________________ नोपसर्गात् क्रुद्रुहा नोपान्त्यवतः . नोऽप्रशानोऽनुस्वारा-परे नः शि ञ्च न्यायादेरिकण् न्यायार्थादनपेते न्स्महतोः ((25) - अ. पा. सू. पृ. / 2 / 2 / 28 / 127 / 2 / 4 / 13 / 103 / 1 / 3 / 8 / 16 / 1 / 3 / 19 / 15 / 6 / 2 / 118 / 181 / 7 / 1 / 13 / 205 / 1 / 4 / 86 / 73 पक्षिमत्स्यमृगार्थाद् नति / 6 / 4 / 31 / 194 पञ्चको वर्गः / 1 / 1 / 12 / 3 पञ्चतोऽन्याहेर-दः / / 1 / 4 / 58 / 49 पञ्चमी भयाद्यैः .. / 3 / 1 / 73 / 135 पञ्चम्यपादाने / 2 / 2 / 69 / 119 पञ्चसर्वविश्वाज्जनात् कर्मधारये / 7 / 1 / 41 / 206 पतिरानान्तगुणा-कर्मणि च / 7 / 1 / 60 / 209 पतिवन्यन्तर्वत्न्यौ –ण्योः / 2 / 4 / 53 / 108 पयिन्मथिनृभुक्षः सौ. / 1 / 4 / 76 / 61 पदक्रमशिक्षामीमांसासाम्नोऽकः। 6 / 2 / 126 / 181 पदस्य . / 2 / 1 / 89 / 66