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________________ [3] अपूर्व साधन छे. दरेक दर्शननी समालोचना पण वणी सरस युक्तिपूर्वक करवामां आवेली होवाथी दरेक विद्वान् नुं मन ते जोवा उत्कंठित थाय छे. तेनी उपर घणा विद्वानोना उच्च अभिप्रायो पण आवी गया छे. नकलो थोडी छे अने मागणी घणी छे. व्हेलो ते पहेलो. पृष्ट 315 ग्रंथ जोतां किमत घणी ज थोडी छे.. भूल्य रू. 1) . 5 द्रव्यप्रदीप गुजरातीमां षड् द्रव्यनुं स्वरूप न्यायशैलीथी युक्तिपूर्वक जाणवा माटे जैनोमां आ एक अपूर्व साधनरूप छे. ग्रंथ नानो होवा छतां पण विषयो गंभीर होवाथी घणी सरल भाषामां निरूपण करवामां आव्युं छे. पृ. 64 मूल्य रू. / 6 धर्मप्रदीप . गुजरातीमां .. भिन्न विषयो पर द्रव्यानुयोगने लक्ष्यमा राखी पद्यमां चोवीश तीर्थकरीनां स्तवनो आपवामां आव्यां छे. तेमां खास परमपूज्य आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजीकृत स्तवनोनो पण समावेश छे. साथ साथ तेओश्रीनी अष्टप्रकारी पजा पण आपवामां आवी छे. पृष्ट 96. मूल्य रू. 0 7 तत्त्वाख्यान (उत्तरार्ध) गुजरातीमा आमां वेदांत, मीमांसा अने जैनदर्शन आ वणर्नु घणा विस्तारपूर्वक विवेचन छे. साडाछसो पृष्ट मू. रू.४ 8 धर्मदीपिका (व्याकरण) संस्कृतमां नवीन पद्धतिथी लखायेल व्याकरण शास्त्रनो आ एक
SR No.004395
Book TitleDharmdipika Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1925
Total Pages828
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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