Book Title: Charaka Samhita
Author(s): Ramprasad Vaidya
Publisher: Khemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai

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Page 880
________________ चरकसंहिता भा०टी० । मसद्भावःसन्धीनांस्त्रंसभ्रंशच्यवनानि । मांसशोणितयावतीभावः । दारुणत्वंस्वेदानुबन्धः स्तम्भोवायच्चान्यदपिकीचशविकृतमनिमित्तंस्यादितिलक्षणंस्पृश्यानां भावानाम् ॥ ३ ॥ ( ८२२ ) स्पर्श करनेवाले मनुष्यको स्पर्शद्वारा रोगीके यह भाव जानने चाहिये । जैसे- जा शरीर के अंग निरंतर फडकनेवाले हों उनका स्थिर होकर स्तंभ होजाना । जो अंग नित्य गरम रहने वाले हैं उनका शीत होजाना। जो नरम हों उनका कठिन होजाना । जो चिकने हों उनका खरदरे होजाना । जिनका जिस स्थानमें होना उचित हो उनका उसस्थानमें न रहना । संधियोंका ढीला पडजाना या विगडजाना तथा नष्ट हो - जाना। मांस और रक्तका देहसे हीन होजाना । शरीरका कठिन होजाना । पसीना अधिक आना अथवा बिल्कुल न आना । शरीरका स्तंभ होजाना । इनके सिवाय विनाही कारण एकाएकी स्पृश्य भावोंके जो लक्षण उत्पन्न हों उनकी भी जानलेना चाहिये । इन स्पर्शजनित लक्षणोंसे रोगीको कालग्रस्त जानना चाहिये. ॥३॥ विस्तारपूर्वक स्पर्शका लक्षण । तद्वयासतोऽनुव्याख्यास्यामः तस्य चेत्परिदृश्यमानं पृथक्त्वेन पादजंघोरुस्फिंगुंदरपार्श्वयष्टेषिकापाणिग्रीवातात्वोष्ठललाटं खिन्नंशतिप्रस्तब्धं दारुणं वीतमांसशोणितवास्यात्परासुरयं पुरुषोनचिरात्कालंकरिष्यतीतिविद्यात् ॥ ४ ॥ उन्हीं स्पृश्यभावको विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं। यदि उस रोगीके संपूर्ण दृश्यमान अंगोंको एक एक कर देखाजाय पांव, जंघा, घुटना, पार्श्वभाग, कुले, गुदा, उदर, पीठका बांस, हाथ, गर्दन, तालु, होठ और ललाट यह शीतल, पसीनेयुक्त, स्तब्ध, कठोर, मांस और रक्तरहित होजायँ तो इस गतायु मनुष्यको तत्काल मरजानेवाला जानना चाहिये ॥ ४ ॥ तस्यचेत्परिमृश्यमानानिपृथक्त्वेनगुल्फजानुवंक्षणगुदवृषणमेदूनाभ्यंसस्तनमणिक हनुस्पर्शकानासिका कर्णाक्षिशंखादीनिस्रस्तानिव्यस्तानिच्युतानिस्थानेभ्यः स्युः परासुरयं पुरुषोन चिरात्कालंकरिष्यतीतिविद्यात् यदि रोगी के यह अंग पृथक २ देखे जायँ जैसे गुल्फ, घुटने, वंक्षण, गुदा, अण्डकोष, लिंग, नामि, कंधे, स्तन, दोनों हाथोंके पहुँचे, ठोढी, पसली, नाक, कान, नेत्र, भौंह

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