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इन्द्रवस्थान - अ० ११.
रेतोमूत्रपुरीषाणियस्यमज्जन्तिचाम्भसि । समासात्स्वजनद्वेष्टामृत्युवारिणिमज्जति ॥ ९ ॥
जिस मनुष्यका वीर्य, मूत्र और मल जल में डूबजाता है और अपने मित्रों को भी द्वेषभावसे देखने लगता है वह मनुष्य एक महीने में मृत्युको प्राप्त होजाता है ॥ ९ ॥ हस्तपादमुखञ्चो भौविशेषाद्यस्यशुष्यतः ।
शूयेतेवाविना देहात्सचमासंनजीवति ॥ १० ॥
जिस मनुष्यके हाथ, पांव, मुख, यह विशेषकर सुखजायँ अथवा इनमें सूजन उत्पन्न होजाय परन्तु वह सूजन और देहमें न हो वह मनुष्य एक महीने में मृत्युकों प्राप्त होजाता है ॥ १० ॥
ललाटे मूर्ध्निबस्तौवानीलायस्य प्रकाशते । राजीवालेन्दुकुटिलानसजीवितुमर्हति ॥ ११ ॥
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जिस मनुष्यके ललाट और मूर्धा (शिर) तथा वस्ति में बालचंद्रमाके समान नीले रंग की और टेढी रेखा उत्पन्न होजाय वह मनुष्य अवश्य मृत्युको प्राप्त. ॥ ११ ॥
प्रवालगुटिकाभासायस्यगात्रमसूरिकाः ।
उत्पाद्याशुविनश्यन्तिनचिरात्सविनश्यति ॥ १२ ॥
जिस मनुष्य के शरीर में मूंगे के वर्णवाली गोल मसूरिका ( शीतल, ) बहुतसी, निकल आयें और वह जल्दी सूखें नहीं तो वह रोगी अवश्य मृत्युको प्राप्त होता है ॥ १२ ॥
ग्रीवावमदबलवाजिह्वाश्वयथुरेवच ।
ब्रघ्नास्यगलपाकश्चयस्यपक्कंतमादिशेत् ॥ १३ ॥ .
जिस मनुष्यकी गर्दनमें अत्यंत पीडा होती हो तथा जीभ सूजजाय, बचें निकल आवें गला पकजाय वह मनुष्य अवश्यही शरीर के अंतको प्राप्त होता है ॥ १३ ॥ संभ्रमोऽतिप्रलापोऽतिभेदोऽस्थनामतिदारुणः । कालपाशपरीतस्यत्रयमेतत्प्रवर्तते ॥ १४ ॥ :
जो रोगी कालरूपी टना यह तीनोंही अति
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से बंधजाता है उसको भ्रम, प्रलाप, और हड्डियों का
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रुणरूपसे प्रगट होजाते हैं ॥ १४ ॥