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इन्द्रियस्थान-अ० ११. (८५७) तृष्णाश्वासशिरोरोगमोहर्दोबल्यकूजनैः।
स्पृष्टःप्राणामहात्याशुशकद्भेदेनचातुरः ॥ १७॥ याद दुर्बल रोगीको प्यास, श्वास, शिरोरोग, मोह, क्षणिता, कण्ठका कूजन एक साथ होजायँ तथा दस्त लगनेलगे वह रोगी शीघ्र अपने प्राणोंको त्याग देताहै ॥ १७॥
तत्रश्लोकः । एतानिखलुलिङ्गानियःसम्यगवबुध्यते।
सजीवितश्चमयानांमरणश्चावबुध्यते ॥ १८ ॥ इति चरकसंहितायामिन्द्रिय० सद्योमरणीयमिंद्रियं समाप्तम् ॥१०॥ ' यहां अध्यायके उपसंहारमें एक श्लोक है । जो वैद्य इन संपूर्ण लक्षणोंको भले प्रकार जानताहै वह मनुष्योंके जीवन और मरणको भी अच्छीतरह जानलेताहै १८ इति श्रीमहापंचरक० इंद्रियस्थाने भाल्टी० सद्योमरणीयमिन्द्रियं नाम दशमोऽध्यायः ॥१०॥
एकादशोऽध्यायः।
अथातोऽणुज्योतीयमिन्द्रिय व्याख्यास्याम इति हस्माह भग
वानात्रेयः। : अब हम अणुज्योतीय इन्द्रियनामक अध्यायकी व्याख्या करतेहैं इसमकार मंगवान् आत्रेयजी कहनेलगे।
अणुज्योतिरनेकाग्रोदुश्छायोदुर्मनाःसदा ।
रतिनलभतेयातिपरलोकंसमान्तरे ॥१॥ .. " जिस मनुष्यकी ज्योति (कान्ति)क्षीण होजाय, चित्तमें अनेक प्रकारके संकल्प
विकल्प उत्पन्न हों, शरीरकी छाया हीन लक्षावाला होजाय, मन खिन्नसा रहे, किसी समय किसी वस्तुमें भी प्रीति न हो वह मनुष्य एक वर्ष के भीतर परलोककी यात्रा करताहै ॥ १॥
बलिंबलिभुजोयस्यप्रणीतनोपभुञ्जते । लोकान्तरगतःपिण्डंभुङ्क्तेसंवत्सरेणसः॥२॥