________________ (480) ___ अ. पा. सू. . ' पृ. दुहेर्डवः / 5 / 1 / 145 / 293 दुःस्वीषतःकृच्छ्राकृच्छ्रार्थात् खल्। 5 / 3 / 139 / 387 दृति-नाथात् पशाविः / / 1 / 97 / 285 दृवृगस्तुजुषैतिशासः / 5 / 1 / 40 / 273 दृशः क्वनिम् / 5 / 1 / 166 / 296 देर्दिगिः परोक्षायाम् / 4 / 1 / 32 / 59 देव-वातादापः / 5 / 1 / 99 / 286 देवार्चामैत्रीसंगमपथिकर्तृकमन्त्रकरणे स्थः / 3 / , 3 / 60 / 234 / 4 / 1 / 41 / 77 युद्भ्योऽद्यतन्याम् . / 3 / 3 / 44 / 78 द्वितीय-तुर्ययोः पूर्वी / 4 / 1 / 42 / 7 द्वितीयया / 5 / 4 / 78 / 398 द्वितीयायाः काम्यः / 3 / 4 / 22 / 214 द्वित्वे हनः / 4 / 1 / 87 / 75. द्विर्धातुः परोक्षा प्राक् तु स्वरे स्वरविधेः / 4 / 1 / 1 / 7. द्वयुक्तजक्षपञ्चतः / 4 / 2 / 93 / 91 द्वयुक्तोपान्त्यस्य शिति स्वरे / 4 / 3 / 14 / 204 द्युतेरिः