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चरकसंहिता - भा० टी० ।
- पंचभूतात्मक छायाका लक्षण । खादीनां पञ्चपञ्चानांछायाविविधलक्षणाः । नाभसीनिर्मलानीलासस्नेहासप्रभेवच ॥ ८ ॥
आकाशादि पांच महाभूतोंकी अनेक प्रकारके लक्षणोंवाली छाया होती है उनमें नीलवणकी और निर्मल तथा चिकनी और कांतियुक्त छाया आकाशीय होती है ८ ॥
रूक्षाश्यावारुणायातुवायवीसाहतप्रभा ।
विशुद्ध रक्तात्वाशेवीदीनाभादर्शनप्रिया ॥ ९ ॥
रूक्ष, काली, लाल, प्रभारहित छाया वायवीय होती है । विशुद्ध, लालवर्णकी, कांतियुक्त, देखने में मिय इन लक्षणोंवाली अनेयी छाया होती है ॥ ९ ॥ शुद्धवैदूर्य्यविमलासुस्निग्धाचाभ्भसीमता स्थिरास्निग्धाघनाश्लक्ष्णाश्यामा श्वेताच पार्थिवी ॥ १० ॥
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स्वच्छ; वैदूर्यमणिके समान निर्मल और चिकनी जलकी छाया होती है । स्थिर, चिकनी, घनी, श्लक्ष्ण, श्याम और श्वेत पार्थिवी छाया होती है ॥ १० ॥ वायवीगर्हितात्वासांचतस्रः स्युः शुभोदयाः ।
वायवीतु विनाशाय केशाय महतेऽपिवा ॥ ११ ॥
इन सब छायाओं में वायवीय छाया निन्दनीय होती है । और चार प्रकारकी छाया सुखदायक होती हैं । वायवीय छाया तो मृत्युको करनेवाली अथवा महाकष्ट देनेवाली होती है ॥ ११ ॥
तैजसी प्रभाका वर्णन |
स्यात्तैजसीप्रभासर्वासातुसप्तविधास्मृता ।
रक्तापीतासिताश्यावाहारिता पाण्डुराऽसिता ॥ १२ ॥
सब प्रकारकी प्रभा तैजसी होती है और उस प्रभाके सात भेद हैं । जैसे लाल पीली, सफेद, श्याम, हरित, पाण्डुर और काली ॥ १२ ॥
तासांयाः स्युर्विकासिन्यः स्निग्धाश्चविपुलाश्चयाः । ताः शुभारूक्षमलिनाः संक्षिप्ताश्चाशुभोदयाः ॥ १३ ॥
उनमें जो प्रभा विकाशवाली, चिकनी और विपुल होती है वह तीन प्रकारकी प्रभा शुभ होती है । और रूक्ष, मार्लेन, संक्षिप्त यह तीन प्रकारकी अशुभ होती है ॥ १३॥ .