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इन्द्रियस्थान - ०९.
हरिताश्चशिरायस्य लोमक पाश्चसंवृताः । सोऽम्लाभिलाषीपुरुषः पित्तान्मरणमश्नुते ॥ ३ ॥
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जिस रोगी की सब नसें हरी हो गई हों और संपूर्ण रोममार्ग बंद होगये हों और खटाई खाने की इच्छा रखता हो वह मनुष्य पित्तरोगसे मृत्युको प्राप्त होता है ॥ ३ ॥ शरीरान्ताश्चशोभन्तेशरीरञ्चोपशुष्यति ।
बलञ्चहीयतेयस्यराजयक्ष्माहिनस्तितम् ॥ ४ ॥
जिस रोगी के शरीरके सब अंग शोभायुक्त प्रतीत हों और शरीर सुखा हो तथा उस मनुष्यका बल नष्ट होगया हो वह राजयक्ष्मावाला रोगी अवश्य मृत्युको प्राप्त होता है ॥ ४ ॥
अंसाभितापोहिक्काचछर्दनं शोणितस्यच ।
आनाहःपार्श्वशूलञ्चभवत्यन्तायशोषिणः ॥ ५ ॥
जिस शोषरोगी के दोनों पार्श्वभागों में शूल होता हो तथा अफारा, हिचकी, रुधिकी छर्दि और कंधों में पीडा होती हो वह अवश्य मृत्युको प्राप्त होता है ॥ ५ ॥ .: वातव्याधिरपस्मारी कुष्ठीशोफतिथोदरी । गुल्मीचमधुमेहीचराजयक्ष्मीचयोनरः ॥ ६ ॥ अचिकित्स्याभवन्त्येतेबलमांसक्षयसति । अन्येष्वपिविकारेषु तान्भिषक्परिवर्जयेत् ॥ ७ ॥
वातव्याधि, अपस्मार, कुष्ठ, सूजन, उदर, गुल्म, मधुमेह और राजयक्ष्मा इन रोगों से किसी एक रोगवालेका बल और मांस क्षीण होजायँ तो वह चिकित्सा के योग्य नहीं रहता। इसीप्रकार अन्य विकारोंमें भी वल और मांसके क्षीण होजाने प प्रायः रोग असाध्य होजाते हैं ॥ ६ ॥ ७ ॥
विरेचनहृताना हो यस्तृष्णानुगतोनरः ।
विरिक्तः पुनराधमांतियथाप्रेतस्तथैव सः ॥ ८ ॥
. जिस रोगीको विरेचन होनेके अनन्तर अफारा दूर होनेपर अधिक प्यास लगे अथवा विरेचन होनेके पीछे फिर अफारा उत्पन्न होजाय वह रोगी अवश्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ ८ ॥
पेयं पातु न शक्नोतिकण्ठस्यचमुखस्यच । उरसश्चविवद्धत्वापोनरोन सजीवति ॥ ९ ॥