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- सूत्रस्थान-अ०५. सफेद सुर्मा शुद्धतापूर्वक बनाया हुआ नित्यप्रति दोनों नेत्रोंमें डालना नेत्रोंको हितकारी है।और पांचवीं या आठवीं रोत्रीमें आंखोंसे जल निकालनेके लिये रसोत डालना चाहिये ॥ ८॥
_ दिनमें लेखन अंजनका निषेध। . नहिनेत्रामयंतस्यविशेषाच्श्लेष्मतोभयम् । दिवातन्नप्रयाक्तव्यंनेत्रयोस्तीक्ष्णमञ्जनम् ॥ ९ ॥ विरेकदुर्बलादृष्टिरादित्यं । • प्राप्यसीदति । तस्मात्स्राव्यंनिशायान्तुध्रुवमञ्जनमिष्यते ॥ .॥ १० ॥ ततःश्लेष्महरंकर्महितंदृष्टेःप्रसादनम् ॥ ११ ॥
ऐसा करनेसे मनुष्यको नेत्ररोगका आंखों में नजला आनेका भय नहीं होतानिनों को स्रावित करनेवाला तीक्ष्ण अंजन दिनमें नहीं डालना चाहिये क्योंकि नेत्रोंकाजल निकलकर निर्मल नेत्रों में सूर्यका प्रकाश लगनेसे दृष्टि कमजोर पडजातीहै। इसलिये जल निकालनेवाला अंजने रात्रीको ही डालना चाहिये।और इसी कारणसे कफको नष्ट करनेवाला तीक्ष्ण अंजन रात्रिमें डालना नेत्रोंकी ज्योतिको प्रसन्न रखता: है॥९॥ १० ॥११॥
. . . अननके गुण । यथाहिकणकादीनांमलिनांविविधात्मनाम् । धौतानांनिर्मलाशुद्धिस्तैलचेलकचादिभिः ॥१२॥ एवंनेत्रेषुमत्यानामञ्जनाश्च्योतनादिभिः । दृष्टिनिराकुलाभातिनिर्मलेनभसीन्दुवत् ॥ १३ ॥ . जैसे सुवणादि धातु तेल कपडा बाल आदिके संयोगसे धुलकर स्वच्छ होजातेहैं ऐसे ही मनुष्योंके नेत्र अंजन और आश्योतन आदि कर्मसे स्वच्छ होकर जैसे निर्मल आकाशमें चन्द्रमा प्रकाशमान होताहै ऐसे निर्मल प्रकाशमान नेत्र रहतेहैं।॥१२॥१३॥
नजलानाशक धूमपान । हरेणुकांप्रियंगुञ्चपृथ्वीकांकेशरंनखम् । ह्रीवेरचन्दनपत्रंत्वगेलोशारपद्मकम् ॥ १४ ॥ध्यामकंमधुकंमांसीगुग्गुल्वगुरुशर्करम् । न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्नक्षलोधत्वचःशुभाः ॥ १५ ॥ वन्यस्वर्जरसंमुस्तंशैलेयकमलोत्पले । श्रीवेष्टकंशल्लकीञ्चशुक:
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