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चरकसंहिता-भा० टी०। जो रोग रोगोंसे असाहुआ हो,जिसका शरीर कृश होगया हो तथा भोजन बहुत ही थोडा करता हो और मल मूत्र बहुत अधिक आताहो उस रोगीको त्यागेदना चाहिये ॥ १९॥
दुर्बलोबहुभुक्तेयःप्राग्भुक्तादन्नमातुरः ।।
अल्पमूत्रपुरीषश्चयथाप्रेतस्तथैवसः ॥ २० ॥ जो रोगी दुर्बल हो और उस रोगग्रस्त दुर्वल अवस्थामें यदि रोगी पहिलेसे भी अर्थात् अपनी स्वस्थ अवस्थासे भी बहुत अधिक खानेलगे और मलमूत्र भी बहुत कम त्याग करे तो उसको प्रेत ( मरेहुए ) के समान जानना चाहिये ॥२०॥
वर्द्धिष्णुगुणसम्पन्नसन्नमनातियोनरः । .. शश्वञ्चबलवर्णाभ्यांहीयतेनसजीवति ॥ २१ ॥ नो मनुष्य पुष्टिकारक पदार्थोंको भोजन करताहुआ भी प्रतिदिन बल, वर्णते हीन होता चलाजाय वह मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ २१॥
प्रकूजतिप्रश्वसितिशिथिलञ्चातिसार्यते। .
बलहीनःपिपासाचःशुष्कास्यानलजीवति ॥ २२ ॥ जिस रोगीका कण्ठ गूजे और श्वास अधिक आरे,शरीर शिथिल होजाय तथा अतिसार हो, बलहीन हो, प्यास अधिक लगे, मुख सूखजाय वह मनुष्य अवश्य मृत्युको प्राप्त होताहै ॥ २२ ॥
ह्रस्वञ्चयःप्रश्वसितिव्याविद्धंस्पन्दतेचयः ।
मृतमेवतमात्रेयोव्याचचक्षेपुनर्वसुः ॥ २३ ॥ जिसका श्वास अत्यंत हीन होजाय और बिंधे हुएकी समान खडकने लगे भग. • यान पुनर्वसुजी कहतेहैं कि, उस मनुष्यको मराहुआही समझना चाहिये ॥ २३ ॥
ऊर्द्धश्चय-प्रश्वसितिश्लेष्मणाचाभिभूयते ।
हीनवर्णबलाहारोयोनरोनसजीवति ॥ २४ ॥ जिस मनुष्यका अर्द्धश्वास जल्दी जल्दी चले और कफ अधिक बोलनेलगे। - बल, वर्ण और आहार हीन होगयेहों वह मनुष्य मृत्युको प्राप्त होता है ॥ २४ ॥
उ नयनेयस्यमन्येचानतकम्पने। . बलहीनःपिपासचिःशुष्कास्योनसजीवति ॥ २५॥ जिस रोगीके नेत्रों के अग्रभाग ऊपरको होगये हों और ठोडीकी दोनों संघिय