________________ (414) वादा अनन्तरान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान् // 26 // मध्येऽभवादाः पूर्वान् विधीन् बाधन्ते नोत्तरान् // 27 // बलवन्नित्यमनित्यात् // 28 // उपपदविभक्तेः कारकविभक्तिः // 29 // लुबन्तरङ्गेभ्यः // 30 // सर्वेभ्यो लोपः // 31 // नित्यादन्तरङ्गम् / / 32 // उत्सर्गादपवादः // 33 / / अपवादात् क्वचिदुत्सगोंऽपि // 34 // नानिष्टार्था शास्त्रप्रवृत्तिः // 35 // प्रकृतिग्रहणे स्वार्थिकप्रत्ययान्तानामपि ग्रहणम् // 26 // प्रत्ययाप्रत्ययोः प्रत्ययस्यैव / / 37 // वर्णग्रहणे जातिग्रहणम् // 38 // वर्णै कदशोऽपि वर्णग्रहणेन गृह्यते // 39 // तन्मध्यपतितस्तद्ग्रहणेन गृह्यते // 40 // आगमा यद्गुणीभूतास्तद्ग्रहणेन गृह्यन्ते // 41 // स्वाङ्गमव्यवधायि // 42 // उपसर्गो न व्यवधायी // 43 // ऋकारापदिष्टं कार्य लकारस्यापि / / 4 4 // सकारापदिष्टं कार्य तदादेशस्य शकारस्यापि // 45 // हस्वदीर्घापदिष्टं कार्य न प्लुतस्य // 46 // श्रुतानुमितयोः श्रौतो विधिबलीयान् // 47 / / अन्तरङ्गानपि विधीन् यवादेशो बाधते // 48 // पूर्व पूर्वोत्तरपदयोः कार्य कार्य पश्चात् सन्धिकार्यम् !! 49 // सापेक्षमसमर्थम् // 50 // णौ यत्कृतं कार्य तत्सर्व स्थानिवद् भवति // 51 // आत्मनेपदमनित्यम् / / 52 // अनित्यो णिच्चुरादीनाम् // 53|| णिलोपोऽप्यनित्यः // 54 // णिच्सन्नियोगे एष चुरादीनामदन्तता // 55 // धातवोऽनेकार्थाः // 56 // गत्यर्था ज्ञानार्थाः // 57 // उणादयो अव्युत्पन्नानि नामानि // 18 // येन धातुना युक्ताः प्रादयस्तं प्रत्येवोपसर्गसंज्ञा