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इन्द्रियस्थान-अ० १२० (८७३) स्वाचारहृष्टमव्ययशस्यंशुक्लवाससम्।अमुण्डमजदंदूतंजातिवेशक्रियासमम् ॥६५॥ अनुष्ट्रखरयानस्थमसन्ध्यास्वग्रहेषुच । अदारुणेषुनक्षत्रेष्वनुग्रेषुध्रुवेषुच ॥ ६६ ॥ विनाचतुर्थीनवमींविनारिक्ताश्चतुर्दशीमामध्याह्नञ्चार्द्धरात्रञ्चभूकम्पराहुदर्शनम् ॥६७॥
यदि दूत शुद्ध आचारवाला,प्रसन्न, सर्वांगसम्पन्न, यशस्वी, श्वेत वस्त्रोंको धार'णकिये, न शिर मुंडा और न जटोंवाला, अपनी जातिके अनुकूल वेष और क्रियावाला हो तथा गधे,ऊँट आदि सवारियों पर न चढा हो,संध्याके समय अथवा क्रूरसमयमें न आया हो, खोटे नक्षत्रमें, उग्रनक्षत्रोंमें ध्रुवसंज्ञक नक्षत्रोंमें (ज्येष्ठा, मूल, आदि उग्रनक्षत्र एवं उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा आदि नक्षत्रोंके उदयमें) न आया हो तथा चतुर्थी नवमी, चतुर्दशी इन रिक्ता तिथियोंमें मध्यानके समय अथवा आधीरात्रिमें जब भूकम्प होरहा हो उस सयय तथा ग्रहणकालमें न आया हो तो वह दूत शुभ जानना ॥६५॥ ६६ ॥ ६ ॥
बिनादेशमशस्तञ्चशस्तोत्पातिकलक्षणम् । .
. दूतंप्रशस्तमव्यग्रनिर्दिशेदागतंभिषक् ॥६॥ • तथा वेसमय, निन्दितस्थानमें और निन्दित वस्तुओंको बिनाछए, उत्पातकें लक्षणोंके विना शुभ समयमें शुभदेशमें शुद्ध चित्तवाला दूत यदि वैद्यको बुलाने आवे तो उत्तम जानना चाहिये ॥ ६८ ॥ । दध्यक्षतद्विजातीनांवृषभाणांनृपस्यच । रत्नानांपूर्णकुम्भानांसि . तस्यतुरगस्यच ॥६९ ॥ सुरध्वजपताकानांफलानांयाचकस्यच । कन्यानांवर्द्धमानानांबद्धस्यैकपशोस्तथा॥ ७० ॥ पृथिव्याउछुतायाश्चवहःप्रज्वलितस्यच । मोदकानांसुमनसांशुक्लानांचन्दनस्थच ॥७॥मनोज्ञस्यानपानस्यपूर्णस्यशकटस्यच । नृभिधेन्वाः सवत्सायावडवाया:स्त्रियास्तथा ॥ ७२ ॥
रागार्क घरको जातेसमय वैद्यको दही, अक्षत, ब्राह्मण, बल, राजा, रत्न जल: . अरे घट, सफेद घोडा, आगे मिले अथवा इन्द्रधनुष, ध्वजा, पताका, हल,याचक, बढनेवाली कन्या, बंधाहुआ पशु, खुदीहुई भूमि,प्रज्वलित अमि, मोदक, सफेदफूल, • सफेद चंदन, मनोज्ञ अन्नपान और मनुष्योंसे भराहुआ शकट (छकडा ) बछडे;