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(८६४) चरकसंहिता-० टी०।
यदि दूत शिरके बालोंको छोडाये हुए, नंगशिर, अथवा नंगा हाथसे अपने मुखपर पवन करता हुआ, अपवित्र अवस्थामें वैद्यको बुलाने आवे तो उसको देखकर रोगी मरजावेगा ऐसा समझ लेवे ॥८॥
सुतेभिषजिये दूताश्छिन्दत्यपिचभिन्दति ।
आगच्छन्तिभिषक्तेषांनभरिमनुव्रजेत् ॥९॥ यदि वैद्यं सो रहा हो, अथवा कुछ काट रहा हो या कुछ छेदन कर रहा हो उस समय जो दूत वैद्यको बुलाने आवे तो उसके मालिककी चिकित्सा करने नहीं जाना चाहिये ।। ९॥
जुह्वत्यग्निंतथापिण्डपितृभ्योनिर्वपत्यपि।
वैद्यदूतायआयान्तितेनन्तिप्रजिघांसवः ॥ १०॥ . जब वैद्य अग्निमें हवन कररहाहो अथवा पितरोंके अर्पण श्राद्ध कररहाहो तों ऐसे समय यदि रोगीका दूत बुलाने आवे तो जानलेना चाहिये कि यह दूत - रोगीके प्राणोंका नाशक है ॥ १०॥ .
कथयत्यप्रशस्तानिाचिन्तयत्यथवापुनः ।
वैयेदूतामनुष्याणामागच्छन्तिमुमूर्षताम् ॥ ११ ॥ याद वैद्य किसी प्रकारकी अशुभ वातें कररहा हो अथवा किसी प्रकारकी वितामें मग्न हो तो उस समय जो किसी रोगीका दूत आवे तो वह दूत रोगीके, मृत्युका पूर्वरूप जानना ॥ ११ ॥
मृतदग्धविनष्टानिभजतिव्याहरत्यपि ।
अप्रशस्तानिचान्यानिवैद्यदूतामुमूर्षताम् ॥ १२ ॥ जब वैद्य किसी मरी अथवा जली या नष्ट हुई वस्तुके विषयमें शोचता हों अथवा उसी विषयमें कुछ कार्य करता हो या अन्य किसी निंदित कर्मकी बातचीत कररहा हो उस समय रोगीका दूत वैद्यको बुलाने आवे तो वह रोगीके मृत्युका कारण होताहै ॥ १२ ॥
क्किारसामान्यगुणेदेशकालेऽथवाभिषक् ।।
" दूतमभ्यागतंदृष्टानातुरंतमुपाचरेत् ॥ १३ ॥ · अथवा रोगके समान गुणवाले देश, कालमें अर्थात् जिस प्रकृतिका रोगी हाँ .. उस रोगको वढानेवालाही देश और काल हो तो ऐसे समयमें यदि रोगीका दूत