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प्रयोग-सम्पदा
किसी विषय पर प्रतिवादी के साथ वाद या विचार करना यहां प्रयोग शब्द से अभिहित किया गया है । वाद सम्बन्धी विशेष पटुता या कुशलता का नाम प्रयोग-सम्पदा है । उसके निम्नलिखित चार' भेद हैं
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१. अपने आपको जान कर वाद का प्रयोग करना । २. परिषद् को जान कर वाद का प्रयोग करना । ३. क्षेत्र को जान कर वाद का प्रयोग करना । ४. वस्तु को जान कर वाद का प्रयोग करना ।
१. आत्म-ज्ञानपूर्वक वाद का प्रयोग - वादार्थ उद्यत व्यक्ति के लिए यह श्रावश्यक है कि पहले वह अपनी शक्ति, क्षमता, प्रमाण, नय आदि के सम्बन्ध में rat योग्यता को प्रां । यह भी देखे कि प्रतिवादी की तुलना में उसकी कैसी स्थिति है । वह तत्पश्चात् वाद में प्रवृत्त हो। ऐसा न होने पर प्रतिकूल परिणाम श्राने की प्राशंका हो सकती है। अतः प्राचार्य में इस प्रकार की विशेषता का होना आवश्यक है । यों सोच-विचार कर, अपनी क्षमता को प्रांक कर बुद्धिमत्तापूर्वक वाद में प्रवृत्त होना पहले प्रकार की प्रयोग-सम्पदा है ।
२. परिषद्-ज्ञान पूर्वक वाद-प्रयोग - जिस परिषद् के बीच वाद होने को है, कुशल वादी को चाहिए कि वह उस परिषद् के सम्बन्ध में पहले से ही जानकारी प्राप्त करे कि वह ( परिषद्) गम्भीर वत्त्वों को समझती है या नहीं। यह भी जाने कि परिषद की रुचि. वादी के अपने धार्मिक सिद्धान्तों में है या प्रतिवादी के सिद्धान्तों में । केवल तर्क और युक्ति-बल द्वारा ही प्रतिवादी पर सम्पूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती। जिन लोगों के बीच वाद प्रवृत्त होता है, उनका मानसिक झुकाव भी उसमें काम करता है । प्रतएव सफलता या प्रतिबादी पर विजय चाहने वाले वादी के लिए यह प्रावश्यक है कि पदिषद् की अनुकूलता और प्रतिकूलता को दृष्टि में रखें। इस ओर सोचे-विचारे बिना वाद में प्रवृत्त न हो । प्राचार्य में इस प्रकार की विशेष समझ के साथ वाद में प्रवृत्त होने की सहज विशेषता होनी चाहिये ।
३. क्षेत्र-ज्ञानपूर्वक वादप्रयोग - जिस क्षेत्र में वाद होने को है, वह कैसा है, वहां के लोग दुर्लभ बोधि हैं या सुलभ बोधि, वहां का शासक विज्ञ है या प्रश अनुकूल है या प्रतिकूल - इत्यादि बातों को भी ध्यान में रखना वादी के लिए श्रावययक है । यदि लोग सुलभ बोधि, शासक विज्ञ तथा अनुकूल हों तो विद्वान् वादी को सफलता और गौरव मिलता है । क्षेत्र की स्थिति इसके प्रतिकूल हो तो वादी प्रत्यन्त योग्य होते हुए भी सफल बन सके, यह कठिन है । आचार्य में क्षेत्र को परखने की अपनी विशेषता होती है ।
• दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र, अध्ययन ४, सूत्र
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