________________ (35) ___ अ. पा. सु. पृ. चाली / 1 / 4 / 62 / 59 चान्यतः पुमांष्टादौ स्वरे ची पादः वा बहुव्रीहे: वोऽभिनिविशः चाऽशसि वा युष्मदस्मदो-ममकम् बारे कृत्वस् वाः शेषे वाऽष्टन आः स्यादौ वाहपत्यादयः विकारे विचाले च विष्यस्यनन्येन विनयादिभ्यः विना ते तृतीया च विभक्तिसमीप-व्ययम् विरामे वा विरोधिनामद्रव्याणां-स्वैः विश्वस्तेडिति .. / 2 / 4 / 5 / 102 / 2 / 2 / 22 / 122 / 2 / 1 / 65 / 47 / / 3 / 67 / 185 / 7 / 2 / 109 / 230 / 1 / 4 / 82 / 15 / 1 / 4 / 52 / 63 / 1 / 3 / 18 / 33 / 6 / 2 / 30 / 179 / 7 / 2 / 105 / 229 / 7 / 1 / / 204 / 7 / 2 / 169 / 335 / 2 / 2 / 115 / 121 / 3 / 1 / 39 / 130 / 3 / 1 / 130 / 159 / / 4 / .67 / 201