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इन्द्रियस्थान - अ० ८.
( ८४७ )
जिस मनुष्यके बालों को खींचकर उखाड दियाजाय और वह उसके किसी प्रकारके दुःखको प्रतीत न करसके तो यदि वह रोगी हो तो तीन दिनमें और रोगरहित हो तो छः दिनमें मृत्युके वश होजाता है ॥ ६ ॥ यस्यकेशनिरभ्यङ्गादृश्यन्तेभ्यक्तसन्निभाः । उपरुद्धायुषंज्ञात्वा तंधीरः परिवर्जयेत् ॥ ७ ॥
जिस मनुष्य के केश बिनाही तेलके लगाये तेलसे भिगेहुए से प्रतीत हों तो उस रोगीको गतायु समझकर धीर वैद्य त्याग देवे ॥ ७ ॥ ग्लाय तो नासिकावंशः पृथुत्वंयस्यगच्छति ।
अशूनःशूनसङ्काशः प्रत्याख्येयः सजानता ॥ ८ ॥
जिस रोगी मनुष्यके नाकका वांस मोटा होजाय और सूजनके विनाही सुजा आसा दिखाई दे और वह पुराना रोगी तथा कृश शरीर हो तो उसको मरनेवाला जानना चाहिये ॥ ८॥
अत्यर्थंविवृतायस्ययस्यचात्यर्थसंवृता । जिह्वावापरिशुष्कावानासिकान सजीवति ॥ ९ ॥
जिस रोगी की जीभ अधिक बाहर निकल व्यावे अथवा अधिक भीतर चली जाय तथा नाका सूखजाय उस रोगीकी अवश्य मृत्यु होती है ॥ ९ ॥ मुखंशब्दस्त्रवावोष्ठौशुकुश्यावातिलोहितौ ।
विकृतौयस्यवानी लौन सरोगाद्विमुच्यते ॥ १० ॥
जिस मनुष्य के मुख से अवध्य शब्द निकलें अथवा मुख, कान, दोनों होठ यह काले या अत्यंत लाल, नीले एवं विकृत होजायँ वह रोगी मृत्युको प्राप्त होता है ॥ १० ॥
अस्थिश्वेताद्विजायस्य पुष्पिताः पङ्कसंवृताः । विकृत्यानसरोगतंविहायारोग्यमनुते ॥ ११ ॥
जिस रोगी के दांत विकृत होजायँ और श्वेत तथा फुलडीयुक्त, हड्डियोंके बुरादेंयुक्त एवं कीचडयुक्त हो जायँ वह मनुष्य कभी रोगों से मुक्त नहीं होता अर्थात् मस् जाता है ॥ ११ ॥
स्तब्धानिश्चेतना गुर्वी कण्टकोपचिताभृशम् । श्यावाशुष्काथवाशनाप्रेतजिह्वाविसर्पिणी ॥ १२ ॥