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इन्द्रियस्थान-अ०८. ८४९) अपने हाथोंसे नाक कान आंख आदि छिद्रोंको मर्दन करे या छूता जाय उसको मरणासन्न जानना चाहिये ॥ १८॥
यविन्दतिपुराभावःसमेतैःपरमारतिम्।
तैरेवारममाणस्यग्लास्नोमरणमादिशेत् ॥ १९॥ जो भाव रोगीको अपनी रोगावस्थासे पहिले उत्तम प्रतीत होते हों, जो २ वस्तुएं अत्यन्त प्रिय हों वह सब जिस रोगीको दुरी और ग्लानिकारक प्रतीत हे नेलगे उसकी अवश्य मृत्यु होती है ॥ १९ ॥
नविभर्तिशिरोग्रीवांनपृष्ठंभारमात्मनः ।
नहनापिण्डमास्यस्थमातुरस्यमुमूर्षतः ॥ २० ॥ जिस रोगीकी गर्दन शिरके भारको न संभाल सके और पीठ शरीरके भारक न संभाल सके और ठोडी मुखके भारको न सँभालसके वह रोगी अश्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ २० ॥
सहसाज्वरसन्तापस्तृष्णामूच्छबिलक्षयः।
विश्लेषणञ्चसन्धीनांमुमूर्षोरुपजायते ॥ २१ ॥ जिस रोगीको एकाएकी ज्वर, संताप, प्यास, मूर्छा, वलकी क्षीणता, सांक- . योंका ढीला हो जाना यह सव लक्षण होजाय उसकी मृत्यु होतीहै ॥ २१ ॥ ___ गोसर्गेवदनाद्यस्यस्वेदःप्रच्यवतेभृशम् ।
लेपज्वरोपतप्तस्यदुर्लभंतस्यजीवितम् ॥ २२ ॥ जिस प्रलेपक ज्वरखाले रोगीके मुखसे प्रातःकाल गौओंको छोडनेके समय अत्यंत पसीना टपकने लगे और वह प्रलेषक ज्वरसे पीडित हो तो उसका जीता रहनों कठिन है ॥ २२ ॥
नोपैतिकण्ठमाहारोजिह्वाकण्ठमुपति च ।
आयुष्यन्तंगतेजन्तोर्बलञ्चपरिहीयते ॥ २३ ॥ जिस रोगीकी जीभ कण्ठमें चलींगई हो, बल क्षीण होगया हो और आहार. . कण्ठसे नीचे न जा सकताहो उस रोगीकी आयुको नष्ट जानना चाहिये ॥ २३ ।। . शिरोविक्षिपतेकृच्छान्मुश्चयित्वाप्रपाणिको। .
ललाटप्रस्तुतस्वेदोमुमूर्षुःइलथबन्धनः ॥ २४ ॥ जो रोगी बडी कठिनतासे अपने दोनों हाथोंको शिरके ऊपर रखकर शिरको