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(८६६) . चरकसंहिता-भा० टी०॥
याद वैद्य दूतसे रोगकि संबन्धमें बातचीत करतेहुए अशुभ शकुनोंको देखे तो उस दूतके साथमें नहीं जाना चाहिये ॥ १९ ॥ : यथाव्यसनिनंप्रेतंप्रेतालङ्कारमेववा।भिन्नंदग्धविनष्टंवातद्वादीनि . वचांसिवा ॥ २०॥ रसोवाकटुकस्तीबोगन्धोवाकौणपोमहान् । स्पोवाविपुलःक्रूरोयद्वान्यदशुभंभवेत् ॥ २१ ॥तत्पूर्वमभितो पाश्यवाक्यकालेथवा पुनः । दूतानांव्याहृतंश्रुत्वाधीरोमरणमा- : दिशेत् ॥ २२ ॥
जब दूत वैद्यके पास बुलानेके लिये आवे और वैद्यसे रोगीके संबंधमें कुछ वातः । चीत करना चाहे तो उसी समय वैद्यके समीप बात करनेसे प्रथमही किसी व्यसन अथवा प्रेतकी बात चलपड अथवा कटेहुए,जले हुए या किसी नष्ट हुएंके विषयकी बात चलपडे । अथवा कडुए और ततिरस तथा मुर्दैकी दुर्गंध या किसी दुष्ट और जर वस्तुका स्पर्श होजाय या अन्य किसी प्रकारका अशुभ हो अथवा कोई सर्प बिच्छू भादि क्रूर जानवर दिखाई दे जाये तो यह अशुभ शकुन दूतकै आनके समय या दूतसे बात चीत करनेसे प्रथम अथवा दूतसे बोलते समय वा दूतळी वात सुननेक अनन्तर हो जाय तो बुद्धिमान् रोगीके सरणको कथन करे अर्थात् ऐसी. अवस्थामें रोगीको मरनेवाला जानकर दूतके साथ न जावे ॥ २०॥ २१ ॥ २२॥
इतिदूताधिकारोऽयमुक्त कृत्लोमुमूर्षताम् ।
पथ्यातुरकुलानाञ्चवक्ष्याम्योत्पातिक पुलः ॥ २३ ॥ . इस प्रकार मरनेवाले रोगियों के विषयमें सम्पूर्णरूपसे दूताधिकार वर्णन करदिया गया है।अब मरनेवाले रोगीको देखनेके लिये जातेहुए मार्गमें होनेवाले तथा रोगीके घरमें होनेवाले अशुभ उत्पातोंका वर्णन करतेहैं ।। २३ ॥
. . अशुभशकुन । अवक्षुतमथोत्क्रुष्टस्खलनपतनंतथा। आक्रोशःसंप्रहारोवाप्रतिषेधोविगर्हणम्॥२४॥ वस्त्रोष्णीषोत्तरासङ्गछनोपानागाश्रयम् । व्यसनदर्शनञ्चापिमृतव्यसनिनंतथा ॥२५॥ . ' जब वैद्य रोगीको देखने के लिये चले तो रास्तमें सामनेसे छींक होना अथवा । अशुभ किलकारीका सुनना या पांवका स्खलन होना अथवा ठोकर खाकर गिर