं-विवाद् भुवो डुः / 5 / 2 / 84 / . एभ्यः परात् सदाद् भवतेः डुः प्रत्ययो भवति / शंभुः / संमुः / स्वयंमुः / विभुः / प्रभुः / 'पूधातोरित्रो वक्तव्यो दैवतेऽर्थे 20 Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3.06 ) पवित्रोऽर्हन् / 'ऋषावर्थे सज्ञायां च पूधातोः करणे इत्रो वक्तव्यः / पुनात्यनेनेति पवित्रः ऋषिः, दर्भो वा। लू-धू-मू-खन-चर-सहार्तेः। 5 / 2 / 87 / एभ्यः सदर्थेभ्यः करणे इत्रो भवति / लवित्रम् / पवित्रम् / सवित्रम् / खनित्रम् / चरित्रम् / सहित्रम् / अरित्रम् / / नीदांशसूयुयुजस्तुतुदसिसिचमिहपतपानहस्त्रट् / 5 / 2 / 88 एभ्यः सदर्थेभ्यः करणे त्रड् भवति / नेत्रम् / दात्रम् / शस्त्रम् / योत्रम् / योक्त्रम् / स्तोत्रम् / तोत्रम् / सेत्रम् / सेक्त्रम् / मेढ़म् / पत्त्रम् / पात्रम् / नधी / 'पूधातोः हलास्ये कोडास्ये च करणे त्रट् वाच्यः' पोत्रं हलमुखं क्रोडमुखं वा। 'दशः करणे दंष्ट्रा निपात्यते' 'धाधातोः कर्मणि धात्री निपात्यते / क्त-क्तवतू / 5 / 1 / 174 / / ___ भूतार्थाद् धातोः क्त-क्तवतू भवतः / कृतः / भूतः / पक्वः / एधितः / भूतवान् / कृतवान् / जात शवाझ्यः क्तौ भावारम्भे / 4 / 3 / 26 / उकारोपान्त्येभ्यः शवहेभ्योऽदादिभ्यश्च धातुभ्यः पगै भावारम्भे विहितौ क्त-क्तवतू सेटौ वा किद्वद् भवतः / कुचितम् , कोचितमनेन / प्रकुचितः, प्रकोचितः / प्रकुचितवान्, प्रकोचितवान् / रुदितम् , रोदितं तैः / प्ररुदितः, प्ररोदितः / प्ररुदितवान् , प्ररोदितवान् / च डीशीङ्पूकृषिक्ष्विदिस्विदिमिदः / 4 / 3 / 27 / Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एभ्यः परौ सेटौ क्त-क्तवतू किवद् न भवतः / डयितः / डयितवान् / शयितः / शयितवान् / पवितः / पवितवान् / धर्षितः। धर्षितवान् / श्वेदितः / श्वेदितवान् / स्वेदितः / स्वेदितवान् / मेदितः / मेदितवान् / सेटावित्येव डीनः / डीनवान् / मृपः क्षान्तौ / 4 / 3 / 28 / क्षमार्थाद् मृष्धातोः सेटौ क्त-क्तवतू किद्वद् न भवतः / मर्षितः / मर्षितवान् / ___ ह्रादो हृद् क्तयोश्च / 4 / 2 / 67 / ह्लादः क्तयोः क्तौ च परेषु हृद् भवति / हन्नः / हन्नवान् / हृत्तिः / ____ अल्वादेरेषां तो नोऽप्रः / 4 / 2 / 68 / पूवर्जाद् ऋदन्ताद् ल्वादिभ्यश्च परेषां क्त-क्तवतु-क्तीनां तस्य नो भवति / तीर्णः / तीर्णवान् / तीणिः / लूनः / लूनवान् / लूनिः / धूनः / धूनवान् / धूनिः / अन इति किम् / पूर्तः / पूर्तवान् / पूर्तिः / रदादमूर्च्छमदः क्तयोर्दस्य च / 4 / 2 / 69 / मूर्छिमदिवर्जिताद् रकारान्ताद दकारान्ताच धातोः परयोः क्तक्तवत्वोः तो नो भवति, तत्संनियोगे धातोर्दस्यापि नो भवति / पूर्णः / पूर्णवान् / गूर्णः / गूर्णवान् / भिन्नः / भिन्नवान् / छिन्नः / छिन्नवान् / अमूर्च्छमद इति किम् ? मूर्तः, मूर्तवान् / मत्तः, मत्तवान्।रदादिति किम् ? चरितम् , मुदितम् अत्रेटा व्यवधानान्न भवति। Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 308) सूयत्यायोदितः। 4 / 2 / 70 / नवभ्यः सूयत्यादिभ्य ओदिभ्यश्च परयोः क्तयोः तो नो भवति / सूनः / सूनवान् / दूनः / दूनवान् / लग्नः / लग्नवान् / उद्विग्नः / उद्विग्नवान् / पीनः / पीनवान् / शूनः / शूनवान् / . व्यञ्जनान्तस्थातोऽख्याध्यः / 4 / 2 / 71 / ख्याध्यावर्जस्य धातोर्यद् व्यञ्जनं तस्मात् परा याऽन्तस्था तस्याः परो य आकारः तस्मात् परयोः क्तयोः तो नो भवति / स्त्यानः / स्त्यानवान् / व्यञ्जनेति किम् ? यातः / अन्तस्था इति किम् ? स्नातः / आत इत्येव च्युतः / अख्याध्य इति किम् ? ख्यातः, ख्यातवान् ; ध्यात', ध्यातवान् / आतः परस्येति किम् ? दरिदितः / पूदिव्यञ्चे शायूतानपादाने / 4 / 2 / 72 / एभ्यो यथासंख्यं नाशाद्यर्थेभ्यः परयोः क्तयोः तो नो भवति। पूना यवाः / आद्यूनः / समनौ पक्षौ / नाशाद्यूतानपादान इति किम् ? पूतम् , द्यूतम् , उदक्तम् / सेसे कर्मकर्तरि / 4 / 2 / 73 / सेः परयोः क्तयोः ग्रासे कर्मकर्तरि तो नो भवति / सिनो ग्रासः स्वयमेव / कर्मकर्तरीति किम् ? सितो ग्रासो मैत्रेणं / क्षेः क्षी चाध्यार्थे / 4 / 2 / 74 / Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यणोऽर्थो भावकर्मणी, ततोऽन्यस्मिन्नर्थे क्तयोः तः क्षे परस्य नो भवति, तद्योगे क्षेः क्षी च / क्षीणः / क्षीणवान् / अध्यार्थ इति किम् ? सितमस्य / वाऽऽक्रोश-दैन्ये / 4 / 2 / 75 / / .. आक्रोशे दैन्ये च गम्ये क्षेः परयोः क्तयोः तो नो वा भवति, तद्योगे क्षी च / क्षीणायुः, क्षितायुर्नाल्म / क्षीणका, तितकः तपस्वी। ऋ-ही-ध्रा-ध्रा-त्रोन्द-नुद-विन्तेर्वा / 4 / 2 / 76 / ___ एभ्यो धातुभ्यः परस्य क्तयोः तकारस्य वा नकारो भवति / ऋणम् , ऋतम् / हीणः, हीतः / प्राणः, प्रातः / ध्राणः, भ्रातः / त्राणः, त्रातः / समुन्नः, समुत्तः / नुन्नः, नुत्तः / विनः, वित्तः / ऋणवान् , तवान् / हीणवान् , हीतवान् / घ्राणवान् , नातवान्। त्राणवान् , जातवान् / विन्नवान् , वित्तवान् / .. दुगोरू च / 4 / 2 / 77 / अनयोः क्तयोः तकारस्य नकारो भवति, तद्योगेऽनयोरुकारश्चान्तादेशः / दूनः / दूनवान् / गूनः / गूनवान् / -शुषि-पचो म-क-वम् / 4 / 2 / 78 / . एभ्यः परयोः क्तयोः यथासंख्यं मकवा भवन्ति / क्षामः / क्षामवान् / शुष्कः / शुष्कवान् / पक्वः / पक्ववान् / 'अवाते कर्तरि निर्वाणो निपात्यः' निर्वाणो मुनिः / वाते कर्तरि नितिः / Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (310) अनुपसर्गाः क्षीवोल्लाघ-कृश-परिकृश-फुल्लोत्फुल्ल-संफुल्लाः। 4 / 2 / 80 / उपसर्गरहिता एते क्तान्ता निपात्यन्ते / क्षीवृ मदे सीवः / ला सामर्थ्य उल्लाघः / कृश तनुकरणे कृशः, परिकृशः / जिफला विशरणे फुल्लः, उत्फुल्लः, संफुल्लः / भित्तं शकलम् / 4 / 2 / 81 / भिदेः परस्य क्तस्य शकलपर्याये नृत्वाभावो निपात्यते / भित्तं शकलमित्यर्थः / वित्तं धन-प्रतीतम् / 4 / 2 / 82 / विन्दतेः परस्य क्तस्य धनप्रतीतरूपे पर्याये नत्वाभावो निपात्यते / वित्तं धनमित्यर्थः / वित्तः प्रतीत इत्यर्थः / अन्यत्र विनः / प्राद् दागस्त आरम्भे क्ते / 4 / 4 / 7 / प्रपूर्वादारम्भार्थस्य दागः क्ते परे तो वा भवति / प्रत्तः, प्रदत्तः / नि-वि-स्वन्ववात् / 4 / 4 / 8 / एभ्यः परस्य दागः क्ते परे तो वा भवति / नीत्तम् , निदत्तम् / वीत्तम् , विदत्तम् / सूत्तम् , सुदत्तम् / अनूत्तम् , अनुदत्तम् / अवत्तम् , अवदत्तम् / / स्वरादुपसर्गाद् दस्ति कित्यधः / 4 / 4 / 9 / Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वरान्तादुपसर्गात् परस्य दासज्ञकस्य तादौ किति परे तो भवति, धाधातुं वर्जयित्वा / प्रत्तः / प्रत्तवान् / दत् / 4 / 4 / 10 / धावर्जितस्य दासङ्घकस्य तादौ किति परे दत् भवति / दत्तः / दत्तवान् / . दो-सो-मा-स्थ इः / 4 / 4 / 11 / एषां तादौ किति परे इर्भवति / निर्दितः। सित्वा / मितिः / स्थितः / स्थितवान् / छा-शोर्वा / 4 / 4 / 12 / अनयोः तादौ, किति परे इकारो वा भवति / अवच्छातः, अवच्छितः / निशितः, निशातः / हाको हिः क्त्वि / 4 / 4 / 14 / _ हाकः क्त्वांप्रत्यये परे हिः भवति / हित्वा / क्वीति किम् ? हीनम् / धागः / 4 / 4 / 15 / धागस्तादौ किति परे हिः भवति / हितः / विहितः / हित्वा / उवर्गात् / 4 / 4 / 58 / __उवर्णान्तादेकस्वराद् धातोर्विहितस्य कित. आदिरिड न भवति / युतः / लूनः। डीयश्व्यैदितः क्तयोः। 4 / 4 / 61 / Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 312) डीच्धातोः श्वे ऐदिद्यश्च धातुभ्यः क्तयोरादिरिड् न मवति / डीनः / डीनवान् / शूनः / शूनवान् / त्रस्तः / त्रस्तवान् / वेटोऽपतः / 4 / 4 / 62 / / विकल्पेनेड् येभ्यस्तेभ्यः पत्लवर्नेभ्य एकस्वरेभ्यः क्तयोरादिरिड् न भवति / रद्धः / रद्धवान् / अपत इति किम् ? पतितः / सं-नि-वेरर्दः / 4 / 4 / 63 / एभ्यः परादः क्तयोः आदिरिड् न भवति / समर्णः / समर्णवान् / न्यणः / न्यर्णवान् / व्यर्णः / व्यर्णवान् / अविदुरेऽभेः / 4 / 4 / 64 / / - अभेः परादर्देर विदूरेऽर्थे क्तयोरादिरिड् न भवति / अभ्यर्णः / अभ्यर्णवान् / वर्तेवृत्तं ग्रन्थे / 4 / 4 / 65 / ण्यन्ताद् वृत्तेः क्तप्रत्यये ग्रन्थविषये वृत्तमिति निपात्यते / वृत्तो गुणश्छात्रेण / धृष-शसः प्रगल्भे / 4 / 4 / 66 / - आभ्यां क्तयोरादिरिड् न भवति प्रगल्भेऽर्थे / धृष्टः / विशस्तः प्रगल्भ इत्यर्थः / कषेः कृच्छ्र-गहने / 4 / 4 / 67 / / Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (313) कष्धातोः परयोः कृच्छे गहने चार्थे क्तयोरादिरिड न भवति / कष्टोऽग्निः / कष्टं वनम् / / घुषेरविशब्दे / 4 / 4 / 68 / अविशब्दार्थाद् घुषेः क्तयोरादिरिड़ न भवति / घुष्टा रज्जुः / घुष्टवान् / बलि-स्थूले दृढः / 4 / 4 / 69 / बलवति / स्थूले चार्थे हहेः हेर्वा क्तान्तस्य दृढ इति निपात्यते / दृढः वली स्थूलो वा / बलिस्थूल इति किम् ? हहितम् , हितम्। क्षुब्धविरिब्धस्वान्तध्वान्तलग्नम्लिष्टफाण्टबाढपरिवृढं मन्थस्वरमनस्तमासक्तास्पष्टानायासभृशप्रभौ / 4 / 4 / 70 / - एते क्तप्रत्ययान्ता मन्थादिष्वर्थेषु निपात्यन्ते / क्षुब्धः सरित्पतिः / विरिब्धः स्वरः / स्वान्तं मनः / ध्वान्तं तमः / लग्नमासक्तम् / म्लिष्टमस्पष्टम् / . फाण्टमनायाससाध्यम् / बाद भृशम् / परिवृढः प्रभुः / आदितः / 4 / 4 / 71 / . आदितो धातोः परयोः क्तयोरादिरिड् न भवति / मिन्नः / मिन्नवान् / . नवा भावारम्भे / 4 / 4 / 72 / आरम्भः प्रथमा क्रिया। आदितो धातोः आरम्भे भावे चार्थे Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (314) क्तयोरादिरिड् वा भवति / मिन्नमनेन, मेदितं वा। प्रमिन्नः, प्रमेदितः / प्रमिन्नवान् , प्रमेदितवान् / शकः कर्मणि / 4 / 4 / 73 / शकेः कर्मणि क्तयोरादिरिड वा भवति / शक्तः, शकितो वा पृटः कर्तुं चैत्रेण। गौ दान्तशान्तपूर्णदस्तस्पच्छन्नज्ञप्तम् / 4 / 4 / 74 / - दमादीनां धातूनां णौ सति क्ते परे एतानि निपात्यन्ते वा। दान्तः, दमितः / शान्तः, शमितः / पूर्णः, पूरितः / दस्तः, दासितः / स्पष्टः, स्पाशितः / छन्नः, छादितः / ज्ञप्तः, ज्ञपितः / - श्वसजपवमरुषत्वरसंघुषास्वनामः / 4 / 4 / 75 / __एभ्यो धातुभ्यः क्तयोरादिरिड् वा भवति / श्वस्तः, श्वसितः / जप्तः, जपितः / जप्तवान् , जपितवान् / वान्तः, . वमितः / वान्तवान् , वमितवान् / रुष्टः, रुषितः / रुष्टवान् , रुषितवान् / तूर्णः, त्वरितः / तूर्णवान् , त्वरितवान् / संजुष्टम् , संबुषितम् / संधुष्टवान् , संघुषितवान् / आस्वान्तः, आस्वनितः / अभ्यमितः, अभ्यान्तः / . हृषेः केशलोमविस्मयप्रतीघाते / 4 / 4 / 76 / / हृषेः केशाद्यर्थेषु क्तयोरादिरिड् वा भवति / केशलोमकर्तृका क्रिया केशलोमशब्देनोच्यते / हृष्टाः, हृषिता वा केशाः / हृष्टानि, हृषितानि वा लोमानि / हृष्टः, हृषितों वा जिनदत्तः / Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (315) हृष्टाः, हृषिता वा दन्ताः प्रतिहता इत्यर्थः / 'अपपूर्वात् चायधातोः स्तान्तस्येडाभावः चिश्चादेशो निपात्यते' / अपचितः / 'अनुपसगम्य प्यायतेः क्तयोः पी' इति पीनः / पीनवान् / पीनवद् मुखम्। अथोणादिगणः। कुवापाजिस्वदिसाध्यशोदृस्नासनिननिरहीणभ्य उण् / / 1 // सत्यर्थे वर्तमानेभ्यः करोत्यादिभ्यो धातुभ्यः सम्प्रदानापादानाभ्यामन्यस्मिन् कारके भावे च सञ्ज्ञायां विषये बहुलमु प्रत्ययो भवति / करोति कृणोति वा कारुः नापितादिः, इन्द्रश्च / वाति वायति वा द्रव्याणि वायुः नभस्वान् / पिबति तैलादि द्रव्यमनेन पायुः अपानमुपस्थश्च / जयति रोगाजू श्लेष्माणं वाऽनेन जायुः औषधं पितं वा / स्वद्यतेऽनेनेदं वा स्वादुः रुच्यः / साध्नोति उत्तमक्षमादिभिः तपोविशेपैः भावितात्मा स्वपरकार्याणीति साधुः, वा सम्यग्दर्शनादिभिः साध्नोति परमं पदं साधुः संयतः, उभयलोकं साधयतीति साधुः धर्मशीलः / अश्नुते तेजसा सर्वमिति आशुः सूर्यः / अश्नुते आशुः शीघ्रगामी / दरति दृणाति वा दारु काष्ठम् / स्नायति स्नायुः अस्थिनहनम् / सनति सनोति वा मृगादीनिति सानुः पर्वतैकदेशः / जायते आकुञ्चनादि Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (316) अनेन जानु जरुजङ्घासन्धिमण्डलम् / रहति गृहीत्वा सूर्याचन्द्रमसौ स्वशरीरं वा राहुः सैंहिकेयः / एतीत्यायुः पुरुषः शकटम् औषधं जीवनं पुरूरवःपुत्रो वा / एवं जरायुः गर्भवेष्टनम् / जटायुः पक्षी / धनायुः देशः / रसायुः भ्रमरः // 1 // अः॥२॥ सर्वधातुभ्यो यथायोगमकारः,प्रत्ययो भवति / भवः / तरः। वरः। शयः / स्तवः / प्लवः / परः / करः / चरः / कदः इत्यादि // 2 // नत्रः क्रमिगमिशमिखन्याकमिभ्यो डित् // 3 // ननः परेभ्य एभ्यः अः प्रत्ययो भवति, स च डिद् / न क्रामति नकः जलचरो ग्राहः / न गच्छति नगः पर्वतः वृक्षश्च / न शाम्यति नशः यक्षः पिशाचो वा / न खनति नखः करजः / नात्राकमस्तीति नाकः स्वर्गः // 3 // गो द्वे च // 7 // करोतेः किदप्रत्ययो भवति, धांतोश्च द्वित्वम् / करोतीति चक्रं रथाङ्गमायुधं च // 7 // पृ-पलिभ्यां टित् पिप् च पूर्वस्य // 11 // आभ्यामः प्रत्ययो भवति स च टिद् , अनयोश्च सरूपे द्वेरूपे पूर्वस्थाने पिपादेशश्च भवति / पृणाति च्छायया पिप्परी वृक्षजातिः / पलति आतुरं पिप्पली औषधजातिः // 11 // Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 317) दृकृनसृशृमृस्तुकुक्षुलचिचरिचटिकटिकण्टिचणिचषिफ'लिवमितम्यविदेविबन्धिकनिजनिमशिक्षारिकूरितिवल्लि मल्लिसल्लयलिभ्योऽकः // 27 // एभ्यो धातुभ्य अकः प्रत्ययो भवति / हणाति दरकः भीरुः। करकः जलभाजनम् कमण्डलुश्च / करका वर्षपाषाणः / नरकः निरयः / सरकः मद्यविशेषः / सरका मधुपानवारः / भरकः गौण्यादिः / धरकः सुवर्णोन्माननियुक्तः / वरकः वधूजातिसहायः वृक्षजातिविशेषश्च / मरकः जनोपद्रवः / स्तबकः पुष्पगुच्छः / कवकम् अभक्ष्यद्रव्यविशेषः / क्षवकः राजसर्षपः / लचकः रङ्गोपजीवी / चरकः मुनिः / चटकः पक्षी / कटकः वलयः / कण्टकः तरुरोम / चणकः मुनिः धान्यविशेषश्च / चषकः पानभाजनम् / फलकः खेटकम् / वमकः कर्मकरः / तमकः व्याधिः क्रोधश्च / अवका शैवलम् / देवका अप्सराः / देविका नदी / बन्धकः चारकपालः / कनकं सुवर्णम् / जनकः सीतापिता / मशकः क्षुद्रजन्तुः / क्षारकं बालमुकुलम् / कोरकं प्रौढमुकुलम् / वर्तका वर्तिका वा शकुनिः / वल्लकी वीणा / मल्लकः शरावः / मल्लिका पुष्पजातिः दीपाधारश्च / सल्लः सौत्रो धातुः सल्लकी वृक्षः / अलकः केशविन्यासः / अलका पुरी // 27 // कीचकपेचकमेनकाकधमकवधकलघकजहकैरकैडकाश्मक लमकक्षुल्लकवदवकाढकादयः // 33 // कीचकादयः शब्दा अप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / कचि Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (318) बन्धने कीचकः वंशविशेषः / पचीं पाके पेचकः करिजघनभागः / मचि कल्कने मेचकः वर्णः / मनिंच ज्ञाने मेनका अप्सराः / ऋ गतौ अर्भकः बालः / ध्मां शब्दाग्निसंयोगयोः धमकः कीट: कारश्च / हन्क् हिंसायां वधकः हन्ता व्याधिश्च ।वधकं पद्मबीजम् / वृत्रवधः शक्रः / लघुङ् गतौ लघकः असमीक्ष्यकारी। जहकः निर्माचकः कालः क्षुद्रश्च / ईरिक् गति-कम्पनयोः एरका उदकतृणजातिः। ईडिक् स्तुतौ एडका अविजातिः / अशौटि व्याप्तौ अश्मका जनपदः / रमिं क्रीडायां लमकः ऋषिविशेषः / क्षुद्रूपी संपेषे / क्षुल्लकं दभ्रम् / क्षुधं लातीति क्षुल्लः, क्षुल्ल एव क्षुल्लकः / वट वेष्टने वट्वका तृणपुञ्जः / आङ्पूर्वाद् ढौकतेः आढकं मानम् / आदिग्रहणात् कला आपिबन्तीति कलापकाः शास्त्राणि / कथयतीति कथकः तोटकानामाख्यायिकादीनां च वर्णयिता // 33 // शलिबलिपतिवृतिनभिपटितटितडिगडिभन्दिवन्दिमन्दिनमिकु ___दु मनिखनिभ्य आकः // 34 // एभ्यो धातुभ्य आकः प्रत्ययो भवति / पल फल शल गतौ, शलि चलने वा शलाका एषणी पूरणरेखा द्यूतोपकरणं सूची च / बल प्राणनधान्यावरोधयोः बलाका जलचरी शकुनिः / पत्ल गतौ पताका वैजयन्ती / वृतूङ् वर्तने वर्ताका शकुनिजातिः / णभच् हिंसायां नभाकः चक्रवाकजातिः तमः काकश्च / पट गतौ पटाका वैजयन्ती पक्षिनातिश्च / तट उच्छाये तटाकं सरः / तडण् आघाते Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 319) तडाकं सरः / गंड सेचने गडाकः शाकजातिः / भदुङ् सुखकल्याणयोः भन्दाकं शासनम् / वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः वन्दाकः चीवरभिक्षुः / मदुङ् स्तुत्यादिषु मन्दाका औषधी। णमं प्रहुत्वे नमाका म्लेच्छजातिः / कुंङ् शब्द कवाकः पक्षी / टुहुँ उपतापे दवाकः म्लेच्छः / पूङ पवने पवाका वात्या / मनिंच् ज्ञाने मनाका हस्तिनी / खज मन्थे खजाकः आकरः मन्थाः दर्विः आकाश बन्धकी शरीरं पक्षी च / / 34 // मवाक-श्यामाक-वार्ताक-वृन्ताक-ज्योन्ताक-गूवाक भद्राकादयः // 37 // एते आकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / मव्य बन्धने मवाकः रेणुः / श्यैङ गतौ श्यामाकः जबन्यो व्रीहिः / वृतूङ् वर्तने वार्ताकी शाकविशेषः तत्फलं वार्ताकम् / विरान्नोन्तश्च वृन्ताकी उच्चवृहती तत्फलं वृन्ताकम् / ज्युङ् गतौ स्विद्यमानो ज्यवतेऽस्मिन्निति ज्योन्ताकम् स्वेदसमविशेषः / गुत् पुरीपोत्सर्गे, गुङ् शब्दे वा गूवाकं पूगफलम् / भदुङ सुखे कल्याणे च भद्राकः अकुटिलः॥२७॥ क्रीकल्यलिदलिस्फटिपिभ्य इकः // 38 // एभ्य इकः प्रत्ययो मवति / डुक्रींग्श् द्रव्यविनिमये क्रयिका क्रेता / कलि शब्द-संख्यानयोः कलिका कोरकः / उत्कलिका उर्मिः / अली भूषणादौ अलिकं ललाटम् / दल विशरणे दलिकं दारु / स्फट स्फुट्ट विशरणे स्फटिकः मणिः। दुषंच वैकृत्ये दूषिका नेत्रमलः // 38 // Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (320) आङः पणि-पनि-पदि-पतिभ्यः // 39 // आङ्ग्रेभ्य एभ्य इकः प्रत्ययो भवति। पणि व्यवहारस्तुत्योः आपणिकः पत्तनवासी व्यवहारज्ञो वा। पनि स्तुतौ आपनिकः स्तावकः इन्दनीलः इन्द्रकीलो वा / पदिंच गतौ आपदिकः इन्द्रनीलः इन्द्रकीलो वा / पत्ल गतौ आपतिकः पथि वर्तमानः मयूरः श्येनः कालो वा // 39 // ____नसि-वसि-कीसभ्यो णित् // 40 // एभ्यो णिद् इकः प्रत्ययो भवति / णसि कौटिल्ये नासिका घ्राणम् / वसं निवासे वासिका माल्यदामविशेषः / कस गतौ कासिका वनस्पतिः // 40 // पापुलिकृषिक्रुशिवश्विभ्यः कित् // 41 // एभ्यः किद् इकः प्रत्ययो भवति / पापाने पिकः कोकिलः / पुल महत्त्वे पुलिकः मणिः / कृषीत् विलेखने कृषिक: पामरः / क्रुशं आहानरोदनयोः क्रुशिकः क्रोष्टुकः उलूकश्च / ओवश्वौत् छेदने वृश्चिकः सविषः कीटः राशिश्च नक्षत्रपादनवकरूपः / प्राङः पणि-पनि-कषिभ्यः // 42 // प्राङ एतस्मादुपसर्गसमुदायात् परेभ्य एभ्यः किदिकः प्रत्ययो भवति / पणि व्यवहारस्तुत्योः प्रापणिकः वणिक् / पनि स्तुतौ प्रापनिकः पथिकः / कष हिंसायां प्राकषिकः वायुः खलः नर्तकः मालाकारश्च // 42 // Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (321) सृणीकास्तीकातीकपूतोकसमीकवाहीकवालीकवल्मीककल्म: लीकतिन्तिडीककङ्कणीककिङ्किणीक पुण्डरीकचञ्चरीक फर्फरोकझझरीकघर्घरीकादयः // 50 // एते किदीकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / सृ गतौ सृणीकः वायुः अग्निः अशनिः उन्मत्तश्च / सृणीका लाला। असूक् भुवि अ. स्तीकः जरत्कारुसुतः / प्रांक पूरणे प्राति शरीरमिति प्रतीक वायुः अवयवः सुखं च / सुप्रतीकः दिग्गजः / पूङ् पवने पूतीकं तृणजातिः / इण् गतौ संयन्ति अस्मिन्निति समीकं संग्रामः। वहीं प्रापणे, वह्ल गतौ वाहीकः वाह्लीकः एतौ देशौ / वल संवरणे वल्मीकः नाकु / कल संख्याने कल्मलीकं ज्वाला / तिमः तिन्तिडीकः पक्षी वृक्षाम्लश्च / चसण्यतेः कङ्कण् च कङ्कणीकः घण्टांनालम् / किमः परात् कणतेः किङ्किणीका घण्टिका / पुणेः पुण्डरीकं पद्मं छत्रं व्याघ्रश्च / चञ्चेः चञ्चरीकः भ्रमरः / पिपतेर्द्वित्वं गुणः पकारयोः फत्वं रश्च पूर्वस्यान्तः फर्फरीकं . पल्लवं पादुका मर्दलिका च / झीर्यतेः द्वित्वं तृतीयाभावः पूर्वस्य रश्चान्तः झझरीकः देहः / झझरीका वादिनभाण्डम् / घरतेः घर्घरीका घण्टिका // 50 // कञ्चुकांशुकनंशुकपाकुकहिबुकचिबुक नम्बुकचुलुकचूचुको ल्मुकभावुकपृथुकमधुकादयः // 57 // - एते किदुकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / कचि बन्धने, अशौटि 21 Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 322) व्याप्ता, नशौच अदर्शने एषां स्वरान्नोन्तश्च कचुकः कूर्पासः / अंशुकं वस्त्रम् / नंशुकः रणरेणुः प्रवासशीलः चन्द्रः प्रावरणं च / पचेः पाक् च पाकुकः लघुपाची सूपः सूपकारः अध्वर्युश्च / हिनोतिचिनोतिनमतीनां बोऽन्तश्च हिबुकं लग्नाच्चतुर्थस्थानं रसातलं च / चिबुकं मुखाधोभागः / जम्बुकः शृगालः / चुलुम्पः सौत्रो धातुः अन्त्यस्वरादिलोपश्च चुलुकः करकोशः / चतेश्चूच् च चूचुक: स्तनाग्रभागः / ज्वलेरुल्म् चं उल्मुकम् अलातम् / भातेर्वोन्तश्च मावुकः भगिनीपतिः / प्रथिष् प्रख्याने पृथुकः शिशुः व्रीह्याद्यभ्यूपश्च / मचि कल्कने धन्तादेशश्च मधुकं यष्टिमधु // 27 // मृमन्यभिनलिवलितलिमलिमल्लिभालिमण्डिबन्धिभ्य ___ऊकः // 58 // एभ्यो धातुभ्य उकः प्रत्ययो भवति / मृत् प्राणत्यागे मरूकः मयूरः मृगः निदर्शनेभः तृणं च / मनिंच ज्ञाने मनूकः कृमिजातिः / अञ्जौप व्यक्तिम्रक्षणगतिषु अजूकः हिंस्रः / जल घात्ये जलका जलजन्तुः / बल प्राणनधान्यावरोधयोः बलूकः उत्पलमूलं मत्स्यश्च / तल प्रतिष्ठायां तलूकः त्वक्कृमिः / मलि धारणे मलुकः सरोनशकुनिः / मल्लि धारणे मल्लूकः कृमिजातिः / भलिण आभण्डने भालूकः ऋक्षः / मडु भूषायां मण्डूकः दुर्दुरः / बन्धंश बन्वने बन्धूकः बन्धूनीवः // 18 // शम्बूकशाम्बूकधूकमधूकोलूकोरुकवरूकादयः // 61 // Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 323) / एते उम्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / शमूच उपशमे शम्बूक, शाम्बूकः शङ्खः / वश वरणे वृधूकः मातृवाहकः / वृधूकं जलम् / मदेः मधूकः वृक्षः / अलेः उलूकः काकारिः / उरुपूर्वाद् वाते: उस्कः एरण्डः / वृधेः वरूकः तृणजातिः // 61 // - जीवेरातृको जैव च // 67 // जीव प्राणधारणे इत्यस्मादातृकः प्रत्ययो भवति, जैव् इत्यादेशश्च / नैवातृकः आयुष्मान् चन्द्रः आम्रः वैद्यः मेघश्च / जैवातृका जीवद्वत्सा स्त्री // 67 // ___ कृति-पुति-लति-भिदिभ्यः कित् // 76 // - एभ्यः कित् तिकः प्रत्ययो भवति ।कृतैत् छेदने कृत्तिका नक्षत्रम् / पुतिलती सौत्रौ पुत्तिका मधुमक्षिका / लत्तिका वाद्यविशेषः गौः गोधा च / गोपूर्वाद् गोलत्तिका गृहगोलिका। अवपूर्वाद् अक्लत्तिका गोधा / आलत्तिका गानप्रारम्भः / भिदंपी विदारणे भित्तिका कुड्यम् मापादिचूर्ण शरावती नदी च // 76 // चण्डि-मल्लिभ्यामातकः // 82 // आभ्यामातकः प्रत्ययो भवति / चडुङ् कोपे चण्डातक नर्तक्यादिवासः / भल्लि परिभाषणहिंसादानेषु भल्लातकः वृक्षः // 82 // श्लेष्मातकाम्रातकामिलातकपिष्टातकादयः // 83 // एते आतकप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते। श्लिषेः श्लेष्मातक: Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (324 ) कफेलुः / अमण रोगे आम्रातकः वृक्षः / नपूर्वात् म्लैधातोः मिलादेशे अमिलातकं वर्णपुष्पम् / पिषेः पिष्टातकं वर्णचूर्णम् // 83 // गम्यमिरम्यजिगद्यदिछागडिखडिगभवस्वृभ्यो गः // 12 // - एभ्यो गः प्रत्ययो भवति / गम्लं गतौ गङ्गा देवनदी / अम् गतौ अङ्गम् शरीरावयवः / अङ्गः समुद्रः वह्निः राजा च / अङ्गा जनपदः / रमिं क्रीडांयां रङ्गः नाट्यस्थानम् / अज क्षेपणे च वेगः त्वरा रेतश्च / गद व्यक्तायां वाचि गदः वाग्विकलः / अदक् भक्षणे अद्गः समुद्रः अग्निः पुरोडाशश्च / छोच छेदने छागः बस्तः / गड सेचने गड्गः मृगजातिः / खडण भेदे खड्गः मृगविशेषः असिश्च / गत् निगरणे गर्गः ऋषिः / टुडुगक पोषणे च भर्गः रुद्रः सूर्यश्च / वृगट वरणे वर्गः संघातः / औस्वृ शब्दोपतापयोः स्वर्गः नाकः // 92 // पति-तमि-तृ-पृ-क-शू-त्वादेरङ्गः // 98 // एभ्योऽङ्गः प्रत्ययो भवति / पत्ल गतौ पतङ्गः पक्षी शलभः सूर्यः शालिविशेषश्च / तमूच् काङ्क्षायां तमङ्गः हर्म्यनिहः / तृ प्लवनतरणयोः तरङ्गः ऊर्मिः / पृश् पालनपूरणयोः परङ्गः खगः वेगश्च / कत् विक्षेपे करङ्गः कर्मशीलः / शश् हिंसायाम् शरङ्गः पक्षिविशेषः / लूगश् छेदने लवङ्गः सुगन्धिवृक्षः // 98 // मनेर्मत्-मातौ च // 10 // मनिच् ज्ञाने इत्यस्माद् धातोः अङ्गः प्रत्ययो भवति, मत्मातौ Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. (325) चादेशौ भवतः / मतङ्गः ऋषिः हस्ती च / मातङ्गः हस्ती भन्त्यनातिश्च // 10 // पिशेराचक् // 126 // पिशत् अवयवे इत्यस्मादाचक् प्रत्ययो भवति / पिशाचः व्यन्तरजातिः // 116 // म्रियतेरीचण // 118 // मृत् प्राणत्यागे इत्यस्मादीचण् प्रत्ययो भवति / मारीचः रावणमातुलः // 118 // . . तुदिमदिपद्यदिगुगमिकचिम्यछक् // 124 // .. एभ्यः छक् प्रत्ययो भवति / तुदींत् व्यथने तुच्छः स्तोकः / मदैच हर्षे मच्छः मत्स्यः प्रमत्तपुरुषश्च / मच्छा स्त्री। पदिच् गतौ पच्छः शिला / अदक् भक्षणे अच्छः निर्मलः / गुंङ शब्द गुच्छः स्तवकः / गम्लं गतौ गच्छः क्षुद्रवृक्षः / कचि बन्धने कच्छः कूर्मपादः कुक्षिः नद्यवकुटारश्च / कच्छा जनपदः // 124 // पी-पूडो हस्वश्च // 125 // - आभ्यां छक् प्रत्ययो ह्रस्वश्च भवति / पीच् पाने पिच्छं शकुनिपत्रम् / पिच्छः गुणविशेषः, यद्वान् पिच्छिल उच्यते / पूड पवने पुच्छं वालधिः // 125 // . वियो जक् // 127 // ___वींक प्रजनकान्त्यसनखादनेषु च इत्यस्माद् धातोः जह प्रत्ययो भवति / बीजम् उत्पत्तिहेतुः // 127 // Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (326) भिषेभिष-भिष्णौ च वा / / 131 / / . भिषेरजः प्रत्ययो भिषभिष्णौ चादेशौ वा भवतः / भिषिः . सौत्रो धातुः भिषजः, भिष्णनः वैद्यः / भेषजमौषधम् // 131 // मुमुर् च // 132 // मुवै बन्धने इत्यस्मादजः प्रत्ययः, अम्य च मुरित्यादेशश्च भवति मुरजः मृदङ्गः // 132 // उटजादयः // 134 // उटनादयः शब्दा अजात्ययान्ता निपात्यन्ते / वटेर्वम्योत्त्वं च उटनं मुनिकुटीरः / आदिशब्दाद् भूनः भरुन इत्यादयोऽपि // 134 // दिव्यविश्रुकुर्विशकिकङ्किकृपिचपिचमिकम्येधिकार्किमर्कि- कक्खितृकसभृवृभ्योऽटः // 142 // / एभ्यो धातुभ्योऽटः प्रत्ययो भवति / दिवच क्रीडादौ देवटः देवकुलविशेषः शिल्पी च / अव रक्षणादौ अवटः प्रपातः कूपश्च। श्रृंट श्रवणे श्रवटः छत्त्रम् / कुंक शब्द कवटः उच्छिष्टम् / कर्व गतौ कर्व क्षुद्रपत्तनम् / शक्लंट शक्तौ शक्टम् अनः / ककुङ् गतौ कङ्कटः सन्नाहः / कङ्कट सीमा / कृपौङ सामर्थ्य कर्पटं वासः / चप सान्त्वने चपटः रसः / चमू अदने चमट: घस्मरः / छमङ कान्तौ कमटः वामनः / एधि वृद्धौ एघटः वल्मीकः / कर्कि-पौ सौनौ धातू कर्कटः कपिलः कुलीरश्च / कर्कटी त्रपुसी। Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (327) मर्कटः कपिः क्षुद्रजन्तुश्च / कक्ख हसने कक्खटः कर्कशः / तू प्लवनतरणयोः तरटः पीनः / डुकंग करणे करटः काकः करिकपोलश्च / सुं गतौ सरटः कृकलासः / टुडुभंगक् पोषणे च भरटः भृत्यः कुलालः प्लवविशेषश्च / वृकुटु वरणे वरटः क्षुद्रधान्यं प्रहारश्च // 142 // कपट-कीकटादयः // 144 // कपटादयः शब्दा अटप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / कम्पेनलोपश्च कपटं माया / ककेरत ईच्च कीकटः कृपणः / आदिशब्दात् लघटः, पर्पटः इत्यादयः // 144 // तृ-कृ-कृषि-कम्पि-कृषिभ्यः कीरः॥ 151 // एभ्यो धातुभ्यः किदीटः प्रत्ययो भवति / तृ प्लवनतरणयोः तिरीटं कूलवृक्षः मुकुटं वेष्टनं च / कृत् विक्षेपे किरीटं मुकुट हिरण्यं च / कृपौङ् सामर्थ्य कृपीटं हिरण्यं जलं च / कपुङ चलने कम्पीटं कम्पः कम्प्रं च / कृषीत् विलेखने कृषीटं जलम् // 11 // बन्धः // 157 // बन्धश बन्धने इत्यस्मात् किदूट: प्रत्ययो भवति / वधूटी प्रयमवयाः स्त्री // 157 // कृ-शक्-शाखेरोटः // 160 // - एभ्यो धातुभ्य ओटः प्रत्ययो भवति / डुग करणे करोटः Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 328) भृत्यः शिरः कपालं च / करोटं भाजनविशेषः / शक्लंट् शक्ती शकोटः बाहुः / शाख श्लाघु व्याप्तौ शाखोटः वृक्षविशेषः // 160 // ___वनि-कणि-काश्युपिभ्यष्ठः // 162 // एभ्यो धातुभ्यः ठः प्रत्ययो भवति / वन भक्तौ वण्ठः अनिविष्टः / कण शब्दे कण्ठः कन्धरा। काशृङ् दीप्तौ काष्ठं दारु / काष्ठा दिक् अवस्था च / उषू दाहे ओष्ठः दन्तच्छदः // 162 // पो-विशि-कुणि-पृषिभ्यः कित् / / 163 // एभ्यः कित् ठः प्रत्ययो भवति / पीच् पाने पीठम् आसनम् / विशंत् प्रवेशने विष्ठा पुरीषम् / कुणत् शब्दोपकरणयोः कुण्ठः अतीक्ष्णः। पृषू सेचने पृष्ठः अङ्कुशः शरीरकैदेशश्च // 163 // कुर्वा // 164 // कुष्श् निष्कर्षे इत्यस्मात् ठः प्रत्ययो भवति, स च किद्धा कुष्ठं व्याधिः गन्धद्रव्यं च / कोष्ठः कुशूलः उदरं च // 164 // शमेलक् च वा // 165 // शमूच् उपशमे इत्यस्मात् ठः प्रत्ययो भवति, अन्त्यस्य च वा लुक् / शठः धूर्तः / शण्ठः धूर्तः नपुंसकं च // 165 // - मृजशूकम्यमिरमिरपिभ्योऽठः // 167 // . एभ्यो धातुभ्यः अठः प्रत्ययो भवति / मुंत् प्राणत्यागे मरठः अतिद्रवीभूतं दधि कृमिजातिः कण्ठः प्राणश्च / जष्च Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 329) नरसि जरठः कठोरः / शश् हिंसायां शरठः आयुधं पापं क्रीडनशीलश्च / काङ् कान्तौ कमठः भिक्षाभाजनं कूर्मास्थि कच्छपः मयूरः वामनश्च / अम गतौ अमठः प्रकर्षगतिः / रमि क्रीडायां रमठः देशः कृमिजातिः क्रीडनशीलः म्लेच्छ: देवश्च विलातानाम् / रप व्यक्ते वचने रपठः विद्वान् मण्डूकश्च // 16 // पञ्चमात् डः // 168 // पञ्चमान्ताद् धातोः डः प्रत्ययो भवति / षण भक्तौ षण्डः वनं वृषभश्च / भण शब्दे भण्डः प्रहसनकरः बन्दी च / चण शब्दे चण्डः क्रूरः / पणि व्यवहारस्तुत्योः पण्डः शण्ठः। गणण संख्याने गण्डः पौरुपयुक्तः पुरुषः / मण शब्दे मण्डः रश्मिः अग्रम् अन्नविकारश्च / वन भक्तौ वण्डः अल्पशेफः निश्चर्माग्रशिश्नश्च / शमू दमूच् उपशमे शण्डः उत्सृष्टः पशुः ऋषिश्च / दण्डः वनस्पतिप्रतानः राजशासनं नालं प्रहरणं च / रमिं क्रीडायां रण्डः पुरुषः, रण्डा स्त्री, रण्डमन्तःकरणम् एतत् त्रयमपि स्वसम्बन्धिशुन्यमेवमुच्यते / तमेस्तने, तण्डः ऋषिः / वितण्डा तृतीयकथा / गमेः गण्डः कपोलः / भामि क्रोधे भाण्डमुपस्करः // 168 // कुगुहुनीकुणितुणिपुणिमुगिशुन्यादिभ्यः कित् // 170 // - एभ्यो धातुभ्यः किद् डः प्रत्ययो भवति / कुङ् शब्दे कुडः 'घटः हलं च / गुंङ् शब्दे गुडः गोलः इक्षुविकारश्च ।गुडा सन्नाहः / हुँक् दानादनयोः हुडः मूर्खः मेषश्च / णींग प्रापणे नीडं कुलायः / . .. Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (330) कुणत् शब्दोपकरणयोः कुण्डं भाजनं जलाधारविशेषश्च / कुण्डः भर्तरि जीवति जारेण जातः अपट्विन्द्रियश्च / तुणत् कौटिल्ये तुण्डं मुखम् / पुणत् शुभे पुण्डः भिन्नवर्णः / मुणत् प्रतिज्ञाने मुण्डः परिवापितकेशः / शुनत् गतौ शुण्डा सुरा हस्तिहस्तश्च / आदिग्रहणादन्येभ्योऽपि भवति // 170 // शमि-पणिभ्यां ढः // 179 // आभ्यां ढः प्रत्ययो भवति / शमूच उपशमे शण्डः नपुंसकम् / पण भक्तौ घण्टः स एव // 179 // कुणेः कित् // 180 // कुणत् शब्दोपकरणयोरित्यर मात् किद्,८ः भवति / कुण्डः धूर्तः // 180 // नत्रः सहेः षा च // 181 // नजपूर्वात् षहि मर्षणे इत्यस्माद् ढः प्रत्ययः, पा चास्यादेशो भवति / आषाढा नक्षत्रम् // 181 // इणुर्विशावेणिकृवृतजस्मृपिपणिभ्यो णः // 182 // - एभ्यो णः प्रत्ययो भवति / इंक गतौ एणः कुरङ्गः। मैं हिंसायाम् उर्गा मेषादिलोम भ्रुवोरन्तरावर्तश्च / शोंच तक्षणे शाणः परिमाणं शस्त्रतेजनं च / वेणग गतिज्ञानचिन्तानिशामनवादित्रग्रहणेषु वेण्णा कृष्णवेण्णा च नाम नदी / पृश पालनपूरणयोः पण 666 Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (331) पत्रं शिरश्च / कृत् विक्षेपे कर्णः श्रवणं कौन्तेयश्च / वृश् वरणे वर्णःशुक्लादिः ब्राह्मणादिः अकारादिः यशः स्तुतिः प्रकारश्च / तृ प्लवनतरणयोः तर्णः वत्सः / जपच् जरसि जर्णः चन्द्रमाः वृक्षः कर्कः क्षयधर्मा शकुनिश्च / हूँत् आदरे दर्णः पर्णम् / सृप्लं गतौ सपूर्णः . सरीसृपजातिः / पणि व्यवहारस्तुत्योः पण्णं व्यवहारः // 182 // तृकशपभृवश्रुरुरुहिलक्षिविचक्षिचुक्किबुकितङ्ग्यङ्गिमङ्किकङ्कि चरिसमीरेरणः // 187 // एभ्यः अणः प्रत्ययो भवति / तृ प्लवनतरणयोः तरणम् / कृत् विक्षेपे करणम् / शृश् हिंसायां शरणं गृहम् / पृश पालनपूरणयोः परणम् / टुडु गक् पोषणे च भरणम् / वृगट वरणे वरणः वृक्षः सेतुबन्धश्च / वरणं कन्याप्रतिपादनम् / श्रृंट श्रवणे श्रवणः कर्णः भिक्षुश्च / रुक् शब्दे, रंङ्रेषणे वा रवणः करभः अग्निः द्रुमः वायुः भृङ्गः शकुनिः सूर्यः घण्टा च / रुहं जन्मनि रोहणः गिरिः। लक्षीण दर्शनाङ्कनयोः लक्षणं व्याकरणं शुभाशुभसूचकं रेखातिलकादि अङ्कनं च। चक्षिक व्यक्तायां वाचि विचक्षणः विद्वान् / चुकण व्यथने चुक्कणः व्यायामशीलः / बुक्क भाषणे बुक्कणः श्वा वावदूकश्च / तगु गतौ तङ्गणाः जनपदः / अगु गतौ अङ्गणम् अजिरम् / मकुङ् मण्डने मङ्कणः ऋषिः / ककुङ् गतौ कङ्कणः प्रतिसरः। चर भक्षणे च चरणः पादः / ईरिक गतिकम्पनयोः सम्पूर्वः समीरणः वातः।। ... कृपिविषिदृषिधृषिमृषियुषिद्रुहिग्रहेराणक् // 191 // Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 33.2 ) एभ्यो धातुभ्य आणक् प्रत्ययो भवति / कृपौङ् सामर्थ्य कृपाणः खड्गः / विवू सेचने विषाणं शृङ्गं करिदन्तश्च / वृषू सेचने वृषाणः। निधृषाट प्रागल्भ्ये धृषाणः देवः / मृषू सहने च मृषाणः। युषि सेवने सौत्रो धातुः युषाणः / द्रुहौच जिघांसायां द्रुहाणः मुखरः / ग्रहीश् उपादाने गृहाणः / विषाणादयः स्वप्रकृत्यर्थनाचिनः कर्तरि कारके ज्ञेयाः / 191 // पषो णित् // 192 // पषी बाधनस्पर्शनयोः इत्यस्माद् आणक् प्रत्ययः, स च णिद भवति / पाषाणः प्रस्तरः // 192 // ___-सि-तनि-तुसेदर्दीर्घश्व वा // 203 // एभ्यः कित् तः प्रत्ययो दीर्घश्च वा भवति / डुंगट अभिषवे सूतः सारथिः / सुतः पुत्रः / पिंगटु बन्धने सीता जनकात्मजा सस्यं हलमार्गश्च / सितः वर्णः बन्धश्च / तनूयी विस्तारे तातः पिता पुत्रेष्टनाम च / ततं विस्तीर्ण वाद्यविशेषश्च / तुस् शब्दे तूस्तानि वस्त्रदशाः / तुस्ता: जटाः प्रदीपनं च // 203 // ह-श्या-रुहि-शोणि-पलिभ्य इतः // 210 // एभ्य इतः प्रत्ययो भवति / हृग् हरणे हरितः वर्णः / श्यैङ् गतौ श्येतः वर्णः मृगः मत्स्यः श्येनश्च / रुहं बीजजन्मनि रोहितः वर्णः मत्स्यः मृगजातिश्च लत्वे लोहितः वर्णः / लोहितम् असृक्। शोण वर्णगत्योः शोणितं रुधिरम् / पल गतौ पलितं श्वेतकेशः॥२१० Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (333) कुलि-मयिभ्यामूतक् // 215 // आभ्यामूतक् प्रत्ययो भवति / कुल बन्धुसंस्त्यानयोः कुलूताः जनपदः / मथि गतौ मयूता वसतिः // 215 // कबेरोतः प् च // 217 // कबृङ वणे इत्यस्माद् ओतः प्रत्ययः, पश्चान्तादेशो भवति / कपोतः पक्षी वर्णश्च // 217 // सीमन्त-हेमन्त-भदन्त-दुष्यन्तादयः // 222 // एते अन्तप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / सिनोतेः सीम् च मी मन्तः केशमार्गः ग्रामक्षेत्रान्तश्च / हन्तेहिनोतेर्वा हेम् च हेमन्तः ऋतुः / भन्दतेः नलुक् च भन्दतः निर्ग्रन्थेषु शाक्येषु च पूज्यः / दुर्योऽन्तश्च दुष्यन्तः राजा // 222 // . शकेरुन्तः // 223 // शक्लंट् शक्तौ इत्यस्माद् उन्तः प्रत्ययो भवति / शकुन्तः पक्षी // 223 // : कमि--गाऽर्तिभ्यः थः // 225 / / एभ्यः थः प्रत्ययो भवति / कमूङ कान्तौ कन्था प्रावरणं नगरं च / प्रुङ गतौ प्रोथः प्रियः युवा शूकरमुखं घोणा च / मैं * शब्दे गाथा श्लोकः आर्या वा / ऋ गतौ अर्थः जीवाजीवादिपदार्थः प्रयोजनम् अभिधेयं धनं याच्ञा निवृत्तिश्च // 225 // Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (334) अवाद् गोऽच्च वा // 226 // अवपूर्वाद् गायतेः थः प्रत्ययः, अञ्चान्तादेशो वा भवति / अवगथः, अवगाथः अक्षसंघातः प्रातःसवनं रथयानं साम पन्थाश्च // 226 // नीनूरमितृतुदिवचिरिचिसिचिश्विहनिपागोपावोगाभ्यः कित् // 227 // एभ्यः कित् थः प्रत्ययो भवति / णींग, प्रापणे नीथं जलम् / सुनीथो नाम राजा नीतिमान् धर्मशीलः ब्राह्मणश्च / णूत् स्तवने नूथं तीर्थम् / रमिं क्रीडायां रथः स्यन्दनः / तृ प्लवनतरणयोः तीर्थ जलाशयावगाहनमार्गः पुण्यक्षेत्रमाचार्यश्च। तुदींतू व्यथनं तुत्यं चक्षुष्यो धातुविशेषः / वचं भाषणे उक्थं शास्त्रं सामवेदश्च / उक्थानि सामानि / रिचूंपी विरेचने रिक्थं धनम् / षिचीत् क्षरणे सिक्थं मदनं पुलाकश्च / ट्वोश्चि गतिवृद्ध्योः शूथः यज्ञप्रदेशः / हनं हिंसागत्योः हथः पन्थाः कालश्च / पां पाने पीथं बालवृतपानम् अम्भः नवनीतं च / पीथः मकरः रविश्च / गोपूर्वाद् गोपीथः तीर्थविशेषः गोनिपानं जलद्रोणी कालविशेषश्च / गैं शब्दे अवगीथम् यज्ञकर्मणि प्रातःशंसनम् / उद्गीथः शुनामूर्ध्वमुखानां विरावः सामगानं प्रथमोच्चारणं च // 227 // न्युद्भ्यां शीङः // 228 // न्युत्पूर्वात् शी स्वप्ने इत्यस्मात् कित् थः प्रत्ययो Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (335) भवति / निीयः अवरात्रः रात्रिः प्रदोषश्च / उच्छीथः स्वप्नः टिष्टिभश्च // 228 // सतेर्णित् // 230 // सं गतौ इत्यस्मात् णित् थः प्रत्ययो भवति / सार्थः समूहः // 230 // पथयूथगूथकुथतिथनिथमूरथादयः // 231 // एते थान्ता निपात्यन्ते / पलतेः लो लुक् च पथः पन्थाः / यौतेगुवश्च दीर्घश्च यूथं समूहः / गूथम् अमेध्यं विष्ठा च / किरतेः करोतेर्वा कुश्च कुथः कुथा वा आस्तरणम् / तनोतेः तिष्ठतेर्वा तिश्च तिथः कालः / तिम्यतेः तिथः प्रावृटकालः / नयतेः हस्वश्च निथः पूर्वक्षत्रियः कालश्च / सुपूर्वाद् रमेः सूरथः दान्तः // 231 // भृशीशपिशमिगमिरमिवन्दिवश्चिजीविप्राणिभ्योऽथः // 232 // : एभ्यः अथः प्रत्ययो भवति / टुडु,गक् पोषणे च भरथः कैकेयीसुतः अग्निः लोकपालश्च / शी स्वप्ने शयथ: अजगरः प्रदोषः मत्स्यः वराहश्च / शपी आक्रोशे शपथः प्रत्ययकरणमाकोशश्च / शमूच उपशमे शमथः समाधिः आश्रमपदं च / गम्लं गतौ गमथः पन्थाः पथिकश्च / रमि क्रीडायां रमथः प्रहर्षः / वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः वन्दथः स्तोता स्तुत्यश्च / वचू गतो वञ्चयः अध्वा कोकिलः काकः दम्भश्च / जीव प्राणधारणे जीवथः Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 336) अर्थवान् जलम् अन्नं वायुः मयूरः कूर्मः धार्मिकश्च। अनक् प्राणने प्राणथः बलवान् ईश्वरः प्रजापतिश्च // 232 // ... आपोऽप् च // 238 // आप्लंट व्याप्तौ इत्यस्माद् दः प्रत्ययो भवति, अस्य चाप आदेशः। अब्दं वर्षम् // 238 // गोः कित् // 239 / / गुंत् पुरीपोत्सर्गे इत्यस्मात् किद् दः प्रत्ययो भवति / गुदम् अपानम् // 239 // कुमुद-बुद्बदादयः // 244 // - एते उदप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / कमेः कुम् च / कुमुदं कैरवम् / बुन्देः कित् वोऽन्तश्च बुद्बुदः जलस्फोटः / बुबुदं नेत्रनो व्याधिः / आदिशब्दाद् दोहदः अभिलाषः // 24 4 // स्कन्यमिभ्यां धः // 251 // आभ्यां धः प्रत्ययो भवति / स्कन्दं गतिशोषणयोः स्कन्ध बाहुमूर्धा ककुदं विभागश्च / अम गतौ अन्धः चक्षुर्विकलः // 251 // नेः स्यतेरधक् / / 252 // निपूर्वात् षोंच् अन्तकर्मणि इत्यस्माद् अधक् प्रत्ययो भवति / निषधा जनपदः / निषधः पर्वतः // 252 // .. पराच्छ्रो डित् / / 255 // .. . Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को ( 337 ) परपुर्वात् शश् हिंसायामित्यस्माद् डिद् वधः प्रत्ययो भवति / परश्वधः आयुधनातिः // 255 // कोरन्धः // 257 // कुंङ् शब्दे इत्यस्माद् अन्धः प्रत्ययो भवति / कवन्धः छिन्नमूर्धा देहः // 257 // प्याधापन्यनिस्वदिस्वपिवस्यज्यतिसिविभ्यो नः // 258 // एभ्यो नः प्रत्ययो भवति / प्यैङ् वृद्धौ प्यानः समुदः चन्द्रश्च / डुधांग्क् धारणे च धाना भृष्टो यवः अङ्कुरश्च / पनि स्तुतौ पन्नं नीचैः करणं सन्नं जिहा च। अनक् प्राणने अन्नं भक्तम् आचारश्च / ध्वदि आस्वादने स्वन्नं रुचितम् / निष्वपंक् शये स्वप्नः मनोविकारः निद्रा च / वसं निवासे वस्नं वासः मूल्यं मेढ़म् आगमश्च / अन क्षेपणे च वेनः प्रजापतिः ध्यानी राजा वायुः यज्ञः प्राज्ञः मूर्वश्च / अत सातत्यगमने अत्नः आत्मा वायुः. मेघः प्रजापतिश्च / षिवूच उतौ स्योनं सुखं तन्तुवायसूत्रसंतानः समुद्रः सूर्यः रश्मिः आस्तरणं च // 258 // - पसेर्णित् // 259 // पसक स्वप्ने इत्यस्माद् णिद् नः प्रत्ययो भवति / साना गोकण्ठावलम्बि चर्म निद्रा च // 259 // ___ जीण्शीदीबुध्यविमीभ्यः कित् // 261 // एभ्यः किद् नः प्रत्ययो भवति / निं अभिभवे जिनः भहन् 22 Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (338) बुद्धश्च / इण्क् गतौ इनः स्वामी सन्निपातः ईश्वरः राजा सूर्यश्च / शी स्वप्ने शीनः पीलुः / दीच् क्षये दीनः खिन्नः कृपणश्च / बुधिंच ज्ञाने बुध्नः मूलं पृष्ठान्तः रुद्रश्च / अव रक्षणादौ उनम् अपरिपूर्णम् / मीच हिंसायां मीन मत्स्यः राशिश्च // 261 / / सोरू च // 263 // पुंगट अभिषवे इत्यस्माद् नः प्रत्ययः, ऊकारश्चान्तादशो भवति / सूना घातस्थानम् दुहिता पुत्रः प्रकृतिः आघाटम्थानं च // 263 // रमेस्त् च // 264 // रमि क्रीडायाम् इत्यस्माद् नः प्रत्ययः, तश्चान्तादेशो भवति। रत्नं वज्रादि / / 264 // स्वसिरसिरुचिजिमस्जिदेविस्यन्दिचन्दिमन्दिमण्डिमदिद हिवह्यादेरनः // 269 // एभ्यः अनः प्रत्ययो भवति / युक् मिश्रणे यवनाः जनपदः / यवनं मिश्रणम् / असूच क्षेपणे असनः बीजकः / रसण आस्वादनस्नेहनयोः रसना जिह्वा / रुचि अभिप्रीत्यां च रोचना गोपित्तम् / रोचनः चन्द्रः / विपूर्वाद् रोचतेः विरोचनः अग्निः सूर्यः इन्दुः दानवश्च / निं अभिभवे जयनम् उर्णापटः / टुमस्जोत् शुद्धौ मजनं स्नानं तोयं च / देवृङ् देवने देवनः अक्षः कितवश्यं / म्यदौड़ स्रवणे स्यन्दनः स्थः / चदु दीप्त्याह्लादयोः चन्दनं गन्धद्र Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (339) व्यम् / मदुङ् स्तुत्यादौ मन्दनं स्तोत्रम् / मडु भूषायां मण्डन अलंकारः / मदैच् हर्षे मदनः वृक्षः कामः मधूच्छिष्टं च / दह भस्मीकरणे दहनः अग्निः / वहीं प्रापणे वहनं नौः / आदिग्रहणात् पचेः पचनः अग्निः / पुनातेः पवनो वायुः / बिभर्तेः भरणं साधनम् / नयतेः नयनं नेत्रम् / धुतेः द्योतनः आदित्यः / रचेः रचना वैचित्र्यम् / शृङ्गेः गृञ्जनम् अभक्ष्यद्रव्यविशेषः / प्रस्कन्दनः / प्रपतनः इत्यादयो भवन्ति // 269 // पठेणित् / / 287 // पठ व्यक्तायां वाचीत्यस्माद् णिद् ईनः भवति / पाठीनः मत्स्यः // 287 // पिशि-मिथि-क्षुधिभ्यः कित् // 290 // एभ्यः किदुनः प्रत्ययो भवति / पिशत् अवयवे पिशुनः खलः / पिशुनं मैत्रीभेदकं वचनम् / मिथङ भेधाहिंसयोः मिथुन स्त्रीपुंसद्वन्द्वम् राशिश्च / क्षुधंच् बुमुक्षायां क्षुधुनः कीटकः // 29 // __ फलेगोऽन्तश्च / / 291 // फल निष्पत्तौ इत्यस्मादुनः प्रत्ययः, गश्चान्तो भवति / फल्गुनः अर्जुनः / फल्गुनी नक्षत्रम् // 291 / / वी-पति-पटिभ्यः तनः // 292 // एभ्यः तनः प्रत्ययो भवति / वींक प्रजनादौ वेतनं भृतिः / पत्ल गतौ पत्तनम् / पट गतौ पट्टनं द्वावपि नगरविशेषौ // 292 // Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (340) पृ-पूभ्यां कित् // 293 // आभ्यां कित् तनः प्रत्ययो भवति / इत् व्यायामे पृतना सेना / पूगुश् पवने पूतना राक्षप्ती // 293 // कृत्यशोभ्यां स्नक् // 294 // . आभ्यां स्नक् प्रत्ययो भवति / कृतैत् छेदने कृत्स्नं सर्वम् / अशौटि व्याप्तौ अक्ष्णं नयनं व्याधिः रज्जुः तेजनम् अखण्डं च // 294 // भापाचणिचमिविषिसपतृशीतल्यलिशमिरमि- . वपिभ्यः पः // 296 // एभ्यः पः प्रत्ययो भवति / भांक दीप्तौ भापः आदित्यः ज्येष्ठश्च भ्राता / पांक रक्षणे पापं कल्मषम् / पापः घोरः / चण हिंसादानयोश्च / चण्पा नगरी / चण्पः वृक्षः / चमू अदने चम्पा नगरी। विष्लंकी व्याप्ती वेपः परमात्मा स्वर्गः आकाशश्च / निपूर्वाद् निवेष्पः अपां गर्भः कूपः वृक्षजातिः अन्तरिक्षं च / सं गतौ सर्पः अहिः / पृश् पालनपूरणयोः पर्पः प्लवः शङ्खः समुद्रः शस्त्रं च / तृ प्लवनतरणयोः तर्पः उडुपः नौश्च / शीक् स्वप्ने शेपः पुच्छम् / तलण प्रतिष्ठायां तल्पं शयनीयम् अङ्गं दाराः युद्धं च / अली भूषणादौ अल्पं स्तोकम् / शमूचु उपशमे शम्पा विद्युत् काञ्ची च / विपूर्वाद् विशम्पः दानवः / रमिं क्रीडायां रम्पा चर्मकारोपकरणम् / टुवपी बीजसंताने वप्पः पिता // 29 // Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 341) युसुकुरुतुच्युस्त्वादेरूच्च / / 297 // एभ्यः पः, ऊकारश्चान्तादेशो भवति / युक् मिश्रणे यूपः यज्ञपशुबन्धनकाष्ठम् / पुंगटू अभिषवे सूपः मुद्गादिभित्तकृतः / कुंकू शब्दे कूपः प्रहिः / रुक शब्दे रूपं श्वेतादि लावण्यं स्वभावश्च / तुक् वृत्त्यादौ तूपः आयतनविशेषः / च्युङ् गतौ च्यूपः आदित्यः वायुः संग्रामश्च / ष्टुंगा स्तुतौ स्तूपः बोधिसत्त्वभवनम् उपायतनं जिननिर्वाणस्थानोपरि चिह्नविशेषः // 297 // कृ-शू-सभ्य अर् चान्तस्य // 298 / / एभ्यः पः प्रत्ययो भवति, अन्तस्य च ऊर् / कृत् विक्षेपे कूप भ्रूमध्यम् / शश् हिंसायां शूर्पः धान्यादिनिष्पवनभाण्डं संख्या च / सं गतौ सूर्पः भुजंगमः मत्स्यजातिश्च // 298 / / नियो वा // 302 // . णींग प्रापणे इत्यस्मात् पः प्रत्ययो भवति, स च किद् वा। नीपः कदम्बः / नेपः नयः पुरोहितः वृक्षः भृतकश्च / नेपम् उदकं यानं च // 302 // शंसेः श इच्चातः // 306 // शंसू स्तुतौ चेत्यस्मादपः प्रत्ययः, तालव्यः शकारोऽन्तादेशः, अकारस्य चेकारो भवति / शिशपा वृक्षविशेषः // 30 // विष्टपोलप-वातपादयः // 307 // Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (342) विष्टपादयः शब्दाः फिदपप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / विषेस्तोऽन्तश्च / विष्टपं जगत् सुकृतिनां स्थानं च / वलेरुल च उलपं पर्दततृणं पङ्कजं जलं च / उलपः ऋषिः / वातेस्तोऽन्तश्च वातपः ऋषिः / आदिग्रहणात् खरपादयो भवन्ति // 307 // कलेरापः // 308 // कलि शब्दसंख्यानयोः इत्यस्माद् आपः प्रत्ययो भवति / कलापः काञ्ची समूहः शिखण्डश्च // 308 // ___ दलेरीपो दिल् च / 310 // दल विशरणे इत्यस्मादीपः प्रत्ययो भवति, दिल चास्यादेशः / दिलीपः राजा // 310 // उडेरुणक् // 311 // उड् संघाते इत्यस्मात् सौत्रादुएक प्रत्ययो भवति / उडुपः प्लवः / जपादित्व द् वत्वे उडुवः // 311 / / अश ऊपः पश्च // 312 // अशौटि व्याप्तौ इत्यस्माद् ऊपः प्रत्ययः, पश्चान्तादेशो भवति / अभूपः पक्वान्नविशेषः // 312 // सः षपः / 313 // . सं गतौ इत्यस्मात् षपः प्रत्ययो भवति / सर्षपः रक्षोन्नं द्रव्यं शाकं च // 313 // री-शं.भ्यां फः // 314 / / Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 343) आभ्यां फः प्रत्ययो भवति / रींच् स्रवणे रेफः कुत्सितः / शीक स्वप्ने शेफः मेटूः // 314 // कलि-गलेरस्योच // 315 // आभ्यां फः प्रत्ययः, अकारस्य चोकारो भवति / कलि शब्दसंख्यानयोः, गल अदने कुल्फः, गुल्कः जङ्घा विसन्धिः / गुल्फः पदोपरिग्रन्थिः // 315 // शफ-कफ-शिफा-शोफादयः // 316 // शफादयः शब्दाः फप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / श्यतेः कायतेश्च हुम्वश्च / शफः खुरः प्रियंवदन्छ / कफः श्लेष्मा / श्यतेरित्वमोत्वं च शिफा वृक्षजटा / शोफः श्वयथुः खुरश्च / आदिशब्दाद रिफा-नफा-सुनफादयः // 316 // शम्यमेणिद् वा / / 318 // : आभ्यां बः प्रत्ययः, स च णिद् वा / शमूच् उपशमे शम्बः वज्रः कर्षणविशेषः वेणुदण्डः तोत्रम् अरित्रं च / शम्ब-शाम्बी जाम्बवतेयौ / अम्बा माता / आम्बः अपह्नवः // 318 // ___ शल्यलेरुच्चातः / / 319 / ... आभ्यां बः प्रत्ययः, अकारस्य चोकारो भवति / पल फल शल गतौ शुल्वं ताम्रम् / अली भूषणादौ उल्वं रजतं गर्भवेष्टनम् / शुल्लं बभ्रुः तरक्षुश्च // 319 // क-कडि-कटि-वटेरम्बः॥ 321 // Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 344) एभ्योऽम्बः प्रत्ययो भवति / डुकंग करणे करम्बः दध्योदनः दधिसक्तवः पुष्पं च / कडत् मदे कडम्बः जातिविशेषः जनपदश्च / कटे वर्षावरणयोः कटम्बः पक्वान्नविशेषः वादित्रं च / कडम्बकटम्बौ वृक्षौ च / वट वेष्टने वटम्बः शैलः तृणपुञ्जश्च // 321 // डीनीवन्धिशृधिलिभ्यो डिम्बः / / 325 // एभ्यो डिदिम्बः प्रत्ययो भवति / डीङ् विहायसा गतौ डिम्बः राजोपद्रवः / णींग प्रापणे निम्बः वृक्षविशेषः / बन्धश बन्धने बिम्बं प्रतिच्छन्दः देहश्च / बिम्बी वल्लिजातिः। शधूङ शब्दकुत्सायां शिम्बः मृगजातिः, शिम्बी निष्पाववल्ली च / चन्ट कम्पने चिम्बा यवागूजातिः // 325 / / गदरमिहनिजन्यतिलभ्यो भः // 327 // एभ्यो भः प्रत्ययो भवति / गत् निगरणे गर्भः जठरस्थः प्राणी / दृश् विदारणे दर्भः कुशः / रमिं क्रीडायां रम्भा अप्सराः कदली च / हनं हिंसागत्योः हम्भा गोधेनुनादः / जनैचि प्रादुर्भावे जम्भः दानवः दन्तश्च / जम्मा मुखदिदारणम् / अंक गतौ अर्भः शिशुः / दल विदारणे दल्भः ऋषिः वल्कलं विदारणं च // 327 // इण: बित् // 328 // इंणक गतौ इत्यस्मात् किद भः प्रत्ययो भवति / इभः हस्ती // 328 // Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (345). कृशगृशलिकलिकडिगर्दिरासिरमिवडिवल्लेरभः // 329 // एभ्योऽभः प्रत्ययो भवति / कृत् विक्षेपे करभः त्रिवर्षः उष्ट्रः / शश् हिंसायां शरभः श्वापदविशेषः / गत् निगरणे गरभः उदरस्थो जन्तुः / पल फल शल गतौ शलभः पतङ्गः / कलि शब्दसंख्यानयोः कलभः यौवनाभिमुखो हस्ती। कडत् मदे कडभः हस्तिपोतकः / गर्द शब्दे गर्दभः खरः / रासृङ् शब्दे रासभः खरः / रमि क्रीडायां रमभः प्रहर्षः / वडः सौत्रो धातुः वडभी वेश्मायभूमिका, लत्वे च वलभी। वल्लि संवरणे वल्लभः स्वामी दयितश्च // 329 // ऋषि-वृषि-लुसिभ्यः कित् // 331 // ____ एभ्यः किदभः प्रत्ययो भवति / ऋषैत् गतौ, वृदू सेचने ऋषभः, वृषभश्च पुङ्गवः भगवांश्चादितीर्थङ्करः / ऋषभः वायुः / लुसिः सौत्रः लुसभः हिंस्रः मत्तहस्ती वनं च // 331 // मि-टिकिभ्यामिभः सैर-टिटौ च // 332 // आभ्यामिभः प्रत्ययो भवति, दन्त्यादिः सैरः टिदृश्यादेशी यथासंख्यं भक्तः / पिंगट बन्धने सैरिभः महिषः / टिकि गतौ टिट्टिभः पक्षी / / 332 // अतीरितु सुहम्घृशक्षियक्षिभावाव्याधापायावलिपदिनी भ्या मः // 338 // Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (346 ) एभ्यो मः प्रत्ययो भवति / ऋक् गतौ अर्मः अक्षिरोगः ग्रामः स्थलं च / ईरिक् गतिकम्पनयोः ईमै व्रणः / ष्टुंगा स्तुतौ स्तोमः समूहः यज्ञः स्तोत्रं च / अभिषवे सोमः चन्द्रः वल्ली चा हुंक दानादनयोः होमः आहुतिः / सं गतौ सर्मः नदः कालश्च / समं स्थानं सुखं च / धू सेचने धर्मः ग्रीष्मः ।धृत् स्थाने धर्मः उत्तमक्षमादिः न्यायश्च / शृश् हिंसायां शर्म सुखम् / क्षित् निवासगत्योः क्षेमं कल्याणम् / यक्षिण पूजायां यक्ष्मः व्याधिः / भांक् दीप्तौ भामः क्रोधः / भामा स्त्री। वांक गतिगन्धनयोः वामः प्रतिकूलः सव्यश्च / व्यंग संवरणे व्यामः वक्षोभुजायतिः / डुधांगक धारणे च धामं निलयः तेनध / पां पाने पामा कच्छुः / यांक् प्रापणे यामः प्रहरः / वलि संवरणे वल्मः ग्रन्थिः / पदिंच गतौ पद्मं कमलम् / गींग प्रापणे नेमः अर्धः समीपश्च // 338 // ग्रसि-हाग्भ्यां ग्रा-जिहौ च // 339 // आभ्यां मः प्रत्ययः, अनयोश्च ग्रानिहौ आदेशौ यथासंख्यं भवतः / ग्रामः समूहादिः / निमः कुटिलश्च // 339 // विलिभिलिसिधीन्धिधुमशाध्यारुसिविशुषिमुषीषिमुहियुधि दांसभ्यः कित् / / 340 // / एभ्यः किद् मः प्रत्ययो भवति / विलत् वरणे विल्मं प्रकाशः / भिलिः सौत्रः भिल भास्वरम् / विधू गत्यां सिध्मं रिक्षम् / श्यैङ् गतौ श्यामः वर्णः / श्यामं नभः / श्यामा रात्रिः औषधिश्च / Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 347) ध्ये चिन्तायां ध्यामः अव्यक्तवर्णः / रुक् शब्दे रुमा लवणभूमिः / पिवूच उतौ स्यूमः रश्मिः दीर्घः सूत्रतन्तुश्च / स्यूमं जलम् / शुषंच शोषणे शुष्मं बलं जलं संयोगश्च / मुषश स्तेये मुष्मः मुषिकः / ईष उन्छे ईष्मः वसन्तः बाणः वातश्च / पुहच् शक्तौ सुझाः जनपदः / सुमः राजा। युधिंच संप्रहारे युध्मः शरत्कालः शूरः शत्रुः संग्रामश्च / दसूच उपक्षये दस्मः हीनः वह्निः यज्ञश्च // 340 // क्षु-हिभ्यां वा // 341 // आभ्यां मः प्रत्ययः, स च किद वा भवति / टुक्षुक् शब्दे १मा अतसी / क्षोमं वस्त्रम् / हिंट गतिवृद्धयोः हिमं तुषारः / हेमं सुवर्णम् // 341 // स्थाछामासानुमन्यनिकनिषसिपलिकलिशलिशकी यिसहिबन्धिभ्यो.यः॥३५७ // एभ्यो यः प्रत्ययो भवति / छां गतिनिवृत्तौ स्थायः स्थानम्। स्थाया भूमिः / दों छोंच छेदने छाया तमः प्रतिरूपं कान्तिश्च / मांक माने माया छद्म दिव्यानुभावदशनं च / षोंच् अन्तकर्मणि सायं दिनावसानम् / घूत् प्रेरणे सव्यः वामः दक्षिणश्च / मनिच् ज्ञाने मन्या धमनिः / अनक् प्राणने अन्यः परः। कनै दीप्त्यादिषु कन्या कुमारी / षसक स्वप्ने सस्यं क्षेत्रस्थं गोधूमादि / पल गतौ पल्यः कटकुसूलः / कलि शब्दसंख्यानयोः कल्यः नीरोगः / Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 348) पल फल शल गतौ शल्यम् अन्तर्गतं लोहादि / शक्लंटू शकतो शक्यमसारम् / ईयिः ईर्ष्यार्थः ईय॑ति ईयणं वा ईर्ष्या मात्सर्यम् / षहि मर्षणे सह्यः पश्चादर्णवपार्श्वशैलः / बन्धंश बन्धने बन्ध्या अप्रसूतिः // 357 // नत्रो हलि-पतेः / / 358 // नपूर्वाभ्यामाभ्यां यः प्रत्ययो भवति / हल विलेखने अहल्या गोतमपत्नी / पत्ल, गतौ अपत्यं पुत्रसन्तानः // 358 // सोध् च / / 359 // षनं सङ्गे इत्यस्माद् यः प्रत्ययः, धकारश्चान्तादेशो भवति / सन्ध्या दिननिशान्तरम् // 359 // मृ-शी-पसि-वस्यनिभ्यस्तादिः / / 360 // . एभ्यस्तकारादिः यः प्रत्ययो भवति / मुंत् प्राणत्यागे मर्त्यः मनुष्यः / शीफू स्वप्ने शेत्यः शकुनिः संवत्सरः अजगरश्च / पसि निवासे सौत्रो दन्त्यान्तः पस्त्यं गृहम् / वसं निवासे वस्त्यः गुरु / अनक प्राणने अन्त्यः निरवसितः चण्डालादिश्च // 360 ऋशि-जनि-पुणि-कृतिभ्यः कित // 361 // ____एभ्यः किद् यः प्रत्ययो भवति / ऋश् गतौ स्तुतौ वा स्व. रादिस्तालव्यान्तः ऋश्यः मृगजातिः / जनैचि प्रादुर्भाव जन्य संग्रामः / जाया पत्नी -- ये नवा ' इत्यात्त्वम् / पुणत् शुभे पुण्यं सत्कर्म / वृतैत छेदने कृन्तति कृत्या दुर्गा // 361 // Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (349) कुलेई च वा // 362 // कुल बन्धुसंम्त्यानयोः इत्यस्मात् किन यः प्रत्ययः, डकारश्वान्तादेशो वा भवति / कुड्यं भित्तिः / कुल्या सारणी // 362 // अग-पुलाभ्यां स्तम्भेडित् // 363 // " अग पुल इत्येताभ्यां परस्मात् स्तम्भेः सौत्रात् डिद् यः प्रत्ययो भवति / अगस्त्यः पुलस्त्यश्च ऋषिः // 363 // कुगुवलिमलिकणितन्याम्यक्षेरयः // 365 // एभ्यः अयः प्रत्ययो भवति / कुंक् शब्दे कवयः ऋषिः पुरोडाशश्च / गुंड शब्दे गवयः गवाकृतिः पशुविशेषः / वलि संवरणे वलयः कटकः / मलि धारणे मलयः पर्वतः / कण शब्दे कणयः आयुधविशेषः / तनूयी विस्तारे तनयः पुत्रः / अमण रोगे णिचि च आमयः व्याधिः / अक्षौ व्याप्तौ च अक्षयः विष्णुः चायः केक् च // 366 // चायग् पूजानिशामनयोः इत्यस्मादयः प्रत्ययः, अस्य च केक इत्यादेशो भवति / केकयः क्षत्रियः // 366 // कुलि-लुलि-कलि-कषिभ्यः कायः // 372 // एभ्यः किदाय प्रत्ययो भवति / कुल बन्धुसंस्त्यानयोः Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (390) कुलायः नीडम् / लुलिः सौत्रः लुलायः महिषः / कलि शब्दसंख्यानयोः कलायः त्रिपुटः / कष हिंसायां कषायः कल्कादि: // 372 // वेतेस्तादिः // 378 // वींक् प्रजनादावित्यस्मात् तकारादिर्णिदालीयः प्रत्ययो भवति / वैतालीयं छन्दोजातिः // 378 // धागाजिशृरमियाज्यर्तेरन्यः // 379 // एभ्योऽन्यः प्रत्ययो भवति / डुधांगक् धारणे च धान्य सस्यजातिः / राजग दीप्तौ राजन्यः क्षत्रियः ज्योतिः अग्निश्च / शृश् हिंसायां शरण्यः त्राता / रमि क्रीडायां रमण्यं शोभनम् / यनी देवपूजादौ याजन्यः क्षत्रियः यज्ञश्च / ऋक् गतौ अरण्यं वनम् // 379 // वदि-सहिभ्यामान्यः // 381 // आभ्यामान्यः प्रत्ययो भवति / वद व्यक्तायां वाचि वदान्यः दाता गुणवान् चारुभाषी वा / पहि मर्षणे सहान्यः शैलः // 381 // भीवृधिरुधिवज्यगिरमिवमिवपिजपिशकिस्फायिवन्दीन्दिपदिमदिमन्दिचन्दिदसिघसिनसिहस्यसिवासिदहिसहिभ्यो रः॥ 387 // Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 351) ____ एभ्यो रः प्रत्ययो भवति / जिभीक भये भेरः भेदः करभः शरः मण्डूकः दुन्दुभिः कातरश्च / ऋफिडादित्वात् लत्वे भेलः चिकित्माग्रन्थकारः शरः मण्डूकः प्रहीणः अप्राज्ञश्च / वृधूल वृद्धौ वः चर्मविकारः चन्द्रः मेघश्च / रुधूपी आवरणे रोध्रः वृक्षविशेष / वन गतौ वज्र कुलिशं रत्नविशेषश्च / अग कुटिलायां गतौ अग्र प्राग्भागः श्रेष्ठश्च। रमि क्रीडायां रम्रः कामुकः। टुवम् उद्गिरणे कम्रः धर्मविशेषः धूमश्च / वम्री उपदेहिका / टुवपीं बीजसंताने वप्रः केदारः प्राकारः वास्तुभूमिश्च / जप मानसे च जप्रः ब्राह्मणः मण्डूकश्च / शक्लंट शक्तौ शक्रः इन्द्रः / स्फायैङ वृद्धौ स्फारम् उल्वणं. प्रभूतं च / वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः वन्द्रः बन्दी केतुः कामश्च / वन्द्रं समूहः / इदु परमैश्वर्ये इन्द्रः शक्रः / पदिच् गतौ पद्रं ग्रामादिनिवेशः शून्यं च / मदैच् हर्षे मद्राः जनपदः क्षत्रियश्च / मद्रं सुखम् / मदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः मन्द्रः मधुरः स्वरः, मन्द्रं गंभीरम् / चदु दीप्त्याह्लादयोः चन्द्रः शशीः सुवर्ण च / दसूच उपक्षये दस्रः शिशिरं चन्द्रमाः अश्विनोज्येष्ठश्च / दस्रो अश्विनौ / घस्लं अदने घस्रः दिवसः / णसि कौटिल्ये नस्रः नासिकापुटः ऋषिश्च / हसे हसने हस्रः दिनं घातुकः हर्षुलश्च / हस्रं बलाधानं संनिपातश्च / सहस्रं दश शतानि / असूच क्षेपणे अस्रम् अश्रु / वासिच् शब्दे वास्त्रः पुरुषः शब्दः संघातः शरभः रासभ पक्षी च / वास्रा धेनुः / दहं भस्मीकरणे दहः अग्निः शिशुः सूर्यश्च / पहि मर्षणे सहः शैलः // 387 // Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 392) ऋज्यजितञ्चिवचिरिपिमृपितृपिपिचुपिक्षिपिक्षुपिादिमुदिदिछिदिभिदिखिान्दिदम्भिशुभ्युम्भिदं शिचिसिवहिविसिवसिशुचिसिधिगृधिवीन्धिश्चितिवृतिनीशीसु सभ्यः कित् // 388 // एभ्यः किद् रः प्रत्ययो भवति / ऋजि गतिस्थानार्जनो. जनेषु ऋनः नायकः इन्द्रः अर्थश्च / अज क्षेपणे च वीरः विक्रान्तः / तञ्चू वञ्चू गतौ तक्रम् उदश्चित् / वक्रः कुटिलः अङ्गारकः विष्णुश्च / उभयत्र न्यवादित्वात् कत्वम् / रिपिः सौत्रः रित्रं कुत्सितम् / सृप्लं गतौ सृप्रः चन्द्रः / सुप्रं मधु / सृप्रा नदी / तृपौच प्रीतौ तृपं मेघान्तर्घमः आज्यं, काष्ठं पापं दुःखं वा। दृपौच हर्षमोहनयोः दृप्रं बलं दुःखं च / दृप्रा बुद्धिः / चुप मन्दायां गतौ चुप्रः वायुः / क्षिपीत् प्रेरणे क्षिप्रं शीघ्रम् / क्षुपि मादने सौत्रः क्षुप्रं तुहिनं कण्टकिगुल्मकश्च / क्षुद्रूपी संपेषे क्षुद्रम् अणु जलगतश्च / क्षुद्रा मधुकर्यः / शुद्रः हिंस्रः / मुदि हर्षे मुद्रा चिह्नकरणम् / रुक अश्रुविमोचने रुद्रः शम्भुः / छिद्रंपी द्वैधीकरणे छिद्रं विवरम् / भिदूपी विदारणे भिद्रम् अदृढम् / भिद्रः शरः / खिदत् परिघाते खिद्रं विघ्नः / खिद्रः विपाणं विषादः चन्द्रः दीनश्च / उन्दैप् क्लेदने उद्रः ऋषिः मत्स्यश्च / सम्पूर्वात् समुन्दन्ति आर्दीभवन्ति वेलाकाले नद्योऽस्मादिति समुद्रः सागरः भीमादित्वादपादाने / दम्भूट दम्भे दभ्रः अल्पः चन्द्रः कुशः कुशलः सूर्यश्च / Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (353) शुभि दीप्तौ शुभ्रः अवदातः / उम्भत् पूरणे उभ्रो मेघः पेलवश्च / दंशं दशने दशः दन्तः सर्पश्च / चिंगट चयने चिरम् अशीघ्रम् / पिंगट बन्धने सिरा रुधिरस्रोतोवाहिनी नाडी / वहीं प्रापणे उहः अनड्वान् / विसच प्रेरणे विस्त्रम् आमगन्धि / वसं निवासे उस्रः रश्मिः / उता गौः / शुच शोके शुक्रः ग्रहः मासः शुक्लश्च / शुक्रं रेत. / लत्वे शुक्लः वर्णः, कत्वं तु न्यङवादित्वात् / षिधू गत्यां सिधः साधुः वृक्षः मांसप्रभेदश्च / गृधूच अभिकाङ्क्षायां गृध्रः श्येनः लुब्धकः * कङ्कश्च / जिइन्धैपि दीप्तौ विपूर्वात् वीध्रः अग्निः वायुः नभः निर्मलः पूर्णचन्द्रमण्डलम् / श्चिताङ वणे श्वित्रं श्वेतकुष्ठम् / वृतूङ् वर्तने वृत्रः दानवः बलवान् रिपुश्च / वृत्रं पापम् / णींग प्रापणे नीरं जलम् / शी स्वप्ने शीरः अजगरः / डुंगट अभिषवे सुरः देवः / सुरा मद्यम् / घूडौच प्राणिप्रसवे सूरः आदित्यः रश्मिश्च // 388 // इण्-धाग्भ्यां वा // 389 // / .: आभ्यां रः प्रत्ययो भवति, स च वा कित् / इंण्क् गतौ इरा मदनीयपानविशेषः मेदीनी च / एरा एडका / डुधांग्क् धारणे च धीरः सत्त्ववान् धृतिमांश्च / धारा जलयष्टिः खड्गाबयवः अश्वगतिविशेषश्च // 389 // . भन्देर्वा // 391 // . भदुङ सुखकल्याणयोः इत्यस्माद् रेः प्रत्ययः, नकारस्य च लग् वा भवति / भद्रं भन्द्रं च कल्याणं सुखं च // 391 // 23 Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 354) चिजिशुसिमितम्यम्यर्देीर्घश्च // 392 // एभ्यो रः प्रत्ययो दीर्घश्चैषां भवति / चिंगट चयने चीरं जीर्ण वस्त्रं वल्कलं च / जिं अभिभवे जीरः अजाजी अग्निः वायुः अश्वश्च / जीरम् अन्नम् / लत्वे जीलः चर्मपुटः / शुं गतौ शुरः विक्रान्तः। पिंगट बन्धने सीरं हलम् / सीरा हलविलेखिता लेखा। डुमिंग्ट प्रक्षेपणे मीरः समुद्रः / मीरं जलम् / मीरा मांस्पचनी देवसीमा च / तमच काङ्क्षायां ताम्रः वर्णः शुल्वं च / अम गतौ आम्रः वृक्षः / अर्द गतियाचनयोः आई सरसम् // 392 // ____ अवे च वा / / 398 // अव रक्षणादावित्यस्माद् अरः प्रत्ययो धकारश्चान्तादेशो वा भवति / अधरः हीनः उपरिभावस्य प्रतियोगी दन्तच्छदश्च / अवरः परप्रतियोगी // 398 // मृधुन्दिपिठिकुरिकुहिभ्यः कित् // 399 // एभ्योऽरः प्रत्ययः किद् भवति / मृदश् क्षोदे मृदरः व्याधिः अतिकायः क्षोदश्च / उन्दैप् क्लेदने उदरं जठरं व्याधिश्च / पिठ हिंसासंक्लेशयोः पितरं भाण्डम् / कुरत् शब्दे कुररः जलपक्षिजातिः / कुहणि विस्मापने कुहरं गम्भीरगतः // 399 // वाश्यसिवासिमसिमथ्युन्दिमन्दिचतिचङ्ग्यङ्किकर्बिच किबन्धिभ्य उरः // 423 // . Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (395) एभ्य उरः प्रत्ययो भवति / वाशिच् शब्दे वाशुरः शकुनिः गर्दभश्च / वाशुरा रात्रिः / असूच क्षेपणे असुरः दानवः / वासण उपसेवायां वासुरा रात्रिः मसुरा च / मसैच् परिमाणे मसुरा पण्यस्त्री / मसुरं चर्मासनं धान्यविशेषश्च / मथे विलोडने मथुरा नगरी / उन्दैप् क्लेदने उन्दुरः मुषिकः / मदुङ स्तुत्यादौ मन्दुरा वाजिशाला / चतेग याचने चतुरः विदग्धः / चङ्किः सौत्रः चङ्कति चेष्टते चकुरः रथः अनवस्थितश्च / अकुङ् लक्षणे अङ्कुरः प्ररोहः तरुातानभेदश्च / घन्युपतर्गस्य बहुलमिति बहुलवचनात् दीर्घत्वे अङ्करः / कर्व गतौ कर्बुरः शबलः / चकि तृप्तिप्रतिघातयोः चकुरः दशनः / बन्धश् बन्धने बन्धुरः मनोज्ञः नम्रश्च // . . श्वशुरकुकुन्दुरदर्दुरनिचुरप्रचुरचिकुरकुकुरकुक्कुरकुर्कुरशर्कुर नूपुरनिष्ठुरविथुरमद्गुरवागुरादयः // 426 // . एते किदुरप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / आशुपूर्वात् शुपूर्वाद् वा अन्नातेः अश्नोतेर्वा आकारलोपश्च / श्वशुरः जम्पत्योः पिता / कुपूर्वात् स्कुदुङ् आप्रवणे इत्यस्मात् सलक् च / कुकुन्दरौ नितम्बकूपौ / दृणातेर्दोऽन्तश्च दर्दुरः मण्डूक: मेघश्च / निपूर्वात् प्रपूर्वात् चिनोतेः चरतेर्वा डिच्च निचुरः तरुविशेषः / लत्वे निचुलः / प्रचुरं प्रायः / चकेरिच्चास्य चिकुरं युवतीनामीपनिमीलितमक्षि / चिकुराः केशाः / कुकेः कोऽन्तो वा कुकुरः . यादवः / कुक्कुरः श्वा / किरः कुर् कोऽन्तश्च कुर्कुरः श्वा / Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृश् हिंसायां गुणः कोऽन्तश्च शर्कुरः तरुणः / णूत् स्तवने पोऽन्तश्च नूपुर: तुलाकोटिः / निपूर्वात् तिष्ठतेः निष्ठुरः कर्कशः / निष्ठुरं काहलम् / व्यथेर्विथ् च व्यथतेऽस्माजनः इत्यपादानेऽपि विथुरः राक्षसः / मदिवात्योर्गोऽन्तश्च मद्गुरः मत्स्यविशेषः / वागुरा मृगानायः / आदिग्रहणाद् मन्यतेर्धश्च मधुरः रसविशेषः इत्यादि // 426 // . मीमसिपशिखटिखडिखर्जिकर्जिसर्जिकृपिवल्लिमण्डिभ्य ऊरः॥ 427 // एभ्य ऊरः प्रत्ययो भवति / मीच हिंसायां मयूरः शिखी / मयां रौतीति वा मयूरः पृषोदरादिषु सञ्ज्ञाशब्दानामनेकधा व्युत्पत्तिं लक्षयति / मसैच् परिमाणे मसूरः अवरधान्यजातिः चर्मासनं च / पशिः सौत्रः पश्यते गम्यते इति पशूरः ग्रामः / खट काझे खटूरः मणिविशेषः / खडण् भेदे खडूरः खुरलीस्थानम्। खर्ज मार्जने च खजूरः वृक्षविशेषः / कर्न व्यथने करः स एवं मलिनश्च / सर्न अर्जने सजूरः अहः / कृपौङ् सामर्थ्य कर्पूरः गन्धद्रव्यम् / वल्लि संवरणे वल्लूरः शुष्कं मांसम् / मडु भूषायां मण्डूरः धातुविशेषः // 427 // अश्नोतेरीचादेः // 442 // अशौटि व्याप्तौ इत्यस्माद् वरट् प्रत्ययः, ईकारश्चादेर्भवति / ईश्वरः विमुः / ईश्वरी स्त्री // 442 // ट् // 446 // Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (357) सर्वधातुभ्यः त्रट् प्रत्ययो भवति / छादयतीति छत्त्रं छत्ती था धर्मवारणम् / पातीति पात्रम् ऊर्जितगुणाधारः साध्वादिः / पात्री भाजनम् / स्नायते स्नानं स्नानम् / राजते इति राष्ट्र देशः / शिष्यतेऽनेनेति शास्त्रं गन्थः / असूच क्षेपणे अस्त्रं धनुः // 446 // . स्त्री // 450 // स्यतेः सूतेः स्त्यायतेः स्तृणातेर्वा त्रट् भवति, स च डित् / स्त्री योषित् // 490 // शामाश्याशक्यम्ब्यमिभ्यो लः // 462 // एभ्यो लः प्रत्ययो भवति / शोंच तक्षणे शाला सभा। मांक माने माला नक् / श्यङ् गतौ श्यालः पत्नीभ्राता। शक्लंट शक्तों शक्लः मनोज्ञदर्शनः मधुरवाक् शक्तश्च / अबुङ शब्दे, अम गतौ अम्लः अम्लश्च रसः // 462 // शुक-शी-मूभ्यः कित् // 463 // . एभ्यः कित् लः प्रत्ययो भवति / शुक गतौ शुक्लः सितो वर्णः / शीक स्वप्ने शीलं स्वभावः व्रतं धर्मः समाधिश्च / मूड बन्धने मूलं वृक्षपादावयवः आदिः हेतुश्च // 4 63 // ....... ... नहि-लङ्गेर्दीर्घश्च // 466 // .. आभ्याम् अलः प्रत्ययः, अनयोश्च दीर्घो भवति / णहीच बन्धने नाहलः म्लेच्छः / लगु गतौ लाङ्गलं हलम् // 466 // ऋ-ज्नेर्गोऽन्तश्च // 467 // Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 358) आभ्यामलः प्रत्ययो गकारश्चान्तो भवति / ऋक् . गतौ अर्गला परिघः / जनैचि प्रादुर्भावे जङ्गलं निर्मलो देशः // 467 // कुलिपिलिविशिविडिमृडि कुणिपीप्रीभ्यः कित् // 476 // ___ एभ्यः किदालः प्रत्ययो भवति / कुल बन्धुसंस्त्यानयोः कुलालः कुम्भकारः / पिलत् क्षेपे पिलालं श्लिष्टम् / विशंत् प्रवेशने विशालं विस्तीर्णम् / बिड आक्रोशे विडाल: मार्जारः / लत्वे बिलालः स एव / मृणत् हिंसायां मृणालं बिसम् / कुणत् शब्दोपकरणयोः कुणालः कृतमालः कटविशेषश्च / कुणालं नगरं कठिनं च / पीच् पाने पियाल: वृक्षः, पियालं शाकं वीरुच्च / प्रीच् प्रीती प्रियाल: पियालः // 476 // कल्यनिमहिद्रमिजटिभटिकुटिचण्डिशण्डितुण्डिपिण्डिभृकुकिभ्य इलः // 481 // एभ्य इलः प्रत्ययो भवति / कलि शब्द-संख्यानयोः कलिलं गहनं पापम् आत्माधिष्ठितं च शुक्रार्तवम् / अनक् प्राणने अनिलः 'वायुः / मह पूजायां महिला स्त्री / द्रम गतौ द्रमिलाः त्रैराज्यवासिनः / जट झट संवाते जटिलः जटावान् / भट भृतौ भटिलः श्वा सेवकश्च / कुटत् कौटिल्ये कुटिलं वक्रम् / चडुङ् कोपे चण्डिलः श्वा क्रोधनः नापितश्च / शडुङ् रुजायां शण्डिलः ऋषिः / तुडुङ तोडने तुण्डिलः वाग्जाली / पिडुङ संघाते पिण्डिलः मेघः हिंस्रः हिमः गणकश्च / भू सत्तायां भविलः मुनिः समर्थः गृहं बहुनेता च / कुकि आदाने कोकिलः परभृतः // 481 // Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (359) मुपि-मिथि-ध्रुभ्यः कित् // 483 // * एभ्यः किद् इलः प्रत्ययो भवति / गुपौ रक्षणे गुपिलं गहनम् / मिथुग मेधाहिंसयोः मिथिला नगरी। धुं स्थैर्ये च ध्रुविला . ऋषिः // 483 // महेरेलः // 492 // ___मह पूजायामित्यस्मादेलः प्रत्ययो भवति / महेला स्त्री // 492 // कटिपटिकण्डिगण्डिश किकपिचहिभ्य ओलः // 493 // एभ्य ओलः प्रत्ययो भवति / कंटे वर्षावरणयोः कटोल: कटविशेषः वादिनविशेषश्च / कटोला ओषधिः / पट गतौ पटोला वल्ली विशेषः / कडु मदे कण्डोलः विदलभाजनविशेषः / गडु वदनैकदेशे गण्डोलः कृमिविशेषः / शक्लंट शक्तौ शकोलः शक्तः / कपिः सौत्रः कपोल: गंण्डः / चह कल्कने चहोल: उपद्रवः // 493 // ग्रह्याद्भ्यः किंत् // 494 // ग्रहेराकारान्तेभ्यश्च धातुभ्यः किदोल: प्रत्ययो भवति / ग्रहीश उपादाने गृहोलः बालिशः / कायतेः कोलः बदरी वराहश्च / गायतेः गोल: वृत्ताकृतिः / गोला गोदावरी बालरमणकाष्ठं च / पातेः पोला तालाख्यं कपाटबन्धनं परिखा च / लातेः लोलः चपलः / ददातेर्दयतेद्यतेर्वा दोला प्रेक्षणम् // 494 // Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (360) કે દ ર દ ર शमि-कमि-पलिभ्यो बलः // 499 // ... एभ्यो बलः प्रत्ययो भवति / शमूच उपशमे शम्बलं पाथेयम् / कमूङ कान्तौ कम्बलः ऊर्णापटः / पल गतौ पल्वलम् अकृत्रिमोदकस्थानविशेषः // 499 // लटिखटिखलिनलिकण्यशौसशकगढ़पशपिश्याशालापदिह सीणभ्यो वः // 505 // एभ्यो वः प्रत्ययो भवति / लट बाल्ये लट्वा शुद्रचटका कुसुम्भं च / खट काझे खट्वा शयनयन्त्रम् / खल संचये च खल्वं निम्नं खलीनं च / खल्वा दतिः / णल गन्धे नल्वः भूमानविशेषः। कण शब्दे कण्वः ऋषिः / कण्वं पापम् / अशौटि व्याप्तौ अश्वः तुरगः / सं गतौ सर्वः शम्भुः / शश् हिंसायां शर्वः शम्भुः / कृत् विक्षेपे कर्वः आखुः समुद्रः निष्पत्तिक्षेत्रं च / गृत् निगरणे गर्वः अहङ्कारः / दृश् विदारणे दर्वा जनपदः / दर्वः हिंस्रः / पृश् पालनपूरणयोः पर्वः रुद्रः काण्डं च / शपी आक्रोशे शवः आक्रोशः / श्यैङ् गतौ श्यावः वर्णः / शोंच तक्षणे शावः तिर्यग्वालः / लांक आदाने लावः पक्षिजातिः / पदिंच् गतौ पदः रथः वायुः भू.-. कश्च / इस शब्दे हस्वः लघुः / इण्क् गतौ एवः केवलः / एव इत्यवधारणे निपातश्च // 505 // शीङापो ह्रस्वश्च वा // 506 // : आभ्या व प्रत्ययः, हस्वश्च वा भवति / शीङक् स्वप्ने शिव Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 361) क्षेम सुख मोक्षपदं च / शिवा हरीतकी। शेवं धनम् / शेवः अजगरः सुखकृच्च / शेवा प्रचला निद्राविशेषः मेटूश्च / आप्लंट व्याप्तौ अप्वा देवायुधम् / आप्वा वायुः // उर्देध् च // 507 // उर्दि मानक्रीडयोश्चेत्यस्माद् वः प्रत्ययः, धश्चान्तादेशो भवति / उर्ध्वः उद्वा / उर्ध्वम् उपरि। ऊर्ध्वं परस्तात् // 507 // लिहेर्जिह च // 513 // लिहीक् आस्वादने इत्यस्माद् वः प्रत्ययः, अस्य च जिह् इत्यादेशो भवति / जिहा // 513 // मणि-चसेणित् // 516 // आभ्यां णिद् अवः प्रत्ययो भवति / मण शब्दे माणवः शिष्यः / वसं निवासे वासवः शक्रः // 516 // मलेर्वा // 5.17 // मलि धारणे इत्यस्मादवः प्रत्ययः, स च णिद् वा भवति / मालवा जनपदः / मलवः दानवः // 517 // प्रथेरिवट् पृथ् च // 521 // प्रथिष् प्रख्याने इत्यस्माद् इवट् प्रत्ययः, अस्य च पृथ् इत्यादेशो भवति / पृथिवी भः // 521 // पा-दा-वम्यमिभ्यः शः // 527 // Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (362) : एभ्यः शः प्रत्ययो भवति / पांक् रक्षणे पाशः बन्धनम् / डुदांगक दाने दाशः कैवर्तः / टुवमू उद्गिरणे वंशः. वेणुः / अम गतौ अंशः भागः // 527 // कृ-वृ-भृ-बनिभ्यः कित् // 528 // .. एभ्यः कित् शः प्रत्ययो भवति / डुवंग करणे कृशः तनुः / वृगट वरणे वृशं शृङ्गवेरं मूलकं लशूनं च / डुडुमँगक पोपणे च भृशम् अत्यर्थम् / वन भक्तौ वशः आयत्तः // 528 // कोर्वा // 529 // कुंङ शब्दे इत्यस्मात् शः प्रत्ययः, स च किद् वा भवति / कुशः दर्भः / कोशः सारं कुड्मलं च // 529 // क्लिशः के च // 530 // ___ क्लिशौश् विबाधने इत्यस्मात् शः प्रत्ययः, अस्य च के इत्यादेशो भवति / केशाः मूर्धनाः // 530 // कलेष्टित् // 532 // कलि शब्दसंख्यानयोरित्यस्मात् टिद् अशक् प्रत्ययो भवति। कलशः कुम्भः / कलशी दधिमन्थनभाजनम् // 532 // पलेराशः // 533 // पल गतावित्यस्मादाशः प्रत्ययो भवति / पलाशः ब्रह्मवृक्षः // 933 // कनेरीश्चातः // 534 // Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनै दीप्त्यादावित्यस्मादाशः प्रत्ययः, ईकारश्चाकारस्य भवति। कीनाशः कर्षकः वर्णसंकरः कदर्यश्च / तथा 'लुब्धः कीनाशः स्यात् कीनाशोऽप्युच्यते कृतघ्नश्च / योऽश्नाति वाऽऽममांसं स च कीनाशो यमश्चैव // 534 // कुलिकनिकणिपलिवडिभ्यः किशः // 535 // एभ्यः किद् इशः प्रत्ययो भवति / कुल बन्धुसंस्त्यानयोः कुलिशं वज्रम् / कनै दीप्त्यादौ कण शब्दे कनिशं कणिशं च सस्यमञ्जरी / पल गतौ पलिशं यत्र स्थित्वा मृगा व्यापाद्यन्ते / वड आग्रहणे सौत्रः बडिश मत्स्यग्रहणम् // 535 // बलेर्णिद् वा // 536 // बल प्राणनधान्यावरोधयोरित्यस्मात् किशः प्रत्ययः, स च णिद् वा / बालिशः, बलिशः मूर्खः / बलिशं बडिशम् // 936 // मस्ज़्यङ्किभ्यामुशः // 538 // आभ्यामुशो। भवति टुमस्जोंत् शुद्धौ ‘न्यद्गमेघादयः' इति गः मद्गुशः नकुलः / अकुङ् लक्षणे अञ्जुशः सृणिः॥५३८॥ वृ-क-त-मीङ्-माभ्यः षः // 540 // एभ्यः षः प्रत्ययो भवति / दृगट वरणे वर्षः भर्ता / वर्ष संवत्सरः। वर्षा ऋतुः / कृत् विक्षेपे कर्षः उन्मानविशेषः / तृ प्लवनतरणयोः तर्षः प्लवः हर्षश्च / मींच् हिंसायां मेषः उरभ्रः / मांक माने माषः धान्यविशेषः हेमपरिमाणं च // 540 // Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 364) योरूच वा // 541 // युक् मिश्रणे इत्यस्मात् ष प्रत्ययः, ऊकारश्चान्तादेशोवा / यूषः पेयविशेषः / यूषा छाया / योषा स्त्री // 541 // मह्यविभ्यां टित् // 547 // . आभ्यां टिदिषः प्रत्ययो भवति / मह पूजायां महिषः सरिभः राजा च / महिषी राजपत्नी सरिभी च / अव रक्षणादौ अविषः समुद्रः राजा पर्वतश्च / अविषी द्यौः भूमिः गङ्गा च॥९४७॥ विदि-पृभ्यां कित् // 558 // आभ्यां किदुषः प्रत्ययो भवति / विदक् ज्ञाने विदुषः विद्वान् / पृश् पालनपूरणयोः पुरुषः पुमान् आत्मा च // 558 // / कलेमषः // 562 / कलि शब्दसंख्यानयोः इत्यस्मात् मषः प्रत्ययो भवति / कल्मषं पापम् // 562 // मावावद्यमिकमिहनिमानिकष्यशिपचिमुचियजिवृतृभ्यः - सः // 564 // एभ्यः सः प्रत्ययो भवति / मांक माने मासः त्रिंशदात्रः / वांक गतिगन्धनयोः वासः आटरूषकः / वद व्यक्तायां वाचि क्त्सः सर्णकः ऋषिः प्रियस्य च पुत्रस्याख्यानम् / अम गतौ अंसः मुजशिखरम् / कमूङ कान्तौ कंसः लोहनातिः विष्णोररातिः हिर Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ण्यमानं च / हनक हिंसागत्योः हंसः श्वेतच्छदः / मानि मसं तृतीयो धातुः / कष हिंसायां कक्षः तृणं गहनारण्यं शरीरावयवश्च / अशौटि व्याप्तौ अक्षाः प्रासकाः / अक्षाणि इन्द्रियाणि रथचक्राणि च / डुपचीष् पाके पक्षः अर्धमासः वर्गः शकुन्यवयवः सहायः साध्यं च / मुच्छंती मोक्षणे मोक्षः मुक्तिः / यजीं देवपूजादौ यक्षः गुह्यकः / वृगश् वरणे वर्सः देशः समुद्रश्च / त प्लवनतरणयोः तर्सः वीतंसः सूर्यश्च // 564 // सू-वयिभ्यां णित् // 570 // आभ्यां णिदसः प्रत्ययो भवति। सूं गतौ सारसः पक्षिविशेषः। वयि गतौ वायसः काकः // 570 // कृ-कुरिभ्यां पासः // 583 // आभ्यां पासः प्रत्ययो भवति / डुकंग करणे कर्पासः पिचुप्रकृतिः वीरुच्च / कुरत् शब्दे कूपोसः कचुकः॥ 583 // कलि-कुलिभ्यां मासक् // 584 // आभ्यां किद् मासः प्रत्ययो भवति / कलि शब्दसंख्यानयोः कल्मासं शबलम् / कुल बन्धुसंस्त्यानयोः कुल्मासः अधस्विन्नं माषादि // 584 // लूगो हः // 586 // लुनातेः हः प्रत्ययो भवति / लोहं सुवर्णादि // 586 // Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 366 ) कितो गे च // 587 // कित निवासे इत्यस्माद् हः प्रत्ययः, अस्य च गे इत्यादेशो भवति / गेहं गृहम् // 587 // अनेरोकहः // 595 // __अन प्राणने इत्यस्मादोकहः. प्रत्ययो भवति / अनोकहः वृक्षः // 595 // इति सिद्धहेमव्याकरणत उद्धृतोऽयमुणादिसंक्षेपः समाप्तः। तत्समाप्तौ च समाप्तमिदं पूर्वकृदन्तप्रकरणम् // Se NOure Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (367) अथोत्तरकृदन्तप्रकरणम् / तत्र क्वसु-कानौ तद्वत् / 5 / 2 / 2 / सर्वधातुभ्यः परोक्षाविषये क्वसुकानौ भवतः, तौ च परोक्षावत् स्याताम् / पेचिवान् , पेचानः / शुश्रुवान् , शुश्रवाणः / सेदिवान् / उपिवान् / भावयाम्बभूवान् / वेयिवदनाश्वदनूचानम् / 5 / 2 / 3 / एते भूतार्थविषये क्वसुकानान्ताः कर्तरि वा निपात्यन्ते / समीयिवान् / अनाश्वान् / अनूचानः / पक्षे / अगात् / ऐत् / इयाय / नाशीत् / नाश्नात् / नाश / अन्ववोचत् / अन्ववक / अन्वब्रवीत् / अनूवाच / वय॑ति गम्यादिः। 5 / 3 / 1 / भविष्यदर्थे गम्यादयः शब्दा इन्नन्ता यथायोगं साधवो भवन्ति / गमी ग्रामम् / आगामी जिनमुवनम् / भावी पुत्रः / वा हेतुसिद्धौ क्तः। 5 / 3 / 2 / वर्त्यदर्थाद् धातोः धात्वर्थहेतोः सिद्धौ सत्यां क्तप्रत्ययो .वा भवति / मेघश्चेद् वृष्टः, सम्पन्नाः सम्पत्स्यन्ते वा शालयः / क्रियायां क्रियार्थायां तुम् णकच् भविष्यन्ती / 5 / 3 / 13 // Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 368) यस्माद् धातोः तुमादिस्तवाच्या क्रिया अर्थः प्रयोजनं यस्याः क्रियायाः, तस्यां क्रियायामुपपदे सत्यां धातोः तुम् णकच भविष्यन्ती भवन्ति / कर्तुं याति / कारकः याति / करिष्यामीति याति / क्रियायामिति किम् ? याचिष्ये इत्यस्य पुस्तकम् / क्रियार्थायामिति किम् ? धावतस्ते वासः पतिष्यति // कर्मणोऽण् / 6 / 3 / 14 / क्रियायां क्रियार्थायामुपपदे कर्मणः पराड् भविष्यदर्थाद् धातोः अण् प्रत्ययो भवति / कुम्भकारो गच्छति / काण्डलावो याति / भाववचनाः / 5 / 3 / 15 / क्रियार्थायां क्रियायामुपपदे भविष्यदर्थाद् घातोः भाववचना घनादयः प्रत्यया भवन्ति / पाकाय व्रजति / पक्तये गच्छति / पचनाय याति / / पद-रुजविश-स्पृशेर्घञ् / 5 / 3 / 16 / ___ एभ्यो धातुभ्यो घञ् प्रत्ययः कर्तरि भवति / पद्यते पत्स्यते अपादि वा इति पादः / रुजतीति रोगः / विशति वेशः / स्पशः / भावाकोंः / 5 / 3 / 18 / सर्वधातुभ्यो भावे कर्तृवर्जिते च सर्वस्मिन् कारके वाच्ये घञ् प्रत्ययो भवति / पाकः / रागः / इङोऽपादाने टिद् वा / 5 / 3 / 19 / Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (369) इधातोः भावे कर्तृभिन्नकारके च घञ् भवति, स चापादाने टिद् वा भवति / अध्ययनम् अध्यास. : अधीयते इत्यध्यायः / उपेत्याधीयतेऽस्मादित्युपाध्यायः / उपाध्यायी, उपाध्याया। निरभेः पू-वः / 5 / 3 / 21 / निरभिपूर्वाभ्यामाभ्यां यथासंख्यं भावाकोंः घञ् भवति / निष्प्यते इति निष्पावः / अभिलवनमभिलावः / अल्बाधनार्थम् / रोरुपसर्गात् / 5 / 3 / 22 / उपसर्गपूर्वादस्माद् भावाकोंः घञ् भवति / संरवणं संरावः / उपसर्गादिति किम् ? रवः अत्राल् / भू-थ्यदोऽल् / 5 / 3 / 23 / भू श्रि अद् इत्येतेभ्य उपसर्गपूर्वेभ्यो भावाकोंः अलू भवति / प्रभवनं प्रभवः / विभवः / प्रतिश्रयः / संश्रयः / प्रघसः / विघसः / संनिव्युपाद् यमः / 5 / 3 / 25 / ___ एभ्यः पराद् यमधातोः भावाकोंः अल् प्रत्ययो वा भवति / संयमः, संयामः / नियमः, नियामः / वियमः, वियामः / उपयमः, उपयामः / नेनंद-गद-पठ-स्वन-क्वणः। 5 / 3 / 26 / . निपूर्वेभ्य एभ्यो भावाकोंः अल् वा भवति / निनदः, Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (370) निमादः / निगदः, निगादः / निपठः, निपाठः / निस्वनः, निस्वानः / निक्वणः, निक्वाणः / वैणे क्वणः / 5 / 3 / 27 / वीणायां भवो वैणस्तस्मिन् वर्तमानादुपसर्गपूर्वात् क्वणेः भावाकर्लोरल् वा भवति / प्रक्वणः, प्रक्वाणो वा वीणायाः / एवं निक्वणः, निक्वाणः / . युवर्णत्वशरणगमृद्ग्रहः / 5 / 3 / 28 / इवर्णान्तेभ्य उवर्णान्तेभ्यो वृदृवशरणगमिभ्यः ऋकारान्तेभ्यो ग्रहश्च भावाकोरल् भवति / घञोऽपवादः / चयः / निश्चयः / जयः / क्षयः / यवः / रवः / पवः / स्तवः / लवः / वरः / दरः / वशः। रणः / गमः / अवगमः / विगमः / करः / गरः / तरः / ग्रहः / समुदोऽजः पशौ / 5 / 3 / 30 / ___ आभ्यां परादजेः पशुविषयधात्वर्थे सति भावाकोरल् भवति / समजः पशूनाम् समूह इत्यर्थः / उदजः पशूनां प्रेरणमित्यर्थः / अन्यत्र समानः / सृ-ग्लहः प्रजनाक्षे / 5 / 3 / 31 / प्रजनविषयेऽक्षविषये च धात्वर्थे यथासंख्यम् आभ्यां भावाकोरल् भवति / प्रजनो गर्भग्रहणं तदर्थ स्त्रीषु पुंसां प्रथमं सरणम् उपसरः / अक्षाणां ग्लहः ग्रहणमित्यर्थः / पणेर्माने / 5 / 3 / 32 / Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (371) माने वर्तमानात् पणेः भावाकोरल् भवति / मूलकस्य पणः / शाकपणः / मूलकादीनां व्यवहारार्थ परिमितो मुष्टिः इत्यर्थः / 'संमदप्रमदौ हर्षे निपात्यौ' / संमदः कोकिलानाम् / प्रमदः कन्यानाम् / अन्यत्र संमादः, प्रमादः इति घन् / . हनोऽन्तर्घनान्तर्घणौ देशे / 5 / 3 / 34 / ___ अन्तः पूर्वाद् हन्धातोः अल् प्रत्ययः घनघणादेशौ च देशेऽभिधेये भावाकोंः निपात्येते। अन्तर्हन्यतेऽस्मिन्निति अन्तर्धनः अन्तर्वणो वा वाहीकेषु देशविशेषः / अन्यत्र तु अन्तर्धातः / प्रघण-प्रघाणौ गृहांशे / 5 / 3 / 35 / प्रपूर्वाद् हन्धातोः गृहांशेऽभिधेये अल् प्रत्ययस्तद्योगे च घणघाणौ निपात्येते / प्रहन्यतेऽसौ प्रघणः, प्रघाणो वा गृहद्वारालिन्दकः / अन्यत्र प्रघातः / / निघोद्घसंघोद्घनाफ्यनोपघ्नं निमितप्रशस्तगणात्याधाना ___ङ्गासन्नम् / 5 / 3 / 36 / - हन्धातोः निघादयः यथासंख्यं निमितादिष्वर्थेषु वाच्येषु अल्प्रत्ययान्ता निपात्यन्ते / समन्ततो मितं तुल्यं वाऽविशेषेण मितं निमितं तुल्यारोहपरिणाहमित्यर्थः / निघा वृक्षाः, निघाः शालयः तुल्यारोहपरिणाहवन्त इत्यर्थः / यद् वा निर्विशेषं निश्चयेन वा हन्यन्ते ज्ञायन्ते इति निघा वृक्षाः निश्चयेन निर्विशेषेण वा ज्ञाता इत्यर्थः / निघा बृहतिका / निघं वस्त्रम् / उद्घः Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 372) प्रशस्तः / गणः समूहः / संहतिः संघः / अत्याधीयन्ते छेड़नार्थ काष्ठादीनि यत्र तदत्याधानं उद्घनः / काष्ठोधनः / अङ्गं शरीराक्यवः अपहन्यतेऽनेनेत्यपधनः अङ्गम् / उपहन्यते समीपे ज्ञायते इत्युपनः आसन्नः / गुरूपन्नः / ग्रामोपन्नः / मृतिनिचिताभ्रे घनः। 5 / 3 / 37 / मूर्त्यादिष्वर्थेषु हन्तेरलं प्रत्ययः, घनादेशश्च निपात्यते / मूर्तिः काठिन्यम्।अभ्रस्य घनः काठिन्यमित्यर्थः। निचितं निरन्तरम् ; घनाः केशाः / घनाः शालयः / अभ्रं मेघः; घनः मेघः / व्ययोद्रोः करणे / 5 / 3 / 38 / वि अयस् द्रु इत्येतेभ्यः पराद् हन्धातोः करणेऽल् , घनादेशश्च निपात्यते। भावस्य कारकान्तरस्य च निषेधार्थ करणग्रहणम् / विहन्यते तिमिरमनेनेति विघनः / वयः पक्षिणो हन्यतेऽनेनेति वा विघनः / अयो हन्यतेऽनेनेति अयोधनः / द्रुः हन्यन्तेऽनेनेति द्रुधनः कुठारः / स्त्रियां तु परत्वादनठेव विहन्यतेऽनया विहननी / अयोहननी / द्रुहननी। स्तम्बाद् घ्नश्च / 5 / 3 / 39 / स्तम्बशब्दात् पराद् हन्धातोरल् प्रत्ययः, घ्न-घनौ चादेशौ करणे निपात्येते / स्तम्बः हन्यतेऽनेन स्तम्बनः दण्डः / स्तम्बधनो यष्टिः / स्त्रियामनदेव / Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 373) न्यभ्युपवेश्चिोत् / 5 / 3 / 42 / नि-अभि-उप-विभ्यः पराद् हुयतेः भावाकोरल, तत्संनियोगे च वाशब्दस्य उकारो भवति / निहवः / अभिहवः / उपहवः / विहवः / अन्यत्र प्रहह्वायः / आलो युद्धे / 5 / 3 / 43 / / आङ्पूर्वाद् ह्वयतेः युद्धेऽर्थे भावाकोंः अल् भवति, वाशब्दस्य चोकारः / आहूयन्ते योद्धारो यस्मिन् आहवः युद्धम् / आहावो निपानम् / 5 / 3 / 44 / निपिबन्त्यस्मिन्निति निपानम् पशु-शकुनीनां पानार्थ कृतः जलाधारः / आङ्पूर्वाद् हुंयतेः भावाकोरल आहावादेशश्च निपात्यते निपानेऽभिधेये / आहूयन्ते पशवः पानार्थ यस्मिन्नित्याहावः पशूनाम् / आहावः . शकुनीनाम् निपानमित्यर्थः / अन्यत्र आहायः / भावेऽनुपसर्गात् / 5 / 3 / 45 / ____अनुपसर्गाद् हुयतेः भावेऽल् प्रत्ययः, वाशब्दस्य चोकारो भवति / अतरीत्यस्यानुप्रवेशनिषेधार्थ भाव इति / हानं हवः / कर्मणि हायः, उपसर्गादपि आह्वानम् आहायः / हनो वा वध् च / 5 / 3 / 46 / ..अनुपसर्गाद् हन्तेर्भावेऽल् वा भवति / तत्सन्नियोगे चास्य .. वधादेशः / हननं वधः, घातः / अनुपसर्गादित्येव संघातान Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 374) व्यध-जप-मद्भ्यः / 5 / 3 / 47 / / - एभ्योऽनुपसर्गेभ्यो भावाकर्लोरल् भवति / व्यधः / जपः। मदः / अनुपसर्गादित्येव आव्याधः / उपजापः / उन्मादः / नवा क्वण-यम-हस-स्वनः / 5 / 3 / 48 // अनुपसर्गेभ्य एभ्यो भावाकर्लोरल् वा भवति / क्वणः, क्वाणः / यमः, यामः / हसः, हासः / स्वनः, स्वानः / / वर्षविघ्नेऽवाद् ग्रहः / 5 / 3 / 50 / अवपूर्वाद् अहेवर्षविघ्ने वाच्ये भावाकोरल् वा भवति / अवग्रहः, अवग्राहः वृष्टेः प्रतिबन्ध इत्यर्थः / __ गो वस्त्रे / 5 / 3 / 52 / - प्रपूर्वाद् वृणोतेः वस्त्रविशेषे वाच्ये भावाकर्बोरलू वा भवति / प्रवरः, प्रावारः / यु-पू-द्रोर्घञ् / 5 / 3 / 54 / / उत्पूर्वेभ्य एभ्यो भावाकोंर्घञ् भवति / उद्यावः / उत्पावः / उदावः / समाहुय इति द्यूते, आहुय इति च सञ्ज्ञायां निपात्यौ'। समायः द्यूतम् / आह्वयः नाम / चितिदेहावासोपसमाधाने कश्चादेः / 5 / 3 / 71 / चितिः यज्ञेऽग्निविशेषः, तदाधारो वा / देहः शरीरम् / - आवासः निवासः / उपसमाधानमुपर्युपरि राशीकरणम् / एष्वयेंषु Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 375 ) चिनोतेः भावाकोंर्घञ् तत्संनियोगे चादेः ककारादेशो भवति / आंकायमग्निं चिन्वीत / देहे कायः शरीरम् / आवासे ऋषिनिकायः / उपसमाधाने गोमयनिकायः / गोमयपरिकायः। . . माने / 5 / 3 / 81 / / ___माने गम्ये धातोः भावाकोंः घञ् भवति / मानमियत्ता, सा च द्वेधा संख्या परिमाणं च / एको निघासः / द्वौ निघासौ / समित्संग्राहः / तण्डुलसंग्राहः मुष्टिरित्यर्थः / मध्येऽपवादाः पूर्वान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरानिति अल एवायमपवादः, क्त्यादिभिस्तु बाध्यते / एका तिलोच्छृितिः / द्वे प्रसृती। स्थाऽऽदिभ्यः कः / 5 / 3 / 82 / स्थादिभ्यो धातुभ्यो भावाकोंः कः प्रत्ययो भवति / आखूनामुत्थानम् आखूत्थः वर्तते / शलभोत्थः / प्रतिष्ठन्त्यस्मिन्निति प्रस्थः सानुः / संतिष्ठन्तेऽस्यामिति संस्था। व्यवस्था / प्रपिबन्त्यस्यामिति प्रपा / विधः / आविधः / विघ्नः / दिवतोऽथुः / 5 / 3 / 83 / वितो धातोः भावाकोंस्थुः प्रत्ययो भवति। वेपथुः / वमथुः। श्वयथुः / स्फूर्जथुः / भ्रासथुः / नन्दथुः / क्षवथुः / दवथुः / ... वितस्त्रिमा तत्कृतम् / 5 / 3 / 84 / डितो धातोः भावाकोंः त्रिम भवति; तेन धात्वर्थेन Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 376) कृतं निवृत्तमित्यस्मिन्नर्थे / पाकेन निर्वृत्तं पवित्रमम् / कृत्रिमम् / लब्ध्रिमम् / याचित्रिमम् / यजिस्वपिरक्षियतिपच्छो नः / 5 / 3 / 85 / .. एभ्यो भावाकोंः नः प्रत्ययो भवति / यज्ञः / स्वप्नः / रक्ष्णः / यत्नः / प्रश्नः / ____ उपसर्गाद् दः कि / 5 / 3 / 87 / उपसर्गपूर्वाद् दासज्ञकाद् धातोः भावाकोंः किः भवति / आदिः / प्रधिः / आधिः / निधिः / संधिः / समाधिः / व्याप्यादाधारे / 5 / 3 / 88 / कर्मणः पराद् दासज्ञकाद् धातोः आधारे कारके किर्भवति / जलं धीयतेऽस्मिन्निति जलधिः / शरधिः / इषुधिः / बालधिः / शेवधिः / अभिव्याप्तौ भावेऽनगिन् / 5 / 3 / 90 / / क्रियया स्वसम्बन्धिनः साकल्येनाभिसम्बन्धोऽभिव्याप्तिः / तस्यां गम्यमानायां धातोः भावेऽनजिन् इत्येतौ प्रत्ययौ भवतः / समन्ताद् रावः संरवणम् / सांराविणं वर्तते सेनायाम् / स्त्रियां क्तिः / 5 / 3 / 91 / धातोः भावाकोः स्त्रियां क्तिर्भवति / स्त्रियामिति प्रत्ययार्थविशेषणम् / कृतिः / हृतिः / चितिः / नीतिः / नुतिः / विभूतिः / Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 377) श्वादिभ्यः / 5 / 3 / 92 / शणोत्यादिभ्यो धातुभ्यः स्त्रीलिङ्गे भावाकोः क्तिर्मवति / वक्ष्यमाणैः क्विबादिभिः सह समावेशाथ वचनम् / श्रुतिः, प्रतिश्रुत् / स्तुतिः, प्रतिस्तुत् / संपत्तिः, संपत् / विपत्तिः, विपद् / आसत्तिः, संसद् / संवित्तिः, संवित् / पक्तिः, पचा / इष्टिः, इच्छा / मतिः, मन्या इत्यादि / समिणासुगः / 5 / 3 / 93 / सम्पूर्वादिणः आङ्पूर्वात् सुगश्च स्त्रियां क्तिः भवति / क्यपोऽपवादः / समितिः। आसुतिः / अन्यत्र इत्या, सुत्या इति क्यवेव / सातिहेतियूतिजूतिज्ञप्तिकीर्ति / 5 / 3 / 94 / एते क्तिप्रत्ययान्ताः स्त्रियां निपात्यन्ते / सिनोतेः सुनोतेः स्यतेर्वा आत्वमित्वाभावश्च निपात्यते सातिः / हिनोतेः हन्तेर्वा हेतिः / यौतेः यूतिः / जवते: जूतिः / ज्ञपयतेः ज्ञप्तिः / कीर्तयतेः कीर्तिः / ज्ञपि-कीर्योः ण्यन्तलक्षणोऽनो न भवति। . गा-पा-पचो भावे / 5 / 3 / 95 / एभ्यो भावेऽर्थे स्त्रियां तिर्भवति / संगीतिः / पिबतेः प्रपीतिः / पक्तिः / भावग्रहणादन्यत्र कर्तृभिन्ने कारके क्तिबाध-- कोऽङेव भवति गापचोः; पाधातोस्तु आधारे स्थादिभ्यः कः, अपादाने उपसर्गादातः इत्यङ्। 'स्थाधातोः भावे वा क्तिर्वाच्या Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (378) प्रस्थितिः / उपस्थितिः / पक्षेऽपि प्रस्था / आस्था / व्यवस्था। उपस्थेत्यादयोऽपि। __ आस्यटि-ब्रज-यजः क्यप् / 5 / 3 / 97 / .. एभ्यो भावे स्त्रियां क्यब् भवति / आस्या। अट्या / व्रज्या / इज्या। भृगो नाम्नि। 5 / 3 / 981. भृगः परो भावेऽर्थे स्त्रियां सज्ञायां क्यब् भवति / भरणं भृत्या / नाम्नीति किम् ? भृतिः। भाव इत्येव भ्रियते इति भार्या वधूः / समजनिपनिषद्शीसुविदिचरिमनीणः / 5 / 3 / 99 / एभ्यो धातुभ्यो भावाकोः स्त्रियां क्यब् भवति / समजन्ति अस्यामिति समज्या / निपतन्त्यस्यामिति निपत्या। एवं निषद्या। शेतेऽस्यां शय्या / सुत्या / हिताहितं विदन्ति तयेति विद्या / चर्या / मन्या / इत्या / * कृगः श च वा / 5 / 3 / 100 / - कृधातोः भावाकोः स्त्रियां शः प्रत्ययो वा भवति, चकारात् क्यप् च / क्रिया, कृत्या / पक्षे कृतिः / मृगयेच्छायाच्यावृष्णाकृपामाश्रद्धाऽन्तर्धा / 5 / 3 / 101 / एते स्त्रियां निपात्यन्ते / तत्रेच्छा भावे, शेषाः भावाकोंः / मृगयतेः मृगया। इच्छते; इच्छा। अनयोः शः प्रत्ययः / Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (379) याचितृष्योः ननौ यात्रा / तृष्णा / क्रपेर रेफस्य च ऋकारः। कृपा। भातेरङ् भा। श्रत्पूर्वाद् अन्तःपूर्वाञ्च दधातेः अब श्रद्धा / अन्तर्धा / परेः स-चरेयः। 5 / 3 / 102 / परिपूर्वाभ्यां सूचरिभ्यां भावाकोः स्त्रियां यः प्रत्ययो भवति / परितः सरणं परिसर्या / परिचर्या / . वाटाव्यात् / 5 / 3 / 103 / यङन्तादटतेः स्त्रियां यः प्रत्ययो वा भवति भावाक!ः / अटाट्या पक्षे अटाटा। जागुरश्च / / 3 / 104 / / जागृधातोः भावाकोः स्त्रियामः यश्च प्रत्ययो भवति / जागरा, जागयो। शंसिप्रत्ययात / 5 / 3 / 105 / शंस्धातोः प्रत्ययान्ताच्च धातोः भावाकोंः स्त्रियामः प्रत्ययों भवति / प्रशंसा / गोपाया / ऋतीया / मीमांसा / चिकीर्षा / पुत्रकाम्या / पुत्रीया। .. क्तेटो गुरोर्व्यञ्जनात् / 5 / 3 / 106 / . ____ क्तस्येट् यस्मात् तस्मात् क्तेटो गुरुमतो व्यञ्जनान्ताद्धातो: भावाकोंः स्त्रियामः प्रत्ययो भवति / ईहा / उहा / ईक्षा / शिक्षा / भिक्षा / दीक्षा / व्यतीहा / क्तेट इति किम् ? त्रस्तिः। ध्वस्तिः। आप्तिः / गुरोरिति किम् ? स्फूर्तिः। व्यञ्जनादिति किम् ! संशीतिः / Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 380) पितोऽङ् / 5 / 3 / 107 / / षिद्धातुभ्यः भावाकोः स्त्रियामङ् भवति / डुपचींष् पाके पचा / क्षमा / घटा / त्वरा / व्यथा / प्रथा / जरा / भिदादयः / 5 / 3 / 108 / भिदादयः शब्दाः स्त्रियामड्प्रत्ययान्ताः भावाकोः निपात्यन्ते / भेदनं विदारणं सिदा / एवं छिदा / विदा। मृजा / दया। रुजा / अनुकम्पा / पृच्छा / क्षिपा / चूडा। भीषिभूषिचिन्तिपूजिकथिकुम्बिचर्चिस्पृहितोलिदोलिभ्यः 5 / 3 / 109 / ___एभ्यो ण्यन्तेभ्यः भावाक!ः स्त्रियामङ् भवति / ण्यन्तत्वादने प्राप्ते वचनम् / भीषा / भूषा / चिन्ता। पूजा। कथा / कुम्बा / चर्चा / स्पृहा / तोला / दोला / उपसर्गादातः / 5 / 3 / 110 / उपसर्गपूर्वादाकारान्ताद् धातोः भावाकोंः स्त्रियामङ् भवति / उपदा / उपधा / प्रधा। विधा / संधा / प्रमा / प्रमि--- तिस्तु वादित्वात् / णिवेत्त्यासश्रन्थघट्टवन्देरनः / 5 / 3 / 111 / - ण्यन्तेभ्यो वेत्त्यादिभ्यश्च धातुभ्यः स्त्रियां भावाकोंः अनः प्रत्ययो भवति / कारणा / वारणा / धारणा / कामना / भावना। Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 381) वेदना / आसना / श्रन्थना / घट्टना / वन्दना / वेत्तीति तिन्निदेशद् ज्ञानार्थ एव परिग्राह्यः / इषोऽनिच्छायाम् / 5 / 3 / 112 / अनिच्छायां वर्तमानादिषेः भावाकोः स्त्रियामनो भवति / एषणा / अन्वेषणा / पिण्डैषणा। अनिच्छायामिति किम् ? इष्टिः / वित्तैषणा, प्राणैषणा, परलोकैषणा इत्यादयस्तु बहुलाधिकारात् / पर्यधेर्वा / 5 / 3 / 113 / पर्यधिपूर्वादिषेः भावाकोंः स्त्रियामनिच्छायां वर्तमानाद् अनो वा भवति / पर्येषणा, परीष्टिः / अध्येषणा, अधीष्टिः / क्रुत्सम्पदादिभ्यः क्विप् / 5 / 3 / 114 / अनुपसर्गपूर्वेभ्यः क्रुधादिभ्यः समादिपूर्वेभ्यश्च पदादिभ्यः स्त्रियां भावाकोः क्विब् भवति / क्रुत् / युत् / क्षुत् / तृड् / रुक् / शुक् / मुत् / सम्पद् / विपद् / आपद् / प्रतिपद् / संसत् / परिषत् / आशीः / प्रतिश्रुत् / उपानत् / समित् / आकृतिगणोऽयम् / भ्यादिभ्यो वा / 5 / / 115 / बिभेत्यादिभ्यो धातुभ्यः स्त्रियां भावाकोः क्विा वा भवति। भी:, भीतिः / हीः, हीतिः / लूः, लूनिः / भूः, भूतिः / कण्डः, कण्डूया / कृत् , कृतिः / भिद् , भित्तिः / दृक् , दृष्टिः / नक्, नष्टिः / ज्वरेः नूः, जुर्तिः / Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 382) व्यतिहारेऽनीहादिभ्यो नः / 5 / 3 / 116 / अन्योन्यस्य कृतप्रतिकृतिः व्यतिहारः। व्यतिहारविषयेभ्यः धातुभ्यो ईहादिवनितेभ्यः स्त्रियां नः प्रत्ययो भवति / परस्परमाक्रोशनं व्यावक्रोशी / व्यावमोषी / व्यावहासी / व्यावलेखी / व्यावचर्ची / व्यात्युक्षी / व्यातिचारी / ईहादिवर्जनाद् व्यतीहा / व्यतिपृच्छा। नोऽनिः शोपे / 5 / 3 / 117 / नमः पराद् धातोः शान्ये भावाकोंः स्त्रियामनिः भवति। अनननिः ते वृषल भूयात् / एवम् अजीवनिः, अगमनिः, अकरणिः, अप्रयाणिः / ग्ला-हा-ज्यः। 5 / 3 / 118 / ___ एभ्यो भावाकोः स्त्रियामनिः भवति / ग्लानिः / हानिः / न्यानिः / प्रश्नाख्याने वेन् / 5 / 3 / 119 / / प्रश्ने आख्याने च गम्ये स्त्रियां भावाकोः धातोः इज प्रत्ययो वा भवति / प्रश्ने कां त्वं कारिमकार्षीः ? / कां कारिकां क्रियां कृत्यां कृति वाऽकार्षीः ? / आख्याने सर्वा कारिमकार्षम् / सर्वो कारिका क्रियां कृत्यां कृतिं वाऽकार्षम् / / पर्यायाईणोत्पत्तौ च णका / 5 / 3 / 120 / प्रभाख्यानयोः गम्यमानयोः एषु चार्थेषु स्त्रियां भावाक!ः Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (383) धातोः णकः प्रत्ययो भवति / क्त्याद्यपवादः / पर्यायः क्रमः परिपाटिरिति यावद् / भवतः आसिका, शायिका, अग्रगामिका आसितुं शयितुमने गन्तुं च भवतः क्रम इत्यर्थः / अहणमहः योग्यता। अर्हति भवान् इक्षुभक्षिकाम, ओदनभोजिकाम् , पयःपायिकाम् / ऋणं यत् परस्मै धार्यते इक्षुभक्षिकां मे धारयसि। उत्पत्तिः जन्म इक्षुभक्षिका मे उदपादि। प्रश्ने कां त्वं कारिकामकार्षीः / आख्याने सर्वां कारिकामकार्षम् / नाम्नि पुंसि च / 5 / 3 / 121 / धातोः स्त्रियां भावाकोंः सज्ञायां णकः प्रत्ययो भवति / यथादर्शनं पुंसि च / प्रच्छर्दनं प्रच्छद्यतेऽनया वा प्रच्छर्दिका। एवं प्रवाहिका / विचर्चिका / विपादिका / एता रोगसञ्ज्ञाः / उद्दालकपुष्पाणि भन्यन्ते यस्यां सा उद्दालकपुष्पभञ्जिका / एवं वारणपुष्पप्रचायिका। अभ्योषखादिका / शालभञ्जिका / एवंनामानः क्रीडाः / पुंसि अरोचनं न रोचतेऽस्मिन्निति वा अरोचकः / अनाशकः / उत्कन्दकः / उत्कर्णकः / भावे / 5 / 3 / 122 / भावे धात्वर्थनिर्देशे स्त्रियां धातोः णकः प्रत्ययो भवति / आसिका / शायिका / जीविका / कारिका / क्लीबे क्तः / 5 / 3 / 123 / नपुंसकलिङ्गे भावेऽर्थे धातोः क्तः प्रत्ययो भवति / हसितं Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (384) छात्रस्य ।नृत्तं मयूरस्य / व्याहृतं कोकिलस्य / गतं गजस्य। क्लीब इति किम् ? हसः / हासः / * अनट् / 5 / 3 / 124 / '. क्लीवे भावेऽर्थे धातोः अनट् प्रत्ययो भवति / ममनम् / वचनम् / हसनम् / यत्कर्मस्पर्शात् कर्बङ्गसुखं ततः। 5 / 3 / 125 / / येन कर्मणा संस्पृश्यमानस्य कर्तुः अङ्गस्य सुखमुत्पद्यते ततः कर्मणः पराद् धातोः क्लीवे भावेऽनड् भवति / पूर्वेण सिद्धे नित्यसमासार्थ वचनम् / पयःपानं सुखम् / ओदनभोजनं सुखम् / कर्मेति किम् ? तूलिकाया उत्थानं सुखम् / स्पर्शादिति किम् ? अग्निकुण्डस्योपासनं सुखम् / कत्रिति किम् ? शिष्येण गुरोः स्नापनं सुखम् / अङ्गेति किम् ? पुत्रस्य परिष्वञ्जनं सुखम् / सुखमिति किम् ? कण्टकानां मर्दनं सुखम् / रम्यादिभ्यः कर्तरि / 5 / 3 / 126 / रम्यादिभ्यो धातुभ्यः कर्तर्यनड् भवति / रमणी। कमनी / नन्दनी। कारणम् / 5 / 3 / 127 / कृग्धातोः कर्तर्यनट् प्रत्ययो वृद्धिश्च निपात्यते / करोतीति कारणम् / भुजि-पत्यादिभ्यः कर्मापादाने / 5 / 3 / 128 / Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 385) मुन्यादिभ्यः पत्यादिभ्यश्च धातुभ्यो यथासंख्यं कर्मण्यपादाने चानड् भवति / मुज्यते इति भोजनम् / निरदन्ति तदिति निरदनम् / अपादाने प्रपतत्यस्मादिति प्रपतनः / प्रस्कन्दनः / निर्झरणः / अपादानम् / करणाधारे / 5 / 3 / 129 / / करणे आधारे चार्थो धातोरनड् भवति / करणे एषणी / लेखनी / विचयनी / इध्मत्रश्चनः / पलाशशातनः / श्मश्रुकर्तनः / आधारे गोदोहनी / सक्तुधानी / तिलपीडनी / शयनम् / आसनम् / अधिकरणम् / आस्थानम् / पुंनाम्नि घः / 5 / 3 / 130 / पुंसः नाम पुंनाम, तत्र गम्यमाने करणाधारयोः धातोः घः भवति / करणे प्रच्छदः। उरच्छदः / दन्तच्छदः। आधारे आकरः। भवः / लयः / विषयः / / गोचरसंचरवहबजव्यजखलापणंनिगमबकभगकषाकप निकषम् / 5 / 3 / 131 / - एते करणाधारयोः घप्रत्ययान्ता निपात्यन्ते पुंनाम्नि / गावश्वरन्त्यस्मिन्निति गोचरः देशः / इदं व्युत्पत्तिमात्रं विषयस्य तु सज्ञा / सर्वसंविदामनेकान्तात्मकं वस्तु गोचरः / संचरन्तेऽनेनेतिसंचरः / वहन्ति येन वहः वृषस्कन्धदेशः / वजन्त्यस्मिन्निति बनः / व्यजत्यनेनेति व्यजः / खलन्त्यस्मिन्निति खलः / एत्य - 25 Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 386) पणायन्ति यस्मिन् स आपणः / निगच्छन्ति यत्रेति निगमः / वक्तीति बकः / भज्यतेऽस्मिन्निति भगः / भगमिति तु बाहुलकात् क्लीबेऽपि घे सिद्धे सिद्धम् / कषत्यस्मिन्निति कषः / एवमाकषः / निकषः / व्यअनाद् घञ् / 5 / 3 / 132 / व्यञ्जनान्ताद् धातोः पुंनाम्नि करणाधारे घञ् भवति / विदन्त्यनेनेति वेदः / चेष्टतेऽनेनेति चेष्टः बलम् / एवमापाकः / आरामः / लेखः / बन्धः। वेगः / रागः। रङ्गः / प्रासादः / अपामार्गः / अवात् तृस्तृभ्याम् / 5 / 3 / 133 / . अवपूर्वाभ्यां तृस्तृभ्यां करणाधारे पुंनाम्नि घञ् भवति / अवतरन्त्यस्मिन्निति अवतारः / अवस्तृणन्त्यस्मिन्निति अवस्तारः बाहुलकादसञ्ज्ञायामपि / अवतारो नद्याः / न्यायावायाध्यायोद्यावसंहारावहाराधारदारजारम् / 5 / 3 / 134 / एते शब्दा घनन्ताः पुंनाम्नि करणाधारयोः निपात्यन्ते / घस्यापवादः / निपूर्वस्येणः नीयतेऽनेनेति न्यायः / एत्य वयन्ति यस्मिन्निति अवायः / अधीयतेऽनेनास्मिन्निति वाऽध्यायः / उद्युवन्ति येनेत्युद्यावः / संहरन्ति येन संहारः / अवहरन्ति येनावहारः / आध्रियते यत्रेत्याधारः / दीर्यन्ते एभिः दाराः / चार / Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 387) जीर्यतेऽनेनेति जारः / दारयन्तीति दाराः इत्यपि / 'जाले वाध्ये आनायोः निपात्यः ' आनायो जालं मत्स्यानां मृगाणां वा। उदकोऽतोये / 5 / 3 / 135 / . उत्पूर्वादञ्चतेः पुनाम्नि करणाधारयोः घञ् निपात्यते, अतोये तोयविषयश्चद् धात्वर्थो न भवति / तैलोदकः / घृतोदकः / अतोय इति किम् उदकोदञ्चनः / खनो डडरेकेकवकघं च / 5 / 3 / 137 / खनेः पुनाम्नि करणाधारयोः - डडरइकइकवकघघञ् च प्रत्यया भवन्ति / आखायते आखन्यते वाऽनेनास्मिन् वा आखः / आखरः / आखनिकः / आखनिकवकः / आखनः / आखानः / - इकिस्तिव स्वरूपार्थे / 5 / 3 / 138 / धातोः स्वरूपेऽर्थेऽभिधेये च इकिस्तिव् इत्येते प्रत्यया भवन्ति / भञ्जिः / क्रुधिः / बुधिः / मनिः / अर्थे यजेरङ्गानि / भुजिः क्रियते / पचतिवर्तते / गच्छतिः / दुःस्वीषतः कृच्छ्राकृच्छ्रार्थात् खल् / 5 / 3 / 139 / - कृच्छ्रे दुःखम् , अकृच्छ्रे सुखम् , कृच्छ्रार्थवृत्तेः दुरः साम•दकृच्छ्रार्थवृत्तिभ्यां स्वीषद्भ्यां पराद् धातोः भावकर्मणोरर्थयोः खल् प्रत्ययो भवति / दुःखेन शय्यते इति दुःशयम् , सुखेन शय्यते इति सुशयम् , ईषच्छयं भवता / सुखेन, क्रियते इति सुकरः, Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 388) दुःखेन क्रियते इति दुष्करः, ईषत्करः कटो भवता / दुष्करम् , सुकरम् , ईषत्करं भवता / व्यर्थे कम्प्याद् भूकृगः / 5 / 3 / 140 / ___कृच्छ्राकृच्छ्रार्थेभ्यो दुःस्वीषद्भ्यः पराभ्यां च्व्यर्थे वर्तमानाभ्यां कर्तृकर्मवाचिभ्यां शब्दाभ्यां पराभ्यां यथासंख्यं भूकृष्भ्यां परः खल् प्रत्ययो भवति / दुःखेनानाढ्येनाव्येन भूयते दुराड्यंभवं त्वया। सुखेनानाढ्येनाढ्येन भूयते स्वाड्यंभवं मया / ईपदाढ्यंभवं भवता / . दुःखेनानाड्यः आढ्यः क्रियते दुराड्यंकरः मैत्रो भवता / सुखेनानाढ्यः आङ्यः क्रियते स्वाड्यंकरो मैत्रो भवता / ईपदाढ्यंकरो मैत्रो भवता / वीरणानि सुखेनाकट: कट: क्रियन्ते इति सुकटंकराणि वौरणानि / मृत् सुखेनाघटः घटः क्रियते इति सुघटंकरा मृद् / च्व्यर्थ इति किम् ? दुराड्येन भूयते / स्वाड्येन भूयते / ईषदाढ्येन भूयते / आढ्य एव किञ्चिद् विशेषमापद्यते / एवं दुराख्यः क्रियते। शासूयुधिशिधृषिमृषातोऽनः / 5 / 3 / 141 / कृच्छ्राकृच्छ्रार्थकदुःस्वीपत्पूर्वेभ्यः शासूप्रभृतिभ्य आदन्तेभ्यश्च धातुभ्यो भावकर्मणोरनः प्रत्ययो भवति / दुःखेन शिष्यते इति दुःशासनः / सुखेन शिष्यते सुशासनः / ईषच्छासनः / एवं दुर्योधनः / दुर्दर्शनः / दुर्धर्षणः / दुर्मर्षणः / आदन्तः दुरुत्थानं त्वया / सूत्थानं चैत्रेण / ईषदुत्थानं भवता / दुष्पानं दुग्धं कण्ठरोगवता / सुपानं पयः भवता / ईषत्पानमित्यादि / Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 389) निषेधेऽलं-खल्वोः क्त्वा / 5 / 4 / 44 / * निषेधार्थयोरलंखल्वोरुपपदयोः धातोः क्त्वा प्रत्ययो वा भवति / अलं कृत्वा / खलु कृत्वा / न कर्तव्यमित्यर्थः / पक्षे यथाप्राप्तम् / अलं वत्स रोदनेन / अलं रुदितेन / परावरे / 5 / 4 / 45 / परावरयोः गम्यमानयोः धातोः क्त्वा प्रत्ययो वा भवति / अतिक्रम्य वलभी शत्रुञ्जयः, वलभ्याः परः इत्यर्थः / यौवनमतिक्रम्य वार्धकम् यौवनात् परमित्यर्थः / अवरे अप्राप्य नदी पर्वतः नद्या अर्वागित्यर्थः / अप्राप्य यौवनं वाल्यम् / निमील्यादि-मेङ तुल्यकर्तृ के / 5 / 4 / 46 / धात्वर्थान्तरेण तुल्यः कर्ता यस्य स तुल्यकर्तृकः, तस्मिन्नर्थे वर्तमानेभ्यो निमील्यादिभ्योः मेडश्च धातोः सम्बन्धे सति क्त्वा वा भवति / नेत्रे निमीत्य हसति / मुखं व्यादाय स्वपिति / दन्तान प्रकाश्य जल्पति। अपमाय अपमित्य याचते / निमिल्यादीनां समानकालार्थः, मेङ: परकालार्थश्चारम्भः / पूर्व हि याचते पश्चादपमयते। प्राक्काले / 5 / 4 / 47 / परकालेन धात्वर्थेन तुल्यकर्तृके प्राकालेऽथै वर्तमानाद् धातोः धातोः सम्बन्धे क्त्वा वा भवति / आसित्वा भुङ्क्ते / मुक्त्वा ब्रजति / स्नात्वा भुङ्क्ते / पीत्वा व्रजति / पक्षे आस्यते भोक्तुमित्यादि / प्राक्काल इति किम् ? आस्यते, भुज्यते, पीयते / Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 390) ख्णम् चाभीक्ष्ण्ये / 5 / 4 / 48 / - आभीक्ष्ण्ययुक्ते परकालिकधात्वर्थेन सह तुल्यकर्तृके प्राक्कालेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः धातोः सम्बन्धे ख्णम् चकारात् क्त्वा च वा भवति / भोनं भोजं व्रजति / मुक्त्वा मुक्त्वा वनति / पायं पायं गच्छति / पीत्वा पीत्वा गच्छति / पूर्वाग्रे प्रथमे / 5 / 4 / 49 / पूर्वादिषूपपदेषु प्राक्कालार्थे वर्तमानाद् धातोः धातोः सम्बन्धे ख्णम् वा भवति / अनाभीक्ष्ण्यार्थं वचनम् / पूर्व भोनं व्रजति / पूर्व मुक्त्वा व्रजति / अग्रे भोजं याति / अग्रे भुक्त्वा याति / प्रथम भोजं गच्छति / प्रथम मुक्त्वा गच्छति / पूर्व भोजनं कृत्वा ततः एतीत्यर्थः / अन्यथैवंकथमित्थमः कृगोऽनर्थकात् / 5 / 4 / 50 / ___एभ्यः परात् तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानात् करोतेरनर्थकाद् धातोः सम्बन्धे रुणम् वा भवति / अन्यथाकारं मुफ्ते / एवंकारं भुङ्क्ते / कथंकारं भुङ्क्ते / इत्थंकारं भुङ्क्ते / पक्षे क्त्वा अन्यथा कृत्वा भुङ्क्ते इत्यादि / करोतेरन्यथादिभ्यः पृथगर्थाभावादनर्थकत्वम् / यावता अन्यथा भुङ्क्ते इत्युच्यते, तावता अन्यथाकारमित्यप्युच्यते / अत्र समासोऽपि नित्यः ङस्युक्तत्वात् / - यथा-तथादीयॊत्तरे / 5 / 4 / 51 / Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पे व्याप्यात् ।मानात् कृगः धाता चौरं (391) यथातथाभ्यां परात् तुल्यकर्तृकेऽथ वर्तमानाद् अनर्थकात् कृगः धातोः सम्बन्धे ख्णम् वा भवति, ईर्ण्यश्चेदुत्तरं करोति तत्र / कथ भवान् भोक्ष्यते ? इति पृष्टः सन् असूयया तमुत्तरयति यथाकारमहं भोक्ष्ये, तथाकारमहं भोक्ष्ये किं तवानेन ? / शापे व्याप्यात् / 5 / 4 / 52 / कर्मणः परात् तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानात् कृगः धातोः सम्बन्धे ख्णम् वा भवति, आक्रोशे गम्यमाने / चौरंकारमाक्रोशति-चौरं कृत्वा चौरशब्दमुच्चार्याक्रोशतीत्यर्थः, चौरोऽसीत्याक्रोशति इति फलितोऽर्थः / स्वाद्वाददीर्घात् / 5 / 4 / 53 / स्वाद्वर्थे वर्तमानाददीर्घान्ताद् व्याख्यात् परस्मात् तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानात् करोतेः धातोः सम्बन्धे ख्णम् वा भवति / स्वादुंकारं भुङ्क्ते / मिष्टंकारं मुङ्क्ते / पक्षे स्वादुं कृत्वा, मिष्टं कृत्वा मुङ्क्ते / अदीर्घादिति किम् ? स्वाद्वीं कृत्वा यवागू मुफ्ते / विद्-दृग्भ्यः कात्स्न्ये णम् / 5 / 4 / 54 / काययुक्तव्याप्यात् परेभ्यस्तुल्यकर्तृके वर्तमानेभ्यो विदिभ्यः दृशेश्च धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / अतिथिवेदं भोजयति। यं यमतिथिं जानाति लभते विचारयति वा तं तं भोजयतीत्यर्थः / कन्यादर्श वरयति यां यां कन्यां पश्यति तां सर्वां वरयतीत्यर्थः / बहुवचनात् त्रयोऽपि विदो गृह्यन्ते / Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 392) यावतो विन्द-जीवः / 5 / 4 / 55 / .. कात्य॑युक्तव्याप्याद् यावच्छब्दात् पराभ्यां विन्दजीविभ्यां तुल्यकर्तृके वर्तमानाभ्यां धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / यावदवेदं भुक्ते यावल्लभते तावद् मुक्ते इत्यर्थः / यावज्जीवमधीते याव जीवति तावदधीत इत्यर्थः / चर्मोदरात पूरेः। 5 / 4 / 56 / . चर्मोदराभ्यां व्याप्याभ्यां परात् तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानात् पूरेः णम् प्रत्ययो वा भवति / चर्मपूरमास्ते चर्म पूरयित्वा आस्ते इत्यथः / उदर रं शेते उदरं पूरयित्वा शेते इत्यर्थः / वृष्टिमाने ऊलुक चास्य वा / 5 / 4 / 57 / ___कर्मणः परात् पूरयतेर्धातोः धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / अस्य च पूरयतेरूकारस्य लुग् वा भवति / समुदायेन चेद् वृष्टेरियत्ता गम्यते / गोष्पदनं गोष्पदपूरं वा वृष्टो मेघः / गङ्गाप्रं गंगापूर वा वृष्टो देवः / यावता गोष्पदादिः पूरणो भवति तावद् वृष्ट इत्यर्थः / चेलार्थात् क्नोपेः / 5 / 4 / 58 / : चेलार्थाद् व्याप्यात् परात् तुल्यकर्तृकार्थात् क्नोपयतेः वृष्टिमाने गम्ये धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / चेलक्नोपं वृष्टो देवः / एवं वस्त्रक्नोपं वसनक्नोपं वा वृष्टो मेघः / यावता चेलमार्दीभवति तावद् वृष्ट इत्यर्थः / Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 393) गोत्र-पुरुषात् स्नः / 5 / 4 / 59 / - गात्ररूपात् पुरुषरूपाच्च व्याप्यात् परादन्तर्भूतण्यर्थात् स्नातेस्तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् वृष्टिमाने गम्ये धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / गात्रस्नायं वृष्टो देवः / पुरुषस्नायं वृष्टो मेघः / यावता गात्र पुरुषश्च स्नाप्यते तावद् वृष्टः / शुष्क-चूर्ण-रूक्षात् पिषस्तस्यैव / 5 / 4 / 60 / एभ्यो व्याप्येभ्यः परात् पिषेः तस्यैव धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / शुष्कपेषं पिनष्टि / चूर्णपेषं पिनष्टि / रूक्षपेष पिनष्टि / शुष्कं चूर्ण रूक्षं वा पिनष्टीत्यर्थः / कृग-ग्रहोऽकृत-जीवात् / 5 / 4 / 61 / ___अकृत-जीवाभ्यां व्याप्याभ्यां पराभ्यां कृग्-अहिभ्यां यथासंख्यं तस्यैव धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / अकृतकारं करोति अकृतं करोतीत्यर्थः / जीवग्राहं गृह्णाति जीवन्तं गृह्णातीत्यर्थः / निमूलात् कषः। 5 / 4 / 62 / . निमूलाद् व्याप्यात् परात् कषेस्तस्यैव धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / निमूलकाषं कषति निमूलं कषतीत्यथः / पक्षे निमूलस्य कार्ष कषति / हनश्च समूलात् / 5 / 4 / 63 / समूला व्याप्यात् पराद् हन्तेः कषेश्च तस्यैव धातोः सम्बन्धे Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 394) णम् वा भवति / समूलकाषं कषति समूलं कषतीत्यर्थः / ससूलघातं हन्ति समूलं हन्तीत्यर्थः / करणेभ्यः। 5 / 4 / 64 / करणात् कारकात् पसद् हन्तेः णम् वा भवति तस्यैव धातोः सम्बन्धे / पाणिघातं कुड्यमाहन्ति, पाणिना कुड्यमाहन्तीत्यर्थः, बहुवचनात् करणपूर्वाद हिंसादपि हन्तेरनेनैव णम्, न तु ' हिंसार्थादेकाप्यात्' इत्यनेन / अस्युपघातमरीन् हन्ति / अनेन णमि नित्यसमासः / / स्वस्नेहार्थात् पुष-पिषः। 5 / 4 / 65 / / करणवाचिनः स्वार्थात् स्नेहार्थाच्च पराद यथासंख्यं पुषः पिषश्च तस्यैव सम्बन्धे सति णम् वा भवति / स्वपोषं पुष्णाति / आत्मपोषं पुष्णाति / स्वशब्दस्यात्मात्मीयज्ञातिधनार्थत्वेन गोपोषं महिषीपोषं मातृपोषं धनपोषं च पुष्णातीत्याद्यपि / स्वादिभिः पुष्णातीत्यर्थः / स्नेहार्थाद् उदपेषं पिनष्टि / घृतपेषं तैलपेपं क्षीरपेषं वा पिनष्टि / उदकादिना पिनष्टीत्यर्थः / / हस्ताथाद् ग्रह-वर्ति-वृतः / 5 / 4 / 66 / हस्तार्थककरणवाचिनः पराद् ग्रहवर्तिवृतः तस्यैव सम्बन्धे णम् वा भवति / हस्तग्राहं गृह्णाति / करग्राहं गृह्णाति / पाणिग्राहं गृह्णाति / हस्तेन गृह्णातीत्यर्थः / हस्तवत वर्तयति हस्तेन वर्तयतीत्यर्थः / हस्तवः वर्तते / करवर्त वर्तते / हस्तेन वर्तत इत्यर्थः / वर्तिवृत इति वृतेय॑न्तस्याण्यन्तस्य च ग्रहणम् / / Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 395) __बन्धेर्नाम्नि / 5 / 4 / 67 / बन्धिः प्रकृतिः नामविशेषणं च, बन्धनस्य यद् नाम तद्विपयात् बन्ध्यर्थस्य बन्धेः करणवाचिनः परात् तस्यैव सम्बन्धे णम् वा भवति / क्रौञ्चबन्धं बद्धः / मर्कटबन्धं बद्धः / मयूरिकाबन्धं बद्धः। क्रौञ्चाद्याकारो बन्धः क्रौञ्चादिशब्देनोच्यते, तेन बन्धेन बद्धः / क्रौञ्चाद्याकारकेण बन्धेन बद्ध इत्यर्थः / ____- आधारात् / 5 / 4 / 68 / - आधारवाचिनः पराद् बन्धेस्तस्यैव सम्बन्धे सति णम् वा भवति / चक्रबन्धं बद्धः / चारकबन्धं बद्धः / गुप्तिबन्धं बद्धः चक्रादिषु बद्ध इत्यर्थः / कतुर्जीव-पुरुषाद् नश-वहः। 5 / 4 / 69 / कर्तृवाचिभ्यां जीव-पुरुषाभ्यां पराभ्यां यथासंख्यं नशिवहिभ्यां तस्यैव धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / जीवनाशं नश्यति जीवन् नश्यति / पुरुषवाहं वहति पुरुषः प्रेष्यो भूत्वा वहतीत्यर्थः / ऊर्ध्वात् पूःशुषः। 5 / 4 / 70 / कर्तृवाचकाऊर्ध्वशब्दात् पूरः शुषश्च तस्यैव धातोः सम्बन्धे सति णम् वा भवति / ऊर्ध्वपूरं पूर्यते / ऊर्ध्वः पूर्यते इत्यर्थः / ऊर्ध्वशोषं शुष्यति ऊर्ध्वः शुष्यतीत्यर्थः / . व्याप्याच्चेवात / 5 / 4 / 71 / / Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 396 ) उपमानार्थाद् व्याप्यात् कर्तुश्च पराद धातोः तस्यैव सम्बन्धे छाम् वा भवति / सुवर्णनिधायं निहितः सुवणमिव निहित इत्यर्थः / रत्ननिधायं निहितः / ओदनपाकं पक्वः / कर्तुः काकनाशं नष्टः / काक इव नष्ट इत्यर्थः / जमालिनाशं नष्टः / अभ्रविलायं विलीनः अभ्रमिव विलीन इत्यर्थः / उपात् किरो लवने / 5 / 4 / 72 / लवनेऽर्थे वर्तमानादुपपूर्वात् किरतेः अन्यधातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / लवनग्रहणात् तस्यैव संबन्धे इति निवृत्तम् / उपस्कार मद्रका लुनान्ति विक्षिपन्तः लुनन्ति इत्यर्थः / ___ दंशेस्तृतीयया / 5 / 4 / 73 / तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानादुपपूर्वाद दंशेस्तृतीयान्तेन योगे सति अन्यस्य धातोः सम्बन्धे सति णम् वा भवति / मूलकेनोपदंश भुङ्क्ते / अत्र ' तृतीयोक्तं वा' इति समासस्य विकल्पनाद मूलकोपदंशं भुङ्क्ते इत्यपि / पक्षे मूलकेनोपदश्य भुङ्क्ते / एवमार्द्रकोपदंशम् , आर्द्रकेणोपदंशम् , आर्द्रकमुपदश्य भुङ्क्ते इत्यादि। हिंसा देकाप्यात् / 5 / 4 / 74 / ... हिंसाद् धातोः सम्बध्यमानेन धातुना सहैकाप्यात् तृतीयान्तेन योगे तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् णम् वा भवति / दण्डेनोपघातं दण्डोपघातं गाः सादयति / खड्नेन प्रहारं खड्गप्रहारं शत्रून् विज Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (397) यते / दण्डेनाताडं दण्डाताडं गाः कलयति / पक्षे दण्डेनोपहत्येत्यादि / हिंसादिति किम् ? चन्दनादिना महावीरं जयति / एकाप्यादिति किम् ? दण्डेनाहत्य चैत्र गोपालः धनू : खेटयति उपपीड-रुध-कर्षस्तत्सप्तम्या / 5 / 4 / 75 / तृतीयायुक्ता सप्तमी तत्सप्तमी / तृतीयान्तेन सप्तम्यन्तेन च योगे सति उपपूर्वेभ्यः पीडरुधकर्षभ्यस्तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानेभ्यो . धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / पार्थाभ्यामुपपीडं पार्थोपपीडं शेते / पार्श्वयोरुपपीडं पार्थोपपीडं शेते / व्रजेनोपरोधं व्रजोपरोधं गाः सादयति / बजे उपरोधं व्रजोपरोधं गाः स्थापयति / पाणिनोपकर्ष पाण्युपकर्ष धानाः पिनष्टि। पाणावुपकर्ष पाण्युपकर्ष धानाः गृह्णाति / कर्पतेः शवो निर्देशादै भौवादिकस्य ग्रहणं न तौदादिकस्य / तेन भूमौ उपकृष्य तिलान् वपति इति विलेखनार्थस्य न णम् / प्रमाण-समासत्त्योः / 5 / 4 / 76 / आयाममानं प्रमाणम् , समासत्तिः संरम्भपूर्वकः सन्निकर्षः, तयोः गम्यमानयोः तृतीयान्तेन सप्तम्यन्तेन च योगे तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः धातोः सम्बन्धे सति णम् वा भवति / व्यङ्गुलेनोत्कर्ष द्वयङ्गुलोत्कर्ष गण्डिकाः छिनत्ति / व्यङ्गुले उत्कर्ष द्वयगुलोत्कर्ष गण्डिकाश्छिनत्ति / समासत्तिः केशैाह . केशग्राहं युध्यन्ते / केशेषु ग्राहं केशमाहं युध्यन्ते / पक्षे द्वयङ्गुलेनोत्कृष्य व्यङ्गुले उत्कृष्य गण्डिकाः छिनत्ति इत्यादि / Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 398) पञ्चम्या त्वरायाम् / 5 / 4 / 77 / त्वरा औत्सुक्यम् , तस्यां गम्यमानायां पञ्चम्यन्तेन योगे तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / शय्याया उत्थायं शय्योत्थायं धावति / पक्षे शय्याया उत्थाय धावति / द्वितीयया / 5 / 4 / 78 / . द्वितीयान्तेन योगे तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति त्वरायां पायाम् / लोष्ठान् ग्राहं लोष्ठयाहं युध्यन्ते / एवं यष्टीः ग्राहं यष्टिग्राहं युध्यन्ते / दण्डमुद्यामं दण्डोद्यामं धावति / एवं योद्धं त्वरन्ते यदायुधग्रहणमपि नाद्रियन्ते ।यत्किञ्चिदासन्नं तद् गृह्णन्ति / पक्षे लोष्ठान् गृहीत्वा युध्यन्ते इत्यादि / ___ स्वाङ्गेनाध्रुवेण / 6 / 4 / 79 / / व्याकरणशास्त्रोक्तं स्वाङ्गमत्र ग्राह्यम् ‘अविकारोऽद्रवमित्याविलक्षणम् , यस्मिन्नङ्गे च्छिन्ने प्राणी न म्रियते तदध्रुवम् , अध्रुयेण स्वाङ्गेन द्वितीयान्तेन योगे सति तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः सम्बन्धे सति णम् वा भवति / भ्रुवौ विक्षेपं भ्रूविक्षेप जल्पति / अक्षिणी निकाणम् अक्षिनिकाणं हसति / केशान् परिधायं केशपरिधायं नृत्यति। पक्षे भ्रवौ विक्षिप्य जल्पति / स्वाङ्ग्रेनेति किम् ? कफमुन्मूल्य जल्पति / अध्रुवेणेति किम् ? शिरः उत्क्षिप्य कथयति / Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 399) परिक्लेश्येन / 5 / 4 / 80 / परिपीड्यमानेन द्वितीयान्तेन स्वाङ्गेन योगे तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / उरांसि प्रतिपेषम् उरः प्रतिपेषं युध्यन्ते / शिरांसि च्छेदं शिरश्छेदं युध्यन्ते / पक्षे उरांसि प्रतिपिष्य शिरांसि छित्त्वा युध्यन्ते / विश-पत-पद-स्कन्दो वीप्साऽऽभीक्ष्ण्ये / 5 / 4 / 81 / क्रियाभिः पदार्थानां व्याप्तुमिच्छा. वीप्सा, प्रकृत्यथस्य पौनःपुन्येनासेवनम् आभीक्ष्ण्यम् , द्वितीयान्तेन योगे विशादिभिस्तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानेभ्यो धातुभ्यो वीप्सायामाभीक्ष्ण्ये च गम्यमाने धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / गेहं गेहमनुप्रवेशं गेहानुप्रवेशमास्ते / गेहमनुप्रवेशमनुप्रवेशं गेहानुप्रवेशमास्ते / गेहं गेहमनुप्रपातं गेहानुप्रपातमास्ते / गेहमनुप्रपातमनुप्रपातं गेहानुप्रपातमास्ते / एवं गेहं गेहमनुप्रपादं गेहानुप्रपादमित्यादि / गेहं गेहमवस्कन्दं गेहावस्कन्दमित्यादि / पक्षे गेहं गेहमनुप्रविश्यास्ते / गेहमनुप्रविश्यानुप्रविश्यास्ते / गेहानुप्रवेशमित्यत्र वीप्सायामाभीक्ष्ण्ये च न द्वित्वं, शब्दशक्तिस्वाभाव्यात् समासेनोक्तत्वाद् , न च स्वभावः पर्यनुयोगमहतीति / विकल्पेनोपपदसमासार्थ वचनम् / कालेन तृष्यस्वः क्रियान्तरे / 5 / 4 / 82 / ...क्रियामन्तरयति व्यवधत्त इति क्रियान्तरः, तस्मिन्नर्थे वर्तमानाभ्यां तृष्यसूभ्यां धातुभ्यां द्वितीयान्तेन कालवाचिना यो Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोः सम्बन्धे गम् वा भवति। यह तर्ष द्वयहतर्ष गावः पिबन्ति / द्वयहमत्यासं व्यहात्यासं गावः पिबन्ति / अद्य पीत्वा व्यहमतिक्रम्य पिबन्तीत्यर्थः / नाम्ना ग्रहादिशः / 5 / 4 / 83 / __ द्वितीयान्तेन नामशब्देन योगे तुल्यकर्तृकडो वर्तमानाद् धातोः ग्रहेरादिशश्च धातोः सम्बन्धे णम् वा भवति / नामानि ग्राहं नामग्राहमा यति / नामान्यादेशं नामादेशं ददाति / पक्षे नाम गृहीत्वाऽऽह्वयति, नामादिश्य दत्त / कृगोऽव्ययेनानिष्टोक्तौ क्त्वा-णमौ। 5 / 4 1 84 / ___ अव्ययेन योगे कृगधातोरनिष्टोक्तौ गम्यायां तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः सम्बन्धे णम् क्त्वा च वा भवतः / ब्राह्मण ! पुत्रस्ते जातः, किं तर्हि वृषल ! नीचः कृत्वा नीचैः कृत्य नीचैः कारं नीचैः वृषल ! कारं कथयसि / प्रियं नामोच्चैराख्येयम् / हे ब्राह्मण ! कन्या ते गर्भिणी जाता किं तर्हि शूद्र ! उच्चैः कृत्य उच्चः कृत्वा उच्चैः कारम् उच्चः नाम कारं कथयसि / अप्रियं हि नीचैराख्यातव्यं भवति / अनिष्टोक्ताविति किम् ? उच्चैः कृत्वाऽऽचष्टे हे ब्राह्मण ! तव पुत्रः जातः, नीचैः कृत्वाऽऽचष्टे कन्या ते गर्भिणी जातेत्यत्र न भवति / तिर्यचाऽपवर्ग / 5 / 4 / 85 / / क्रियासमाप्तिरपवर्गः, वा क्रियासमाप्तिपूर्वकस्त्यागः / तस्मिन् Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (401 ) गम्ये तिर्यच् इत्यव्ययेन योगे करोतेः तुल्यकर्तृकेऽर्थे क्त्वा णम् च वा भवतः / तिर्यक् कृत्वा, तिर्यकृत्य, तिर्यकारमास्ते / समाप्य विरम्य उत्सृज्य वाऽऽस्त इत्यर्थः / स्वागतः प्रक०पर्थे नानाविधाधार्थेन भुवश्च। 5 / 4 / 86 / तस्प्रत्ययान्तेन स्वाङ्गेन च्यर्थवृत्तिभिः नानाविनाभ्यां धार्थप्रत्ययान्तैश्च योगे भुवः कृगश्च तुल्यकर्तृकेऽर्थे वर्तमानाद् धातोः सम्बन्धे क्त्वा णम् च भवतः। नात्र यथासंख्यं वचनभेदात् / मुखतो भूत्वा, मुखतोभूय, मुखतोभावमास्ते / मुखतः कृत्वा, मुखतः कृत्य, मुखतः कारमास्ते / पार्श्वतो भूत्वा, पार्श्वतोभूय, पार्श्वतोभावं शेते / पार्श्वतः कृत्वा, पार्श्वतः कृत्य, पार्श्वतः कारं शेते / व्यर्थे अनाना नाना भूत्वा गत इति नानाभूत्वा, नानाभूय, नानाभावं गतः / अनाना नाना कृत्वा गतः इति नानाकृत्वा, नानाकृत्य, नानाकारं गतः / एवं विनाभूत्वा, विनाभूय, विनाभावं गतः; विनाकृत्वा, विनाकृत्य, विनाकारं गतः / धार्थः न द्विधा अद्विधा अद्विधा द्विधा भत्वा यातः इति द्विवाभूत्वा, द्विधाभूय, द्विधाभावं यातः / एवं द्विधाकृत्वा, द्विधाकृत्य, द्विधाकारं यातः / ऐकध्यं भूत्वा, ऐकध्यंभूय, ऐकध्यंभावं गतः / द्वेधाकृत्वा, द्वेधाकृत्य, द्वेधाकारं गतः / स्वाङ्गेति किम् ? सर्वतो भत्वाऽऽस्ते / तप्तिति किम् ? मुखे भूत्वा गतः / व्यर्थ इति किम् ? नाना कृत्वा भक्ष्याणि मुक्ते। 26 Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (402) तूष्णीमा / 5 / 4 / 87 / तूष्णींशब्देन योगे भुवोः धातोः सम्बन्धे क्त्वाणमौ प्रत्ययौ भवतः / तूष्णीभूत्वा, तूष्णीभूय, तूष्णींभावमास्ते / तूष्णींशब्दस्य मौने मौनवति च वर्तमानत्वेन मौनेन सह भूत्वा वा मौनवान् भूत्वाऽऽस्ते इत्यर्थः / ___ आनुलोम्येऽन्वचा / 5 / 4 / 88 / परिचित्ताराधनमानुलोम्यमनुकूलता.इत्यर्थः / अन्वचव्ययेन योगे भूधातोः तुल्यकतृकार्थस्य धातोः सम्बन्धे क्त्वा णम् च भवतः आनुलोम्ये गम्ये / अन्बग्भूत्वा, अन्वग्भय, अन्वम्भावमास्ते / अनुकुलो भूत्वा तिष्ठतीत्यर्थः / आनुलोम्य इति किम् ! अन्वग् भूत्वा शत्रुन् जयति-पश्चाद् भूत्वा जयतीत्यर्थः / शकषज्ञारभलभसहाईग्लाघटास्तिसमर्थार्थे च तुम् / 5 / 4 / 90 / शक्त्याद्यर्थकेषु धातुषु समर्थार्थकेषु च नामसु चकारादिच्छाथकेषु च धातुषूपपदेषु कर्मभूताद् धातोः तुम् प्रत्ययो भवति / शक्नोति भोक्तुम् / पारयति भोक्तुम् / धष्णोति भोक्तुम् / अध्यवस्यति भोक्तुम् / भोक्तुं वेत्ति वा जानाति / प्रक्रमते आरभते वा भोक्तुम् / लभते विन्दते वा भोक्तुम् / सहते क्षमते वा भोक्तुम् / अर्हति प्राप्नोति वा भोक्तुम् / ग्लायति म्लायति वा भोक्तुम् / घटते युज्यते वा भोक्तुम् / अस्ति भोक्तुम् / विद्यते Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (403 ) भोक्तुम् / समर्थः भोक्तुम् / अलं भोक्तुम् / प्रभवति भोक्तुम् / ईष्टे भोक्तुम् / इच्छार्थेषु इच्छति भोक्तुम् / वाञ्छति पठितुम् / अभिलषति जिनं पूजितुम् / आकाङ्क्षति प्रतिष्ठाप्यमानां श्रीविजयधर्मसूरेर्मूर्ति द्रष्टुं पूजितुं वा / इति समाप्तमुत्तरकृदन्तप्रकरणम् / तत्समाप्तौ च समाप्तं धर्मदीपिकाव्याकरणम् / BXXXXXXXX ExomxxanaxxcmoxxcmXWEAR* xaxxo..nxxxaxeg इति नन्द-ऋषि-ग्रह-भूमिमिते विक्रमीयेऽब्दे नयनमिते च श्रीविनयधर्मीयेऽब्दे विजयदशम्यां शास्त्रविशारदजैनाचार्य-श्रीमद् विजयधर्मसूरीश्वरचरणारविन्दे भृङ्गायमाणेन श्रीमन्न्यायविशारदन्यायतीर्थेत्युपाधियुक्तेन रचितन्याय-धर्मविषयानेकशास्त्रेण प्रवर्तकेन साम्प्रतं समुपजातोपाध्यायपदेन मुनिराजश्रीमङ्गलविजयेन रचिता धर्मदीपिका समाप्ता / ॐ शान्तिः / शान्तिः / शान्तिः / Larenxxaxxxa...nxxanxxxnxxantarax KXXXX OOO AIME Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थकर्तुः प्रशस्तिः। * [1] : चेतश्चमत्करणकारितया विपश्चितां ___ तत्त्वप्रबोधनविधौ समता-विकासने / विभ्राजते कलियुगेऽपि यदीय-शासनं / तस्मै नमो भगवते " त्रिशलाङ्गजन्मने " || . [2] . जीयाद् गणेशोऽस्य महेश्वरस्य "श्रीइन्द्रभूति" हतविघ्ननालः / पयोनिधिलब्धि-तरंगिणीनां दावानलः कष्टवनावनीनाम् // [3] नन्द्यात् सुधर्मा भगवान् " सुधर्मा " श्रीवीरपट्टादिमसूत्रधारः। यदीय एकादश-संख्यकाङ्ग दीपो जगद् दीपयतेऽधुनापि // Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 405) [4] नत्पट्टरानोऽजनि नाम " जम्बू" स्वामी, महासुन्दर-रूपधेयम् / आसाद्य यं निर्वृति-सुन्दरीह नाद्याप्यहो ! कंचन संवृणीते / [5] ततो बभूवत्सु महामहस्सु सूरिध्वनेकेषु तदीयपट्टे / क्रमाद् बभूवान् प्रभु-" हीरमूरिः" सूरीन्द्रमौलीमुकुटायमानः // [6] महीमुनः श्रीमदकबरादयोऽ नेके यदीयं पद-पद्मयामलम् / स्वनम्रमौलीमुकुटप्रभाम्बुना / . प्रक्षालयन्ति स्म मुहुर्मुहुर्मुदा // [7] तदीयपट्टेशपरम्परायां तपोधनाग्रेसरपूजितांघ्रिः / निःशेषदृष्टयाऽऽगमपारदृश्वा - क्रमाद् बभूवान् गुरु-" वृद्धिचन्द्रः " // Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (406) [8] आर्चच्च " भावनगरा" वनिनायको यं सद्भक्तिभावभरनिर्भरमानसेन / .. चारित्र-संयम-शमाः सुभटाः कषायान् नैव प्रवेष्टुमददुर्निकटे यदीये // तदीय-सम्पन्निधि-पादनीरजो- ,. पास्ति-प्रभावोदितगौरवश्रियः / स्वनाम-धन्या गुरुराजशेखरा जयन्ति विश्वे प्रभु-" धर्मसूरयः " // . [10] इंग्लीशवाङ्मयविगाहसमर्थबुद्धिः साहित्य-शोधक-पुरागततत्त्ववेत्ता / प्राप्तेतिहासविषयप्रखरप्रभुत्वो देदीप्यते क्षितितले " विजयेन्द्रसरिः" / [11] धर्मोपदेशाद्भुतशक्तिशाली सम्प्राप्त-" पंन्यास" पदप्रमुत्वः। . सैद्धान्तिकः शासनदीप्रदीप श्वकास्ति " भक्तेविजयो" महात्मा // Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (407) [12] प्रचण्डवक्तृत्वबल-प्रसारि यशःप्रभोद्दीपितदिङ्मुखाब्जः / विद्वन्मणिः प्रौढनिबन्धकर्ता विभाति " विद्याविजयो" मुनीन्द्रः // [13] कवित्वशक्तिप्रसरद्यशःश्री- . स्तर्कप्रबन्धाप्रतिघातिमेधः / न्याये गतस्तीर्थ-विशारदत्वे न्यायादिमोऽसौ विजयो बभस्ति // . [14] गंभीरशास्त्रानुभवाग्रगण्यः .. परोपकारप्रवणान्तरात्मा / शान्तेषु दान्तेषु मतल्लिका च * श्रीमान् " जयन्ताद्-विजयो" महर्षिः॥ [15] " श्रीरत्न"-" सिंहौ” श्रमणौ, " महेश्वर " स्तथा " मृगेन्द्र " प्रमुखा मुनीश्वराः / . अदृष्यवैदुष्यजुषां विशेषका द्युसत्प्रदेशं कतिचित् समाश्रयन् // Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (408) [16] नैयायिकाः केचन केऽपि शाब्दिका ज्योतिर्विदश्चागमिकाश्च केचन / कवित्वसाहित्य-धुरन्धराः परे सुग्रन्थकाराश्च महोपदेशकाः // ___ [17] तपस्विनः केऽपि निवृत्तिसङ्गिनः / कण्ठीरवाः केचन वादि-कुम्भिषु / ईदृग् यदीयः परिवार उत्तमो भमण्डले गर्नति विस्फुरत्प्रभः // ___ [18] . तेषां प्रज्ञाविजितदिविषन्नायकाचार्यधीनां सञ्चारित्रोज्ज्वलरुचिसमाकृष्टभूमीधवानाम् / स्फूर्नतर्का गभरपराभूतवादीश्वराणां . ___चश्चञ्चन्द्रद्युतिसितयशोव्याप्तविश्वावनीनाम् / / [19] जगदर्चितपादानां माहात्म्यश्रीमणीपयोधीनाम् / ' " शास्त्रविशारद-जैनाचार्यश्रीविजयधर्ममुरीणाम् // Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (409) [20] . पादद्वयेनैव महोदयेनाऽ. भ्युद्धृत्य माहक जडतात्मपङ्कात् / ईडक्कृतिन्यारचनस्य भी ___ सम्प्रापितो नाम किमत्र चित्रम् ! // ( एकादशमिः कुलकम् / ) [21] यतःरविसंतापित्वाद् रजनिरमणो लाञ्छनितया पयोधिः क्षारत्वात् सुरमणिरपि प्रस्तरतया / पशुत्वात् स्वर्धनुर्विबुधफ़लिनः काष्ठकतया न यत्साम्यं धत्ते सचपलतया वारिमुगपि // [22] " लींच"-ग्राम उदार " गृजरभुवामहन्निकेतोज्ज्वले : "म्हेसाणा " भिध-पत्तनस्य निकटे यस्य प्रतिष्ठास्पदम् / श्रेष्ठी "श्रीभगवान" भूज्जनयिता जनेन्द्रमार्गाध्वगः "श्रीअम्बा" शुचिशीलशीलनपरा सुश्राविकाऽम्बा पुनः / [23] यः " श्रीकाश्यां" गुरुपदयुगं सेवमानोऽष्टवर्षी शाब्द-न्याय-प्रभृति-विषयग्रन्थ विद्यां पठित्वा Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 410) न्याये " तीर्थ "-स्थितिमुपगतः कालिकाता- नगर्यो "वैशारद्य" प्रथनमपि सम्पादितो "ब"-विज्ञैः // [24] श्रीमद्गुरूणां कृपया प्रभूतया ___"प्रवर्तकत्वे " विनियोजितो यकः / स्वबन्धु-वात्सल्यमपि 'स्फुरत्तरं व्यधाद् " उपाध्याय" पदान्वितं च यम् // [25] सतामनुचरः सोऽहमेतद् बालक-चापलम् / यथाशक्ति शुभं कार्यमित्यभिप्रायतो व्यधाम् // (चतुर्भिः कलापकम् ) - [26] जानाम्यहं व्याकरणस्य निर्मितिः काठिन्यपूर्णा, तदपीह चेष्टितम् / व्युत्पत्तिसिद्धयै सरलाध्वयोजनाप्रादुष्चिकीर्षावशतो ममाभवत् // [27] दोषान् समीक्षा-सुलभान् विलोक्य संशोधयिष्यन्ति कृपार्दचित्ताः। Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. (411) परोपकाराऽऽशयनोदितस्य ___घाष्ट्र्य ममोपेक्ष्य मनीषिणोऽत्र // [28] इदं लघु व्याकरणं पठन्तु . व्युत्पित्सवोऽल्पश्रमतः सहर्षम् / शाब्दप्रबोधं प्रतिपद्य सम्यक् कल्याणलक्ष्मी च समुद्वहन्तु // इति प्रशस्तिः / Page #723 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् / परिभाषाप्रकरणम् / स्वं रूपं शब्दस्याशब्दसंज्ञा // 1 // आद्यन्तवदेकस्मिन् // 2 // एकदेशविकृतमनन्यवत् // 3 // भूतपूर्वकस्तद्वदुपचारः // 4 // भाविनि भूतवदुपचारः // 1 // यथासंख्यमनुदेशः समानाम् // 6 // विवक्षातः कारकाणि // 7 // अपेक्षातोऽधिकारः // 8 // अर्थवशा द्विभक्तिपरिणामः // 9 // अर्थवद्ग्रहणे नानर्थकस्य // 10 // लक्षणप्रतिपदोक्तयोः प्रतिपदोक्तस्यैव ग्रहणम् // 11 // नामग्रहणे लिङ्गविशेष्टस्यापि // 12 // प्रकृतिग्रहणे यलुबन्तस्यापि // 13 // संनिपातलक्षणो विधिरनिमित्तं तद्विघातस्य // 14 // असिद्धं बहिरङ्गमन्तरङ्गे // 15 // गौणमुख्ययोर्मुख्य कार्यसंप्रत्ययः // 16 // कृत्रिमाकृत्रिमयोः कृत्रिमे // 17 // क्वचिदुभयगतिः // 18 // सिद्धे सत्यारम्भो नियमार्थः // 19 // धातोः स्वरूपग्रहणे तत्प्रत्यये कार्यविज्ञानम् // 20 // उक्तार्थानामप्रयोगः // 21 // निमितामावे नैमित्तिकस्याप्यभावः // 22 // सन्नियोगशिष्टानामेकापाये'ऽन्यतरस्याप्यपायः // 23 // निरनुबन्धग्रहणे न सानुबन्धकस्य // 24 // एकानुबन्धग्रहणे न द्वयनुबन्धकस्य // 25 // पूर्वेऽप Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (414) वादा अनन्तरान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान् // 26 // मध्येऽभवादाः पूर्वान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान् // 27 // बलवन्नित्यमनित्यात् // 28 // उपपदविभक्तेः कारकविभक्तिः // 29 // लुबन्तरङ्गेभ्यः // 30 // सर्वेभ्यो लोपः // 31 // नित्यादन्तरङ्गम् / / 32 // उत्सर्गादपवादः // 33 / / अपवादात् क्वचिदुत्सगोंऽपि // 34 // नानिष्टार्था शास्त्रप्रवृत्तिः // 35 // प्रकृतिग्रहणे स्वार्थिकप्रत्ययान्तानामपि ग्रहणम् // 26 // प्रत्ययाप्रत्ययोः प्रत्ययस्यैव / / 37 // वर्णग्रहणे जातिग्रहणम् // 38 // वर्णै कदशोऽपि वर्णग्रहणेन गृह्यते // 39 // तन्मध्यपतितस्तद्ग्रहणेन गृह्यते // 40 // आगमा यद्गुणीभूतास्तद्ग्रहणेन गृह्यन्ते // 41 // स्वाङ्गमव्यवधायि // 42 // उपसर्गो न व्यवधायी // 43 // ऋकारापदिष्टं कार्य लकारस्यापि / / 4 4 // सकारापदिष्टं कार्य तदादेशस्य शकारस्यापि // 45 // हस्वदीर्घापदिष्टं कार्य न प्लुतस्य // 46 // श्रुतानुमितयोः श्रौतो विधिबलीयान् // 47 / / अन्तरङ्गानपि विधीन् यवादेशो बाधते // 48 // पूर्व पूर्वोत्तरपदयोः कार्य कार्य पश्चात् सन्धिकार्यम् !! 49 // सापेक्षमसमर्थम् // 50 // णौ यत्कृतं कार्य तत्सर्व स्थानिवद् भवति // 51 // आत्मनेपदमनित्यम् / / 52 // अनित्यो णिच्चुरादीनाम् // 53|| णिलोपोऽप्यनित्यः // 54 // णिच्सन्नियोगे एष चुरादीनामदन्तता // 55 // धातवोऽनेकार्थाः // 56 // गत्यर्था ज्ञानार्थाः // 57 // उणादयो अव्युत्पन्नानि नामानि // 18 // येन धातुना युक्ताः प्रादयस्तं प्रत्येवोपसर्गसंज्ञा Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (415) // 19 // सम्भवे व्यभिचारे च विशेषणमर्थवत् // 10 // सर्व वाक्यं सावधारणम् // 11 // द्वौ नौ प्रकृतमर्थ गमयतः // 12 // व्याख्यातो विशेषार्थप्रतिपत्तिः // 63 // शित् स्वस्य // 64 // षष्ठ्या निर्दिष्टस्य तदन्तस्यैव ग्रहणम् // 65 // तपरः तत्कालस्य // 66 // मप्तम्या निर्दिष्टस्य तदव्यवहितपूर्वस्य / / 67 // पञ्चम्याः परस्य // 68 // सकृदुच्चारितशब्दः सकृदेवार्थ गमयति // 69 // निर्दिश्यमानस्यैवादेशा भवन्ति // 70 // कृद्ग्रहणे गतिकारकपूर्वस्यापि ग्रहणम् // 71 // सूत्रे लिङ्गवचनमतन्त्रम् // 72 // प्रकृतिवदनुकरणम् // 73 // तिवा शवाऽनुबन्धेन निर्दिष्टं यद् गणेन च / एकस्वरनिमित्तं च पञ्चैतानि न यङ्लुपि // 74 // समासतद्धितानां वृत्तिर्विकल्पेन वृत्तिविषये च नित्यैवापवादवृत्तिः // 75 // द्विद्धं सुबद्धं भवति // 76 // क्विवन्ता धातुत्वं नोन्झन्ति शब्दत्वं चं प्रतिपद्यन्ते / / 77 // नामग्रहणे प्रायेणोपसर्गस्य न ग्रहणम् // 78 // सामान्यातिदेशे विशेषस्य नातिदेशः // 79 // प्रत्ययलोपेऽपि प्रत्ययलक्षणं कार्य विज्ञायते // 8 // न्यायाः स्थविरयष्टिप्रायाः // 81 / / Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 416) [2] अथ संग्रहश्लोकाः। O-Commons / संहितानिरूपणम् / संहितैकपदे नित्या नित्या धातूपमर्गयोः / नित्या समासे वाक्ये तु सा विवक्षाम पेक्षते // 1 // / माननिरूपणम् / उर्ध्वं मान किलोन्मानं परिमाणं तु गर्वतः / आयामस्तु प्रमाणं स्यात् संख्या बाह्य तु सर्वतः // 2 // / स्वांगनिरूपणम् / अविकारोऽद्रवं मूर्त प्राणिस्थं स्वांगमुच्यते / च्युतं च प्राणिनस्तत्तन्निभं च प्रतिमादिषु // 3 // / जातिनिरूपणम्। आकृतिग्रहणाजातिर्लिङ्गानां न च सर्वभाक् / सकृदाख्यातनिह्या गोत्रं च चरणैः सह / / 4 // / गुणनिरूपणम् / सत्त्वे निविशतेऽपैति पृथग्जातिषु दृश्यते / . आधेयश्चाक्रियाजश्च सोऽसत्त्वप्रकृतिर्गुणः // 5 // Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (417) / इदमाद्यर्थनिरूपणम् / इदमस्तु सन्निकृष्टं समीपतरवर्ति चैतदो रूपम् / अदसस्तु विप्रकृष्टं तदिति परोक्ष विजानीयात् // 6 // / अनुस्वारनिरूपणम् / नकारजावनुस्वारपञ्चमौ धुटि धातुषु / सकारजः शकारश्च ट्टवर्गस्तवर्गजः // 7 // . / धात्वर्थविशेषनिरूपणम् / उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते / विहाराहारसंहारप्रहारप्रतिहारवत् // 8 // धास्वर्थो बाधते कश्चित् कश्चित् तमनुवर्तते / तमेव विशिनष्टयन्योऽनर्थकोऽन्यः प्रयुज्यते // 9 // / अकर्मकत्वनिरूपणम् / फलव्यापारयोरेकनिष्ठनायामकर्मकः / धातुस्तयोर्धर्मिभेदे सकर्मक उदाहृतः // 10 // धातोरर्थान्तरे वृत्तेर्धात्वर्थेनो संग्रहात् / प्रसिद्धरविवक्षातः कर्मणोऽकमिका क्रिया // 11 // / द्विकर्मकगणनानिरूपणम् / नीवहिकृषो ण्यन्ता दुहिब्रूपच्छिभिक्षिचिरुधिशास्वर्थाः / पचियाचिदण्डिकृग्रहमथिजिप्रमुखा द्विकर्माणः // 12 // Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (118) / गौणमुख्यकर्मनिरूपणम् / न्यादीनां कर्मणो मुख्यं प्रत्ययो वक्ति कर्मजः / नयते गौर्द्विनैमं भारो ग्राममयोह्यते // 13 // गौणं कर्भ दुहादीनां प्रत्ययो वक्ति कर्मनः। गौः पयो दुह्यतेऽनेन शिष्योऽर्थ गुरुणोच्यते // 14 // ।धातूपसर्गजन्यभेदप्रकाशनिरूपणम् / बीजकालेषु सम्बद्धा यथा लाक्षारसादयः / वर्णादिपरिणामेन फलानामुपकुर्वते // 15 // बुद्धिस्थादपि सम्बन्धात् तथा धातूपमर्गयोः / अभ्यन्तरीकृतो भेदः पदकाले प्रकाश्यते / / 16 // निपाताश्चोपसर्गाश्च धातवश्चेत्यमी त्रयः / अनेकार्थाः स्मृताः सर्वे पाठस्तेषां निदर्शनम् // 17 / / अनुबन्धफलनिरूपणम्। उच्चारणेऽस्त्यवर्णाद्य आस्क्तयोरिनिषेधने / इकारादात्मनेपदमीकाराचोभयं भवेत् // 1 // उदितः स्वरान्नोन्तश्चोरक्तादाविटो विकल्पनम् / रुपान्त्ये डे परे ह्रस्व ऋकारादड्विकल्पकः // 2 // Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 419) लकारादङ् समायास्येः सिचि वृद्धिनिषेधकः / ऐस्क्तयोरिनिषेधः स्यादोस्क्तयोस्तस्य नो भवेत् // 3 // औकार इड्विकल्पार्थेऽनुस्गरोऽनिविशेषणे / लुकारश्च विसर्गश्वानुबन्धे भवतो नहि // 4 // कोऽदादिन गुणी प्रोक्तः खे पूर्वस्य मुमागमः / गेनोभयपदी प्रोक्तो घश्च चनोः कगौ कृतौ // 5 // आत्मने गुणारोधे ङश्चो दिवादिगणो भवेत् / मो वृद्धौ वर्तमाने क्तः टः स्वादिष्ठद्युकारकः // 6 // त्रिमगर्थो डकारः स्याण णचुरादिश्च वृद्धिकृत् / तस्तुदादौ नकारश्चेच्चापुंसीति विशेषणे // 7 // रुधादौ नागमे पो हि मो दामः सम्प्रदानके / यस्तनादेरकारः स्यात् पुंवद्भावार्थसूचकः // 8 // स्त्रीलिङ्गार्थे लकारो हि उत औविति वो भवेत् / शः क्रयादिः क्यः शिति प्रोक्तः षः षितोऽङविशेषणे // 9 // पदत्वार्थे सकारो हि नोक्ता अत्र न सन्ति च / धातूनां प्रत्ययानां चानुबन्धः कथितो मया // 10 // // इत्यनुबन्धफलम् // Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 420) . [4] वृत्गणफलनिरूपणम्। धुतादेरद्यतन्यां चाङात्मनेपदमिष्यते / वृदादिपञ्चकेभ्यो वा स्यसनोरात्मनेपदम् // 1 // ज्वलादेौँ भवेद् वृद्धिर्यनादेः संप्रसारणम् / .. घटादीनां भवेद् इस्वो जौ परेऽनीघटत् सदा // 2 // अद्यतन्यां पुषादित्वादङ् परस्मैपदे भवेत् / स्वादिस्वाच्च क्तयोस्तस्य नकारः प्रकटो भवेत् // 3 // प्वादीनां गदितो ह्रस्वो ल्वादेस्क्तक्तयोश्च नो भवेत् / युनादयो विकल्पेन ज्ञेयाश्चुरादिके गणे // 4 // मुचादे गमः शे च कुटादित्वात् सिचि परे / गुणवृद्धेरभावश्च कथितो हेमसूरिणा // 5 // अदन्तानां गुणो वृद्धिर्यचुरादे श्च नो भवेत् / संक्षेपेण फलं चैतदीषितं वा नरेण हि // 6 // Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातुपाठ-सूची। पृष्ट 3 भू सत्तायाम् सूङ प्राप्ती पृ. 13 पां पाने नां गन्धोपादाने . भ्वादिगणः। पृ. 21 इं, , शुं, लुं गतौ धं स्थैर्य च सुं प्रसवैश्वर्ययोः पृ. 22 | स्मं चिन्तायाम् पृ. 23 गू, ध्रु सेचने और शब्दोपतापयोः पृ. 24 द्वं वरणे सं गतौ प्रापणे च पृ. 25 तृ प्लवन-तरणयोः | ट्र्षे पाने मां शब्दाग्निसंयोगयोः ठां गतिनिवृत्ती पृ. 19 म्नां अभ्यासे दाम् दाने जि, जिं अभिभवे पृ. 20 सिं क्षये इंगतो Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (422) पृ. 26 दैव शोधने ध्य चिन्तायाम् ग्लैं हर्षक्षये पृ. 27 म् गात्रविनामे चै न्यङ्करणे नै स्वप्ने | तृप्तौ कैं, मैं, रै शब्दे ष्ट्ये, स्त्य संघातेच सैं, मैं, मैं क्षये मैं, | पाके 4, ओवै शोषणे पुणे वेष्टने फक्क नीचैर्गतो पृ. 28 ओखु, राखू, लाख, दाल, ध्राख शोषणालमर्थयोः . पृ. 29 शाख, श्लाख व्याप्ती उख, नख, णख. वख, मख, रख, लख, मखु, खु, लखु, रिखु, इखु गतो पृ. 31 वल्ग, रगु, लगु, तगु, श्रगु, श्लगु, अगु,, वगु, मगु, स्वगु, इगु, उगु, ग्गुि, लिगु गतौ त्वगु कम्पने च युगु, जुगु, वुगु वर्जने गग्य हसने दघु पालने शिघु आघ्राणे मधु मण्डने पृ. 32 लघु शोषणे शुच शोके तक हसने तकु कृच्छूजीवने शुक गतो बुक्क भा(भ)षणे Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (423) धृन, धृनु, ध्वन, ध्वजु, धन, धनु वन, वन, पस्न गतौ पृ. 35 अन क्षेपणे च च शब्दे तारे . बुच गतौ कृञ्च च कौटिल्याल्पीभावयोः धुश्च अपनयने अर्च पूजायाम् पृ. 33 अन्चू गतौ च . बन्चू, चञ्चू, तञ्चू, स्वच, मञ्चू, मुन्चू, चुचू, च्, म्लुचू, ग्लुन्चू, पस्च गतौ - पृ. 34 गुचू, ग्टुचू स्तेये म्लेच्छ अव्यक्तायां वाचि लछ, लाछु लक्षणे पाछु वान्छायाम् आछु आयामे हीच्छ लज्जायाम् मूर्छा मोहसमुच्छाययोः सूर्छा मूर्छा विस्मृतौ मुछ प्रमादे कुजू, खुनू स्तेये अर्ज, सर्न अर्जन कर्न व्यथने खर्न मानने च खज मन्थे एज़ कम्पने होस्फूर्जा वज्रनिर्घोषे क्षीज, कून, गुज, गुजु अव्यक्ते शब्दे लंज, लनु, तर्न भर्त्सने लाज लाजु भर्नने च पृ. 37 जन, जजु युद्धे तुन हिंसायाम् तुजु बलने च | गर्न, गजु, गृन, गृजु, Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 424) मज शब्दे चिट प्रैण्ये मुन, मुजु, मृजु, विट शब्दे गज मदने च / हेट विवाधायाम् स्य हानौ अट, पट, इट, किट, पनं सङ्गे कट, कटु, कैटै गतौ पृ. 38 कुटु वैकल्ये कटे वर्षावरणयोः मुट प्रमर्दने शट, रुनाविशरणगत्यवसादनेषु चुट, चुटु अल्पीभावे वट वेष्टने वटु विभाजने किट, खिट उत्त्रासे रुटु, लुटु स्तेये शिट, पिट अनादरे स्फट, स्फुटू विशरणे जट, झट संघाते रट, रठ परिभाषणे पिट शब्दे च पठ व्यक्तायां वाचि पृ. 39 वठ स्थौल्ये भट भृतौ मठ मद-निवासयोश्च तट उच्छाये कठ कृच्छ्जीवने खट काळे णट नृत्ती हठ बलात्कारे हट दीप्तौ उठ, रुठ, लुठ उपघातें षट अवयवे पिठ हिंसा-संक्लेशयोः लट विलोटने . . . शठ कैतवे च . Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुठु शोषणे अठ, रुठु गतौ (425 ) शुठ गतिप्रतीघाते अड्ड अभियोगे कुठु, लुठु आलस्ये च चुड्ड हावकरणे अण, रण, वण, व्रण, बण, भण, भ्रण, मण, पुडु प्रमर्दने धण, ध्वण, ध्रण, कण, मुडु खण्डने च क्वण, चण शब्दे मडु भूषायाम् . ओगृ अपनयने गडु वदनैकदेशे - पृ. 41 शौड़ गर्वे शोण वर्णगत्योः यौड़ सम्बन्धे श्रोण, श्लोण संघाते मेड़, ब्रेड, म्लेड, लोड उन्मादे पैण गति-प्रेरण-श्लेषणेषु रोड, रौड़, तौड़ अनादरे चितै संज्ञाने क्रीड विहारे .. अत सातत्यगमने तुड़ तोडने च्युत आसेचने हुड, हड्ड, हू, हौड गतौ . चुतृ, श्चुत, अच्युत क्षरणे खोड प्रतीघाते विड आक्रोशे अतु बन्धने अड उद्यमे कित निवासे लड विलासे ऋत घृणागतिस्पर्धेषु कडु मदे कुथु, पुथु, लुथु, मथु, मन्थ, मान्थ, कड्ड कार्कश्ये हिंसा-संक्लेशयोः जुतृ भासने Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (429) कदु, क़द, क्लदु रोदनाकानयोः स्कन्दं गतिशोषणयोः षिधू गत्याम् पृ. 42 खाह मक्षणे बद स्थैर्ये खद हिंसायां च गद व्यक्तायां वाचि रद विलेखने णद क्ष्विदा अव्यक्ते शब्दे अर्द गति-याचनयोः नर्द, गर्द, गर्द शब्दे तर्द हिंसायाम् विधौ शास्त्रमाङ्गल्ययोः शुन्ध शुद्धौ | स्तन, धन, ध्वन, चन, स्वन, वन शब्दे वन, धन भक्तो कनै दीप्ति-कान्ति-गतिषु गुपौ रक्षणे कर्द कुत्सिते शब्दे खद दशने अदु बन्धने इदु परमैश्वर्य तप, धूप संतापे . रप, लप, जस व्यक्ते वचने जप मानसे च विदु अवयवे णिदु कुत्सायाम् चप सान्त्वने षप समवाये टुनदु समृद्धौ सृप्लं गतौ चदु दीप्त्याहादयोः क्लिदु परिदेवने प्रदु चेष्टायाम् चुप मन्दायाम् | तुप, तुम्प, त्रुप, त्रुम्प, तुफ, Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (427) तुम्फ, त्रुफ, त्रुम्फ हिंसायाम् / षम, ष्टम वैक्लव्ये ___ . पृ. 47 अम शब्द-मक्त्योः वर्फ, रफ, स्फु गतौ अम, द्रम, हम्म, मीम, अर्ब, क, ख, गर्व, चर्च, तब, गम्लं गतौ नर्ब, पर्व, बर्ब, शर्ब, पर्व, सर्व, हय, हर्य क्लान्तौ च रिनु, रवु गतौ कुबु आच्छादने मव्य बन्धन लुबु, तुबु अर्दने सूर्य, ईक्ष्य, ईर्ण्य ईध्यार्थाः चुबु वक्त्रसंयोगे शुच्य, चुच्यै अभिषवे सभू, सम्भू, त्रिभू , पिम्भू , भर्भ त्सर छद्मगतौ हिंसायाम् क्मर हुर्छमें शुम्भ भाषणे च अभ्र, वभ्र, मभ्र गतो यभं, जम मैथुने चर भक्षणे च पृ. 48 . धोर गतिचातुर्ये चमू, छमू, जमू, खोर प्रतिघाते झम, जिमू अदने दल, त्रिफला विशरणे क्रम पादविक्षेपे मील, श्मील, स्मील, मील निमेषणे यमू उपरमे पील प्रतिष्टम्भे णील वर्णे स्यम् शब्दे शील समाधी गमं प्रहत्वे कील वन्धे Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (428) कूल आवरणे शूल रुजायाम् तूल निष्कर्षे पूल संघाते मूल प्रतिष्ठायाम् फल निष्पत्तौ जीव प्राणधारणे. पीव, मीव, तीव, नीव स्थौल्ये पिवु, मिवु, निवु सेचने हिवु, दिवु, जिवु प्रीणने फुल्ल विकसने चुल्ल हावकरणे चिल्ल शैथिल्ये च पेल, फेल, शेल, षेल, सेल, वेल, सल, तिल, तिल्ल, पल्ल, वेल्ल गतौ केल, क्वेल, खेल, वेल, चेल, स्खल चलने खल संचये च श्वल, श्वल्ल आशुगतौ गल अदने पूर्व, पर्व, मर्व पूरणे गर्व अमिनिवेशे ष्ठिवू , क्षिवू निरसने घु व्याप्तौ च अव रक्षण-गति-कान्ति-प्रीतितृप्ति-अवंगमन-प्रवेश-श्रवणस्वाम्यर्थयाचनक्रियेच्छादीप्त्यवाप्त्यालिङ्गनहिंसादहनभाववृद्धिषु कश शब्दे मिश, मश रोषे च शश प्लुतिगतौ णिश समाधौ . दृशं प्रेक्षणे दंशं दशने पृ. 53 घुष शब्दे खूष प्रसवे | उष रुनायाम् Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (429) ईष उन्छे | शंसु स्तुतौ च कृषं विलेखन मिहं सेचने कष हिंसायाम् दहं भस्मीकरणे पृ. 54 . रह त्यागे शिष, जष, झप, वष, मष, रहु गतौ मुष, रुष, रिष, यूष, जूष, शष, दृह, दृह, वृह वृद्धौ चष हिंसायाम् बृह, बृहु शब्दे च वृष संघात च . उहृ, तृह, दुह अर्दने भष भत्सने अर्ह, मह पूजायाम् निषू, विषू , मिषू, निषू, उक्ष सेचने पृष, वृषू सेचने रक्ष पालने मृधू सहने च मक्ष, मुक्ष संघाते उष, श्रिपू, श्लिषू, पुषू, प्लुषू दाहे अक्षौ व्याप्तौ च घृष संघर्षे पृ. 16 हृषु अलीके तक्षौ; त्वक्षौ तनूकरणे पुष पृष्टौ णिक्ष चुम्बने भूष, तसु अलङ्कारे वक्ष रोषे लस श्लेषणक्रीडनयोः त्वक्ष त्वचने घस्लं अदने हसे हमने सूक्ष अनादरे पिस, पेस, वेस गतौ काक्षु, वाक्षु, माक्षु काङ्क्षायाम सं गतो शसू हिंसायाम् | इति परस्मैपदम् / Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 430) अथात्मनेपदम् लोकङ् दर्शने पृ. 57 श्लोकङ संघाते गांङ् गतौ द्रेकृङ्, धेकृङ् शब्दोत्साहे .. पृ. 58 रेकृङ्, शकृङ् शङ्कायाम् मिङ् ईषद्धसने ककि लौल्ये डीङ् विहायसां गतौ कुकि, वृकि आदाने पृ. 59 चकि तृप्ति-प्रतीघातयोः उङ, कुंङ , गुंङ, घुङ, डुङ शब्दे ककुङ, श्वकुङ्, बकुङ्, श्रकुङ्, च्युंङ्, ज्युङ्, जुङ, प्रंङ,प्लंड गतौ श्लकुङ्, ढोकृङ्, त्रौकृङ, प्वाक, रुङ् रेषणे च वस्कि, मस्कि, तिकि, टिकि, टीकृङ्, सेकृङ्, कृङ्, रघुङ्, पूङ् पवने लघुङ् गतौ मूङ् बन्धने अघुङ, वधुङ् गत्याक्षेपे धृङ अवध्वंसने मघुङ कैतवे च मेंङ् प्रतिदाने श्लाघृङ् कत्थने देङ्, त्रैङ् पालने लोचू दर्शने पचि सेचने वकुङ कौटिल्ये कचि बन्धने अकुङ् लक्षणे वर्चि दीप्तौ शीकृङ् सेचने | मचि, मृचुङ् करकने Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (431) श्रथुङ् शैथिल्ये प्रथुङ् कौटिल्ये कस्थि श्लाघायाम् श्विदुङ् श्वैत्ये वदुङ् स्तुत्यभिवादनयोः भदुङ सुखकल्याणयोः स्पदुङ् किञ्चिच्चलने . क्लिदुङ् परिदेवने पचुङ व्यकतीकरणे . एजङ, भेजङ , भ्रानि दीप्तौ इजुङ् गतौ ऋजि गतिस्थानाननोजनेषु ऋजुङ्, भृनैङ् भर्जने तिजि क्षमानिशानयोः एठि, हेठि विबाधायाम् मठुङ्, कठुङ् शोके मुठुडू पलायने अठुङ्, पडुङ् गतौ हुड्डुङ्, पिडुङ् संघाने तडुङ् ताडने शडुङ् रुजायां च हिडुङ् गतौ च घिणुङ्, घुणुङ्, घृणुङ् ग्रहणे पणि व्यवहार-स्तुत्योः मुदि हर्षे ददि दाने हदि पुरीषोत्सर्गे ध्वदि, स्वर्दि, स्वादि आस्वादने उर्दि मान-क्रीडनयोश्च षूदि क्षरणे पदि कुत्सिते शब्दे स्कुदुङ् आप्रवणे एधि वृद्धौ स्पर्धि संघर्षे / गाधङ् प्रतिष्ठालिप्साग्रन्थेषु यतैङ् प्रयत्ने गुतृङ्, जुतृङ् भासने नाथङ् उपतापैश्वर्याशीःषु च Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (432) बाधृङ् रोटने चयि, रयि गतौ दधि धारणे नाधङ् उपतापैश्वर्याशीर्याश्चासु तयि, णयि रक्षणे च पनि स्तुतौ दयि दान-गतिमानि पूजायाम् हिंसा-दहनेषु च तेपृङ् कम्पने च क्ष्मायैङ् विधूनने त्रपौषि लज्जायाम् स्फायैङ् ओप्यायैङ् वृद्धौ गुपि गोपन-कुत्सनयोः / तायुङ संतानपालनयोः अबुङ, रबुङ् शब्दे वलि, वल्लि संवरणे कबृङ् वर्णे क्लीबृङ् आधाष्ट्ये शलि चलने च क्षीबृङ् मदे कलि शब्द-संख्यानयोः वल्भि भोजने काशक दीप्तौ गरिभ धाष्ट्ये भाषि व्यक्तायां वाचि रमिं रामस्ये ईषि गतिहिंसादर्शनेषु कासङ् शब्दकुत्सायाम् डुलभिष् प्राप्ती भासि टुभ्रासि टुम्लासृङ् दीप्तौ भामि क्रोधे रासङ्णासृङ् शब्दे क्षमौषि सहने णसि कौटिल्ये कमू कान्तौ भ्यसि भये अयि, वयि, पयि, मयि, नयि, | आङः शसुङ् इच्छायाम् Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (433) 4 ईहि चेष्टायाम् अहि तर्के गाहोङ् विलोडने ग्लाहौङ ग्रहणे दक्षि शैध्यू च शिक्षि विद्योपादाने भिक्षि याञ्चायाम् दीक्षि मौण्ड्येज्योपनयननियमत्रतादेशेषु इक्षि दर्शने इत्यात्मनेपदिनः। धृग् धारणे डुयाग यान्चायाम् डुपची पाके पृ. 70 राजृग् टुभ्रानि दीप्तौ भनी सेवायाम् रञ्जीं रागे रेट्ग परिभाषण-याचनयोः वेणग् गति-ज्ञान-चिन्तानिशामन-वादित्रग्रहणेषु चतेग याचने प्रोग् पर्याप्तौ .. अयोभयपदिनः। श्रिम सेवायाम् गींग प्रापणे इंग् हरणे मिथग् मेधाहिंसयोः मेथून संगमे च चदेग् याचने उबुन्दग् निशामने णिग, णेग् कुत्सासंनिकर्षयोः मिग्, मेहग मेधाहिंसयोः | मेघग संगमे च भुंग भरणे जुडंग करणे 28 Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (434) पृ. 74 व्यग् संवरणे वेग तन्तुसंताने पृ. 75 हूँग् स्पर्धाशब्दयोः बुधग् बोधने खनूग् अवदारणे शपी आक्रोशे चायग् पूजानिशामनयोः व्ययी गतौ धावूगू गतिशुद्धयोः दाशृग् दाने लषी कान्तौ पृ. 72 ची भक्षणे छपी हिंसायाम् विषीं दीप्तौ अषी, असी गत्यादानयोश्च दासृग् दाने माग माने गुहाग् संवरणे इत्युभयपदिनः। टुवपीं बीजसंताने वहीं प्रापणे ट्रोश्वि गतिवृद्धयोः पृ. 77 वद व्यक्तायां वाचि वसं निवासे वृत् यजादयः। / द्युति दीप्तौ पृ. 78 रुचि अभिप्रीत्यां च घुटि परिवर्तने रुटि, लुटि, लुठि प्रतीघाते श्वितावरणे जिमिदाङ् स्नेहने निविदाङ्, पृ. 73 यजी देवपूजासंगतिकरणदानेषु निविदाङ् मोचने च शुभि दीप्तौ Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (435) क्षुमि सन्चलने गमि, तुमि हिंसायाम् सम्भूङ् विश्वासे भ्राङ, सुङ् अवस्त्रंसने ध्वसूङ् गतौ च वृतूङ् वर्तने . पृ. 79 स्यन्दौङ् स्रवणे वृधूङ् वृद्धौ शृधूङ् शब्दकुत्सायाम् कृपौङ् सामर्थे त द्युतादयः। पृ. 80 ज्वल दीप्तौ कुच सम्पर्चनकौटिल्य प्रतिष्टम्भविलेखनेषु पत्ल. गतौ मये विलोडने पलं विशरणगत्यवसादनेषु शदलं शातने पृ. 81 बुध अवगमने टुवम् उद्गिरणे भ्रमू चलने क्षर संचलने चल कम्पने जल घात्ये टल, ट्वल वैक्लव्ये ष्ठल स्थाने हल विलेखने णल गन्धे बल प्राणनधान्यावरोधयोः पुल महत्त्वे कुल बन्धुसंस्स्यानयोः पल, फल, शल गतौ पृ. 82 हुल हिंसासंवरणयोश्च क्रुशं आह्वानरोदनयोः | कस गतौ रुहं जन्मनि | रमि क्रीडायाम् Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (436) पहि मर्षणे अक कुटिलायां गतौ वृत् बलादयः। कखे हसने घटिए चेष्टायाम् अग कुटिलायां गतौ क्षजुङ गतिदानयोः रंगे शङ्कायाम् व्यथिषु भयचलनयोः लगे सङ्गे प्रथिष् प्रख्याने हगे, हलगे, पगे, सगे, म्रदिषु मर्दने टगे, स्थगे संवरणे स्खदिप खदने वट, भट परिभाषणे कदुङ्, ऋदुङ , क्लदुङ् वैवव्ये गट न(न)तो ऋपि कृपायाम् गड सेचने जित्वरिप सम्भ्रमे हेड वेष्टने लड निहोन्मन्थने पृ. 83 फण, कण, रण गतौ प्रसिष् विस्तारे चण हिंसादानयोश्च दक्षि हिंसागत्योः शण, श्रण दाने / श्रां पाके स्नथ, क्नथ, क्रय, क्लथ हिंसायाम स्म आध्याने छद ऊर्जने मदै हर्षग्लपनयोः न नये टन, स्तन, ध्वन शब्द ष्टक, स्तक प्रतीघाते स्वन अवतंसने चक तृप्तौ च चन हिंसायाम् . दू भये Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (437) ख्यांक प्रथ(कथ)ने प्रांक पूरणे मांक माने इंक् स्मरणे ज्वर रोगे पल कम्पने हवल हमल चलने ज्वल दीप्तौ च वृत् घटादयः / इति भ्वादिगणः / इंण्क् गतौ अथ अदादिगणः। अदं, हांक भक्षणे पृ. 88 वींक प्रजनकान्त्यसनखादने च धुक् अभिगमने पुंक् प्रसवैश्वर्ययोः तुक वृत्तिहिंसापूरणेषु युक् मिश्रणे णुक् स्तुतौ मांक दीप्तौ यांक प्रापणे चांक गतिगन्धनयोः ष्णांक शौचे. क्ष्णुक् तेनने स्नुक् प्रस्नवने टुच, रु, कुंक् शब्दे रुदृक् अश्रुविमोचने श्रांक पाके द्राक् कुत्सितगतौ पांक रक्षणे कांक् आदाने दोवू लवने निष्वपंक् शये / अन, श्वसन प्राणने Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (438) पृ. 91 जक्षक भक्षहसनयोः दरिद्राक् दुर्गतौ . पृ. 92 जागृक् निद्राक्षये पृ. 93 चकासृक् दीप्तो शासूक् अनुशिष्टौ वचं भाषणे पृ. 95 मृनौक् शुद्धौ विदक् ज्ञाने पृ. 96 हनक हिंसागत्योः . पृ. 97 वशक् कान्तौ . | शीक् स्वप्ने पृ. 100 tङ्क अपनयने घूङौक् प्राणिगभविमोचने पृचैङ्, पूजुङ्, पिजुकि सम्पर्चने वृनैकि वर्जने णिजुकि शुद्धी पृ. 101 शिजुकि अव्यक्ते शब्दे ईडिक् स्तुतौ ईरिक् गतिकम्पनयोः ईशिक् ऐश्वर्य वसिक् आच्छादने आङः शासूकि इच्छायाम् पृ. 102 आसिक् उपवेशने कसुकि गतिशातनयोः णिमुकि चुम्बने चक्षिक व्यक्तायां वाचि असक् भुवि अथात्मनेपदिनः।. इंक् अध्ययने ऊर्युगक् आच्छादने Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ. 104 (439) ओहांडूक् गतौ मांडूक् मानशब्दयोः .टुंगक्.स्तुती ब्रूगक व्यक्तायां वाचि द्विषींक् अप्रीती पृ. 106 दुहींक् क्षरणे दिहीक् उपलेपे लिहीक आस्वादने डुदांग्क् दाने डुधांग्क् धारणे च . पृ. 112 टुडुभंगा पोषणे च णिजॅकी शौचे च विकी पृथग्भावे विषलंकी व्याप्ती अथ हादयः। हुंक् दानादनयोः पृ. 108 ओहांक त्यागे निमीक् भये . पृ. 109 ह्रींक् लज्जायाम् अथ दिवादिगणः। पृ. 114 दिवूच क्रीडाजयेच्छापणिद्युतिस्तुतिगतिषु जूष् झूषच जरसि पृ. 115 पृक् पालनपुरणयोः शोंच तक्षणे ऋक् गतौ | दों छौंच छेदने Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (440) प्युसच् दाहे. पह, पहच् शक्ती पुषच पुष्टौ / पाँच अन्तकमणि ब्रीडचू लज्जायाम् नृतैच नर्तने कुथच् पूतिभावे पुथच हिंसायाम् गुधच् परिवेष्टने रापंच वृद्धौ व्यधंच ताडने क्षिपंच प्रेरणे पुष्पच् विकसने तिम, तीम, ष्टिम, टीमच् आर्द्रमावे पिवूच उतौ उचच् समवाये लुटच विलोटने विदांच गात्रप्रक्षरणे क्लिदौच, आर्द्रभावे जिमिदाच स्नेहने निविदाच मोचने च क्षुधंच बुभुक्षायाम् शुधंच शौचे क्रुधंच कोपे षिधूंच् संराद्धौ ऋधूच् वृद्धौ पृ. 120 गृधूच अभिकालायाम् रघौच हिंसासराध्ध्योः तृपौच प्रीती हुपौच् हषमोहनयोः / कुपच क्रोधे .. श्रिवच गतिशोषणयोः ष्ठिवू लिवूच निरसने इषच गतो ष्णसूच् निरसने क्नसूच वृति-दीप्त्योः नसैच भये Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ. 121. .. गुपच् व्याकुलत्वे युप, रुप, लुपच विमोहने डिपच क्षेपे ष्ट्रपच् समुच्छ्राये झुमच् गायें शुभच संचलने णभ, तुमच् हिंसायाम् नशौच अदर्शने कुशच् श्लेषणे भृशु, भ्रंशूच् अधःपतने पृ. 122 वृशच् वरणे . कृशच तनुत्वे शुषंच् शोषणे दुषंच वैकृत्ये श्लिषंच आलिङ्गने प्लुषूच् दाहे मितृषच् पिपासायाम् तुषं, हृषच् तुष्टौ रुपचं रोषे (441) विसचू प्रेरणे पृ. 123 कुसच् श्लेषे असूच क्षेपणे यसूच प्रयत्ने जसूच मोक्षणे तसू, दसूच उपक्षये वसूच स्तम्भे वुसच उत्सर्गे मुसच् खण्डने मसैच परिणामे शमू, दमूच् उपशमे तमूच कासायाम् श्रमूच् खेदतपसोः भ्रंमूच अनवस्थाने पकृत्य . क्षमौच सहने मदैच हर्षे क्लमूच ग्लानी मुहीच वैचित्ये द्रुहोच जिघांसायाम् Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्णुहोच उद्दिरणे ष्णिहौच प्रीती घूऔच प्राणिप्रसवे दूच् परितापे दीच् क्षये धींच् अनादर मींच् हिंसायाम् लींच् श्लेषणे डीच् गतौ बींच् वरणे पीड पाने ईच् गतौ प्रींच् प्रीतौ युजिच् समाधौ सृजिच् विसर्गे वृतूचि वरणे पदिच् गौ पृ. 127 विर्दिच सत्तायाम् (442) | सिदिच् दैन्ये युधिंचू संप्रहारे अनो रुधिंच कामे बुधि, मनिच ज्ञाने अनिच् प्राणने | जनैचि प्रादुर्भावे . पृ. 128 दीपैचि दीप्तौ तपिंच ऐश्वर्ये वा पूरैचि आप्यायने घुरैङ्, जूचि जरायाम् धूरैङ्, गूरैचि गतौ सूरैचि स्वरायाम् घुरादयो हिंसायाम् च चूरैचि दाहे क्लिशिच् उपतापे लिशिंच अल्पत्वे काशिच दीप्तौ ..पृ. 129 . शकींच् मर्षणे शुगैच् तिभावे Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (443) पृ. 134 रखींच रागे शींच आक्रोशे मृषीच तितिक्षायाम् - पृ. 130 णहीच बन्धने इति दिवादिगणः। हिंट् गतिवृध्ध्योः श्रृंट श्रवणे टुइंट् उपतापे पृट् प्रीती स्मृट पालने च . पृ. 135 शक्लंट् शक्ती तिक, तिग, पघट हिंसायाम राध, साधंट् संसिद्धौ ऋधूट वृद्धौ अथ स्वादयः। पुंगट अभिषवे पृ. 131 पिंगट बन्धने पृ. 132 शिंगट् निशाने .. डुमिंग्ट प्रक्षेपणे चिंगट चयने धू गट् कम्पने . पृ. 133 . स्तुंग्ट् आच्छादने कंगट हिंसायाम् वृगट् वरणे आप्लंट् व्याप्ती तृपट प्रीणने पृ. 136 दम्भृट् दम्भे कृवुट हिंसाकरणयोः / धिवुट् गतौ भिधृषाट् प्रागल्भ्ये | ष्टिघिट आस्कन्दने Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (444) पृ. 137 अशौटि व्याप्ती इति स्वादयः / खिदंत परिघाते पिशत् अवयवे रिं, पित् गतौ धित् धारणे क्षित् निवासगत्यो त् प्रेरणे मंत् प्राणत्यागे अथ तुदादिगणः। तुदीत् व्यथने . पृ. 138 क्षिपीत् प्रेरणे भ्रस्नीतू पाके कृत विक्षेपे गृत् निगरणे दिशींतू अतिसनने कृषीत् विलेखने मुच्लंती मोक्षणे विचीत् क्षरणे विद्लंती लामे लुप्लंती छेदने लिपीत् उपदेहे लिखत् अक्षरविन्यासे जर्च, झर्चत् परिभाषणे त्वचत् संवरणे ऋचत् स्तुती ओवश्वौत् छेदने ऋछत् इन्द्रियप्रलयमूर्तिमावयो। विछत् गतौ पृ. 143 उछैत् विवासे / प्रछत् ज्ञीप्सायाम् / कृतैत् छेदने Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (445) शुभ, शुम्भत् शोभायें दृमैत् ग्रन्थे लुभत् विमोहने कुरत् शब्दे क्षुरत् विखनने खुरत् छेदने च उन्नत् आर्जवे सृजत विसर्गे रुजोत् भङ्गे मुनोत् कौटिल्ये टुमस्नोंत् शुद्धौ जर्ज, झझत् परिभाषणे उद्झत् उत्सर्गे जुडत् गतौ कडत् मदे पृ. 144 . पृणत् प्रीणने तुणत् कौटिल्ये मृणत् हिंसायाम, गुणत् गति-कौटिल्ययोश्च. घुण, घूर्णत् भ्रमणे गुदंत प्रेरणे पलंत अवसादने तृफ, तृस्फत् तृप्तौ / दृफ, दृम्फत् उत्कलेशे गुफ, गुम्फत् ग्रन्थने उम, उम्मत् पूरणे घुरत् भीमार्थशब्दयोः पुरत् अग्रगमने मुरत् संवेष्टने सुरत् ऐश्वर्यदीप्त्योः स्फर, स्फलत् स्फुरणे इलत् गतिस्वप्नक्षेपणेषु चलतू विलसने चिल्त वसने विलत् वरणे मिलत् श्लेषणे स्पृशंत् संस्परों रुशं, रिशंत् हिंसायाम् विशंत् प्रवेशने मृशंत आमर्शने Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (146) कृडत् घसने . लिश, ऋषैत् गतौ कुडत् बाल्ये च इषत् इच्छायाम् गुडत् रक्षायाम् मिषत् स्पर्धयाम् पृ. 148 वृहौत उद्यमे जुम् बन्धे तृहौ, तूहौ, स्तृहौ,स्तूंहौत हिंसायाम तुडत् तोडने कुटत कौटिश्ये लुड, थुड, स्थुडत् संवरणे वुडत् उत्सर्गे च गुंत् पुरीपोत्सर्गे पृ. 147 ब्रुड, भुडत् संघाते ध्रुत् गतिस्थैर्ययोः दुड, हुड, त्रुडत् निमज्जने गुत् स्तवन चुणत् छेदने धूत् विधूनने डिपत क्षेपे कुचत् संकोचने स्फुरत् स्फुरणे व्यचत् व्यानीकरणे स्फुलत् संचये च गुजत् शब्दे अथात्मनेपदिनः। घुटत् प्रतीपाते कुंङ्, कूड़त् शब्दे चुद, छुट, त्रुटत् छेदने गुरैति उद्यमे तुटत् कलहकर्मणि पुत् व्यायामे मुटत आक्षेपप्रमर्दनयोः हृत् भादर रफटत् विकसने धंत् स्थाने पुट, खुउत् संश्लेषणे ओविनैति भयचलनयोः . . Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (447) बोलजेडू, ओलस्नैति वीडे | वृचप वरणे ___ * पृ. 149 तचू , तम्जौप संकोचने बब्जित् सङ्गे भन्जोंप आमर्दने मुपैति प्रीतिसेवनयोः भुजप् पालनाभ्यवहारयोः इति तुदादिगणः। अजौप व्यक्ति-म्रक्षण-गतिषु पृ. 154 अथ रुधादिगणः / ओविजयू भयचलनयोः पृ. 160 कृतैप वेष्टने रुधूपी आवरणे उन्दैप् क्लेदन शिष्लंप् विशेषणे रिचूपी विरेचने पिष्लंप् सञ्चूर्णने विचूपी पृथग्भावे हिसु, तृहप हिंसायाम् युपी योगे प. 155 पृ. 152 खिदिप दैन्ये शुद्धपी संपेषे विदिप विचारणे भिंढपी विदारणे निइन्धैपि दीप्तौ छिदंपी द्वैधीकरणे इति रुधादिगणः समाप्तः / ऊछपी दीप्तिदेवनयोः उतृढपी हिंसाऽनादरयोः . पृ. 196 अथ नादिगणः। पचैप संपर्के - तनूयी विस्तारे .. Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (448) स्कुंग्श् आप्रवणे पृ. 167 षणूयी दाने क्षणम्, क्षिणूयी हिंसायाम् क्नूगश् शब्दे गश् हिंसायाम् ग्रहीश् उपादाने ऋणूयी गतौ तृणुयी अदने घृणूयी दीप्तौ वयि याचने मनूयि बोधने इति तनादिगणः / पूग्श पवने लगश् छेदने धूग्श् कम्पने स्तुग्श् आच्छादने कृगश् हिंसायाम् वृगश् वरणे न्यांश हानी अथ क्रयादिगणः। पृ. 159 डुक्रीगर द्रव्यविनिमये पिंगश् बन्धने प्रींगश् तृप्तिकान्स्योः श्रींगश् पाके मींगश हिंसायाम् गुंगशु बन्धने रीश् गतिरेषणयोः / लींश् श्लेषणे ग्लीश वरणे ल्वीश् गतौ कृ, मू, शश् हिंसायाम् / पृश् पालनपूरणयोः बृश् म(व)रणे Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (449) | णभ, तुभश् हिंसायाम् क्लिशौश् विबाधने मर मर्जने च दश् विदारणे जर वयोहानौ नश् नये गृश् शब्दे ऋश् गतौ ज्ञांश अवबोधने सिष्श हिंसायाम् नींश् वरणे श्रीश् भरणे हेटर भूतप्रादुर्भावे मृडर सुखने अशर भोजने इषश् आभीक्ष्ण्ये विषश् विप्रयोगे मुषश् स्तेये पुषश * पुष्टौ कुषश् निष्कर्षे पृ. 168 वृश् संमतौ / इति क्रयादिगणः। | . अथ चुरादिगणः / श्रन्धर मोचनप्रतिहर्षयोः मन्थर विलोडने ग्यश् संदर्भ कुन्थर संक्लेशे मृदा क्षोदे - गुधर रोषे . बन्ध’ बन्धने 29 चुरण स्तेये पृ. 170 पृण पूरणे पृ. 171 घृण् स्त्रवणे श्वल्क, वरकण भाषणे Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (190) नक्क, धक्कण नाशने वटुण विभाजन चक्क, चुकण् व्यथने शुठण आलस्ये रकुण् बन्धने गुठुण् वेष्टने अर्कण् स्तवने लडण् उपसेवायाम् पृ. 172 स्फुड्डण परिहासे पचुण विस्तारे ओलडुण् उत्क्षेपे म्लेच्छण म्लेच्छने पीडण् गहने उर्जण् बल-प्राणनयोः तडण् आघाते तुजु, पिजुण हिंसाबलदाननिकेतनेषु, कडुण् खण्डने च पूजण पूनायाम् चुडुण् छेदने तिनण् निशाने . .. . मडण् भूषायाम् वज, वजण मार्गणसंस्कार-गत्योः भडण् कल्याणे रुजण् हिंसायाम् ईडण् स्तुती नटण् अवस्यन्दने चडुण कोपे तुट, चुट, चुटु, छुटण् छेदने चूण, तूणण संकोचने कुट्टण् कुत्सने च श्रणण् दाने पुट, मुटण संचूर्णने चितुण स्मृत्याम् लुण्टण स्तेये पुस्त, वुस्तण आदरानादरयोः स्फुट(ट)ण परिहासे मुस्तण् संघाते पृ. 173 कृतण संशब्दने Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (451) पृ. 174 श्रयण - प्रतिहर्षे पृथप प्रक्षेपणे प्रथण प्रख्याने छदणू संवरणे चुदण् संचोदने मिदुण् स्नेहने छर्दण् वमने बुधुण् हिंसायाम् वर्षण छेदन-पूरणयोः गर्धण अभिकाङ्क्षायाम् बन्ध, बधण् संयमने छपुण गतौ क्षपुण् क्षान्तौ पण समुच्छ्राये डिपण् क्षेपे उपु, डिपुण् संघाते शूर्पण माने डबु, डिबुण् क्षेपे मुम्बु, तूबुण अर्दने पुषण निकेतने यमण परिवेषणे व्ययण क्षये यत्रुण संकोचने तिलण स्नेहने जलण अपवारणे क्षलण् शौचे पुलण समुच्छ्राये बिलण - भेदे तलण प्रतिष्ठायाम् तुलण् उन्माने दुलण उत्क्षेपे बुलण निमज्जने मूलण रोहणे कल, किल, पिलण क्षेपे पलण रक्षणे इलण् प्रेरणे चलण् भृतौ सान्त्वण सामप्रयोगे धूशण कान्तीकरणे लूषण हिंसायाम् | रुषण रोपे Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (452) जसुण रक्षणे जभुण नाशने भक्षण अदने . अमण रोगे पक्षण परिग्रहे चरण असंशये पृ. 175 पूरण आप्यायने लक्षीण् दर्शनाङ्कनयोः दलण विदारणे ज्ञाण मारणादिनियोजनेषु / पश, पषण बन्धने भूण अवकल्कने पुषण् धारणे लिगुण चित्रीकरणे घुषण शिब्दने भूष, तसुण अलङ्कारे चर्चण अध्ययने अञ्चण् विशेषणे - पृ. 177 मुचण प्रमोचने जसण ताडने अनण् प्रतियत्ने त्रसण वारणे मनण् विश्राणने वसण स्नेहच्छेदावहरणेषु चट, स्फुटण भेदे ध्रसण उत्क्षेपे पृ. 176 असण् ग्रहणे घटणू संघाते लसण शिल्पयोगे यतण निकारोपस्कारयोः अर्हण पूजायाम् शब्दण् उपसर्गाद् भाषाविष्कारयोः मोक्षण असने प्वदण् आस्वादने लोक, तर्क, रघु, लघु, लोचू, मुदण् संसर्गे विच्छ, अजु, तुजु, पिजु, लजु, Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (453) सुजु, भजु, पट, पुट, लुट, घट, भ्रूणिण आशायाम् घटु, वृत, पुथ, नद, वृध, गुप, | चितिण संवेदने धूप, कुप, चीव, दशु, कुशु, वसु, | वस्ति, गन्धिण अर्दने पिसु, कुसु, दसु, वर्ह, वृहु, वल्ह, | शमिण आलोचने अह, बहु, महुण् भासार्थाः पृ. 179 अथात्मनेपदिनः। गूरिण उद्यमे युणि जुगुप्सायाम् ललिण ईप्सायाम् दंशिण दशने पृ. 178 अथादन्ताः। गणि विज्ञाने यक्षिण पूजायाम् वञ्चिण प्रलम्भने अङ्कण् लक्षणे मदिण् तृप्तियोगे सुख, दुःखण् तक्रियायाम् विदिण चेतनाख्याननिवासेषु रचण् प्रतियत्ने मनिण स्तम्भ सूचण' पैशून्ये बलि, भलिण आभण्डने भाजण पृथक्कर्मणि दिविण् परिकूजने . सभाजण प्रीति-सेवनयोः लक्षिण आलोचने कूटण दाहे कूटिण अप्रमादे पट, वटण् ग्रन्थे शठिण श्लाघायाम् खेटण् भक्षणे कूणिण संकोचने खोटण क्षेपे तृणिण पूरणे पृ. 180 Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (494 ) दण्डण् दण्डनिपातने गणण संख्याने पतण गतौ वा वातण गतिसुख–सेवनयोः कथण वाक्यप्रबन्धे छेदण द्वधीकरणे गदण् गर्ने अन्धण् दृष्ट्युपघाते स्तनण् गर्ने ध्वनण् शब्दे स्तेनण् चौर्ये उनण् परिहाणे रूपण रूपक्रियायाम् भामण् क्रोधे गोमण उपलेपने सामण सान्त्वने स्तोमण श्लाघायाम् व्ययण वित्तममुत्सर्गे सुत्रण विमोचने मूत्रण प्रस्रवणे पार, तीरण कर्मसमाप्तौ चित्रण चित्रक्रिया-कदाचिदृष्टयोः वरण ईप्सायाम् शारण दौर्बल्ये कुमारण् क्रीडायाम् कलण् संख्यान-गत्योः शीलण उपधारणे / वेल, कालण् उपदेशे पल्यूलण् लवन-पवनयोः गवेषण मार्गणे , पृ. 181 मृषण क्षान्तौ रसण आस्वादन-स्नेहनयोः वासण उपसेवायाम् निवासण आच्छादने चहण करकने महण पूजायाम् रहण त्यागे स्पृहण ईप्सायाम् / रूक्षण पारुष्ये / मृगणि अन्वेषणे Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थणि उपयाचने पदणि * गतो संग्रामणि युद्धे शर, वीरणि विक्रान्ती सत्रणि संदानक्रियायाम् स्थूलणि परिबृंहणे गर्वणि माने गृहणि ग्रहणे कुहणि विस्मापने युजण् संपर्चने लीण् द्रवीकरणे .. पृ. 182 प्रीगणु तर्पणे धूग्ण कम्पने वृग्ण आवरणे जण् वयोहानौ चीक, शीकण आमर्षणे मार्गण अन्वेषणे प्रचण् सम्पर्चने रिचण् वियोजने च. बचण भाषणे ( 455) अर्चिण पूजायाम् वृनैण् वर्जने मृनौण शौचालङ्कारयोः कठुण शोके क्रथ, अर्दिण् हिंसायाम् पृ. 183 वदिण भाषणे छदण् अपवारणे आङः. सदण् गतो मानण् पूजायाम् तपिण् दाहे आप्लण् लम्भने ईरण क्षेपे मृषिण तितिक्षायाम् शिषण असर्वोपयोगे. धृषण प्रप्तहने हिसुण हिंसायाम् गर्हण विनिन्दने षहण मर्षणे इति चुरादिगणः। Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ णिगन्तप्रक्रिया / पृ. 184 जु गौ | नाथ याञ्चायाम् .. दधि धारणे मुदि हर्षे कुर्दि, गुर्दि (खुर्दि), गुदि क्रीडायाम् . पृ. 206 वृ वरणे , पृ. 209 युंक् मिश्रणे रि गतौ श्रृंट् श्रवणे पृ. 185 ष्ठां गतो . पृ. 189 क्नूयि शब्दे पृ. 190 इंक स्मरणे कू विक्षेपे इण्क् गतौ इति णिगन्तप्रक्रिया। देव् शोधने दांव् वने पृ. 211. गृह ग्रहणे ग्रह उपादाने पृ. 212 प्रच्छ जीप्सायाम् हय गतौ हर्य गति-कान्त्योः पृ. 213 तूर्वी, थूर्वी, दूर्वी, धूर्वी हिंसायाम् इति यङ्लुबन्तप्रक्रिया। अथ यङ्लुबन्तप्रक्रिया। - पृ. 204 स्पर्ध संघर्षे पृ. 205 गाधू प्रतिष्ठालिप्पाग्रन्थेषु Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (457) अथ कण्ड्वादिगणः। | चरण , वरण गतौ पृ. 223 चुरण चौर्ये कण्डूग् गात्रविघर्षणे तुरण त्वरायाम् महीङ् पूजायाम् मुरण धारणे पोषणे च वल्गु पूजा-माधुर्ययोः गद्गद् वाक्स्खलने असु, असृग् उपतापे च एला, केला, खेला विलासे लेट् , लोट् धौत्यें दीप्तौ लिट् अल्पकुत्सनयोः इरम्, इरज, इरग् ईर्ष्याः लाट् जीवने उषम् प्रभातीमावे हणीङ् लज्जा-रोषयोः वेद धौत्ये स्वप्ने च रेखा श्लाघासादनयोः मेधा आशुग्रहणे पृ. 224 द्रवस् परिताप-परिचरणयोः मगध् परिवेष्टने तिरस् अन्तधौं नीच दास्ये अगद् * नीरोगत्वे तन्तस्, पम्पस् दुःखे उरस् बलार्थे सुख, दुःख तत्क्रियायाम तरण गतौ सपर पूजायाम् पयस् प्रसृतौ अरर आराकर्मणि सम्भूयम् प्रभूतमावे मिषज् चिकित्सायाम् / अम्बर, सम्भर सम्भरणे मिष्णज् उपसेवायाम् . इति कण्ड्वादिगणः। समालोऽयं धातुपाठः। कुषुभ् क्षेपे . - - इषुध् शरधारणे Page #769 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अहम् // धर्मदीपिकाया उत्तरार्धस्य सूत्रानुक्रमणिका / अ अ. पा. सू. पृ. अकखाद्यषान्ते पाठे वा / 2 / 3 / 80 / 6 अघिनोश्च राजेः / 4 / 2 / 50 / 70 अग्निचित्या / 5 / 1 / 37 / 272 अघक्यबलच्यजेवीं / 4 / 4 / 2 / 35 अघोषे शिटः / 4 / 1 / 45 / 18 अकाद् निरसने णिङ् / 3 / 4 / 38 / 219 अडे हिहनो हो घः पूर्वात् / 4 / 1 / 34 / 134 अच् . / 5 / 1 / 49 / 278 अचि / 3 / 4 / 15 / 278 अचित्ते टक् .. / 5 / 1 / 63 / 283 अनातेः शीले / 5 / 1 / 154 / 294 अट्यतिसूत्रिमूत्रिसूच्यशूर्णोः / 3 / 4 / 10 / 198 अड् धातोरादिद्यस्तन्यां चामाङा / 4 / 4 / 29 / 7 अणिगि प्राणिकर्तृकानाप्याण्णिगः।३ / 3 / 107 / 242 .. / 4 / 3 / 82 / 179 अतः प्रत्ययाल्लुक् / 4 / 2 / 85 / 5 अतः / Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (460) - अ. पा. सू. पृ. अतः शित्युत् / 4 / 2 / 89 / 68 अदश्वाट् / 4 / 4 / 90 / 84 * अदुरुपसर्गान्तरो गहिनुमीनानेः / 2 / 3 / 77 / 5 अदोऽनन्नात् / 5 / 1 / 150 / 293 अद्यतनी * / 5 / 2 / 4 / 11, 253 अद्यतन्यां वा स्वात्मने / 4 / 4 / 22 / 97 अद्यर्थाचाधारे / 5 / 1 / 12 / 227 / 5 / 4 / 32 / 266 / 5 / '3 / 124 / 384 अनतोऽन्तोऽदात्मने / 4 / 2 / 114 / 13 अनद्यतने श्वस्तनी . / 5 / 3 / / 5 / 9 अनद्यतने ह्यस्तनी / 5 / 2 / 7 / 6 अनातो नश्चान्त ऋदाद्यशौ- . . संयोगस्य / 4 / 1 / 19 / 32 अनादेशादेरेकव्यञ्जनमध्येऽतः / 4 / 1 / 24 / 28 अनुनासिके च च्छ्वः शुट / 4 / 1 / 108 / 194 अनुपसर्गाः क्षीवोल्लाघ-कृश-परिकृश फुल्लोत्फुल्लसंफुल्लाः / 4 / 2 / 80 / 310 अनोः कर्मण्यसति / 3 / 3 / 81 / 237 अधीष्टो अनट् Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनोजनेः (461) ___अ. पा. सु पृ. / 5 / 1 / 168 / 296 अन्तो नो लुक् अन्यथैवंकथमित्थमः कृगोऽनर्थकात् / 5 / 4 / 50 / 390 अन्वाङ्परेः / 3 / 3 / 34 / 229 अपस्किरः / / 3 / 3 / 30 / 228 अभिव्याप्तौ भावेऽननिन् / 5 / 3 / 90 / 376 अमान्ययात् क्यन् च / 3 / 4 / 23 / 214 अमोऽकम्यमिचमः / 4 / 2 / 26 / 188 . अयदि स्मृत्यर्थे भविष्यन्ती / 5 / 2 / 9 / 254 अयि रः . / / 1 / / 6 / 103 अतिरीब्लीह्रोक्नूयिक्ष्माय्यातां / 4 / 2 / 21 / 175 / 5 / 4 / 37 / 278 अोऽच् . / 5 / 1 / 91 / 284. अपहसासंस्रोः / / 1 / 63 / 280 अवात् तृस्तृभ्याम् / 5 / 3 / 133 / 386 अविति वा / 4 / 1 / 75 / 75 अवित्परोक्षासेट्यवोरेः / 4 / 1 / 23 / 117 अविवक्षिते / 5 / 2 / 14 / 255 अहें तृच् Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 432) अ. पा. सू. . .पृ. अव्याप्यस्य मुचेर्मोग् वा / 4 / 1 / 19 / 196 अशवि ते वा / 3 / 4 / / 44 अशित्यस्सन्णकच्णकानटि / 4 / 3 / 77 / 92 अश्रद्धाऽमर्षेऽन्यत्रापि / 5 / 4 / 15 / 262 असमानलोपे सन्बल्लघुनि डे . / 4 / 1 / 63 / 171 अमरूपोऽपवादे वोत्सर्गः प्राक् क्तेः / 5 / / / 16 / 277 अस् च लौल्ये / 4 / 3 / 115 / 220 अस्तेः सि हस्त्वेति / 4 / 3 / 73 / 98 अस्यादेराः परोक्षायाम् / 4 / 1 / 68 / 24 असंयोगादोः / 4 / 2 / 86 / 69 आ आङः शीले / 5 / 1 / 96 / 285 आङो ज्योतिरुदमने / 3 / 3 / 52 / 233 आङो यमहनः स्वेऽङ्गे च / 3 / 3 / 86 / 238 आङो युद्धे / 5 / 3 / 43 / 373 आ च हो / 4 / 2 / 101 / 108 आतामाते आथामाथे आदिः / 4 / 2 / 121 / 12 आ तुमोऽस्यादिः कृत् / 5 / 1 / 1 / 269 Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 463) अ. पा. सू. पृ. आतो डोऽहावामः / 5 / 1 / 71 / 282 आतो णव औः / 4 / 2 / 120 / 14 आत् सन्ध्यक्षरस्य / 4 / 2 / 1 / 26 आदितः / 4 / 4 / 71 / 313 आधाराच्चोपमानादाचारे / 3 / 4 / 24 / 216 आधारात् . / 5 / 1 / 137 / 291 आधारात् . / 5 / 4 / 68 / 395 आमः कृगः / 3 / 3 / 75 / 236 . आयुधादिभ्यो धृगोऽदण्डादेः / 5 / 1 / 94 / 285 आरम्भे / 5 / 1 / 10 / 276 आशिषि तुह्योस्तातङ् / 4 / 2 / 119 / 5 अशिषि नाथः . / 3 / 3 / 36 / 229 आशिषि हनः / 5 / 1 / 80 / 283 आशिषीणः / 4 / 3 / 107 / 87 शिष्यकन् / 5 / 1 / 70 / 281 आशिष्याशी:-पञ्चम्यौ / 5 / 4 / 38 / आशीः क्यात् क्यास्ताम् क्यासुस् / 3 / 3 / 13 / / आसुयुवपिरपिलपित्रपिडिपिदभिचम्या__ नमः ... / / 1 / 20 / 269 Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (464) अ. पा. सु. . . पृ. आस्यटि-बन्-यनः क्यप् / 5 / 3 / 97 / 378 आहावो निपानम् / 5 / 3 / 44 / 373 इकिस्तिव स्वरूपार्थे / 5 / 3 / 138 / 387 . इको वा / 4 / 3 / 16 / 86 इङितः कर्तरि / 3 / 3 / 22 / 226 इङितो व्यञ्जनाद्यन्तात् / 5 / 2 / 44 / 301 इङोऽपादाने तु टिद् वा / 5 / 3 / 19 / 368 इच्छार्थे सप्तमी-पञ्चम्यौ / 5 / 4 / 27 / 264 इट ईति / 4 / 3 / 71 / 18 इट् सिजाशिषोरात्मने / 4 / 4 / 36 / 133 इडेत् पुसि चातो लुक् / 4 / 3 / 94 / 14 इणः / 2 / 1 / 51 / 87 इणिकोर्गा / 4 / 4 / 23 / 87 इन्ध्यसंयोगात् परोक्षा किद्वत् / 4 / 3 / 21 / 32 इरम्मदः / 5 / 1 / 127 / 29. इदरिद्रः / 4 / 2 / 98 / 91 इश्व स्थादः / 4 / 3 / 41 / 60 इषोऽनिच्छायाम् / 5 / 3 / 112 / 381 इसासः शासोऽडूज्यञ्जने / 4 / 4 / 118 / 94 Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईगितः (415) ____ अ. पा. मू. पृ. / 3 / 3 / 95 / 1 / 4 / 1 / 67 / 180 / 4 / 3 / 97 / 201 / 4 / 4 / 87 / 101 ई च गणः ईय॑जनेऽयपि ईशीडः सेवेस्वध्वमोः W उत और्विति व्यन्जनेऽद्वेः / 4 / 3 / 19 / 88 उति शवद्भ्यः कतौ भावारम्भे / 4 / 3 / 26 / 306 उत्स्वराद् युजेरयज्ञतस्पात्रे / 3 / 3 / 26 / 227 उदः पचिपतिपदिमदे: / 5 / 2 / 29 / 299 उदकोऽतोये / 5 / 3 / 135 / 387 उदितः स्वरान्नोऽन्तः / 4 / 4 / 98 / 28 उदोऽनूहे / 3 / 3 / 62 / 234 उपपीड-रुध-कर्षस्तत्सप्तम्याः। 5 / 4 / 75 / 397 उपसर्गस्यायो / 2 / 3 / 100 / 64 उपसर्गात् सुगसुवसोस्तुस्तुभोऽट्यप्य / 2 / 3 / 39 / 131 उपसर्गादस्योहो वा / / 3 / 3 / 25 / 227 उपसर्गादातः / 5 / 3 / 110 / 380 30 द्वित्वे Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 466) ___ अ. पा. सू. पू. उपसर्गादातो डोऽश्यः / 5 / 1 / 16 / 279 उपसर्गाद दः किः / 5 / 3 / 87 / 376 उपात् / 3 / / 3 / 18 / 234 उगत् किरो लवने / 5 / 4 / 72 / 396 उपात् स्थः / 3 / 3 / 83 / 238 उपान्त्यस्यासमानलोपिशास्व. , दितो ङ . / 4 / 2 / 35 / 170 उपान्त्ये / 4 / 3 / 34 / 193 उवर्णात् / 4 / 4 / 98 / 311 उवर्गादावश्यके . / 5 / 1 / 19 / 269 उन्नोः / 4 / 3 / 2 / 56 उद् दुषो णौ ऊर्ध्वात् पूःशुषः ऊर्धादिभ्यः कर्तुः / 4 / 2 / 40 / 186 / 5 / 4 / 70 / 395 / 5 / 1 / 136 / 291 ऋतः ऋतः स्वरे वा ऋतोऽत् / 4 / 4 / 79 / 22 / 4 / 3 / 43 / 95 / 4 / 1 / 38 / 22 Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (467) अ. पा. सू. पृ. ऋतो रीः। / 4 / 3 / 109 / 201 ऋद् ऋवर्णस्य / 4 / 2 / 37 / 173 ऋदुपान्त्यादकृपिचूदृचः / 5 / 1 / 41 / 273 ऋध ईत् / 4 / 1 / 17 / 194 ऋमतां रीः / 4 / 1 / 15 / 200 ऋरललं कृपोऽकृपीटादिषु / 2 / 3. / 99 / 79 ऋत्वादेरेषां तो नोऽप्रः / 4 / 2 / 68 / 307 ऋवर्णदृशोऽङि / 4 / 3 / 7 / 52 ऋवर्णव्यञ्जनान्ताद् ध्यण् / 5 / 1 / 17 / 269 ऋवर्ण,यूगुंगः कितः / 4 / 4 / 57 / 191 ऋवृध्येऽद इट् / 4 / 4 / 80 / 24 ऋस्मिपूङञ्जशौकगधृप्रच्छः / 4 / 4 / 48 / 193 ऋःशुदप्रः . / 4 / / 4 / 20 / 164 ऋ-ही-घ्रा-ध्रा-त्रोन्दनुद-विन्तेर्वा / 4 / 2 / 76 / 309 6668 ऋतां विडतीर्. / 4 / 4 / 116 / 25 ऋदिच्छुिस्तम्भूचुम्लुचूग्रुचूग्यूग्लु-चूजो वा / 3 / 4 / 65 / 33 Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ल अ. पा. सु. . पृ. लदियतादिपुण्यादेः परस्मै / 3 / 4 / 64 / 46 एकद्विवषु एकपातौ कर्मक्रिययैकाकर्म- . क्रिये / 4 / 4 / 86 / 249 एकस्वरादनुस्वारेतः / 4 / 4 / 56 / 14 एताः शितः / 3 / 3 / 10 / 7 एत्यस्तैर्वृद्धिः / 4 / 4 / 30 / 86 एषामीय॑ञ्जनेऽदः / 4 / 2 / 97 / 108 एष्यत्यवधौ देशस्यार्वाग्भागे / 5 / 4 / 6 / 259 . ओ. ओजोऽप्सरसः ओतः श्ये ओष्ठ्यादुर् / 3 / 4 / 28 / 217 / 4 / 2 / 103 / 115 / 4 / 4 / 117 / 109 CHR कण्ड्वादेस्तृतीयः कथमि सप्तमी च वा / 4 / 2 / 25 / 188 / 4 / 1 / . 9 / 224 / 5 / 4 / 13 / 261 Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 469) अ. पा. सू पृ. कदाकोनवा / 5 / 3 / 8 / 267 कमेणिक / 3 / 4 / 2 / 64 करणक्रियया क्वचित् / 3 / 4 / 94 / 251 करणाद यजो भूते 5 / 1 / 158 / 295 करणावारे / 5 / 3 / 129 / 385 करणेभ्यः / 5 / 4 / 64 / 394 कर्तरि / 5 / 1 / 3 / 275 कर्तयनभ्यः शव् कर्तुः क्विब् गरभक्लीबहोडात् तुङित् / 3 / 4 / 25 / 216 कर्तुः खश .. / 5 / 1 / 117 / 289 कर्तुर्मीव-पुरुषाद् ना-वहः / 5 / 4 / 69 / 395 कर्मणिन् / 5. / 1 / 153 / 294 कर्तृस्थामूर्ताऽऽप्यात् / 3 / 3 / 40 / 230 कर्मणोऽण / 5 / 1 / 72 / 282 . कर्मणोऽण् / 5 / 3 / 14 / 368 कर्मण्यग्न्यर्थे / 5 / 1 / 165 / 295 कषेः कृच्छ्र-गहने / 4 / 4 / 67 / 312 कष्टकक्षकृच्छ्रसत्रगहनाय पापे क्रमणे . . / 3 / 4 / 31 / 218 Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (470) अ. पा. सू... पृ. कामोक्तावकञ्चिति / 5 / 4 / 26 / 264 कारणम् / 5 / 3 / 127 / 384 कालस्यानहोरात्राणाम् / 5 / 4 / 7 / 260 कालेन तृष्यस्वःक्रियान्तरे / 5 / 4 / 82 / 399 किंकिलास्त्यर्थयोभविष्यन्ती / 5 / 4 / 16 / 262 किंवृत्ते लिप्सायाम् / / 5 / 3 / 9 / 257 किंवृत्ते सप्तमीभविष्यन्त्यौ / 5 / 4 / 14 / 262 कुक्ष्यात्मोदराद् भृगः खिः / 5 / 1 / 90 ! 284 कुटादेद्विदणित् / 4 / 3 / 17 / 146 कुप्यभिद्योध्यसिध्यतिष्य पुष्ययुग्याज्यसूर्य नाम्नि / 5 / 1 / 39 / 272 कुमारशीर्षाण्णिन् / 5 / 1 / 82 / 283 कुषिरब्जेाप्ये वा परस्मै च / 3 / 4 / 74 / 167 कूलादुद्रुनोदवहः / 5 / 1 / 122 / 290 कूलाभ्रकरीषात् कषः / 5 / 1 / 110 / 288 कृगः खनट करणे / 5 / 1 / 129 / 297 कृगः शत्र वा / 5 / 3 / 100 / 378 कृगः सुपुण्यपापकर्ममन्त्रपदात् / 5 / 1 / 162 / 295 कृगस्तनादेरुः / 3 / 4 / 83 / 68 कृगो यि च / 4 / 2 / 8 / 68 Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (471) . अ. पा. सू. पृ. कृगोऽव्ययेनानिष्टोक्तो क्त्वाणमौ / 5 / 4 / 84 / 400 कृतचूतनृतच्छृदतृदोऽसिचः सादेर्वा / 4 / 4 / 50 / 116 कृतास्मरणातिनिहवे परोक्षा / 5 / 2 / 11 / 254 कृषः श्वस्तन्याम् . / 3 / 3 / 46 / 80 कृवृषिमृजिशंसिगृहिदुहि- . जपो वा / 5 / 1 / 42 / 273 क्त-क्तवतु / 5 / 1 / 174 / 306 केटो गुरोर्व्यञ्जनात् / 5 / 3 / 106 / 379 क्यः शिति / 3 / 4 / 70 / 243 क्यषो नवा / 3 / 3 / 43 / 231 क्यनि / 4 / 3 / 112 / 215 क्ययङाशीय / 4 / 3 / 10 / 22 क्रमो दीर्घः परस्मै / 4 / 2 / 109 / 48 . क्रमोऽनुपसर्गात् / / 3 / 3 / 47 / 232 अय्यः क्रयार्थे / 4 / 3 / 91 / 271 / / 3 / 4 / 79 / 169 क्रव्यात्-क्रव्याद् वावा- / 5 / 1 / 151 / 293 क्रियार्थो धातुः / 3 / 3 / 3 / 1 ऋयादेः Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 472) अ. पा. . . . . पृ. क्रियाव्यतिहारेऽगतिहिमा- / 3 / 3 / 26 / 226 क्रीडऽकुनने / 3 / 3 / 33 / 228 क्रुत्संग्दादिम्पः किम् / 5 / 3 / 114 / 381 क्लीबे क्तः / 5 / 3 / 123 / 383 . क्वचित् / / 5 / 1 / 171 / 296 / / / / / 5 / 1 / 148 / 293 ख खो डडरेकेकवा.वं च / 5 / 3 / 137 / 387 खित्यनव्ययारुपो मो.तः- / 3 / 2 / 111 / 289 ख्णम् चाभीक्ष्ण्ये . / 5 / 4 / 48 / 390 ख्याते श्य 5 / 2 / / 254 विप् गत्यकर्मकपिरभुः / 5 / 1 / 11 / 277 गत्यर्थात् कुटिले / 3 / 4 / 11 / 198 गधनावक्षेपसेवासाहसप्रति- / 3 / 3 / 76 / 236 गमहनजनखनघसः स्वरेऽ- 14 / 2 / 44 / 54 गमिषद्यमश्च्छः / 4 / 2 / 103 / 48 गमेः क्षान्तौ / 3 / 3 / 15 / 233 गमोऽनात्मने / 4 / 4 / 51 / 49 Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (473 ___ अ. पा. सू. पृ. गस्थकः / 5 / 1 / 66 / 281 गहोर्जः / 4 / 1 / 40 / 17 गावपुरुषात् स्नः / 5 / 4 / 59 / 393 गापापचो भावे / 5 / 3 / 95 / 377 गापास्थासादामाहाकः / 4 / 3 / 96 / 14 गाः परोक्षायाम् / 4 / 4 / 26 / 99 गायोऽनुपसर्गात् टक् / 5 / 1 / 74 / 282 गुणोऽरेदोत् गुपौधूपविच्छिपणिपनेशयः / 3 / 4 / 1 44 गुप्तिनो गर्दाक्षान्तौ सन् ! 3 / 4 / 5 / 195 गुरुनाम्यादेरनृच्छूर्णोः / 3 / 4 / 48 / 30 गृणोऽपरोक्षायां दीर्घः / 4 / 4 / 34 / 161 गूलुपसदचरजपत्रमदशदह - / 3 / 4 / 12 / 199 गेहे ग्रहः . / 5 / 1 / 55 / 279 गोचरसंचरवतजव्यजखला- / 5 / 3 / 131 / 385 गोहः स्वरे / 4 / 2 / 42 / 72 / 4 / 4 / 59 / 192 ग्रहनश्चभ्रस्जप्रच्छः / 4 / 1 / 84 / 138 ग्रहादिभ्यो णिन् . / 5 / 1 / 53 / 279 ग्ला-हा-च्यः / 5 / 3 / 118 / 382 Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटादेहस्वो दीर्घस्तु वा- घस्लसनद्यतनीघञचलि घस्वसः घुषेरविशब्दे घ्राध्मापाट्धेदृशः शः घ्राध्मोर्यङि (474) अ. पा. सु. . . पृ. / 4 / 2 / 24 / 176 / 4 / 4 / 17 / 176 / 2 / 3 / 36 / 54 / 4 / 4 / 68 / 313 / 5 / 1 / 18 / 280 / 4 / 3 / 98 / 201 * पित्रः पीप्य / 4 / 1 / 33 / 187 डौ सासहिवावहिचाचलिपापति / 5 / 2 / 38 / 300 चक्षो वाचि कशांग ख्यांग् / 4 / 4 / 4 / 102 चरफलाम् / 4 / 1 / . 53 / 199 चरेराङस्त्वगुरौ / 5 / 1 / 31 / 272 चरेष्टः / 5 / 1 / 138 / 291 चर्मोदरात् पूरेः / 5 / 4 / 56 / 392 चल्याहारार्थेबुधयुध- / 3 / 3 / 108 / 242 चहणः शाठ्ये / 4 / 2 / 31 / 189 चितिदेहावासोपसमाधाने- / 5 / 3 / 72 / 374 चित्ते वा / 4 / 2 / 41 / 186 Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (476) चित्र चिस्फुरोर्नवा चुरादिभ्यो णिच् चेः किर्वा चेलार्थात् क्नोपेः व्यर्थे काप्याद् भूकृगः च्यर्थे भृशादेः स्तोः ___ अ. पा. सू. पृ. / 5 / 4 / 19 / 236 / 4 / 2 / 12 / 186 / 3 / 4 / 17 / 169 / 4 / 1 / 36 / 132 / 5 / 4 / 58 / 392 / 5 / 3 / 140 / 388 / 3 / 4 / 29 / 217 छाशोर्वा / 4 / 4 / 12 / 311 जागुः किति जाग्रुषसमिन्धेर्नवा जाज्ञोजनोऽत्यादौ जातुयद्यदायदों सप्तमी जायाफ्तेश्चिन्हवति / जिघ्रतेरिः निविपून्यो हलिमुजकरके जभ्रमवमत्रसफणस्यमस्वन- ऋषोऽतृः / 4 / 3 / 6 / 93 / 3. / 4 / 49 / 93 / 4 / 2 / 104 / 127 / / 2 / 1. / / 5 / 4 / 17 / 262 / 5 / 1 / 84 / 284 / 4 / 2 / 38 / 185 / 5 / 1 / 43 / 273 / 4 / 1 / 26 / 81 / 5 / 1 / 173 / 297 Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (476) जेगिः मन्परोक्षयाः / 4 / 1 / 35 / 20 ज्याव्यधः ङिति / 4 / 1 / 81 / 113 ज्याव्येव्यधिन्यचिव्यथेरिः / 4 / 1 / 71 / 74 ज्वल-बल-मल-ग्ला-ना-वन-। 4 / 2 / 32 / 189 निरुणमोर्वा जिच ते पदस्तलक् च मिणवि इन् / 4 / 4 / 106 / 248 / / 3 / 4 / 66 / 126 ब्णिति गिति घात् ट्वेघाशाच्छासो वा ट्धेश्वेर्वा ट्वितोऽथुः / 3 / 4 / 59 / 25 / 5 / 3 / 83 / 379 डाच्लोहितादिभ्यः पित् डीयश्व्यैदितः क्तयोः डितस्त्रिमा तत्कृतम् 'णक-तृचौ / 3 / 4 / 30 / 217 / 4 / 4 / 61 / 311 / 4 / 3 / .84 / 375 15 / 1 / 48 / 277 Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (477) ___ण अ. पा. सू. पृ. णावज्ञाने गमुः / 4 / 4 / 24 / 190 णिज् बहुलं नाम्नः कृगादिषु / 3 / 4 / 42 / 220 णिन् चावश्यकाधमण्यें / 5 / 4 / 26 / 278 शिवेत्त्यासश्रन्थवट्टबन्देरनः / 5 / 3 / 111 / 380 मिश्रिनुक्रमः कर्तरि ङः / 3 / 4 / 58 / 21 णिस्नुयात्मनेपदाकर्मकात् / 3 / 4 / 92 / 251 णेनिटि / 4 / 3 / 83 / 170 जो क्रीजीङः / 4 / 2 / 10 / 186 णौ ङसनि / 4 / 1 / 88 / 187 णौ दान्तशान्त पूर्णदस्तस्य- . च्छन्नज्ञप्तम् / 4 / 4 / 74 / 314 गौ मृगरमणे .. / 4 / 2 / 51 / 189 तत्र वसु-कानौ तद्वत् / 5 / 2 / 2 / 267. तत्साप्यानाप्यात् कर्मभावे- / 3 / 3 / 21 / 243 तनः क्ये / 4 / 2 / 63 / 246. तनव्यधीश्वसातः / 5 / 1 / 64 / 281 तन्भ्यों वा तथासि न्णोश्च / 4 / 3 / 68 / 257 तपसः क्यन् / 3 / 4 / 36 / 219 20 V Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (478) अ. पा. सू. . तपेः कर्बनुलापे च / 3 / 4 / 91 / 247 तपेस्तपःकर्मकात् / 3 / 4 / 85 / 252 तव्यानीयौ / 5 / 1 / 27 / 271 तिक्कृतो नाम्नि / 5 / 1 / 61 / 282 ति चोपान्त्यातोऽनोदुः / / 4 / 1 / 54 / 199 तिर्यचापवर्गे / 5 / 4 / 85 / 400 तिर्वा ष्ठिवः / 4 / 1 / 43 / 51 तिवां णवः परस्मै / 4 / 2 / 117 / 95 तिष्ठतेः / 4 / 2 / 39 / 185 तुदादेः शः / 3 / 4 / 81 / 137 तुमर्हादिच्छायां सन्नतत्सनः / 3 / 4 / 21 / 191 तृषिधृषिस्वपो नजिङ् / 5 / 2 / 80 / 305 तृहः शादीत् / 4 / 3 / 62 / 155 तत्रपफलभजाम् / 4 / 1 / 25 / 25 ते कृत्याः / 5 / 1 / 47 / 274 त्यदाद्यन्यप्तमानादुपयानाद्-. / 5 / 1 / 152 / 294 त्रसि-गृधि-धृषि-क्षिपः कनुः / 5 / 2 / 32 / 299 त्रीणि त्रीण्यन्ययुष्मदस्मदि / 3 / 3 / 17 / 2 थे वा / 4 / 1 / 29 / 133 Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1479 दत अ. पा. सू. पृ. / 4 / 4 / 10 / 311 दम्भः / 4 / 1 / 28 / 136 दम्भो धिप् धीप् / 4 / 1 / 18 / 194 दयायास्कासः / 3 / 4 / 47 / 65 दरिद्रोऽद्यतन्यां वा / 4 / 3 / 76 / 92 दश्वाङः / 5 / 1 / 78 / 283 दंशसम्नः शवि / 4 / 2 / 49 / 37 दशेस्तृतीयया / 5 / 4 / 73 / 296 दागोऽस्वास्यप्रसारविकाशे / 3 / 3 / 53 / 233 दा-धे-सि-शद-सदोरुः / 5 / 2 / 36 / 300 दियुद्-ददृज्जगज्जुहूवाक्प्राड्-। 5 / 2 / 83 / 305 दिवादेः श्यः .. / 3 / 4 / 72 / 114 दीपजनबुधिपूरितायिप्यायो वा / 3 / 4 / 67 / 65 दीय दीङः किङति स्वरे / 4 / 3 / 93 / 125 दीप्तिज्ञानयत्नविमत्युपसंभा- / 3 / 3 / 78 / 237 दीर्घमवोऽन्त्यम् / 4 / 1 / 103 / 163 दीर्घश्च्चियङ्यक्क्येषु च / 4 / 3 / 108 / 20 - दुगोरू च / 4 / 2 / 77 / 309 दुहदिहलिंहगुहोदन्त्यात्मने वा सका Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (480) ___ अ. पा. सू. . ' पृ. दुहेर्डवः / 5 / 1 / 145 / 293 दुःस्वीषतःकृच्छ्राकृच्छ्रार्थात् खल्। 5 / 3 / 139 / 387 दृति-नाथात् पशाविः / / 1 / 97 / 285 दृवृगस्तुजुषैतिशासः / 5 / 1 / 40 / 273 दृशः क्वनिम् / 5 / 1 / 166 / 296 देर्दिगिः परोक्षायाम् / 4 / 1 / 32 / 59 देव-वातादापः / 5 / 1 / 99 / 286 देवार्चामैत्रीसंगमपथिकर्तृकमन्त्रकरणे स्थः / 3 / , 3 / 60 / 234 / 4 / 1 / 41 / 77 युद्भ्योऽद्यतन्याम् . / 3 / 3 / 44 / 78 द्वितीय-तुर्ययोः पूर्वी / 4 / 1 / 42 / 7 द्वितीयया / 5 / 4 / 78 / 398 द्वितीयायाः काम्यः / 3 / 4 / 22 / 214 द्वित्वे हनः / 4 / 1 / 87 / 75. द्विर्धातुः परोक्षा प्राक् तु स्वरे स्वरविधेः / 4 / 1 / 1 / 7. द्वयुक्तजक्षपञ्चतः / 4 / 2 / 93 / 91 द्वयुक्तोपान्त्यस्य शिति स्वरे / 4 / 3 / 14 / 204 द्युतेरिः Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (481) ध. अ. पा. स. पृ. धनुर्दण्डत्सरुलाङ्गलाकुशर्षिय ष्टिशक्तितोमरघटाद् ग्रहः / 5 / 1 / 92 / 285 धागः / 4 / 4 / 15 / 311 धागस्तथोश्च / 2 / 1 / 78 / 111 धातोः कण्ड्वादेर्यक् / 3 / 4 / 8 / 223 धातोरनेकवरादाम् परोक्षायाः कृभ्वस्ति चानु तदन्तम् 3 / 4 / 46 / 92 धातोः सम्बन्धे प्रत्ययाः / 5 / 4 / 41 / 266 धाय्यापाय्यप्तानाम्यनिकाय्प मृग्मानहविर्निवासे / 5 / 1 / 24 / 270 धारीडोऽकृच्छ्रेऽतृश् . / 5 / 2 / 25 / 298 धारधैर् च / 5 / 1 / 113 / 288 धुड्हस्वाल्लुगनिटस्तथोः / 4 / 3 / 70 / 37 धूगौदितः / 4 / 4 / 38 / 23 / 4 / 2 / 18 / 182 / 4 / 4 / 85 / 22 धृषशसः प्रगल्भे / 4 / 4 / 66 / 312 धूगप्रीगोर्नः धूसुस्तोः परस्मै न कर्मणा जिच् / / 3 / 4 / 88 250 Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुको ( 482) ___अ. पा. . सु... पृ. न कवतेयङः / 4 / 1 / 47 / 198 नगरादगजे / 5 / 1 / 87 / 284 न गृणाशुभरुचः / 3 / 4 / 13 / 200 नग्नपलितप्रियान्धस्थूलसुभगाढ्य- . तदन्ताच्छ्यर्थेऽच्वेर्भुवः खिष्णु / 5 / 1 / 128 / 297 न जनवधः / 4 / 3 / 14 / 127 नमोऽनिः शापे / 5 / 3 / 117 / 382 न डीशीङ्पषिविदिस्विदि / 4 / 3 / 27 / 306 न णिङ्-यसूद-दीप-दीक्षः / 5 / 2 / 45 / 301 न दिस्योः / 4 / 3 / 61 / 103 ननौ पृष्टोक्तौ सद्वत् / 5 / 2 / 17 / 256 नन्यादिभ्योऽनः / 5 / 1 / 12 / 279 नन्वो; / 5 / 2 / 18 / 256 न प्रादिरप्रत्ययः / 3 / 3 / 4 / 1 नमोवरिवश्चित्रडोऽर्चासेवाऽऽश्वयें। 3 / 4 / 37 / 219 न वयो य / 4 / 1 / 73 / 74 नवा क्वण-यम-हस-स्वनः / 5 / 3 / 48 / 371 नवा परोक्षायाम् / 4 / 4 / 5 / 102 मिदः Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (483) ___ अ. पा. सु. पृ. नवा भावारम्भे . / 4 / 4 / 72 / 313 न वृद्धिश्चाविति क्ङिल्लोपे / 4 / 3 / 11 / 278 न वृद्भयः / 4 / 4 / 55 / 79 न शसददिवादिगुणिनः / 4 / 1 / 30 / 38 नशः शः / 2 / 3 / 78 / 121 नशेर्नेश् वाऽङि / 4 / 3 / 102 / 121 नशो धुटि / 4 / 4 / 109 / 121 न विजागृशप्तक्षणम्येदितः / 4 / 3 / 49 / 38 नाडीघटीखरीमुष्टिनासिकावाताद् / 5 / 1 / 120 / 289 नानद्यतनः प्रबन्धासत्त्योः / 5 / 4 / / 5 / 259 नामिनोऽकलिहलेः . . / 4 / 3 / 11 / 20 नामिनो गुणोऽक्ङिति / 4 / 3 / 1 / 3 नाम्ना ग्रहादिशः / 5 / 4 / 83 / 400 नाम्नि पुंसि कः / 5 / 3 / 121 / 383 . नाम्नो गमः खड्डौ च विहायसस्तु विहः / 5 / 1 / 131 / 290 नाम्नो द्वितीयाद् यथेष्टम् / 4 / 1 / 7 / 224 नाम्नो वेदः क्यप् च. / 5 / 1 / 35 / 272 नाम्युपान्त्यप्रीकृगृज्ञः कः / 5 / 1 / 54 / 289 धमश्च Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (484) ___ अ. पा.. सू. . . पृ. नासत्त्वाश्लेषे / 3 / 4 / 57 / 122 निगवादेर्नाम्नि / 5 / 1 / 61 / 280 निघोघसंघोद्घनापघनोपघ्नं नि मितप्रशस्तगणात्याधानाङ्गासन्नम् / 5 / 3 / 36 / 361 निजां शित्येत् / 4 / 1 / 57 / 113. निन्द-हिंस-क्लिश-खाद-विनाशि व्यामाषासूयानेकस्वरात् / 5 / 2 / 68 / 303 निन्द्ये व्याप्यादिन् विक्रियः / 5 / 1 / 159 / 295 निमीत्यादि-मेङः तुल्यकर्तृके / 5 / 4 / 46 / 389 निमूलात् कषः / 5 / 4 / 62 / 393 निरभेः पू-स्वः . / 5 / 3 / 21 / 369 निर्गो देशे / 5 / 1 / 133 / 291 निविशः / 3 / 3 / 24 / 227 निविस्वन्ववात् / 4 / 4 / / / 310 / 4 / 4 / 39 / 167. निहवे ज्ञः / 3 / 3 / 68 / 235 नीदांवशसूयुयुजस्तुतुदसिसिचमि हपतपानहस्त्रट / 5 / 2 / 8 / 306 नुप्रच्छः / 3 / 3 / 54 / 233. निष्कुषः Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (485) ___ अ. पा. सू. पृ. नृत्-खन्-रञ्जः शिलिपन्यकट् / / 1 / 65 / 281 नेमादापतपदनदगदवपीवहीश मूचिग्यातिवातिद्रातिप्सातिस्यतिहन्तिदेग्धौ / 2 / 3 / 79 / 42 ननद-गद-पठ-स्वन-क्वणः / 5 / 3 / 26 / 369 न्यभ्युपवेश्चिोत् / 5 / 3 / 42 / 373 न्यायावायाध्यायोद्यावसंहाराव- . हाराधारदारजारम् / 5 / 3 / 134 / 386 पचिदुहेः . / 3 / 4 / (7 / 250 पञ्चम्यर्थहेतो .. / 5 / 3 / 11 / 257 पञ्चम्याः कृग् / 3 / 4 / 52 / 96 ‘पञ्चम्या त्वरायाम् / / 5 / 4 / 77 / 398 पणेर्माने / 5 / 3 / 32 / 370 पद-रुन-विश-स्पृशेषन् / 5 / 3 / 16 / 368 पदान्तरंगम्ये वा / 3 / 3 / 99 / 241 पदास्वैरिबाह्यापक्ष्ये ग्रहः / 5 / 1 / 44 / 274 पराणि कानानशौ चात्मनेपदम्। 3 / 3 / 20 / 2 परानोः कृगः / 3 / 3 / 101 / 241 Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 486) अ. पा. . . . . . परावरे / 5 / 4 / 45 / 389 परावेजेः / 3 / 3 / 28 / 227 परिक्लेश्येन / 5 / 4 / 80 / 399 परिचाय्योपचाय्यानाय्यसमू यचित्यमग्नौ / 6 / 1 / 25 / 270 परिमाणार्थमितनखात् पचः / 5 / 1 / 109 / 288 परिमुहायमायसपाट्धेवदवसद मादरुचनृतः फलवति / 3 / 3 / 94 / 240 परिव्यवात् क्रियः / 3 / 3 / 27 / 227 परेमषश्च / 3 / / 3 / 104 / 242 परे वा / 5 / 4 / / 260 परेः स-चरेर्यः . / 5 / 3 / 102 / 379 परोक्षा णव् अतुस् उस्, थव अथुम् अ, णव् व म, ए . . आते इरे, से आथे ध्वे, ए वहे महे परोक्षायां नवा / 4 / 4 / 18 / 81 परोक्षे / 5 / 2 / 12 / 7 परोपात् / 3 / 3 / 49 / 232 / 5 / 3 / 113 / 381 पधेर्वा Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (487) _अ, पा. सू. पृ. पर्ययात् स्वदः / 4 / 2 / 27 / 188 पर्यायार्हणोत्पत्तौ च णकः / 5 / 3 / 120 / 382 पाणिकरात् / 5 / 1 / 121 / 289 पाणिममवाभ्यां सृजः / 5 / 1 / 18 / 269 पातेः / 4 / 2 / 17 / 187 पार्थादिभ्यः शीङः / 5 / 1 / 135 / 291 पाशाच्छासावेव्याह्वो यः / 4 / 2 / 20 / 187 पिबतिदाभस्थः सिचो लुप् परस्मै न चेट् . / 4 / 3 / 66 / 11 पुच्चादुत्परिव्यसने / 3 / 4 / 39 / 219 पुनाम्नि घः / 5 / 3 / 130 / 385 पुरन्दर-भगन्दरौ / 5 / 1 / 114 / 288 पुरा-यावतोर्वर्तमाना / 5 / 3 / 7 / 297 पुरोऽयतोऽने सर्तेः / 5 / 1 / 140 / 292 पूङ्-यनः शानः / 5 / 2 / 23 / 298 पूजाऽऽचार्यकभृत्युत्क्षेपज्ञानविगणनव्यये नियः . / 3 / 3 / 39 / 230 पूदिव्यश्चे शाधूतानपादाने / 4 / 2 / 72 / 308 पूर्वस्यास्वे स्वरे य्वोरियुत् / 4 / 1 / 37 / 21 पूर्वाग्रे प्रथमे / 5 / 4 / 49 / 390 . Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ अ. पा.. सू... पृ. पूर्वात् कर्तुः / 5 / 1 / 141 / 292 पभृमाहाङामिः / 4 / 1 / 58 / 109 प्यायः पी: / 4 / 1 / 91 / 65 प्रघण-घाणौ गृहांशे / 5 / 3 / 35 / 371 प्रचये नवा सामान्यार्थस्य / / 5 / 4 / 43 / 267 प्रणाय्यो निष्कामासम्मते / 5 / / 23 / 270 प्रतिज्ञायाम / 3 / 3 / 65 / 235 प्रत्यभ्यतः क्षिपः / 3 / 3 / 102 / 242 प्रमाण-समासत्त्योः / 5 / 4 / 76 / 397 प्रयोक्तयापारे णिग / 3 / 4 / 20 / 184 प्रलम्भे गृधि-वञ्चेः / 3 / 3 / 89 / 239 प्रवचनीयादयः . / 5 / 1 / / 276 प्रश्नाख्याने वे / 5 / 3 / 119 / 382 प्राकाले / 5 / 4 / 47 / 389 प्राग्वत् / 3 / 3 / 74 / 236 प्राज्ज्ञश्च / 5 / 1 / 79 / 283 प्रात् तुम्पनेगवि / 4 / 4 / 97 / 228 प्रात् सू-जोरिन् / 5 / 2 / 71 / 305 प्राद् दागस्त आरम्भे क्ते / 4 / 4 / 7 / 310 प्राद् वहः / 3 / 3 / 103 / 242 Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { 489 अ. पा. सू. पृ. प्रियवशाद् वदः / 5 / 1 / 107 / 287 घुसृत्वोऽक: साधौ / 5 / 1 / 69 / 281 प्रैषाऽनुज्ञाऽवसरे कृत्यपञ्चभ्यौ / 5 / 4 / 29 / 6 प्रोपादारभ्भे. / 3 / 3 / 51 / 232 प्वादेहूस्वः / 4 / 2 / 105 / 162 फेनोमबाष्पधूमादुद्वमने / 3 / 4 / 33 / 218 बन्धेर्नाम्नि बलिस्थूले दृढः .. बहुलम् .. बहुलं लुप् बहुविध्वस्तिलात् तुदः बिभेतीषु च ब्रह्मणो वदः ब्रह्म-भ्रूण-वृत्रात् क्विप् ब्रह्मादिभ्यः ब्रूगः पञ्चानां पञ्चाहश्च ब्रूतः परादिः .. / 5 / 4 / 7 / 395 / 4 / 4 / 69 / 313 / 5 / 1 / 2 / 275 / 3 / 4 / 14 / 203 / / 5 / 1 / 124 / 290 / 3 / 3 / 92 / 231 / 5 / 1 / 156 / 294 / 5 / 1 / 161 / 295 / 5 / 1 / 85 / 284 / 4 / 2 / 118 / 105 / 4 / 3 / 63 / 105 Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (490) भ अ. पा. . सू. . . पृ. भनो विण् / 5 / 1 / 146 / 293 भन्जि-मासि-मिदो घुरः / 5 / 2 / 74 / 304 मजेनों वा / 4 / 2 / 48 / 246 भवतेः सिज्लुपि / 4 / 3 / 12 / 11 भविष्यन्ती / / 5 / 3 / 4 / 9 भविष्यन्ती स्यति स्यतस् स्यन्ति, स्यसि स्यथस् स्यथ, स्यामि स्यावस स्यामस् / 3 / 3 / 15 / 10 भव्यगेयजन्यरम्यापास्याप्लाव्यं नवा / 5 / 1 / 7 / 275 भाण्डात् समाचितौ. / 3 / 4 / 40 / 219 भावकर्मणोः / 3 / 4 / 68 / 244 भाववचनाः / 5 / 3 / 15 / 368 भावाकोः / 5 / 3 / 18 / 368 भावे / 5 / 3 / 122 / 383 भावे चाशिताद् भुवः खः / 5 / 1 / 130 / 297 भावेऽनुपसर्गात् / 5 / 3 / 45 / 373 मित्तं शकलम् / 4 / 2 / 81 / 310 भिदादयः / 5 / 3 / 108 / 380 Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (491) अ. पा. स. पृ. मियो नवा / 4 / 2 / 99 / 108 भियो रु-रुक-लुकम् / 5 / 2 / 76 / 304 भीमादयोऽपादाने / 5 / 1 / 14 / 277 भीषिभूषिचिन्तिपूनिकथिकुबिचर्चिस्पृहितोलिदोलिभ्यः / 5 / 3 / 109 / 380 मीहीभृहोस्तिव्वत् . / 3 / 4 / 50 / 107 मुनि-पत्य दिभ्यः कर्मापादाने। 5 / 3 / 128 / 384 भुननोऽत्राणे / 3 / 3 / 37 / 229 भुवो वः परोक्षाऽद्यतन्योः / 4 / 2 / 13 / / भू-जेः प्णुक् / 5 / 2 / 30 / 299 भूतवच्चा शंस्ये वा / / 6 / 4 / 2 / 258 .. / 5 / 4 / 10 / 261 भू-श्यदोऽल् / 5 / 3 / 23 / 369 भूषाक्रोधार्थजुसृगृधिज्वलशुचश्वानः / 5 / 2 / 42 / 301 भूषार्थसकिरादिभ्यश्च निक्यौ / 3 / 4 / 93 / 251 भूस्वपोरदुतौ .. / 4 / 1 / 70 / / भृगो नाम्नि / 5 / 3 / 98 / 378 भृगोऽसंज्ञायाम् .. / 5 / 1 / 15 / 274 भृजो भञ् / 4 / 4 / / / 138 Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ अ. पा. सू. पृ. भृतौ कर्मणः / 5 / 1 / 104 / 287 भृवृजितृतपदमेश्च नाम्नि / 5 / 1 / 112 / 288 भृशाभीक्ष्ण्ये हिस्वौ यथाविधि तध्वमौ च तद्युष्मदि / 5 / 4 / 42 / 267 भ्यादिभ्यो वा / / 5 / 3 / 115 / 381 भ्राज्यलंकृग्निराकृग्भूसहि. . रुचिवृत्तिवृद्धिचरिप्रजनापत्रप इष्णुः / 5 / 2 / 28 / 299 प्राजभासभाषदीपपीडजीवमी- . लकणरणवणभणश्रणहवेहेठ. लुटलुपलपां नवा / 4 / 2 / 36 / 173 भ्रासभ्लासभ्रमक्रमक्लमत्रसित्रुटिलषियसिसंयसेर्वा / 3 / 4 / 73 / 48 मन्वन्वनिविच क्वचित् / 5 / 1 / 147 / 293 मन्याणिन् / 5 / 1 / 116 / 289 मव्यविश्रिविज्वरित्वरेरुपान्त्येन / 4 / 1 / 109 / 212 मव्यस्याः / 4 / 2 / 113 // 4 मस्जेः सः / 4 / 4 / 110 / 143 माङयद्यतनी / 5 / 4 / 39 / 266 Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (493) ___. अ. पा. सू. पृ. मारणतोषणनिशान ज्ञश्च / 4 / 2 / 30 / 175 मिग्मीगोऽखल चलि / 4 / 2 / 8 / 132 मिथ्याकृगोऽभ्यासे / / 3 / 93 / 239. मिदः श्ये / 4 / 3 / 5 / 119 मिमीमादामित् स्वरस्य / 4 / 1 / 20 / 196 मुचादितृफहफगुफशुभोभः शे / 4 / 4 / 99 / 139 मुरतोऽनुनासिकस्य / 4 / 1 / 11 / 200 मूर्तिनिचिताभ्रे घनः / 5 / 3 / 37 / 372 मूल विभुनादयः / 5 / 1 / 144 / 292 मृगयेच्छायाच्ञातृष्णाकृपामाश्रद्धाऽन्तर्धा / 5 / 3 / 101 / 378 मृगोऽस्य वृद्धिः .. / 4 / 3 / 42 / 95 मेघर्तिभयाभयात् खः / / 1 / 106 / 287 म्रियतेरद्यतन्याशिषि च / 3 / 3 / 42 / 141 य एञ्चातः / 5 / 1 / 28 / 271 यतुरुस्तोर्बहुलम् / 4 / 3 / 64 / 104. यनादिवचेः किति / 4 / 1 / 79 / 73. यजा दिवश्वचः सस्वरान्तस्था: वृत् / 4 / 1 / 72 / 73 Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (494) ___अ. पा. पृ. यनि-जपि-दंशि-वदादूकः / 5 / 2 / 47 / 302 यनिस्वपिर क्षयतिप्रच्छो नः / 5 / 3 / 85 / 376 यत्कर्मस्पर्शात् कर्बङ्गसुखं ततः / 5 / 3 / 125 / 384 यथातथादीोत्तरे / 5 / 4 / 51 / 390 यबकिङति / 4 / 2 / 7 / 125 यममदगदोऽनुपसर्गात् / / 5 / 1 / 30 / 271 यमः स्वीकारे / 3 / 3 / 59 / 234 यमिरमिनमिगमिहनिमनिवन तितनादेधुटि किङति / 4 / 2 / 55 / 96 यमिरमिनम्यातः सोऽन्तश्च / 4 / 4 / 86 / 18 यः सप्तम्या: / 4 / 2 / 122 / 4 याज्यादानर्चि / 5 / 1 / 26 / 271 याम्युमोरियमियुसौ / 4 / 2 / 123 / 5 यावतो विन्द-जीवः / 5 / 4 / 55 / 292 यि लुक् / 4 / 2 / 102 / 108 यिःमन् वेयः / 4 / 1 / 11 / 225 युजभुनभनत्यजाअद्विषदुषद्हदुहाम्याहनः / 5 / 2 / 60 / 3.02 युजादेर्नवा / 3 / 4 / 18 / 181 यु-पू-द्रोर्घन् / 5 / 3 / 14 / 374 Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (495) ___ अ. पा. सू. पृ. युवर्णवृदृवशरणगमदग्रहः / 5 / 3 / 28 / 370 ये नवा / 4 / 2 / 62 / 71 खोः प्वय् व्यन्जने लुक् . / 4 / 4 / 121 / 189 रजःफलेमलाद ग्रहः / 5 / 1 / 98 / 286 रदादमूर्च्छमदः क्तयोर्दस्य च / 4 / 2 / 69 / 307 रध इटि तु परोक्षायामेव / 4 / 4 / 101 / 120 रमलभशकपतपदामिः / 4 / 1 / 21 / 195 रभोऽपरोक्षाशवि / 4 / 4 / 102 / 189 रम्यादिभ्यः कर्तरि . / 5 / 3 / 126 / 384 रात्रौ वसोऽन्त्ययामास्वप्तर्यद्य / 5 / 2 / / 253 राधेर्वधे . / 4 / 1 / 22 / 196 राल्लंकः / 4 / 1 / 110 / 213 रिरौ च लुपि / 4 / 1 / 56 / 205. रिः शक्याशी / 4 / 3 / 110 / 23 रुच्याव्यथ्यवास्तव्यम् / 5 / 1 / 6 / 275 रुत्पश्चकाच्छिदयः / 4 / 4 / / 89 रुदविदमुषग्रहस्वपप्रच्छः सन् च। 4 / 3 / 32 / 192 रुषः . . / 3 / 4 / 89 / 250 / Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 496) __ अ. पा. सू. ... रुधां स्वराच्छ्नो नलुक् च / 3 / 4 / 82 / 150 रुहः पः / 4 / 2 / 14 / 186 रोमन्थाद् व्याप्यादुच्चर्बणे / 3 / 4 / 32 / 218 रोरुपसर्गात् / 5 / 3 / 22 / 369 लघोरुपान्त्यस्य / 4 / / / 4 / 29 लघोर्दीर्घोऽस्वरादेः / 4 / 1 / 64 / 170 लभः / 4 / 4 / 103 / 189 ललाटवातशर्धात् तपानहाकः / 5 / 1 / 125 / 290 लिप्स्यसिध्धौ / 5 / 3 / 10 / 257 लिम्पविन्दः . / 5 / 1 / 60 ! 280 लियो नोऽन्तः स्नेहवे / 4 / 2 / 15 / 181 लिहादिभ्यः / 5 / 1 / 50 / 178 लीलिनोऽर्चाभिभवे चाचाकर्तर्यपि / 3 / 3 / 90 / 239 लीङ्लिनोर्वा / 4 / 2 / 9 / 126 लुप्यम्वृल्लेनत् / 7 / 4 / 112 / 212 लू-धू-सू-खन-चर-सहातेः / 5 / 2 / 87 / 306 लो लः / 4 / 2 / 16 / 182 Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 497 ) अ. पा सू. पृ. वञ्चलंसध्वंसद्मशकसपतपदस्कन्दोऽन्तो नीः- / 4 / 1 / 50 / 200 वदवजलः वदोऽपात् / 3 / 3 / 97 / 240 वम्यविति वा / 4 / 2 / 87 / 13 . वर्तमाना तिव् तम् अन्ति , सिव् थस् थ, मिव् वस् मस, ते आते अन्ते, से आथे ने, ए वहे महे / 3 / 3 / / 2 . वर्तेवृत्तं ग्रन्थे / 4 / 4 / 3 / 312 वय॑ति गम्यादिः / / 5 / 3 / 1 / 367 वय॑ति हेतुफले .. / 5 / 4 / 25 / 264 वर्योपसर्यावधपण्यमुपेयर्तुमतीग- .. द्यविक्रेये .. . / 5 / 1 / 32 / 272 वर्षविघ्नेऽवाद् ग्रहः / 5 / 3 / 50 / 374 वशेरयङि / 4 / 1 / 83 / 97 वहाभ्राल्लिहः . . / 5 / 1 / 123 / 290 वह्य करणे / 5 / 1 / 34 / 272 वाऽऽकाङ्क्षायाम् / / 5 / 2 / 10 / 254 वाऽऽक्रोशदैन्ये / 4 / 2 / 75 / 309 32 Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 498 ) ___अ. पा. स. पू. वाऽक्षः / 3 / 4 / 76 / 55 वा ज्वलादिदुनीभूग्रहास्रोर्णः / 5 / 1 / 62 / 280 वाऽटाट्यात् / 5 / 3 / 103 / 379 वाऽऽत्मने / 3 / 4 / 63 / 76,201 वादेश्च णकः / / 5 / 2 / 67 / 303 वाऽद्यतनीक्रियातिपत्त्योर्गीङ् / 4 / 4 / 28 / 99 वाऽद्यतनी पुरादौ / / 5 / 2 / 15 / 255 वा द्विषातोऽनः पुंस् / 4 / 2 / 91 / 85 वाऽऽधारेऽमावस्या / 5 / 1 / 21 / 270 वा परोक्षायङि . / 4 / 1 / 90 / 76 वा वेत्तेः क्वसुः / 5 / 2 / 22 / 298 वा वेष्टचेष्टः / 4 / 1 / 66 / 190 वा हेतुसिद्धौ त्त: / 5 / 3 / 2 / 367 विजेरिट / 4 / 3 / 18 / 154 वित्तं धन-प्रतीतम् / / 2 / 82 / 310 विद्-दृग्भ्यः कात्स्न्यें णम् / 5 / 4 / 54 / 391 विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थने / 5 / 4 / 28 / 4 विन्द्विच्छू / 5 / 2 / . 34 / 300 वियः प्रजने / 4 / 2 / 13 / 186 Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (499 ) ___ अ. पा. सू पृ. विंश-पत-पद-स्कन्दो वीप्ताऽऽभीक्ष्ण्ये / 5 / 4 / 81 / 399 विशेषाविरक्षाव्यामिश्रे / 5 / 2 / 5 / 253 वृगो वस्त्रे / 5 / 3 / 52 / 374 वृदिक्षिलुण्टिजलिसकुट्टात् टाकः / 6 / 2 / 70 / 304 वृत्तिसर्गतायन / 3 / 3 / 48 / 232 वृद्भयः स्यसनोः / 3 / 3 / 45 / 79 वृषाश्चाद् मैथुने स्सोऽन्तः / 4 / 3 / 114 / 220 वृष्टिमाने उलुक् चास्य वा / 5 / 4 / 27 / 392 वृतो नवाऽऽनाशी: सिच्चरस्मै च। 4 / 4 / 35 / 25 वेगे सर्तेर्धात् / / 4 / 2 / 107 / 56 वेटोऽपतः / 4 / 4 / 62 / 312 वेत्तिच्छिदभिदः कित् / / 5 / 2 / 75 / 304 वत्तः कित् वेयिवदनाश्वदनूचानम् / 5 / 2 / 3 / 367 वेश्यः / 4 / 1 / 74 / 74 / 4 / 4 / 19 / 74 वेर्विचकत्यस्नम्भकषकसलसहनः / 5 / 2 / 59 / 302 वेः कृगः शब्दे चानाशे / 3 / 3 / 85 / 238 वर्वय् Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (500) ___ अ. पा. सु. . पृ. वैः स्वार्थे / 3 / 3 / 60 / 232 वैणे क्वणः / 5 / 3 / 27 / 370 वोतात् / 5 / 4 / 11 / 261 वोर्णगः सेटि / 4 / 3 / 46 / 104 वोर्णोः / 4 / 3 / 19 / 104 वोर्णोः / 4 / 3 / 60 / 103 वो विधूनने जा / 4 / 2 / 19 / 187 वौ विकिरो वा / 4 / 4 / 96 / 228 व्यक्ताचा सहोक्तो / 3 / 3 / 79 / 237 व्यचोऽनसि / 4 / 1 / 82 / 147 व्यन्जनाच्छ्नाहेरानः / 3 / 4 / 80 / 161 व्यञ्जनादेोपान्त्यस्यातः / 4 / 3 / 47 / 28 व्यजनाद् घञ् / 5 / 3 / 132 / 386 व्यन्जनाद् देः सश्च दः / 4 / 3 / 78 / 92 व्यञ्जनानामनिटि / 4 / 3 / 45 / 37 व्यञ्जनान्तस्थातोऽख्याध्यः / 4 / 2 / 71 / 308 व्यतिहारेऽनीहादिभ्यो नः / 5 / 3 / 116 / 382 व्यध-जन मद्भयः / 5 / 3 / 47 / 374 व्यपाभेलषः / / 5 / 2 / .60 / 302 व्ययोद्रोः करणे / 5 / 3 / 38 / 372 Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (501 ) - अ. पा. सु. पृ. व्यस्थवणवि . / 4 / 2 / 3 / 74 व्याघ्र प्रे प्राणिनशोः / 5 / 1 / 57 / 279 व्यापरे रमः / 3 / 3 / 105 / 242 व्याप्याच्चेवात् / 5 / 4 / 71 / 395 व्याप्यादाधारे / 5 / 3 / 8 1. 376 व्याप्ये घुरकेलिमकृष्टपच्यम् / 5 / 1 / 4 / 275 व्युदस्तपः / 3 / 3 / 87 / 239 व्येस्यमोङ / 4 / 1. / 85 / 202 बताभीक्ष्ण्ये / 5 / 1 / 157 / 294 ' श शकः कर्मणि / 4 / 4 / 73 / 314 शकितकिचतियतिशसिसहियजिभजिपवर्गात् / / 5 / 1 / 29 / 271 शकृत्स्तम्बाद् वत्सवीही कृगः / 5 / 1 / 100 / 286 शको जिज्ञासायाम् / 3 / 3 / 73 / 236 शत्रानशावेष्यति तु सस्यौं / 6 / 2 / 20 / 297 . शदेः शिति / 3 / 3 / 41 / 81 शदेरगतो शात् .. / 4 / 2 / 23 / 185 शप उपलम्भने / 3 / 3 / 35 / 229 Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (902) ___ अ. पा. सू. ... शब्दादेः कृतौ वा / 3 / 4 / 39 / 218 शमष्टकाद घिनम् / 5 / 2 / 49 / 302 शमसप्तकस्य श्ये / 4 / 2 / 111 / 123 शमो नाम्न्यः / 5 / 1 / 134 / 291 शानदानमानवधान निशा- * नार्जवविचारवैरप्ये दीर्घश्वेतः। 3 / 4 / 7 / 195 शापे व्याप्यात् / 5 / 4 / 52 / 391 शासस्हनः शाध्येधिनहि / 4 / 2 / 84 / 94 शासूयुधिशिधृषिमृषातोऽनः / 5 / 3 / 141 / 388 शास्त्यसूक्तिख्यातेरङ् . / 3 / / 60 / 86 शीङ ए: शिति ... / 4 / 3 / 104 / 99 शीशद्धानिद्रातन्द्रादयिपति गृहिस्पृहेरालुः / 5 / 2 / 37 / 300 शीलिकामिभक्ष्याचरीक्षिक्षमोणः 5 / 1 / 73 / 282 शुनीस्तनमुनकूलास्यपुष्पात् ट्धेः / 5 / 1 / 119 / 289 शुष्कचूर्णरूक्षात् पिषस्तत्यैव / 5 / 4 / 60 / 393 शृमगमहनवृषभूस्थ उकण् / 5 / 2 / 40 / 301 शान्देरारुः / 5 / 2 / . 35 / 300 शेषात् परस्मै / 3 / 3 / 100 / 2 Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 503 ) अ. पा. सू. पृ. शेषे भविष्यन्त्ययदौ / 5 / 4 / 20 / 263 शोकापनुद-तुन्दपरिमृज-स्तम्बेरम-कर्णजपं-प्रियालस-हस्तिसूचके / 5 / 1 / 143 / 292 शंसिप्रत्ययात् / 5 / 3 / 105 / 371 शं-सं-स्वयं-वि-प्राद भुवो डुः / 5 / 2 / 84 / 305 श्नश्चातः / 4 / 2 / 96 / 91 भास्त्यो क् / 4 / 2 / 90 / 98 श्रुवोऽनाङ्-प्रतेः / 3 / 3 / 71 / 235 श्रसदवस्भ्यः परोक्षा वा / 5 / 2 / 1 / 253 श्रुद्रगुप्लुच्योर्वा . / 4 / 1 / 61 / 184 श्रौतिकृवुधिवुपाघ्रामाम्थाम्न:दाम दृश्यतिशदसदः शृकृधि. पिबजिघ्रघमतिष्ठमनयच्छपश्यछशीयसीदम् / 4 / 2 / 108 / 13 वादिभ्यः / 5 / 3 / 92 / 377 श्लिषः / 3 / 4 / 56 / 122 श्लिषशीस्थाऽऽसवसजनरुहज भजेः क्तः श्वयत्यसूवचपतः श्वास्थवोचपप्तम्। 4 / 3 / 103 / 80 Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 504 ) ___ अ. पा. सू. . . पृ. श्वसनावरुषत्वरसंधुषास्वनामः / 4 / 4 / 75 / 314 श्वस्तनी ता तारौ तारस्, तासि तास्थस् तास्थ, तास्मि तास्वस् तास्मस् , ता तारौ . तारस् , ताले तासाथे ताध्ये, ताहे तास्वहे तास्महे . / 3 / 3 / 14 / 9 श्वेताश्वाश्वतरगालोडिताहुरकस्याश्वतरेतकलुक् / 3 / 4 / 45 / 221 / 4 / 1 / 89 / 190 श्वेर्वा षितोऽङ् / 5 / 3 / 107 / 380 ष्ठिवूलम्बाचमः / 4 / 2 / 110 / 51 स संख्याहर्दिवाविभानिशाप्रभाभाश्चित्रकर्नाद्यन्तानन्तकारबाहुरुधनुर्नान्दीलिपिलिविबलिभक्तिक्षेत्रजङ्घाक्षपाक्षणदारजनिदोपादिनदिवसाट्टः / 5 / 1 / 102 / 286 संचाय्यकुण्डपाय्यराजसूयं ऋतौ / 5 / 1 / 22 / 270 Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सति / सतीच्छार्थात् सत्यार्थवेदस्याः सत्सामीप्ये सद्वद् वा सनस्तत्रा वा (505) अ. पा. सू. पृ. / 5 / 2 / 19 / 256 / 5 / 4 / 24 / 264 / 3 / 4 / 44 / 221 / 5 / 4 / 1 / 258 / 4 / 3 / 69 / 167 सनि . संनिवेः / 3 / 3 / 17 / 233 सं-नि-वरदः / 4 / 4 / 63 / 312 संनियुपाद यमः / / 5 / 3 / 25 / 369 सनभिक्षाऽऽशंसेरुः / / 5 / 2 / 33 / 300 सन्यङश्च / 4 / 1 / 3 / 191 सप्तमी चोर्ध्वमौहर्तिके . / 5 / 3 / 12 / 258 सप्तमी यदि / 5 / 4 / 34 / 266 सप्तमी यात यातां युम् , यास् / यातं यात, यां यात्र याम, ईत ईयाताम् ईरन् , ईथासू ईयाथाम् ईध्वम्, ईय ईवहि ईमहि / 3 / 3 / 7 / 4 सप्तम्यर्थे क्रियातिपत्तौ क्रियातिपत्तिः / 5 / 4 / 9 / / 10 सप्तम्याः . . / 5 / 1 / 169 / 296 Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (506) . अ. पा. . . . सप्तम्युताप्यो ढे / 5 / 4 / 21 / 263 समननिपन्निषद्शीसुगवि दिचरिमनीणः / 5 / 3 / 99 / 378 समत्यपाभिव्यभेश्वरः / 5 / 2 / 62 / 303 समस्तृतीयया / 3 / 3 / 32 / 228 समिणा सुगः / 5 / 3 / 93 / 377 समुदाङो यमेरग्रन्थे / 3 / 3 / 98 / 240 समुदोऽजः पशौ / 5 / 3 / 30 / 369 समो गमृच्छिप्रच्छिश्रुवित्स्व रत्यर्तिदशः / 3 / 3 / 84 / 238 समो गिरः / 3 / 3 / 66 / 235 समो वा / 5 / 1 / 46 / 274 समः क्ष्णोः / 3 / 3 / 29 / 227 समः ख्यः / 5 / 1 / 77 / 283 सम्प्रतेरस्मृतौ / 3 / 3 / 69 / 235 सम्भावनेऽलमथें तदर्थानुक्तौ / 5 / 4 / 22 / 263 सर्त्यत्तेर्वा / 3 / 4 / 61 / 24 सर्वात् सहश्च / 5 / 1 / 111 / 288 सस्तः सि / 4 / 3 / 92 / 54 सस्मे ह्यस्तनी च / 5 / 4 / 40 / 266 Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (507 ) साधौ अ. पा. मु. पृ.. सस्त्रि-चक्रि-दधि-जज्ञि-नेमि / 5 / 2 / 39 / 300 सहलुभेच्छरुषरिषस्तादेः / 4 / 4 / 46 / 82 सातिहतियू तजूतिज्ञप्तिकीर्ति / 5 / 3 / 94 / 377. / 5 / 1 / 155 / 294 सिचि परस्मै समानस्याङिति / 4 / 3 / 44 / 19 सिजद्यतन्याम् . / 3 / 4 / 53 / 11 सिनाशिषावात्मन / 4 / 3 / 35 / 72 सिविदोऽभुवः / 4 / 2 / 92 / 15. सिध्यतेरज्ञान / 4 / 2 / 11 / 186. सुखादेरनुभव / 3 / 4 / 34 / 218 सुगदुर्गमाधारे . . 5 / 1 / 132 / 291 सुद्विषाहः सत्रिशत्रुस्तुत्ये / 5 / 2 / 26 / 298 सुयजो मनिप् / 5. 1 / 172 / 296. सुरासीघोः शिवः / 5 / 1 / 75 / 282 सतेः पञ्चम्याम् / 4 / 3 / 13 / 100 सूत्राद् धारणे / 5 / 1 / 93 / 285 सूयत्याद्योदितः / 4 / 2 / 70 / 308 मु-ग्लहः प्रजनाक्षे / 5 / 3 / 31 / 370 सुवस्यदो मरक्... / 5 / 2 / 73 / 304 सृजः श्राद्धे भिक्यात्मने तथा / 3 / 4 / 84 / 252. Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 508 ) . अ. पा. . सू. पृ. सृजिशि'कृस्वरात्वतस्तृन्नित्यानिटस्थवः / 4 / 4 / 78 / 14 सृ-जीन राष्ट्रवरप् / 5 / 2 / 77 / 304 सेासे कर्मकर्तरि / 4 / 2 / 73 / 308 सेः स्धां च र्वा / 4 / 3 / 79 / 93 सो धि वा / 4 / 3 / 72 / 93 सोमात् सुगः / 5 / 1 / 163 / 295 सो वा लुक् च / / 3 / 4 / 27 / 217 संयोगादतः / / 4 / 4 / 37 / 133 संयोगादृदत्तः / 4 / 3 / 9 / 22 संयोगादेर्वाऽऽशिष्यः / 4 / 3 / 95 / 17 सः सिजस्तेदिस्योः . . / 4 / 3 / 65 / 18 स्कृच्छृतोऽकि परोक्षायाम् / 4 / 3 / / / 25 स्तम्बाद् घनश्च / 5 / 3 / 39 / 372 स्तम्भू-स्तम्भू-स्कम्भू-स्कुम्भू स्कोः श्नाच स्ताद्यशितोऽत्रोणादेरिट / 4 / 4 / 32 / 9 स्त्रियां क्तिः / 5 / 3 / 91 / 376 स्थाग्लाम्लापचिारिमृजिक्षेः स्नुः। 5 / 2 / 31 / 299 स्थाऽऽदिभ्यः कः / 5 / 3 / 82 / 375 Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (509 ) अ. पा. सू. पृ.. स्था-पा-ना-त्रः कः / 5 / 1 / 142 / 290 स्थेश-भास-पिस-कसो वरः / 5 / 2 / 81 / 305 स्पृशमृशकृषतृपदृषो वा / 3 / 4 / 54 / 53 स्पृशादिस्पो वा / 4 / 4 / 112 / 53. स्पृशोऽनुदकात् / 5 / 1 / 149 / 293 स्फाय स्फाव् . / 4 / 2. / 22 / 187 स्मिङः प्रयोक्तुः स्वार्थे / 3 / 3 / 91 / 239 स्मे च वर्तमाना / 5 / 2 / 16 / 255 स्मे पञ्चमी / 5 / 4 / 31 / 265 स्म्य नसहिंसदीपकम्पकमनमो रः। 5 / 2 / 79 / 304 स्वजश्च / 2 / 3 / 45 / 149 स्वब्जेर्नवा .. / 4 / 3 / 22 / 149 स्वपेर्यडू-डे च / 4 / 1 / 80 / 90. स्वरग्रहदशहन्भ्यः स्यसिजाशी:श्वस्तन्यां निड्वा / 3 / 4 / 69 / 244 . स्वरदहो वा / 3 / 4 / 90 / 251 स्वरहन्-गमोः सनि धुटि / 4 / 1 / 104 / 191 स्वरादुपमर्गाद दस्ति कित्यधः / 4 / 4 / 9 / 310 स्वरादेर्द्वितीयः . . / 4 / 1 / 4 / 103 स्वरादेस्तासु / 4 / 4 / 31 / 20. c Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( 510) अ. पा. . मू... पृ. स्वरेऽतः / 4 / 3 / 75 / 106 स्वस्नेहार्थात् पुषपिषः / 5 / 4 / 65 / 394 स्वाङ्गेनाध्रुवेण / 5 / 4 / 79 / 398 स्वादेः अनुः / 3 / 4 / 75 / 130 . स्वाद्वाददीर्घात् / 5 / 4 / 53 / 391 स्वामिवैश्येऽयः / 5 / 1 / 33 / 272 हनश्च समूलात् / 5 / 4 / 63 / 393 हनृतः स्यस्य / 4 / 4 / 49 / 23 हनो नीर्वधे / 4 / 3 / 99 / 201 हनोऽन्तर्घनान्तर्घणो देशे / 5 / 3 / 34 / 371 हनो वध आशिष्यो / 4 / 4 / 21 / 97 हनो वा वध् च / 5 / 3 / 46 / 373 हवः शिति / 4 / 1 / 12 / 107 हशश्वद्युगान्तःपच्छ्ये ह्यस्तनी च। 5 / 2 / 13 / 255 हशिटो नाम्युपान्त्याद दशोऽनिटः सक् / 3 / 4 / 55 / 53 हस्ताद ग्रह-वर्ति-वृतः / / 4 / 66 / 394 हस्तिबाहुरूपाटाच्छक्तौ / 5 / 1 / 86 / 284 हाको हिः क्वि / 4 / 4 / 14 / 311 Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 511) अ. पा. स. पृ. हान्तस्थाञीड्भ्यां वा / 2 / 1 / 81 / 12 हिंसादेकाप्यात् / 5 / 4 / 74 / 396 हुधुटो हेधिः / 4 / 2 / 83 / 84 हगो गतताच्छोल्ये / 3 / 3 / 38 / 229 हगो वयोऽनुद्यमे / 5 / 1 / 95 / 285 हृषेः केशलोमविस्मयप्रतीपाते / 4 / 4 / 76 / 314 हेतुतच्छीलानुकूलेऽशब्दश्लोककलहगाथावैरचाटुसुत्रमन्त्रपदात् / 6 / 1 / 103 / 287 हो दः हः कालत्रीह्योः / / 5 / 1 / 68 / 281 शस्तनी दिक् ताम् अन् , सिव्. तम् त, अम्व् व म, त आताम्.. . अन्त, थासू आथाम् ध्वम्, इ वहि महि / 3 / 3 / 9 / 6 / 4 / 1 / 39 / 14 हस्वस्य तः पित्कृति / 4 / 4 / 113 / 273 ह्लादो हृद् क्तयोश्च / 4 / 2 / 67 / 307 ह्वः स्पर्धे . . / 3 / 3 / 56 / 233 हालिप्सिचः / 3 / 4 / 62 / 75 हस्वः Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 512) __अ. पा. . . . / 4 / 3 / 15 / 87 हिणोरप्वितिव्यौ क्षिप्राशंसायोर्भविष्यन्तीसप्तम्यौ / 5 / 4 / 3 / 259 क्षुत्तगर्धेऽशनायोदन्यधनायम् / 4 / 3 / 113 / 219 क्षुब्धविरिब्धस्वान्तध्वान्तलग्नम्लिष्ट फाण्टबाढपरिवृढं मन्थस्वरमनस्तमःसत्तास्पष्टानायासभृशप्रभौ / 4 / 4 / 70 / 313 क्षेपे च यच्च-यत्रे / 5 / 4 / 18 / 263 क्षेपेऽपिनात्वोवर्तमाना / 5 / 4 / 12 / 261 क्षेमप्रियमद्रभद्रात् खाण् / 5 / 1 / 105 / 287 क्षेः क्षी चाध्याथें / 4 / 2 / 74 / 308 क्ष-शुषि-पचो म-क-वम् / 4 / 2 / 78 / 309 ज्ञप्यापो ज्ञीपीप् न च द्विः सिसनि ज्ञीप्सा-स्थेये ज्ञोऽनुपसर्गात् / 4 / 1 / 16 / 194 / 3 / 3 / 64 / 234 / 3 / 3 / .96 / 240 / 3 / 3 / 82 / 238 Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरार्द्धस्य शुद्धिपत्रकम् / अशुद्धम् णिद्वित्कार्याथा पशि जिघ्रत् . स्कच्छृतोऽकि तत्रपफलमनां प्रथमः भवति च न) भवतीत्यर्थः / चक्रश्च गुञ्जतु लति. अस्कन्दत् इत्यादि असिध्यात् बुभष परंपंध भन्यास्यत् शुद्धम् णिद्वित्कार्यार्थों स्पृशि निघेत् . स्कृच्छृतोऽकि तृत्रपफलमनां प्रथमस्तु भवति न / भवति चेत्यर्थः चक्रुञ्च ... गुजतु *- - 1 . ' 222 अस्कदद् इत्यादि असेधिष्यत् बुभूष 54 पस्पर्ध अन्यास्यत 74 Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 514) शुद्धम् अयन्तस्य वेगोऽयन्तस्य .. पं. पृ. अशुद्धम् / अनन्तस्य वेगोऽन्तस्य हूयात् .. हवेयात् स्यन्देत् स्यन्देत शृधूङ् . .... . उमति . शशध अश्वत् कर प्रथासंख्य गृधच अमिवाक्षायां उम्भति उमति दमेत् हर्भिता प्वादेग्रहणात् भष तसुण ईसायां अचहत तुमाहः भूयते त्वया शशृधे अशधत रे यथासंख्यं , 105 गृधच अभिकांक्षायां 120 144 13 उम्मति भेत् दर्भिता स्वादेर्ग्रहणात् 162 14 भूष तमुण् 176 20 ईप्सायं 180, 19 अचचहत् 189 तुमर्हः 191 त्वया धनं भूयते / 244 . ... प्राप्यत इत्यर्थः / Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (515) अशुद्धम मां वित्त इत्योभन 13 इत्यय 281 21 वतात क्षिण्णुः भ्यः पद-रु-जविश० स्पशः समावेशाथ . नागया शपमर्दन सुर्ख लुनान्ति ममंडले. मर्मी न नये शुद्धम् मां विद्धि 258 267 आनाम्यम् 270 जीवतात् क्षिप्नुः 299 एभ्यः पद-रुज-विश-पशेर्घ३६८ स्पर्शः ___" समावेशार्थ 377 नागर्या . 379 . शाप इत्यर्थे 382 मर्दनं 284 396 लुनन्ति भूमण्डले 408 409 ने नये Page #827 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #828 -------------------------------------------------------------------------- _