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शारीरस्थान-अ० ७.
(७६१)" आदि पार्थिवअंग होतेहैं तथा गंध और घ्राणेन्द्रिय भी पार्थिव अर्थात् पृथ्वीके अंग हैं॥ १७॥ .
आप्पद्रव्योंके नाम । यद्रवसरमन्दस्निग्धमृदुपिच्छिलरसरुधिरवसाकफापत्तमत्रस्वेदादितदाप्यरसोरसनश्च ॥ १८ ॥ जो विशेषरूपसे द्रव, सर,मंद, स्निग्ध, मृदु, पिच्छिल, अवयव हैं तथा रस, रुधिर, वसा, कफ, पित्त, मूत्र स्वेद मादक जलके अंग हैं ।एवम् रस और रसना भी जलके अंग हैं ॥ १८॥
आग्नेयद्रव्योंके नाम। यत्पित्तमुष्माचयोयाचभाःशरीरेतत्सर्वमाग्नेयंरूपंदर्शनश्च॥१९॥ शरीरमें पित्त, उष्णता, प्रकाश, पाचनशक्ति, रूप और दर्शनेन्द्रिय यह सव आग्नेय अर्थात् अग्निक अंग हैं ॥ १९॥
वायवीय द्रव्योंक नाम । यदुच्छासप्रश्वासोन्मेषनिमेषाकुश्चनप्रसारणगमनप्रेरणधारणादितद्वायवीयंस्पर्शःस्पर्शनश्च ॥२०॥
उच्छ्वास,निःश्वास,प्राण,अपान, उन्मेष, निमेष,आकुश्चन,प्रसारण,गमन,प्रेरण, पारण और स्पर्श तथा स्पर्शनोन्द्रिय यह सब वायवीय अर्थात् पवनके अंग हैं२०॥
आन्तरिक्षद्रव्यों के नाम । — यद्विविक्तमुच्यतेमहान्तिचाणूनिचस्रोतांसितदान्तरिक्षंशब्दः ' श्रोत्रश्च ॥२१॥
शरीरके बडे छोटे सब छिद्र, स्रोत, शब्द और श्रोत्रइन्द्रिय यह सब आकाशंके अंग हैं ॥ २१॥
यत्प्रयाक्ततत्तत्प्रधानंबुद्धिमनश्चेतिशरीरावयवसंख्यायथास्थलभेदेनावयवानांनिर्दिष्टा ॥ २२ ॥ जो प्रयोग करनेवाला है उसको प्रयोक्ता कहतेहैं । मन और बुद्धि प्रयोक्ता हैं इसालये प्रधान हैं । इसप्रकार शरीरके अवयवोंकी संख्याका भेद, अवयवोंका स्थूल भेद वर्णन किया गयाहै ।। २२ ॥
शरीरावयवास्तुपरमाणुभेदेनापरिसंख्येयाभवन्त्यतिबहुत्वाद