Book Title: Charaka Samhita
Author(s): Ramprasad Vaidya
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 912
________________ . १८५४.) घरकसंहिता-मा० टी। र्वक सावधानीसे देखा करें । सब लक्षण एक ही मनुष्यों नहीं होसकतें इसाले अनेक मरणासन्न मनुष्योंमें सब प्रकारके लक्षणोंको सावधानीसे देखना चा . हिये ॥ २१ ॥ २२ ॥ इति श्रीमहर्षिचरक० इन्द्रि० स्था० भाषाटी० यस्यश्यावनिमित्तीयं नाम नवमोऽध्यायः ॥९॥ दशमोऽध्यायः। अथातः सद्योमरणीयमिन्द्रियंव्याख्यास्याम इतिहस्माहभग : वानात्रेयः। 'अब हम सद्योमरणीय इन्द्रियाध्यायकी व्याख्या करते हैं इसप्रकार भगवान आत्रेयजी कथन करनेलगे। सद्यस्तितिक्षतःप्राणानुलक्षणानिपृथक्पृथक् । अग्निवेश ! प्रवक्ष्यामिसंस्पृष्टोयैर्नजीवति ॥ १॥ हे अग्निवेश! जिन लक्षणोंके स्पर्शमात्रसे ही मनुष्यकी शीघ्र मृत्यु होजातीहै उन प्राणोंके नष्ट करनेवाले लक्षणोंको हम अलग २ वर्णन करतेहैं ॥ १॥ वाताष्ठीलाः सुसंवृत्तास्तिष्ठन्तिदारुणाहृदि । तृष्णयाभिपरीतस्यसद्योमुष्णातिजीवितम् ॥ २॥ ..जिस मनुष्यके शरीरमें वाताष्ठीला रोग बढकर. हृदयमें दारुणभावसे स्थित होजाय तथा उसको अधिक प्यास लगनेलगे तो वह रोगी शीघ्र मरजाताहै ॥२॥ पिण्डिकेशिथिलीकत्यजिह्मीकत्यचनासिकाम् । वायुःशरीरेविचरन्सद्योमुष्णातिजीवितम् ॥ ३॥ . जिस रोगीके शरीरमें वायु दोनों पिण्डलियोंको शिथिल करके नाकको टेंडा बनादेवे तथा शरीरमें विचरण करनेलगजाय वह रोगी शीघ्र मृत्युको प्राप्त होता; ध्रुवीयस्यच्युतेस्थानादन्तर्दाहश्चदारुणः। तस्यहिकाकरोरोगस्सयोमुष्णातिजीवितम् ॥ ४॥ __ . जिस रोगीकी दोनों भौहें अपने स्थानसे हटजांय शरीरमें अत्यंत दारुण अन्त हि हो और हिचकी मधिक आनेलगे वह रोगी शीघ्र मरजाताहैं ॥ ४॥ . पा

Loading...

Page Navigation
1 ... 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939