Book Title: Charaka Samhita
Author(s): Ramprasad Vaidya
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 921
________________ इन्द्रियस्थान-अ० १२.. (८६३) यस्यस्नातानुलिप्तस्यपूर्वशुष्यत्युरोभृशम् । .. आर्टेषुसर्वगात्रेषुसोऽर्द्धमासनजीवति ॥ ३॥ जिस मनुष्पके स्नान करनेपर अथवा चन्दनादि लेपन करनेपर सम्पूर्ण अंग गोले रहते हुए भी छाती झटपट सूखजाय वह मनुष्य पन्द्रह दिनके भीतरमें मृत्युको प्राप्त होता है ॥३॥ यमुद्दिश्यातुरवैद्यःसंवर्तयितुमौषधम् । यतमानोनशक्नोतिदुर्लभंतस्यजीवितम्॥४॥ जिस रोगीको योग्य वैद्योंसे अनेक प्रकार चिकित्सा कराई जानेपर भी औष पियें अपना कुछ गुम न करसकें उस मनुष्यका जीवन दुर्लभ ही जानना चाहिये४॥ विज्ञातंबहुशासिद्धविधिवच्चावचारितम् । नसिध्यत्यौषधंयस्यनास्तितस्यचिकित्सितम् ॥५॥ जिन औषधियोंका अनेक रोगियोंपर अनेक प्रकारसे अनुभव करचुके हैं और बह तत्काल फल दिखानेवाली हों उन औषधियोंसे योग्य वैद्य विधिपूर्वक अनेक प्रकारसे जिसकी चिकित्सा करे उनसे भी उसको किश्चित लाभ न पहुंचे तो उस रोगीकी चिकित्साही नहीं है ॥ ५॥ आहारमुपयुञ्जानोभिषजासूपकल्पितम्। . यःफलंतस्यनाप्नोतिदुर्लभंतस्यजीवितम् ॥६॥ जिस रोगीको वैद्यकशास्त्रके अनुसार विधिवत् पथ्य आहार दिया जावे और उस पथ्यका कुछ भी फल न होकर विपरीत गुण उत्पन्न होवे उस रोगीका जीवन दुर्लभ . जानना चाहिये ॥ ६ ॥ दूतपरीक्षा। दूताधिकारेवल्यामोलक्षणानिमुमूर्षताम् ।। यानिदृष्ट्राभिषक्प्राज्ञःप्रत्याख्येयादसंशयम् ॥७॥ . . अव दूतपरीक्षा वर्णन करते हैं। इस दूताधिकारमें मरनेवाले, रोगियोंके लक्षणोंको दूतको देखनेसेही जानकर रोगीको प्रत्याख्येय (चिकित्सा न करनेयोग्य) कह सकताहै ॥ ७॥ मुक्तकेशेऽथवानग्नेरुदत्यप्रयतेऽथवा । ... भिषगभ्यागतंदृष्ट्वादूतमरणमादिशेत् ॥ ८॥..

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