Book Title: Charaka Samhita
Author(s): Ramprasad Vaidya
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 920
________________ १८६९) चरकसंहिता-भाटी। अधीन है इसलिये रोगीका देह तथा आयुकी परीक्षा कर चिकित्सा प्रवृत्त होना चाहिये ॥ २६ ॥ तत्रश्लोकः। क्रियापथमतिकान्ता:केवलंदेहमाप्लुताः। चिह्रकुर्वतियघोषास्तदरिष्टंनिरुच्यते ॥ २७॥ इति चरकसंहितायामिन्द्रियस्थानेऽणुज्योतीयामंद्रियं समाप्तम्॥११॥ यके उपसंहारमें श्लोक है-क वातादि दोष क्रियामार्गसे अतिक्रान्त हों अथ द चिकित्सा डा. सिद्ध होनेवाले न रहकर केवल शरीरमें प्राप्त हाकरं जिन लक्षणोंको करते हैं उनको अरिष्ट कहते हैं । अर्थात् अवश्य मृत्यु करनेवाले लक्ष 'गोंको आरिष्ट कहते हैं ॥ २७ ॥ इति श्रीमहर्षिचरक० इन्द्रियस्थाने भा० टी० अप्पुज्योतीयमिन्द्रियं नामैकादशोऽध्यायः॥११॥ द्वादशोऽध्यायः। -CETRGINअथातो गोमयचूर्णीयमिन्द्रियं व्याख्यास्यामः इति हस्माह भगवानात्रेयः। ___ अब हम गोमयचूर्णीय नामक इन्द्रियाध्यायकी व्याख्या करते हैं इसप्रकार भगबान आत्रेयजी कथन करने लगे। यस्यगोमयचूणाभंचूर्णमूर्द्धनिजायते । सस्नेहेंभ्रश्यतेचैवमासान्तंतस्यजीवितम् ॥ १ ॥ जिस रोगांके मस्तकमें गोबरके चूर्णके समान (चूर्णसा) उत्पन्न होजाय तथा बह चूर्ण चिकनाई युक्त होकर झडे तो उस रोगीका जीवन एक महीनेके भीतर नष्ट होजाताहै ॥१॥ ...; निर्घर्षन्निवयःपादोच्युतांसःपरिधावति । . विकत्यानसलोकेऽस्मिश्चिरंवसातमानवः॥२॥ जिंस रोगीको अपने दोनों पांव आपसमें घिसतेहुएसे भागते प्रतीत होते हों और दोनों कन्धे या छातीके अंश ढीले पडकर गिरेहुएसे प्रतीत हों वह मनुष्य इस विकृतिसे मनुष्यलोकमें अधिक नहीं रह सकता ॥२॥

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