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सूत्रस्थान-अ० २१. (२४१) स्थौल्यकाश्येवरंकायंसमोपकरणौहितौ ।
याभोव्याधिरागच्छेत्स्थूलमेवातिपीडयेत् ॥ १७ ॥ अधिक स्थूल और अधिक कृश इन दोनोंमें स्थूलकी अपेक्षा कृश फिर भी अच्छा माना जाता है क्योंकि दोनों के उपकरण समान होनेपर भीस्थूल मनुष्यको रोगग्रस्त होनेपर अधिक कष्ट सहना पडताहै ॥ १७ ॥
समके लक्षण। सममांसप्रमाणस्तुसमसंहननोनरः ।दृढेन्द्रियत्वायाधीनांन बलेनाभिभूयते ॥ १८॥ क्षुत्पिपासातपसह शीतव्यायामसं
सहः । समपक्तासमजरःसममांसचयोमतः ॥ १९॥ - जिस मनुष्यके शरीरमें मांसका परिमाण ठीक होताहै और देह सुडौल और सौम्प होताहै उसके सव इंद्रिय दृढ और बलवान् रहतेहैं । इसीलिये व्याधि उस मनुष्य पर अपना बल नहीं पासकती ॥ १८॥ वह सुडौल शरीरवाला मनुष्य क्षुधा. प्यासं, धूप तथा सर्दी और परिश्रम सह सकताहै । एवं उसकी पाचनशक्तिः विषम नहीं होती उसे छोटी उमरमें बुढापा भी नहीं आता,ऐसा मनुष्य सम और उत्तम कहा जाताहै, इस मनुष्यको अतिकृशता और अति स्थूलता नहीं होती ॥ १९ ॥
• अतिस्थूल और अंतिकृशका चिकित्साक्रम । गुरुचातर्पणंचेष्टंस्थूलानाकर्षणप्रति ।
कृशानांबृहणार्थचलघुसन्तर्पणञ्चयत् ॥ २०॥ स्थूल मनुष्यको याद कृश करनाहो तो कठोर और लंघन द्रव्य सेवन करानचाहिये । एवं कृशको पुष्ट करनेके लिये लघुसंतर्पण द्रव्य सेवन करना चाहिये ॥२०॥
स्थूलव्यक्तिकी चिकित्सा। वातघ्नान्यन्नपानानिश्लेष्ममेदोहराणिचा रूक्षोष्णावस्तयस्तीक्ष्णारूक्षाण्युद्वर्तनानिच॥२१॥गुड़चीभद्रमुस्तानांप्रयोगस्त्रफलस्तथा । तकरिष्टप्रयोगस्तुप्रयोगोमाक्षिकस्थच ॥२२॥ विडङ्गनागरक्षारःकाललोहरजोमधु।यवामलकचूर्णञ्चप्रयोगः श्रेष्ठउच्यते ॥ २३ ॥