________________ (415) // 19 // सम्भवे व्यभिचारे च विशेषणमर्थवत् // 10 // सर्व वाक्यं सावधारणम् // 11 // द्वौ नौ प्रकृतमर्थ गमयतः // 12 // व्याख्यातो विशेषार्थप्रतिपत्तिः // 63 // शित् स्वस्य // 64 // षष्ठ्या निर्दिष्टस्य तदन्तस्यैव ग्रहणम् // 65 // तपरः तत्कालस्य // 66 // मप्तम्या निर्दिष्टस्य तदव्यवहितपूर्वस्य / / 67 // पञ्चम्याः परस्य // 68 // सकृदुच्चारितशब्दः सकृदेवार्थ गमयति // 69 // निर्दिश्यमानस्यैवादेशा भवन्ति // 70 // कृद्ग्रहणे गतिकारकपूर्वस्यापि ग्रहणम् // 71 // सूत्रे लिङ्गवचनमतन्त्रम् // 72 // प्रकृतिवदनुकरणम् // 73 // तिवा शवाऽनुबन्धेन निर्दिष्टं यद् गणेन च / एकस्वरनिमित्तं च पञ्चैतानि न यङ्लुपि // 74 // समासतद्धितानां वृत्तिर्विकल्पेन वृत्तिविषये च नित्यैवापवादवृत्तिः // 75 // द्विद्धं सुबद्धं भवति // 76 // क्विवन्ता धातुत्वं नोन्झन्ति शब्दत्वं चं प्रतिपद्यन्ते / / 77 // नामग्रहणे प्रायेणोपसर्गस्य न ग्रहणम् // 78 // सामान्यातिदेशे विशेषस्य नातिदेशः // 79 // प्रत्ययलोपेऽपि प्रत्ययलक्षणं कार्य विज्ञायते // 8 // न्यायाः स्थविरयष्टिप्रायाः // 81 / /