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छक्खंडागम
__ भावबन्धके दो भेद हैं- आगमभावबन्ध और नोआगमभावबन्ध । बन्धशास्त्रविषय स्थित, जित आदि नौ प्रकारके आगममें वाचना, पृच्छना आदिरूप जो उपयुक्त भाव होता है, उसे आगमभावबन्ध कहते हैं। नो आगमभावबन्ध दो प्रकारका है- जीवभावबन्ध और अजीवभावबन्ध । जीवभावबन्धके तीन भेद हैं- विपाकज जीवभावबन्ध, अविपाकज जीवभावबन्ध और तदुभयरूप जीवभावबन्ध । जीवविपाकी अपने अपने कर्मके उदयसे देवभाव, मनुष्यभाव, तिर्यग्भाव, नारकभाव, स्त्रीवेदभाव, पुरुषवेदभाव, क्रोधभाव आदिरूप जो भाव उत्पन्न होते हैं, वे सब विपाकज जीवभावबन्ध हैं । अविपाकज जीवभावबन्धके दो भेद हैं- औपशमिक और क्षायिक । उपशान्त क्रोध, उपशान्त मान आदि भाव औपशमिक अविपाकज जीवभावबन्ध कहलाते हैं। क्षीणमोह, क्षीणमान आदि क्षायिक अविपाकज जीवभावबन्ध कहलाते हैं । एकेन्द्रियलब्धि आदि क्षायोपशमिकभाव तदुभयरूप जीवभावबन्ध कहलाते हैं। अजीवभावबन्ध भी विपाकज, अविपाकज और तदुभयके भेदसे तीन प्रकारका है। पुद्गलविपाकी कर्मोके उदयसे शरीरमें जो वर्णादि उत्पन्न होते हैं, वे विपाकज अजीवभावबन्ध कहलाते हैं। पुद्गलके विविध स्कन्धोंमें जो खाभाविक वर्णादि होते हैं, वे अविपाकज अजीवभावबन्ध कहलाते हैं। दोनों प्रकारके मिले हुए वर्णादिक तदुभयरूप अजीवभावबन्ध कहलाते हैं।
बन्धके उपर्युक्त भेदोंमेंसे यहांपर नोआगमद्रव्यबन्धके कर्म और नोकर्मबन्धसे प्रयोजन है।
२ बन्धक कर्मके बन्ध करनेवाले जीवको बन्धक कहते हैं। बन्धक जीवोंकी प्ररूपणा आ० भूतबलिने खुद्दाबन्ध नामके दूसरे खण्डमें विस्तारसे की गई है, वह सब इसी अनुयोगद्वारके अन्तर्गत जानना चाहिए।
३ बन्धनीय ___ जीवसे पृथग्भूत किन्तु बन्धनेके योग्य जो पौद्गलिक कर्म - नोकर्मस्कन्ध हैं, उनकी 'बन्धनीय ' संज्ञा है। ये बंधे हुए कर्म -- नोकर्मरूप पुद्गलस्कन्ध द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुसार वेदनयोग्य होते हैं। सभी पुद्गलस्कन्ध वेदनयोग्य नहीं होते; किन्तु तेईस प्रकारकी पुद्गलवर्गणाओंमें जो ग्रहणप्रायोग्य वर्गणाएं हैं, वे जब आत्माके योग-द्वारा आकृष्ट होकर कर्म और नोकर्मरूपसे परिणत होकर आत्माके साथ बन्धको प्राप्त होती हैं, तभी वेदनयोग्य होती है।
आ० भूतबलिने इस ‘बन्धनीय ' का अनेक अनुयोगद्वारों और उनके अवान्तर अधिकारों द्वारा विस्तारसे वर्णन किया है, जिसका अनुभव तो पाठक मूलग्रन्थका स्वाध्याय करके ही कर सकेंगे । यहां वर्गणासम्बन्धी कुछ खास जानकारी दी जाती है ।
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