________________
. इन्द्रियस्थान-अ० १२. (८७५), और रोगी भी शुभगुणसंपन्न हो एवं धन, ऐश्वर्य, मुख इनसे संपन्न हो और जिस वस्तुकी उस जगह इच्छा की जाय वह सुखपूर्वक झट प्राप्त होसकती हो ऐसे स्थानमें वैद्य योग्य औषधियोंके द्वारा चिकित्सा करे तो शीघ्र सिद्धिको प्राप्त होता है ॥ ७८ ॥ ७९ ॥
गृहप्रासादशैलानांनागानांवृषभस्यच । हयानांपुरुषाणाञ्चस्वप्ने समधिरोहणम् ॥८०॥ सोमार्काग्निद्विजातीनांगवानृणांयशस्विनाम् । अर्णवानांप्रतरणवद्धिःसम्बाधनिःसृतिः ॥ ८१॥ ' . .
जो रोगी स्वममें घर, महल, पर्वत,हाथी, बैल, अथवा घोडेके ऊपर चढे तथा . चंद्रमा, सूर्य, अग्नि, ब्राह्मण और गौको देखे एवं यशस्वी पुरुषों से मिलाप करे, समुद्रको तैरकर पार हो किसी बडे भारी संकटमेंसे छूटे तो अवश्य आरोग्यताको प्राप्त होताहै ॥ ८० ॥ ८१॥ स्वप्नेदेवैःसपितृभिःप्रसन्नैश्चाभिभाषणम् । दर्शनंशुक्लवस्त्राणांइदस्यविमलस्यच ॥ ८२॥ मांसमत्स्यविषामध्यच्छत्रादर्शपारग्रहः । स्वप्नेसुमनसाश्चैवशुक्लानादर्शनंशुभम् ॥ ८३ ॥ एवं स्वममें देवता और पितरगणों को प्रसन्न देखना और प्रसन्नतापूर्वक भाषण सुनना, सफेद वस्त्रोंका देखना, निर्मल तालावका देखना, मांस, मछली, विष और अपवित्र वस्तुओंको, तथा छत्री और दर्पणको ग्रहण करना, सफेद फूलोको देखना यह स्वम रोगीके लिये शुभकारक होतेहैं ।। ८२ ॥ ८३ ॥
अश्वगोरथयानश्चयानंपूर्वोत्तरेणच । रोदनपतितोत्थानद्विषताञ्चावमर्दनम् ॥ ८४॥
- इसी प्रकार घोडा, गौ, और रथमें चढना तथा उनपर चढकर पूर्व या उत्तरको दिशामें जाना, रोना और शत्रुको जीतना यह सब स्वन शुभकारक होतेहैं ।।८४॥
रोगमुक्तलक्षण। सत्त्वलक्षणसंयोगाभक्तिवैद्यद्विजातिषु ।। साध्यत्वनचनिवेदस्तदारोग्यस्यलक्षणम् ॥ ८५ ॥