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(५८) चरकसंहिका-भा० टी० - जिस मनुष्य के हाथकी दी हुई बलि काग, कुत्ते आद न खातेहों वह मनुष्य एक ___ वर्षके भीतरही परलोकमें प्राप्त हो प्रेतत्वके पिंडको ग्रहण करताहै ॥२॥
सप्तर्षीणांसमीपस्थांयोनपश्यत्यरुन्धतीम् ।
संवत्सरान्तेजन्तुःससम्पश्यतिमहत्तमः ॥३॥ जो मनुष्य सामने आये हुए सप्तऋषियों ( तुलालग्नमें उदय होनेवाले साततारों) को और अरुंधतीको नहीं देखसकता वह मनुष्य एक वर्षके भीतरही यमलोकका दर्शन करताहै ॥ ३॥
विकृत्याविनिमित्तयःशोभामुपचयंधनम् ।
प्राप्नोत्यतोवाविभ्रंशसमान्तनसजीवति ॥४॥ __ जिस मनुष्यके शोभा, स्वभाव, पुष्टि, धन, विना ही कारणसे एकाएक अपने
स्वभावको छोडकर बदलजायँ अर्थात् विकृत होजाय वह मनुष्य एक वर्षके भीतर मृत्युको प्राप्त होजाताहै ॥४॥
भाक्तःशीलस्मृतिस्त्यागोबुद्धिर्बलमहेतुकम् । .
षडेतानिनिवर्तन्तेषद्धिासमरिष्यतः ॥ ५॥ जिस मनुष्यके भक्ति, शील ( स्वभाव ), स्मृति, त्याग, बुद्धि और बल यह विनाही कारणसे बदल जाय उस मनुष्यकी छ: महीनेके भीतर मृत्यु होतीहै ॥५॥
धमनीनामपूर्वाणांजालमत्यर्थशोभनम् ।
ललाटेदृश्यतेयस्यषण्मासान्नसजीवति ॥६॥ ' जिस मनुष्यके ललाटपर अपूर्व और सुन्दर नसोंका जाल दिखाई देने लगता है वह मनुष्य छः महीने में मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ ६ ॥
लेखाभिश्चन्द्रवक्राभिर्ललाटमुपचीयते ।
यस्यतस्यायुषः षड्भिर्मासैरन्तसमादिशेत् ॥ ७॥ - जिस नुष्यक मस्तक में चन्द्रमाके समान एक ऊंची रेखासी उठ खही हो वह मनुष्य छः महीने में मरजाताहै ॥ ७॥ .. . ... शरीरकम्पःसंमोहोगतिर्वचनमेवच । : . . . मत्तस्यैवोपलक्ष्यन्तेयस्यमासंनजीवति ॥८॥
जिस मनुष्यका शरीर कांपने लगजाय और बेहोशी उत्पन्न होजाय तथा चलने और बोलनेकी गति.विगडजाय वह मनुष्य एक महीने में मृत्युको प्राप्त होताहै ICH