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इन्द्रियस्थान-अ०७. (८४३) वर्णमाक्रामतिच्छायाभास्तुवर्णप्रकाशिनी।
आसन्नालक्ष्यतेछायाभाःप्रकृष्टाप्रकाशते ॥ १४ ॥ छाया वर्णको छिपा लेतीहै अथवा यों कहिये कि वर्णरहित प्रतिबिम्बका छापा कहतेहैं ।और वर्ण प्रकाशयुक्त प्रतिविम्बको प्रभा कहतेहैं।छाया समीपके मनुष्यकी दिखाई देतीहै और प्रभा दूरके मनुष्यकी भी दिखाई देतीहै ॥ १४ ॥
नाच्छायोनाप्रभःकश्चिद्विशेषाञ्चिह्नयान्ततु ।
नृणांशुभाशुभोत्पत्तिकालेछायाःप्रभाश्रिताः ॥१५॥ किसी मनुष्यकी भी प्रभा और छाया विशेषरूपसे विकृत नहीं होती न कभी किसी मनुष्यको छायामें किसी प्रकारकी विशेषता देखने में आतीहै परन्तु जब किसी प्रकारका शुभ अथवा अशुभ होनेवाला होताहै तब ही छाया और प्रभामें किसीमकारके विशेष लक्षण दिखाई पड़तेहैं ॥ १५ ॥
कामलाक्ष्णोर्मुखपूर्णगण्डयोयुक्तमांसता ।
सन्त्रासश्चोष्णगात्रञ्चयस्यतंपरिवर्जयेत् ॥ १६ ॥ जिस रोगीके दोनों नेत्र कामलारोगसे पीले पडगयेहों, मुख बहुत भारी होगयाहो और दोनों कपोल मांससे फुले हुएसे होगये हों, अंगोंमें त्रास तथा उष्णता अधिक हो उस रोगीको त्याग देना चाहिये ॥ १६॥
उत्थाप्यमानःशयनात्प्रमोहंयातियोनरः।
मुहर्मुहुर्नसप्ताहंसजीवतिविकत्थनः॥ १७ ॥ जो मनुष्य शय्यासे उठाया हुआ झट बेहोश होजाय और वारम्बार इसीप्रकार हो तथा प्रलाप अर्थात् अंटसंट वकता हो वह मनुष्य सात दिनकी आयुवाला होताहै अर्थात् सातरोजमें मरजाताहै ॥ १७॥
संसृष्टाव्याधयोयस्यप्रतिलोमानुलोमगाः ।
व्यापन्नाग्रहणीप्रायःसोऽर्द्धमासंनजीवति ॥ १८॥ जिसके शरीरमें प्रतिलोमगामी अर्थात् उल्टी चलनेवाली और अनुलोमगामी अर्थात् सीधी चलनेवाली दोनों प्रकारकी व्याधयें आपसमें मिलजावें और जिसकी ग्रहणी दोषोंसे युक्त हो वह मनुष्य प्रायः पंद्रह दिनमें मरजाताहै ॥ १८॥
उपद्रुतस्यरोगेणकर्षितस्याल्पमश्नतः। बहुमूत्रपुरीषंस्थाद्यस्यतंपरिवर्जयेत् ॥ १९॥